कृपानिवास के दोहे / Kripanivas Ke Dohe

 प्रथम चारु शीला सुभग, गान कला सु प्रवीन।

जुगुल केलि रसना रसित, राम रहस रसलीन॥


सखी पद्म गंगा सुभग, भूषन सेवत अंग।

सदा विभूषित आप तन, जुगुल माधुरी रंग॥


हेमा कर वीरी सदा, हँसि दंपति मुख देत।

संपति राग सुहाग की, सौभागिनि उर हेत॥


सुभगा सुभग सिरोमनि, सेज सोहाई सेव।

सिय वल्लभ सुख सुरति रस, सकल जानि साभेव॥


क्षेमा समै प्रबंध कर, वसन विचित्र बनाय।

सुरुचि सुहावन सुखद सब, पिय प्यारी पहिराय॥


सखी वरारोहा हरषि, भोजन युगल जिमाय।

प्रान प्राननी प्रान सुख, राखति प्रान लगाय॥


lakshamna man lakshgun, pushp vibhushan saji.

bihansi bihansi pahiravhi, siy vallabh maharaj॥


ali sulochana chitrvit, anjan tilak sanvari.

ang rasi siy laal ke, kari jivati shringar॥





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