यगाना चंगेज़ी की ग़ज़लें / Yagana Changezi Ghazals
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता / यगाना चंगेज़ी
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता
दिल-ए-बे-हौसला है इक ज़रा सी ठेस का मेहमाँ
वो आँसू क्या पिएगा जिस को ग़म खाना नहीं आता
सरापा राज़ हूँ मैं क्या बताऊँ कौन हूँ क्या हूँ
समझता हूँ मगर दुनिया को समझाना नहीं आता
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया / यगाना चंगेज़ी
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
ख़ुदा बने थे 'यगाना' मगर बना न गया
पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया
इशारा पाते ही अंगड़ाई ली रहा न गया
हँसी में वादा-ए-फ़र्दा को टालने वालो
लो देख लो वही कल आज बन के आ न गया
गुनाह-ए-ज़िंदा-दिली कहिए या दिल-आज़ारी
किसी पे हँस लिए इतना कि फिर हँसा न गया
पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया
करूँ तो किस से करूँ दर्द-ए-ना-रसा का गिला
कि मुझ को ले के दिल-ए-दोस्त में समा न गया
बुतों को देख के सब ने ख़ुदा को पहचाना
ख़ुदा के घर तो कोई बंदा-ए-ख़ुदा न गया
कृष्ण का हूँ पुजारी अली का बंदा हूँ
'यगाना' शान-ए-ख़ुदा देख कर रहा न गया
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई / यगाना चंगेज़ी
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
दिल न माने तो क्या करे कोई
न दवा चाहिए मुझे न दुआ
काश अपनी दवा करे कोई
मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना
किस मरज़ की दवा करे कोई
दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
वहम की क्या दवा करे कोई
हँस भी लेता हूँ ऊपरी दिल से
जी न बहले तो क्या करे कोई
मौत भी आ सकी न मुँह-माँगी
और क्या इल्तिजा करे कोई
दर्द-ए-दिल फिर कहीं न करवट ले
अब न चौंके ख़ुदा करे कोई
इश्क़-बाज़ी की इंतिहा मालूम
शौक़ से इब्तिदा करे कोई
कोहकन और क्या बना लेता
बन के बिगड़े तो क्या करे कोई
अपने दम की है रौशनी सारी
दीदा-ए-दिल तो वा करे कोई
शम्अ क्या शम्अ का उजाला क्या
दिन चढ़े सामना करे कोई
ग़ालिब और मीरज़ा 'यगाना' का
आज क्या फ़ैसला करे कोई
अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या / यगाना चंगेज़ी
अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या
हवस ने शौक़ के पहलू दबाए हैं क्या क्या
न जाने सहव-ए-क़लम है कि शाहकार-ए-क़लम
बला-ए-हुस्न ने फ़ित्ने उठाए हैं क्या क्या
निगाह डाल दी जिस पर वो हो गया अंधा
नज़र ने रंग-ए-तसर्रुफ़ दिखाए हैं क्या क्या
इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर
इस आज कल में अबस दिन गँवाए हैं क्या क्या
पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या
गुज़र के आप से हम आप तक पहुँच तो गए
मगर ख़बर भी है कुछ फेर खाए हैं क्या क्या
बुलंद हो तो खुले तुझ पे ज़ोर पस्ती का
बड़े-बड़ों के क़दम डगमगाए हैं क्या क्या
ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा है
वो लग़्ज़िशों पे मिरी मुस्कुराए हैं क्या क्या
ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
ख़ुद अपनी ज़ात पे शक दिल में आए हैं क्या क्या
सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या / यगाना चंगेज़ी
सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या
इक इशारा-ए-फ़र्दा एक जुम्बिश-ए-लब क्या
देख दिखाता है वा'दा-ए-तज़ब्ज़ब क्या
चुल्लू-भर में मतवाली दो ही घूँट में ख़ाली
ये भरी जवानी क्या जज़्बा-ए-लबालब क्या
हाँ दुआएँ लेता जा गालियाँ भी देता जा
ताज़गी तो कुछ पहुँचे चाहता रहूँ लब क्या
शामत आ गई आख़िर कह गया ख़ुदा-लगती
रास्ती का फल पाता बंदा-ए-मुक़र्रब क्या
उल्टी-सीधी सुनता रह अपनी कह तो उल्टी कह
सादा है तू क्या जाने भाँपने का है ढब क्या
सब जिहाद हैं दिल के सब फ़साद हैं दिल के
बे-दिलों का मतलब क्या और तर्क-ए-मतलब क्या
हो रहेगा सज्दा भी जब किसी की याद आई
याद जाने कब आए ज़िंदा-दारी-ए-शब क्या
आँधियाँ रुकें क्यूँ कर ज़लज़ले थमीं क्यूँ कर
कार-गाह-ए-फ़ितरत में पासबानी-ए-रब क्या
कार-ए-मर्ग कै दिन का थोड़ी देर का झगड़ा
देखना है ये नादाँ जीने का है कर्तब क्या
पड़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले
मूज़ियों के मूज़ी को फ़िक्र-ए-नीश-ए-अक़रब क्या
मीरज़ा 'यगाना' वाह ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद
इक बला-ए-बे-दरमाँ क्या थे तुम और अब क्या
ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है / यगाना चंगेज़ी
ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है
यही जानता है तो क्या जानता है
इसी में दिल अपना भला जानता है
कि इक नाख़ुदा को ख़ुदा जानता है
वो क्यूँ सर खपाए तिरी जुस्तुजू में
जो अंजाम-ए-फ़िक्र-ए-रसा जानता है
ख़ुदा ऐसे बंदे से क्यूँ फिर न जाए
जो बैठा दुआ माँगना जानता है
ज़हे सहव-ए-कातिब कि सारा ज़माना
मुझी को सरापा ख़ता जानता है
अनोखा गुनहगार ये सादा इंसाँ
नविश्ते को अपना किया जानता है
'यगाना' तू ही जाने अपनी हक़ीक़त
तुझे कौन तेरे सिवा जानता है
ज़माने पर न सही दिल पे इख़्तियार रहे / यगाना चंगेज़ी
ज़माने पर न सही दिल पे इख़्तियार रहे
दिखा वो ज़ोर कि दुनिया में यादगार रहे
कहाँ तलक दिल-ए-ग़मनाक पर्दा-दार रहे
ज़बान-ए-हाल पे जब कुछ न इख़्तियार रहे
निज़ाम-ए-दहर ने क्या क्या न करवटें बदलीं
मगर हम एक ही पहलू से बे-क़रार रहे
हँसी में लग़्ज़िश-ए-मस्ताना उड़ गई वल्लाह
तो बे-गुनाहों से अच्छे गुनाहगार रहे
उभारती है हवस तौबा-ए-रिहाई की
कि दिल के साथ ज़बाँ क्यूँ गुनाहगार रहे
दिखा दूँ चीर के दिल दर्द-ए-दिल कहूँ कब तक
ज़बाँ पे क्यूँ ये तक़ाज़ा-ए-नागवार रहे
तड़प तड़प के उठाऊँगा ज़िंदगी के मज़े
ख़ुदा न-कर्दा मुझे दिल पे इख़्तियार रहे
सज़ा-ए-इश्क़ ब-क़द्र-ए-गुनाह ना-मुम्किन
यही बहुत है कि बरहम मिज़ाज-ए-यार रहे
ज़माना उस के सिवा और क्या वफ़ा करता
चमन उजड़ गया काँटे गले का बार रहे
ख़िज़ाँ के दम से मिटा ख़ूब-ओ-ज़िश्त का झगड़ा
चलो ये ख़्वाब हुआ गल रहे न ख़ार रहे
जवाब दे के न तोड़ो किसी ग़रीब का दिल
बला से कोई सरापा उमीद-वार रहे
मज़ा तो जब है 'यगाना' कि ये दिल-ए-ख़ुदबीं
ख़ुदी के नशे में बेगाना-ए-ख़ुमार रहे
'यगाना' हाल तो देखो ज़माना-साज़ों का
हवा में जैसे बगूला ख़राब-ओ-ख़्वार रहे
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं / यगाना चंगेज़ी
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
ख़्वाब आँखों ने बहुत देखे मगर याद नहीं
आज असीरों में वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं
शायद अब कोई गुलिस्ताँ का सबक़ याद नहीं
सर-ए-शोरीदा सलामत है मगर क्या कहिए
दस्त-ए-फ़रहाद नहीं तेशा-ए-फ़रहाद नहीं
तौबा भी भूल गए इश्क़ में वो मार पड़ी
ऐसे औसान गए हैं कि ख़ुदा याद नहीं
दुश्मन ओ दोस्त से आबाद हैं दोनों पहलू
दिल सलामत है तो घर इश्क़ का बर्बाद नहीं
फ़िक्र-ए-इमरोज़ न अंदेशा-ए-फ़र्दा की ख़लिश
ज़िंदगी उस की जिसे मौत का दिन याद नहीं
निकहत-ए-गुल की है रफ़्तार हवा की पाबंद
रूह क़ालिब से निकलने पे भी आज़ाद नहीं
ज़िंदा हैं मुर्दा-परस्तों में अभी तक 'ग़ालिब'
मगर उस्ताद 'यगाना' सा अब उस्ताद नहीं
सलामत रहें दिल में घर करने वाले / यगाना चंगेज़ी
सलामत रहें दिल में घर करने वाले
इस उजड़े मकाँ में बसर करने वाले
गले पर छुरी क्यूँ नहीं फेर देते
असीरों को बे-बाल-ओ-पर करने वाले
अँधेरे उजाले कहीं तो मिलेंगे
वतन से हमें दर-ब-दर करने वाले
गरेबाँ में मुँह डाल कर ख़ुद तो देखें
बुराई पे मेरी नज़र करने वाले
इस आईना-ख़ाने में क्या सर उठाते
हक़ीक़त पर अपनी नज़र करने वाले
बहार-ए-दो-रोज़ा से दिल क्या बहलता
ख़बर कर चुके थे ख़बर करने वाले
खड़े हैं दो-राहे पे दैर ओ हरम के
तिरी जुस्तुजू में सफ़र करने वाले
सर-ए-शाम गुल हो गई शम-ए-बालीं
सलामत हैं अब तक सहर करने वाले
कुजा सेहन-ए-आलम कुजा कुंज-ए-मरक़द
बसर कर रहे हैं बसर करने वाले
'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है / यगाना चंगेज़ी
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
इक तरफ़ उजड़ती है एक सम्त बसती है
बे-दिलों की हस्ती क्या जीते हैं न मरते हैं
ख़्वाब है न बेदारी होश है न मस्ती है
क्या बताऊँ क्या हूँ मैं क़ुदरत-ए-ख़ुदा हूँ मैं
मेरी ख़ुद-परस्ती भी ऐन हक़-परस्ती है
कीमिया-ए-दिल क्या है ख़ाक है मगर कैसी
लीजिए तो महँगी है बेचिए तो सस्ती है
ख़िज़्र-ए-मंज़िल अपना हूँ अपनी राह चलता हूँ
मेरे हाल पर दुनिया क्या समझ के हँसती है
क्या कहूँ सफ़र अपना ख़त्म क्यूँ नहीं होता
फ़िक्र की बुलंदी या हौसले की पस्ती है
हुस्न-ए-बे-तमाशा की धूम क्या मुअम्मा है
कान भी हैं ना-महरम आँख भी तरसती है
चितवनों से मिलता है कुछ सुराग़ बातिन का
चाल से तो काफ़िर पर सादगी बरसती है
तर्क-ए-लज़्ज़त-ए-दुनिया कीजिए तो किस दिल से
ज़ौक़-ए-पारसाई क्या फ़ैज़-ए-तंग-दस्ती है
दीदनी है 'यास' अपने रंज ओ ग़म की तुग़्यानी
झूम झूम कर क्या क्या ये घटा बरसती है
चले चलो जहाँ ले जाए वलवला दिल का / यगाना चंगेज़ी
चले चलो जहाँ ले जाए वलवला दिल का
दलील-ए-राह-ए-मोहब्बत है फ़ैसला दिल का
हवा़-ए-कूचा-ए-क़ातिल से बस नहीं चलता
कशाँ-कशाँ लिए जाता है वलवला दिल का
गिला किसे है कि क़ातिल ने नीम-जाँ छोड़ा
तड़प तड़प के निकालूँगा हौसला दिल का
ख़ुदा बचाए कि नाज़ुक है उन में एक से एक
तुनक-मिज़ाजों से ठहरा मोआमला दिल का
दिखा रहा है ये दोनों जहाँ की कैफ़ियत
करेगा साग़र-ए-जम क्या मुक़ाबला दिल का
हवा से वादी-ए-वहशत में बातें करते हो
भला यहाँ कोई सुनता भी है गिला दिल का
क़यामत आई खुला राज़-ए-इश्क़ का दफ़्तर
बड़ा ग़ज़ब हुआ फूटा है आबला दिल का
किसी के हो रहो अच्छी नहीं ये आज़ादी
किसी की ज़ुल्फ़ से लाज़िम है सिलसिला दिल का
प्याला ख़ाली उठा कर लगा लिया मुँह से
कि 'यास' कुछ तो निकल जाए हौसला दिल का
सिलसिला छिड़ गया जब 'यास' के अफ़्साने का / यगाना चंगेज़ी
सिलसिला छिड़ गया जब 'यास' के अफ़्साने का
शम्अ' गुल हो गई दिल बुझ गया परवाने का
इश्क़ से दिल को मिला आइना-ख़ाने का शरफ़
जगमगा उट्ठा कँवल अपने सियह-ख़ाने का
ख़ल्वत-ए-नाज़ कुजा और कुजा अहल-ए-हवस
ज़ोर क्या चल सके फ़ानूस से परवाने का
लाश कम-बख़्त की का'बे में कोई फिकवा दे
कूचा-ए-यार में क्यूँ ढेर हो परवाने का
वाए हसरत कि तअ'ल्लुक़ न हुआ दिल को कहीं
न तो का'बे का हुआ मैं न सनम-ख़ाने का
तिश्ना-लब साथ चले शौक़ में साए की तरह
रुख़ किया अब्र-ए-बहारी ने जो मय-ख़ाने का
वाह किस नाज़ से आता है तिरा दौर-ए-शबाब
जिस तरह दौर चले बज़्म में पैमाने का
अहल-ए-दिल मस्त हुए फैल गई बू-ए-वफ़ा
पैरहन चाक हुआ जब तिरे दीवाने का
सर-ए-शोरीदा कुजा इश्क़ की बेगार कुजा
मगर अल्लाह रे दिल आप के दीवाने का
देख कर आइने में चाक-ए-गरेबाँ की बहार
और बिगड़ा है मिज़ाज आप के दीवाने का
क्या अजब है जो हसीनों की नज़र लग जाए
ख़ून हल्का है बहुत आप के दीवाने का
आप अब शम-ए-सहर बढ़ के गले मिलती है
बख़्त जागा है बड़ी देर में परवाने का
दिल-ए-बे-हौसला तकता है ख़रीदार की राह
कोई गाहक नहीं टूटे हुए पैमाने का
बज़्म में सुब्ह हुई छा गया इक सन्नाटा
सिलसिला छिड़ गया जब आप के अफ़्साने का
हनूज़ ज़िंदगी-ए-तल्ख़ का मज़ा न मिला / यगाना चंगेज़ी
हनूज़ ज़िंदगी-ए-तल्ख़ का मज़ा न मिला
कमाल-ए-सब्र मिला सब्र-आज़मा न मिला
मिरी बहार-ओ-ख़िज़ाँ जिस के इख़्तियार में है
मिज़ाज उस दिल-ए-बे-इख़्तियार का न मिला
हवा के दोश पे जाता है कारवान-ए-नफ़स
अदम की राह में कोई पियादा-पा न मिला
बस एक नुक़ता-ए-फ़र्ज़ी का नाम है का'बा
किसी को मरकज़-ए-तहक़ीक़ का पता न मिला
उमीद-ओ-बीम ने मारा मुझे दो-राहे पर
कहाँ के दैर-ओ-हरम घर का रास्ता न मिला
ब-जुज़ इरादा-परस्ती ख़ुदा को क्या जाने
वो बद-नसीब जिसे बख़्त-ए-ना-रसाना मिला
निगाह-ए-'यास' से साबित है सई-ए-ला-हासिल
ख़ुदा का ज़िक्र तो क्या बंदा-ए-ख़ुदा न मिला
जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था / यगाना चंगेज़ी
जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था
आईना देखना तुम्हें फिर क्या ज़रूर था
छुप-छुप के ग़ैर तक तुम्हें जाना ज़रूर था
था पीछे पीछे मैं भी मगर दूर दूर था
मुल्क-ए-अदम की राह थी मुश्किल से तय हुई
मंज़िल तक आते आते बदन चूर-चूर था
दो घूँट भी न पी सके और आँख खुल गई
फिर बज़्म-ए-ऐश थी न वो जाम-ए-सुरूर था
वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
ये जाम-ए-मय था या कोई दरिया-ए-नूर था
क्यूँ बैठे हाथ मलते हो अब 'यास' क्या हुआ
इस बेवफ़ा शबाब पर इतना ग़ुरूर था
मौत आई आने दीजिए पर्वा न कीजिए / यगाना चंगेज़ी
मौत आई आने दीजिए पर्वा न कीजिए
मंज़िल है ख़त्म सज्दा-ए-शुकराना कीजिए
ज़िन्हार तर्क-ए-लज़्ज़त-ए-ईज़ा न कीजिए
हरगिज़ गुनाह-ए-इश्क़ से तौबा न कीजिए
ना-आश्ना-ए-हुस्न को क्या ए'तिबार-ए-इश्क़
अंधों के आगे बैठ के रोया न कीजिए
ताकि ख़बर भी लाइए साहिल के शौक़ में
कोशिश ब-क़द्र-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना कीजिए
वो दिन गए कि दिल को हवस थी गुनाह की
यादश-ब-ख़ैर ज़िक्र अब उस का न कीजिए
सावन में ख़ाक उड़ती है दिल है रुँधा हुआ
जी चाहता है गिरिया-ए-मस्ताना कीजिए
दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए
आँखों में आँखें डाल के देखा न कीजिए
आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर / यगाना चंगेज़ी
आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर
शम-ए-इस्मत को भरी महफ़िल में उर्यां देख कर
दिल को बहलाते हो क्या क्या आरज़ू-ए-ख़ाम से
अम्र-ए-नामुमकिन में गोया रंग-ए-इम्काँ देख कर
क्या अजब है भूल जाएँ अहल-ए-दिल अपना भी दर्द
हुस्न-ए-मस्ताना को आख़िर में पशीमाँ देख कर
ढूँडते फिरते हो अब टूटे हुए दिल में पनाह
दर्द से ख़ाली दिल-ए-गब्र-ओ-मुसलमाँ देख कर
दिल जला कर वादी-ए-ग़ुर्बत को रौशन कर चले
ख़ूब सूझी जल्वा-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ देख कर
इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
आइने को आइना हैराँ को हैराँ देख कर
पैरहन में क्या समा सकता हबाब-ए-जाँ-ब-लब
हस्ती-ए-मौहूम का ख़्वाब-ए-परेशाँ देख कर
सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
अपने बस का काम कर लेता हूँ आसाँ देख कर
और क्या होती 'यगाना' दर्द-ए-इसयाँ की दवा
क्या ग़ज़ल याद आई वल्लाह फ़र्द-ए-इसयाँ देख कर
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना / यगाना चंगेज़ी
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना
मंज़िल क़दम से लिपटी है तक़दीर देखना
आवाज़े मुझ पे कसते हैं फिर बंदगान-ए-इश्क़
पड़ जाए फिर न पाँव में ज़ंजीर देखना
मुर्दों से शर्त बाँध के सोई है अपनी मौत
होश उड़ न जाएँ सनअत-ए-बेहज़ाद देख कर
आईना रख के सामने तस्वीर देखना
परवाने कर चुके थे सर-अंजाम ख़ुद-कुशी
फ़ानूस आड़े आ गया तक़दीर देखना
शायद ख़ुदा-न-ख़ास्ता आँखें दग़ा करें
अच्छा नहीं नविश्ता-ए-तक़दीर देखना
बाद-ए-मुराद चल चुकी लंगर उठाओ 'यास'
फिर आगे बढ़ के ख़ूबी-ए-तक़दीर देखना
चराग़-ए-ज़ीस्त बुझा दिल से इक धुआँ निकला / यगाना चंगेज़ी
चराग़-ए-ज़ीस्त बुझा दिल से इक धुआँ निकला
लगा के आग मिरे घर से मेहमाँ निकला
दिल अपना ख़ाक था फिर ख़ाक को जलाना क्या
न कोई शो'ला उठा और न कुछ धुआँ निकला
सुनेंगे छेड़ के अफ़्साना-ए-दिल-ए-मरहूम
इधर से मुल्क-ए-अदम का जो कारवाँ निकला
तड़प के आबला-पा उठ खड़े हुए आख़िर
तलाश-ए-यार में जब कोई कारवाँ निकला
लहू लगा के शहीदों में हो गए दाख़िल
हवस तो निकली मगर हौसला कहाँ निकला
हरीम-ए-नाज़ में शायद किसी को दख़्ल नहीं
दिल अज़ीज़ भी ना-ख़्वांदा मेहमाँ निकला
निहाँ था ख़ाना-ए-दिल में ही शाहिद-ए-मक़्सूद
जो बे-निशाँ था वो दीवार-ए-दरमियाँ निकला
है फ़न्न-ए-इश्क़ का उस्ताद बस दिल-ए-वहशी
मरीज़-ए-ग़म का यही इक मिज़ाज-दाँ निकला
लगा है दिल को अब अंजाम-कार का खटका
बहार-ए-गुल से भी इक पहलू-ए-ख़िज़ाँ निकला
ज़माना फिर गया चलने लगी हवा उल्टी
चमन को आग लगा कर जो बाग़बाँ निकला
हमारे सब्र की खाते हैं अब क़सम अग़्यार
जफ़ा-कशी का मज़ा बा'द-ए-इम्तिहाँ निकला
ख़ुशी से हो गए बद-ख़्वाह मेरे शादी-ए-मर्ग
कफ़न पहन के जो मैं घर से ना-गहाँ निकला
अजल से बढ़ के मुहाफ़िज़ नहीं कोई अपना
ख़ुदा की शान कि दुश्मन निगाह-बाँ निकला
दिखाया गोर-ए-सिकंदर ने बढ़ के आईना
जो सर उठा के कोई ज़ेर-ए-आसमाँ निकला
लहद से बढ़ के नहीं कोई गोशा-ए-राहत
क़यामत आई जो इस घर से मेहमाँ निकला
अब अपनी रूह है और सैर-ए-आलम-ए-बाला
कुएँ से यूसुफ़-ए-गुम-ए-कर्दा-कारवाँ निकला
कलाम-ए-'यास' से दुनिया में फिर इक आग लगी
ये कौन हज़रत-ए-'आतिश' का हम-ज़बाँ निकला
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