पउणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु।
दिनसु राति दुई दाई दाइआ खेलै सगल जगतु॥
नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु।
रसि रसिआ हरिआ सदा पकै करमि सदा पकै कमि धिआनि॥
धंनु सु कागदु कलम धनु भांडा धनु मसु।
धनु लेखारी नानका जिनि नाम लिखाइआ सचु॥
मेरे लाल रंगीले हम लालन के लाले।
गुर अलखु लखाइआ अवरु न दूजा भाले॥
बलिहारी गुर आपणे दिउहाड़ी सद वार।
जिनि माणस ते देवते कीए करत न लागी वार॥
साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु।
आखहि मंगहि देहि देहि दाति करै दातारु॥
नानक बदरा माल का भीतर धरिआ आणि।
खोटे खरे परखीआनि साहिब के दीबाणि॥
सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ।
नदीआ अतै वाह पवहि समुंदि न जाणीअहि॥
गुरु दाता गुरु हिवै घरु गुरु दीपकु तिह लोइ।
अमर पदारथु नानका मनि मानिऐ सुख होई॥
सतिगुर भीखिआ देहि मै तूं संम्रथु दातारु।
हउमै गरबु निवारीऐ कामु क्रोध अहंकारु॥
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