मन के पास रहो का गीत /कविता
तन की दूरी क्या कर लेगी
मन के पास रहो तुम मेरे
देख रहा हूँ मैं धरती से
दूर बहुत है चाँद बिचारा
किंतु कहा करता है मन की
बातें वह किरणों के द्वारा
सपना बन कुल रात काट दो
चाहे जाना चले सवेरे
चिंता क्या मैं करूँ तुम्हारी
ख़ुद को ही जब बना न पाया
सच पूछो तो मन बहलाने
को ही कुछ गीतों को गाया
याद नहीं मेरे नयनों के
कितने आँसू गीत बने रे
जीवन से मैं खेल खेलता
और प्राण का दाँव लगाता
मेरी ही बिगड़ी मिट्टी से
मूर्ति बनाता नई विधाता
मुझ जेसे को डर ही क्या है
मरण मुझे कितना ही घेरे
सो न सका का गीत /कविता
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आईं सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
गगन बीच रुक तनिक चंद्रमा लगा मुझे समझाने
मनचाहा मन पा जाना है खेल नहीं दीवाने
और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने
देख जिसे मेरी तबियत घबराई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
रात लगी कहने सो जाओ देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना
यहाँ तुम्हारा क्या, कोई भी नहीं किसी का अपना
समझ अकेला मौत मुझे ललचाई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
मुझे सुलाने की कोशिश में जाने अनगिन तारे
लेकिन बाज़ी जीत गया मैं वे सबके सब हारे
जाते-जाते चाँद कह गया मुझसे बड़े सकारे
एक कली मुरझाने को मुस्काई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
धूप है ज़्यादा कम है छाया का गीत /कविता
धूप है ज़्यादा, कम है छाया
आख़िर यह मौसम भी आया!
टूट चुका है नींद का जादू, कोई सपना साथ नहीं है,
कहने को तो है बहुतेरा, वैसे कोई बात नहीं है!
सारी रात रहा खुलता जो,
सुबह वही घूँघट शरमाया!
धुँधली हैं तारों की गलियाँ, पाप के रस्ते चमकीले हैं,
काँटे हैं वैसे के वैसे, फूलों के चेहरे पीले हैं!
ख़ुशबू भटके मारी-मारी
मधुवन का है अंग लजाया!
साँझ के दरवाज़े तक हमको, छोड़ गई हैं दिन की राहें,
बस्ती के ऊपर फैली हैं, साँपों जैसी काली बाँहें!
मौत के रंग से ज़्यादा गहरा,
उजले इंसानों का साया!
गीत के सौदे करने वाले, दर्द की क़ीमत को क्या जानें,
कौन उन्हें जाकर समझाए, बिकते नहीं कभी दीवाने!
अंधकार के रंगमहल में,
कब कोई सूरज सो पाया।
तेज़ बहुत हैं वक़्त के पहिए, अब रुकने की बात करें क्या,
राह में क्या कुछ टूटा-फूटा, सोच इसे अब आँख भरें क्या?
आओ अब सामान सँभालें,
देर हुई यह शहर पराया!
जो न समझ सका का गीत /कविता
कोई न मिला जो समझाता
आकाश कहाँ से लाता है
इतने प्यारे-प्यारे तारे
मीठी आँखों में डूब गए
कैसे अनगिन आँसू खारे
कोई न मिला जो समझाता
फूलों को क्यों लाचार किया
जग में केवल मुस्काने को
पत्थर को क्यों न मिली वाणी
मन की आकुलता गाने को
कोई न मिला जो समझाता
कितना जीवित वंशी का स्वर
जिसको न मरण छू पाता है
रोने की तैयारी में क्यों
हर एक यहाँ मुस्काता है
कोई न मिला जो समझाता
धरती पर ऐसे कितने हैं
दे दूँ जिनको जीवन अपना
किसको अपनी साँसें गिन दूँ
बन जाऊँ मैं किसका सपना
कोई न मिला जो समझाता
यदि दर्द न होता का गीत /कविता
दुनिया बे-पहचानी ही रह जाती
यदि दर्द न होता मेरे जीवन में
मैं देख रहा हूँ काफ़ी अरसे से
दुनिया के रंग-बिरंगे आँगन को
जिसमें हर एक ढूँढ़ता फिरता है
केवल अपने-अपने मनभावन को
लेकिन मैं देख न पाता ख़ुद को भी
यदि विश्व न हँसता मेरे क्रंदन में
मन को निर्मल रखने के लालच में
जो कुछ कहना पड़ता है, कहता हूँ
पीड़ा को गीत बनाने के ख़ातिर
जो कुछ सहना पड़ता है, सहता हूँ
मेरी पीड़ा अनजानी ही रहती
यदि अश्रु न जन्मे होते लोचन में
मुझको भय लगता है उन लोगों से
जो मौसम की ही भाँति बदलते हैं
प्यारे लगते हैं लेकिन वे इंसान
जो हर मुश्किल के लिए सँभलते हैं
नफ़रत है केवल उन इंसानों से
जो शूल बने बैठे हैं मधुवन में
सुख की शीतल छाया को पाकर भी
मैं दुख की जलती धूप नहीं भूला
चंदा की उजली चाँदनियाँ पाकर
काली रातों का रूप नहीं भूला
मैं रातों को भी दिन-सा चमकाता
यदि मेरी आयु न होती बंधन में।
मुझको ज्ञात नहीं का गीत /कविता
सच मानो मुझको ज्ञात नहीं
पाँवों मे राहें भर-भर कर
चलता जैसे लहरों पर स्वर
जिसको दोनों ही प्यारे हैं
नीची धरती, ऊँचा अंबर
अंतर से जो न निकल पाए
पथ पर ऐसे कितने आए
सच मानो मुझको ज्ञात नहीं
नयनों के अनगिन जलतारे
टूटे कितना, पर कब हारे
जीवन में यह भटके ऐसे
जैसे तम में सपने प्यारे
जीवन में कितने अश्रु बहे
आँखों में कितने और रहे
सच मानो मुझको ज्ञात नहीं
मैं रोक नहीं पाया मन को
करने से प्यार किसी तन को
जो प्यास ख़तम कर दे मेरी
मैं ढूँढ़ थका ऐसे धन को
मेरे जीवन की प्यास बड़ी
या मैं, या मेरी साँस बड़ी
सच मानो मुझको ज्ञात नहीं
देवता तो हूँ नहीं का गीत /कविता
देवता तो हूँ नहीं स्वीकार करता हूँ
आदमी हूँ क्योंकि मैं तो प्यार करता हूँ
मृत्यु तो मेरे लिए है जन्म की पहचान
औ’ चिता की राख मेरे रूप की मुस्कान
दर्द मुझको दे चुका माँगे बिना संसार
माँगने पर भी मुझे जो दे न पाया प्यार
प्यार-सा बेसुध नहीं स्वीकार करता हूँ
क्योंकि मैं तो मृत्यु से व्यापार करता हूँ
गा रहा हूँ दर्द अपना, कंठ में भर गीत
चाहता हूँ गीत के संग उम्र जाए बीत
राह पर मुझको मिले हैं फूल में छिप शूल
स्वप्न भी सोना दिखा कर दे गए हैं धूल
स्वप्न-सा दुर्बल नहीं स्वीकार करता हूँ
क्योंकि जीने के लिए हर बार मरता हूँ
एक क्या अनगिन सितारे हैं गगन के साथ
किंतु पाए भर न मेरे कभी ख़ाली हाथ
पल रहा हूँ मैं किसी के प्राण में चुपचाप
बह रहा हूँ आँसुओं के साथ बन संताप
अश्रु-सा कोमल नहीं स्वीकार करता हूँ
टूट कर मैं वक्ष पर अंगार धरता हूँ
चाहता हूँ मैं करूँ मुझको मिला जो काम
छोड़ कर चिंता मिलेगा क्या मुझे परिणाम
मैं सुखी होकर कभी भूलूँ न जग का क्लेश
जो दुखों का अंत कर दे, दूँ वही संदेश
मैं दुखों की शक्ति को स्वीकार करता हूँ
क्योंकि दुखियों को गले का हार करता हूँ
उदासीन तरुणी के प्रति का गीत /कविता
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार
शायद मेरी तरह तुम्हें भी हुआ किसी से प्यार
अंबर ऊपर चाँद चूमता है तारों के गाल
तुम मत देखो चाँद शरम से हो जाओगी लाल
तुम फूलों के बीच कली हो कल खिल जाओगी
चार दिनों में भौंरों से भी हिलमिल जाओगी
बूढ़ी दुनिया की ख़ातिर हो तुम नूतन उपहार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार
वीणा के टूटे तारों-सी तुम बिल्कुल चुपचाप
लगता है तुम कहीं किसी से उलझीं अपने आप
जीवन के हाथों में तुम हो एक नई तक़दीर
तुमको अपनाने के ख़ातिर होंगे बहुत अधीर
जाने किसके लिए हो तुम इतना शृंगार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार
तुम जैसा ही सुंदर होगा सुमुखि तुम्हारा नाम
जग ने तुमको भी करना चाहा होगा बदनाम
तुमने कभी किसी से कह दी होगी मन की बात
हुई न होगी पूरी रोई होंगी पिछली रात
तुमको रोता देख हँसा होगा सारा संसार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार
तुमने भेजा होगा लिखकर पत्र किसी के पास
मिला न होगा उत्तर शायद तुम इसलिए उदास
बैठ तुम्हारी छत पर कागा बोला होगा आज
आगंतुक से मिलने को मन डोला होगा आज
तुम झुँझलाई होंगी मन में पंथ निहार-निहार
देख रहा हूँ जीवन में मैं तुमको पहली बार।
भीड़ का अकेलापन का गीत /कविता
भीड़ में भी रहता हूँ वीरान के सहारे
जैसे कोई मंदिर किसी गाँव के किनारे
जाना-अनजाना शोर आता बिन बुलाए
जीवन की आग को आवाज़ में छिपाए
दूर-दूर काली रात साँए-साँए करती
मन में न जाने कैसे-कैसे रंग भरती
अनजाना, अनथाहा अंधकार बार-बार
करता है तारों से न जाने क्या इशारे!
चारों ओर बिखरे हैं धूल भरे रास्ते
पता नहीं इनमें है कौन मेरे वास्ते
जाने कहाँ जाने के लिए हूँ यहाँ आया
किसी देवी-देवता ने नहीं यह बताया
मिलने को मिलता है सारा ही ज़माना
एक नहीं मिलता जो प्यार से पुकारे!
तन चाहे कहीं भी हो, मन है सफ़र में
हुआ मैं पराया जैसा अपने ही घर में
सूरज की आग मेरे साथ-साथ चलती
चाँदनी से मिली-जुली रात मुझे छलती
तन की थकन तो उतार ली है पथ ने
जाने कौन मन की थकन को उतारे!
कोई नहीं लगा मुझे अपना-पराया
दिल से मिला जो उसे दिल से लगाया
भेदभाव नहीं किया शूल या सुमन से
पाप-पुण्य जो भी किया, किया पूरे मन से
जैसा भी हूँ, वैसा ही हूँ समय के सामने
चाहे मुझे नाश करे, चाहे यह सँवारे।
गीतों का बादल का गीत /कविता
मैं गीत बरसने वाला बादल हूँ
प्यासे नयनों में हँसता काजल हूँ
पाँवों के नीचे गहरा सागर है
माथे के ऊपर बिखरा अंबर है
जब मेरी आँखें कलियों पर बिगड़ी
अनगिन काँटों की नोकें साथ गड़ीं
गीतों में भर-भर जीवन पीता हूँ
जब तक मेरा मन है, मैं जीता हूँ
लेकिन मरने के डर से घायल हूँ
मैं गीत बरसने वाला बादल हूँ
संगीत छलकता मेरे तन-मन से
मैं हूँ गीतों का साथी बचपन से
रंगीन तितलियाँ मन बहलाती हैं
स्वाधीन बिजलियाँ पंथ दिखाती हैं
मैं बूँद-बूँद से बाँधे हूँ सागर
मालूम नहीं है मुझको अपना घर
मैं नीले नभ में उड़ता आँचल हूँ
मैं गीत बरसने वाला बादल हूँ
मैं चाँद-सितारों को चूमा करता
उजड़ी गलियों में भी घूमा करता
मुझ पर सबका अधिकार बराबर है
पानी-सा कोमल मेरा अंतर है
नभ की गंगा में रोज़ नहाता हूँ
औ’ द्वार-द्वार जलधार बिछाता हूँ
धरती की गोदी में गंगाजल हूँ
मैं गीत बरसने वाला बादल हूँ
मुझसे मिलने को प्यास मचलती है
अंतर में तपसिन बिजली पलती है
मरुथल में जल के फूल लुटाता हूँ
बूँदों से पथ की धूल उठाता हूँ
प्यासों की ख़ातिर सागर छलता हूँ
मिटकर बनने के लिए मचलता हूँ
मैं जीवन में यौवन की हलचल हूँ
मैं गीत बरसने वाला बादल हूँ।
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| Ramanath Awasthi |
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