जसुराम के दोहे (रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि) / Jasuram ke Dohe

राजनीति सबही पढ़े, सब ते राखे स्नेह।

जा के किमत नहिं जसू, लगे कुलच्छन एह॥

  

रैयत सब राज़ी रहै, मेटन राउत मान।

आमद घटै न राय की, ऐसे करै प्रधान॥

 

चोरी चुगली पर तिया, कोऊ काम कुकाम।

एती बात न जानिये, सोऊ रैयत नाम॥

 

जो दीजै परधान पद, तो कीजे इतवार।

जो इतवार न होय जसु, तो परधान निवार॥

 कवि जमाल के दोहे / Jamal ke Dohe



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