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अपील का जादू – Appeal ka Jadoo | Harishankar Parsai

 एक देश है ! गणतंत्र है ! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूंक, टोना-टोटका से हल किया जाता है ! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-कांटे में कुछ गड़बड़ आ गयी है। राष्ट्रपति की बग्घी की मरम्मत कर दी जाती है और गणतंत्र ठीक चलने लगता है। सारी समस्याएं मुहावरों और अपीलों से सुलझ जाती हैं। सांप्रदायिकता की समस्या को इस नारे से हल कर लिया गया—हिन्दू-मुस्लिम, भाई-भाई ! एक दिन कुछ लोग प्रधानमंत्री के पास यह शिकायत करने गये कि चीजों की कीमतें बहुत बढ़ गयी हैं। प्रधानमंत्री उस समय गाय के गोबर से कुछ प्रयोग कर रहे थे, वे स्वमूत्र और गाय के गोबर से देश की समस्याओं को हल करने में लगे थे। उन्होंने लोगों की बात सुनी, चिढ़कर कहा—आप लोगों को कीमतों की पड़ी है ! देख नहीं रहे हो, मैं कितने बड़े काम में लगा हूँ। मैं गोबर में से नैतिक शक्ति पैदा कर रहा हूं। जैसे गोबर गैस ‘वैसे गोबर नैतिकता’। इस नैतिकता के प्रकट होते ही सब कुछ ठीक हो जायेगा। तीस साल के कांग्रेसी शासन ने देश की नैतिकता खत्म कर दी है। एक मुंहफट आदमी ने कहा—इन तीस में से बाइस साल आप भी कांग्रेस के...

दस दिन का अनशन – Das Din ka Anshan | Harishankar Parsai

 आज मैंने बन्नू से कहा, " देख बन्नू, दौर ऐसा आ गया है की संसद, क़ानून, संविधान, न्यायालय सब बेकार हो गए हैं. बड़ी-बड़ी मांगें अनशन और आत्मदाह की धमकी से पूरी हो रही हैं. २० साल का प्रजातंत्र ऐसा पक गया है कि एक आदमी के मर जाने या भूखा रह जाने की धमकी से ५० करोड़ आदमियों के भाग्य का फैसला हो रहा है. इस वक़्त तू भी उस औरत के लिए अनशन कर डाल." बन्नू सोचने लगा. वह राधिका बाबू की बीवी सावित्री के पीछे सालों से पड़ा है. भगाने की कोशिश में एक बार पिट भी चुका है. तलाक दिलवाकर उसे घर में डाल नहीं सकता, क्योंकि सावित्री बन्नू से नफरत करती है. सोचकर बोला, " मगर इसके लिए अनशन हो भी सकता है? " मैंने कहा, " इस वक़्त हर बात के लिए हो सकता है. अभी बाबा सनकीदास ने अनशन करके क़ानून बनवा दिया है कि हर आदमी जटा रखेगा और उसे कभी धोएगा नहीं. तमाम सिरों से दुर्गन्ध निकल रही है. तेरी मांग तो बहुत छोटी है- सिर्फ एक औरत के लिए." सुरेन्द्र वहां बैठा था. बोला, " यार कैसी बात करते हो! किसी की बीवी को हड़पने के लिए अनशन होगा? हमें कुछ शर्म तो आनी चाहिए. लोग हँसेंगे." मैंने कह...

कंधे श्रवणकुमार के – Kandhe Shravan Kumar ke | Harishankar Parsai

 एक सज्जन छोटे बेटे की शिकायत करते हैं - कहना नहीं मानता और कभी मुँहजोरी भी करता है। और बड़ा लड़का? वह तो बड़ा अच्छा है। पढ़-लिखकर अब कहीं नौकरी करता है। सज्जन के मत में दोनों बेटों में बड़ा फर्क है और यह फर्क कई प्रसंगों में उन्हें दिख जाता है। एक शाम का प्रसंग है। वे नियमित संध्यावंदन करते हैं (यानी शराब पीते हैं), कोई बुरा नहीं करते। बहुत लोग पीते हैं। गंगाजल खुलेआम पीते हैं, शराब छिपकर - गो शराब ज्यादा मजा देती है। आदमी बेमजा खुलकर बात करता है। और बामजा को छिपाकर, यानी सुख शर्म की बात मानी जाती है। लेकिन बात उन सज्जन की उठी थी। उन्हें सोडा की जरूरत पड़ती है। बड़ा लड़का कहते ही फौरन किताब के पन्नों में पेन्सिल रखकर सोडा लेने दौड़ जाता था। लाता छोटा भी है, पर फौरन नहीं उठता। पैराग्रफ पूरा करके उठता है। भारतीय पिता को यह अवज्ञा बरदाश्त नहीं। वह सीमांतों पर संबंध रखता है। या तो बेटे को पीटेगा या उसके हाथ से पिटेगा। बीच की स्थिति उसे पसंद नहीं। छोटा बेटा भी हरकत करता है। पिता जल्दी मचाते हैं, तो कह भी देता है ‘जाता तो हूँ’ ! उसके मन में सवाल और शंका भी उठती है। सोचता है - यह पिता फी...

एक मध्यमवर्गीय कुत्ता – Ek Madhyamvargiya Kutta | Harishankar Parsai

 मेरे मित्र की कार बंगले में घुसी तो उतरते हुए मैंने पूछा, “इनके यहां कुत्ता तो नहीं है?“ मित्र ने कहा, “तुम कुत्ते से बहुत डरते हो!” मैंने कहा, “आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता. उनसे निपट लेता हूं. पर सच्चे कुत्ते से बहुत डरता हूं.“ कुत्तेवाले घर मुझे अच्छे नहीं लगते. वहां जाओ तो मेजबान के पहले कुत्ता भौंककर स्वागत करता है. अपने स्नेही से “नमस्ते“ हुई ही नहीं कि कुत्ते ने गाली दे दी- “क्यों यहां आया बे? तेरे बाप का घर है? भाग यहां से !” फिर कुत्ते का काटने का डर नहीं लगता- चार बार काट ले. डर लगता है उन चौदह बड़े इंजेक्शनों का जो डॉक्टर पेट में घुसेड़ता है. यूं कुछ आदमी कुत्ते से अधिक ज़हरीले होते हैं. एक परिचित को कुत्ते ने काट लिया था. मैंने कहा, ”इन्हें कुछ नहीं होगा. हालचाल उस कुत्ते का पूछो और इंजेक्शन उसे लगाओ.” एक नये परिचित ने मुझे घर पर चाय के लिए बुलाया. मैं उनके बंगले पर पहुंचा तो फाटक पर तख्ती टंगी दीखी- ”कुत्ते से सावधान !” मैं फ़ौरन लौट गया. कुछ दिनों बाद वे मिले तो शिकायत की, ”आप उस दिन चाय पीने नहीं आये.” मैंने कहा, “माफ़ करें. मैं बंगले तक गया था. वहां तख्ती ल...

खेती – Kheti | Harishankar Parsai

 सरकार ने घोषणा की कि हम अधिक अन्न पैदा करेंगे और एक साल में खाद्य में आत्मनिर्भर हो जायेंगे। दूसरे दिन कागज के कारखानों को दस लाख एकड़ कागज का आर्डर दे दिया गया। जब कागज आ गया, तो उसकी फाइलें बना दी गयीं। प्रधानमंत्री के सचिवालय से फाइल खाद्य विभाग को भेजी गयी। खाद्य विभाग ने उस पर लिख दिया कि इस फाइल से कितना अनाज पैदा होना है और अर्थ विभाग को भेज दिया। अर्थ विभाग में फाइल के साथ नोट नत्थी किये गये और उसे कृषि विभाग भेज दिया गया। कृषि विभाग में उसमें बीज और खाद डाल दिये गये और उसे बिजली विभाग को भेज दिया। बिजली विभाग ने उसमें बिजली लगायी और उसे सिंचाई विभाग को भेज दिया गया। अब यह फाइल गृह विभाग को भेज दी गयी। गृह विभाग विभाग ने उसे एक सिपाही को सौंपा और पुलिस की निगरानी में वह फाइल राजधानी से लेकर तहसील तक के दफ्तरों में ले जायी गयी। हर दफ्तर में फाइल की आरती करके उसे दूसरे दफ्तर में भेज दिया जाता। जब फाइल सब दफ्तर घूम चुकी तब उसे पकी जानकर फूड कार्पोरेशन के दफ्तर में भेज दिया गयाऔर उस पर लिख दिया गया कि इसकी फसल काट ली जाए। इस तरह दस लाख एकड़ कागज की फाइलों की फसल पककर फूड कार्प...

मुण्डन – Mundan | Harishankar Parsai

 किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुण्डन हो गया था। कल तक उनके सिर पर लंबे घुंघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक मुण्डन हो गया था। सदस्यों में कानाफूसी हो रही थी कि इन्हें क्या हो गया है। अटकलें लगने लगीं। किसी ने कहा- शायद सिर में जूं हो गयी हों। दूसरे ने कहा- शायद दिमाग में विचार भरने के लिए बालों का पर्दा अलग कर दिया हो। किसी और ने कहा- शायद इनके परिवार में किसी की मौत हो गयी। पर वे पहले की तरह प्रसन्न लग रहे थे। आखिर एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय! क्या मैं जान सकता हूं कि माननीय मंत्री महोदय के परिवार में क्या किसी की मृत्यु हो गयी है? मंत्री ने जवाब दिया- नहीं। सदस्यों ने अटकल लगायी कि कहीं उन लोगों ने ही तो मंत्री का मुण्डन नहीं कर दिया, जिनके खिलाफ वे बिल पेश करने का इरादा कर रहे थे। एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय! क्या माननीय मंत्री को मालूम है कि उनका मुण्डन हो गया है? यदि हां, तो क्या वे बतायेंगे कि उनका मुण्डन किसने कर दिया है? मंत्री ने संजीदगी से जवाब दिया- मैं नहीं कह सकता कि मे...

भगत की गत – Bhagat ki Gat | Harishankar Parsai

 उस दिन जब भगतजी की मौत हुई थी, तब हमने कहा था- भगतजी स्वर्गवासी हो गए। पर अभी मुझे मालूम हुआ कि भगतजी, स्वर्गवासी नहीं, नरकवासी हुए हैं। मैं कहूं तो किसी को इस पर भरोसा नहीं होगा, पर यह सही है कि उन्हें नरक में डाल दिया गया है और उन पर ऐसे जघन्य पापों के आरोप लगाये गये हैं कि निकट भविष्य में उनके नरक से छूटने की कोई आशा नहीं है। अब हम उनकी आत्मा की शान्ति की प्रार्थना करें तो भी कुछ नहीं होगा। बड़ी से बड़ी शोक-सभा भी उन्हें नरक से नहीं निकाल सकती। सारा मुहल्ला अभी तक याद करता है कि भगतजी मंदिर में आधीरात तक भजन करते थे। हर दो-तीन दिनों में वे किसी समर्थ श्रद्धालु से मंदिर में लाउड-स्पीकर लगवा देते और उस पर अपनी मंडली समेत भजन करते। पर्व पर तो चौबीसों घंटे लाउड-स्पीकर पर अखण्ड कीर्तन होता। एक-दो बार मुहल्ले वालों ने इस अखण्ड कोलाहल का विरोध किया तो भगतजी ने भक्तों की भीड़ जमा कर ली और दंगा कराने पर उतारू हो गए। वे भगवान के लाउड-स्पीकर पर प्राण देने और प्राण लेने पर तुल गये थे। ऐसे ईश्वर-भक्त, जिन्होंने अरबों बार भगवान का नाम लिया, नरक में भेजे गए और अजामिल, जिसने एक बार भूल से भगवा...

भारत को चाहिए जादूगर और साधु – Bharat ko Chahiye Jadugar aur Sadhu | Harishankar Parsai

 हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को मैं सोचता हूं कि साल-भर में कितने बढ़े। न सोचूं तो भी काम चलेगा- बल्कि ज्यादा आराम से चलेगा। सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं। यह 26 जनवरी 1972 फिर आ गया। यह गणतंत्र दिवस है, मगर ‘गण’ टूट रहे हैं। हर गणतंत्र दिवस ‘गण’ के टूटने या नये ‘गण’ बनने के आंदोलन के साथ आता है। इस बार आंध्र और तेलंगाना हैं। अगले साल इसी पावन दिवस पर कोई और ‘गण’ संकट आयेगा। इस पूरे साल में मैंने दो चीजें देखीं। दो तरह के लोग बढ़े- जादूगर और साधु बढ़े। मेरा अंदाज था, सामान्य आदमी के जीवन के सुभीते बढ़ेंगे- मगर नहीं। बढ़े तो जादूगर और साधु-योगी। कभी-कभी सोचता हूं कि क्या ये जादूगर और साधु ‘गरीबी हटाओ’ प्रोग्राम के अंतर्गत ही आ रहे हैं! क्या इसमें कोई योजना है? रोज अखबार उठाकर देखता हूं। दो खबरें सामने आती हैं- कोई नया जादूगर और कोई नया साधु पैदा हो गया है। उसका विज्ञापन छपता है। जादूगर आंखों पर पट्टी बांधकर स्कूटर चलाता है और ‘गरीबी हटाओ’ वाली जनता कामधाम छोड़कर, तीन-चार घंटे आंखों पर पट्टी बांधे जादू्गर को देखती हजारों की संख्या में सड़क के दोनों तर...

एक अशुद्ध बेवकूफ – Ek Ashuddh Bewakoof | Harishankar Parsai

 बिना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है। मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूं और जो मुझे कहा जा रहा है, वह सब झूठ है- बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है। यह तपस्या है। मैं इस तपस्या का मजा लेने का आदी हो गया हूं। पर यह महंगा मजा है- मानसिक रूप से भी और इस तरह से भी। इसलिए जिनकी हैसियत नहीं है उन्हें यह मजा नहीं लेना चाहिए। इसमें मजा ही मजा नहीं है- करुणा है, मनुष्य की मजबूरियों पर सहानुभूति है, आदमी की पीड़ा की दारुण व्यथा है। यह सस्ता मजा नहीं है। जो हैसियत नहीं रखते उनके लिए दो रास्ते हैं- चिढ़ जायें या शुद्ध बेवकूफ बन जायें। शुद्ध बेवकूफ एक दैवी वरदान है, मनुष्य जाति को। दुनिया का आधा सुख खत्म हो जाए, अगर शुद्ध बेवकूफ न हों। मैं शुद्ध नहीं, ‘अशुद्ध’ बेवकूफ हूं। और शुद्ध बेवकूफ बनने को हमेशा उत्सुक रहता हूं। अभी जो साहब आये थे, निहायत अच्छे आदमी हैं। अच्छी सरकारी नौकरी में हैं। साहित्यिक भी हैं। कविता भी लिखते हैं। वे एक परिचित के साथ मेरे पास कवि के रूप में आये। बातें काव्य की ही घंटा भर होती रहीं- तुलसीदास, सूरदास, गालिब, अनीस वगैरह। पर...

बदचलन – Badchalan | Harishankar Parsai

 एक बाड़ा था। बाड़े में तेरह किराएदार रहते थे। मकान मालिक चौधरी साहब पास ही एक बंगले में रहते थे। एक नए किराएदार आए। वे डिप्टी कलेक्टर थे। उनके आते ही उनका इतिहास भी मुहल्ले में आ गया था। वे इसके पहले ग्वालियर में थे। वहां दफ्तर की लेडी टाइपिस्ट को लेकर कुछ मामला हुआ था। वे साल भर सस्पैंड रहे थे। यह मामला अखबार में भी छपा था। मामला रफा-दफा हो गया और उनका तबादला इस शहर में हो गया। डिप्टी साहब के इस मकान में आने के पहले ही उनके विभाग का एक आदमी मुहल्ले में आकर कह गया था कि यह बहुत बदचलन, चरित्रहीन आदमी है। जहां रहा, वहीं इसने बदमाशी की। यह बात सारे तेरह किराएदारों में फैल गई। किरदार आपस में कहते- यह शरीफ आदमियों का मोहल्ला है। यहां ऐसा आदमी रहने आ रहा है। चौधरी साहब ने इस आदमी को मकान देकर अच्छा नहीं किया। कोई कहते- बहू-बेटियां सबके घर में हैं। यहां ऐसा दुराचारी आदमी रहने आ रहा है। भला शरीफ आदमी यहां कैसे रहेंगे। डिप्टी साहब को मालूम था कि मेरे बारे में खबर इधर पहुंच चुकी है। वे यह भी जानते थे कि यहां सब लोग मुझसे नफरत करते हैं। मुझे बदमाश मानते हैं। वे इस माहौल में अड़चन महसूस करते ...

पिटने-पिटने में फर्क – Pitne-Pitne mein Farq | Harishankar Parsai

 (यह आत्म प्रचार नहीं है। प्रचार का भार मेरे विरोधियों ने ले लिया है। मैं बरी हो गया। यह ललित निबंध है।) बहुत लोग कहते हैं- तुम पिटे। शुभ ही हुआ। पर तुम्हारे सिर्फ दो अखबारी वक्तव्य छपे। तुम लेखक हो। एकाध कहानी लिखो। रिपोर्ताज लिखो। नहीं तो कोई ललित निबंध लिख डालो। पिट भी जाओ और साहित्य-रचना भी न हो। यह साहित्य के प्रति बड़ा अन्याय है। लोगों को मिरगी आती है और वे मिरगी पर उपन्यास लिख डालते हैं। टी-हाउस में दो लेखकों में सिर्फ मां-बहन की गाली-गलौज हो गयी। दोनों ने दो कहानियां लिख डालीं। दोनों बढि़या। एक ने लिखा कि पहला नीच है। दूसरे ने लिखा- मैं नहीं, वह नीच है। पढ़ने वालों ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों ही नीच हैं। देखो, साहित्य का कितना लाभ हुआ कि यह सिद्ध हो गया कि दोनों लेखक नीच हैं। फिर लोगों ने देखा कि दोनों गले मिल रहे हैं। साथ चाय पी रहे हैं। दोनों ने मां-बहन की गाली अपने मन के कलुष से नहीं दी थी, साहित्य-साधना के लिए दी थी। ऐसे लेखक मुझे पसंद हैं। पिटाई की सहानुभूति के सिलसिले में जो लोग आये, उनकी संख्या काफी होती थी। मैं उन्हें पान खिलाता था। जब पान का खर्च बहुत बढ़ गया, तो म...

शर्म की बात पर ताली पीटना – Sharm ki Baat par Taali Peetna | Harishankar Parsai

 मैं आजकल बड़ी मुसीबत में हूं। मुझे भाषण के लिए अक्सर बुलाया जाता है। विषय यही होते हैं- देश का भविष्य, छात्र समस्या, युवा-असंतोष, भारतीय संस्कृति भी(हालांकि निमंत्रण की चिट्ठी में ‘संस्कृति’ अक्सर गलत लिखा होता है), पर मैं जानता हूं जिस देश में हिंदी-हिंसा आंदोलन भी जोरदार होता है, वहां मैं ‘संस्कृति’ की सही शब्द रचना अगर देखूं तो बेवकूफ के साथ ही ‘राष्ट्र-द्रोही’ भी कहलाऊंगा। इसलिए जहां तक बनता है, मैं भाषण ही दे आता हूं। मजे की बात यह है कि मुझे धार्मिक समारोहों में भी बुला लिया जाता है। सनातनी, वेदान्ती, बौद्ध, जैन सभी बुला लेते हैं; क्योंकि इन्हें न धर्म से मतलब है, न संत से, न उसके उपदेश से। ये धर्मोपदेश को भी समझना नहीं चाहते। पर ये साल में एक-दो बार सफल समारोह करना चाहते हैं। और जानते हैं कि मुझे बुलाकर भाषण करा देने से समारोह सफल होगा, जनता खुश होगी और उनका जलसा कामयाब हो जाएगा। मैं उनसे कह देता हूं- जितना लाइट और लाउडस्पीकरवालों को दोगे, कम से कम उतना मुझ गरीब शास्ता को दे देना- तो वे दे भी देते हैं। मुझे अगर लगे कि इनका इरादा कुछ गड़बड़ है तो मैं शास्ता विक्रयकर अधिकारी ...

उखड़े खंभे – Ukhde Khambhe | Harishankar Parsai

 कुछ साथियों के हवाले से पता चला कि कुछ साइटें बैन हो गयी हैं। पता नहीं यह कितना सच है लेकिन लोगों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। अरे भाई,सरकार तो जो देश हित में ठीक लगेगा वही करेगी न! पता नहीं मेरी इस बात से आप कितना सहमत हैं लेकिन यह है सही बात कि सरकार हमेशा देश हित के लिये सोचती है। मैं शायद ठीक से अपनी बात न समझा सकूँ लेकिन मेरे पसंदीदा लेखक ,व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने इसे अपने एक लेख उखड़े खम्भे में बखूबी बताया है। यहां जानकारी के लिये बता दिया जाये कि भारत के प्रथम प्रधान मंत्री स्व.जवाहरलाल नेहरू ने एक बार घोषणा की थी कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों पर लटका दिया जायेगा।] एक दिन राजा ने खीझकर घोषणा कर दी कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटका दिया जायेगा। सुबह होते ही लोग बिजली के खम्भों के पास जमा हो गये। उन्होंने खम्भों की पूजा की,आरती उतारी और उन्हें तिलक किया। शाम तक वे इंतजार करते रहे कि अब मुनाफाखोर टांगे जायेंगे- और अब। पर कोई नहीं टाँगा गया। लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गये और कहा,”महाराज,आपने तो कहा था कि मुनाफाखोर बिजली के खम्भे से लटकाये जायेंगे,पर खम्भे तो व...

ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड – Greeting Card aur Ration Card | Harishankar Parsai

 मेरी टेबिल पर दो कार्ड पड़े हैं- इसी डाक से आया दिवाली ग्रीटिंग कार्ड और दुकान से लौटा राशन कार्ड. ग्रीटिंग कार्ड में किसी ने शुभेच्छा प्रगट की है कि मैं सुख और समृद्धि प्राप्त करूँ. अभी अपने शुभचिन्तक बने हुए हैं जो सुख दिए बिना चैन नहीं लेंगे. दिवाली पर कम से कम उन्हें याद तो आती है कि इस आदमी का सुखी होना अभी बकाया है. वे कार्ड भेज देते हैं कि हम तो सुखी हैं ही, अगर तुम भी हो जाओ, तो हमें फिलहाल कोई एतराज़ नहीं. मेरा राशन कार्ड मेरे सुख की कामना कर रहा है. मगर राशन कार्ड बताता है कि इस हफ़्ते से गेहूँ की मात्रा आधी हो गयी है. राशन कार्ड मे ग्रीटिंग कार्ड को काट दिया. ऐसा तमाचा मारा कि खूबसूरत ग्रीटिंग कार्डजी के कोमल कपोल रक्तिम हो गए.शुरु से ही राशन कार्ड इस ग्रीटिंग कार्ड की ओर गुर्राकर देख रहा था. जैसे ही मैं ग्रीटिंग कार्ड पढ़कर खुश हुआ, राशन कार्ड ने उसकी गर्दन दबाकर कहा- क्यों बे साले, ग्रीटिंग कार्ड के बच्चे, तू इस आदमी को सुखी करना चाहता है? जा, इसका गेहूँ आधा कर दिया गया. बाकी काला-बाज़ार से खरीदे या भूखा रहे. बेचारा ग्रीटिंग कार्ड दीनता से मेरी ओर देख रहा है. मैं क्या...

बारात की वापसी – Baraat ki Wapsi | Harishankar Parsai

 बारात में जाना कई कारण से टालता हूँ । मंगल कार्यों में हम जैसी चढ़ी उम्र के कुँवारों का जाना अपशकुन है। महेश बाबू का कहना है, हमें मंगल कार्यों से विधवाओं की तरह ही दूर रहना चाहिये। किसी का अमंगल अपने कारण क्यों हो ! उन्हें पछतावा है कि तीन साल पहले जिनकी शादी में वह गये थे, उनकी तलाक की स्थिति पैदा हो गयी है। उनका यह शोध है कि महाभारत का युद्ध न होता, अगर भीष्म की शादी हो गयी होती। और अगर कृष्णमेनन की शादी हो गयी होती, तो चीन हमला न करता। सारे युद्ध प्रौढ़ कुंवारों के अहं की तुष्टि के लिए होते हैं। 1948 में तेलंगाना में किसानों का सशस्त्र विद्रोह देश के वरिष्ठ कुंवारे विनोवस भावे के अहं की तुष्टि के लिए हुआ था। उनका अहं भूदान के रूप में तुष्ट हुआ। .......... अपने पुत्र की सफल बारात से प्रसन्न मायराम के मन में उस दिन नागपुर में बड़ा मौलिक विचार जागा था। कहने लगे, " बस, अब तुमलोगों की बारात में जाने की इच्छा है। " हम लोगों ने कहा - ' अब किशोरों जैसी बारात तो होगी नही। अब तो ऐसी बारात ऐसी होगी- किसी को भगा कर लाने के कारण हथकड़ी पहने हम होंगे और पीछे चलोगे तुम जमानत देने व...

संस्कृति – Sanskriti | Harishankar Parsai

 भूखा आदमी सड़क किनारे कराह रहा था । एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहँचा और उसे दे ही रहा था कि एक-दूसरे आदमी ने उसका हाथ खींच लिया । वह आदमी बड़ा रंगीन था । पहले आदमी ने पूछा, "क्यों भाई, भूखे को भोजन क्यों नहीं देने देते ?" रंगीन आदमी बोला, "ठहरो, तुम इस प्रकार उसका हित नहीं कर सकते । तुम केवल उसके तन की भूख समझ पाते हो, मैं उसकी आत्मा की भूख जानता हूँ । देखते नहीं हो, मनुष्य-शरीर में पेट नीचे है और हृदय ऊपर । हृदय की अधिक महत्ता है ।" पहला आदमी बोला, "लेकिन उसका हृदय पेट पर ही टिका हुआ है । अगर पेट में भोजन नहीं गया तो हृदय की टिक-टिक बंद नहीं हो जायेगी !" रंगीन आदमी हँसा, फिर बोला, "देखो, मैं बतलाता हूँ कि उसकी भूख कैसे बुझेगी !" यह कहकर वह उस भूखे के सामने बाँसुरी बजाने लगा । दूसरे ने पूछा, "यह तुम क्या कर रहे हो, इससे क्या होगा ?" रंगीन आदमी बोला, "मैं उसे संस्कृति का राग सुना रहा हूँ । तुम्हारी रोटी से तो एक दिन के लिए ही उसकी भूख भागेगी, संस्कृति के राम से उसकी जनम-जनम की भूख भागेगी ।" वह फिर बाँसूरी बजाने लगा । और ...

घायल बसंत – Ghayal Basant | Harishankar Parsai

कल बसन्तोत्सव था। कवि बसन्त के आगमन की सूचना पा रहा था-- प्रिय, फिर आया मादक बसन्त' । मैंने सोचा, जिसे बसन्त के आने का बोध भी अपनी तरफ से काराना पड़े, उस प्रिय से तो शत्रु अच्छा। ऐसे नासमझ को प्रकृति - विज्ञान पढ़ायेंगे या उससे प्यार करेंगे। मगर कवि को न जाने क्यों ऐसा बेवकूफ पसन्द आता है । कवि मग्न होकर गा रहा था – 'प्रिय, फिर आया मादक बसन्त !' पहली पंक्ति सुनते ही मैं समझ गया कि इस कविता का अन्त ‘हा हन्त’ से होगा, और हुआ। अन्त, सन्त, दिगन्त आदि के बाद सिवा 'हा हन्त' के कौन पद पूरा करता ? तुक की यही मजबूरी है। लीक के छोर पर यही गहरा गढ़ा होता है। तुक की गुलामी करोगे तो आरम्भ चाहे 'बसन्त ' से कर लो, अन्त जरूर ' हा हन्त ' से होगा। सिर्फ कवि ऐसा नहीं करता। और लोग भी, सयाने लोग भी, इस चक्कर में होते है। व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में तुक पर तुक बिठाते चलते है। और 'वसन्त ' से शुरू करके 'हा हन्त' पर पहुंचते हैं। तुकें बराबर फ़िट बैठती हैं, पर जीवन का आवेग निकल भागता है। तुकें हमारा पीछा छोड़ ही नहीं रही हैं। हाल ही में हमारी समाजवादी सरकार ...