रामरसरंगमणि के दोहे (रसिक संप्रदाय) Ramrasrangmani ke Dohe

 बंदौं दूलह वेष दुति, सिय दुलहिनि युत राम।

गौरि श्याम रसरंगमणि, जन-मन पूरन काम॥


बंदौं सिंहासन लसे, दुलहिनि दूलह चारि।

पूजहिं अंब कदंब लखिं, रसरंगहु बलिहारि॥


बंदौं सीताकांत सुख, रस शृंगार स्वरूप।

रसिकराज रसरंगमणि, सखा सुबंधु अनूप॥


बन्दौं भरताग्रज मधुर, प्रेम सख्य रस रूप।

कृपासिंधु रसरंगमणि, बंधु अखिल रस भूप॥


बंदौं बर दुलहिनि सकल, आए अवध दुआर।

मुदित मातु परिछन करहिं, सुख रसरंग अपार॥

रामसहाय दास के दोहे (राम सतसई' के रचयिता) Ram Sahay Das ke Dohe

राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’ के दोहे / Ray Deviprasad Poorn ke Dohe

यारी साहब के दोहे (रीतिकालीन निर्गुण संत ) Yaari Sahab ke Dohe

युगलान्यशरण के दोहे (रसिक संप्रदाय) Yuglaananysharan ke Dohe

Comments

Popular Posts

Ahmed Faraz Ghazal / अहमद फ़राज़ ग़ज़लें

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ameer Minai Ghazal / अमीर मीनाई ग़ज़लें

मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं Popular Poems of Manglesh Dabral

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

Akbar Allahabadi Ghazal / अकबर इलाहाबादी ग़ज़लें

Sant Surdas ji Bhajan lyrics संत श्री सूरदास जी के भजन लिरिक्स

Adil Mansuri Ghazal / आदिल मंसूरी ग़ज़लें

बुन्देली गारी गीत लोकगीत लिरिक्स Bundeli Gali Geet Lokgeet Lyrics

Mira Bai Ke Pad Arth Vyakhya मीराबाई के पद अर्थ सहित