Banarasi Das ke Kavitt बनारसी दास के पद कवित्त सवैया छप्पय

 बनारसी दास के छप्पय Banarasi Das ke Chhappay


घान यान मिष्ठान बनारसी दास
Ghan yan mishthan Banarasi Das


घान यान मिष्ठान, मोम मादक नवनिज्जै। 

लवण हिंगु घृत तैल, वनिज कारण नहिं लिजै॥ 

पशुभाड़ा पशुवणिज, शस्त्र विक्रय न करिज्जै। 

जहां निरन्तर अग्नि करम, सो वणिज न किज्जै॥ 

मधु नील लाख विष वणिज तज, कूप तलाब न सोखिये। 

लहिये न धरम गृह वासवस, हिंसक जीव न पोखिये॥ 



बनारसी दास के सवैया 
Banarasi Das ke Sawaiya


धीरज तात क्षमा जननी बनारसी दास

Dheeraj taat kshama jananee Banarasi Das


धीरज तात क्षमा जननी, परमारथ मीत महारुची भासी। 

ज्ञान सुपुत्र सुता करुणा, मति पुत्रवधू समता अतिभासी॥ 

उद्यम दास विवेक सहोदर, बुद्धि कलत्र शुभोदय दासी। 

भाव कुटुंब सदा जिनके ढिग, यों मुनि को कहिये गृहवासी॥ 



पुण्य सँजोग जुरे रथ पायक बनारसी दास
Punya sanjog jure rath payak Banarasi Das


पुण्य सँजोग जुरे रथ पायक, मोत मतंग तुरंग तबेले। 

मान विभौ अँग यों सिरमार, कियो विसतार परिग्रह ले ले॥ 

बंध बढाय करी थिति पूरण, अंत चले उठ आप अकेले। 

हारि हमाल की पोट-सी डारि के,और दीवार की ओट व्है खेले॥ 

सम्यक ज्ञान नहीं उर अंतर बनारसी दास
Samyak gyaan nahin ur antar Banarasi Das


सम्यक ज्ञान नहीं उर अंतर, कीरति कारण भेष बनावें। 

मौन तजें वनवास गहें मुख, मौन रहें तपसों तन जावैं॥ 

जोग अजोग कछू न विचारत, मूरख लोगन को भरमावें। 

फैल करें बहु जैन कथा कहि, जैन बिना नर जैन कहावें॥ 


बनारसी दास के पद
Banarasi Das ke Pad



दुबिधा कब जैहैं या मन की बनारसी दास
Dubidha kab jaihain ya man kee Banarasi Das


 
दुबिधा कब जैहैं या मन की। 

कब जिननाथ निरंजन सुमिरौं, तजि सेवा जन जन की। 

कब रुचि सौं पीवै दृग चातक, बूँद अखय पद घन की। 

कब शुभ ध्यान धरौं समता गहि, करूँ न ममता तन की। 

दुबिधा कब जैहैं या मन की। 



सुखमैं मानै मैं सुखी बनारसी दास
Sukhmain manai main sukhee Banarasi Das


 
सुखमैं मानै मैं सुखी, दुखमैं दुखमय होइ। 

मूढ़ पुरुषकी दिष्टिमैं, दीसैं सुख दुख दोइ॥ 

ग्यानी संपति विपतिमैं, रहै एकसी भांति। 

ज्यौं रवि ऊगत आथवत, तजै न राती कांति॥ 


बनारसी दास के पद Banarasi Das ke Pad


जीव के बधैया वामविद्या के सधैया दावा बनारसी दास के पद
Jeev ke badhaiya vaamvidya ke sadhaiya daava Banarasi Das ke Pad


जीव के बधैया वामविद्या के सधैया,.
दावानल के दधैया बन आखेटक करमी।.
जुआरी लबार परधन के हरनहार,.
चौरी के करनहार दारी के अशरमी॥.
माँस के भखैया सूरापान के चखैया,.
परबधू के लखैया जिनके हिये न नरमी।.
रोष के गहैया परदोष के कहैया येते,.
पापी नर नीच निरदै महा अधरमी॥.

काया चित्रसारी में करम परजंक भारी बनारसी दास के पद
Kaaya chitrasaaree mein karam parjank bhaaree Banarasi Das ke Pad


काया चित्रसारी में करम परजंक भारी,.
माया की सवाँरी सेज चादर कलपना।.
शयन करै चेतन अचेतनता नींद लिए,.
मोह की मरोर यहै लोचन को ढपना।.
उदे बल जोर यहै श्वास को सबद घोर,.
बिषय सुखकारी जा की दौर यहै सपना।.
ऐसी मूढ़ दशा में मगन रहै तिहुँ काल,.
धावे भ्रमजाल में न पावै रूप अपना॥.
kaaya chitrasaarii me.n karam parja.nk bhaarii,.
maaya kii savaa.nrii sej chaadar kalapna।.
shayan karai chetan achetanta nii.nd li.e,.
moh kii maror yahai lochan ko Dhapna।.
ude bal jor yahai shvaas ko sabad ghor,.
bishay sukhkaarii ja kii daur yahai sapna।.
aisii muuDh dasha me.n magan rahai tihu.n kaal,.
dhaave bhramjaal me.n n paavai ruup apnaa||.
kaaya chitrasaarii me.n karam parja.nk bhaarii,.
maaya kii savaa.nrii sej chaadar kalapna।.
shayan karai chetan achetanta nii.nd li.e,.
moh kii maror yahai lochan ko Dhapna।.
ude bal jor yahai shvaas ko sabad ghor,.
bishay sukhkaarii ja kii daur yahai sapna।.
aisii muuDh dasha me.n magan rahai tihu.n kaal,.
dhaave bhramjaal me.n n paavai ruup apnaa||.

जैसे कोऊ पातुर बनाय वस्त्र आभरन बनारसी दास के पद

Jaise koou paatur banay vastar aabharn Banarasi Das ke Pad


जैसे कोऊ पातुर बनाय वस्त्र आभरन,.
आवति अखारे निसि आड़ौ पट करि कै।.
दुहूँ और दीवटि सँवारि पट दूरि कीजै,.
सकल सभा के लोग देखैं दृष्टि धरि कै।.
तैसें ज्ञान सागर मिथ्याति ग्रंथि भेदि करि,.
उमग्यो प्रगट रह्यो तिहूँ लोक भरि कै।.
ऐसो उपदेश सुनि चाहिए जगत जीत,.
सुद्धता सँभारै या जाल सौं निसरि कै॥.
jaise ko.uu paatur banaay vastr aabharan,.
aavati akhaare nisi aaDau paT kari kai।.
duhuu.n aur diivaTi sa.nvaari paT duuri kiijai,.
sakal sabha ke log dekhai.n drishTi dhari kai।.
taise.n j~na.aan saagar mithyaati gra.nthi bhedi kari,.
umagyo pragaT rahyo tihuu.n lok bhari kai।.
aiso updesh suni chaahi.e jagat jiit,.
suddhata sa.nbhaarai ya jaal sau.n nisri kai||.
jaise ko.uu paatur banaay vastr aabharan,.
aavati akhaare nisi aaDau paT kari kai।.
duhuu.n aur diivaTi sa.nvaari paT duuri kiijai,.
sakal sabha ke log dekhai.n drishTi dhari kai।.
taise.n j~na.aan saagar mithyaati gra.nthi bhedi kari,.
umagyo pragaT rahyo tihuu.n lok bhari kai।.
aiso updesh suni chaahi.e jagat jiit,.
suddhata sa.nbhaarai ya jaal sau.n nisri kai||.

पूरब कि पश्चिम हो उत्तर कि दक्षिण हो बनारसी दास के पद

Poorab ki pashchim ho uttar ki dakshin ho Banarasi Das ke Pad


पूरब कि पश्चिम हो उत्तर कि दक्षिण हो,.
दिशि हो कि विदिश कहउ तहाँ धाइये।.
पढ़िये पढ़ाइये कि गढ़िये गढ़ाइये कि,.
नाचिये नचाइये कि गाइये गवाइये॥.
न्हाये बिन खाइये कि न्हायकर खाइये कि,.
खाय कर न्हाइये कि न्हाइये न खाइये।.
जोग कीजे भोग कीजे दान दीजे छीन लीजे,.
जिहि विधि जाने जाहु सो विधि बताइये॥.

बालक दशा की मरजाद दश बरस लों बनारसी दास के पद

Baalk dasha kee marjaad dash varsh lon Banarasi Das ke Pad


बालक दशा की मरजाद दश बरस लों,.
बीस लों बढ़ति तीस लों सुछवि रही है।.
चालीस लों चतुराई पचास लों थूलताई,.
साठ लग लोचन की दृष्टि लहलही है॥.
सत्तर लों श्रवण असी लों पुरुषत्व नित्या-.
नचे लग इंन्द्रिन की शकति उमही है।.
सौ लों चित चेत एक सौ दशोत्तर लों आयु,.
मानुष जनम ताकी पूरीधिति कही है॥.

दिशि औ विदिशि दोऊ जगत की मरजाद बनारसी दास के पद

Dishy au vidishy doou jagat kee marjaad Banarasi Das ke Pad


दिशि औ विदिशि दोऊ जगत की मरजाद,.
पढिये शबद गढ़िये सु जड़ साव है।.
नाचिये सुचित चपलाय गाइये सुधुनी,.
न्हाइये सुवन शुचि खाइये सुनाज है॥.
पर को संजोग सुतो योग विषै स्वाद भोग,.
दीजे लीजे माया सो तो मरम को काज है।.
इन तें अतीत कोऊ चेतन को पुंज तो में,.
ताके रूप जानवे को जानबो इलाज है॥.

पूर्व बंध नासे सो तो संगीत कला प्रकासे बनारसी दास के पद

Poorv bandh naase so to sangit kala prakaase Banarasi Das ke Pad


पूर्व बंध नासे सो तो संगीत कला प्रकासे,.
नव बँध रुँधि ताल तोरत उछरि कै।.
निसंकित आदि अष्ट अंग संग सखा जोरि,.
समता अलापचारी करै सुर मरि कै।.
निरजरा नाद गाजै ध्यान मिरदंग बाजै,.
छायौ महानंद में समाधि रीझि करि कै।.
सत्ता रंगभूमि में मुकत भयौ तिहूँ काल,.
नाचै सुद्धदिष्टि नट म्यान स्वांग धरि कै॥.
puurv ba.ndh naase so to sa.ngiit kala prakaase,.
nav ba.ndh ru.ndhi taal torat uchhri kai।.
nisa.nkit aadi ashT a.ng sa.ng sakha jori,.
samta alaapachaarii karai sur mari kai।.
nirajra naad gaajai dhyaan mirda.ng baajai,.
chhaayau mahaana.nd me.n samaadhi riijhi kari kai।.
satta ra.ngbhuumi me.n mukat bhayau tihuu.n kaal,.
naachai suddhadishTi naT myaan svaa.ng dhari kai||.
puurv ba.ndh naase so to sa.ngiit kala prakaase,.
nav ba.ndh ru.ndhi taal torat uchhri kai।.
nisa.nkit aadi ashT a.ng sa.ng sakha jori,.
samta alaapachaarii karai sur mari kai।.
nirajra naad gaajai dhyaan mirda.ng baajai,.
chhaayau mahaana.nd me.n samaadhi riijhi kari kai।.
satta ra.ngbhuumi me.n mukat bhayau tihuu.n kaal,.
naachai suddhadishTi naT myaan svaa.ng dhari kai||.

मानुष जनम लह्यो सम्यक दरश गह्यो बनारसी दास के पद

Maanush janam lahyo samyak darsh gahyo Banarasi Das ke Pad


मानुष जनम लह्यो सम्यक दरश गह्यो,.
अजहूँ विषै विलास त्याग मन बावरे।.
संपति विपति आये हरष विषाद छोड़,.
ताही ओर पीठ ओढ़ जैसी बहै बावरे॥.
भौ थिति निकट आई समता सुथाह पाई,.
गयो है निघटि जल मिथ्यात डुबावरे।.
टूटैगो करम फास छूटैगो जगत वास,.
केवल उदै समीप आयो परेवा वरे॥.

मुकता को स्वामी चन्द मूंगानाथ महीनन्द बनारसी दास के पद

मुकता को स्वामी चन्द मूंगानाथ महीनन्द,.
गोमेदक राजा राहु लीलापति शनी है।.
केतु लहसुनी सुरपुष्प राग देव गुरु,.
पन्ना को अधिप बुध शुक्र हीरा धनी है॥.
याही कम कीजे घेर दक्षिणावरत फेर,.
माणिक सुमेर वीच प्रभु दिनमनी है।.
आठों दल आठ ओर, करणिका मध्य ठोर,.
कौल के-से रूप नौ गृही अनूप बनी है॥.

कंचन भंडार पाय रंच न मगन हूजे बनारसी दास के पद

Kanchan bhandar payyo ranch na magan hooye Banarasi Das ke Pad


कंचन भंडार पाय रंच न मगन हूजे,.
पाय नवयोवना न हूजे जो बनारसी।.
काल असिधारा जिन जगत बनाय सोई,.
कामिनी कनक मुद्रा दुहुं को बनारसी॥.
दोऊ विनाशी सदीव तूहै अविनाशी जीव,.
या जगत कूप बीच ये ही डोबनारसी।.
इनको तू संग त्याग कूप सों निकसि भाग,.
प्राणी मेरे कहे लाग कहत बनारसी॥.

लोभवंत मानुष जो औगुण अनंत ता में बनारसी दास के पद

Lobhavant maanush jo augun anant ta mein Banarasi Das ke Pad


लोभवंत मानुष जो औगुण अनंत ता में,.
जाके हियें दुष्टता सो पापी परधीन है।.
जाके मुख सत्यवानी सोई तप को निधानी,.
जाकी मनसा पवित्र सो तीरथ थान है॥.
जा में सज्जन की रीति ताकी सबहीं सों प्रीति,.
जाकी भली महिमा सो आभरणवान है।.
जामें है सुविद्या सिद्धि ताही के अटूट ऋद्धि,.
जाको अपजस सो तो मृतक समान है॥.

जा में सदा उतपात रोगन सों छीजै गात बनारसी दास के पद

Ja mein sada utpaat rogan son chhijai gaat Banarasi Das ke Pad


जा में सदा उतपात रोगन सों छीजै गात,.
कछू न उपाय छिन-छिन आयु खपनो।.
कीजे बहु पाप औ नरक दुख चिन्ता व्याप,.
आपदा कलाप में विलाप ताप तपनो॥.
जा में परिगह को विषाद मिथ्या बकवाद,.
विषैभोग सुख को सवाद जैसो सपनो।.
ऐसो है जगतवास जैसो चपला विलास,.
तामें तूं मगन भयो त्याग धर्म अपनो॥.



bhaktikaal kavi banarasidas


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