| शैल चतुर्वेदी | |
|---|---|
| जन्म | 29 जून 1936 अमरावती, महाराष्ट्र |
| मौत | 29 अक्टूबर 2007 (आयु 71) मलाड , मुंबई, भारत |
| पेशा | कवि, व्यंग्यकार, गीतकार, अभिनेता |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| विधा | हास्य |
| बच्चे | विशाल, विहान, विवेक |
| रिश्तेदार | आकाश चतुर्वेदी (भतीजा) कृष्णा चतुर्वेदी (नाती) |
देश जेब में / शैल चतुर्वेदी कविता
एक मित्र कहने लगे-
"जहाँ तक नज़र जाती है
एक सैंतीस बरस का
अपंग बच्चा नज़र आता है
जो अपने लुँज हाथों को
उठाने की कोशिश करता हुआ
चीख़ रहा है-
'मुझे दल-दल से निकालो
मैं प्रजातंत्र हूँ
मुझे बचा लो।
मैं तुम्हारा ईमान हूँ
गाँधी की तपस्या हूँ
भारत की पहचान हूँ।'
"काम वाले हाथों में
झंडा थमा देने वाले
वक़्त के सौदागर
बड़े ऊँचे खिलाड़ी हैं
जो अपना भूगोल ढाँकने के लिए
राजनीति लपेट लेते हैं
और रहा कॉमर्स, तो उसे
उनके भाई-भतीजे
और दामाद समेट लेते हैं।"
हमने कहा-
"नेताओं के अलावा
आपके पास कोई विषय नहीं है।"
वे बोले-"क्यों नहीं
बूढ़ा बाप है
बीमार माँ है
उदास बीबी है
भूखे बच्चे हैं
जवान बहिन है
बेकार भाई है
भ्रष्टाचार है
महंगाई है
बीस का ख़र्चा है
दस की कमाई है
इधर कुआँ है
उधर खाई है।"
हमने पूछा-"क्या उम्र है आपकी?"
वे बोले-"तीस की उम्र में
साठ के नज़र आ रहे हैं
बस यूँ समझिए
कि अपनी ही उम्र खा रहे हैं
हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे
क़ब्रिस्तान में जी रहे हैं
जबसे माँ का दूध छोड़ा है
आँसू पी रहे हैं।"
हमने कहा-"भगवान जाने
देश की जनता का क्या होगा?"
वे बोले-"जनता का देर्द ख़जाना है
आँसुओं का समन्दर है
जो भी उसे लूट ले
वही मुक़द्दर का सिकन्दर है।"
हमने पूछा-"देश का क्या होगा?"
वे बोले -"देश बरसो से चल रहा है
मगर जहाँ का तहाँ है
कल आपको ढूँढना पड़ेगा
कि देश कहाँ है
कोई कहेगा-ढूँढते रहिए
देश तो हमारी जेब में पड़ा है
देश क्या हमारी जेब से बड़ा है?"
देवानन्द से प्रेमनाथ / शैल चतुर्वेदी कविता
हमारे शारीरिक विकास
और गंजेपन को देखकर
लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं
मगर ये भूल जाते हैं
कि जवानी में हम भी
ख़ूबसूरती में कमाल थे
हमारे सर पर भी
लहराते हुए चमकीले बाल थे
कॉलेज की लड़कीयाँ कॉपी पर
हमारा चित्र बनाती थीं
और दो-चार तो ऐसी थीं
जो हमें देवानन्द कहकर बुलाती थीं
मगर भला हो इस गृहस्थी के चक्कर का
जिसने हमें बर्बाद कर दिया
देवानन्द से प्रेमनाथ कर दिया
एक बार हम रिक्शे में बैठ गए
ठिकाने पर पहुंच कए
पचास पैसे थमाए
तो रिक्शा चालक जी ऐंठ गए
"पचास पैसे थमाते शर्म नहीं आई
लीजिए आप ही सम्भालिए
और जल्दी से रुपया निकालिए
वो तो मैंने
अन्धेरे में हाँ कर दी थी
उजाले में होता
तो ठेले की सवारी
रिक्शे में नहीं ढोता।"
ट्रेन के सफर में
थ्री टायर में
एक महिला धड़धाड़ाती हुई आई
और हमें देख कर चिल्लाई-
"ये आदमियों का डिब्बा है
अगले स्टेशन पर ब्रेक में जाओ
अजी कंडक्टर साहब
इस सामान को यहाँ से हटाओ।"
राशन की लाईन में
आगे से धक्का आया
तो हमारे पीछे से आवाज़ आई-
"आदमियों की लाईन में
हाथी किसने खड़ा कर दिया भाई"
हमने लम्बी सांस ली
तो सामने वाली चिल्लाई-
"महिलाओं को धक्का मारते
शर्म नहीं आई"
हमको कहना पड़ा-
"क्या सांस भी नहीं ले माई"
एक बार सिनेमा हॉल में
एक महिला का पैर
हमारे पैर के नीचे आ गया
तो वो बोली -"अरे शेट्टी जी
थोड़ी देर पहले आप पर्दे पर थे
यहाँ कैसे"
उसके बाजू में बैठे अमिताभ बच्चन ने
हमारे मुँह पर
घूसा जड़ाते हुए कहा-"ऐसे
तबियत ना भरी हो तो
और लगाऊँ
भर गई हो तो एम्बुलेंस मंगवाऊ"
एक बार
कवि -सम्मेलन समाप्त होने के बाद
एक महिला हमारे पास आई
हाथ जोड़कर मुस्कराई
फिर बोली-"अपना फ़ोटो दीजिए न
घर ले जाऊँगी"
हमने पूछा-"फ़ोटो का क्या करोगी"
बोली-"बच्चो को डराऊँगी"
दर्ज़ी से कहा-"कमीज़ की बटन नहीं लगती"
वो बोला-"हमारी क्या ग़लती
दो मीटर में जैसी बनी
बना दी
कोई और टेलर होता
तो पाँच मीटर कपड़ा लेता
माफ़ करना जनाब
पेट का बढ़ना मर्दो को शोभा नहीं देता"
बस कंडक्टर
हमारे हाथ में टिकर थमाते हुए बोला-
"भगवान जाने क्या खाते हो
अकेले ही
दो की सीट घेर कर बैठ जाते हो
सिंगल टिकट में सफ़र करना है तो
काया को भी सिंगल करो
वर्ना दो सीट का किराया भरो"
लोगों की शादी
धूम-धड़ाके से होती है
मगर हमारी शादी में काहे की धूम
और काहे का धड़ाका
हमें देखते ही
चेहरा उतर गया दुल्हन की माँ का
दुल्हन ने जब घुंघट से झाँका
तो बेचारी की साँस उपर चढ़ गई
और सहेलियों के संभालते-संभालते
लम्बी पड़ गई
किसी ने कहा-"भगवान बेटी की रक्षा करे"
कोई बोला-"सब ईश्वर की मरज़ी है
कोई क्या करे"
एक बार हमने
जैसे ही लिफ़्ट में पैर घुसाया
तो लिफ़्ट मेन चिल्लाया-
"आगे मत बढ़िए
ऊपर जाना है तो
सीढ़ेयों से चढ़िए
आपका वज़न ज्यादा है
क्या लिफ़्ट तोड़ने का इरादा है"
हमने कहा-"यार
सातवें फ्लोर पर जाना है
कैसे चढ़ पाएँगे"
वो बोला-"दो-चार बार चढ़ेंगे-उतरेंगे
तो लिफ़्ट के लायक हो जाएंगे"
यहाँ तक तो ख़ैर है
कि लोगों को
हमारी काया से बैर है
लेकिन कुछ ऐसे भी हैं
जिन्हें हमारे गंजेपन से शिकायत है
भला वे ही क्या तीर मार रहे हैं
जिनके सर पर
बालो की बहुतायत है
पकड़ में आ जाएं तो
छुड़ाए नहीं छूटेंगे
ज़बरदस्ती छूड़ाओगे तो टूटेंगे
फिर तो हार मानोगे
या पड़ोसी से उधार मांगोगे?
क्या आप नहीं जानते
कि सत है सरस्वती का भंडार
ऐर कपाल प्रवेश-द्वार
चांद खुली ना हो
भरे रहें केश
तो सरस्वती कैसे करेगी प्रवेश?
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
लौह पुरूष वल्लभ भाई पटेल
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी
और युग पुरुष जवाहरलाल
इनके सर पर कहाँ थे बाल
गंजे थे
लेकिन भारत माता के बेटे थे
ऐसे-ऐसे काम कर गए
कि इतिहास में अपना नाम कर गए
इसीलिए
बाल वालों से मेरा कहना है
कि अगर उन्हे कुछ बनना है
तो सर का बोझ हटवा दें
अपनी चांद घुटवा दें।
अप्रेल फूल / शैल चतुर्वेदी कविता
एक दिन सकारे
घर पर हमारे
मच गया हंगामा
कहने लगी बच्चो की माँ-
"रखना याद
दस दिन बाद
यानी एक अप्रेल को
अपनी वर्षगांठ मनाऊँगी
मिठाई बाज़ार से आएगी
नमकीन घर में बनाऊँगी
और सुनो!
हमारे भैया को दे दो तार
वे चार दिन पहले आएँ
भाभी व अम्मा को साथ लाएँ
सुख-दुख में
अपने ही साथ न देंगे
तो घर गृहस्थी के काम कैसे चलेंगे
पप्पू की बुआ को
एक दिन पहले पत्र डालना
और लिखना-
"अकस्मात
कल रात
वर्षगांठ मनाने की बात
हो गई है
तुम न आ सकोगी
इस बात का दुख है
तुम्ही सोचो!
उनको बुलाकर भी क्या करोगे
इस दड़बे में
किस-किस को भरोगे
वे आएँगी
तो बच्चो को भी लाएँगी
और सुनो,
एडवांस की अर्ज़ी दे आना
लोगों का क्या है
कहते है-"दारू पीता है।
मगर लेडीज़ कपड़े तो गज़ब के सीता है
पचास बरस की बुढ़िया
दिखने लगती है गुड़िया
अब तक खूब बनी
आगे नहीं बनूंगी
साड़ी और ब्लउज़ नहीं पहनूंगी
युग बदल गया है
फैशन चल गया है
तंग सलवार हो
रंग व्हाईट हो
स्लीवलैस कुर्ता हो
नीचा और टाइट हो
चोटियो का रिवाज़ भी हो गया पुराना
आजकल है जूड़ो का ज़माना
बाज़ार में बिकते है
नक़ली भी असली दिखते है
एक तुम भी ले आना
तैयार ना मिले तो आर्डर दे आना
कपड़े बच्चो के लिए सिलेंगे
वर्ना पुराने कपड़ो में
अपने नहीं, पराए दिखेंगे।"
हम चुपचाप सुन रहे थे
चूल्हे में पड़े भुट्टो की तरह भुन रहे थे
तड़तड़ाकर बोले-"क्या कहती हो
इक उम्र में हरकत
अज़ब करती हो
अरे, वर्षगांठ मनानी है
तो बच्चो की मनाओ
अपने आप का तमाशा न बनाओ
लोग मज़ाक उड़ाएंगे
तुम्हारा क्या बिगड़ेगा
मुझे चिढ़ाएंगे
मुझे ज्ञात है
सन छयालीस की बात है
तुम जन्मी थीं मार्च में
तुम्हारे बाप थे जेल में
और तुम वर्षगांठ मना रही हो अप्रेल में
फिर तंग कपड़ो में, उम्र
बच्ची नहीं हो जाती
नख़रे दिखाने से बुढ़िया
बच्ची नहीं हो जाती।"
वे बन्दूक से निकली गोली की तरह
छूटीं
वियतनाम पर
अमरीकी बम-सी फूटीं-
"तुम भी कोई आदमी हो
मेरा मज़ाक़ उड़ाते हो
अपनी ही औरत को
बुढ़िया बुलाते हो
अरे, औरो को देखो
शादी के बाद
डालकर हाथो में हाथ
मज़े से घूमती हैं
सड़को पर
बागों में
साइकल पर
तांगों में
मगर यहाँ
ऐसे भाग्य कहाँ
पड़ौस के गुप्ता जी के बच्चे हैं
मगर तुमसे अच्छे हैं
मज़ाल है जो कह दें
औरत से आधी बात
पलको पर बिठाये रहते हैं
दिन-रात
और एक तुम हो
जब देखो
मेरे मैके वालो की पगड़ी उछालते हो
सारी दुनिया में
तुम्हीं तो साख वाले हो
बड़ी नाक वाले हो
बाकी सब तो नकटे हैं
जब हमारे बाप जेल में थे
तो तुम वहीं थे न
जेलर तुम्ही थे न
नब्ज़ पहचानती हूँ
अच्छे, अच्छों की
खूब चुप रही, अब बताऊँगी
देखती हूँ कौन रोकता है
वर्षगांठ अप्रेल में
मनाऊँगी, मनाऊँगी
ज़रूर-ज़रूर मनाऊँगी।
हम तुरुप से कटे नहले की तरह
खड़े-खड़े कांप रहे थे
अपना पौरुष नाप रहे थे
अपनी शक्ती जान गए
वर्षगांठ मनाने की बात
चुपचाप मान गए
तार दे दिया पूना
सलहज, सास और साले
जान-पहचान वाले
लगा गए चूना
पांच सौ का माल उड़ा गए
हाथी चवन्नी का
दस पैसे का सुग्गा
अठन्नी का डमरू
पांच पैसे का फुग्गा
तोहफ़े में पकड़ा गए
उम्मीद थी अंगूठी की
अंगूठा दिखा गए
हमारी उनका पारा ही चढ़ा गए
बोलीं-"भुक्खड़ हैं भुक्खड़
चने बेचते हैं
चने
ज़रा-सा मुंह छुआ
और दौड़ पड़े खाने
अरे, आदमी हो
तो एटीकेट जानें
अब हम भी उखड़ गए
आख़िर आदमी हैं
बिगड़ हए-
"कार्ड पप्पू ने छपवए थे
तुमने बंट्वाए थे।"
तभी मुन्ना हमारे हाथ का फ़ुग्गा ले गया
निमंत्रण-पत्र हाथों में दे गया
पढ़ते ही कार्ड
समझ में आ गई सारी बात
छपना चहिए था-"जन्म-दिवस है देवी का।"
मगर छप गया था-"बेबी का।"
दूसरे कमरे में
श्रीमती जी
पप्पू को पीट रहीं थीं
बेतहशा चीख़ रहीं थीं-
"स्कूल जाता है, स्कूल।"
बच्चे चिल्ला रहें थे-
"अप्रेल फूल, अप्रेल फूल।"
और चुन्नू डमरू बजाकर
मुन्नी को नचा रहा था
वर्षगांठ के लड्डू पचा रहा था।
मजनूं का बाप / शैल चतुर्वेदी कविता
आज से बीस साल पहले
हमें
एक ज्योतिषी ने बतलाया था-
"चालीस पार करते ही
तुम पर इश्क़ का
भूत सवार होगा
और एक ख़ूबसूरत कन्या से
तुम्हारा प्यार होगा
इक्तालीस में
क़दम रखते ही
ज्योतिषी का कथन
रंग लाया
और हमने अपना विचार
जब एक दोस्त को बतलाया
तो वो हंसा
फिर हम पर व्यंग्य कसा-
"इस उम्र में इश्क़ फ़रमाओगे
सारा विचार धरा रह जाएगा
हाँ जूते खाओगे।"
हमने पूछा-
"इश्क़ का जूते से क्या सम्बन्ध है?"
वो बोला-"हर मजनूं की किस्मत
लैला की जूती में बन्द है।"
हमने कहा-"आप तो यों कह रहे हैं
मानो इस मामले में
बड़ा दखल रखते हैं।"
वो बोला-"दखल ही नहीं
हम तो जूते खाने का भी बल रखते हैं
लैला तो लैला
हमने लैला के बाप तक के खाए हैं
और निन्यान्वे तक तो
यों मुस्कुराए हैं
जैसे कोई बात नहीं
फिर जूता टूट जाने पर
मारने वाले से पूछा है
पिताजी!
क्या आपके पास लात नहीं?
सच पूछो शैल भाई
तो इस मामले में
हमारे सर के बालों ने
बड़ा काम किया है
तुम्हारे सर पर तो हैं ही नहीं
जूता पड़ते ही, बोलने लगेगा
दूसरा ब्रम्हरंध्र खोलने लगेगा
तीसरे में समाधी ले लोगे
और चौथे में
बड़े भैया, बराबर हो लोगे
पहली बार
पहला जूता
हमारे सर पर पड़ते ही
हमारी आँखो के सामने
तारे नाचने लगे थे
और दूसरे में तो हम
रामायण बांचने लगे थे
तुम्हारे मुंह से तो
राम का नाम भी नहीं निकलेगा
और "राम नाम सत्य" भी
कोई दूसरा ही बोलेगा
फिर मौका पड़ने पर
न तो तुम भाग सकते हो
न कोई
दीवार लांघ सकते हो
छिपने पर भी
नहीं छिपोगे
भीड़ में भी घुस जाओगे
तो अलग दिखोगे
सच पूछो शैल चतुर्वेदी
तो तुम्हारी बॉडी का कंस्ट्रक्शन
इश्क़बाजी के ख़िलाफ़ है
लैला यह समझेगी
की मजनूं नहीं
मजनूं का बाप है
फिर ज़्यादा गड़बड़ करोगे
तो बन्द हो जाओगे
पिट-पिट कर
नई कविता के छन्द हो जाओगे।"
हमने पूछा-"ये नई कविता के छन्द
क्या बला है?"
वो बोला-"बेवक़ूफ़ बनाने की कला है
नई कविता का सूरज
ख़ून की कै करता है
चन्द्रमा मवाद फेंकता है
किरण को टी.बी. हो जाती है
दिन दहाड़ता है
रात रंभाती है
तम तमतमाता है
उल्लू गाता है
कोयल किटकिटाती है
मैना मुस्कुराती है
और नई कविता के बारे में
इतना ही जानता हूँ
ज़्यादा जानना चाहते हो
तो किताब खरीद लाओ
पढ़-पढ़ कर सिर पीटना
रातों को
पागलों की तरह चीखना
वैसे आज कल की मुहब्बत भी
तुम्हे इसके सिवाय क्या देगी
क्योंकी आज कल की नई छोकरी भी
नई कविता से क्या कम है
मरघट में बैठकर गाती है
"ये प्यार का मौसम है"
जीते जी
मरघट जाना चाहते हो
तो एस्ज्क़ फरमाओ
वर्ना घर जाकर
चुपचाप
भाभी जी के पैर दबाओ
जूते खाने से
पैर दबाना अच्छा
और मजनूं का बाप कहलाने से
ज़ोरू का ग़ुलाम कहलाना अच्छा।"
कार / सरकार / शैल चतुर्वेदी कविता
नए-नए मंत्री ने
अपने ड्राईवर से कहा-
"आज कार हम चलायेंगे।"
ड्राईवर बोला-
"हम उतर जायेंगे
हुज़ूर! चलाकर तो देखिये
आपकी आत्मा हिल जायेगी
ये कार है सरकार नहीं, जो
भगवान भरोसे चल जायेगी।"
माँ पर गया है / शैल चतुर्वेदी
"बोल बेटा बोल
क्या खाएगा?
चॉकलेट?
नहीं!
आमलेट!
नहीं!
सेव-पपड़ी खाएगा?
नहीं!
जानता हूँ
माँ पर गया है न
मेरी खोपड़ी खाएगा?"
वाक़ई गधे हो / शैल चतुर्वेदी कविता
एक गधा
दूसरे गधे से मिला
तो बोला- "कहो यार कैसे हो?"
दूसरा बोला- "तुम वाकई गधे हो
एक साल होने को आया
एक ही जगह बंधे हो
डाक्टरों ने दल बदले
मगर तुमने
खूंटा तक नहीं बदला।"
तभी बोल उठा पहला-
"सामने वाले बंगले में
दो नेता रहते हैं
रोज़ आपस में लड़ते हैं
एक कहता है तुमसे गधा अच्छा
दूसरा कहता है गधे का बच्चा
और मैं यह जानना चाहता हूँ
कि वो कौन-सा नेता नेता है जो मेरा बेटा है।
दफ़्तरीय कविताएं / शैल चतुर्वेदी कविता
बड़ा बाबू?
पट जाये तो ठीक
वर्ना बेकाबू।
बड़े बाबू का
छोटे बाबू से
इस बात को लेकर
हो गया झगड़ा
कि छोटे ने
बड़े की अपेक्षा
साहब को
ज़्यादा मक्खन क्यों रगड़ा।
इंस्पेक्शन के समय
मुफ़्त की मुर्ग़ी ने
दिखाया वो कमाल
कि मुर्गी के साथ-साथ
बड़े साहब भी तो गये हलाल।
कलेक्टर रोल दिखाने के लिये
बड़े साहब को देकर
अपना क़ीमती पैन
जब छोटे साहब ने
जेब मे पैन ठूँसते हुये कहा-
"तुम इतना भी नहीं समझता मैन!"
रिटायर होने के बाद
जब उन्होंने
अपनी ईमानदारी की कमाई
का हिसाब जोड़ा
तो बेलेंस में निकला
कैंसर का फोड़ा।
कवि सम्मेलन, टुकड़े-टुकड़े हूटिंग / शैल चतुर्वेदी कविता
एक कवि सम्मेलन में
ऐसे श्रोता मिल गए
जिनकी कृपा से
कवियों के कलेजे हिल गए
एक अधेड़ कवि ने जैसे ही गाया-
" उनका चेहरा गुलाब क्या कहिए।"
सामने से आवाज़ आई-
" लेके आए जुलाब क्या कहिए।"
और कवि जी
जुलाब का नाम सुनते ही
अपना पेट पकड़कर बैठ गए
दूसरे कवि ने माइक पर आते ही
भूमिका बनाई-
"न तो कवि हूँ
न कविता बनाता हूँ।"
आवाज़ आई-
"तो क्या बेवक़ूफ़ बनाता है भाई।"
कवि को पसीना आ गया
और वह घबराहट में
किसी और का गीत गा गया-
"जब-जब घिरे बदरिया कारी
नैनन नीर झरे।"
आवाज़ आई-"तुम भी कहाँ जाकर मरे
यह कविता तो
लखनऊ वाली कवयित्री की है।"
कवि बोला-"हमने ही उसे दी है।"
आवाज़ आई-"पहले तो पल्ला पकड़ते हो
और जब हाथ से निकल जाती है
तो हल्ला करते हो।"
संयोजक ने संचालक से कहा-
"कविता मत सुनवाओ
जिसके पास गला है
उसको बुलवाओ।"
गले वाला कवि मुस्कुराया
और जैसे ही उसने नमूना दिखाया-
चटक म्हारा चम्पा आई रे रूत थारी
कोई श्रोता चिल्लाया-
"किस लोक गीत से मारी।"
कवि बोला-"हमारी है हमारी
विश्वास ना हो तो संचालक से पूछ लो।"
संचालक बोला-"गाओ या मत गाओ
मैं झूठ नहीं बोलता
गवाही मुझसे मत दिलवाओ।"
संचालक ने दूसरे कवि से कहा-
"गोपालजी आप ही आइए
ये श्रोता रूपी कैरव
कविता को नंगा कर रहे हैं
लाज बचाइए।"
गोपालजी जैसे ही शुरू हुए-
"तू ही साक़ी
तू ही बोतल
तू ही पैमाना"
किसी ने पूछा-"गुरू!
ये कविसम्मेलन है या मैख़ाना।"
कवि बोला-"मैं खानदानी कवि हूँ
मुझसे मत टकराना"
आवाज़ आई-"क्या आप के बाप भी कवि थे।"
कवि बोला-"जी हाँ, थे
मगर आप ये क्यों पूछ रहे हैं।"
उत्तर मिला-"हम आपकी बेवक़ूफ़ी की जड़ ढूंढ रहे हैं।"
अबकी बार-
एक आशुकवि को उठाया गया-
उसने कहा-"आपने हमें कई बार सुना है।"
आवाज़ आई-"जी हाँ आपकी बकवास सुनकर
कई बार सिर धुना है"
कवि बोला-"संभलकर बोलना
हमारे पास कलेज़ा है
उपर से नीचे तक भेजा ही भेजा है।"
किसी ने पूछा-"आपको किसने भेजा है?"
कवि बोला-"हम बनारस में रहते हैं
रस हमारे यहाँ ही बनते है।"
उत्तर मिला-"यहाँ के श्रोता मुश्किल से बनते है
बकवास नहीं कविता सुनते है।"
कवि बोला-"कविता तो कविता
हम अख़बार तक को गा कर पढ़ सकते हैं
मंच पर ही नहीं
छाती पर भी चढ़ सकते है।"
आवाज़ आई -"यहा से दारासिंग भी
आड़ासिंग होकर गए है।"
कवि बोला-"हम दारासिंग नहीं हैं
दुधारासिंग हैं
दोनो तरफ धार रखते हैं
कवि होकर भी कार रखते हैं।"
संचालक बोला-"बेकार मुंह मत लड़ाओ
कविता हो तो सुनाओ।"
कवि ने संचालक को पलटकर कहा-
"अच्छा! हमारी बिल्ली हम से ही म्याऊँ
कविता क्या होती है सुनाऊँ
संचालक में छुपा है चालक
घुसा हुआ लक चालक में।"
कोई श्रोता बोला-"कविता छोड़ के
काम कीजिए
नौटंकी या नाटक में।"
कवि हाज़िर जवाब था
दूध की बोतल में शराब था
बोला-"जी हाँ!
नौटंकी या रामलीला में काम करेंगे
और आप जैसे तो चार बन्दर
हमारे हाथ मरेंगे।"
उत्तर मिला-आपकी बगल में बैठे हनुमानजी
हमारी सहायता करेंगे।
आशुकवि के बैठते ही
हास्य कवि ने मज़मा लगाया-
"लो आ गए हम सभा में
देखना अब रंग आएगा
कि रावण को चटाता धूल
अब बजरंग आएगा।"
कई श्रोता एक साथ चिल्लाए-
"बजरंग बली की जै"
कवि बोला-"जै बोल लो
य कविता सुन लो।"
उत्तर मिला-"कविता और आप
महापाप महापाप।"
कवि बोला-"पाप कहो या बाप
मैं नहीं बैठूंगा
गैर उठें तेरी महफ़िल से तो मैं बैठूं
शनीचर जब चला जाता है
तो इतवार आता है।"
आवाज़ आई-"इस शनिवार को तेल पिलाईए
और इतवार को बुलाइए।"
कवि बोला मैं ही इतवार हूँ।"
आवाज़ आई-"छुट्टी कीजिए
और सोमवार जी को आने दीजिए।"
सिमवार जी ने माइक पर आते ही
महिलाओं पर दृष्टी जमाई
और टाई को मोड़ते हुए
एक ग़ज़ल सुनाई।"
एक श्रोता बोला-"गला क्या है बांसुरी है।"
दूसरा बोला-ऊपर से नीचे तक छुरी है।"
तीसरे ने कहा-"वाकई खूब गाता है।"
चौथा बोला-"लेकिन महिलाओं को सुनाता है।"
कवि ने फौरन मक़ता पेश किया-
"हम दौरे इंक़लाब समझते हैं उसको मोम
ख़ाके ज़मीं के साथ अगर कहकशां चले।"
किसी ने तुक मारी-
"बदनाम करके प्रीतम मुझ को कहाँ चले।"
कवि ने स्वर बदला-
"रूप तुम्हारा मन में कस्तूरी बो गया।"
आवाज़ आई-"गीत पढ़ रहे हो
या खेती कर रहे हो।"
कवि बैठते हुए बोला-"ऐसा रिसपाँस मिलेगा
तो खेती ही करनी पड़ेगी।"
अब व्यंग्यकार को पुकारा गया-
नशे के आसमान से
ज़मीन पर उतारा गया
व्यंग्यकार ने माइक पकड़कर
लड़खड़ाते हुए कहा-
"देश लड़खड़ा रहा है, सम्भालो।"
आवाज़ आई-"थोड़ी सी और लगा लो।"
कवि बोला-"आप मेरा नहीं
हिन्दी साहित्य का अपमान कर रहें हैं।"
उत्तर मिला-"जी हाँ, ज्ञान का सारा आकाश
आप ही के कन्धो पर टिका है
और हिन्दी का सारा साहित्य
आप ही के नाम से बिका है।"
कवि बोला-"हम प्रमाण दे सकते हैं।"
आवाज़ आई-"क्यों नहीं,
आप 'गीतांजलि' को पी सकते हैं
'मेघदूत' को खा सकते हैं
और 'कामायनी' तक पर
उंगुली उठा सकते हैं।"
कवि बोला-"हमने दिल्ली से मद्रास तक
बड़े-बड़े मंचो को हिलाया हैं।
उत्तर मिला-"ये और कह दो
कि निराला को गोद में खिलाया है।"
व्यंग्यकार बैठते हुए बोला-
"अरे हट, ये भी कोई श्रोता हैं।"
कई बोला-"आप जैसो के लिये सरोता हैं।"
इतनी देर बाद संचालक को अक़्ल आई
तो उसने मंच पर अपनी माया फैलाई
कवयित्री की ग़ज़ल गूंजी।
"सुबह न आया, शाम न आया
उनका कोई पैगाम न आया।"
आवाज़ आई-"इंतज़ार बेकार हैं
पोस्टमैन बिमार है।"
कवयित्री बोली-"शोर मत मचाओ
दम है तो मंच पर आ जाओ।"
उत्तर मिला-"इक्यावन रूपये लूंगा।"
संयोजक बोला-"बहिन जी उसे रोकिए
मैं एक पैसा भी नहीं दूंगा।
वो लोकल कवि है
इक्यावन रूपये में बावन कविताएँ सुनाएगा
और मंच पर रखे हुए सारे पान
अकेले खा जएगा।"
संचालक ने हारकर धीरज जी को बुलाया
माइक नीचे झुकाया
मसनद नीचे लगाया
धीरज जी बोले-"मैं आ गया हूँ, बजाओ
तालियाँ बजाओ।"
कई आवाज़े एक साथ आई-
"पहले कव्वाली सुनाओ"
मुंह पर मुठ्ठी बांधकर
नज़ले को भीतर खींचते हुए
और दाँतो को भींचते हुए
जैसे ही धीरज जी शुरु हुए-
"छुपे रुस्तम है क़यामत की नज़र रखते हैं।"
आवाज़ आई-"व्हिस्की मिलती है कहाँ
इसकी खबर रखते हैं।"
धीरज ने कव्वाली रोकी
और सन्योजक से बोले-
"आप तो कह रहे थे यहाँ नहीं मिलती।"
सन्योजक बोला- "व्हिस्की नहीं, ठर्रा मिलता है।"
कविवर ऐश जी और बागी जी
एक साथ बोले-"मंगवा दो अपुन को चलता है।"
तभी संचालक ने घोषणा की-"आ गए, आ गए
कविवर नौटंकीलाल आ गए
मुश्किल से आ पाए है
ट्रेन छूट गई
प्लेन से आए हैं
देखिए वो आ रहे हैं
गलत मत समझियएगा
यात्रा की थकान है न
इसीलिए लड़खड़ा रहे हैं।"
चमचों से घिरे हुए
'शोर' मचाते
'पूरब को पश्चिम' से मिलाते
और 'क्रांती' के गीत गुनगुनाते
कविवर नौटंकीलाल
कवियों को दाँत दिखाकर
जनता की और घूम गए
और माइक को नायिका समझकर
उससे झूम गए
बोले-"हाँ तो मेरी जान, मेरे मीत
लो, सुन लो
मेरी नई-नई फ़िल्म का धांसू गीत
"अर र र र र र र हुर्र
मेरे दिल का पिंजरा छोड़ के
हो मत जाना फुर्र
अरे रे मेरी सोन चिरैया।"
आवाज़ आई-"यहाँ सब पढ़े लिखे है भैया।"
तभी कोई चिल्लाया-
"सांप, सांप, सांप।"
और सारा पंडाल
हो गया साफ
कवि सम्मेलन ध्वस्त होने के पश्चात
किसी कवि ने संचालक से पूछा-
"क्यों गुरू! जूतों का कहीं पता है।"
संचालक बोला-"जूतों को मारो गोली
सन्योजक लापता है।"
कवि फ़रोश / शैल चतुर्वेदी कविता
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के कवि बेचता हूँ
मैं किसम-किसम के कवि बेचता हूँ।
जी, वेट देखिए, रेट बताऊं मैं
पैदा होने की डेट बताऊं मैं
जी, नाम बुरा, उपनाम बताऊं मैं
जी, चाहे तो बदनाम बताऊं मैं
जी, इसको पाया मैंने दिल्ली में
जी, उसको पकड़ा त्रिचनापल्ली में
जी, कलकत्ते में इसको घेरा है
जी, वह बंबइया अभी बछेरा है
जी, इसे फंसाया मैंने पूने में
जी, तन्हाई में, उसको सूने में
ये बिना कहे कविता सुनवाता है
जी, उसे सुनो, तो चाय पिलाता है
जो, लोग रह गए धँधे में कच्चे
जी, उन लोगों ने बेच दिए बच्चे
जी, हुए बिचारे कुछ ऐसे भयभीत
जी, बेच दिए घबरा के अपने गीत।
मैं सोच समझ कर कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
ये लाल किले का हीरो कहलाता
ये दाढ़ी दिखला कर के बहलाता
जी, हास्य व्यंग्य की वो गौरव गरिमा
जी गाया करता जीजा की महिमा
जी, वह कुर्तक का रंग जमाता है
जी, बिना अर्थ के अर्थ कमाता है
वो गला फाड़ कर काम चला लेता
ये पैर पटक कर धाक जमा लेता
जी, ये त्यागी है, वैरागी है वो
जी, ये विद्रोही है, अनुरागी है वो
ये कवि युद्ध की गाता है लोरी
वो लोक धुनों की करता है चोरी
ये सेनापति कवियों की सेना का
वो क़िस्सा गाता तौता-मैना का
ये अभी-अभी आया है लाइट में
वो कसर नहीं रखता है डाइट में
ये लिख लेता है कविता हथिनी पर
वो लिख लेता है अपनी पत्नी पर
जी, इसने बिल्ली, गधे नहीं छोड़े
जी, उसने कुत्ते बंधे नहीं छोड़े
जी, सस्ते दामों इन्हें बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
जी, भीतर से स्पेशल बुलवाऊँ
आप कहे उनको भी दिखलाऊँ
ये अभी-अभी लौटा है लंदन से
वो अभी-अभी उतरा है चंदन से
इसने कविता पर पुरस्कार जीता
है शासन तक लम्बा इसका फ़ीता
जी, ग़म खाता वो आँसू पीता है
जी, ये फोकट की रम ही पीता है
इसके पुरखों ने पी इतनी हाला
बिन पिए रची है इसने मधुशाला
जी, ये मन में कस्तूरी बोता है
जी, वो कवियों के बिस्तर ढ़ोता है
ये देश-प्रेम में बहता रहता है
वो रात-रात भारत दहता रहता है
ये मन्दिर जैसे गाँव किनारे का
वो तैरा करता सागर पारे का
जी, ये सूरज को कै करवाता है
अनब्याही वो किरण बताता है
इसकी कमीज़ पर धूप बटन टाँके
जी, उसका गधा बैलो को हाँके
जी, क्यों हुज़ूर आप कुछ नहीं बोले
जी, क्यूँ हुज़ूर, हैं आप बड़े भोले
जी, इसमें क्या है नाराज़ी की बात
मेरी दुकान में कवियों की बारात
जी, नहीं जंचे ये, कहें तो नए दे दूँ
जी, नहीं चाहिए नये, गए दे दूँ।
जी सभी तरह के कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
जी, ये रूहें हिन्दी के बेटों की
जी, बेचारे क़िस्मत के हेठों की
जी, इनसे जीवन छन्दो में बांधा
जी हाँ, गीतो को होठों पर साधा
जी वो कविता को सौप गया त्यौहार
जी, बेच दिया इसने अपना घर-बार
जी, वो मनु को श्रद्धा से मिला गया
जी, ये मित्रों को अद्धा पिला गया
जी, वो पीकर जो सोया, उठा नहीं
जी, इसे पेट भर दाना जुटा नहीं
जी, समझ गया! हाँ कवयित्रियाँ भी हैं
जी, कुछ युवती, कुछ अब तक बच्ची हैं
ये बन मीरा मोहन को ढूंढ रही
वो सूर्पणखा लक्ष्मण को मूड़ रही
ये बाँट रही जग को कोरे सपने
वो बेच रही जग को अनुभव अपने
जी, कुछ कवियों से इनका झगड़ा है
जी, उनका पौव्वा ज्यादा तगड़ा है
जी, ये चलती है पति को साथ लिए
जी, वो चलती है पूरी बारात लिए
जी, नहीं-नहीं हँसने की क्या है बात
जी, मेरा तो काम यही है दिन-रात
जी, रोज़ नए कवि है बनते जाते
जी, ग्राहक मर्ज़ी से चुनते जाते
जी, बहुत इकट्ठे हुए हटाता हूँ
जी अंतिम कवि देखें दिखलाता हूँ
जी ये कवि है सारे कवियों का बाप
जी, कवि बेचना वैसे बिल्कुल पाप।
क्या करूँ, हाल कर कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मै कवि बेचता हूँ।
हिन्दी का ढोल / शैल चतुर्वेदी कविता
जिन दिनों हम पढ़ते थे
एक लड़की हमारे कॉलेज में थी
खूबसूरत थी, इसलिए
सबकी नॉलेज में थी
मराठी में मुस्कुराती थी
उर्दू में शर्माती थी
हिन्दी में गाती थी
और दोस्ती के नाम पर
अंग्रेज़ी में अँगूठा दिखाती थी
एम.ए. करने के बाद
हमने उससे कहा-
तुम भी एम.ए.
हम भी एम.ए.
अब तो इस अँगूठे को हटाओ
हम तुम में डूब जाए
तुम हममें डूब जाओ!"
वह मुस्कुराकर बोली-
शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है
हिन्दीवाले की बीबी बनकर
आँसू नहीं पीना है
लड़को की क्या कमी है?
एक ढूंढो, हज़ार मिलते है
तिज़ोरी में ताकत हो तो
डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं।
हमारी बहन भी हिन्दी में एम.ए. है
लेकिन ऐसी ससुराल मिली है
जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं
और कुत्ते भी समझते है!"
और हमारी समझ में तब आया
जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला
और वह चौंककर बोला-
"क्या कहा?
लड़का हिंदी में एम.ए. है।
तो भैया, घर में बिठाओ
और बाप-बेटा मिलकर
मीरा के भजन गाओ।"
एक रिश्ता और आया
पर जैसे ही पिताजी ने
हमारा रेट खोला
लड़की का बाप उछलकर बोला-
"का कहा! एक लाख
इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी?
ससुर, ख़ुआब देखत हैं
अपना काँटा के लिए गुलाब देखत हैं
जनते है?
मर जाइएगा
तबहुँ नहीं पाइएगा।"
उसके जाते ही पिताजी
हमसे बोले-
"क्यों बे, हिन्दी के ढोल
और कितने जूते खिलवाएगा बोल
अब तो यही सुनना बाक़ी रह गया है
सुन लिया न
वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है?
लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं
और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं
अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी क़िस्मत में न होता
तो जलवा दिखा देता
माँगनेवाले का घर बिकवाकर
साले को फुटपाथ पर बिठा देता
पहले ही कहा था
हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़
कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए. कर
हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया
सगाई में स्कूटर लाया है
शादी में कार लाएगा
और सुना है लड़कीवाला पूरी बारात को
फ़ाइव स्टार होटल में ठहरायेगा
यहाँ मौक़ा भी आ गया तो
ठहराने वाला
ठहरा देगा झाड़ के नीचे
और सायकल के नाम पर
कुत्ते छुड़वा देगा पीछे
भागते भी नहीं बनेगा
और बेटा!
तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा
हर बाप के अरमान होते हैं
कि बेटा पढ़ लिखकर कुछ बने
तो उसे कैश करें
और बुढ़ापे में ऐश करें
हमने भी बेटी के हाथ पीले किए हैं
अंटी में जो था सब गँवा दिया
और जब हमारे कमाने का वक्त आया
तो इस हिन्दी के ढोल ने मरवा दिया।"
हमने कहा-
"पिताजी!
दहेज़ लेना पाप है।"
वो बोले-
"चोप्प!
हम तेरे बाप हैं
कि तू हमारा बाप है
खबरदार, जो दहेज को पाप कहा!
और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा!
अबे, हिन्दी के ढोल
जो बेटे का बाप
बिना दहेज़ खाए मरता है
उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है।
अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है
जा हाथ में कटोरा थामकर
मीरा के भजन गा।"
और हमारे जी में आया
हाथ में तँबूरा लेकर
घर से निकल पड़ें
और गाते फिरें-
"हिन्दी आई न मेरे काम
फिरता हूँ मैं मारा-मारा
सुबह-दोपहर-शाम
पढ़लिख कर हिन्दी मैं हारा
दुनिया कहती है आवारा
जी करता है थाम उस्तरा
बन जाऊँ हज्जाम
हिन्दी आई न मेरे काम।"
व्यंग्य / शैल चतुर्वेदी कविता
हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा
और कहा, "एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?"
तो बोला, "पहले खाना खिलाओ।"
खाना खिलाया तो बोला, "पान खिलाओ।"
पान खिलाया तो बोला, "खाना बहुत बढ़िया था
उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।
अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैं
हमें व्यंग्य मत सुनाओ
जो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहा
और हमें बेरोज़गारी का रोजगार देकर
कुर्सी को कैश करता रहा।
व्यंग्य उस अफ़सर को सुनाओ
जो हिन्दी के प्रचार की डफली बजाता रहा
और अपनी औलाद को अंग्रेज़ी का पाठ पढ़ाता रहा।
व्यंग्य उस सिपाही को सुनाओ
जो भ्रष्टाचार को अपना अधिकार मानता रहा
और झूठी गवाही को पुलिस का संस्कार मानता रहा।
व्यंग्य उस डॉक्टर को सुनाओ
जो पचास रूपये फ़ीस के लेकर
मलेरिया को टी०बी० बतलाता रहा
और नर्स को अपनी बीबी बतलाता रहा।
व्यंग्य उस फ़िल्मकार को सुनाओ
जो फ़िल्म में से इल्म घटाता रहा
और संस्कृति के कपड़े उतार कर सेंसर को पटाता रहा।
व्यंग्य उस सास को सुनाओ
जिसने बेटी जैसी बहू को ज्वाला का उपहार दिया
और व्यंग्य उस वासना के कीड़े को सुनाओ
जिसने अपनी भूख मिटाने के लिए
नारी को बाज़ार दिया।
व्यंग्य उस श्रोता को सुनाओ
जो गीत की हर पंक्ति पर बोर-बोर करता रहा
और बकवास को बढ़ावा देने के लिए
वंस मोर करता रहा।
व्यंग्य उस व्यंग्यकार को सुनाओ
जो अर्थ को अनर्थ में बदलने के लिए
वज़नदार लिफ़ाफ़े की मांग करता रहा
और अपना उल्लू सीधा करने के लिए
व्यंग्य को विकलांग करता रहा।
और जो व्यंग्य स्वयं ही अन्धा, लूला और लंगड़ा हो
तीर नहीं बन सकता
आज का व्यंग्यकार भले ही "शैल चतुर्वेदी" हो जाए
'कबीर' नहीं बन सकता।
उल्लू बनाती हो? / शैल चतुर्वेदी कविता
एक दिन मामला यों बिगड़ा
कि हमारी ही घरवाली से
हो गया हमारा झगड़ा
स्वभाव से मैं नर्म हूँ
इसका अर्थ ये नहीं
के बेशर्म हूँ
पत्ते की तरह काँप जाता हूँ
बोलते-बोलते हाँफ जाता हूँ
इसलिये कम बोलता हूँ
मजबूर हो जाऊँ तभी बोलता हूँ
हमने कहा-"पत्नी हो
तो पत्नी की तरह रहो
कोई एहसान नहीं करतीं
जो बनाकर खिलाती हो
क्या ऐसे ही घर चलाती हो
शादी को हो गये दस साल
अक्ल नहीं आई
सफ़ेद हो गए बाल
पड़ौस में देखो अभी बच्ची है
मगर तुम से अच्छी है
घर कांच सा चमकता है
और अपना देख लो
देखकर खून छलकता है
कब से कह रहा हूँ
तकिया छोटा है
बढ़ा दो
दूसरा गिलाफ चढ़ा दो
चढ़ाना तो दूर रहा
निकाल-निकाल कर रूई
आधा कर दिया
और रूई की जगह
कपड़ा भर दिया
कितनी बार कहा
चीज़े संभालकर रखो
उस दिन नहीं मिला तो नहीं मिला
कितना खोजा
और रूमाल कि जगह
पैंट से निकल आया मोज़ा
वो तो किसी ने शक नहीं किया
क्योकि हमने खट से
नाक पर रख लिया
काम करते-करते टेबल पर पटक दिया-
"साहब आपका मोज़ा।"
हमने कह दिया
हमारा नहीं किसी और का होगा
अक़्ल काम कर गई
मगर जोड़ी तो बिगड़ गई
कुछ तो इज़्ज़त रखो
पचास बार कहा
मेरी अटैची में
अपने कपड़े मत रखो
उस दिन
कवि सम्मेलन का मिला तार
जल्दी-जल्दी में
चल दिया अटैची उठाकर
खोली कानपुर जाकर
देखा तो सिर चकरा गया
पजामे की जगह
पेटीकोट आ गया
तब क्या खाक कविता पढ़ते
या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर
मंच पर मटकते
एक माह से लगातार
कद्दू बना रही हो
वो भी रसेदार
ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता
खाना खाया नहीं जाता
बोलो तो कहती हो-
"बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।"
कल पड़ौसी का राजू
बाहर खड़ा मूली खा रहा था
ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था
कई बार कहा-
ज़्यादा न बोलो
संभालकर मुंह खोलो
अंग्रेज़ी बोलती हो
जब भी बाहर जाता हूँ
बड़ी अदा से कहती हो-"टा....टा"
और मुझे लगता है
जैसे मार दिया चांटा
मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है
ऐनिमा लगवा दो
तो डॉक्टर बोलीं-"डैनिमा लगा दो।"
वो तो ग़नीमत है
कि ड़ॉक्टर होशियार था
नीम हकीम होता
तो बेड़ा ही पार था
वैसे ही घर में जगह नहीं
एक पिल्ला उठा लाई
पाव भर दूध बढा दिया
कुत्ते का दिमाग चढ़ा दिया
तरीफ़ करती हो पूंछ की
उससे तुलना करती हो
हमारी मूंछ की
तंग आकर हमने कटवा दी
मर्दो की रही सही
निशानी भी मिटवा दी
वो दिन याद करो
जब काढ़ती थीं घूंघट
दो बीते का
अब फुग्गी बनाती हो फीते का
पहले ढ़ाई गज़ में
एक बनता था
अब दो ब्लाउज़ो के लिये
लगता है एक मीटर
आधी पीठ खुली रहती है
मैं देख नहीं सकता
और दुनिया तकती है
मायके जाती हो
तो आने का नाम नहीं लेतीं
लेने पहुँच जाओ
तो माँ-बाप से किराए के दाम नहीं लेतीं
कपड़े
बाल-बच्चों के लिये
सिलवा कर ले जाती हो
तो भाई-भतीजों को दे आती हो
दो साड़ियाँ क्या ले आती हो
सारे मोहल्ले को दिखाती हो
साड़ी होती है पचास की
मगर सौ की बताती हो
उल्लू बनाती हो
हम समझ जाते हैं
तो हमें आँख दिखाती हो
हम जो भी जी में आया
बक रहे थे
और बच्चे
खिड़कियो से उलझ रहे थी
हमने सोचा-
वे भी बर्तन धो रही हैं
मुन्ना से पूछा, तो बोला-"सो रही हैं।"
हमने पूछा, कब से?
तो वो बोला-
"आप चिल्ला रहे हैं जब से।"
औरत पालने को कलेजा चाहिये / शैल चतुर्वेदी कविता
एक दिन बात की बात में
बात बढ़ गई
हमारी घरवाली
हमसे ही अड़ गई
हमने कुछ नहीं कहा
चुपचाप सहा
कहने लगी-"आदमी हो
तो आदमी की तरह रहो
आँखे दिखाते हो
कोइ अहसान नहीं करते
जो कमाकर खिलाते हो
सभी खिलाते हैं
तुमने आदमी नहीं देखे
झूले में झूलाते हैं
देखते कहीं हो
और चलते कहीं हो
कई बार कहा
इधर-उधर मत ताको
बुढ़ापे की खिड़की से
जवानी को मत झाँको
कोई मुझ जैसी मिल गई
तो सब भूल जाओगे
वैसे ही फूले हो
और फूल जाओगे
चन्दन लगाने की उम्र में
पाउडर लगाते हो
भगवान जाने
ये कद्दू सा चेहरा किसको दिखाते हो
कोई पूछता है तो कहते हो-
"तीस का हूँ।"
उस दिन एक लड़की से कह रहे थे-
"तुम सोलह की हो
तो मैं बीस का हूँ।"
वो तो लड़की अन्धी थी
आँख वाली रहती
तो छाती का बाल नोच कर कहती
ऊपर ख़िज़ाब और नीचे सफेदी
वाह रे, बीस के शैल चतुर्वेदी
हमारे डैडी भी शादी-शुदा थे
मगर क्या मज़ाल
कभी हमारी मम्मी से भी
आँख मिलाई हो
मम्मी हज़ार कह लेती थीं
कभी ज़ुबान हिलाई हो
कमाकर पांच सौ लाते हो
और अकड़
दो हज़ार की दिखाते हो
हमारे डैडी दो-दो हज़ार
एक बैठक में हाल जाते थे
मगर दूसरे ही दिन चार हज़ार
न जाने, कहाँ से मार लाते थे
माना कि मैं माँ हूँ
तुम भी तो बाप हो
बच्चो के ज़िम्मेदार
तुम भी हाफ़ हो
अरे, आठ-आठ हो गए
तो मेरी क्या ग़लती
गृहस्थी की गाड़ी
एक पहिये से नहीं चलती
बच्चा रोए तो मैं मनाऊँ
भूख लगे तो मैं खिलाऊँ
और तो और
दूध भी मैं पिलाऊँ
माना कि तुम नहीं पिला सकते
मगर खिला तो सकते हो
अरे बोतल से ही सही
दूध तो पिला सकते हो
मगर यहाँ तो खुद ही
मुँह से बोतल लगाए फिरते हैं
अंग्रेज़ी शराब का बूता नहीं
देशी चढ़ाए फिरते हैं
हमारे डैडी की बात और थी
बड़े-बड़े क्लबो में जाते थे
पीते थे, तो माल भी खाते थे
तुम भी चने फांकते हो
न जाने कौन-सी पीते हो
रात भर खांसते हो
मेरे पैर का घाव
धोने क्या बैठे
नाखून तोड़ दिया
अभी तक दर्द होता है
तुम सा भी कोई मर्द होता है?
जब भी बाहर जाते हो
कोई ना कोई चीज़ भूल आते हो
न जाने कितने पैन, टॉर्च
और चश्मे गुमा चुके हो
अब वो ज़माना नहीं रहा
जो चार आने के साग में
कुनबा खा ले
दो रुपये का साग तो
अकेले तुम खा जाते हो
उस वक्त क्या टोकूं
जब थके मान्दे दफ़्तर से आते हो
कोई तीर नहीं मारते
जो दफ़्तर जाते हो
रोज़ एक न एक बटन तोड़ लाते हो
मैं बटन टाँकते-टाँकते
काज़ हुई जा रही हूँ
मैं ही जानती हूँ
कि कैसे निभा रही हूँ
कहती हूँ, पैंट ढीले बनवाओ
तंग पतलून सूट नहीं करतीं
किसी से भी पूछ लो
झूठ नहीं कहती
इलैस्टिक डलवाते हो
अरे, बेल्ट क्यूँ नहीं लगाते हो
फिर पैंट का झंझट ही क्यों पालो
धोती पहनो ना,
जब चाहो खोल लो
और जब चाहो लगा लो
मैं कहती हूँ तो बुरा लगता है
बूढ़े हो चले
मगर संसार हरा लगता है
अब तो अक्ल से काम लो
राम का नाम लो
शर्म नहीं आती
रात-रात भर
बाहर झक मारते हो
औरत पालने को कलेजा चाहिये
गृहस्थी चलाना खेल नहीं
भेजा चहिये।"
शायरी का इंक़लाब / शैल चतुर्वेदी कविता
एक दिन अकस्मात
एक पुराने मित्र से
हो गई मुलाकात
कहने लगे-"जो लोग
कविता को कैश कर रहे है
वे ऐश कर रहे हैं
लिखने वाले मौन है
श्रोता तो यह देखता है
कि पढ़ने वाला कौन है
लोग-बाग
चार-ग़ज़लें
और दो लोक गीत चुराकर
अपने नाम से सुना रहे हैं
भगवान ने उन्हे ख़ूबसूरत बनाया है
वे ज़माने को
बेवकूफ़ बना रहे हैं
सूरत और सुर ठीक हो
तो कविता लाजवाब है
यही शायरी का इंक़लाब है
उर्दू का रिजेक्टेड माल
हिन्दी में चल रहा है
चोरों के भरोसे
ख़ानदान पल रहा है
ग़ज़ल किसी की
फ़सल किसी की
भला किसी का
एक लोकल कवि की लाइन
अखिल भारतीय ने मार दी
लोकल चिल्लाया
"अबे, चिल्लाता क्यों है
तेरी लोकल लाइन को
अखिल भारतीय बना दिया
सारे देश में घुमा दिया
दागो, भागो / शैल चतुर्वेदी कविता
दुश्मन
हथियार मांग लाया दान में
आ गया मैदान में
हाथ बढ़ाकर दोस्ती का
छेड़ दी लड़ाई
अकारण ही भारत पर
कर दी चढ़ाई
तो देश के बूढ़े और जवान
पंजाबी, मरहठे, पठान
आ गए होश में
तो हम भी
भनभनाने लगे जोश में
सेना में भरती होने का
हो आया चाव
आव देखा न ताव
और पत्नी के सामने
रख दिया प्रस्ताव
कहने लगी - "क्या बोलते हो
अपने को सैनिक से तौलते हो
अरे, बहादुरी ही दिखानी था
तो शादी क्यों की
मेरी बरबादी क्यों की
क्या घर में लड़ते-लड़ते
जी नहीं भरा
जो इरादा है
बाहर लड़ने का
क्या फायदा
बी.ए. तक पढ़ने का
लड़ाई में वो जाते हैं
जिनका कोई नहीं होता
चले भी गए
तो उनके लिए कोई नहीं रोता
जिनको लड़ना है लड़े
हमें नहीं लड़ना
अच्छा नहीं है
किसी के बीच में पड़ना।"
मगर हमारा जोश
जोर मार रहा था
कर्तव्य पुकार रहा था
हम बोले- "क्या कहती हो
देश पर संकट है
कहाँ रहती हो
दुश्मन
बारूद उगल रहा है
हिमालय जल रहा है
देश पर बिजली कौंध रही है
हैवानियत
इंसानियत को रौंद रही है
शत्रु बात-बात पर
अड़े जाता है
देश पर अपने चढे़ जाता है
लगातार बढ़े जाता है
बावरी!
यहाँ तक आ पहुँचा तो क्या करोगी
फिर तो लड़ोगी
उसे वहीं रोकना अच्छा है
देखती नहीं
जाग गया देश का बच्चा-बच्चा है।"
वे बोली-"जानती हूँ
मगर तुम बच्चे नहीं हो
तुम्हारे कन्धों और ज़िम्मेदारी है
पीछे पांच बच्चे हैं
एक नारी है
घर में लड़ लेते हो
तो क्या ये समझते हो
कि फौज से लड़ना आसान है
इसका भी कुछ भान है
मुंह चलाने
और बन्दूक चलाने में
अंतर है ज़मीन-आसमान का
फिर कुछ तो खयाल करो
आने वाले मेहमान का
दुश्मन पीछे लग गया
तो भागते बनेगा
बन्दूक चलाई है कभी
गोलियाँ दागते बनेगा?
बन्दूक-बन्दूक है
गुलेल नहीं है
लड़ाई, लड़ाई है
खेल नहीं है।"
हमसे न रहा गया
कह दिया जो भी कहा गया-
"मेरे पौरूष पर शंका करती हो
मुझे क्या समझ रक्खा है
लोहे का चना हूँ
तुमने समझा, मुन्नका है
कि हर कोई चबा ले
आसानी से दबा ले
जानती हो
स्कूल मे एन.सी.सी. ली थी
और फायरिंग भी की थी
निशानेबाज़ी में इनाम पाया था
पेपरों में नाम आया था।"
वे बोलीं-"बस-बस रहने दो
देख ली तुम्हारी निशानेबाज़ी
सुई मे धागा ड़ालने को कहा
तो ड़ालना दूर रहा
सुई गुमा दी
उस दिन लकड़ी फ़ाड़ने को कहा
तो कुल्हाड़ी
पैर पर दे मारी थी
और बैल्ट समझकर
खूंटी से छड़ी उतारी थी
सी.सी. बीसी(एन.सी.सी नहीं) को
गोली मारो
नहाओ, धोओ
और दफ्तर पधारो।"
इतना तगड़ा तर्क सुनकर
भला क्या बोलते
न जाने और क्या सुनना पड़ता
जो मुंह खोलते
हमने सोचा-
(उलझना ठीक नहीं
पर स्वयं को
कमज़ोर समझना भी ठीक नहीं)
भोजन किया
और चल दिये दफ्तर को
तभी रेस्ट हाऊस के सामने
फौजी लिबास में
खड़े देखा पड़ोसी अख़्तर को
हमारा पौरूष जाग उठा
देश के प्रति अनुराग जाग उठा
फौजी कैंप में जा पहुँचे
मगर माप-तौल करने वाले
अफसर को नहीं जंचे
बोला-"कमर छयालीस है
और सीना बयालीस
वज़न ज़रूरत से ज्यादा है
नौजवान नहीं दादा है।"
हमने हाथ जोड़कर कहा-
"सिपाही जी,
यह फौजी भरती है
या मिस इंडिया का चुनाव है
ले लीजिए न
मुझे बड़ा चाव है।"
वह बोला-"बहस मत करो जी
लड़ना
तुम्हारे बस की बात नहीं
हमें फौज ले जाना है
बारात नहीं।"
उसने अफसर को दी रिपोर्ट
अफसर बहादुर था
हमको ही किया सपोर्ट
बोला-"सात दिन परेड करेगा
तो शेप में आ जाएगा
फिर कुछ तो काम आएगा
हमें एक ओर
शत्रु को पीछे हटाना है
और दूसरी ओर
देश की फालतू आबादी घटाना है
चल निकला तो वार करेगा
वर्ना दुश्मन की
दस-पांच गोलिया ही बेकार करेगा।"
दूसरे ही क्षण
हम फौजी शान में थे
तीसरे दिन
लड़ाई के मैदान में थे
गोलियाँ सनसना रही थीं
दनदना रही थीं
हवाई जहाज उतर रहे थे
चढ रहे थे
हम आगे बढ रहे थे
हुक्म मिला-"दागो!"
हम समझे-"भागो!"
तभी धमाका हुआ
शायद बम फूटा
हमारी नींद खुल गई
और स्वप्न टूटा।
फ़िल्मी निर्माताओं से / शैल चतुर्वेदी कविता
ऐ फ़िल्मी निर्माताओं
भरतीय कला के रहनुमाओं
कला से तुम्हारा इतना ही सम्बन्ध है
कि हर कलाकार
तुम्हारी तिज़ोरी में बन्द है
चन्दी की छड़ी
जब भी कलाकार की पीठ पर पड़ती है
वो अपने आप को भूल जाता है
हिजड़ो की तरह कुल्हे मटकाता है
और तुम्हारी ही कृपा से
चना जोर गरम बेचने वाला
क्रांती कुमार कहलाता है
मशाल दूसरों की हाथ में थमाकर
क्रांती को बाहों में लेकर सो जाता है
"इंसाफ का तरज़ू" देख आइए
मालूम हो जाएगा
कि बलात्कार कैसे करना चाहिए
"एक दूजे के लिए" रिलीज़ होते ही
हमारे मोहल्ले में एक बालिका ने
कमाल कर दिया
अपने प्रेमी का नाम
ज़िस्म के हर कोने पर लिख दिया
ऊपर से धमकी देती फिर रही है
कि अगर दुनिया उसके आड़े आएगी
तो वो अपने प्रेमी को
चाय में घोल कर पी जाएगी
फिल्म 'जज्बात" देखते ही
हमारे मोहल्ले के थानेदार का उध्दार हो गया
एक पाकिटमार लड़की को सुधारने की धुन में
खुद ही पाकेटमार हो गया
"नसीब" देखते ही
सामने वाली होटल के बैरे की
क़िस्मत फूट गई
जॉनी ज़ॉन जनार्दन बनने की ज़िद में
नौकरी छूट गई
'लावारिस" रिलीज़ होने के बाद
भारतीय संस्कृती के नसीब
ऐसे खुले हैं
कि सैकड़ो लड़के
मां-बाप के रहते हुए
लावारिस बनने पर तुले हैं
"मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"
इस गाने का फिल्मांकन इतना मारू है
कि हमारा पड़ोसी का जवान लड़का
साड़ी पहनने पर उतारू है
हमारी मोटी पड़ोसन के
दुबले पती ने
गाने को इतना सीरियसली लिया है
कि घर मे एक गद्दा था
उसे भी बेच दिया है
एक साहब और हैं
जो आजकल बिजली का खर्च बचा रहे हैं
अन्धरे में गोरी बीवी से काम चला रहे हैं
हमरे लम्बू रिश्तेदार ने
बौनी बीवी गोद में उठा ली है
और बच्चे ना पैदा करने की कसम खा ली है
हमारा एक परिचित चोर
वाकई कमाल कर रहा है
सीढी की जगह
लम्बी बीवी का इस्तेमाल कर रहा है
आप जो न करें सो थोड़ा है
आपकी कृपा हो
तो गधा भी धोड़ा है
घोड़े को गधा न बना दें
एसलिए डरता हूँ
और आपको सौ-सौ प्रणाम करता हूँ।
ऐ फ़िल्मी निर्माताओं
भरतीय कला के रहनुमाओं
कला से तुम्हारा इतना ही सम्बन्ध है
कि हर कलाकार
तुम्हारी तिज़ोरी में बन्द है
चन्दी की छड़ी
जब भी कलाकार की पीठ पर पड़ती है
वो अपने आप को भूल जाता है
हिजड़ो की तरह कुल्हे मटकाता है
और तुम्हारी ही कृपा से
चना जोर गरम बेचने वाला
क्रांती कुमार कहलाता है
मशाल दूसरों की हाथ में थमाकर
क्रांती को बाहों में लेकर सो जाता है
"इंसाफ का तरज़ू" देख आइए
मालूम हो जाएगा
कि बलात्कार कैसे करना चाहिए
"एक दूजे के लिए" रिलीज़ होते ही
हमारे मोहल्ले में एक बालिका ने
कमाल कर दिया
अपने प्रेमी का नाम
ज़िस्म के हर कोने पर लिख दिया
ऊपर से धमकी देती फिर रही है
कि अगर दुनिया उसके आड़े आएगी
तो वो अपने प्रेमी को
चाय में घोल कर पी जाएगी
फिल्म 'जज्बात" देखते ही
हमारे मोहल्ले के थानेदार का उध्दार हो गया
एक पाकिटमार लड़की को सुधारने की धुन में
खुद ही पाकेटमार हो गया
"नसीब" देखते ही
सामने वाली होटल के बैरे की
क़िस्मत फूट गई
जॉनी ज़ॉन जनार्दन बनने की ज़िद में
नौकरी छूट गई
'लावारिस" रिलीज़ होने के बाद
भारतीय संस्कृती के नसीब
ऐसे खुले हैं
कि सैकड़ो लड़के
मां-बाप के रहते हुए
लावारिस बनने पर तुले हैं
"मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"
इस गाने का फिल्मांकन इतना मारू है
कि हमारा पड़ोसी का जवान लड़का
साड़ी पहनने पर उतारू है
हमारी मोटी पड़ोसन के
दुबले पती ने
गाने को इतना सीरियसली लिया है
कि घर मे एक गद्दा था
उसे भी बेच दिया है
एक साहब और हैं
जो आजकल बिजली का खर्च बचा रहे हैं
अन्धरे में गोरी बीवी से काम चला रहे हैं
हमरे लम्बू रिश्तेदार ने
बौनी बीवी गोद में उठा ली है
और बच्चे ना पैदा करने की कसम खा ली है
हमारा एक परिचित चोर
वाकई कमाल कर रहा है
सीढी की जगह
लम्बी बीवी का इस्तेमाल कर रहा है
आप जो न करें सो थोड़ा है
आपकी कृपा हो
तो गधा भी धोड़ा है
घोड़े को गधा न बना दें
एसलिए डरता हूँ
और आपको सौ-सौ प्रणाम करता हूँ। कविता
ऐ फ़िल्मी निर्माताओं
भरतीय कला के रहनुमाओं
कला से तुम्हारा इतना ही सम्बन्ध है
कि हर कलाकार
तुम्हारी तिज़ोरी में बन्द है
चन्दी की छड़ी
जब भी कलाकार की पीठ पर पड़ती है
वो अपने आप को भूल जाता है
हिजड़ो की तरह कुल्हे मटकाता है
और तुम्हारी ही कृपा से
चना जोर गरम बेचने वाला
क्रांती कुमार कहलाता है
मशाल दूसरों की हाथ में थमाकर
क्रांती को बाहों में लेकर सो जाता है
"इंसाफ का तरज़ू" देख आइए
मालूम हो जाएगा
कि बलात्कार कैसे करना चाहिए
"एक दूजे के लिए" रिलीज़ होते ही
हमारे मोहल्ले में एक बालिका ने
कमाल कर दिया
अपने प्रेमी का नाम
ज़िस्म के हर कोने पर लिख दिया
ऊपर से धमकी देती फिर रही है
कि अगर दुनिया उसके आड़े आएगी
तो वो अपने प्रेमी को
चाय में घोल कर पी जाएगी
फिल्म 'जज्बात" देखते ही
हमारे मोहल्ले के थानेदार का उध्दार हो गया
एक पाकिटमार लड़की को सुधारने की धुन में
खुद ही पाकेटमार हो गया
"नसीब" देखते ही
सामने वाली होटल के बैरे की
क़िस्मत फूट गई
जॉनी ज़ॉन जनार्दन बनने की ज़िद में
नौकरी छूट गई
'लावारिस" रिलीज़ होने के बाद
भारतीय संस्कृती के नसीब
ऐसे खुले हैं
कि सैकड़ो लड़के
मां-बाप के रहते हुए
लावारिस बनने पर तुले हैं
"मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"
इस गाने का फिल्मांकन इतना मारू है
कि हमारा पड़ोसी का जवान लड़का
साड़ी पहनने पर उतारू है
हमारी मोटी पड़ोसन के
दुबले पती ने
गाने को इतना सीरियसली लिया है
कि घर मे एक गद्दा था
उसे भी बेच दिया है
एक साहब और हैं
जो आजकल बिजली का खर्च बचा रहे हैं
अन्धरे में गोरी बीवी से काम चला रहे हैं
हमरे लम्बू रिश्तेदार ने
बौनी बीवी गोद में उठा ली है
और बच्चे ना पैदा करने की कसम खा ली है
हमारा एक परिचित चोर
वाकई कमाल कर रहा है
सीढी की जगह
लम्बी बीवी का इस्तेमाल कर रहा है
आप जो न करें सो थोड़ा है
आपकी कृपा हो
तो गधा भी धोड़ा है
घोड़े को गधा न बना दें
एसलिए डरता हूँ
और आपको सौ-सौ प्रणाम करता हूँ।
ऐ फ़िल्मी निर्माताओं
भरतीय कला के रहनुमाओं
कला से तुम्हारा इतना ही सम्बन्ध है
कि हर कलाकार
तुम्हारी तिज़ोरी में बन्द है
चन्दी की छड़ी
जब भी कलाकार की पीठ पर पड़ती है
वो अपने आप को भूल जाता है
हिजड़ो की तरह कुल्हे मटकाता है
और तुम्हारी ही कृपा से
चना जोर गरम बेचने वाला
क्रांती कुमार कहलाता है
मशाल दूसरों की हाथ में थमाकर
क्रांती को बाहों में लेकर सो जाता है
"इंसाफ का तरज़ू" देख आइए
मालूम हो जाएगा
कि बलात्कार कैसे करना चाहिए
"एक दूजे के लिए" रिलीज़ होते ही
हमारे मोहल्ले में एक बालिका ने
कमाल कर दिया
अपने प्रेमी का नाम
ज़िस्म के हर कोने पर लिख दिया
ऊपर से धमकी देती फिर रही है
कि अगर दुनिया उसके आड़े आएगी
तो वो अपने प्रेमी को
चाय में घोल कर पी जाएगी
फिल्म 'जज्बात" देखते ही
हमारे मोहल्ले के थानेदार का उध्दार हो गया
एक पाकिटमार लड़की को सुधारने की धुन में
खुद ही पाकेटमार हो गया
"नसीब" देखते ही
सामने वाली होटल के बैरे की
क़िस्मत फूट गई
जॉनी ज़ॉन जनार्दन बनने की ज़िद में
नौकरी छूट गई
'लावारिस" रिलीज़ होने के बाद
भारतीय संस्कृती के नसीब
ऐसे खुले हैं
कि सैकड़ो लड़के
मां-बाप के रहते हुए
लावारिस बनने पर तुले हैं
"मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"
इस गाने का फिल्मांकन इतना मारू है
कि हमारा पड़ोसी का जवान लड़का
साड़ी पहनने पर उतारू है
हमारी मोटी पड़ोसन के
दुबले पती ने
गाने को इतना सीरियसली लिया है
कि घर मे एक गद्दा था
उसे भी बेच दिया है
एक साहब और हैं
जो आजकल बिजली का खर्च बचा रहे हैं
अन्धरे में गोरी बीवी से काम चला रहे हैं
हमरे लम्बू रिश्तेदार ने
बौनी बीवी गोद में उठा ली है
और बच्चे ना पैदा करने की कसम खा ली है
हमारा एक परिचित चोर
वाकई कमाल कर रहा है
सीढी की जगह
लम्बी बीवी का इस्तेमाल कर रहा है
आप जो न करें सो थोड़ा है
आपकी कृपा हो
तो गधा भी धोड़ा है
घोड़े को गधा न बना दें
एसलिए डरता हूँ
और आपको सौ-सौ प्रणाम करता हूँ। कविता
ऐ फ़िल्मी निर्माताओं
भरतीय कला के रहनुमाओं
कला से तुम्हारा इतना ही सम्बन्ध है
कि हर कलाकार
तुम्हारी तिज़ोरी में बन्द है
चन्दी की छड़ी
जब भी कलाकार की पीठ पर पड़ती है
वो अपने आप को भूल जाता है
हिजड़ो की तरह कुल्हे मटकाता है
और तुम्हारी ही कृपा से
चना जोर गरम बेचने वाला
क्रांती कुमार कहलाता है
मशाल दूसरों की हाथ में थमाकर
क्रांती को बाहों में लेकर सो जाता है
"इंसाफ का तरज़ू" देख आइए
मालूम हो जाएगा
कि बलात्कार कैसे करना चाहिए
"एक दूजे के लिए" रिलीज़ होते ही
हमारे मोहल्ले में एक बालिका ने
कमाल कर दिया
अपने प्रेमी का नाम
ज़िस्म के हर कोने पर लिख दिया
ऊपर से धमकी देती फिर रही है
कि अगर दुनिया उसके आड़े आएगी
तो वो अपने प्रेमी को
चाय में घोल कर पी जाएगी
फिल्म 'जज्बात" देखते ही
हमारे मोहल्ले के थानेदार का उध्दार हो गया
एक पाकिटमार लड़की को सुधारने की धुन में
खुद ही पाकेटमार हो गया
"नसीब" देखते ही
सामने वाली होटल के बैरे की
क़िस्मत फूट गई
जॉनी ज़ॉन जनार्दन बनने की ज़िद में
नौकरी छूट गई
'लावारिस" रिलीज़ होने के बाद
भारतीय संस्कृती के नसीब
ऐसे खुले हैं
कि सैकड़ो लड़के
मां-बाप के रहते हुए
लावारिस बनने पर तुले हैं
"मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"
इस गाने का फिल्मांकन इतना मारू है
कि हमारा पड़ोसी का जवान लड़का
साड़ी पहनने पर उतारू है
हमारी मोटी पड़ोसन के
दुबले पती ने
गाने को इतना सीरियसली लिया है
कि घर मे एक गद्दा था
उसे भी बेच दिया है
एक साहब और हैं
जो आजकल बिजली का खर्च बचा रहे हैं
अन्धरे में गोरी बीवी से काम चला रहे हैं
हमरे लम्बू रिश्तेदार ने
बौनी बीवी गोद में उठा ली है
और बच्चे ना पैदा करने की कसम खा ली है
हमारा एक परिचित चोर
वाकई कमाल कर रहा है
सीढी की जगह
लम्बी बीवी का इस्तेमाल कर रहा है
आप जो न करें सो थोड़ा है
आपकी कृपा हो
तो गधा भी धोड़ा है
घोड़े को गधा न बना दें
एसलिए डरता हूँ
और आपको सौ-सौ प्रणाम करता हूँ।
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