देशभक्ति कविताओं का कोश – भाग 3 | Deshbhakti Kavita Sangrah 3

 उठो धरा के अमर सपूतों -द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी/देशभक्ति की कविता

उठो, धरा के अमर सपूतों।

पुन: नया निर्माण करो।

जन-जन के जीवन में फिर से

नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।

नई प्रात है नई बात है

नया किरन है, ज्योति नई।

नई उमंगें, नई तरंगें

नई आस है, साँस नई।

युग-युग के मुरझे सुमनों में

नई-नई मुस्कान भरो।


उठो, धरा के अमर सपूतों।

पुन: नया निर्माण करो।।1।।


डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ

नए स्वरों में गाते हैं।

गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें

मस्त उधर मँडराते हैं।

नवयुग की नूतन वीणा में

नया राग, नव गान भरो।


उठो, धरा के अमर सपूतों।

पुन: नया निर्माण करो।।2।।


कली-कली खिल रही इधर

वह फूल-फूल मुस्काया है।

धरती माँ की आज हो रही

नई सुनहरी काया है।

नूतन मंगलमय ध्वनियों से

गुँजित जग-उद्यान करो।


उठो, धरा के अमर सपूतों।

पुन: नया निर्माण करो।।3।।


सरस्वती का पावन मंदिर

शुभ संपत्ति तुम्हारी है।

तुममें से हर बालक इसका

रक्षक और पुजारी है।

शत-शत दीपक जला ज्ञान के

नवयुग का आह्वान करो।


उठो, धरा के अमर सपूतों।

पुन: नया निर्माण करो।।4।।


-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी


ऐ मेरे वतन के लोगों- प्रदीप/देशभक्ति कविता

ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा

ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा


पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए

कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए

ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी

जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आज़ादी

जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी

संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी

जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली

जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली

क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वो अभिमानी

जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी

सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी

जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी

जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी


थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठाके

दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के

जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं

खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं


थे धन्य जवान वो अपने

थी धन्य वो उनकी जवानी

जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

जय हिंद जय हिंद की सेना

जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद


ऐ मेरे प्यारे वतन - प्रेम धवन/देशभक्ति कविता

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझ पे दिल कुरबान
तू ही मेरी आरजू़, तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान
तेरे दामन से जो आए
उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस जुबाँ को
जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी
सबसे रंगी तेरी शाम
तुझ पे दिल कुरबान

माँ का दिल बनके कभी
सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं-सी बेटी
बन के याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको
उतना तड़पाता है तू
तुझ पे दिल कुरबान

छोड़ कर तेरी ज़मीं को
दूर आ पहुँचे हैं हम
फिर भी है ये ही तमन्ना
तेरे ज़र्रों की कसम
हम जहाँ पैदा हुए उस
जगह पे ही निकले दम
तुझ पे दिल कुरबान

- प्रेम धवन

ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ -रामसनेहीलाल शर्मा यायावर/देशभक्ति कविता


उगे न जहाँ घृणा की फसलें
मन-मन स्नेह सिंधु लहराएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ
जहाँ तृप्त आयत कुरान की हँस कर वेद मंत्र दुहराएँ
आसन पर बैठा गिरिजाघर गुरुवाणी के सबद सुनाएँ
'धम्मं शरणं गच्छामि' से गली-गली गुंजित हो जाएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

वन में जहाँ वसंत विचरता, आम्रकुंज में हँसती होली
हर आँगन में दीवाली हो, चौराहों पर हँसी ठिठोली
दर्द अवांछित अभ्यागत हो, निष्कासित हों सब पीड़ाएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

रक्षित हों राधायें अपने कान्हा के सशक्त हाथों में
दृष्टि दशानन उठे सिया पर प्रलंयकर जागे माथों में
अभिनंदित साधना उमा की पूजित हों घर-घर ललनायें
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

आँगन-आँगन ठुमक-ठुमक कर नाचे ताली बजा कन्हैया
चाँदी-सी चमके यमुना रज रचे रास हो ताता थैया
पनघट पर हँसती गोपी के गालों पर गड्ढे पड़ जाएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

किसी आँख में आँसू आए सबका मन गीला हो जाए
अगर पड़ोसी भूखा हो तो मुझसे भोजन किया न जाए
ईद, दीवाली, बैसाखी पर सब मिल-जुल कर मंगल गाएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

हर विंध्याचल झुककर छोटी चट्टानों को गले लगाए
छोटी से छोटी सरिता को सागर की छाती दुलराए
हर घर नंदनवन हो जाए हँसे फूल कलियाँ मुस्काएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

'एक माटी के सब भांडे हैं' कबिरा सबको भेद बताए
ब्रज की महिमा को गा-गा कर कोई कवि रसखान सुनाए
एक अकाल पुरुष के सच का नानक सबको भेद बताएँ
ऐसा हिंदुस्तान बनाएँ

रामसनेहीलाल शर्मा यायावर

ऐ इंसानों- गजानन माधव मुक्ति बोध/देशभक्ति कविता


आँधी के झूले पर झूलो।

आग बबूला बनकर फूलो

कुरबानी करने को झूमो

लाल सबेरे का मुँह चूमो

ऐ इंसानो ओस न चाटो

अपने हाथों पर्वत काटो

पथ की नदियाँ खींच निकालो

जीवन पीकर प्यास बुझा लो

रोटी तुमको राम न देगा

वेद तुम्हारा काम न देगा

जो रोटी का युद्ध करेगा

वह रोटी को आप वरेगा।।


चल मरदाने- हरिवंश राय बच्चन/देशभक्ति कविता


चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,
मन मुसकाते, गाते गीत।
एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,
मन मुसकाते, गाते गीत।

हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊँची पेशानी,
सब के प्रेरक, रक्षक, मीत।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,
मन मुसकाते, गाते गीत।

जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुड़ेगा,
उसका जीवन उसकी जीत।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पाँव बढ़ाते,
मन मुसकाते, गाते गीत।


घाटी मेरे देश की-नीरज पांडेय/देशभक्ति कविता


नदी, झील, झरनों की झाँकी मनमोहक है,
सुमनों से सजी घाटी-घाटी मेरे देश की।
सुरसरिता-सी सौम्य संस्कृति की सुवास,
विश्व भर में गई है बाँटी मेरे देश की।
पूरी धऱती को एक परिवार मानने की,
पावन प्रणम्य परिपाटी मेरे देश की।
शत-शत बार बंदनीय अभिनंदनीय,
चंदन से कम नहीं माटी मेरे देश की।।

कान्हा की कला पे रीझकर भक्ति भावना
के, छंद रचते हैं रसखान मेरे देश में।
तुलसी के साथ में रहीम से मुसलमान,
है निभाते कविता की आन मेरे देश में।

बिसमिल और अशफाक से उदाहरण,
साथ-साथ होते कुरबान मेरे देश में।
जब भी ज़रूरत पड़ी है तब-तब हुए,
एक हिंदू व मुसलमान मेरे देश में।

जय जयति भारत भारती - नरेंद्र शर्मा/देशभक्ति कविता


जय जयति भारत भारती!
अकलंक श्वेत सरोज पर वह
ज्योति देह विराजती!
नभ नील वीणा स्वरमयी
रविचंद्र दो ज्योतिर्कलश
है गूँज गंगा ज्ञान की
अनुगूँज में शाश्वत सुयश

हर बार हर झंकार में
आलोक नृत्य निखारती
जय जयति भारत भारती!

हो देश की भू उर्वरा
हर शब्द ज्योतिर्कण बने
वरदान दो माँ भारती
जो अग्नि भी चंदन बने

शत नयन दीपक बाल
भारत भूमि करती आरती
जय जयति भारत भारती!


जय जन भारत-सुमित्रा नंदन पंत/देशभक्ति कविता


जय जन भारत जन- मन अभिमत


जन गणतंत्र विधाता

जय गणतंत्र विधाता


गौरव भाल हिमालय उज्जवल

हृदय हार गंगा जल

कटि विंध्याचल सिंधु चरण तल

महिमा शाश्वत गाता

जय जन भारत ...


हरे खेत लहरें नद-निर्झर

जीवन शोभा उर्वर

विश्व कर्मरत कोटि बाहुकर

अगणित-पद-ध्रुव पथ पर

जय जन भारत ...


प्रथम सभ्यता ज्ञाता

साम ध्वनित गुण गाता

जय नव मानवता निर्माता

सत्य अहिंसा दाता


जय हे- जय हे- जय हे

शांति अधिष्ठाता

जय -जन भारत...

जहाँ डाल-डाल पर- राजेंद्र किशन/देशभक्ति कविता


जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा

वो भारत देश है मेरा

जहाँ सत्य, अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा

वो भारत देश है मेरा

ये धरती वो जहाँ ऋषि मुनि जपते प्रभु नाम की माला

जहाँ हर बालक एक मोहन है और राधा हर एक बाला

जहाँ सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा

वो भारत देश है मेरा


अलबेलों की इस धरती के त्योहार भी हैं अलबेले

कहीं दीवाली की जगमग है कहीं हैं होली के मेले

जहाँ राग रंग और हँसी खुशी का चारों ओर है घेरा

वो भारत देश है मेरा


जब आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले

जहाँ किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले

प्रेम की बंसी जहाँ बजाता है ये शाम सवेरा

वो भारत देश है मेरा


जय तिरंग ध्वज- रमेश कौशिक/देशभक्ति कविता



जय तिरंग ध्वज लहराओ

दुर्ग और मीनारों पर

मंदिर और घर द्वारों पर

अंबर के नीले तल पर

सागर के गहरे जल पर

सत्य पताका फहराओ

जय तिरंग ध्वज लहराओ


मुक्ति दिवस भारत माँ का

बीता समय निराशा का

युग-युग तक मिटने के बाद

पुन: हो रहे हैं आबाद


विजय गीत सौ-सौ गाओ

जय तिरंग ध्वज लहराओ


मिटी हमारी लाचारी

अब उठने की है बारी

आओ सब मिल काम करें

सारे जग में नाम करें


जन जन मन को हरषाओ

जय तिरंग ध्वज लहराओ


तिरंगा/कविता वाचक्नवी/देशभक्ति कविता


संधि की

पावन धवल रेखा

हमारी शांति का

उद्घोष करती

पर नहीं क्या ज्ञात तुमको

चक्र भी तो

पूर्वजों से

थातियों में ही मिला है,

शीश पर अंगार धरकर

आँख में हैं स्वप्न

धरती की फसल के,

हाथ में

हलधर सम्हाले

चक्र

हरियाली धरा की खोजते हैं,

और है यह चक्र भी वह

ले जिसे अभिमन्यु

जूझा था समर में,

है यही वह चक्र जिसने

क्रूरता के रूप कुत्सित

कंस या शिशुपाल की

ग्रीवा गिराई।


हम सदा से

इन ति- रंगों में

सजाए चक्र

हो निर्वैर

लड़ते हैं अहिंसक, 

और सारे शोक, पीड़ा को हराते

लौह-स्तंभों पर

समर के

गीत लिखते,

जय-विजय के

लेख खोदें,

हम

अ- शोकों के

पुरोधा हैं।


झंडा ऊँचा रहे हमारा- श्यामलाल गुप्त पार्षद/देशभक्ति कविता


विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

सदा शक्ति बरसाने वाला,

प्रेम सुधा सरसाने वाला

वीरों को हरषाने वाला

मातृभूमि का तन-मन सारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।


स्वतंत्रता के भीषण रण में,

लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,

काँपे शत्रु देखकर मन में,

मिट जावे भय संकट सारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।


इस झंडे के नीचे निर्भय,

हो स्वराज जनता का निश्चय,

बोलो भारत माता की जय,

स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।


आओ प्यारे वीरों आओ,

देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,

एक साथ सब मिलकर गाओ,

प्यारा भारत देश हमारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।


इसकी शान न जाने पावे,

चाहे जान भले ही जावे,

विश्व-विजय करके दिखलावे,

तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।


तिरंगा गीत- सुनील जोगी/देशभक्ति कविता


चाँद, सूरज-सा तिरंगा

प्रेम की गंगा तिरंगा

विश्व में न्यारा तिरंगा

जान से प्यारा तिरंगा

सारे हिंदुस्तान की

बलिदान-गाथा गाएगा

ये तिरंगा आसमाँ पर

शान से लहराएगा।

शौर्य केसरिया हमारा

चक्र है गति का सितारा

श्वेत सब रंगों में प्यारा

शांति का करता इशारा

ये हरा, खुशियों भरा है

सोना उपजाती धरा है

हर धरम, हर जाति के

गुलशन को ये महकाएगा।


ये है आज़ादी का परचम

इसमें छह ऋतुओं के मौसम

इसकी रक्षा में लगे हम

इसका स्वर है वंदेमातरम

साथ हो सबके तिरंगा

हाथ हो सबके तिरंगा

ये तिरंगा सारी दुनिया

में उजाला लाएगा।


ये तिरंगा ये तिरंगा ये हमारी शान है- राजेश चेतन/देशभक्ति कविता



ये तिरंगा ये तिरंगा ये हमारी शान है

विश्व भर में भारती की ये अमिट पहचान है।

ये तिरंगा हाथ में ले पग निरंतर ही बढ़े

ये तिरंगा हाथ में ले दुश्मनों से हम लड़े

ये तिरंगा दिल की धड़कन ये हमारी जान है


ये तिरंगा विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है

ये तिरंगा वीरता का गूँजता इक मंत्र है

ये तिरंगा वंदना है भारती का मान है


ये तिरंगा विश्व जन को सत्य का संदेश है

ये तिरंगा कह रहा है अमर भारत देश है

ये तिरंगा इस धरा पर शांति का संधान है


इसके रेषों में बुना बलिदानियों का नाम है

ये बनारस की सुबह है, ये अवध की शाम है

ये तिरंगा ही हमारे भाग्य का भगवान है


ये कभी मंदिर कभी ये गुरुओं का द्वारा लगे

चर्च का गुंबद कभी मस्जिद का मिनारा लगे

ये तिरंगा धर्म की हर राह का सम्मान है


ये तिरंगा बाईबल है भागवत का श्लोक है

ये तिरंगा आयत-ए-कुरआन का आलोक है

ये तिरंगा वेद की पावन ऋचा का ज्ञान है


ये तिरंगा स्वर्ग से सुंदर धरा कश्मीर है

ये तिरंगा झूमता कन्याकुमारी नीर है

ये तिरंगा माँ के होठों की मधुर मुस्कान है


ये तिरंगा देव नदियों का त्रिवेणी रूप है

ये तिरंगा सूर्य की पहली किरण की धूप है

ये तिरंगा भव्य हिमगिरि का अमर वरदान है


शीत की ठंडी हवा, ये ग्रीष्म का अंगार है

सावनी मौसम में मेघों का छलकता प्यार है

झंझावातों में लहरता ये गुणों की खान है


ये तिरंगा लता की इक कुहुकती आवाज़ है

ये रवि शंकर के हाथों में थिरकता साज़ है

टैगोर के जनगीत जन गण मन का ये गुणगान है


ये तिंरगा गांधी जी की शांति वाली खोज है

ये तिरंगा नेता जी के दिल से निकला ओज है

ये विवेकानंद जी का जगजयी अभियान है


रंग होली के हैं इसमें ईद जैसा प्यार है

चमक क्रिसमस की लिए यह दीप-सा त्यौहार है

ये तिरंगा कह रहा- ये संस्कृति महान है


ये तिरंगा अंदमानी काला पानी जेल है

ये तिरंगा शांति औ' क्रांति का अनुपम मेल है

वीर सावरकर का ये इक साधना संगान है


ये तिरंगा शहीदों का जलियाँवाला बाग़ है

ये तिरंगा क्रांति वाली पुण्य पावन आग है

क्रांतिकारी चंद्रशेखर का ये स्वाभिमान है


कृष्ण की ये नीति जैसा राम का वनवास है

आद्य शंकर के जतन-सा बुद्ध का सन्यास है

महावीर स्वरूप ध्वज ये अहिंसा का गान है


रंग केसरिया बताता वीरता ही कर्म है

श्वेत रंग यह कह रहा है, शांति ही धर्म है

हरे रंग के स्नेह से ये मिट्टी ही धनवान है


ऋषि दयानंद के ये सत्य का प्रकाश है

महाकवि तुलसी के पूज्य राम का विश्वास है

ये तिरंगा वीर अर्जुन और ये हनुमान है


तुझे कुछ और भी दूँ /रामावतार त्यागी/देशभक्ति कविता



मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित

चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ

देश तुझको देखकर यह बोध पाया

और मेरे बोध की कोई वजह है

स्वर्ग केवल देवताओं का नहीं है

दानवों की भी यहाँ अपनी जगह है

स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण क्षण समर्पित

चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ


रंग इतने रूप इतने यह विविधता

यह असंभव एक या दो तूलियों से

लग रहा है देश ने तुझको पुकारा

मन बरौनी और बीसों उँगलियों से

मान अर्पित गान अर्पित रक्त का कण कण समर्पित

चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ


सुत कितने पैदा किए जो तृण भी नहीं थे

और वे भी जो पहाड़ों से बड़े थे

किंतु तेरे मान का जब वक्त आया

पर्वतों के साथ तिनके भी लड़े थे

ये सुमन लो, ये चमन लो, नीड़ का तृण तृण समर्पित

चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ

तिरंगा सबसे ऊँचा रहे- राममूर्ति सिंह अधीर/देशभक्ति कविता


इस झंडे के नीचे आ हर भारतवासी कहे-
तिरंगा सबसे ऊँचा रहे।
इस झंडे को पाने के हित
हमने अगणित प्राण दिए।
आह न की बलि-वेदी पर
जब शोणित से स्नान किए।
फाँसी के तख़्ते पर झूले
ज़ुल्म अनेकों सहे। तिरंगा सबसे ऊँचा रहे।।

श्वेत, हरित, केसरिया बाना
पहन तिरंगा लहराया।
शांति, क्रांति, उन्नति का देखो,
संदेशा देने आया।
जन-जन करे प्रणाम इसे
कसकर हाथों में गहे, तिरंगा सबसे ऊँचा रहे।।

तन-मन-धन का पूर्ण समर्पण
आओ, सब करते जाएँ।
इसी राष्ट्र-ध्वज के नीचे हम
आज शपथ मिलकर खाएँ
आँच न आने देंगे इस पर,
चाहे दुनिया दहे, तिरंगा सबसे ऊँचा रहे।।

हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई
एक बाग़ के फूल सभी।
भारत के उपवन की शोभा
घटने पाए नहीं कभी।
दया, अहिंसा, प्रेम-भाव की
सदा त्रिवेणी बहे, तिरंगा सबसे ऊँचा रहे।।


देशभक्तों नमन- महेश मूलचंदानी/देशभक्ति कविता


जाँ पे खेला बचाया है तुमने वतन

ज़ुल्म सहते रहे गोली खाते रहे

बीच लाशों के तुम मुस्कुराते रहे

कतरे-कतरे से तुमने ये सींचा चमन

आज करता हूँ मैं देशभक्तों नमन

साँप बनकर जो आए थे डसने हमें

कुचला पैरों से तुमने मिटाया उन्हें

कर दिया पल में ही दुश्मनों का दमन

आज करता हूँ मैं देशभक्तों नमन


सर झुकाया नहीं सर कटाते रहे

देख बलिदान दुश्मन भी जाते रहे

माँ ने बाँधा था सर पे तुम्हारे कफ़न

आज करता हूँ मैं देशभक्तों नमन

देश का प्रहरी- मेघराज मुकुल/देशभक्ति कविता


सिपाही खड़ा वह अडिग हिम शिखर पर

उसे आज आशिष भरी भावना दो।

नदी से छलकती हँसी उनको भेजो

लहरती फसल की उसे अर्चना दो।।

महकती कली की मधुर आस उसके

चरण में उँडेलो फटेगी उदासी।

नए अंकुरों की उसे दो उमंगे

विजय गीत की मुस्कराहट ज़रा-सी।।


तड़ित मेघ झुक कर उसे दे सहारा

कि जिसने है मस्तक धरा का उभारा।

निशा प्रात सूरज हवा चाँद तारा

उसे दे सहारा निरंतर सहारा।।


ग़लत मत समझना कि वह है अकेला

करोड़ों हैं हम सब उसी एक पीछे

उसी एक में हम अनेकों समाये

हमीं ने उसी के प्रबल प्राण सींचे।।


जहाँ बर्फ़ पड़ती हवाएँ हैं चलती

जहाँ नित्य तूफ़ान देते चुनौती

जहाँ गोलियों की ही बौछार होती

जहाँ ज़िंदगी कष्ट सहकर न रोती।।


वहाँ आज हिम्मत लगाती है पहरा

वहाँ आज इज़्ज़त विजय गीत गाए

कहो मत वहाँ पर विवश आज कोई

जहाँ आज प्रहरी सदा मुस्कराएँ।।


ध्वजा वंदना- रामधारी सिंह 'दिनकर'/देशभक्ति कविता


नमो, नमो, नमो।

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

नमो नगाधिराज - शृंग की विहारिणी!

नमो अनंत सौख्य - शक्ति - शील - धारिणी!

प्रणय - प्रसारिणी, नमो अरिष्ट - वारिणी!

नमो मनुष्य की शुभेषणा - प्रचारिणी!

नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!


हम न किसी का चाहते तनिक अहित, अपकार।

प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार।

सत्य न्याय के हेतु

फहर-फहर ओ केतु

हम विचरेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु

पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!


तार-तार में हैं गुँथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग!

दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग।

सेवक सैन्य कठोर

हम चालीस करोड़

कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर

करते तव जय गान

वीर हुए बलिदान,

अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिंदुस्तान!

प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

देश मेरा प्यारा- अभिरंजन कुमार/देशभक्ति कविता


देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा

धरती पे जैसे स्वर्ग है।

जां भी इसे उत्सर्ग है।


ऊँचे पहाड़ों में फूलों की घाटी।

प्यारे पठारों में खनिजों की बाटी।

माटी में मोगरा-गंध है।

बजता हवाओं में छंद है।

घन-घन घटाएँ, मुझको बुलाएँ।

हरे-भरे खेतों में सरगम बजाएँ।

बूँदों की भाषा सुरीली।

गीली हुई तीली-तीली।

जहाँ दिखे झरना, वहीं धरूँ धरना।

नदियों के पानी में चाहूँ मैं तरना।

मन ये गगन में उड़े रे।

ऐसे ये जी से जुड़े रे।


दूर मेरा देश ये गाँवों में बसता।

मुझको पुकारे है एक-एक रस्ता।

पैठा पवन मेरे पाँव में।

आना जी तू भी गाँव में।

देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा।

धरती पर जैसे स्वर्ग है।

जाँ भी इसे उत्सर्ग



नमामि मातु भारती!- गोपाल प्रसाद व्यास/देशभक्ति कविता


नमामि मातु भारती!

हिमाद्रि-तुंग-शृंगिनी

त्रिरंग-अंग-रंगिनी

नमामि मातु भारती

सहस्त्र दीप आरती।

समुद्र-पाद-पल्लवे

विराट विश्व-वल्लभे

प्रबुद्ध बुद्ध की धरा

प्रणम्य हे वसुंधरा।


स्वराज्य-स्वावलंबिनी

सदैव सत्य-संगिनी

अजेय श्रेय-मंडिता

समाज-शास्त्र-पंडिता।


अशोक-चक्र-संयुते

समुज्ज्वले समुन्नते

मनोज्ञा मुक्ति-मंत्रिणी

विशाल लोकतंत्रिणी।


अपार शस्य-संपदे

अजस्त्र श्री पदे-पदे

शुभंकरे प्रियंवदे

दया-क्षमा-वंशवदे।


मनस्विनी तपस्विनी

रणस्थली यशस्विनी

कराल काल-कालिका

प्रचंड मुँड-मालिका।


अमोघ शक्ति-धारिणी

कुराज कष्ट-वारिणी

अदैन्य मंत्र-दायिका

नमामि राष्ट्र-नायिका।


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