रोमांटिक, दर्द , जीवन इत्यादि पर शेर शायरी | Sher Shayari Hindi
अदा पर शेर शायरी Ada Par Sher Shayari
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
अकबर इलाहाबादी
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
निज़ाम रामपुरी
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
आरज़ू लखनवी
ये जो सर नीचे किए बैठे हैं
जान कितनों की लिए बैठे हैं
जलील मानिकपूरी
विषय अदा
जान लेनी थी साफ़ कह देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
अज्ञात
पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
विषय अदा
आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
जलील मानिकपूरी
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन
मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है
अमीर मीनाई
विषय अदा
निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा
आरज़ू लखनवी
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
निज़ाम रामपुरी
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का
असद अली ख़ान क़लक़
गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
मीर तक़ी मीर
ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में
कालीदास गुप्ता रज़ा
ख़ूब-रू हैं सैकड़ों लेकिन नहीं तेरा जवाब
दिलरुबाई में अदा में नाज़ में अंदाज़ में
लाला माधव राम जौहर
नमाज़ अपनी अगरचे कभी क़ज़ा न हुई
अदा किसी की जो देखी तो फिर अदा न हुई
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
सूरत तो इब्तिदा से तिरी ला-जवाब थी
नाज़-ओ-अदा ने और तरह-दार कर दिया
जलील मानिकपूरी
विषय हुस्न
नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ 'ज़ौक़'
उस ने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
तुझ को देखा न तिरे नाज़-ओ-अदा को देखा
तेरी हर तर्ज़ में इक शान-ए-ख़ुदा को देखा
मिर्ज़ा मायल देहलवी
दुश्मन के घर से चल के दिखा दो जुदा जुदा
ये बाँकपन की चाल ये नाज़-ओ-अदा की है
बेख़ुद देहलवी
तस्वीर पर शेर शायरी Tasvir Par Sher Shayari
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
जिगर मुरादाबादी
आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
जलील मानिकपूरी
ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले
मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ
क़ैसर-उल जाफ़री
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद
दाग़ देहलवी
विषय तस्वीर
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
वो तस्वीर बातें बनाने लगी
आदिल मंसूरी
विषय तस्वीर
मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
विकास शर्मा राज़
भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'
आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए
शकील बदायूनी
विषय तस्वीर
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
उस की तस्वीर हटा दी जाए
मोहम्मद अल्वी
मैं ने तो यूँही राख में फेरी थीं उँगलियाँ
देखा जो ग़ौर से तिरी तस्वीर बन गई
सलीम बेताब
विषय तस्वीर
जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी
अहमद फ़राज़
विषय तस्वीर
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है
साबिर दत्त
विषय तस्वीर
दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली
लाला मौजी राम मौजी
मैं ने भी देखने की हद कर दी
वो भी तस्वीर से निकल आया
शहपर रसूल
विषय तस्वीर
कह रही है ये तिरी तस्वीर भी
मैं किसी से बोलने वाली नहीं
नूह नारवी
विषय तस्वीर
लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर
तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है
अज्ञात
विषय तस्वीर
आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
विषय तस्वीर
सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथ
मेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ
अज्ञात
विषय तस्वीर
तिरी तस्वीर तो वा'दे के दिन खिंचने के क़ाबिल है
कि शर्माई हुई आँखें हैं घबराया हुआ दिल है
नज़ीर इलाहाबादी
विषय तस्वीर
शायरी के शौक़ीन लोग यह भी पढ़ सकते हैं Aziz Lakhnavi Sher Shayari Ghazal
अख़बार पर शेर शायरी Akhbaar Par Sher Shayari
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
अकबर इलाहाबादी
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
अदा जाफ़री
इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए
अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
अनवर मसूद
विषय अख़बार
दस बजे रात को सो जाते हैं ख़बरें सुन कर
आँख खुलती है तो अख़बार तलब करते हैं
शहज़ाद अहमद
विषय अख़बार
सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
मख़मूर सईदी
विषय अख़बार
इश्क़ अख़बार कब का बंद हुआ
दिल मिरा आख़िरी शुमारा है
फ़रहत एहसास
रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे
सुब्ह के अख़बार में हालात बेहतर हो गए
नुसरत ग्वालियारी
विषय अख़बार
ऐसे मर जाएँ कोई नक़्श न छोड़ें अपना
याद दिल में न हो अख़बार में तस्वीर न हो
ख़लील मामून
विषय अख़बार
अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं
क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा
साहिर लुधियानवी
वसीम' ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
वसीम बरेलवी
चश्म-ए-जहाँ से हालत-ए-असली छुपी नहीं
अख़बार में जो चाहिए वो छाप दीजिए
अकबर इलाहाबादी
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ
और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
गुलज़ार
कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है
हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं
भारत भूषण पन्त
चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है
पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे
शहज़ाद अहमद
अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी
अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते
महबूब ख़िज़ां
कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया
फिर इश्क़ मिरा कूचा ओ बाज़ार में आया
इरफ़ान सिद्दीक़ी
रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में
अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए
मोहम्मद अल्वी
अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं
मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या
मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ
शोएब निज़ाम
खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं
वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता
रऊफ़ ख़ैर
बोसे पर शेर शायरी Bosey Par Sher Shayari
एक बोसे के भी नसीब न हों
होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों
फ़रहत एहसास
एक बोसे के तलबगार हैं हम
और माँगें तो गुनहगार हैं हम
अज्ञात
विषय किस
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए
लीजिए या दीजिए इंकार रहने दीजिए
हफ़ीज़ जौनपुरी
विषय किस
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय किस
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
विषय किस
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय किस
एक बोसा होंट पर फैला तबस्सुम बन गया
जो हरारत थी मिरी उस के बदन में आ गई
काविश बद्री
विषय किस
बोसे अपने आरिज़-ए-गुलफ़ाम के
ला मुझे दे दे तिरे किस काम के
मुज़्तर ख़ैराबादी
विषय किस
बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर
वो एक बोसा हमें दे के सुर्ख़-रू है बहुत
ज़फ़र इक़बाल
विषय किस
बोसा जो तलब मैं ने किया हँस के वो बोले
ये हुस्न की दौलत है लुटाई नहीं जाती
अज्ञात
विषय किस
लजा कर शर्म खा कर मुस्कुरा कर
दिया बोसा मगर मुँह को बना कर
अज्ञात
विषय किस
बे-गिनती बोसे लेंगे रुख़-ए-दिल-पसंद के
आशिक़ तिरे पढ़े नहीं इल्म-ए-हिसाब को
हैदर अली आतिश
विषय किस
क्या क़यामत है कि आरिज़ उन के नीले पड़ गए
हम ने तो बोसा लिया था ख़्वाब में तस्वीर का
अज्ञात
विषय किस
ले लो बोसा अपना वापस किस लिए तकरार की
क्या कोई जागीर हम ने छीन ली सरकार की
अकबर मेरठी
विषय किस
बोसा होंटों का मिल गया किस को
दिल में कुछ आज दर्द मीठा है
मुनीर शिकोहाबादी
विषय किस
जिस लब के ग़ैर बोसे लें उस लब से 'शेफ़्ता'
कम्बख़्त गालियाँ भी नहीं मेरे वास्ते
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
विषय किस
बोसा तो उस लब-ए-शीरीं से कहाँ मिलता है
गालियाँ भी मिलीं हम को तो मिलीं थोड़ी सी
निज़ाम रामपुरी
विषय किस
बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई
मैं इस बहार में ये राख भी उड़ा दूँगा
साक़ी फ़ारुक़ी
मैं आ रहा हूँ अभी चूम कर बदन उस का
सुना था आग पे बोसा रक़म नहीं होता
शनावर इस्हाक़
विषय किस
हम को गाली के लिए भी लब हिला सकते नहीं
ग़ैर को बोसा दिया तो मुँह से दिखला कर दिया
आदिल मंसूरी
विषय किस
Nawaz Deobandi Ghazal Shayari / नवाज़ देवबंदी ग़ज़ल शायरी शेर भी पढ़ सकते हैं
जुदाई पर शेर शायरी Judai Par Sher Shayari
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
अहमद फ़राज़
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
मुनव्वर राना
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
अंजुम रहबर
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
निदा फ़ाज़ली
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
गुलज़ार
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
क़तील शिफ़ाई
कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
ख़ालिद शरीफ़
वस्ल में रंग उड़ गया मेरा
क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा
मीर तक़ी मीर
मैं ने समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी
अहमद नदीम क़ासमी
याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल
नासिर काज़मी
उसी मक़ाम पे कल मुझ को देख कर तन्हा
बहुत उदास हुए फूल बेचने वाले
जमाल एहसानी
विषय जुदाई
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
अल्लामा इक़बाल
विषय जुदाई
लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए
अनवर शऊर
तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ख़ुद चले आओ या बुला भेजो
रात अकेले बसर नहीं होती
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
ख़ुदा हाफ़िज़ कहा बोसा लिया घर से निकल आए
फ़ुज़ैल जाफ़री
विषय जुदाई
ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं
मैं तिरी जुदाई में इस तरह भी रोता हूँ
अहमद राही
विषय जुदाई
बारिश पर शेर शायरी Baarish Barish Par Sher Shayari
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
जमाल एहसानी
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
जमाल एहसानी
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
मोहम्मद अल्वी
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
परवीन शाकिर
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'
बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया
अब्दुल हमीद अदम
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
क़तील शिफ़ाई
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी
हसरत मोहानी
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
गुलज़ार
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था
अख़्तर होशियारपुरी
विषय बारिश
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
अंजुम सलीमी
विषय बारिश
छुप जाएँ कहीं आ कि बहुत तेज़ है बारिश
ये मेरे तिरे जिस्म तो मिट्टी के बने हैं
सबा इकराम
क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँ
तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो
जाज़िब क़ुरैशी
दफ़्तर से मिल नहीं रही छुट्टी वगर्ना मैं
बारिश की एक बूँद न बे-कार जाने दूँ
अज़हर फ़राग़
विषय बारिश
हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
कितनी दूर से आई है ये रेत से हाथ मिलाने को
सऊद उस्मानी
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
मरग़ूब अली
बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पास
इतना तो है कि आप का दामन भिगो सके
अहसन यूसुफ़ ज़ई
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं
रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
ज़फ़र इक़बाल
शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही
रात बादल इस तरह आए कि मैं तो डर गया
मुनीर नियाज़ी
कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई
पहली बारिश ही ने बरसात की ढाया है मुझे
ज़ुबैर रिज़वी
विषय बारिश
दुआ पर शेर शायरी Dua Par Sher Shayari
दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है
जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना
जलील मानिकपूरी
मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी
तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है
अहमद फ़राज़
विषय दुआ
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
गोपाल मित्तल
दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ
वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है
उबैदुल्लाह अलीम
विषय दुआ
कोई चारह नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा
हफ़ीज़ जालंधरी
विषय दुआ
हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
दाग़ देहलवी
विषय दुआ
माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
अमीर मीनाई
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की
शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम
अज्ञात
माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
विषय दुआ
होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
विषय दुआ
मैं ज़िंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत
जो हो सके तो दुआओं को बे-असर कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
विषय दुआ
न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे
राजेन्द्र कृष्ण
विषय दुआ
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम
आमिर उस्मानी
विषय दुआ
दुश्मन-ए-जाँ ही सही दोस्त समझता हूँ उसे
बद-दुआ जिस की मुझे बन के दुआ लगती है
मुर्तज़ा बरलास
विषय दुआ
अभी दिलों की तनाबों में सख़्तियाँ हैं बहुत
अभी हमारी दुआ में असर नहीं आया
आफ़ताब हुसैन
विषय दुआ
धूप साए की तरह फैल गई
इन दरख़्तों की दुआ लेने से
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
विषय साया
आईने पर शेर शायरी Aaine Par Sher Shayari
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे
मिर्ज़ा ग़ालिब
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय आईना
आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए
हसरत मोहानी
कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायद
आईना ग़ौर से तू ने कभी देखा ही नहीं
शकेब जलाली
देखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना
दोनों नाज़ुक हैं न रखियो आईने पर आइना
दाग़ देहलवी
विषय आईना
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के
अमीर मीनाई
देखिएगा सँभल कर आईना
सामना आज है मुक़ाबिल का
रियाज़ ख़ैराबादी
विषय आईना
चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो
आइना झूट बोलता ही नहीं
कृष्ण बिहारी नूर
विषय आईना
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा
बेख़ुद देहलवी
पहले तो मेरी याद से आई हया उन्हें
फिर आइने में चूम लिया अपने-आप को
शकेब जलाली
हम सब आईना-दर-आईना-दर-आईना हैं
क्या ख़बर कौन कहाँ किस की तरफ़ देखता है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
आइने से नज़र चुराते हैं
जब से अपना जवाब देखा है
अमीर क़ज़लबाश
विषय आईना
आइना देख के फ़रमाते हैं
किस ग़ज़ब की है जवानी मेरी
इम्दाद इमाम असर
इक बार जो टूटे तो कभी जुड़ नहीं सकता
आईना नहीं दिल मगर आईना-नुमा है
रज़ा हमदानी
विषय आईना
हम ने देखा है रू-ब-रू उन के
आईना आईना नहीं होता
इब्न-ए-मुफ़्ती
विषय आईना
मिस्ल-ए-आईना है उस रश्क-ए-क़मर का पहलू
साफ़ इधर से नज़र आता है उधर का पहलू
मीर ख़लीक़
विषय कमर
बनाया तोड़ के आईना आईना-ख़ाना
न देखी राह जो ख़ल्वत से अंजुमन की तरफ़
नज़्म तबातबाई
विषय आईना
इतरा के आईना में चिढ़ाते थे अपना मुँह
देखा मुझे तो झेंप गए मुँह छुपा लिया
शौक़ क़िदवाई
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
आईना उन के मुँह चढ़ा है आज
सख़ी लख़नवी
आँसू पर शेर शायरी Aansu Par Sher Shayari
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है
अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
बिस्मिल साबरी
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
मोहम्मद अल्वी
विषय आँसू
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
विषय आँसू
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
साहिर लुधियानवी
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
विषय आँसू
घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसू
पाँव रखता हूँ तो हल्की सी नमी लगती है
सलीम अहमद
विषय आँसू
क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ
ग़म को खाता हूँ आँसू पीता हूँ
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात
शहरयार
ये आँसू बे-सबब जारी नहीं है
मुझे रोने की बीमारी नहीं है
कलीम आजिज़
विषय आँसू
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बअ'द मिरी आँखों में आँसू आए
बशीर बद्र
अश्क-ए-ग़म दीदा-ए-पुर-नम से सँभाले न गए
ये वो बच्चे हैं जो माँ बाप से पाले न गए
मीर अनीस
जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
जो अश्कों ने भड़काई है उस आग को ठंडा कौन करे
मुईन अहसन जज़्बी
विषय आँसू
इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगे
अब तो पानी ही भरा रहता है घर के आगे
मीर हसन
विषय आँसू
थमे आँसू तो फिर तुम शौक़ से घर को चले जाना
कहाँ जाते हो इस तूफ़ान में पानी ज़रा ठहरे
लाला माधव राम जौहर
विषय आँसू
आँसू हमारे गिर गए उन की निगाह से
इन मोतियों की अब कोई क़ीमत नहीं रही
जलील मानिकपूरी
विषय आँसू
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है
अहमद मुश्ताक़
विषय शाम
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा है
संग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे
शकेब जलाली
आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया
अब्बास ताबिश
आँख पर शेर शायरी Aankh Par Sher Shayari
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
मुनव्वर राना
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
जिगर मुरादाबादी
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
जिगर मुरादाबादी
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं
अब्दुल हमीद अदम
विषय आँख
आँख रहज़न नहीं तो फिर क्या है
लूट लेती है क़ाफ़िला दिल का
जलील मानिकपूरी
विषय आँख
लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए
हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो
लाला माधव राम जौहर
विषय आँख
उस की आँखों को ग़ौर से देखो
मंदिरों में चराग़ जलते हैं
बशीर बद्र
विषय आँख
पैमाना कहे है कोई मय-ख़ाना कहे है
दुनिया तिरी आँखों को भी क्या क्या न कहे है
अज्ञात
विषय आँख
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
अब्दुल हमीद अदम
विषय आँख
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
अख़्तर शीरानी
आँख से आँख मिलाना तो सुख़न मत करना
टोक देने से कहानी का मज़ा जाता है
मोहसिन असरार
विषय आँख
आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे
क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे
इमदाद अली बहर
दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें
नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
विषय आँख
हम मोहब्बत का सबक़ भूल गए
तेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है
जमील मज़हरी
विषय आँख
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
विषय आँख
कहीं न उन की नज़र से नज़र किसी की लड़े
वो इस लिहाज़ से आँखें झुकाए बैठे हैं
नूह नारवी
विषय आँख
उस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसाँ
दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे
इरफ़ान सिद्दीक़ी
विषय आँख
अधर उधर मिरी आँखें तुझे पुकारती हैं
मिरी निगाह नहीं है ज़बान है गोया
बिस्मिल सईदी
हर एक आँख में होती है मुंतज़िर कोई आँख
हर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है
अबरार अहमद
विषय आँख
अंगड़ाई पर शेर शायरी Angdai Angdayi Par Sher Shayari
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
निज़ाम रामपुरी
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
परवीन शाकिर
इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई
मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं
जुरअत क़लंदर बख़्श
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
शकील बदायूनी
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
दोनों हाथों से लूटती है हमें
कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई
जिगर मुरादाबादी
विषय अंगड़ाई
कौन अंगड़ाई ले रहा है 'अदम'
दो जहाँ लड़खड़ाए जाते हैं
अब्दुल हमीद अदम
सुन चुके जब हाल मेरा ले के अंगड़ाई कहा
किस ग़ज़ब का दर्द ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था
शाद अज़ीमाबादी
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
आसमानों को नींद आती है
फ़िराक़ गोरखपुरी
विषय अंगड़ाई
दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने
ले के अंगड़ाई कहा नाज़ से हम जाते हैं
दाग़ देहलवी
लुट गए एक ही अंगड़ाई में ऐसा भी हुआ
उम्र-भर फिरते रहे बन के जो होशियार बहुत
क़ैस रामपुरी
विषय अंगड़ाई
दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया
अंगड़ाई उस ने नश्शे में ली जब उठा के हाथ
इमाम बख़्श नासिख़
विषय अंगड़ाई
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है
जौन एलिया
विषय अंगड़ाई
बे-साख़्ता बिखर गई जल्वों की काएनात
आईना टूट कर तिरी अंगड़ाई बन गया
साग़र सिद्दीक़ी
क्या क्या दिल-ए-मुज़्तर के अरमान मचलते हैं
तस्वीर-ए-क़यामत है ज़ालिम तिरी अंगड़ाई
राम कृष्ण मुज़्तर
विषय अंगड़ाई
क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार
ऐ सितमगर ले न अंगड़ाई बहुत
साहिल अहमद
विषय अंगड़ाई
फिर मुँह से अरे कह कर पैमाना गिरा दीजे
फिर तोड़िए दिल मेरा फिर लीजिए अंगड़ाई
मंज़र लखनवी
अंगड़ाई दोनों हाथ उठा कर जो उस ने ली
पर लग गए परों ने परी को उड़ा दिया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद आ गई
ये तमाशा मैं ने देखा बाम पर होता हुआ
प्रेम कुमार नज़र
विषय बाम
शैख़-साहिब की नसीहत भरी बातों के लिए
कितना रंगीन जवाब आप की अंगड़ाई है
साग़र ख़य्यामी
विषय अंगड़ाई
नए साल पर शेर शायरी Nae Saal Par Sher Shayari
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
अहमद फ़राज़
इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को
इब्न-ए-इंशा
तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नई
वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई
फ़ैज़ लुधियानवी
विषय नया साल
किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए
कैलन्डर के बदलने से मुक़द्दर कब बदलता है
ऐतबार साजिद
विषय नया साल
यकुम जनवरी है नया साल है
दिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है
अमीर क़ज़लबाश
विषय नया साल
न कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए
ख़ुदा करे कि नया साल सब को रास आए
फ़रियाद आज़र
विषय नया साल
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय नया साल
फिर नए साल की सरहद पे खड़े हैं हम लोग
राख हो जाएगा ये साल भी हैरत कैसी
अज़ीज़ नबील
विषय नया साल
इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ
लो साथ छोड़ने लगा आख़िर ये साल भी
हफ़ीज़ मेरठी
विषय नया साल
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है
अली सरदार जाफ़री
विषय नया साल
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
तमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है
अली सरदार जाफ़री
विषय नया साल
नए साल में पिछली नफ़रत भुला दें
चलो अपनी दुनिया को जन्नत बना दें
अज्ञात
विषय नया साल
एक पत्ता शजर-ए-उम्र से लो और गिरा
लोग कहते हैं मुबारक हो नया साल तुम्हें
अज्ञात
विषय नया साल
चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें
दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे
ज़फ़र इक़बाल
विषय नया साल
उम्र का एक और साल गया
वक़्त फिर हम पे ख़ाक डाल गया
शकील जमाली
विषय नया साल
दुल्हन बनी हुई हैं राहें
जश्न मनाओ साल-ए-नौ के
साहिर लुधियानवी
विषय नया साल
नया साल दीवार पर टाँग दे
पुराने बरस का कैलेंडर गिरा
मोहम्मद अल्वी
विषय नया साल
मुबारक मुबारक नया साल आया
ख़ुशी का समाँ सारी दुनिया पे छाया
अख़्तर शीरानी
विषय नया साल
पलट सी गई है ज़माने की काया
नया साल आया नया साल आया
अख़्तर शीरानी
विषय नया साल
बहार-ए-हुस्न ये दो दिन की चाँदनी है हुज़ूर
जो बात अब की बरस है वो पार साल नहीं
लाला माधव राम जौहर
दर्द पर 20 मशहूर शेर
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
शकील बदायूनी
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
अमीर मीनाई
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
निदा फ़ाज़ली
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
विषय दर्द
आज तो दिल के दर्द पर हँस कर
दर्द का दिल दुखा दिया मैं ने
ज़ुबैर अली ताबिश
विषय दर्द
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था
दाग़ देहलवी
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
मंज़र लखनवी
आदत के ब'अद दर्द भी देने लगा मज़ा
हँस हँस के आह आह किए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
आसी ग़ाज़ीपुरी
कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते
फ़ना निज़ामी कानपुरी
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी
इंतिहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया
फ़ानी बदायुनी
जब कि पहलू से यार उठता है
दर्द बे-इख़्तियार उठता है
मीर तक़ी मीर
हाल तुम सुन लो मिरा देख लो सूरत मेरी
दर्द वो चीज़ नहीं है कि दिखाए कोई
जलील मानिकपूरी
विषय दर्द
मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया
जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने
इक़बाल सफ़ी पूरी
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता
जिगर मुरादाबादी
ग़म में कुछ ग़म का मशग़ला कीजे
दर्द की दर्द से दवा कीजे
मंज़र लखनवी
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते
बशीर बद्र
विषय दर्द
हाथ रख रख के वो सीने पे किसी का कहना
दिल से दर्द उठता है पहले कि जिगर से पहले
हफ़ीज़ जालंधरी
शराब पर 20 मशहूर शेर
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
फ़िराक़ गोरखपुरी
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
निदा फ़ाज़ली
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
अज्ञात
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
दिवाकर राही
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
विषय शराब
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी
बशीर बद्र
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
मिर्ज़ा ग़ालिब
ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
पियाला गर नहीं देता न दे शराब तो दे
मिर्ज़ा ग़ालिब
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में
अज्ञात
लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद
हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं
दाग़ देहलवी
विषय शराब
तर्क-ए-मय ही समझ इसे नासेह
इतनी पी है कि पी नहीं जाती
शकील बदायूनी
पहले शराब ज़ीस्त थी अब ज़ीस्त है शराब
कोई पिला रहा है पिए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं
ज़हर दे दे अगर शराब नहीं
दाग़ देहलवी
विषय तिश्नगी
ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला
अब्दुल हमीद अदम
विषय शराब
ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में
मिर्ज़ा ग़ालिब
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ऐ मोहतसिब न फेंक मिरे मोहतसिब न फेंक
ज़ालिम शराब है अरे ज़ालिम शराब है
जिगर मुरादाबादी
विषय शराब
दोस्त / दोस्ती पर 20 मशहूर शेर
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
अहमद फ़राज़
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
अहमद फ़राज़
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
नासिर काज़मी
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
नासिर काज़मी
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
साहिर लुधियानवी
विषय उदासी
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
अब्दुल हमीद अदम
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
ख़ुमार बाराबंकवी
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ
वसीम बरेलवी
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
हफ़ीज़ होशियारपुरी
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी
मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए
तू दोस्त है तो नसीहत न कर ख़ुदा के लिए
शाज़ तमकनत
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं
बशीर बद्र
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
हफ़ीज़ बनारसी
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
दोस्त की दोस्त मान लेते हैं
दाग़ देहलवी
ज़िंदगी के उदास लम्हों में
बेवफ़ा दोस्त याद आते हैं
अज्ञात
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
इज़हार-ए-इश्क़ उस से न करना था 'शेफ़्ता'
ये क्या किया कि दोस्त को दुश्मन बना दिया
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
विषय इज़हार
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया
हरी चंद अख़्तर
आदमी और इंसान पर 20 मशहूर शेर
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
निदा फ़ाज़ली
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
बशीर बद्र
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
गुलज़ार
विषय वक़्त
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इंसाँ होना
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय इंसान
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए
ज़फ़र इक़बाल
विषय सच
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
बशीर बद्र
मीर' साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो
आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ
मीर तक़ी मीर
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं
मीर तक़ी मीर
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का
जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा
बहादुर शाह ज़फ़र
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना
आसिम वास्ती
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी
बंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं
सबा अकबराबादी
विषय आदमी
ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम
अज्ञात
सब से पुर-अम्न वाक़िआ ये है
आदमी आदमी को भूल गया
जौन एलिया
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे
आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद
बेख़ुद देहलवी
विषय आदमी
जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में
अल्ताफ़ हुसैन हाली
हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब
ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
शहज़ाद अहमद
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
जिसे नफ़रत है उस के आदमी से
नरेश कुमार शाद
आदमी बुलबुला है पानी का
क्या भरोसा है ज़िंदगानी का
मौलवी अब्दुर रज़ा रज़ा
दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा कि एक दिन
इंसान की तलाश में इंसान जाएगा
फ़ना निज़ामी कानपुरी
दीदार पर शेर शायरी Didaar Deedar Par Sher Shayari
देखने के लिए सारा आलम भी कम
चाहने के लिए एक चेहरा बहुत
असअ'द बदायुनी
भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं
लाला माधव राम जौहर
अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात
जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए
ज़फ़र इक़बाल
विषय दीदार
मेरी आँखें और दीदार आप का
या क़यामत आ गई या ख़्वाब है
आसी ग़ाज़ीपुरी
विषय दीदार
जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती
अनवर शऊर
विषय दीदार
देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से
तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से
जुनैद हज़ीं लारी
विषय दीदार
तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना
मिरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना
ज़ुबैर रिज़वी
विषय दीदार
ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई
हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई
अल्लामा इक़बाल
सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी
मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर
दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग
आज़ाद अंसारी
आशिक़ को देखते हैं दुपट्टे को तान कर
देते हैं हम को शर्बत-ए-दीदार छान कर
मीर अनीस
कैसी अजीब शर्त है दीदार के लिए
आँखें जो बंद हों तो वो जल्वा दिखाई दे
कृष्ण बिहारी नूर
अब और देर न कर हश्र बरपा करने में
मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
विषय दीदार
तिरा दीदार हो हसरत बहुत है
चलो कि नींद भी आने लगी है
साजिद प्रेमी
विषय दीदार
मिरा जी तो आँखों में आया ये सुनते
कि दीदार भी एक दिन आम होगा
मीर तक़ी मीर
विषय दीदार
फिर किसी के सामने चश्म-ए-तमन्ना झुक गई
शौक़ की शोख़ी में रंग-ए-एहतराम आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
मुझे को महरूमी-ए-नज़ारा क़ुबूल
आप जल्वे न अपने आम करें
ख़ुमार बाराबंकवी
कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस
हम ने दीदार की गदाई की
मीर तक़ी मीर
विषय दीदार
फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे
नक़ाब उठाओ कि कुछ दिन ज़रा बहार रहे
अख़्तर अली अख़्तर
तिरा दीदार हो आँखें किसी भी सम्त देखें
सो हर चेहरे में अब तेरी शबाहत चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
विसाल पर शेर शायरी Visaal Par Sher Shayari
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
दाग़ देहलवी
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए
अमीर मीनाई
बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं
कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
विषय बदन
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
फ़िराक़ गोरखपुरी
वस्ल में रंग उड़ गया मेरा
क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा
मीर तक़ी मीर
गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने
शहज़ाद अहमद
वो गले से लिपट के सोते हैं
आज-कल गर्मियाँ हैं जाड़ों में
मुज़्तर ख़ैराबादी
विसाल-ए-यार की ख़्वाहिश में अक्सर
चराग़-ए-शाम से पहले जला हूँ
आलमताब तिश्ना
विषय विसाल
इक रात दिल-जलों को ये ऐश-विसाल दे
फिर चाहे आसमान जहन्नम में डाल दे
जलाल लखनवी
विषय विसाल
वो मिरी रूह की उलझन का सबब जानता है
जिस्म की प्यास बुझाने पे भी राज़ी निकला
साक़ी फ़ारुक़ी
वस्ल होता है जिन को दुनिया में
यारब ऐसे भी लोग होते हैं
मीर हसन
मिलने की ये कौन घड़ी थी
बाहर हिज्र की रात खड़ी थी
अहमद मुश्ताक़
जब ज़िक्र किया मैं ने कभी वस्ल का उन से
वो कहने लगे पाक मोहब्बत है बड़ी चीज़
नूह नारवी
विषय विसाल
उस की क़ुर्बत का नशा क्या चीज़ है
हाथ फिर जलते तवे पर रख दिया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
विषय विसाल
सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथ
मेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ
अज्ञात
विषय तस्वीर
वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे
जिस्म ओ जाँ सब उस के हवाले कर रक्खे थे
हैदर क़ुरैशी
विषय विसाल
बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो
और उस विसाल के लम्हे को दाइमी किया जाए
हम्माद नियाज़ी
मैं अपने जिस्म की सरगोशियों को सुनता हूँ
तिरे विसाल की साअ'त निकलती जाती है
शहरयार
विषय विसाल
होंठ पर शेर शायरी Honth Par Sher Shayari
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
मीर तक़ी मीर
शौक़ है इस दिल-ए-दरिंदा को
आप के होंट काट खाने का
जौन एलिया
विषय लब
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
अहमद फ़राज़
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय लब
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
अनवर शऊर
एक बोसे के भी नसीब न हों
होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों
फ़रहत एहसास
एक दम उस के होंट चूम लिए
ये मुझे बैठे बैठे क्या सूझी
नासिर काज़मी
विषय लब
मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किया
जुरअत क़लंदर बख़्श
विषय किस
एक बोसा होंट पर फैला तबस्सुम बन गया
जो हरारत थी मिरी उस के बदन में आ गई
काविश बद्री
विषय किस
ख़ुदा को मान कि तुझ लब के चूमने के सिवा
कोई इलाज नहीं आज की उदासी का
ज़फ़र इक़बाल
विषय लब
मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट
नज़र आते हैं मुस्कुराए हुए
अनवर शऊर
विषय लब
तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की
हमारी आँख के हिस्से में झरने आए हैं
आग़ा निसार
विषय लब
उन लबों ने न की मसीहाई
हम ने सौ सौ तरह से मर देखा
ख़्वाजा मीर दर्द
विषय लब
आता है जी में साक़ी-ए-मह-वश पे बार बार
लब चूम लूँ तिरा लब-ए-पैमाना छोड़ कर
जलील मानिकपूरी
लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
दूर से यूँ दिया मुझे बोसा
होंट की होंट को ख़बर न हुई
अहमद हुसैन माइल
जिस लब के ग़ैर बोसे लें उस लब से 'शेफ़्ता'
कम्बख़्त गालियाँ भी नहीं मेरे वास्ते
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
विषय किस
हज़ार बार निगाहों से चूम कर देखा
लबों पे उस के वो पहली सी अब मिठास नहीं
असलम आज़ाद
रू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख़ होंट
एक दो पल के लिए गुल-दान कर देगा मुझे
ज़फ़र इक़बाल
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
ज़बाँ उस बद-ज़बाँ की मुँह में और मैं ज़बाँ होता
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ज़ुल्फ़ पर शेर शायरी Julf Par Sher Shayari
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
आरज़ू लखनवी
हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए
उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
मीर तक़ी मीर
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
विषय ज़ुल्फ़
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी
आरज़ू लखनवी
अपने सर इक बला तो लेनी थी
मैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है
जौन एलिया
विषय ज़ुल्फ़
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय ज़ुल्फ़
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
असरार-उल-हक़ मजाज़
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में
फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
रज़ा अज़ीमाबादी
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
विषय ज़ुल्फ़
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी
अब्दुल हमीद अदम
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
बशीर बद्र
ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा
असग़र गोंडवी
विषय ज़ुल्फ़
सुब्ह-दम ज़ुल्फ़ें न यूँ बिखराइए
लोग धोका खा रहे हैं शाम का
शरर बलयवी
विषय ज़ुल्फ़
सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाह
तेरे धोके में किसी और के शाने लग जाएँ
फ़रहत एहसास
विषय ज़ुल्फ़
बाल अपने उस परी-रू ने सँवारे रात भर
साँप लोटे सैकड़ों दिल पर हमारे रात भर
लाला माधव राम जौहर
विषय ज़ुल्फ़
ज़रा उन की शोख़ी तो देखना लिए ज़ुल्फ़-ए-ख़म-शुदा हाथ में
मेरे पास आए दबे दबे मुझे साँप कह के डरा दिया
नवाब सुल्तान जहाँ बेगम
किसी के हो रहो अच्छी नहीं ये आज़ादी
किसी की ज़ुल्फ़ से लाज़िम है सिलसिला दिल का
यगाना चंगेज़ी
विषय ज़ुल्फ़
गई थी कह के मैं लाती हूँ ज़ुल्फ़-ए-यार की बू
फिरी तो बाद-ए-सबा का दिमाग़ भी न मिला
जलाल लखनवी
विषय ज़ुल्फ़
बिखरी हुई हो ज़ुल्फ़ भी इस चश्म-ए-मस्त पर
हल्का सा अब्र भी सर-ए-मय-ख़ाना चाहिए
अज्ञात
गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं
चलिए अब दोनों वक़्त मिलते हैं
मिर्ज़ा शौक़ लखनवी
मुस्कुराहट पर 20 लोकप्रिय शेर
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है
आनिस मुईन
विषय मुस्कुराहट
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
गोपाल मित्तल
तुम हँसो तो दिन निकले चुप रहो तो रातें हैं
किस का ग़म कहाँ का ग़म सब फ़ुज़ूल बातें हैं
अज्ञात
विषय मुस्कुराहट
मुस्कुराहट है हुस्न का ज़ेवर
मुस्कुराना न भूल जाया करो
अब्दुल हमीद अदम
विषय मुस्कुराहट
ज़रा इक तबस्सुम की तकलीफ़ करना
कि गुलज़ार में फूल मुरझा रहे हैं
अब्दुल हमीद अदम
हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह
चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह
मीना कुमारी नाज़
दिल में तूफ़ान हो गया बरपा
तुम ने जब मुस्कुरा के देख लिया
अज्ञात
धूप निकली है बारिशों के ब'अद
वो अभी रो के मुस्कुराए हैं
अंजुम लुधियानवी
विषय मुस्कुराहट
एक बोसा होंट पर फैला तबस्सुम बन गया
जो हरारत थी मिरी उस के बदन में आ गई
काविश बद्री
विषय किस
बुझ गई शम्अ की लौ तेरे दुपट्टे से तो क्या
अपनी मुस्कान से महफ़िल को मुनव्वर कर दे
सदा अम्बालवी
विषय मुस्कुराहट
देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है
सुदर्शन फ़ाकिर
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं
रियाज़ ख़ैराबादी
यूँ मुस्कुराए जान सी कलियों में पड़ गई
यूँ लब-कुशा हुए कि गुलिस्ताँ बना दिया
असग़र गोंडवी
विषय मुस्कुराहट
हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम्हारी अंजुमन का पूछना क्या
मुबारक अज़ीमाबादी
उस की हँसी तुम क्या समझो
वो जो पहरों रोया है
शौकत परदेसी
मेरे होंटों पे मुस्कुराहट है
गरचे सीने में दाग़ रखता हूँ
शब्बीर नाक़िद
विषय मुस्कुराहट
जैसे पौ फट रही हो जंगल में
यूँ कोई मुस्कुराए जाता है
अहमद मुश्ताक़
विषय मुस्कुराहट
मुस्कुराने का यही अंदाज़ था
जब कली चटकी तो वो याद आ गया
अज्ञात
विषय मुस्कुराहट
जीने मरने का एक ही सामान
उस की मुस्कान हो गई होगी
हबीब कैफ़ी
विषय मुस्कुराहट
तुझे हम दोपहर की धूप में देखेंगे ऐ ग़ुंचे
अभी शबनम के रोने पर हँसी मालूम होती है
शफ़ीक़ जौनपुरी
२० मशहूर दिल शायरी
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
विषय दिल
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
अहमद फ़राज़
विषय भरोसा
आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें
दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की
जलील मानिकपूरी
विषय दिल
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
जिगर मुरादाबादी
विषय दिल
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे
दाग़ देहलवी
विषय दिल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
मीर तक़ी मीर
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
हैदर अली आतिश
विषय दिल
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया
अज्ञात
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
मीर तक़ी मीर
शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ
दिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का
मीर तक़ी मीर
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
दिल नहीं वो दिल नहीं वो दिल नहीं
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़म वो मय-ख़ाना कमी जिस में नहीं
दिल वो पैमाना है भरता ही नहीं
अज्ञात
सीने में इक खटक सी है और बस
हम नहीं जानते कि क्या है दिल
ऐश देहलवी
विषय दिल
दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल
हाथ आ जाती है खो देने से दौलत दिल की
आसी ग़ाज़ीपुरी
विषय दिल
उदासी पर 20 मशहूर शेर
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
साहिर लुधियानवी
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
कृष्ण बिहारी नूर
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
साहिर लुधियानवी
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
बशीर बद्र
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
बशीर बद्र
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
शकील बदायूनी
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं
आसी उल्दनी
विषय एहसास
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
अख़्तर सईद ख़ान
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
परवीन शाकिर
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ
छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ
साग़र आज़मी
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
जावेद सबा
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती
वसीम बरेलवी
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है
नासिर काज़मी
रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर
ये सोच ले कि मैं भी तिरी ख़्वाहिशों में हूँ
अहमद फ़राज़
उस ने पूछा था क्या हाल है
और मैं सोचता रह गया
अजमल सिराज
विषय उदासी
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है
क़ैसर-उल जाफ़री
विषय उदासी
वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता
बिछड़ते वक़्त बताने की क्या ज़रूरत थी
शारिक़ कैफ़ी
२० मशहूर ज़िन्दगी शायरी
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
बशीर बद्र
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
जौन एलिया
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
बशीर बद्र
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ
कैफ़ भोपाली
विषय ज़िंदगी
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
साहिर लुधियानवी
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैं
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
विषय ज़िंदगी
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना
चकबस्त ब्रिज नारायण
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
असग़र गोंडवी
विषय प्रेरणादायक
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
फ़ानी बदायुनी
मैं सोचता हूँ बहुत ज़िंदगी के बारे में
ये ज़िंदगी भी मुझे सोच कर न रह जाए
अभिषेक शुक्ला
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
वर्ना सफ़र हयात का काफ़ी तवील था
अब्दुल हमीद अदम
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
पी गए कुछ और कुछ छलका गए
शाहिद कबीर
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए
मुईन अहसन जज़्बी
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
फ़ानी बदायुनी
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज़ आया
शाद अज़ीमाबादी
फूल पर 20 मशहूर शेर
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
परवीन शाकिर
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
मीर तक़ी मीर
फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं
काँटे बे-कार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं
वसीम बरेलवी
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
बिस्मिल सईदी
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँ
वो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
लोग काँटों से बच के चलते हैं
मैं ने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं
अज्ञात
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया
परवीन शाकिर
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ
शकील बदायूनी
काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें
अख़्तर शीरानी
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर
शकेब जलाली
फूल ही फूल याद आते हैं
आप जब जब भी मुस्कुराते हैं
साजिद प्रेमी
अगरचे फूल ये अपने लिए ख़रीदे हैं
कोई जो पूछे तो कह दूँगा उस ने भेजे हैं
इफ़्तिख़ार नसीम
फूल खिले हैं लिखा हुआ है तोड़ो मत
और मचल कर जी कहता है छोड़ो मत
अमीक़ हनफ़ी
ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो
मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी
नज़ीर अकबराबादी
तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की
हमारी आँख के हिस्से में झरने आए हैं
आग़ा निसार
विषय लब
इतना नाराज़ हो क्यूँ उस ने जो पत्थर फेंका
उस के हाथों से कभी फूल भी आया होगा
साग़र आज़मी
हमेशा हाथों में होते हैं फूल उन के लिए
किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं
अनवर शऊर
दिल अगर दिल है तो वाबस्ता-ए-ग़म भी होगा
निकहत-ए-गुल भी कहीं गुल से जुदा रहती है
अज्ञात
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
मगर जो काम यहाँ फूल से निकलता है
राना आमिर लियाक़त
आप छू देखें किसी ग़ुंचे को अपने हाथ से
ग़ुंचा गुल हो जाएगा और गुल चमन हो जाएगा
जलील मानिकपूरी
याद पर मशहूर 20 शेर
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
बशीर बद्र
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
नासिर काज़मी
क्या सितम है कि अब तिरी सूरत
ग़ौर करने पे याद आती है
जौन एलिया
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
हसरत मोहानी
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
बहादुर शाह ज़फ़र
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
ख़ुमार बाराबंकवी
विषय याद
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
जमाल एहसानी
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
मीर तक़ी मीर
विषय याद
याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
अख़्तर अंसारी
ज़रा सी बात सही तेरा याद आ जाना
ज़रा सी बात बहुत देर तक रुलाती थी
नासिर काज़मी
जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को
जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे
जोश मलसियानी
विषय याद
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से
महशर इनायती
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
दाग़ देहलवी
उठा लाया हूँ सारे ख़्वाब अपने
तिरी यादों के बोसीदा मकाँ से
रसा चुग़ताई
उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'
क्या करोगे वो अगर याद आया
फ़ानी बदायुनी
विषय याद
याद करना हर घड़ी तुझ यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का
वली मोहम्मद वली
वफ़ा पर शेर शायरी Wafa Par Sher Shayari
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवी
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
नुशूर वाहिदी
ढूँड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
अहमद फ़राज़
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया
हफ़ीज़ जालंधरी
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सका
कहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं
इबरत मछलीशहरी
जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूँ सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
मजरूह सुल्तानपुरी
वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था
कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है
मोहसिन नक़वी
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
हफ़ीज़ बनारसी
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
दाग़ देहलवी
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
बहज़ाद लखनवी
तिरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
न करें आप वफ़ा हम को क्या
बेवफ़ा आप ही कहलाइएगा
वज़ीर अली सबा लखनवी
विषय वफ़ा
तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की
किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से
हिमायत अली शाएर
बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत
वफ़ा पर इश्क़ की बुनियाद रखना चाहते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
किसी तरह जो न उस बुत ने ए'तिबार किया
मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया
दाग़ देहलवी
विषय वफ़ा
वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैं
तू आ रहा है मगर सच को मानता है तो आ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
सुना है वो भी मिरे क़त्ल में मुलव्विस है
वो बेवफ़ा है मगर इतना बेवफ़ा भी नहीं
नफ़स अम्बालवी
इस ज़िंदगी ने साथ किसी का नहीं दिया
किस बेवफ़ा से तुझ को तमन्ना वफ़ा की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
जफ़ा से उन्हों ने दिया दिल पे दाग़
मुकम्मल वफ़ा की सनद हो गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
स्वागत के लिए शेर शायरी Swaagat Par Sher Shayari
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
मिर्ज़ा ग़ालिब
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
वसीम बरेलवी
विषय स्वागत
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
जाँ निसार अख़्तर
उस ने वा'दा किया है आने का
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का
जोश मलीहाबादी
विषय स्वागत
देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
अंदलीब शादानी
आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत
कहिए जलती रहे या शम्अ बुझा दी जाए
सबा अकबराबादी
विषय स्वागत
हर गली अच्छी लगी हर एक घर अच्छा लगा
वो जो आया शहर में तो शहर भर अच्छा लगा
अज्ञात
विषय स्वागत
शुक्रिया तेरा तिरे आने से रौनक़ तो बढ़ी
वर्ना ये महफ़िल-ए-जज़्बात अधूरी रहती
अज्ञात
जिस बज़्म में साग़र हो न सहबा हो न ख़ुम हो
रिंदों को तसल्ली है कि उस बज़्म में तुम हो
अज्ञात
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
हर तरह की बे-सर-ओ-सामानियों के बावजूद
आज वो आया तो मुझ को अपना घर अच्छा लगा
अहमद फ़राज़
विषय स्वागत
ख़ुश-आमदीद वो आया हमारी चौखट पर
बहार जिस के क़दम का तवाफ़ करती है
अज्ञात
विषय स्वागत
इतने दिन के बाद तू आया है आज
सोचता हूँ किस तरह तुझ से मिलूँ
अतहर नफ़ीस
विषय स्वागत
बुझते हुए चराग़ फ़रोज़ाँ करेंगे हम
तुम आओगे तो जश्न-ए-चराग़ाँ करेंगे हम
वासिफ़ देहलवी
विषय स्वागत
ये इंतिज़ार की घड़ियाँ ये शब का सन्नाटा
इस एक शब में भरे हैं हज़ार साल के दिन
क़मर सिद्दीक़ी
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
रौनक़-ए-बज़्म तिरे बा'द नहीं है कोई
सरफ़राज़ ख़ालिद
विषय स्वागत
सुनता हूँ मैं कि आज वो तशरीफ़ लाएँगे
अल्लाह सच करे कहीं झूटी ख़बर न हो
लाला माधव राम जौहर
विषय स्वागत
तुम जो आए हो तो शक्ल-ए-दर-ओ-दीवार है और
कितनी रंगीन मिरी शाम हुई जाती है
निहाल सेवहारवी
विषय स्वागत
टॉप 20 सीरीज़
सफ़र पर २० मशहूर शेर
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
मजरूह सुल्तानपुरी
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
अहमद फ़राज़
आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है
मुनीर नियाज़ी
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
राही मासूम रज़ा
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा
साक़ी फ़ारुक़ी
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
निदा फ़ाज़ली
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
निदा फ़ाज़ली
सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैं
हर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं
आबिद अदीब
विषय सफ़र
मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर
सफ़र सफ़र है मिरा इंतिज़ार मत करना
साहिल सहरी नैनीताली
है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है
शहरयार
विषय सफ़र
सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहीं
न मुड़ के देखा कभी साहिलों को दरिया ने
फ़ारिग़ बुख़ारी
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
गहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम
रईस अमरोहवी
ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है
सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए
हसीब सोज़
सफ़र के साथ सफ़र के नए मसाइल थे
घरों का ज़िक्र तो रस्ते में छूट जाता था
वसीम बरेलवी
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
नज़र से गिरना भी गोया ख़बर में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला
सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया
इफ़्तिख़ार आरिफ़
सफ़र है शर्त मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे
हज़ार-हा शजर-ए-साया-दार राह में है
हैदर अली आतिश
विषय सफ़र
इन्तिज़ार पर 20 मशहूर शेर
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
फ़रहत एहसास
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
फ़िराक़ गोरखपुरी
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
कैफ़ भोपाली
हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे
आशुफ़्ता चंगेज़ी
विषय इंतिज़ार
कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़
कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी
हसरत जयपुरी
अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ए'तिबार मुझे
ख़ुमार बाराबंकवी
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
मुनीर नियाज़ी
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
मुनव्वर राना
विषय इंतिज़ार
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
अज्ञात
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है
साक़िब लखनवी
कमाल-ए-इश्क़ तो देखो वो आ गए लेकिन
वही है शौक़ वही इंतिज़ार बाक़ी है
जलील मानिकपूरी
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
इस को कहते हैं इंतिज़ार मियाँ
अफ़ज़ल ख़ान
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का
अमीर मीनाई
अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था
देखा निकल के घर से तो झोंका हवा का था
अहमद नदीम क़ासमी
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
तू सामने है और तिरा इंतिज़ार है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
विषय इंतिज़ार
इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी
वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं
नज़र हैदराबादी
विषय इंतिज़ार
ये और बात कि उन को यक़ीं नहीं आया
प कोई बात तो बरसों में हम ने की यारो
मुग़ल फ़ारूक़ परवाज़
हज़ार रंग-ब-दामाँ सही मगर दुनिया
बस एक सिलसिला-ए-एतिबार है, क्या है
निकहत बरेलवी
विषय रंग
मुलाक़ात पर 20 बेहतरीन शायरी Mulaakaat Par Sher Shayari
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
बशीर बद्र
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
अमीर मीनाई
विषय मुलाक़ात
कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
शकील बदायूनी
विषय मुलाक़ात
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई
शकील बदायूनी
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं
फ़ातिमा हसन
विषय मुलाक़ात
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है
हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है
लाला माधव राम जौहर
विषय मुलाक़ात
मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या
जौन एलिया
विषय मुलाक़ात
ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है
बात होती है मगर बात नहीं होती है
हफ़ीज़ जालंधरी
विषय मुलाक़ात
सुनते रहे हैं आप के औसाफ़ सब से हम
मिलने का आप से कभी मौक़ा नहीं मिला
नूह नारवी
विषय मुलाक़ात
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले
विपुल कुमार
विषय लव
आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम
जाँ निसार अख़्तर
विषय मुलाक़ात
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
तशरीफ़ लाइएगा मुलाक़ात के लिए
अनवर शऊर
विषय मुलाक़ात
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
कोई रो कर तो कोई बाल बना कर आया
अहमद मुश्ताक़
विषय मुलाक़ात
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
तब उस को पहली मुलाक़ात का ख़याल आया
शहज़ाद अहमद
बाज़ औक़ात किसी और के मिलने से 'अदम'
अपनी हस्ती से मुलाक़ात भी हो जाती है
अब्दुल हमीद अदम
अब मुलाक़ात हुई है तो मुलाक़ात रहे
न मुलाक़ात थी जब तक कि मुलाक़ात न थी
हैदर अली आतिश
विषय मुलाक़ात
ज़िंदगी के वो किसी मोड़ पे गाहे गाहे
मिल तो जाते हैं मुलाक़ात कहाँ होती है
अहमद राही
विषय मुलाक़ात
मिटे ये शुबह तो ए दोस्त तुझ से बात करें
हमारी पहली मुलाक़ात आख़िरी तो नहीं
कृष्ण बिहारी नूर
रोज़ आने पे नहीं निस्बत-ए-इश्क़ी मौक़ूफ़
उम्र भर एक मुलाक़ात चली जाती है
मीर तक़ी मीर
न मिलो खुल के तो चोरी की मुलाक़ात रहे
हम बुलाएँगे तुम्हें रात गए रात रहे
नूह नारवी
हुस्न पर शेर शायरी Husn Par Sher Shayari
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
इफ़्तिख़ार नसीम
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से
मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है
आदिल फ़ारूक़ी
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
जिगर मुरादाबादी
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
मीर तक़ी मीर
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
जिगर मुरादाबादी
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
अहमद फ़राज़
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
अकबर इलाहाबादी
विषय हुस्न
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं
क़तील शिफ़ाई
निगाह बर्क़ नहीं चेहरा आफ़्ताब नहीं
वो आदमी है मगर देखने की ताब नहीं
जलील मानिकपूरी
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
उधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
दाग़ देहलवी
विषय हुस्न
मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर
फिर भी तिरा शबाब तिरा ही शबाब है
जिगर मुरादाबादी
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
हसरत मोहानी
पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं
क़मर जलालवी
गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है
रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में
मीर तक़ी मीर
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा
बेख़ुद देहलवी
हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते
रईस फ़रोग़
बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़र
वो आईने में तो बस मुख़्तसर सा रहता है
फ़रहत एहसास
विषय हुस्न
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
आदिल मंसूरी
विषय हुस्न
तन्हाई पर शेर शायरी Tanhaayi Par Sher Shayari
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
ज़ेहरा निगाह
विषय तन्हाई
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
जावेद सबा
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
निदा फ़ाज़ली
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
अहमद मुश्ताक़
विषय तन्हाई
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई
अहमद नदीम क़ासमी
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की
फ़रहत एहसास
विषय तन्हाई
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
अज्ञात
शहर में किस से सुख़न रखिए किधर को चलिए
इतनी तन्हाई तो घर में भी है घर को चलिए
नसीर तुराबी
विषय तन्हाई
मैं अपने साथ रहता हूँ हमेशा
अकेला हूँ मगर तन्हा नहीं हूँ
अज्ञात
विषय तन्हाई
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता
अख़्तर शीरानी
विषय तन्हाई
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ
मुनीर नियाज़ी
तुम से मिले तो ख़ुद से ज़ियादा
तुम को अकेला पाया हम ने
इरफ़ान सिद्दीक़ी
विषय तन्हाई
वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो
महमूद अयाज़
विषय तन्हाई
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
अलीम मसरूर
जम्अ करती है मुझे रात बहुत मुश्किल से
सुब्ह को घर से निकलते ही बिखरने के लिए
जावेद शाहीन
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
शहरयार
विषय तन्हाई
इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई
जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या
अतहर नफ़ीस
विषय तन्हाई
दरवाज़े पर पहरा देने
तन्हाई का भूत खड़ा है
मोहम्मद अल्वी
विषय तन्हाई
किताब पर शेर शायरी Book Kitab Par Sher Shayari
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
निदा फ़ाज़ली
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
अल्लामा इक़बाल
विषय इल्म
इल्म की इब्तिदा है हंगामा
इल्म की इंतिहा है ख़ामोशी
फ़िरदौस गयावी
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं
ख़ुमार बाराबंकवी
विषय इल्म
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
बशीर बद्र
विषय किताब
यही जाना कि कुछ न जाना हाए
सो भी इक उम्र में हुआ मालूम
मीर तक़ी मीर
विषय इल्म
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को
नज़ीर बाक़री
क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरें हैं
एजाज़ तवक्कल
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं
अल्लामा इक़बाल
विषय किताब
आदमिय्यत और शय है इल्म है कुछ और शय
कितना तोते को पढ़ाया पर वो हैवाँ ही रहा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
कुछ और सबक़ हम ने किताबों में पढ़े थे
हस्तीमल हस्ती
विषय किताब
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
जिगर मुरादाबादी
रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआ
पढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में
शकेब जलाली
इब्तिदा ये थी कि मैं था और दा'वा इल्म का
इंतिहा ये है कि इस दा'वे पे शरमाया बहुत
जगन्नाथ आज़ाद
विषय इल्म
चेहरा खुली किताब है उनवान जो भी दो
जिस रुख़ से भी पढ़ोगे मुझे जान जाओगे
अज्ञात
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मिरे क़बीले में ता'लीम का रिवाज न था
मिरे बुज़ुर्ग मगर तख़्तियाँ बनाते थे
लियाक़त जाफ़री
विषय इल्म
किताब खोल के देखूँ तो आँख रोती है
वरक़ वरक़ तिरा चेहरा दिखाई देता है
अहमद अक़ील रूबी
दुनिया पर २० मशहूर शेर
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
बशीर बद्र
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
निदा फ़ाज़ली
नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम
जौन एलिया
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है
शहाब जाफ़री
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
साहिर लुधियानवी
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल
हबीब जालिब
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
असरार-उल-हक़ मजाज़
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
अब्दुल हमीद अदम
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
विषय दुनिया
हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत
फिर भी ऐ दोस्त तिरी एक नज़र से कम है
इदरीस बाबर
रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली
इफ़्तिख़ार आरिफ़
गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा
असअ'द बदायुनी
दुनिया बहुत ख़राब है जा-ए-गुज़र नहीं
बिस्तर उठाओ रहने के क़ाबिल ये घर नहीं
लाला माधव राम जौहर
विषय दुनिया
दुनिया मिरे पड़ोस में आबाद है मगर
मेरी दुआ-सलाम नहीं उस ज़लील से
अहमद जावेद
विषय दुनिया
दुनिया बस इस से और ज़ियादा नहीं है कुछ
कुछ रोज़ हैं गुज़ारने और कुछ गुज़र गए
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
विषय दुनिया
दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत
समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है
जमाल एहसानी
कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत
कौन कहता है कि ये सब कुछ फ़ना हो जाएगा
अहमद मुश्ताक़
दुनिया तो है दुनिया कि वो दुश्मन है सदा की
सौ बार तिरे इश्क़ में हम ख़ुद से लड़े हैं
जलील ’आली’
विषय दुनिया
विदाई पर शेर शायरी Vidaayi Vidayi Par Sher Shayari
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
मीर तक़ी मीर
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा
उबैदुल्लाह अलीम
विषय विदाई
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
निदा फ़ाज़ली
जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है
जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना
जलील मानिकपूरी
छोड़ने मैं नहीं जाता उसे दरवाज़े तक
लौट आता हूँ कि अब कौन उसे जाता देखे
शहज़ाद अहमद
विषय विदाई
अजीब होते हैं आदाब-ए-रुख़स्त-ए-महफ़िल
कि वो भी उठ के गया जिस का घर न था कोई
सहर अंसारी
विषय विदाई
याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल
नासिर काज़मी
तुम सुनो या न सुनो हाथ बढ़ाओ न बढ़ाओ
डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें
इरफ़ान सिद्दीक़ी
विषय विदाई
ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं
बशीर बद्र
विषय विदाई
उस से मिलने की ख़ुशी ब'अद में दुख देती है
जश्न के ब'अद का सन्नाटा बहुत खलता है
मुईन शादाब
गूँजते रहते हैं अल्फ़ाज़ मिरे कानों में
तू तो आराम से कह देता है अल्लाह-हाफ़िज़
अज्ञात
विषय विदाई
जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई
तुम चले हो तो कोई रोकने वाला भी नहीं
असलम अंसारी
विषय विदाई
कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर
कहा जब अलविदा उस ने पलट कर
पवन कुमार
विषय विदाई
मैं जानता हूँ मिरे बा'द ख़ूब रोएगा
रवाना कर तो रहा है वो हँसते हँसते मुझे
अमीन शैख़
विषय विदाई
तुम इसी मोड़ पर हमें मिलना
लौट कर हम ज़रूर आएँगे
नज़र एटवी
विषय विदाई
दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम
अहमद मुश्ताक़
विषय विदाई
अब के जाते हुए इस तरह किया उस ने सलाम
डूबने वाला कोई हाथ उठाए जैसे
अज्ञात
विषय विदाई
एक दिन कहना ही था इक दूसरे को अलविदा'अ
आख़िरश 'सालिम' जुदा इक बार तो होना ही था
सलीम शुजाअ अंसारी
विषय विदाई
वो अलविदा'अ का मंज़र वो भीगती पलकें
पस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है
शकेब जलाली
विषय विदाई
घर में रहा था कौन कि रुख़्सत करे हमें
चौखट को अलविदा'अ कहा और चल पड़े
मख़मूर सईदी
इश्क़ पर शेर शायरी Ishq Par Sher Shayari
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
मिर्ज़ा ग़ालिब
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
अल्लामा इक़बाल
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
अकबर इलाहाबादी
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
मीर तक़ी मीर
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
मिर्ज़ा ग़ालिब
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
मीर तक़ी मीर
मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा
उस को छुट्टी न मिले जिस को सबक़ याद रहे
मीर ताहिर अली रिज़वी
इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
मीर तक़ी मीर
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता
जिगर मुरादाबादी
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाह
कच्चे धागे से चले आएँगे सरकार बंधे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
ये ज़िंदगी भर का रत-जगा है
अहमद नदीम क़ासमी
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो
सुदर्शन फ़ाकिर
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे
वली मोहम्मद वली
सख़्त काफ़िर था जिन ने पहले 'मीर'
मज़हब-ए-इश्क़ इख़्तियार किया
मीर तक़ी मीर
इश्क़ में भी कोई अंजाम हुआ करता है
इश्क़ में याद है आग़ाज़ ही आग़ाज़ मुझे
ज़िया जालंधरी
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया
जिस को ख़ाना-ख़राब होना था
जिगर मुरादाबादी
धोखा पर शेर
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
अब्दुल हमीद अदम
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता
सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं
अख़्तर नज़्मी
विषय धोखा
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं
अफ़ज़ल ख़ान
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ
ज़ेब ग़ौरी
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते
साक़ी फ़ारुक़ी
विषय धोखा
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब
ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे
इक़बाल अज़ीम
धोका था निगाहों का मगर ख़ूब था धोका
मुझ को तिरी नज़रों में मोहब्बत नज़र आई
शौकत थानवी
अहबाब को दे रहा हूँ धोका
चेहरे पे ख़ुशी सजा रहा हूँ
क़तील शिफ़ाई
इक बरस भी अभी नहीं गुज़रा
कितनी जल्दी बदल गए चेहरे
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
विषय धोखा
यार मैं इतना भूका हूँ
धोका भी खा लेता हूँ
अक्स समस्तीपुरी
विषय धोखा
ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले
मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ
अतहर नफ़ीस
हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए
जाँ निसार अख़्तर
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
किस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है
नजीब अहमद
विषय धोखा
ऐसे मिला है हम से शनासा कभी न था
वो यूँ बदल ही जाएगा सोचा कभी न था
ख़ुमार फ़ारूक़ी
विषय धोखा
उस को भी मेरी तरह अपनी वफ़ा पर था यक़ीं
वो भी शायद इसी धोके में मिला था मुझ को
भारत भूषण पन्त
विषय धूप
जो बात दिल में थी उस से नहीं कही हम ने
वफ़ा के नाम से वो भी फ़रेब खा जाता
अज़ीज़ हामिद मदनी
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
आप ने महफ़िल से उठवा कर कहाँ रक्खा मुझे
नातिक़ गुलावठी
प्रेरणादायक शेर शायरी Motivational Sher Shayari
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
अल्लामा इक़बाल
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
मजरूह सुल्तानपुरी
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
जिगर मुरादाबादी
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
अमीर मीनाई
कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर
निदा फ़ाज़ली
विषय प्रेरणादायक
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
अमीर क़ज़लबाश
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
विषय प्रेरणादायक
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो
मीर तक़ी मीर
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
असग़र गोंडवी
विषय प्रेरणादायक
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
जिगर मुरादाबादी
हयात ले के चलो काएनात ले के चलो
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो
मख़दूम मुहिउद्दीन
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
माहिर-उल क़ादरी
प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े
इक़बाल साजिद
विषय प्रेरणादायक
बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी
डूबने वाले तिरे हाथ से साहिल तो गया
अब्दुल हमीद अदम
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
मंज़ूर हाशमी
तू समझता है हवादिस हैं सताने के लिए
ये हुआ करते हैं ज़ाहिर आज़माने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
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