धन्य भारतीय संस्कृति/देशभक्ति की कविता
धन्य भारतीय संस्कृति अपनी,
प्रेम बहुत अधिकार नहीं है।
विकास, भला सबका चाहे जो,
ऐसा दावेदार नहीं हैं।।
छुआछूत का भाव न रखती,
धर्मों का सत्कार यहीं है।
ज्ञान भक्ति कर्मों का प्रांगण
मेरा चारों धाम यही है।।
जहाँ गंगा-जमुना सरस्वती
बहती हैं जिसके आँगन में।
तीन ओर सागर लहराता
अडिग हिमालय प्रांगण में।।
जग में ऊँचा रहे तिरंगा,
भारत माँ का मान यही है।
जय-जय भारत देश हमारा,
मेरा जीवन प्राण यही है।।
दूर देश में रहकर भी जो,
राष्ट्र एकता प्रेम नहीं हैं।
लानत ऐसे जीवन को है
वह सच्चा भारत वीर नहीं है।।
- शरद आलोक
पंचतात्विक राष्ट्र-वंदना/देशभक्ति की कविता
तेरी धरा तेरा गगन
वाचाल जल पावन अगन
बहता हुआ पारस पवन
मेरे हुए तन मन वचन
तेरी धरा महकी हुई
मंत्रों जगी स्वर्गों छुई
पड़ते नहीं जिस पर कभी
संहार के बहते चरन
तेरा गगन फैला हुआ
घिर कर न घन मैला हुआ
सूरजमुखी जिसका चलन
जीकर थकन पीकर तपन
वाचाल जब चंचल रहा
आनंद से पागल रहा
जिसका धरम सागर हुआ
जिसका करम करना सृजन
पावन अगन क्या जादुई
तेजस किरन रचती हुई
जिसमें दहे दुख दर्द ही
जिसमें रहे ज़िंदा सपन
पारस पवन कैसा धनी
जिसकी कला संजीवनी
जो बाँटता हर साँस को
जीवन-जड़ा चेतन रतन
सोम ठाकुर
 
प्यारा हिंदुस्तान है/देशभक्ति की कविता
अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।
यहीं मिला आकार 'ज्ञेय' को मिली नई सौग़ात है-
इसके 'दर्शन' का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।
वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।
योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।
क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।
-डॉ. गणेशदत्त सारस्वत
प्रयाण गीत/देशभक्ति की कविता
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
प्रपात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े चलो
वीर, तुम बढ़े चलो धीर, तुम बढ़े चलो।
एक ध्वज लिए हुए एक प्रण किए हुए
मातृ भूमि के लिए पितृ भूमि के लिए
वीर तुम बढ़े चला! धीर तुम बढ़े चलो!
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
पंद्रह अगस्त की पुकार/देशभक्ति की कविता
पंद्रह अगस्त का दिन कहता --
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है।।
जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई।।
कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं।।
हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहाँ कुचली जाती।।
इंसान जहाँ बेचा जाता,
ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है,
डालर मन में मुस्काता है।।
भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं।।
लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया।।
बस इसीलिए तो कहता हूँ
आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?
थोड़े दिन की मजबूरी है।।
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएँगे।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ,
जो खोया उसका ध्यान करें।।
- अटल बिहारी वाजपेयी
भारत गीत/देशभक्ति की कविता
जय जय प्यारा, जग से न्यारा,
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य सुदेश!
जय जय प्यारा भारत देश।
प्यारा देश, जय देशेश,
जय अशेष, सदस्य विशेष,
जहाँ न संभव अध का लेश,
केवल पुण्य प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
स्वर्गिक शीश-फूल पृथ्वी का,
प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति नटी का टीका
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा
कलरव-निरत कलोलिनी गंगा
भानु प्रताप-चमत्कृत अंगा,
तेज पुंज तपवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
जगमें कोटि-कोटि जुग जीवें,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवे,
सुखद वितान सुकृत का सीवे,
रहे स्वतंत्र हमेश
जय जय प्यारा भारत देश।
- श्रीधर पाठक
प्रशस्ति गीत/देशभक्ति की कविता
जय जवान मुक्तिगान मातृभूमि के विहान
जय जवान
तुम जगे जगा जहान
जाग उठा आसमान
तुम बढ़े उड़ा निशान
गूँज चले मुक्ति गान।।
नव सृजन सजे वितान
मातृभूमि के विहान
जय जवान।।
तुम चले गगन चले
साथ हर सपन चले
देश में अमन पले
गोद में सुमन खिले
मुस्करा उठे जहान
मातृ भूमि के विहान
जय जवान।।
तुम घिरो तो घन घिरे
तुम घिरो तो मन फिरे
तुम तपो तपे धरा
हो विजय स्वयंवरा।।
तुम अजर अमर निशान
मातृभूमि के विहान
जय जवान।।
तुम प्रबल प्रबुद्ध हो
समर सिंह क्रुद्ध हो।
प्रलयंकर रुद्र हो
ज्ञान धीर शुद्ध हो
देश धर्म आन बान
मातृ भूमि के विहान
जय जवान।।
गूँज रही भारती
माँ उतारे आरती।
तन मन धन वारती
माँ विकल पुकारती
गीता के आत्मज्ञान
मातृभूमि के विहान।।
जय जवान।।
- स्नेहलता 'स्नेह'
भारत माता का जयगान/देशभक्ति की कविता
दिशा-दिशा में गूँज रहा है, भारत माता का जयगान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
यहाँ सृष्टि के आदि काल में, समता का सूरज चमका,
करुणा की किरणों से खिलकर, धरती का मुखड़ा दमका!
सुनो! मनुजता को हमने ही, आत्म त्याग सिखलाया है,
लालच और लोभ को तजकर, पाठ पढ़ाया संयम का!!
जो जग के कण-कण में रहता, सब प्राणी उसकी संतान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
रहें कहीं हम लेकिन शीतल, मंद सुगंधें खींच रहीं
यह धरती अपनी बाहों में, परम प्रेम से भींच रही!
सारे धर्मों, सभी जातियों, सब रंगों, सब नस्लों को,
ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गंगा, कृष्णा, झेलम सींच रहीं!!
ऊँच नीच का भेद नहीं कुछ, सद्गुण का होता सम्मान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
हमने सदा न्याय के हक़ में, ही आवाज़ उठाई है,
अपनी जान हथेली पर ले, अपनी बात निभाई है!
पुरजा-पुरजा कट मरने की, सदा रखी तैयारी भी,
वंचित-पीड़ित-दीन-हीन की, अस्मत सदा बचाई है!
जन-गण के कल्याण हेतु हम, सत्पथ पर होते बलिदान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
जिसके भी मन में स्वतंत्रता, अपनी जोत जगाती है,
जो भी चिड़िया कहीं सींखचों, से सिर को टकराती है!
वहाँ-वहाँ भारत रहता है, वहाँ-वहाँ भारत माता,
जहाँ कहीं भी संगीनों पर, कोई निर्भय छाती है!
आज़ादी के परवानों का, सदा सुना हमने आह्वान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
सब स्वतंत्र हैं, सब समान हैं, सब में भाईचारा है,
सब वसुधा अपना कुटुंब है, विश्व-नीड़ यह प्यारा है!
पंछी भरें उड़ान प्रेम से, दिग-दिगंत नभ को नापें,
कहीं शिकारी बचे न कोई, यह संकल्प हमारा है!
युद्ध और हिंसा मिट जाएँ, ऐसा चले शांति अभियान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
जल में, थल में और गगन में मूर्तिमान भारतमाता,
अधिकारों में, कर्तव्यों में, संविधान भारतमाता!
हिंसासुर के उन्मूलन में, सावधान भारतमाता,
'विजयी-विश्व तिरंगा प्यारा', प्रगतिमान भारतमाता!!
मनुष्यता की जय-यात्रा में, नित्य विजय, नूतन उत्थान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
दिशा-दिशा में गूँज रहा है, भारत माता का जयगान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
ऋषभदेव शर्मा
भारत तुझको नमस्कार है/देशभक्ति की कविता
भारत तुझसे मेरा नाम है,
भारत तू ही मेरा धाम है।
भारत मेरी शोभा शान है,
भारत मेरा तीर्थ स्थान है।
भारत तू मेरा सम्मान है,
भारत तू मेरा अभिमान है।
भारत तू धर्मों का ताज है,
भारत तू सबका समाज है।
भारत तुझमें गीता सार है,
भारत तू अमृत की धार है।
भारत तू गुरुओं का देश है,
भारत तुझमें सुख संदेश है।
भारत जबतक ये जीवन है,
भारत तुझको ही अर्पण है।
भारत तू मेरा आधार है,
भारत मुझको तुझसे प्यार है।
भारत तुझपे जां निसार है,
भारत तुझको नमस्कार है।
-अशोक कुमार वशिष्ट
भारत मेरा महान/देशभक्ति की कविता
उन्नत भाल हिमालय, सुरसरि गंगा जिसकी आन।
उन्मुक्त तिरंगा शांति - दूत बन देता है संज्ञान।
चक्र सुदर्शन-सा लहराए करता है गुणगान।
चहुँ दिशा पहुँचेगी मेरे भारत की पहचान।।
महाभारत, रामायण, गीता, जन-गण-मन सा गान।
ताजमहल भी बना, मेरे भारत का अमिट निशान।
महिला शक्ति बन उभरीं, महामहिम भारत की शान।
अद्वितीय, अजेय, अनूठा ही है, भारत मेरा महान।।
यह वो देश है जहाँ से, दुनिया ने शून्य को जाना।
खेल, पर्यटन और फिल्मों से, है जिसको पहचाना।
अंतरिक्ष पहुँच, तकनीकी प्रतिभाओं से विश्व भी माना।
बिना रक्त क्रांति के जिसने, पहना स्वाधीनी बाना।।
भाषा का सिरमौर, सभ्यता, संस्कार सम्मान।
न्याय और आतिथ्य हैं, मेरे भारत के परिधान।
विज्ञान, ज्ञान, संगीत, मिला आध्यात्म गुरु का मान।
ऐसे भारत को 'आकुल' का, शत-शत बार प्रणाम।।
- आकुल
भारत माता वंदना/देशभक्ति की कविता
हे हिममुकुट धारिणी मात भारती।
देवदुर्लभ जगतवंदित मात भारती।।
अखिल विश्व लहराए पताका आपकी।
जय हो सदा आपकी मात भारती।।
माँ आप शीतलता लिए हिमालय की।
अमृत जल-धारा गंगा यमुना की।।
चरण प्रक्षालन करता हिंद सागर है।
माँ ममता का आप अथाह सागर हैं।।
हे शस्य श्यामला जय हो मात भारती।
अखिल विश्व लहराए, पताका आपकी।।
नवनीत कुमार गुप्ता
भारतवर्ष/देशभक्ति की कविता
यह भारतवर्ष हमारा है!
हमको प्राणों से प्यारा है!!
है यहाँ हिमालय खड़ा हुआ,
संतरी सरीखा अड़ा हुआ,
गंगा की निर्मल धारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
क्या ही पहाड़ियाँ हैं न्यारी?
जिनमें सुंदर झरने जारी!
शोभा में सबसे न्यारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
है हवा मनोहर डोल रही,
बन में कोयल है बोल रही।
बहती सुगंध की धारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
जन्मे थे यहीं राम सीता,
गूँजी थी यहीं मधुर गीता।
यमुना का श्याम किनारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
तन मन धन प्राण चढ़ाएँगे,
हम इसका मान बढ़ाएँगे!
जग का सौभाग्य सितारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
- सोहन लाल द्विवेदी
भारती वंदना/देशभक्ति की कविता
भारति जय विजय करे!
कनक शस्य कमल धरे!
लंका पदतल - शतदल
गर्जितोर्मि सागर - जल
धोता शुचि चरण युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे!
तरु तृण वन लता वसन
अंचल में खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल- कण
धवल धार हार गले!
मुकुट शुभ्र हिम - तुषार
प्राण प्रणव ओंकार
ध्वनित दिशाएँ उदार
शतमुख - शतरव मुखरे!
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
भारतीय तिरंगे का गीत/देशभक्ति की कविता
हरी भरी धरती हो
नीला आसमान रहे
फहराता तिरँगा,
चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूर वीरता
महानता का मंत्र है
मेरा यह देश
एक अभिनव गणतंत्र है
शांति अमन चैन रहे,
खुशहाली छाये
बच्चों को बूढों को
सबको हर्षाये
हम सबके चेहरो पर
फैली मुस्कान रहे
फहराता तिरँगा चाँद
तारों के समान रहे।
-कमलेश कुमार दीवान
भारत हमको जान से प्यारा/देशभक्ति की कविता
भारत हमको जान से प्यारा है
सबसे न्यारा गुलिस्ताँ हमारा है
सदियों से भारत भूमि दुनिया की शान है
भारत माँ की रक्षा में जीवन कुर्बान है
भारत हमको जान से प्यारा है
सबसे न्यारा गुलिस्ताँ हमारा है
उजड़े नहीं अपना चमन, टूटे नहीं अपना वतन
दुनिया धर धरती कोरी, बरबाद ना कर दे कोई
मंदिर यहाँ, मस्जिद वहाँ, हिंदू यहाँ मुस्लिम वहाँ
मिलते रहें हम प्यार से
जागो!!
हिंदुस्तानी नाम हमारा है, सबसे प्यारा देश हमारा है
जन्मभूमि है हमारी शान से कहेंगे हम
सभी तो भाई-भाई प्यार से रहेंगे हम
हिंदुस्तानी नाम हमारा है
आसाम से गुजरात तक, बंगाल से महाराष्ट्र तक
झनकी रही गुन एक है, भाषा अलग सुर एक है
कश्मीर से मद्रास तक, कह दो सभी हम एक हैं
आवाज़ दो हम एक हैं
जागो!!
भारत हमको जान से प्यारा है
सबसे न्यारा गुलिस्ताँ हमारा है
- पी. के. मिश्रा
माटी चंदन है/देशभक्ति की कविता
प्रात: स्मरणीय शहीदों का वंदन है
जिनके त्याग तपोवन से माटी चंदन है
जिन्हें आत्म सम्मान रहा प्राणों से प्यारा
उन्हें याद करती अब भी गंगा की धारा
ले हाथों में शीश चले ऐसे मतवाले
आज़ादी के लिए हालाहल पीने वाले
आज़ादी के रखवालों को हृदय नमन है
जिनके त्याग तपोवन से माटी चंदन है
जिनकी दृढ़ता से उन्नत है आज हिमालय
अब उनके पद चिन्ह हमारे लिए शिवालय
आज तिरंगा जिनकी याद लिए फहराता
वक्त आज भी जिनकी गौरव गाथा गाता
धन्य नींव के पत्थर जिनपर बना भवन है
जिनके त्याग तपोवन से माटी चंदन है
महके बीस गुलाब गंध बाँटे खुशहाली
नव दुल्हन-सी खेतों में नाचें हरियाली
अनुशासन से देश नया जीवन पाता
कर्मशील ही आगे जा पूजा जाता है
आज धरा खुशहाल और उन्मुक्त गगन है
जिनके त्याग तपोवन से माटी चंदन है
- सजीवन मयंक
भुवन क्या कहेगा/देशभक्ति की कविता
अगर हम नहीं देश के काम आए
धरा क्या कहेगी
गगन क्या कहेगा?
किरण प्रात आह्वान है
ठोस श्रम का
चलो आइना तोड़
रख दें अहम का
अगर हम नहीं वक्त पर जाग पाए
सुबह क्या कहेगी
पवन क्या कहेगा?
मदिर गंध का अर्थ है
खूब महकें
पड़े संकटों की
भले मार - चहकें
अगर हम नहीं फूल-सा मुस्कुराए
व्यथा क्या कहेगी
चमन क्या कहेगा?
बहुत हो चुका स्वर्ग
भू पर उतारें
करें कुछ नया, स्वस्थ
सोचें-विचारें
अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाए
निशा क्या कहेगी
भुवन क्या कहेगा?
- डॉ. इसाक अश्क
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम/देशभक्ति की कविता
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम
ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर।
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
प्रेम-दया का इष्ट लिए तू,
सत्य-अहिंसा तेरा संयम,
नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत
तुझमें चिर विकास का है क्रम।
चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से -
मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से -
सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
- भगवती चरण वर्मा
मातृभूमि जय हे!/देशभक्ति की कविता
हिरण्यगर्भे! जगद-अंबिके!
मातृभूमि! जय हे!
अमरनाथ से रामेश्वर तक,
सोमनाथ से भुवनेश्वर तक।
मेघालय - बंगाल - चेन्नई,
अंदमान, गोआ-परिसर तक।
शस्य-श्यामला, प्राणदायिनी!
पुण्य भूमि! जय हे!
है पीयूष-वारि की धारा,
सूर्य-सोम ने जिसे दुलारा।
पवन प्राण देता नव पल-पल,
षड ऋतुओं ने सदा सँवारा।
रज सिंदूर अर्गजा जैसी,
देवभूमि! जय हे!
अंतरिक्ष, मेदिनी, वनस्पति,
देती जिसको शांति नित्यप्रति।
आदि- स्थान विद्या का, देता
ज्ञान विज्ञान बृहस्पति।
वेदों की अवतार मही,
ऋषि-वृंद-भूमि जय हे!
गंगा- गोदावरी- नर्मदा,
देती जीवन-दान सर्वदा।
मांधाता, विक्रमादित्य, सुर-प्रिय
अशोक की शौर्य-संपदा।
राम-कृष्ण-गौतम-गांधी की,
कर्म भूमि! जय हे!
जहाँ विविध विचार-धारायें,
जीवन को सार्थक बनाएँ।
अनेकता में ऐक्य, ऐक्य में
अनेकता का पाठ पढ़ाएँ।
एक चित्त सब एक प्राण,
आदर्श भूमि! जय हे!
अकथनीय है गौरव-गरिमा,
गा न सके कोई कवि महिमा।
कोटि-कोटि प्राणों में बसती,
तेरी रम्य रूप-छवि-प्रतिमा।
अनुपमेय, अनवद्य, अपरिमित,
धर्म-भूमि! जय हे!
पूजें आबू-विंध्य-हिमाचल,
पाँव पखारे सागर का जल।
ममता का मधु-कोष सदा
बरसाते हैं लहराते बादल।
आभामयी मुक्ति-पथ-दात्री,
पितृ-भूमि! जय हे!
है गीर्वाण धरित्री पावन,
जन-कल्याण मही मनभावन।
देती है आदेश प्रेम का,
ऋषि-निर्वाण-स्थली सुहावन।
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम,
जन्म भूमि! जय हे!
- प्रो. आदेश हरिशंकर
मैं और तू दो तो नहीं/देशभक्ति की कविता
मेरे देश
तेरा चप्पा-चप्पा मेरा शरीर है
तेरा जल मेरा मन है
तेरी वायु मेरी आत्मा है
इन सबसे मिलकर ही
तू बनता है मेरे देश
मैं और तू दो तो नहीं है।
शरीर आत्मा मन
एक ही प्राणी के
स्थूल या सूक्ष्म अंग है
मैं इन्हें बँटने नहीं दूँगा
मैं इन्हें लुटने नहीं दूँगा
मैं इन्हें मिटने नहीं दूँगा
- श्याम सिंह शशि
मेरे देश की धरती
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते हैं
सुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार तेरा
यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार तेरा
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह रंग अमन का वीर जवाहर से
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
- गुलशन बावरा
यह देश हमारा है/देशभक्ति की कविता
यह देश हमारा है, हमारा है हमारा
इस देश का कण कण हमें प्यारा हमें प्यारा
इस देश के इतिहास में
गौरव की कथाएँ
इस देश के बलिदान की
चलती हैं हवाएँ
इस देख का भूगोल है हम सबको सहारा
यह देश हमारा है, हमारा है हमारा
भंडार संपदा का
हर पर्वत यहाँ रहा
पानी नहीं नदियों में
जीवन यहाँ बहा
मोती उड़ेलता है यह सिंधु भी खारा
यह देश हमारा है, हमारा है हमारा
इस देश की संस्कृति
रही सौहार्द सनी है
संस्कृति सहिष्णुता के
विचारों से बनी है
दुनिया का भला हमने ही हरदम है विचारा
यह देश हमारा है, हमारा है हमारा
इस देश की मिट्टी में
धर्म फूले फले हैं
हम उँगलियाँ सभी की
थाम थाम चले हैं
यह देश रहा है सभी देशों का दुलारा
यह देश हमारा है, हमारा है हमारा
इस देश ने उपकार हैं
हम पर बहुत किए
हो कौल जिएँ या मरें
हम देश के लिए
हर साँस करे देश के गौरव का पसारा
यह देश हमारा है, हमारा है हमारा
श्रीकृष्ण सरल
यह दिया बुझे नहीं/देशभक्ति की कविता
घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ,
शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ,
यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो
ज़ोर का बहाव हो,
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।
यह अतीत कल्पना,
यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना,
यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो,
युद्ध, संधि, क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।
तीन-चार फूल है,
आस-पास धूल है,
बाँस है -बबूल है,
घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर दे,
फूँक दे, चकोर दे,
कब्र पर मज़ार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह किसी शहीद का पुण्य-प्राण दान है।
झूम-झूम बदलियाँ
चूम-चूम बिजलियाँ
आँधियाँ उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो,
यातना विशेष हो,
क्षुद्र जीत-हार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।
- गोपाल सिंह नेपाली
याद करो/देशभक्ति की कविता
देश वासियों याद करो तुम उन महान बलिदानों को।
देश के खातिर जान लुटाई, देश की उन संतानों को।
जिनके कारण तान कर छाती खड़ा यह पर्वतराज है।
जिनके चलते सबके सर पर आज़ादी का ताज है।
महाकाल भी काँपा जिनसे मौत के उन परवानों को।
देश वासियों याद करो...
देख कर टोली देव भी बोले देखो-देखो वीर चले।
गर पर्वत भी आया आगे, पर्वत को वो चीर चले।
जिनसे दुश्मन डर कर भागे ऐसे वीर जवानों को।
देश वासियों याद करो...
जिनने मौत का गीत बजाया अपनी साँसों की तानों पर।
पानी फेरा सदा जिन्होंने दुश्मन के अरमानों पर।
मेहनत से जिनने महल बनाया उजड़े हुए वीरानों को।
देश वासियों याद करो...
हँस-हँस कर के झेली गोली जिनने अपने सीनों पर।
अंत समय में सो गए जो रख कर माथा संगीनों पर।
शत-शत नमन कर रहा है मन मेरा ऐसे दीवानों को।
देश वासियो याद करो...
विकास परिहार
यह हिंदुस्तान है/देशभक्ति की कविता
यह हिंदुस्तान है अपना
हमारे युग-युग का सपना
हरी धरती है नीलगगन
मगन हम पंछी अलबेले
मुकुट-सा हिमगिरि अति सुंदर
चरण रज लेता रत्नाकर
हृदय गंगा यमुना बहती
लगें छ: ऋतुओं के मेले
राम-घनश्याम यहाँ घूमे
सूर-तुलसी के स्वर झूमे
बोस-गांधी ने जन्म लिया
जान पर हँस-हँस जो खेले
कर्म पथ पर यह सदा चला
ज्ञान का दीपक यहाँ जला
विश्व में इसकी समता क्या
रहे हैं सब इसके चेले।
- डॉ. गोपालबाबू शर्मा
 
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