निपट निरंजन के दोहे / Nipat Niranjan ke Dohe
मुह देखे का प्यार है, देखा सब संसार।
पैसे दमरी पर मरे, स्वार्थी सब व्यवहार॥
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।
बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
मन की ममता ना गई, नीच न छोड़े चाल।
रुका सुखा जो मिले, ले झोली में डाल॥
जब हम होते तू नहीं, अब तू है हम नाहीं।
जल की लहर जल में रहे जल केवल नाहीं॥
जहाँ पवन की गती नहीं, रवि शशी उदय न होय।
जो फल ब्रह्मा नहीं रच्यो, निपट मांगत सोय॥
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