हेमचंद्र के दोहे (जैन कवि-वैयाकरण) Hemchandra ke Dohe

अगलिअ-नेह-निवट्टाहं जोअण-लक्खु वि जाउ।

वरिस-सएण वि जो मिलइ सहि सोक्खहं सो ठाउ॥


अगलित स्नेह में में पके हुए लोग लाखों योजन भी चले जाएँ और सौ वर्ष बाद भी यदि मिलें तो हे सखि, मैत्री का भाव वही रहता है।


व्याख्या


साव-सलोणी गोरडी नवखी क वि विस-गंठि।


भडु पच्चलिओ सो मरइ जासु न लग्गइ कंठि॥

सर्वांग सुंदर गोरी कोई नोखी विष की गाँठ है। योद्धा वास्तव में वह मरता है जिसके कंठ से वह नहीं लगती।


व्याख्या



अङ्गहिं अङ्ग न मिलिउ हलि अहरेँ अहरु न पत्तु।

पिअ जोअन्तिहे मुह-कमलु एम्वइ सुरउ समत्तु॥


हे सखि, अंगों से अंग नहीं मिला; अधर से अधरों का संयोग नहीं हुआ; प्रिय का मुख-कमल देखते-देखते यों ही सुरत समाप्त हो गई।


व्याख्या


जइ ससणेही तो मुइअ अह जीवइ निन्नेह।


विहिं वि पयारेंहिं गइअ धण किं गज्जहिं खल मेह॥

यदि वह प्रेम में है (और प्रिय के साथ नहीं है) तो मर गई और यदि जीवित है व स्नेह से वंचित है (तब भी मर गई)। धन्या दोनों ही तरह से गई; हे दुष्ट मेघ, अब क्यों गरजते हो?


व्याख्या



पाइ विलग्गी अन्त्रडी सिरु ल्हसिउँ खन्धस्सु।

तो वि कटारइ हत्थडउ बलि किज्जउं कंतस्सु॥


पाँव तक अँतड़ियाँ लटक रही हैं, सिर (कटकर) कंधे से झूल गया है, लेकिन हाथ कटारी पर है। ऐसे कंत की मैं बलि जाऊँ।


व्याख्या


दिवेहि विढत्तउँ खाहि वढ़ संचि म एक्कु वि द्रम्मु।


को वि द्रवक्कउ सो पडइ जेण समप्पइ जम्मु॥

हे मूर्ख, दिन-दिन कमाये धन को खा, एक भी दाम संचित मत कर। कोई भी ऐसा संकट आ पड़ेगा जिससे जीवन ही समाप्त हो जाएगा।


व्याख्या



हियडा जइ वेरिअ घणा तो किं अब्भि चडाहुँ।

अम्हाहिं बे हत्थडा जइ पुणु मारि मराहुँ॥


हे मन, यदि दुश्मन बहुत हैं तो क्या बादल पर चढ़ जाऊँ? हमारे भी दो हाथ हैं, मार कर मरेंगे।


व्याख्या


जीविउ कासु न वल्लहउं घणु पणु कासु न इट्ठु।


दोणिण वि अवसर-निवडिअइं तिण-सम गणइ विसिट्ठु॥

जीवन किसे प्यारा नहीं? धन किसे इष्ट नहीं? किंतु मौक़ पड़ने पर महान पुरुष दोनों को तिनके के समान गिनता है।


व्याख्या



जइ केवँइ पावीसु पिउ अकिआ कुड्डु करीसु।

पाणिउ नवइ सरावि जिवं सब्बंगें पइसीसु॥


यदि किसी प्रकार प्रिय को पा लूँगी तो अनोखे खेल करूँगी। पानी नए पुरवा में जैसे प्रविष्ट हो जाता है, मैं भी सर्वांग से प्रिय (के अंग-अंग) में प्रवेश कर जाऊँगी।


व्याख्या


सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ न वि उज्जाण-वणेहिं।


देस रवण्णा होंति वढ़ निवसन्तेहिँ सुअणेहिं॥

हे मूढ़, न सरिताओं से, न सरों से, न सरोवरों से, और न उद्यानों और वनों से भी! किंतु बसते हुए सज्जनों से देश रमणीय होते हैं।


व्याख्या



ओ गोरी-मुह-निज्जिअउ बद्दलि लुक्कु मियंकु।

अन्नु वि जो परिहविय-तणु सो किवँ भवइँ निसंकु॥


ओ देख! गोरी के मुँह (की सुंदरता) से पराजित होकर चंद्रमा बादल में छिप गया। और जो कोई हारे हुए तन वाला है वह निःशंक कैसे भ्रमण कर सकता है!


व्याख्या


बलि-अब्भत्थणि महु-महणु लहुईहूआ सोइ।


जइ इच्छहु वड्डत्तणउं देहु म मग्गहु कोई॥

बलि की अभ्यर्थना करने से (दान मांगने से) विष्णु भी छोटे हो गए। यदि बड़प्पन चाहते हो तो (दान) दो, किसी से माँगो मत।


व्याख्या



एक्कु कइअह वि न आवही अन्नु वहिल्लउ जाहि।

मइँ मित्तडा प्रमाणिअउ पइँ जेहउ खलु नाहिं॥


एक तो कभी भी आता नहीं, दूसरे तुरंत चला जाता है। हे मीत, मैंने प्रमाणित किया कि तुम्हारे जैसा खल कोई नहीं है।


व्याख्या


रक्खइ सा विस-हारिणी बे कर चुम्बिवि जीउ।


पडिबिम्बिउ-मुंजालु जलु जेहिं अडोहिउ पीउ॥

वह पनिहारिन अपने उन दोनों हाथों को चूमकर जी रही है, जिनसे मुंज- प्रतिबिंबित जल प्रिय को पिलाया था।


व्याख्या



ढोल्ला मइँ तुहुँ वारिया मा कुरु दीहा माणु।

निद्दए गमिही रत्तडी दडवड होइ विहाणु॥


हे ढोला, मैंने तुम्हें मना किया कि लंबे समय तक मान मत कर। रात नींद में ही चली जाएगी और शीघ्र ही विहान (सुबह) हो जाएगी।


व्याख्या


वम्भ ते विरला के वि नर जे सव्वंग छइल्ल।


जे बंका ते वंचयर जे उज्जुअ ते बइल्ल॥

हे ब्रह्मन्, वे नर कोई विरले ही होते हैं जो सर्वाङ्ग छैल हों। जो बाँके हैं, वे वंचक होते हैं और जो सरल होते हैं, वे बैल होते हैं।


व्याख्या



जो गुण गोवइ अप्पणा पयडा करइ परस्सु।

तसु हउँ कलि-जुगि दुल्लहहो बलि किज्जउँ सुअणस्सु॥


जो अपना गुण छिपाए और दूसरे का गुण प्रकट करे, कलिकाल में दुर्लभ उस सज्जन पर मैं बलि-बलि जाऊँ।


व्याख्या


पिय-सङ्गमि कउ निद्दडी पिअहो परोक्खहो केम्व।


मइँ विन्नि वि विन्नासिआ निद्द न एम्व न तेम्व॥

प्रिय के संगम में नींद कहाँ! प्रिय के वियोग में भी नींद कैसी! मैं दोनों ही प्रकार विनष्ट हुई; नींद न यों न त्यों।


व्याख्या



भल्ला हुआ जु मारिआ बहिणि महारा कंतु।

लज्जेज्जंतु वयंसिअहु जइ भग्गा धर एंतु॥


हे बहिन, भला हुआ मेरा कंत मारा गया। यदि भागा हुआ घर आता तो मैं सखियों में लजाती।


व्याख्या


अम्बणु लाइवि जे गया पहिअ पराया के वि॥


अवस न सुअहिँ सुहच्छिअहि जिवं अम्हइँ तिवं ते वि॥

प्रीत लगाकर जो कोई बटोही पराए की तरह चले गये वे भी अवश्य ही सुख की सेज पर न सोते होंगे, जैसे हम हैं वैसे वे भी।


व्याख्या



सायरु उप्परि तणु धरइ तलि धल्लइ रयणाइं।

सामि सुभिच्चु वि परिहरइ संमाणेइ खलाइं॥


सागर तिनके को जल के ऊपर रखता है और रत्नों को तल में डाल देता है। स्वामी सुभृत्य को भी छोड़ देता है और खलों का सम्मान करता है।


व्याख्या


बिट्टीए मइँ भणिय तुहुँ मा कुरु बङ्की दिट्ठि।


पुत्ति सकण्णी भल्लि जिवँ मारइ हियइ पइट्ठि॥

हे बिटिया, मैंने तुमसे कहा था कि चितवन बाँकी मत कर। हे पुत्री, वह नोकदार बर्छी की तरह हृदय में समाकर मारती है।


व्याख्या



एइ ति घोड़ा एह थलि एइ ति निसिआ खग्ग।

एत्थु मणीसिम जाणिअइ जो नवि वालइ वग्ग॥


ये वे घोड़े हैं, यह वह स्थली है, ये वे निशित खड्ग हैं, यहाँ यदि घोड़े की बाग न मोड़े तो पौरुष जानिए।


व्याख्या


जे महु दिण्णा दिअहडा दइएँ पवसन्तेण।


ताण गणन्तिए अंगुलिउ जज्जरिआउ नहेण॥

जो दिन मुझे प्रवास पर जाते हुए प्रिय ने दिए थे, उन्हें गिनते हुए मेरी अंगुलियाँ नख से जर्जरित हो गईं।


व्याख्या



साहु वि लोउ तडप्फडइ वड्डत्तणहो तणेण।

वड्डप्पणु परि पाविअइ हत्थिं मोक्कलडेण॥


सभी लोग बड़प्पन के लिए तड़फड़ाते हैं, पर बड़प्पन उदारता के गुण से मिलता है।


व्याख्या


गुणहिं न संपइ कित्ति पर फल लिहिआ भुंजति।


केसरि न लहइ बोड्डिअवि गय लक्खेहिं घेप्पन्ति॥

गुणों से सम्पत्ति नहीं, परंतु कीर्ति मिलती है; फल तो लिखे हुए ही भोगते हैं। सिंह का मूल्य एक कौड़ी भी नहीं, गज लाखों में ख़रीदे जाते हैं।


व्याख्या



पुत्ते जाएँ कवणु गुणु अवगुणु कवणु मुएण।

जा बप्पी की भुंहडी चम्पिज्जइ अवरेण॥


पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ और उसके मरने से क्या हानि यदि पिता की भूमि शत्रु द्वारा दबा ली जाए!


व्याख्या


खग्ग-विसाहिउ जहिँ लहहुँ पिय तहिंदेसहिँ जाहुँ।


रण-दुब्भिक्खें भग्गाइं विणु जुज्झें न वलाहुँ॥

हे प्रिय, जहाँ खड्ग का व्यवसाय हो उसी देश में चलें। रण के अभाव में हम क्षीण हो गए हैं, बिना युद्ध के स्वस्थ नहीं रह पाएँगे।


व्याख्या



पइँ मेल्लन्तिहे महु मरणु मइँ मेल्लन्तहो तुज्झु।

सारस जसु जो वेग्गला सो वि कृदन्तहो सज्झु॥


तुझे छोड़ते हुए मेरा मरण है और मुझे छोड़ते हुए तेरा। सारस के समान जो दूर रहेगा वह यम का साध्य होगा।


व्याख्या


जाइज्जइ तहिं देसडइ लब्भइ पियहो पमाणु।


जइ आवइ तो आणिअइ अहवा तं जि निवाणु॥

उस देश में जाइए जहाँ प्रिय का पता मिले। यदि आए तो लाइए, अथवा वह मेरा निर्वाण हो।


व्याख्या



ब्रासु महारिसि एउ भणइ जइ सुइ-सत्थु पमाणु।

मायहँ चलण नवंताहं दिवि-दिवि गंगा-एहाणु॥


व्यास महर्षि कहते हैं कि यदि श्रुति-शास्त्र प्रमाण है तो माताओं के चरणों में नमन करने वालों का दिन-दिन गंगा-स्नान है।


व्याख्या


एत्तहे तेत्तहे वारि घरि लच्छि विसंठुल धाइ।


पिअ-पब्भठ्ठ व गोरडी निच्चल कहिं वि न ठाइ॥

लक्ष्मी इधर-उधर घर-द्वार अस्थिर होकर दौड़ रही है। प्रिय से बिछड़ी युवती की तरह कहीं भी निश्चल नहीं रहती।


व्याख्या



जिवँ तिवँ वकिंम लोअणहं णिरु सामलि सिक्खेइ।

तिवँ तिवँ वम्महु निअय-सर खर-पत्थरि तिक्खेइ॥


ज्यों-ज्यों श्यामा उत्तरोत्तर लोचनों को बंकिमा सिखाती है, त्यों-त्यों काम अपने शरों को खरे पत्थर पर तीखा करता है।


व्याख्या


बिम्बाहरि तणु रयण-वणु किह ठिउ सिरि आणन्द।


निरुवम-रसु पिएं पिअवि जणु सेसहो दिएणी मुद्द॥

तन्वी के बिंबाधर पर दंत-क्षत की आनंद श्री कैसी स्थित है! अनुपम रस पीकर प्रिय ने मानो शेष पर मुहर लगा दी है।


व्याख्या



बप्पीहा कइँ बोल्लिएण निरिघण वार इ बार।

सायरि भरिअइ विमल-जलि लहहि न एक्कइ धार॥११६॥


हे पपीहा! हे निर्दय! बारंबार बोलने से क्या लाभ? विमल जल से सागर भरने पर भी तू एक भी बूँद न पाएगा।


व्याख्या


जइ रच्चसि जाइट्ठिअए हिअडा मुद्ध-सहाव।


लोहें फुट्टणएण जिवँ घणा सहेसइ ताव॥

हे मुग्ध स्वभाव वाले हृदय! जो जो देखा उसी पर यदि मुग्ध हो गया, तो फूटने वाले लोहे के समान बहुत ताप सहना पड़ेगा।


व्याख्या



विप्पिअ-आरउ जइ वि पिउ तो वि तं प्राणहि अज्जु।

अरिंगण दड्ढा जइवि घरु तो ते अग्गिं कज्जु॥


प्रिय यद्यपि अप्रिय-कारक है तो भी आज उसे ला। आग से यद्यपि घर जल जाता है तो भी उस आग से काम पड़ता ही है।


व्याख्या


केम समप्पउ दुट्ठ दिणु किध रयणी छुडु होइ।


नव-वह-दंसण-लालसउ वहइ मणोरह सोइ॥

दुष्ट दिन कैसे समाप्त हो? रजनी कैसे शीघ्र हो? नव-वधू के दर्शन की लालसा वाला वह (नायक) ये मनोरथ वहन करता है।


व्याख्या



बच्छहे गृण्हइ फलइँ जणु कडु-पल्लव बज्जेइ।

तो वि महद्दुमु सुअणु जिवँ ते उच्छंगि धरेइ॥


लोग वृक्षों से फलों को ग्रहण करते हैं और कड़वे पत्तों को छोड़ देते हैं; तो भी सज्जन की तरह महान् वृक्ष उन्हें गोद में धारण किए रहता है।


व्याख्या


चलेहिँ चलन्तेहिँ लोअणेहिँ जे तइँ दिट्ठा बालि।


तहिं मयरद्धय दडवडउ पडइ अपूरइ कालि॥

हे बाले, जिनको तूने अस्थिर चंचल नयनों से देखा, उन पर समय से पहले ही मकरध्वज (कामदेव) का आक्रमण हो जाता है।


व्याख्या



भमर न रुणझुणि रण्णडइ सा दिसि जोइ म रोइ।

सा मालइ देसंतरिअ जसु तुहुँ मरहि विओइ॥


हे अलि, वन में मत गुनगुना और उधर (उस दिशा में) देखकर मत रो। वह मालती देशांतरित हो गई जिसके वियोग में तू मर रहा है।


व्याख्या


कहिं ससहरु कहिँ मयरहरु कहिँ बरिहिणु कहिं मेहु।


दूर-ठिाएँ वि सज्जणहँ होइ असड्ढलु नेहु॥

कहाँ चंद्रमा और कहाँ समुद्र! कहाँ मोर और कहाँ मेघ! दूर रहने पर भी सज्जनों का असाधारण स्नेह होता है।


व्याख्या



एसी पिउ रूसेसु हउँ रुट्ठी महँ अणुणेइ।

पग्गिम्व एइ मणोरईं दुक्करु दइउ करेइ॥


प्रिय आएगा, मैं रूठूँगी। मुझ रूठी को वह मनाएगा। प्रायः ये मनोरथ कठोर प्रिय करवाता है।


व्याख्या


दिअहा जंति झडप्पडहिं पडहिँ मनोरह पच्छि।


जं अच्छइ तं माणिअइ होसइ करतु म अच्छि॥

दिन झटपट बीतते जाते हैं, मनोरथ पीछे पड़े रह जाते हैं। इसलिए जो है, उसी को मानिये। ‘होगा', यह सोचते हुए मत रहिए।


व्याख्या



महु कंतहो गुट्ट-ट्टिअहो कउ झुम्पडा वलन्ति।

अह रिउ-रुहिरें उल्हवइ अह अप्पणे न भन्ति॥


मेरे कंत के बस्ती में रहते हुए झोपड़े कैसे जलते हैं? या तो वह शत्रु के रक्त से बुझा देता है या अपने रक्त से, इसमें संदेह नहीं है।


व्याख्या


दूरुड्डाणें पडिउ खलु अप्पणु जणु मारेइ।


जिह गिरि-सिंगहुँ पडिअ सिल अन्न वि चूरु करेइ॥

ऊँची उड़ान लेकर गिरा हुआ दुष्ट अपने ही परिजनों को मारता है, जैसे पहाड़ की चोटी से गिरी हुई शिला अन्य शिलाओं को भी चूर करती है।


व्याख्या



सत्थावत्थहँ आलवणु साहु वि लोउ करेइ।

आदन्नहँ मब्भीसडी जो सज्जणु सो देइ॥


ठीक स्थिति वालों से मेलजोल (आलापन) सभी लोग करते हैं। लेकिन दुःखी जनों को अभय-दान वही देता है जो सज्जन है।


व्याख्या


तिलहँ तिलत्तणु ताउँ पर जाउँ न नेह गलन्ति।


नेहि पणट्ठइ ते ज्जि तिल तिल फिट्टवि खल होंति॥

तिलों का तिलत्व तभी तक है जब तक स्नेह नहीं निकल जाता। स्नेह के नष्ट हो जाने पर वे ही तिल फटकर खल (खली और दुष्ट) हो जाते हैं।


व्याख्या



हियडा फुट्टि तड त्ति करि कालक्खेवें काइं।

देखउँ हय-विहि कहिँ ठवइ पइँ विणु दुक्ख-सयाइं॥


हे हृदय, तड़क कर फट जा। काल क्षेप (देर) करने से क्या फ़ायदा? फिर देखें कि यह मुआ विधाता इन सैकड़ों दुखों को तेरे बिना कहाँ रखता है?


व्याख्या


पिउ आइउ सुअ वत्तडी झुणि कन्नडइ पइट्ठि।


तहो विरहहो नासंतअहो धूलडिआवि न दिट्ठ॥

प्रिय आने की बात सुनी; ध्वनि कान में पैठी। नष्ट होते उस विरह की धूल भी न दीखी।


व्याख्या



जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि मज्झु पिएण।

अह भग्गा अम्हहं तणा तो ते मारिअडेण॥


हे सखी, यदि शत्रु भागे हैं तो मेरे प्रिय (के डर) से, और यदि हमारे लोग भागे हैं तो उनके मारे जाने से।


व्याख्या


बप्पीहा पिउ पिउ भणवि कित्तउ रुअहि हयास।


तुह जलि महु पुणु वल्लहइ बिहुँ वि न पूरिअ आस॥

हे पपीहा, पी-पी बोलकर निराश (हताश) कितना रोएगा? तुम्हारी जल से प्रीति और मेरी वल्लभ से प्रीति, (कभी फलीभूत नहीं होगी) —दोनों की आशा पूरी न होगी।


व्याख्या



जइ पुच्छह घर वडड्डाइं तो वड्डा घर ओइ।

विहलिअ-जण-अब्भुद्धरणु कंतु कुडीरइ जोइ॥


जो बड़े घरों को पूछते हो तो बड़े घर वे रहें। दुःखी जनों का उद्धार करने वाले मेरे कंत को इस कुटीर में देखो।


व्याख्या


अम्मडि पच्छायावडा पिउ कलहिअउ विआलि।


घइं विवरीरी बुद्धडी होइ विणासहो कालि॥

हे अम्मा, अफ़सोस हो रहा है कि संध्या समय प्रिय से कलह कर लिया; विनाश के समय बुद्धि विपरीत हो जाती है।


व्याख्या



तणहँ तइज्जी भंगि नवि तें अवड-यडि वसंति।

अह जणु लग्गिवि उत्तरइ अह सह सइँ मज्जंति॥


तृणों की तीसरी दशा नहीं है; वे अवट तट में बसते हैं। या तो लोग उनको पकड़कर पार उतरते हैं या वे उनके साथ स्वयं डूब जाते हैं।


व्याख्या


महु कंतहो वे दोसडा हेल्लि म झेखहि आलु।


देन्तहो हउँ पर उव्वरिअ जुज्झंतहो करवालु॥

मेरे कंत के दो दोष हैं, हे सखी झूठ मत बोल। दान देते हुए केवल मैं बची हूँ (यानी अवसर आ पड़ता तो मुझे भी वे दान में दे देते) और जूझते हुए करवाल।


व्याख्या


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