हितहरिवंश के पद रचनाएं /दोहे /Hit Harivansh ke Pad Rachna

 हितहरिवंश के दोहे Hitharivansh ke dohe 

रसना कटौ जु अन रटौ, निरखि अन फुटौ नैन।
स्रवन फुटौ जो अन सुनौ, बिनु राधा-जसु बैन॥
 

सबसौ हित निहकाम मन, बृंदाबन बन विस्राम।
राधावल्लभ लाल कौ, हृदय ध्यान, मुख नाम॥
 

तनहिं राखु सतसंग में, मनहिं प्रेमरस भेव।
सुख चाहत ‘हरिवंस हित', कृष्ण-कल्पतरु सेव॥
 
निकसि कुंज ठाढ़े भये, भुजा परस्पर अंस।

राधावल्लभ-मुख-कमल,निरखत ‘हित हरिबंस'॥
संबंधित विषय : राधा
 

हितहरिवंश के पद  Hitharivansh ke Pad 

 रहौ कोऊ काहू मनहि दियें हित हरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

रहौ कोऊ काहू मनहि दियें।
मेरे प्राननाथ श्रीस्यामा, सपथ करौं तिन छियें॥
जे अवतार कदंब-भजत हैं, धरि दृढ़व्रत जु हियें।
तेऊ उमगि तत मरजादा, बन-बिहार-रस पियें॥
खोये रतन फिरत जे घर-घर, कौन काज इमि जियें।
‘हितहरिबंस' अनतु सचु’ नाहीं, बिन या रसहिं लियें॥

 सुनि मेरो बचन छबीली राधा हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

सुनि मेरो बचन छबीली राधा।
तैं पायौ रससिंधु अगाधा॥
जाहिं बिरंचि उमापति नाये।
तापै तैं बन-फूल बिनाये॥
तेरो रूप कहत नहि आवै।
(जैश्री) ‘हित हरिबंस' कछुक जसु गावै॥

 आरति कीजै स्यामसुन्दर की हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

आरति कीजै स्यामसुंदर की।
नंदनंदन श्रीराधावर की॥
भक्ति कौ दीप, प्रेम की बाती।
साधु संगति कर अनुदिन राती॥
आरति ब्रज-जुबतिन-मन-भावै।
स्याम लीला 'हितहरिबंस गावै॥

 मोहनलाल के रंग राँची हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

मोहनलाल के रंग राँची।
मेरे ख्याल परौ जिन कोऊ, बात दसौं दिसि माची॥
कंत अनंत करो किन कोऊ, नाहिं धारना साँची।
यह जिय जाहु भले सिर ऊपर, हौं तु प्रगट ह्वै नाची॥
जाग्रत सयन रहत ऊपर मणि ज्यों कंचन सँग पाँची।
‘हित हरिवंस' डरौं काके डर, हौं नाहिन मति काँची॥

 आजु बन नीको रास बनायौ हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

आजु बन नीको रास बनायौ।
पुलिन पवित्र सुभग जमुना-तट, मोहन बेनु बजायौ॥
कल कंकन किंकिनि नूपुर-धुनि, सुनि खग-मृग सच पायौ।
जुवतिन-मंडल मध्य स्यामघन, सारंग-राग जमायौ॥
ताल, मृदंग उपंग मुरज डफ, मिलि रस-सिंधु बढायौ।
विविध बिसद वृषभानु-नंदिनी, अंग-सुढंग दिखायौ॥
अभिनय, निपुन लटकि लटि लोचन, भृकुटि अनंद नचायौ।
ततथेई ताथेई धरति नवल गति, पति ब्रजराज रिझायौ॥
बरसत कुसुम मुदित नभ-नायक, इन्द्र निसान बजायौ।
(जैश्री) ‘हित हरिबंस' रसिक राधापति, जस बितान जग छायौ॥

 सरद बिमल, नभ चंद बिराजै हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

सरद बिमल, नभ चंद बिराजै। मधुर मधुर मुरली कल बाजै।
अति राजत घनस्याम-तमाला। कंचन-बेलि बनी ब्रज-बाला॥
भूषन बहुत, विविध रँग सारी। अंग सुगंध दिखावति नारी॥
बरसत कुसुम मुदित सुर-जोषा। सुनियतु दिवि-दुंदुभि-कल-घोषा।
(जैश्री) ‘हितहरिबंस' मगन मन स्यामा। राधा-रमन सकल सुखधामा॥

 ताते भैया, मेरी सौं, कृष्णगुन संचु हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

ताते भैया, मेरी सौं, कृष्णगुन संचु।
कुत्सित बाद बिकारहिं परधन, सुनु सिख परतिय बंधु॥
मणि-गुण-पुंज जु ब्रजपति छाँड़त ‘हित हरिवंस' सुकर गहि कंचु ।
पायो जानि जगत में सब जन कपटी कुटिल कलिजुगी टंचु।
इहि परलोक सकल सुख पावत, मेरी सौं, कृष्ण गुन संचु॥

 मानुष कौ तन पाइ भजौ ब्रजनाथ कों हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

मानुष कौ तन पाइ भजौ ब्रजनाथ कों।
दर्बी लैकैं मूढ़ जरावत हाष कों॥
‘हित हरिवंस' प्रपंच विषयरस मोह के।
बिनु कंचन क्यो चलें पचीसा लोह के॥

 देखौ भाई, सुंदरता की सींवा हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

देखौ भाई, सुंदरता की सींवा।
ब्रज-नव-तरुनि-कंदब-नागरी निरखि करति अध ग्रीवा॥
जो कोउ कोटि कलप लगि जोवै रसना कोटिक पावै।
तऊ रुचिर बदनारविंद की सोभा कहति न आवै॥
देवलोक भुवलोक रसातल सुनि कबिकुल मन डरियै।
सहज माधुरी अंग-अंग की, कहि कासों पटतरियै॥
(जैश्री) ‘हित हरिवंस' प्रताप रूप गुन बय बल स्याम उजागर।
जाकौ भू-बिलास बस पसुरिव, दिन बिथकित रससागर॥

 ब्रज-नव-तरुनि-कदंब-मुकुट मनि हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

ब्रज-नव-तरुनि-कदंब-मुकुट मनि स्यामा आजु बनी।
नख-सिख लौं अंग-अंग माधुरी मोहे स्याम धनी॥
यौं राजत कबरी गूथित कच कनककंज-बदनी॥
चिकुर चंद्रकनि बीच अरघ बिधु मानौं ग्रसत फनी॥
सौभग रस सिर स्रवत पनारी पिय सीमंत ठनी॥
भ्रकुटि काम कोदंड, नैन सर, कज्जल रेख अनी॥
भाल तिलक, ताटंक गंड पर, नासा जलज मनी।
दसन कुंद, सरसाधर-पल्लव पीतम-मन-समनी॥
(जैश्री) ‘हितहरिबंस' प्रसंसित स्यामा, कीरति विसद घनी।
गावत श्रवननि सुनत सुखाकर विस्व-दुरित-दबनी॥

 मधुरितु बृंदाबन आनंद न थोर हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

मधुरितु बृंदाबन आनंद न थोर।
राजति नागरी नव कुसल किसोर॥
जूथिका जुगलरूप मंजरी रसाल।
बिथकित अलि मधु माधवी गुलाल॥
चंपक बकुल कुल बिबिध सरोज।
केतकी मेदिनी मद मुदित मनोज॥
रोचक रुचिर बहै त्रिविध समीर।
मुकुलित चूत नदति पिक कीर॥
पावन पुलिन घन मंजुल निकुंज।
किसलय सैन रचित सुखपुंज॥
मंजीर मुरज डफ मुरली मृदंग।
बाजत उपंग बीना वर मुख-चंग॥
मृगमद मलयज कुंकुम अबीर।
बदन अगर-सत सुरभित चीर॥
गावत सुंदर हरि सरस धमारि॥
पुलकित खग-मृग बहत न बारि॥
(जैश्री) ‘हितहरिबंस' हंस-हंसिनी-समाज।
ऐसे ई करहु मिलि जुग-जुग राज॥

 हितहरिवंश प्रपंच वंच हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

(जैश्री) ‘हितहरिवंश प्रपंच वंच सब काल व्याल कौ खायो।
यह जिय जानि स्याम–स्यामा-पद-कमल संगिरे सिर नायो॥

 जोई-जोई प्यारो करैं हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

जोई-जोई प्यारो करैं सोई मोहि भावै।
भावै मोहि जोई, सोई-सोई करें प्यारे॥
मोकों तो भावती ठौर प्यारे के नैनन में,
प्यारे भये चाहैं मेरे नैनन के तारे॥
मेरे तन-मन-प्रानहूँ तें प्रीतम प्रिय आपने,
कोटिक प्रान प्रीतम मोसों हारे।
(जैश्री) 'हितहरिबंस' हंस-हंसिनी स्यामल गौर,
कहौ, कौन करै जल-तरंगिनि न्यारे॥

 प्रीति न काहु कि कानि बिचारै हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

प्रीति न काहु कि कानि बिचारै॥
मारग अपमारग विथकित मन, को अनुसरत निबारै॥
ज्यौं पावस सलिता-जल उमगति, सनमुख सिंधु सिधारै।
ज्यौं नादहि मन दिये कुरंगनि, प्रगट पारधी मारै॥
(जैश्री) ‘हित हरिवंस' लग-सारँग ज्यौं सलभ सरीरहिं जारै।
नाइक निपुन नवलमोहन बिनु कौन अपनपौ हारे॥

 आजु नीकी बनी राधिका नागरी हितहरिवंश पद  Hitharivansh ke Pad 

आजु नीकी बनी राधिका नागरी।
ब्रज जुवति जूथ में रूप अरु चतुरई,
सील-सिंगार-गुन-सबनि तें आगरी॥
कमल दच्छिन भुजा बाम भुजा अंसु सखि,
गावती सरस मिलि मधुर सुर’ राग री॥
सकल विद्या विहित रहसि ‘हरिबंस' हित,
मिलत नव कुंज बर स्याम बड़ भाग रीं॥

हितहरिवंश की कुंडलियाँ 

चकई प्रान जु घट रहै हितहरिवंश


 
चकई प्रान जु घट रहै, पिय बिछुरत निकज्ज।

सर-अंतर अरु काल निसि, तरफ़ तेज घन गज्ज॥
तरफ़ तेज घन गज्ज, लज्ज तुव बदन न आवै।

जल-विहीन कर नैन भोर किहि भाय दिखावै॥
‘हितहरिवंश', विचारि कौन अस बाद जु बकई॥

सारस यह संदेह प्रान-घट रहै जु चकई॥

हितहरिवंश के छप्पय

तैं भाजन कृत जटित बिमल हितहरिवंश



तैं भाजन कृत जटित बिमल चंदन कृत इंधन।

अमृत पूरि तिहि मध्य करत सरषप बल रिंघन॥
अद्भुत घर पर करत कष्ट कंचन हल बाहत।

बारि करत पावारि मंद बोवन विष चाहत॥
‘हितहरिवंस' विचारिकैं यह मनुज-देह गुरु चरन गहि।

सकहि तौ सब परपंच तजि श्रीकृष्ण-कृष्ण गोविंद कहि॥

हितहरिवंश परिचय 

गोस्वामी हितहरिवंश का जन्म मथुरा मण्डल के अन्तर्गत बाद ग्राम में वि ० सं ० १५५९ में वैशाख मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को प्रातः काल हुआ।[1] इनके पिता नाम व्यास मिश्र और माता का नाम तारारानी था। जन्म के अवसर पर इनके पिता बादशाह के साथ दिल्ली से आगरा जा रहे थे। मार्ग में ही बाद ग्राम में हितहरिवंश जी का जन्म हुआ। इनके जन्म के बाद व्यास मिश्र देवबन में रहने लगे[1] कहते हैं कि हितहरिवंश स्वप्न में राधिकाजी ने मंत्र दिया और इन्होंने अपना एक अलग संप्रदाय चलाया। अत: हित सम्प्रदाय को माध्व संप्रदाय के अंतर्गत मान सकते हैं। गोस्वामी जी ने सन् 1525 ई. में श्री राधावल्लभ जी की मूर्ती वृंदावन में स्थापित की और वहीं विरक्त भाव से रहने लगे।

Harivansh Mahaprabhu ji 010

Comments