Senapati ke Kavitt सेनापति के कवित्त रचनाएँ भक्तिकाल -रीतिकाल के कवि

 सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै सेनापति के कवित्त 

Saarang dhuni sunaavai ghan ras barsaavai Senapati ke Kavitt


सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै,.

मोर मन हरषावै अति अभिराम है।.

जीवन अधार बड़ी गरज करनहार,.

तपति हरनहार देत मन काम है॥.

सीतल सुभग जाकी छाया जग सेनापति,.

पावत अधिक तन मन बिसराम है।.

संपै संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ,.

आयौ घनस्याम सखि मानौं घनस्याम है॥.

saara.ng dhuni sunaavai ghan ras barsaavai.

mor man harshaavai ati abhiraam hai।.

jiivan adhaar baDii garaj karanhaar.

tapti haranhaar det man kaam hai|।.

siital subhag jaakii chhaaya jag senaapati.

paavat adhik tan man bisraam hai।.

sa.npai sa.ng liine sanmukh tere barsaa.uu.

aayau ghanasyaam sakhi maanau.n ghanasyaam hai|।.

saara.ng dhuni sunaavai ghan ras barsaavai.

mor man harshaavai ati abhiraam hai।.

jiivan adhaar baDii garaj karanhaar.

tapti haranhaar det man kaam hai|।.

siital subhag jaakii chhaaya jag senaapati.

paavat adhik tan man bisraam hai।.

sa.npai sa.ng liine sanmukh tere barsaa.uu.

aayau ghanasyaam sakhi maanau.n ghanasyaam hai|।.

वर्षा ऋतु में बादल बहुत पानी बरसाते हैं और सारंग की सी ध्वनि करते हैं। मोर बड़े सुंदर लगते हैं और वे बादल घिरने पर मन में बड़े प्रसन्न होते हैं। बादल वर्षा जल देने के कारण जीवन के आधार कहे जाते हैं। पानी उनमें ही रहता है। वे वर्षा ऋतु में बड़ी गर्जना करते हैं। बादलों से ग्रीष्म की तपन समाप्त हो जाती है। वर्षा ही ग्रीष्म की तपन को दूर करती है। बादलों से मन में काम भावना में वृद्धि होती है। बादल छाये रहने से सुहावनी शीतल छाया बनी रहती है जिससे मन और शरीर दोनों को ही विश्राम मिलता है। ग्रीष्म ऋतु में ऐसा नहीं होता। काले बादल बिजली और वर्षा को साथ लिए रहते हैं। वे ऐसे लगते हैं मानो श्याम वर्ण के कृष्ण हों। कृष्ण भी श्याम वर्ण के हैं। वे मोर पंख मुकुट में धारण करते हैं। वे आनंद के दाता हैं। वे ही सबके जीवन के आधार हैं। वे दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का नाश करने वाले हैं और मनोकामनाएँ पूरी करने वाले हैं। उनकी छत्रछाया में ही सारा संसार है। उनका सान्निध्य तन और मन को विश्राम देने वाला है। वे काले बादलों के-से रंग के हैं। इस प्रकार उनमें और काले बादलों में बड़ी समानता है।

राखति न दोषै पोषै पिंगल के लच्छन कौं सेनापति के कवित्त

Rakhti na doshai poshai Pingal ke lachchan kaun Senapati ke Kavitt


राखति न दोषै पोषै पिंगल के लच्छन कौं,.

बुध कवि के जो उपकंठ ही बसति है।.

जोए पद मन कौं हरष उपजावति है,.

तजै को कनरसै जो छंद सरसति है॥.

अच्छर हैं बिसद करति उषै आप सम,.

जातैं जगत की जड़ताऊ विनसति है।.

मानौं छबि ताकी उदवत सबिता की सेना—.

पति कबि ताकी कबिताई बिलसति है॥.

raakhati n doshai poshai pi.ngal ke lachchhan kau.n.

budh kavi ke jo upka.nTh hii basti hai।.

jo.e pad man kau.n harsh upjaavati hai.

tajai ko kanarsai jo chhand sarasti hai|।.

achchhar hai.n bisad karti ushai aap sam.

jaatai.n jagat kii jaD़taa.uu vinasti hai।.

maanau.n chhabi taakii udvat sabita kii senaa—.

pati kabi taakii kabitaa.ii bilasti hai|।.

raakhati n doshai poshai pi.ngal ke lachchhan kau.n.

budh kavi ke jo upka.nTh hii basti hai।.

jo.e pad man kau.n harsh upjaavati hai.

tajai ko kanarsai jo chhand sarasti hai|।.

achchhar hai.n bisad karti ushai aap sam.

jaatai.n jagat kii jaD़taa.uu vinasti hai।.

maanau.n chhabi taakii udvat sabita kii senaa—.

pati kabi taakii kabitaa.ii bilasti hai|।.

जिस कवि की कविता दोषरहित हो, छंदशास्त्र के लक्षणों से युक्त हो, उनका पालन करने वाली हो, वही कविता विद्वान कवियों के कंठ में निवास किया करती है। जिस कविता के पद, मन में हर्ष उत्पन्न करने वाले हों, जो छंद युक्त हो, रस को उत्पन्न करने वाली हो, उसे अपने कानों से दूर कौन रखना चाहेगा! जिस कविता के अक्षर विशद हों, स्पष्ट भाव व्यक्त करने वाले हों, अर्थ को ऐसा उत्कर्ष प्रदान करने वाले हों कि पढ़ने वाले की जड़ता दूर हो जाए और जिसकी शोभा उदित होते हुए सूर्य के समान हो; वही कविता सुंदर, आनंदप्रद, अच्छी कही जा सकती है।

गंगा तीरथ के तीर, थके से रहौ जू गिरी सेनापति के कवित्त

Ganga teerath ke teer, thake se rahau joo giri Senapati ke Kavitt


गंगा तीरथ के तीर, थके से रहौ जू गिरी,.

के रहौ जू गिरी चित्रकूट कुटी छाइ कै।.

जातैं दारा नसी, बास बातैं बारानसी, किधौं,.

लुंज ह्वैकै वृंदावन कुंज बैठ जाइ कै॥.

भयौ सेतु अंध! तू हिए कौं हेतु बंध जाइ,.

धाइ सेतुबंध के धनी सौं चित लाइ कै।.

बसौ कंदरा मैं, भजौ खाइ कंद रामैं, सेना-.

पति मंद! रामैं मति सोचौ अकुलाइ कै॥.

ga.nga tiirath ke tiir, thake se rahau juu girii,.

ke rahau juu girii chitrakuuT kuTii chhaa.i kai।.

jaatai.n daara nasii, baas baatai.n baaraanasii, kidhau.n.

lu.nj hvaikai vrindaavan ku.nj baiTh jaa.i kai।.

bhayau setu a.ndh! tuu hi.e kau.n hetu ba.ndh jaa.i,.

dhaa.i setubandh ke dhanii sau.n chit laa.i kai।.

basau ka.ndra mai.n, bhajau khaa.i ka.nd raamai.n, senaa-.

pati ma.nd! raamai.n mati sochau akulaa.i kai|।.

ga.nga tiirath ke tiir, thake se rahau juu girii,.

ke rahau juu girii chitrakuuT kuTii chhaa.i kai।.

jaatai.n daara nasii, baas baatai.n baaraanasii, kidhau.n.

lu.nj hvaikai vrindaavan ku.nj baiTh jaa.i kai।.

bhayau setu a.ndh! tuu hi.e kau.n hetu ba.ndh jaa.i,.

dhaa.i setubandh ke dhanii sau.n chit laa.i kai।.

basau ka.ndra mai.n, bhajau khaa.i ka.nd raamai.n, senaa-.

pati ma.nd! raamai.n mati sochau akulaa.i kai|।.

लोग गंगा तीर्थ के किनारे रहकर, जीवन में थककर पर्वत पर रहकर या चित्रकूट पर्वत पर कुटी बनाकर रहकर उस ईश्वर की शरण में जाते हैं। जिनकी पत्नी मर जाती है, वे वाराणसी में जाकर वास करते हैं अथवा लुंज या लँगड़े-लूले होकर वृंदावन के कुंज में बैठकर उस ईश्वर का ध्यान करते हैं। वह ईश्वर उन सबको पार लगाने वाला रहा है। सेनापति कहते हैं कि हे अंधे, नासमझ व्यक्ति, तू भी अपने हृदय में अपनी भलाई के वास्ते सोच-विचार कर। तू भी कंदरा में निवास कर। वहाँ भले ही कंद ही खाकर गुज़ारा करना पड़े, फिर भी तू अपनी मंद बुद्धि में उस राम के बारे में कुछ सोच।

कीनौ है प्रसाद, मेटि डार्यो है बिषाद सेनापति के कवित्त

Keena hai prasaad, meti daaryo hai vishaad Senapati ke Kavitt


कीनौ है प्रसाद, मेटि डार्यो है बिषाद, दौरि.

पाल्यौ प्रहलाद, रछा कीनी दुरदन की।.

दीनन सौं प्रीति, तेरी जानी यह रीति, सेना-.

पति परतीत कीनी तेरीयै सरन की॥.

कीजै न गहर, बेग मेरौ दुख हर, मेरे.

आठहू पहर आस रावरे चरन की।.

सूझत न और कोई निरभय ठौर राम.

देव सिरमौर, तो लौं दौर मेरे मन की॥.

kiinau hai prasaad, meTi Daaryo hai bishaad, dauri.

paalyau prahlaad, rachha kiinii durdan kii।.

diinan sau.n priiti, terii jaanii yah riiti, senaa-.

pati partiit kiinii teriiyai saran kii|।.

kiijai n gahar, beg merau dukh har, mere.

aaThahuu pahar aas raavare charan kii।.

suujhat n aur ko.ii nirbhay Thaur raam.

dev sirmaur, to lau.n daur mere man kii|।.

kiinau hai prasaad, meTi Daaryo hai bishaad, dauri.

paalyau prahlaad, rachha kiinii durdan kii।.

diinan sau.n priiti, terii jaanii yah riiti, senaa-.

pati partiit kiinii teriiyai saran kii|।.

kiijai n gahar, beg merau dukh har, mere.

aaThahuu pahar aas raavare charan kii।.

suujhat n aur ko.ii nirbhay Thaur raam.

dev sirmaur, to lau.n daur mere man kii|।.

वह ईश्वर कृपा करता है। वही दुःखों को दूर करता है। उसी ने दुर्दिन में दौड़कर प्रह्लाद की रक्षा की। प्रह्लाद को उसने ही बचाया। वह दोनों से प्रेम रखता है। दीनों से दूसरा कोई प्रेम नहीं करता, किंतु वह तो उन पर भी प्रेम दिखाता है। भगवान का यह व्यवहार जानकर ही मुझे भी भगवान पर विश्वास हुआ है और अब मैं भगवान तेरी शरण में आया हूँ। हे परमेश्वर, आप देर मत कीजिए, शीघ्र मेरा दुःख दूर कीजिए। मुझे तो आठों पहर आपके ही चरणों की आशा लगी रहती है। मुझे अपने उद्धार की आशा केवल आप से ही है। मुझे आपके अलावा और कोई ऐसी जगह, दूसरा कोई ऐसा सूझता ही नहीं है जो मुझे सब प्रकार से निर्भय बना सके। आप देवताओं में सिरताज हैं, सबसे ऊपर हैं, श्रेष्ठ समर्थ हैं इसलिए मेरा मन तो दौड़कर आपके पास ही जाया करता है।

केतकि, असोक, नव चंपक, बकुल कुल सेनापति के कवित्त

Ketak, Ashok, Nav Champak, Bakul kul Senapati ke Kavitt


केतकि, असोक, नव चंपक, बकुल कुल,.

कौंन धौं वियोगिनी कौं ऐसौ बिकराल है।.

सेनापति साँवरे की, सूरति की सुरति की.

सुरति कराइ करि डारत बिहाल है॥.

दछिन-पवन एती ताहू की दवन जऊ,.

सूनौ है भवन परदेस प्यारौ लाल है।.

लाल हैं प्रबाल फूले देखत बिसाल, जऊ.

फूले और साल पै रसाल उर-साल है॥.

ketaki, asok, nav cha.npak, bakul kul,.

kau.nn dhau.n viyoginii kau.n aisau bikraal hai।.

senaapati saa.nvre kii, suurati kii surti kii.

surti karaa.i kari Daarat bihaal hai|।.

dachhin-pavan etii taahuu kii davan ja.uu,.

suunau hai bhavan pardes pyaarau laal hai।.

laal hai.n prabaal phuule dekhat bisaal, ja.uu.

phuule aur saal pai rasaal ur-saal hai|।.

ketaki, asok, nav cha.npak, bakul kul,.

kau.nn dhau.n viyoginii kau.n aisau bikraal hai।.

senaapati saa.nvre kii, suurati kii surti kii.

surti karaa.i kari Daarat bihaal hai|।.

dachhin-pavan etii taahuu kii davan ja.uu,.

suunau hai bhavan pardes pyaarau laal hai।.

laal hai.n prabaal phuule dekhat bisaal, ja.uu.

phuule aur saal pai rasaal ur-saal hai|।.

बसंत ऋतु के आने से पृथ्वी पर सौंदर्य बढ़ गया है किंतु विरहिणी को उससे अपने प्रिय की और याद आने लगी है जिससे उसका कष्ट और बढ़ गया है। केतकी, अशोक वृक्ष, चंपा, बकुल ये सब वियोगिनी नारी के लिए भयंकर विरह-संतापदायक होते हैं। ये सब वियोगिनी को उनके साँवले प्रिय की शक्ल और भोग-विलास की याद दिलाकर उसे बेहाल बनाए दे रहे हैं। इस पर भी दक्षिण से आने वाला मलय पवन तो उसका नाश ही किए दे रहा है। प्रिय के परदेश में होने से विरहिणी का घर सूना-सूना है। वसंत ऋतु में लाल दिखाई देने वाली कोंपलें देखने में भयानक लगती हैं। शालवृक्षों, आमों के पेड़ों पर फूल लद गए हैं। ये विरहिणी के हृदय को सालते हैं।

अगम, अपार, जाकी महिमा कौं पारावार सेनापति के कवित्त

Agam, apaar, jaaki mahima kaun paraavaar Senapati ke Kavitt


अगम, अपार, जाकी महिमा कौं पारावार,.

सेवै बार बार परिवार सुरपति कौं।.

धाता कौं बिधाता, भाव-भगति सौं राता, दैव.

चारि बर दाता, दानि जाता को सुपक्ति कौं॥.

तीनि लोक नाइक है, बेद गुन गाइ कहै,.

सरन सहाइक है सदा सेनापति कौं।.

जगत कौं करता है, धराहू कौं धरता है,.

कमला कौं भरता है हरता बिपति कौं॥.

agam, apaar, jaakii mahima kau.n paaraavaar,.

sevai baar baar parivaar surapti kau.n।.

dhaata kau.n bidhaata, bhaava-bhagti sau.n raata, daiv.

chaari bar daata, daani jaata ko supakti kau.n|।.

tiini lok naa.ik hai, bed gun gaa.i kahai,.

saran sahaa.ik hai sada senaapati kau.n।.

jagat kau.n karta hai, dharaahuu kau.n dharta hai,.

kamla kau.n bharta hai harta bipti kau.n|।.

agam, apaar, jaakii mahima kau.n paaraavaar,.

sevai baar baar parivaar surapti kau.n।.

dhaata kau.n bidhaata, bhaava-bhagti sau.n raata, daiv.

chaari bar daata, daani jaata ko supakti kau.n|।.

tiini lok naa.ik hai, bed gun gaa.i kahai,.

saran sahaa.ik hai sada senaapati kau.n।.

jagat kau.n karta hai, dharaahuu kau.n dharta hai,.

kamla kau.n bharta hai harta bipti kau.n|।.

ईश्वर की महिमा रूपी समुद्र अगम और अपार है। कोई उसकी महिमा पूरी तरह जान नहीं पाता, उसकी महिमा का पार नहीं प्राप्त कर पाता। सुरपति यानी इंद्र बार-बार उसकी सेवा करता है। वह ईश्वर धारण करने या पालन करने वाले का भी विधाता है। वह भाव-भक्ति से प्रसन्न होता है। वह देवताओं को चार वर देने वाला है। वह दान देने वालों का भी मालिक है। वह तीनों लोकों का स्वामी है। वेदों में जितने भी गुण बतलाए गए हैं वे सब उसमें हैं अथवा वेद उसी के गुणों का गान करते हैं। वह शरण में आने वाले का सहायक है। सेनापति कहते हैं कि मेरी तो वह सदा ही सहायता करने वाला है। वह जगत का रचने वाला है, धरती को धारण करने वाला है। वह लक्ष्मी का पति और सबकी विपत्ति दूर करने वाला है।

दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम सेनापति के कवित्त

Damini damak, surchaap ki chamak, syaam Senapati ke Kavitt


दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम.

घटा की भमक अति घोर घनघोर तैं।.

कोकिला, कलापी कल कूजत हैं जित-तित,.

सीकर ते सीतल, समीर की झकोर तैं।।.

सेनापति आवन कह्यौ है मनभावन, सु.

लाग्यौ तरसावन बिरह-जुर जोर तैं।.

आयौ सखी सावन, मदन सरसावन,.

लग्यौ है बरसावन सलिल चहूँ ओर तैं।।.

daaminii damak, surchaap kii chamak, syaam.

ghaTa kii bhamak ati ghor ghanghor tai.n।.

kokila, kalaapii kal kuujat hai.n jit-tit,.

siikar te siital, samiir kii jhakor tai.n|।.

senaapati aavan kahyau hai manbhaavan, su.

laagyau tarsaavan birah-jur jor tai.n।.

aayau sakhii saavan, madan sarsaavan,.

lagyau hai barsaavan salil chahuu.n or tai.n|।.

daaminii damak, surchaap kii chamak, syaam.

ghaTa kii bhamak ati ghor ghanghor tai.n।.

kokila, kalaapii kal kuujat hai.n jit-tit,.

siikar te siital, samiir kii jhakor tai.n|।.

senaapati aavan kahyau hai manbhaavan, su.

laagyau tarsaavan birah-jur jor tai.n।.

aayau sakhii saavan, madan sarsaavan,.

lagyau hai barsaavan salil chahuu.n or tai.n|।.

विरहणी नायिका अपनी सखी से कहती है कि सखी! श्रावण का महीना आ गया है। इस महीने में बिजली चमकती है और इंद्रधनुष भी दिखाई देता है। काली-काली घनघोर घटाओं की झमक, उनका घिरना अत्यन्त भयानक लगता है। कोयल और मोर जहाँ-तहाँ अपनी-अपनी सुंदर आवाज़ निकालते हैं। हवाओं के झोंके चलते हैं जिनमें पानी की बूँदों के कारण शीतलता आ जाती है। विरहणी कहती है कि सावन को अपना, मनभावन, और अच्छा लगने वाला बताया जाता है किंतु विरह-ज्वर से युक्त मुझे तो वह तरसाने वाला लग रहा है। वह मेरे तो विरह-ज्वर को और बढ़ाये दे रहा है। वह काम-वासना को उद्दीप्त कर रहा है और चारों ओर से पानी बरसाने लगा है।

काम की कमान तेरी भृकुटि कुटिल आली सेनापति के कवित्त

Kaam ki kamaan teri bhrikuti kutil aali Senapati ke Kavitt


काम की कमान तेरी भृकुटि कुटिल आली,.

तातैं अति तीछन ए तीर से चलत हैं।.

घूंघट की ओट कोट, करि कै कसाई काम,.

मारे बिन काम, कामी केते ससकत हैं।।.

तोरे तैं न टूटैं, ए निकासे हू तैं निकसैं न,.

पैने निसि-वासर करेजे कसकत हैं।.

सेनापति प्यारी तेरे तमसे तरल तारे,.

तिरछे कटाक्ष गड़ि छाती मैं रहत हैं।।.

kaam kii kamaan terii bhrikuTi kuTil aalii,.

taatai.n ati tiichhan e tiir se chalat hai.n।.

ghuu.nghaT kii oT koT, kari kai kasaa.ii kaam,.

maare bin kaam, kaamii kete saskat hai.n|।.

tore tai.n n TuuTai.n, e nikaase huu tai.n niksai.n n,.

paine nisi-vaasar kareje kaskat hai.n।.

senaapati pyaarii tere tamse taral taare,.

tirchhe kaTaaksh gaDi chhaatii mai.n rahat hai.n|।.

kaam kii kamaan terii bhrikuTi kuTil aalii,.

taatai.n ati tiichhan e tiir se chalat hai.n।.

ghuu.nghaT kii oT koT, kari kai kasaa.ii kaam,.

maare bin kaam, kaamii kete saskat hai.n|।.

tore tai.n n TuuTai.n, e nikaase huu tai.n niksai.n n,.

paine nisi-vaasar kareje kaskat hai.n।.

senaapati pyaarii tere tamse taral taare,.

tirchhe kaTaaksh gaDi chhaatii mai.n rahat hai.n|।.

कोई सखी नायिका से कहती है कि हे सखी, तेरी टेढ़ी भौंहें तो कामदेव की कमान यानी धनुष है। उनसे अत्यन्त तीक्ष्ण तीर-से चला करते हैं। तात्पर्य यह है कि नायिका की टेढ़ी भौंहे हैं। नेत्रों से प्रभावपूर्ण कटाक्ष ऐसे चलते हैं कि कामदेव के धनुष से तीर चलते हों। कटाक्ष वासनोत्पादक होते हैं इसीलिए ऐसा कहा गया है। सखी कहती है कि घूँघट की ओट रूपी गढ़ से ही तेरे नेत्र कटाक्ष करने का काम कसाई की-सी निष्ठुरता से करते हैं जिससे कितने ही कामी व्यक्ति बिना अपराध के ही घायल होकर, व्यथित होकर सिसका करते हैं। तेरे कटाक्ष सीधे कलेजे पर असर करते हैं, कलेजे में चुभ जाते हैं जो न तो तोड़ने से टूटते हैं और न बाहर निकाले जाने पर बाहर आ पाते हैं। वे तीक्ष्ण हैं इसलिए दिन-रात कलेजे में कसका करते, पीड़ा दिया करते हैं। सेनापति वर्णन करते हैं कि सखी नायिका से कहती है कि हे प्यारी सखी, तेरे नेत्र के तारे यानी पुतलियाँ अंधकार जैसी काली हैं। उनके कटाक्ष तिरछे होते हैं और वे छाती में गड़ जाते हैं। तिरछे होने से उन्हें बाहर निकाल पाना संभव नहीं होता।

सोहति उतङ्ग, ससि सङ्ग गङ्ग, सेनापति के कवित्त

Sohti utang, sas sang gang, Senapati ke Kavitt


सोहति उतङ्ग, ससि सङ्ग गङ्ग,.

गौरि अरधङ्ग, जो अनङ्ग प्रतिकूल है।.

देवन कौं मूल, सेनापति अनुकूल, कटि.

चाम सारदूल कौं, सदा कर त्रिसूल है।।.

कहा भटकत! अटकत क्यौं न तासौं मन?.

जातैं आठ सिद्धि नव निद्धि रिद्धि तू लहै।.

लेत ही चढ़ाइबे कौं जाके एक बेलपात,.

चढ़त अगाऊ हाथ चारि फल फूल है।।.

sohati utng, sasi sang gang,.

gauri aradhng, jo anng pratikuul hai।.

devan kau.n muul, senaapati anukuul, kaTi.

chaam saaraduul kau.n, sada kar trisuul hai|।.

kaha bhaTkat! aTkat kyau.n n taasau.n man?.

jaatai.n aaTh siddhi nav niddhi riddhi tuu lahai।.

let hii chaDhaa.ibe kau.n jaake ek belapaat,.

chaDhat agaa.uu haath chaari phal phuul hai|।.

sohati utng, sasi sang gang,.

gauri aradhng, jo anng pratikuul hai।.

devan kau.n muul, senaapati anukuul, kaTi.

chaam saaraduul kau.n, sada kar trisuul hai|।.

kaha bhaTkat! aTkat kyau.n n taasau.n man?.

jaatai.n aaTh siddhi nav niddhi riddhi tuu lahai।.

let hii chaDhaa.ibe kau.n jaake ek belapaat,.

chaDhat agaa.uu haath chaari phal phuul hai|।.

सेनापति कहते हैं कि शिवजी के सिर पर श्रेष्ठ वस्तुएँ चंद्रमा और गंगाजी सुशोभित हैं। गोरी पार्वती उनका आधा अंग हैं या पार्वती उनके आधे अंग में विराजमान हैं। वे कामदेव के प्रतिकूल, विरोधी रहे हैं। वे देवताओं के मूल कारण हैं और सेनापति अर्थात् देव-सेनापति कार्तिकेय अथवा कवि सेनापति के अनुकूल हैं। शिवजी की कमर पर शार्दूल यानी सिंह की खाल है और हाथ में सदा त्रिशूल रहता है। कवि कहता है कि हे मन! तू और किसमें अटकता, भटकता है? उन्हीं में क्यों नहीं लीन होता! शिव का ध्यान करने से तुझे आठों सिद्धियाँ, नौ निधियाँ और सब रिद्धियाँ प्राप्त हो जाएँगी। शिव की उपासना भी बहुत सरल है। उन्हें ख़ुश करने के लिए तो केवल एक बेल का पत्ता ही पर्याप्त है। शिव पर बेल पत्र चढ़ाने वाले को तो शिवाजी पहले चार फल—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान कर देते हैं। वे ऐसे उदार और औघड़दानी हैं।

कालिंदी का धार निरधार हैं अधर, गन सेनापति के कवित्त

Kaaliindi ka dhaar niradhaar hain adhar, gan Senapati ke Kavitt


कालिंदी का धार निरधार हैं अधर, गन.

अलि के धरत जा निकाई के न लेस हैं।.

जीते अहिराज, खंडि डारे हैं सिखंडि, घन,.

इंद्रनील कीरति कराई नाहिं ए सहैं।।.

एड़िन लगत सेना हिय के हरष-कर,.

देखत हरत रति कंत के कलेस हैंय़.

चीकने, सघन, अँधियारे तैं अधिक कारे,.

लसत लछारे, सटकारे, तेरे केस हैं।।.

kaali.ndii ka dhaar nirdhaar hai.n adhar, gan.

ali ke dharat ja nikaa.ii ke n les hai.n।.

jiite ahiraaj, kha.nDi Daare hai.n sikha.nDi, ghan,.

i.ndraniil kiirati karaa.ii naahi.n e sahai.n|।.

eDin lagat sena hiy ke harsha-kar,.

dekhat harat rati ka.nt ke kales hai.nय़.

chiikane, saghan, a.ndhiyaare tai.n adhik kaare,.

lasat lachhaare, saTkaare, tere kes hai.n|।.

kaali.ndii ka dhaar nirdhaar hai.n adhar, gan.

ali ke dharat ja nikaa.ii ke n les hai.n।.

jiite ahiraaj, kha.nDi Daare hai.n sikha.nDi, ghan,.

i.ndraniil kiirati karaa.ii naahi.n e sahai.n|।.

eDin lagat sena hiy ke harsha-kar,.

dekhat harat rati ka.nt ke kales hai.nय़.

chiikane, saghan, a.ndhiyaare tai.n adhik kaare,.

lasat lachhaare, saTkaare, tere kes hai.n|।.

कवि कहता है कि यमुना का जल काला है। यमुना की धार निश्चित जगह पर ही प्रवाहित होती रहती है। भौंरो के समूह की सुंदरता की तुलना तेरे केशों से बिलकुल नहीं है, भौंरे इतने सुंदर नहीं हैं। तेरे केशों ने शेषनाग तथा शिखा धारण करने वाले मुर्गा, मोर आदि को भी पीछे छोड़ दिया है। वे भी तेरे केशों से तुच्छ हैं। तुम्हारे केशों के आगे बादलों और इन्द्र की नीलमणि की तुलना भी तुच्छ है, अर्थात उनकी वैसी कीर्ति नहीं है जैसी तेरे केशों की है। तेरे केश इतने लंबे हैं कि वे तेरी एड़ियों तक पहुँचते हैं। वे देखने में हृदय में हर्ष उत्पन्न करने वाले हैं। वे अपनी सुंदरता से उसी प्रकार आकृष्ट कर लेते हैं जैसे कि सौंदर्य का उपमान कामदेव आकृष्ट करता है। तेरे केश चिकने, घने हैं और अंधकार से भी अधिक काले हैं। वे लच्छेदार, लंबे, सीधे केश बहुत सुंदर प्रतीत होते हैं।

केसरि निकाई, किसलय की रताई लिए सेनापति के कवित्त

Kesari nikaai, kisalay ki rataai liye Senapati ke Kavitt


केसरि निकाई, किसलय की रताई लिए,.

भाँई नाहिं जिनकी धरत अलकत हैं।.

दिनकर सारथी तैं सेना देखियत राते,.

अधिक अनार की कली तैं आरकत हैं।।.

लाली की लसनि, तहाँ हीरा की हसनि राजै,.

नैना निरखत, हरखत आसकत हैं।.

जीते नग लाल, हरि लालहिं ठगत, तेरे.

लाल लाल अधर रसाल झलकत हैं।।.

kesari nikaa.ii, kislay kii rataa.ii li.e,.

bhaa.n.ii naahi.n jinkii dharat alkat hai.n।.

dinkar saarathii tai.n sena dekhiyat raate,.

adhik anaar kii kalii tai.n aarakat hai.n|।.

laalii kii lasni, tahaa.n hiira kii hasni raajai,.

naina nirkhat, harkhat aasakat hai.n।.

jiite nag laal, hari laalahi.n Thagat, tere.

laal laal adhar rasaal jhalkat hai.n|।.

kesari nikaa.ii, kislay kii rataa.ii li.e,.

bhaa.n.ii naahi.n jinkii dharat alkat hai.n।.

dinkar saarathii tai.n sena dekhiyat raate,.

adhik anaar kii kalii tai.n aarakat hai.n|।.

laalii kii lasni, tahaa.n hiira kii hasni raajai,.

naina nirkhat, harkhat aasakat hai.n।.

jiite nag laal, hari laalahi.n Thagat, tere.

laal laal adhar rasaal jhalkat hai.n|।.

नायिका के होंठों के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि केसर की-सी सुंदरता और नवीन किसलय की लालिमा लिए हुए तेरे होंठों की परछाईं के रूप व रंग को मेहंदी भी धारण नहीं कर सकती है। तेरे होंठों की लालिमा से सूर्य का सारथी अरुण लालिमा ग्रहण करता है। तेरे अधर तो अनार की कली से भी अधिक लाल हैं। तेरे होंठों की लालिमा की शोभा में हीरों की चमक जैसा सौंदर्य विद्यमान है, जिसको देखकर मेरे नेत्र प्रसन्न होकर आसक्त हो जाते हैं, अर्थात अनुरागी बनकर रूप-छवि पर मोहित हो जाते हैं। उस दशा में प्रेम के रंग से मैं एकदम लाल (अनुरक्त) हो जाता हूँ। तेरे होंठों की लालिमा ने नगीनों (रत्नों) और लालों की ललिमा का भी हरण कर लिया है और लालों को भी उन्होंने ठग लिया है, अर्थात नग और लाल भी तेरे होंठों की लालिमा की स्वभाविक शोभा को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। तेरे लाल होंठों से तो आम के समान मधुर रस झलकता रहता है।

अंजन सुरंग जीते खंजन, कुरंग, मीन सेनापति के कवित्त

Anjan surang jite khajan, kurang, meen Senapati ke Kavitt



अंजन सुरंग जीते खंजन, कुरंग, मीन.

नैंक न कमल उपमा कौं नियरात है।.

नीके, अनियारे, अति चपल, ढरारे, प्यारे.

ज्यौं-ज्यौं मैं निहारे त्यौं त्यौं खरौ ललचात है।।.

सेनापति सुधा से कटाछनि बरसि ज्यावैं,.

जिनकौं निरखि हियौ हरषि सिरात है।.

कान लौं बिसाल, काम भूप के रसाल, बाल.

तेरे दृग देखे मेंरौ मन न अघात है।।.

a.njan sura.ng jiite kha.njan, kura.ng, miin.

nai.nk n kamal upma kau.n niyraat hai।.

niike, aniyaare, ati chapal, Dharaare, pyaare.

jyau.n-jyau.n mai.n nihaare tyau.n tyau.n kharau lalchaat hai|।.

senaapati sudha se kaTaachhani barsi jyaavai.n,.

jinkau.n nirkhi hiyau harsha.i siraat hai।.

kaan lau.n bisaal, kaam bhuup ke rasaal, baal.

tere drig dekhe me.nrau man n aghaat hai|।.

a.njan sura.ng jiite kha.njan, kura.ng, miin.

nai.nk n kamal upma kau.n niyraat hai।.

niike, aniyaare, ati chapal, Dharaare, pyaare.

jyau.n-jyau.n mai.n nihaare tyau.n tyau.n kharau lalchaat hai|।.

senaapati sudha se kaTaachhani barsi jyaavai.n,.

jinkau.n nirkhi hiyau harsha.i siraat hai।.

kaan lau.n bisaal, kaam bhuup ke rasaal, baal.

tere drig dekhe me.nrau man n aghaat hai|।.

नायिका के नेत्र अंजन से अधिक चमकदार और सुंदर प्रतीत हो रहे हैं। उन्होंने अपनी सुंदरता से नेत्रों के उपमान कहे जाने वाले खंजन, हरिण और मछली को भी मात दे दी है। कमल तो उसके नेत्रों की उपमा के लायक ही नहीं हैं। नायिका के नेत्र अच्छे लगने वाले हैं, नुकीले, पैने, चंचल, सुंदर और प्यारे लगने वाले हैं। मैं उन्हें ज्यों-ज्यों देखता हूँ, त्यों-त्यों उन्हें और देखने के लिए लालायित हो उठता हूँ। वे नेत्र अपने कटाक्षों से अमृत की वर्षा-सी करते हुए प्रतीत होते हैं। वे नया जीवन देने वाले हैं। उन्हें देखकर हृदय हर्षित होता है और शीतल हो जाता है। वे नेत्र कानों तक लंबे, विशाल हैं। वे कामदेव राजा के सुंदर बालक जैसे हैं। उन्हें देखकर मेरा मन ही नहीं भरता। उन्हें और देखने की इच्छा बनी रह जाती है।

हिम के समीर, तेई बरसैं बिषम तीर सेनापति के कवित्त

Him ke sameer, tei barasain visham teer Senapati ke Kavitt


सीत कौं प्रबल सेनापति कोपि चढ्यौ दल,.

निबल अनल, गयौ सूरि सियराई कै।.

हिम के समीर, तेई बरसैं बिषम तीर,.

रही है गरम भौन कोनन मैं जाइ कै।.

घूम नैंन बहैं, लोग आगि पर गिरे रहैं,.

हिए सौं लगाइ रहैं नैंक सुलगाइ कै।.

मानौ भीत जानि, महा सीत तैं पसारि पानि,.

छतियाँ की छाँह राख्यौ पाउक छिपाइ कै।.

siit kau.n prabal senaapati kopi chaDhyau dal,.

nibal anal, gayau suuri siyraa.ii kai।.

him ke samiir, te.ii barsai.n bisham tiir,.

rahii hai garam bhaun konan mai.n jaa.i kai।.

ghuum nai.nn bahai.n, log aagi par gire rahai.n,.

hi.e sau.n lagaa.i rahai.n nai.nk sulgaa.i kai।.

maanau bhiit jaani, maha siit tai.n pasaari paani,.

chhatiyaa.n kii chhaa.nh raakhyau paa.uk chhipaa.i kai।.

siit kau.n prabal senaapati kopi chaDhyau dal,.

nibal anal, gayau suuri siyraa.ii kai।.

him ke samiir, te.ii barsai.n bisham tiir,.

rahii hai garam bhaun konan mai.n jaa.i kai।.

ghuum nai.nn bahai.n, log aagi par gire rahai.n,.

hi.e sau.n lagaa.i rahai.n nai.nk sulgaa.i kai।.

maanau bhiit jaani, maha siit tai.n pasaari paani,.

chhatiyaa.n kii chhaa.nh raakhyau paa.uk chhipaa.i kai।.

शीत ऋतु में सर्दी बढ़ जाती है। ऐसा लगता है जैसे शीत रूपी प्रबल सेनापति ने क्रोध करके अपने दल के साथ चढ़ाई कर दी। आग कमज़ोर हो गई है और सूर्य को शीत लग गया है। बर्फ़ीली हवा तो ऐसी लगती है जैसे तीखे तीर छोड़ रही हो। गर्मी तो रही ही नहीं। वह तो जैसे भवनों के कोनों में जाकर छिप गई है। लोग सर्दी से बचाव करने के लिए आग जलाते हैं। उसके धुएँ से उनकी आँखों से आँसू निकल आते हैं। लोग सर्दी से परेशान होकर आग पर जैसे गिरे ही पड़ते हैं। वे उसके पास घिरकर बैठ जाते हैं। उसे वे अपने हृदय से ही लगाए लेते से प्रतीत होते हैं। आग उन्हें अच्छी लगती है। वे ऐसे लगते हैं मानो वे शीत से डरे हुए हैं और अपने हाथ फैलाकर आग को अपने सीने की छाया से रख लेना चाहते हैं।

बरन बरन तरु फूले उपबन बन सेनापति के कवित्त

Barn barn taru phule upban ban Senapati ke Kavitt


बरन बरन तरु फूले उपबन बन,.

सोई चतुरंग संग दल लहियत है।.

बंदी जिमि बोलत बिरद बीर कोकिल हैं,.

गुंजत मधुप गान गुन गहियत है।।.

आवै आस-पास पुहुपन की सुबास सोई.

सोंधे के सुगंध माँझ सने रहियत है।.

सोभा कौं समाज, सेनापति सुख-साज, आज.

आवत बसंत रितुराज कहियत है।।.

baran baran taru phuule upban ban,.

so.ii chatura.ng sa.ng dal lahiyat hai।.

ba.ndii jimi bolat birad biir kokil hai.n,.

gu.njat madhup gaan gun gahiyat hai|।.

aavai aasa-paas puhupan kii subaas so.ii.

so.ndhe ke suga.ndh maa.njh sane rahiyat hai।.

sobha kau.n samaaj, senaapati sukh-saaj, aaj.

aavat basa.nt rituraaj kahiyat hai|।.

baran baran taru phuule upban ban,.

so.ii chatura.ng sa.ng dal lahiyat hai।.

ba.ndii jimi bolat birad biir kokil hai.n,.

gu.njat madhup gaan gun gahiyat hai|।.

aavai aasa-paas puhupan kii subaas so.ii.

so.ndhe ke suga.ndh maa.njh sane rahiyat hai।.

sobha kau.n samaaj, senaapati sukh-saaj, aaj.

aavat basa.nt rituraaj kahiyat hai|।.

संत ऋतु में वनों और उपवनों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों से वृक्ष-लता आदि सुशोभित हैं, साथ ही उन पर रंगीन पत्ते दिखाई देते हैं। कोयलें इस तरह कूक रही हैं जैसे बंदीजन वीरों का यशोगान किया करते हैं। भौंरे गुंजारकर गुणगान करते-से प्रतीत होते हैं। आस-पास फूलों की सुंगध आती रहती है। वे जैसे सोंधी-सोंधी सुगंध से घिरे रहते हैं। ऐसा लगता है कि ऋतुराज वसंत एक राजा की तरह आ रहा है और प्राकृतिक शोभा का साज सजाए हुए उनका सेनापति भी उनके साथ आ गया है।


bhaktikaal aur ritikaal kavi senapathi ki rachna


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