लालनाथ के दोहे (जसनाथ संप्रदाय) Lalnath ke Dohe
होफाँ ल्यो हरनांव की, अमी अमल का दौर।
साफी कर गुरुग्यान की, पियोज आठूँ प्होर॥
क्यूँ पकड़ो हो डालियाँ, नहचै पकड़ो पेड़।
गउवाँ सेती निसतिरो, के तारैली भेड़॥
टोपी धर्म दया, शील की सुरंगा चोला।
जत का जोग लंगोट, भजन का भसमी गोला॥
खेलौ नौखंड माँय, ध्यान की तापो धूणी।
सोखौ सरब सुवाद, जोग की सिला अलूणी॥
अवल ग़रीबी अंग बसै, सीतल सदा सुभाव।
पावस बूटा परेम रा, जल सू सींचो जाव॥
प्रेम कटारी तन बहै, ग्यान सेल का घाव।
सनमुख जूझैं सूरवाँ, से लोपैं दरियाव॥
‘लालू’ क्यूँ सूत्याँ सरै, बायर ऊबो काल।
जोखो है इण जीव नै, जँवरो घालै जाल॥
लाय लगी घर आपणै, घट भीतर होली।
शील समँद में न्हाइये, जाँ हंसा टोली॥
हंसा तो मोती चुगैं, बुगला गार तलाई।
हरिजन हरि सूँ यूँ मिल्या, ज्यूँ जल में रस भाई॥
जुरा मरण जग जलम पुनि, ऐ जुग दुःख घणाई।
चरणं सरेवाँ राजरा, राख लेव शरणाई॥
करमाँ सूँ कला भया, दीसो दूँ दाध्या।
इक सुमरण सामूँ करो, जद पड़सी लाधा॥
भली बुरी दोनूँ तजो, माया जाणो ख़ाक।
आदर जाकूँ दीजसौ, दरगा खुलिया ताक॥
स्वामी शिव साधक गुरु, अब इक बात कहूँ।
कूँकर हो हम आवणू, बिच में लागी दूँ॥
हरख जपो हरदुवार, सुरत की सैंसरधारा।
माहे मन्न महेश, अलिल का अंत फुँवारा॥
साईं बड़ो सिलावटो, जिण आ काया कोरी।
ख़ूब रखाया काँगरा, नीकी नौ मोरी॥
काया में कवलास, न्हाय नर ही की पैड़ी।
बह जमना भरपूर, नितोपती गंगा नैड़ी॥
ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।
ररै ममै सूँ निसतिर्यां, कोड़ अठासी रिख॥
लागू हैं बोला जणा, घर-घर माहीं दोखी।
गुज कुणा सूँ कीजिए, कुण है थारो सोखी॥
जोबन हा जद जतन हा, काया पड़ी बुढ़ाँण।
सुकी लकड़ी ना लुलै, किस बिध निकसै काण॥
अलख पुरी अलगी रही, ओखी घाटी बीच।
आगैं कूँकर जाइये, पग-पग माँगैं रीच॥
हुलका झीणा पातला, जमीं सूँ चौड़ा।
जोगी ऊँचा आभ सूँ, राई सूँ ल्होड़ा॥
कर सूँ तो बाँटै नहीं, बीजाँ सेती आड।
वै नर जासीं नारगी, चौरासी की खाड॥
ऊमर तो बोली गई, आगैं ओछी आव।
बेड़ी समदर बीच में, किण बिद लंगसी न्याव
निरगुण सेती निसतिया, सुरगुण सूँ सीधा।
कूड़ा कोरा रह गया, कोई बिरला बीधा॥
‘लालू’ ओ जी आँधलो, आगैं अलसीड़ा।
झरपट बावै सरपणी, पिंड भुगतै पीड़ा॥
खँमा खड़ाऊ राख, रहत का डंड कमंडल।
रैणी रह सतबोल, लोपज्या ओखा मंडल॥
पीछै सूँ जम घेरसी, टेकरै काल किरोई।
कुण आरोगै घीव, जीमसी कूण रसोई॥
साधाँ में अधवेसरा, ज्यूँ घासा में लाँप।
जल बिन जौड़े क्यू बड़ो, पगाँ बिलूमै काँप॥
पिरथी भूली पीव कूँ, पड्या समदराँ खोज।
मेरै हाँसै मैं हँसूं, दुनिया जाणै रोज॥
बाँटो बिसवंत भाग, देव थानै दसवंत छोड़ी।
अवस जीव जा हार, टेक्सी नहचै गोड़ी॥
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