खुमान बंदीजन के सवैया / कवित्त Khuman Bandijan Ka Kavya

 खुमान बंदीजन के सवैया 

भोजन पीछे सदा हीं करै फल/खुमान बंदीजन

भोजन पीछे सदा हीं करै फल भोजन आछे कराइ कै मो कहँ!
सोए सोआइ कै मोहि सदाँ-सदाँ पीछे चले गई चाल वा सो कहँ!

तू रन माहिं चल्यो तजि मोहि महासुख चाह्यौ न चाहिये तो कहँ!
हाय हा लच्छन तू पहिले बिनु मेरे गये क्यों गयो सुरलोकहँ?


खुमान बंदीजन के कवित्त 

गत्थन अकत्थ समरत्थ दसरत्थसुत/खुमान बंदीजन


गत्थन अकत्थ समरत्थ दसरत्थसुत,
हत्थन समत्थ दसमत्थ-सुत मत्थरन।

सद्द घननद हन नद्द अनहद्द बल,
सद्दल बिरद्द अनबद्दजस गद्द बन॥

मद्दल न नद्दन मरद्द नगरद्द कर,
रद्द दर हद्द दल-बद्दल मरुद्दलन।

धान समरच्छ जन क्रछ जन अच्छ मन,
दच्छ जय लच्छ मन लच्छ जय लच्छमन॥

मोतें बलवान लंकनाथ है निदान सुनि/खुमान बंदीजन


 मोतें बलवान लंकनाथ है निदान सुनि,

राम की ज़ुबान हनुमान समुझावही।
दैवजोग पाइ दुष्टजन बढ़ि जाइ,

मान बड़े को घटाइ बड़वारी नहिं पावही॥
भनै ‘समाधान’ मान लहत महान छुद्र,

छुद्रता जहान जस कुजस जु गावही।
देखो महिभानु गिलै भानु हिमभानु कहा,

नीच सुरभानु बड़ो भानु सो कहावही॥



रिच्छकुल-कंत कह्यौ रच्छकुलकंत वाही/खुमान बंदीजन

 
रिच्छकुल-कंत कह्यौ रच्छकुलकंत वाही,

मंत नै दुरंत काज कीन्हे जगदीस के।
वाके होत हंक मच्यौ लंक में अनंक कपि,

संक जान देखो बंक नंकत नदीस के॥
भनै ‘समाधान’ हनुमान सो न आन,

मरदान घमसान में समान जो फनीस के।
जीवत न जीवत से वाके बिनु जीवत ही,

जीवत न जीवत से जीवत कपीस के॥


पारावार परी तेज भरी लखि साँग क्रुद्ध/खुमान बंदीजन


पारावार परी तेज भरी लखि साँग क्रुद्ध,
लागी न धरनि धराधार धरि धाइयो।

देवलोक दावत भगावत महरलोक,
लोकपन ठोकत बिरंचि लोक जाइयो॥

भनै ‘समाधान’ एरे अधम निलज्ज बिधि,
बर दै असुद्ध जुद्व मध्य को पठाइयो।

छक्कर लगैहो सट खोयो जस टक्कर को,
झूँठ को अट्टकर को फक्कर बनाइयो॥


कपिदल-पति बेर-बेर बिलपत/खुमान बंदीजन


कपिदल पति बेर-बेर बिलपत प्रल-
पत कलपत जलपत रघुनाथ को।

मेरी कटी बाँह कौन करैगो समाह जाके,
बल के उमाह सो बरे ते धनु सायको॥

भनै ‘समाधान’ और सुलभ जहान सब,
सान मिलै मान मिलै आन मिलै पायको।

तात मिलै मात मिलै सुहृद सुजात मिलै,
बहुरि न भ्रात मिलै सोदर सहायको॥


उडी धूरि धायौ पंक पारापार फूटि-टूटि/खुमान बंदीजन


उडी धूरि धायौ पंक पारापार फूटि-टूटि,
हय खुर थार त्यौ पहार छारकन है।

गजहलका की हलकार अलक्का लो,
पलका लो महि मचत नचत खलगन है॥

सज्जि दल आयौ गल गज्जि इंद्रजीत ऐंड़,
उमड़त कमठ कठोर पीठ पन है।

भै भैं परैं भूमिभार दिग्गज दंतारे भारे,
नै नै परै फसकि फनीपति के फन हैं॥


इत चढ्यौ रामबंधु कपि कटक प्रबंध/खुमान बंदीजन

 
इत चढ्यौ रामबंधु कपि कटक प्रबंध,

उत रच्छदलबंध इंद्रजीत समुहान।
दुहूँ ओर कुल रज्जधर छत्रपन सज्ज,

भटभीर गलगज्ज बल बज्जत निसान॥
जनु जलधि उमंड घन घटन घुमंड,

जुग छलन छुमंड ढल बद्दल मिलान।
तहँ तेज को निधान करि कोप ‘समाधान’,

बीर लच्छन सुजान झुकि झारै कीरवान॥



प्रज्वलित ज्वाल प्रलै-ज्वालन की दोपति/खुमान बंदीजन


 
प्रज्वलित ज्वाल प्रलै-ज्वालन की दोपति,

कै दीपत प्रदीप दीपिकान के बहल की।
बारहू बिभाकर उये की झलाझली कैंधो,

बलाबली लगी जेब जगी देवदल की॥
भनै ‘समाधान’ हिमवान भामिनी है कैंधो,

दामिनी है तेजरासि तारन के झल की।
जकाजकी छोड़ि टकाटकी अरिनाहि जाहि,

हकाहकी देखि झकाझकी द्रोनाचल की॥



धिग हनुमान को अमान बलवान घम/खुमान बंदीजन


 
धिग हनुमान को अमान बलवान घम-

सान में पलाय प्रान आमरो धरत है।
आपु भजि आयौ हाय तो कहँ जुझायो सेल्ह-

हू तें न बचायो सत्रु डंकन डरत है॥
भनै ‘समाधान’ सार झारन झरत लखि,

बीरन लरत भय मानि कै टरत है।
कीरति सोहाई सूरताई की बहाई,

करै जंग क्यों सहाई दूजो भाई को भरत है॥


मीड्यो महाकाल सो कराल बंधकाल प्रलै/खुमान बंदीजन


 
मीड्यो महाकाल सो कराल बंधकाल प्रलै,

काल सो अकाल परी कालनेमि माथ पै।
भनै ‘समाधान’ कोटि गंध्रबनि गंज मद,

भंज करि पथिन के साथ में सनाथ पै॥
ग्राही को पछारि करि छतिन को छार मारि,

मायाबी मुछार कपि कहें रघुनाथ पै।
अग्नि-भिरौना कपिकटक-निरौना,

यह आयो पौनछौना लिए द्रोनागिरि हाथ पै॥



उठो बिकराल इंद्रजीत को सो काल रन/खुमान बंदीजन


उठो बिकराल इंद्रजीत को सो काल रन,
रोस भर्यो लाल ज़ोर ज्वालन जगायौ है।

बोल्यौ सिंहनाद करि धनुष को नाद कहा,
छुद्र मेघनाद छल छत को न गायौ है॥

खदिर अंगार सो हलाहल-अगार सो,
अँगार कसे अच्छ ओज उग्र उमगायो है।

मेटि दुख भ्रातै भर भुजन समेटि,
उतकंठ सो समेटि राम कंठ सौं लगायो है॥



भूप दसरत्थ को नवेलो अलबेलो रन/खुमान बंदीजन


भूप दसरत्थ को नवेलो अलबेलो रन-
रेलो रोष झेलो दल निश्चर निकर को।

‘समाधान’ कीरति उमंडी खलखंडी चंडी-
पति सो घमंडी कुल मंडी दिनकर को॥

इंद्रमदगंजन को भंजन प्रभंजन
तनै को मनरंजन निरंजन उभर को।

राम गुन ज्ञाता मनवाँछित को दाता हरि-
भक्तन को त्राता धन्य भ्राता रघुबर को॥


महाबाहू भूप दसरत्थ को कुमार/खुमान बंदीजन


महाबाहू भूप दसरत्थ को कुमार,
मारहू तें सुकुमार जैतवार समरन को।

असरन सरन अमंगलहरन भार,
धरनी धरन मज़बूत महा मन को॥

नंदन सुमित्रा को निकंदन अमित्रन को,
धनि जगबंद्य बड़ो बंधु सत्रुहन को।

कंता उरमिला को नियंता दुष्ट जीवन को,
हंता इंद्रजीत को निहंता खलगन को॥


प्रलैकाल प्रलै पवमान प्रलै भानु प्रलै/खुमान बंदीजन


प्रलैकाल प्रलै पवमान प्रलै भानु प्रलै,
रुद्र प्रलै पावक जनक पंचगन को।

मेटि कै असेष ब्रह्मंड को बिसेष सेष,
आपुही रहत सो सहस्र महा फन को॥

को है रामबंधु सो दुनी में दीनबंधु ओड,
बंधन प्रबंध पाल्यौ बिधि के बचन को।

होनी को फिरैया कोसमाय को घिरैया ब्रह्म-
हृद को हिरैया को भिरैया लछमन को?॥



प्यारो सीताराम को उज्यारो रघुबंस को/खुमान बंदीजन


प्यारो सीताराम को, उज्यारो रघुबंस को,
अन्यारो जन पैजवारो न्यारो रूरो रन को।

रविकुल मंडन प्रचंड बलबंड भुज-
दंडन उद्दंड सो खंडन खलन को॥

‘समाधान’ रच्छक अपच्छ पच्छ लच्छमन,
अच्छमन लच्छमन क्रच्छ दीन जन को।

सिंहन को सर्भ गर्भवंतन को गर्भगज,
अर्भ अवधेस को सगर्भ सत्रुहन को॥


सबै गिरिबेली दीपसेली सी नबेली चंद/खुमान बंदीजन

 
सबै गिरिबेली दीपसेली सी नबेली चंद-

चेली दुतिरेली देख भ्रम सो समेटि कै।
फेर जो पठायो काम जात है नठायो,

बंध बाँधि ठीक ठायो दै उठायो चरपेटि कै॥
भनै ‘समाधान’ कूद्यौ ककुभनि मूद,

गगन गरज्ज खूद खलन खखेटि कै।
चल्यो कपि लैकै द्रोनाचल को समूल,

उनमूल भुजमूल सो लंगूर सो लपेटि कै॥



करोर रच्छ रोर बच्छ फोर बाहु तोर घोर/खुमान बंदीजन


करोर रच्छ रोर बच्छ फोर बाहु तोर घोर,
घोर कै मरोर भूपताल आसमान भो।

जहान मै अकंपमान कंपमान कंपमान,
कै दिसान वे दिसान सुप्रकासमान भो॥

अखंड चंड मारतंड मंडलै उमंडि कै,
उद्दंड ज्वालमान मंड जात यौ प्रमान भो।

अमान राम बान कोटि भानु को प्रभान कोटि,
कल्पक कृसानु ता समान भासमान भो॥


फन-पति-फन फुफकान से फटे से जात/खुमान बंदीजन


फन-पति-फन फुफकान से फटे से जात,
ऊँचे उचके से जात औचके अमर है।

खल खलमलत दयंतन दलत बीर,
लच्छन चलत जब कोप को उभर है॥

सिधु झूरि जात मघवान मूरि जात,
दनुजात दूरि जात पूरि जात दिनकर है।

कच्छप कहलि जात दिग्गज दहलि जात,
हलि जात महि मलि जात महिधर है॥

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