Aalam Sheikh Kavita आलम शेख की कविताएँ

 

आलम-केलि आलम शेख
Aalam-Keli Aalam Sheikh

आलम-केलि आलम
बाल-लीला

1. पालने खेलत नंद-ललन छलन बलि आलम शेख 

पालने खेलत नंद-ललन छलन बलि,

गोद लै लै ललना करति मोद गान है ।

'आलम' सुकवि पल पल मैया पावै सुख,

पोषति पीयूष सुकरत पय पान है ।

नंद सों कहति नंदरानी हो महर सुत,

चंद की सी कलनि बढ़तु मेरे जान है ।

आइ देखि आनंद सों प्यारे कान्ह आनन में,

आन दिन आन घरी आन छबि आन है ।।1।।

2. झीनी सी झंगूली बीच झीनो आँगु झलकतु आलम शेख 

झीनी सी झंगूली बीच झीनो आँगु झलकतु,

झुमरि झुमरि झुकि ज्यों क्यों झूलै पलना ।

घुंघरू घुमत बनै घुंघुरा के छोर घने,

घुंघरारे बार मानों घन बारे चलना ।

आलम रसाल जुग लोचन बिसाल लोल,

ऐसे नंदलाल अनदेखे कहूँ कल ना ।

बेर बेर फेरि फेरि गोद लै लै घेरि घेरि,

टेरि टेरि गावें गुन गोकुल की ललना ।।2।।

3. जसुदा के अजिर बिराजें मनमोहन जू आलम शेख 

जसुदा के अजिर बिराजें मनमोहन जू,

अंग रज लागै छबि छाजै सुरपाल की ।

छोटे छोटे आछे पग घुंघरू घूमत घने,

जासों चित हित लागै सोभा बालजाल की ।

आछी बतियाँ सुनाबै छिनु छांड़िबौ न भावै,

छाती सों छपावै लागै छोह वा दयाल की ।

हेरि ब्रज नारि हारी वारि फेरि डारी सब,

आलम बलैया लीजै ऐसे नंदलाल की ।।3।।

4. दैहों दधि मधुर धरनि धरयौ छोरि खैहै आलम शेख 

दैहों दधि मधुर धरनि धरयौ छोरि खैहै,

धाम तें निकसि धौरी धैनु धाय खोलिहैं ।

धूरि लोटि ऐहैं लपटैहैं लटकत ऐहैं,

सुखद सुनैहैं बैनु बतियाँ अमोल हैं ।

'आलम' सुकवि मेरे ललन चलन सीखें,

बलन की बाँह ब्रज गलिनि में डोलिहैं ।

सुदिन सुदिन दिन ता दिन गनौंगी माई,

जा दिन कन्हैया मोसों मैया कहि बोलिहैं ।।4।।

5. ढौरी कौन लागी ढुरि जैबे की सिगरो दिन आलम शेख 

ढौरी कौन लागी ढुरि जैबे की सिगरो दिन,

छिनु न रहत घरै कहों का कन्हैया कों ।

पल न परत कल विकल जसोदा मैया,

ठौर भूले जैसे तलबेली लगै गैया कों ।

आँचर सों मुख पोंछि पोंछि कै कहति तुम,

ऐसे कैसे जान देत कहूँ छोटे भैया कों ।

खेलन ललन कहूँ गए हैं अकेले नेंकु,

बोलि दीजै बलन बलैया लाग मैया कों ।।5।।

6. ऐसौ बारौ बार याहि बाहरौ न जान दीजै आलम शेख 

ऐसौ बारौ बार याहि बाहरौ न जान दीजै,

बार गये बौरी तुम बनिता संगन की ।

ब्रज टोना टामन निपट टोनहाई डोलैं,

जसोदा मिटाउ टेव और के अंगन की ।

'आलम' लै राई लौन वारि फेरि डारि नारि,

बोलि धौं सुनाइ धुनि कनक कंगन की ।

छीर मुख लपटाये छार बकुटनि भरें, छीया,

नेंकु छबि देखो छगंन-मंगन की ।।6।।

7. बीस बिधि आऊँ दिन बारीये न पाऊँ और आलम शेख 

बीस बिधि आऊँ दिन बारीये न पाऊँ और,

याही काज वाही घर बांसनि की बारी है ।

नेंकु फिरि ऐहैं कैहैं दै री दै जसोदा मोहि,

मो पै हठि मांगैं बंसी और कहूँ डारी है ।

'सेख' कहै तुम सिखवो न कछु राम याहि,

भारी गरिहाइनु की सीखें लेतु गारी है ।

संग लाइ भैया नेंकु न्यारौ न कन्हैया कीजै,

बलन बलैया लैकें मैया बलिहारी है ।।7।।

8. मन की सुहेली सब करतीं सुहागिनि सु आलम शेख 

मन की सुहेली सब करतीं सुहागिनि सु,

अंक की अँकोर दै कै हिये हरि लायौ है ।

कान्ह मुख चूमि चूमि सुख के समूह लै लै,

काहू करि पातन पतोखी दूध प्यायौ है ।

'आलम' अखिल लोक लोकनि को अंसी ईस,

सूनो कै ब्रह्मांड सोई गोकुल में आयौ है ।

ब्रह्म त्रिपुरारि पचि हारि रहे ध्यान धरि,

ब्रज की अहीरिनि खिलौना करि पायौ है ।।8।।

9. चारोंदस भोन जाके रवा एक रेनु को सो आलम शेख 

चारोंदस भोन जाके रवा एक रेनु को सो,

सोई आजु रेनु लावै नंद के अवास की ।

घट घट शब्द अनहद जाको पूरि रह्यो,

तैई तुतराइ बानी तोतरे प्रकास की ।

'आलम' सुकवि जाके त्रास तिहुँ लोक त्रसै,

तिन जिय त्रास मानी जसुदा के त्रास की ।

इनके चरित चेति निगम कहत नेति,

जानी न परत कछु गति अविनास की ।।9।।

बय:संधि-वर्णन

10. कंज की सी कोर नैना ओरनि अरुन भई आलम शेख 

कंज की सी कोर नैना ओरनि अरुन भई,

कीधौं चम्पी सींब चपलाई ठहराति है।

भौहन चढ़ति डीठि नीचे कों ढरनि लागी,

डीठि परे पीठि दै सकुचि मुसकाति है ।

सजनी की सीख कछु सुनी अनसुनी करें,

साजन की बातें सुनि लाजन समाति है ।

रूप की उमंग तरुनाई को उठाव नयो,

छाती उठि आई लरिकाई उठी जाति है ।।10।।

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11. चंद को चकोर देखै निसि दिन करै लेखै आलम शेख 

चंद को चकोर देखै निसि दिन करै लेखै,

चंद बिन दिन दिन लागत अंधियारी है ।

आलम सुकवि कहै भले फल हेत गहे,

कांटे सी कटीली बेलि ऎसी प्रीति प्यारी है ।

कारो कान्ह कहत गंवार ऎसी लागत है,

मेरे वाकी श्यामताई अति ही उजारी है ।

मन की अटक तहां रूप को बिचार कैसो,

रीझिबे को पैड़ो अरु बूझ कछु न्यारी है ।।148।।

12. कछु न सुहात पै उदास परबस बास आलम शेख 

कछु न सुहात पै उदास परबस बास,

जाके बस जै तासों जीतहँ पै हारिये ।

'आलम' कहै हो हम, दुह विध थकीं कान्ह,

अनदेखैं दुख देखैं धीरज न धारिये ।

कछु लै कहोगे कै, अबोले ही रहोगे लाल,

मन के मरोरे की मन ही मैं मारिये ।

मोह सों चितैबो कीजै, चितँ की चाहि कै,

जु मोहनी चितौनी प्यारे मो तन निवारिये ।।187।।

Palne Khelat Nand-Lalan Chhalan Bali Alam Sheikh

Jhini Si Jhanguuli Beech Jheeno Aangu Jhalaktu Alam Sheikh

Jasuda Ke Ajir Birajen Manmohan Joo Alam Sheikh

Daihon Dadhi Madhur Dharn Dharyau Chhori Khaihai Alam Sheikh

Dhauri Kaun Lagi Dhuri Jaibe Ki Sigro Din Alam Sheikh

Aisau Barau Baar Yahi Baharau Na Jaan Dijai Alam Sheikh

Bees Bidhi Aaoon Din Baariye Na Paaoon Aur Alam Sheikh

Man Ki Suheli Sab Kartin Suhagini Su Alam Sheikh

Chaarondas Bhon Jake Rawa Ek Renu Ko So Alam Sheikh

Kanj Ki Si Kor Naina Orni Arun Bhai Alam Sheikh

Chand Ko Chakor Dekhai Nisi Din Karai Lekhai Alam Sheikh

Kachhu Na Suhaat Pai Udaas Parbas Baas Alam Sheikh


aalam shaikh kavi ki kavita rachna


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