धन्ना भगत के दोहे (भक्तिकालीन निर्गुण संत) Dhanna Bhagat ke Dohe
धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।
धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥
धरणीधर व्यापक सबै, धरणि ब्यौम पाताल।
धन्नो कहै धनि साध ते, बिसरै नहिं कहूँ काल॥
धन्ना धन ते संत जन, जे पैठे पर भीड़।
संधि कटावै आपणी, रती न आवै पीड़॥
धन्ना धिन्न ते मानवी, धरणीधर सूं प्रीति।
राति दिवस बिसरै नहीं, रसना उर मन चीति॥
धन्ना कहै हरि धरम बिन, पंडित रहे अजाण।
अणबाह्यौ ही नीपजै, बूझौ जाइ किसाण॥
धन्ना धन नहिं राचिये, न रचिये संसार।
पग बेड़ी गल रासड़ी, यूं ही गये असार॥
धन्ना कहै धन बांटिए, ज्यूं कूवा का नीर।
खाटी सापुरसां तणी, सब काहू का सीर॥
जसवंत सिंह के दोहे / Jaswant Singh Ke Dohe
अंबिकादत्त व्यास के दोहे / Ambika Datt Vyas ke Dohe
उदयराज जती के दोहे / Udayraj Jati Ke Dohe
संत परशुरामदेव के दोहे (निंबार्क संप्रदाय) Sant Parshuram ke Dohe
संत पीपा के दोहे (झालावाड़, राजस्थान) Sant Pipa / Peepa ke Dohe
Comments
Post a Comment