Ashok Anjum Ghazal / अशोक अंजुम ग़ज़लें

 

खिड़कियों की साजिशों से अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

खिड़कियों की साजिशों से कुछ हवा की ढील से

झोपड़ी जल ही न जाए देखना कन्दील से

एक छोटा ही सही पर घाव देकर मर गई

यूँ वो चिड़िया अन्त तक लड़ती रही उस चील से

तू कचहरी की तरफ चल तो दिया पर सोच ले

फाँस गर निकली तेरी निकलेगी प्यारे कील से

धमकियाँ हैं अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

धमकियाँ हैं-सच न कहना बोटियाँ कट जाएँगी।।

जो उठाओगे कभी तो उंगलियाँ कट जाएँगी।।

आरियों को दोस्तों दावत न दो सँभलो ज़रा

वरना आँगन के ये बरगद इमलियाँ कट जाएगी।

कुछ काम कर दस की उमर है बचपना अब छोड़ दे

तेरे हिस्से की नहीं तो रोटियाँ कट जाएँगी।

दौड़ता है किस तरफ़ सिर पर रखे रंगीनियाँ

ज़िंदगी के पाँव की यों एड़ियाँ कट जाएँगी।

माँ ठहर सकता नहीं अब एक पल भी गाँव में

तेरी बीमारी में यों ही छुट्टियाँ कट जाएँगी।

कुर्सियाँ बनती हैं इनसे चाहे तुम कुछ भी करो

देख लेना क़ातिलों की बेड़ियाँ कट जाएँगी।

धमकियाँ हैं अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

धमकियाँ हैं-सच न कहना बोटियाँ कट जाएँगी।।

जो उठाओगे कभी तो उंगलियाँ कट जाएँगी।।

आरियों को दोस्तों दावत न दो सँभलो ज़रा

वरना आँगन के ये बरगद इमलियाँ कट जाएगी।

कुछ काम कर दस की उमर है बचपना अब छोड़ दे

तेरे हिस्से की नहीं तो रोटियाँ कट जाएँगी।

दौड़ता है किस तरफ़ सिर पर रखे रंगीनियाँ

ज़िंदगी के पाँव की यों एड़ियाँ कट जाएँगी।

माँ ठहर सकता नहीं अब एक पल भी गाँव में

तेरी बीमारी में यों ही छुट्टियाँ कट जाएँगी।

कुर्सियाँ बनती हैं इनसे चाहे तुम कुछ भी करो

देख लेना क़ातिलों की बेड़ियाँ कट जाएँगी।

हर एक राज़ कह दिया बस एक जवाब ने अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

हर एक राज़ कह दिया बस एक जवाब ने

हमको सिखाया वक़्त ने, तुमको किताब ने

इस दिल में बहुत देर तलक सनसनी रही

पन्ने यूँ खोले याद के, सूखे गुलाब ने

ये खुरदुरी ज़मीन अधिक खुरदुरी लगी

उलझा दिया कुछ इस तरह जन्नत के खाब ने

हालत ने हर रंग को बदरंग कर दिया

सोंपे थे जो भी रंग हमें आफताब ने

दो झील, एक चाँद, खिले फूल, तितलियाँ

क्या-क्या छुपा रखा था तुम्हारे नकाब ने

प्रेम की, सचाई की, बोलियाँ ही गायब हैं अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

प्रेम की सच्चाई की बोलियां ही गायब हैं

आदमी के अंदर से बिजलियां ही गायब हैं

साबजी पधारे थे सैर को गुलिस्तां की

तब से इस चमन की सब तितलियां ही गायब हैं

हाथ क्या मिलाया था दिल ही दे दिया था उन्हें

हाथ अपने देखे तो उंगलियां ही गायब हैं

यूं ही गर्भ पे जो चली आपकी ये मनमानी

कल जहां से देखोगे ल़डकियां ही गायब हैं

वे भले प़डोसी थे, आए थे नहाने को

बाथरूम की तब से टौंटियां ही गायब हैं

चीर को हरण कैसे अब करोगे दुशासन

जींस में हैं पांचाली, सा़डयां ही गायब हैं

होटलों में खाते हैं वे चिकिनओबिरयानी

और कितने हाथों से रोटियां ही गायब हैं।

आँसू अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

पीड़ा का अनुवाद हैं आँसू

एक मौन संवाद हैं आँसू

दर्द, दर्द बस दर्द ही नहीं

कभी-कभी आह्लाद हैं आँसू

जबसे प्रेम धरा पर आया

तब से ही आबाद हैं आँसू

अब तक दिल में है हलचल-सी

मुझको उनके याद हैं आँसू

कभी परिंदे कटे-परों के

और कभी सैयाद हैं आँसू

इनकी भाषा पढ़ना 'अंजुम'

मुफ़लिस की फ़रियाद हैं आँसू

तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है अशोक अंजुम ग़ज़ल / ग़ज़लें 

तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है.

तू पत्थर को भी छू ले तो बाँसुरी का स्वर निकलता है.

कमाई उम्र भर कि और क्या है, बस यही तो है

में जिस दिल में भी देखूं वो ही मेरा घर निकलता है.

मैं मंदिर नहीं जाता मैं मस्जिद भी नही जाता

मगर जिस दर पर झुक जाऊं वो तेरा दर निकलता है

ज़माना कोशिशें तो लाख करता है डराने की

तुझे जब याद करता हूँ तो सारा दर निकलता है.

यहीं रहती हो तुम खुशबू हवाओं की बताती है

यहाँ जिस ज़र्रे से मिलिए वही शायर निकलता है. 


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