Kaifi Azmi Ghazal / कैफ़ी आज़मी की ग़ज़लें

 तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो / कैफ़ी आज़मी

फ़िल्म: अर्थ ( 1982)
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
आँखों में नमी हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
बन जाएँगे ज़हर पीते पीते

ये अश्क जो पीते जा रहे हो
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है

तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो


झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं / कैफ़ी आज़मी

फ़िल्म: अर्थ ( 1982 )
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं

दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता

मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं
वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है

उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं
तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को

तुझे भी अपने पे ये ए'तिबार है कि नहीं


मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता / कैफ़ी आज़मी

मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता



यूँही कोई मिल गया था सर-ए-राह चलते चलते / कैफ़ी आज़मी

यूँही कोई मिल गया था सर-ए-राह चलते चलते
वहीं थम के रह गई है मिरी रात ढलते ढलते

जो कही गई न मुझ से वो ज़माना कह रहा है
कि फ़साना बन गई है मिरी बात टलते टलते

शब-ए-इंतिज़ार आख़िर कभी होगी मुख़्तसर भी
ये चराग़ बुझ रहे हैं मिरे साथ जलते जलते



इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े / कैफ़ी आज़मी

कैफ़ी आज़मी की पहली ग़ज़ल जो सिर्फ 11 साल की उम्र में लिखी गयी

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े

साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर
मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े

मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े



शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा / कैफ़ी आज़मी

शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा

बानी-ए-जश्न-ए-बहाराँ ने ये सोचा भी नहीं
किस ने काँटों को लहू अपना पिलाया होगा

बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे
हर सराब उन को समुंदर नज़र आया होगा




आज सोचा तो आँसू भर आए / कैफ़ी आज़मी

आज सोचा तो आँसू भर आए
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए

हर क़दम पर उधर मुड़ के देखा
उन की महफ़िल से हम उठ तो आए

रह गई ज़िंदगी दर्द बन के
दर्द दिल में छुपाए छुपाए

दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए



मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली / कैफ़ी आज़मी

मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली
इसी तरह से बसर हम ने ज़िंदगी कर ली

अब आगे जो भी हो अंजाम देखा जाएगा
ख़ुदा तलाश लिया और बंदगी कर ली

नज़र मिली भी न थी और उन को देख लय्या
ज़बाँ खुली भी न थी और बात भी कर ली

वो जिन को प्यार है चाँदी से इश्क़ सोने से
वही कहेंगे कभी हम ने ख़ुद-कुशी कर ली



क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं / कैफ़ी आज़मी

क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं
इस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गईं

दीवाना पूछता है ये लहरों से बार बार
कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गईं

अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं

पैमाना टूटने का कोई ग़म नहीं मुझे
ग़म है तो ये कि चाँदनी रातें बिखर गईं

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे
इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं



की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ / कैफ़ी आज़मी

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ
थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ

गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो
डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ

मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे
हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ

रक़्स-ए-सबा के जश्न में हम तुम भी नाचते
ऐ काश तुम भी आ गए होते सबा के साथ

इक्कीसवीं सदी की तरफ़ हम चले तो हैं
फ़ित्ने भी जाग उट्ठे हैं आवाज़-ए-पा के साथ

ऐसा लगा ग़रीबी की रेखा से हूँ बुलंद
पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ



हाथ आ कर लगा गया कोई / कैफ़ी आज़मी

हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई



जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा / कैफ़ी आज़मी

जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा
बिछड़ के उन से सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा

लबों से उड़ गया जुगनू की तरह नाम उस का
सहारा अब मिरे घर में न रौशनी का रहा

गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे
ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा



या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझ को अभी चुप रहने दो / कैफ़ी आज़मी

या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझ को अभी चुप रहने दो
मैं ग़म को ख़ुशी कैसे कह दूँ जो कहते हैं उन को कहने दो

ये फूल चमन में कैसा खिला माली की नज़र में प्यार नहीं
हँसते हुए क्या क्या देख लिया अब बहते हैं आँसू बहने दो

इक ख़्वाब ख़ुशी का देखा नहीं देखा जो कभी तो भूल गए
माँगा हुआ तुम कुछ दे न सके जो तुम ने दिया वो सहने दो

क्या दर्द किसी का लेगा कोई इतना तो किसी में दर्द नहीं
बहते हुए आँसू और बहें अब ऐसी तसल्ली रहने दो



सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने / कैफ़ी आज़मी

सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालो
हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने

मिरे जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग
सुना है बंद किए जा रहे हैं बुत-ख़ाने

जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने

बहार आए तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने

हुआ है हुक्म कि 'कैफ़ी' को संगसार करो
मसीह बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने



ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले / कैफ़ी आज़मी

ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया क़ाफ़िला तो चले

चाँद सूरज बुज़ुर्गों के नक़्श-ए-क़दम
ख़ैर बुझने दो उन को हवा तो चले

हाकिम-ए-शहर ये भी कोई शहर है
मस्जिदें बंद हैं मय-कदा तो चले

उस को मज़हब कहो या सियासत कहो
ख़ुद-कुशी का हुनर तुम सिखा तो चले

इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊँगा
आप ईंटों की हुरमत बचा तो चले

बेलचे लाओ खोलो ज़मीं की तहें
मैं कहाँ दफ़्न हूँ कुछ पता तो चले


पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए / कैफ़ी आज़मी

पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए
हम चाँद से आज लौट आए

दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गए मेहरबान साए

जंगल की हवाएँ आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए

लैला ने नया जनम लिया है
है क़ैस कोई जो दिल लगाए

है आज ज़मीं का ग़ुस्ल-ए-सेह्हत
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाए

सहरा सहरा लहू के खे़मे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आए


लाई फिर एक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में / कैफ़ी आज़मी

लाई फिर इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में
फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में

आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में

जुर्म है तेरी गली से सर झुका कर लौटना
कुफ़्र है पथराव से घबराना तेरे शहर में

शाह-नामे लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर
हर जगह है दफ़्न इक अफ़्साना तेरे शहर में

कुछ कनीज़ें जो हरीम-ए-नाज़ में हैं बारयाब
माँगती हैं जान ओ दिल नज़राना तेरे शहर में

नंगी सड़कों पर भटक कर देख जब मरती है रात
रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में


बहारो मेरा जीवन भी सँवारो / कैफ़ी आज़मी

बहारो मेरा जीवन भी सँवारो
कोई आए कहीं से यूँ पुकारो

तुम्हीं से दिल ने सीखा है तड़पना
तुम्हीं को दोश दूँगी ऐ नज़ारो

सजाओ कोई कजरा लाओ गजरा
लचकती डालियो तुम फूल वारो

रचाओ मेरे इन हाथों में मेहंदी
सजाओ माँग मेरी या सिधारो

न जाने किस का साया दिल से गुज़रा
ज़रा आवाज़ देना राज़दारो



कहीं से लौट के हम लड़खड़ाए हैं क्या क्या / कैफ़ी आज़मी

कहीं से लौट के हम लड़खड़ाए हैं क्या क्या
सितारे ज़ेर-ए-क़दम रात आए हैं क्या क्या

नशेब-ए-हस्ती से अफ़्सोस हम उभर न सके
फ़राज़-ए-दार से पैग़ाम आए हैं क्या क्या

जब उस ने हार के ख़ंजर ज़मीं पे फेंक दिया
तमाम ज़ख़्म-ए-जिगर मुस्कुराए हैं क्या क्या

छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल
वहीं से धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या

उठा के सर मुझे इतना तो देख लेने दे
कि क़त्ल-गाह में दीवाने आए हैं क्या क्या

कहीं अँधेरे से मानूस हो न जाए अदब
चराग़ तेज़ हवा ने बुझाए हैं क्या क्या

You may like those ghazals too

Noon Meem Rashid Ghazal Nazm नून मीम राशिद नज़्में

Ghazals of Shaad Azimabadi Ghazal शाद अज़ीमाबादी की ग़ज़लें 

Ghazals of Shahryar Ghazal शहरयार की ग़ज़ल

Ghazals of Shakeel Badayuni Ghazal शकील बदायूनी की ग़ज़लें 

Ghazals of Waseem Barelvi Ghazal वसीम बरेलवी की ग़ज़ल

Ghazals of Mohammad Rafi Sauda Ghazal मोहम्मद रफ़ी सौदा की ग़ज़लें 

Ghazals of Hasrat Mohani Ghazal हसरत मोहानी की ग़ज़ल

Ghazals of Bashar Nawaz Ghazal बशर नवाज़ की ग़ज़लें 

Ghazals of Jaun Eliya Ghazal जौन एलिया की ग़ज़ल

 

Comments

Popular Posts

Ahmed Faraz Ghazal / अहमद फ़राज़ ग़ज़लें

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ameer Minai Ghazal / अमीर मीनाई ग़ज़लें

मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं Popular Poems of Manglesh Dabral

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

Akbar Allahabadi Ghazal / अकबर इलाहाबादी ग़ज़लें

Sant Surdas ji Bhajan lyrics संत श्री सूरदास जी के भजन लिरिक्स

Adil Mansuri Ghazal / आदिल मंसूरी ग़ज़लें

बुन्देली गारी गीत लोकगीत लिरिक्स Bundeli Gali Geet Lokgeet Lyrics

Mira Bai Ke Pad Arth Vyakhya मीराबाई के पद अर्थ सहित