पूरन प्रेम प्रकास के, परी पयोनिधि पूरि।
जय श्रीराधा रसभरी, स्याम सजीवनमूरि॥
अमृत जस जुग लाल कौ, या बिनु अँचौ न आन।
मो रसना करिबो करो, याही रस को पान॥
निरखि-निरखि संपति सुखै, सहजहि नैन सिराय।
जीवतु हैं बलि जाउँ या, जग माँही जस गाय॥
तिहि समान बड़भाग को, सो सब के शिरमौर।
मन वच, क्रम सर्वद सदा, जिन के जुगलकिशोर॥
शुद्ध, सत्व परईश सो, सिखवत नाना भेद।
निर्गुन, सगुन बखानि के, बरनत जाको बेद॥
बिधि निषेध आदिक जिते, कर्म धर्म तजि तास।
प्रभु के आश्रय आवहीं, सो कहिये निजदास॥
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