‘उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तब लक्ष्य को न प्राप्त कर लो’ कहने वाले स्वामी विवेकानंद ने भारतीय सभ्यता संस्कृति को खुद में इस तरह आत्मसात किया कि उनके बारे में एक बार गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था
‘अगर भारत को जानना है तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।’
वर्ष 1893 में शिकागो विश्व हिन्दू सम्मेलन में भाग लेकर भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करने वाले विवेकानंद ने पूर्व और पश्चिम का एक अद्भुत सहचर्य प्रस्तुत किया। शायद यही वजह है कि उनके बारे में एक बार सुभाष चन्द्र बोस ने लिखा
‘स्वामी जी ने पूर्व एवं पश्चिम, धर्म एवं विज्ञान, भूत एवं वर्तमान का आपस में मेल कराया। इस लिहाज से वह महान हैं। भारतवासियों को उनकी शिक्षा से अभूतपूर्व आत्म सम्मान, आत्म निर्भरता एवं आत्म विश्वास मिला।’
उन्होंने कहा
‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारी मांसपेशियां पत्थर-सी मजबूत हों और तुम्हारे दिमाग में बिजली की तरह कौंधने वाले विचार आएं।’
विवेकानंद ने अपने जीवन और विचारों में आधुनिकता को समुचित स्थान दिया था।
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