सुंदरदास के दोहे (दादूदयाल के प्रमुख शिष्य) Sundardas ke Dohe

सुंदर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कांन।
हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥

सुन्दर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कान।
हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥

सुंदर बिरहनि अति दुखी, पीव मिलन की चाह।
निस दिन बैठी अनमनी, नैननि नीर प्रबाह॥

बहुत छिपावै आप कौं, मुझे न जांगै कोइ।
सुंदर छाना क्यौं रहै, जग में जाहर होइ॥

सुमिरन तें श्रीपति मिलै, सुमिरन तें सुखसार।
सुमिरन तें परिश्रम बिना, सुन्दर उतरै पार॥

सुंदर दुर्जन सारिषा, दुखदाई नहिं और।
स्वर्ग मृत्यु पाताल हम, देखे सब ही ठौर॥

मन ही बडौ कपूत है, मन ही महा सपूत।
सुन्दर जौ मन थिर रहै, तौ मन ही अबधूत॥

देह आप करि मांनिया, महा अज्ञ मतिमंद।
सुंदर निकसै छीलकै, जबहिं उचेरे कंद॥

जो कोउ मारै बान भरि, सुंदर कछु दुख नांहिं।
दुर्जन मारै बचन सौं, सालतु है उर मांहिं॥

सद्गुरु भ्राता नृपति कै, बेड़ी काटै आइ।
निगहबांन देखत रहैं, सुन्दर देहि छुड़ाइ॥

दिस-दिस तें बादल उठे, बोलत चातक मोर।
सुन्दर चक्रित बिरहनी, चित्त रहै नहि ठौर॥

राम नाम शंकर कह्यौ, गौरी कौं उपदेस।
सुंदर ताही राम कौं, सदा जपतु है सेस॥

यौं मति जानै बावरे, काल लगावै बेर।
सुंदर सब ही देखतें, होइ राख की ढेर॥

माता पिता लगावते, छाती सौं सब अंग।
सुन्दर निकस्यौ प्रान जब, कोउ न बैठै संग॥

सुन्दर भइया कहत हौ, मेरी दूजी बांह।
प्राण गयौ जब निकसि कैं, कोउ न चंपै छांह॥

चंच संवारी जिनि प्रभू, चूंन देइगो आंनि।
सुंदर तूं विश्वास गहि, छांडि आपनी बांनि॥

कल न परत पल एक हूँ, छाडे साँस उसाँस।
सुंदर जागी ख़्वाब सौं, देख तौ पिय पास॥

सुन्दर ताला शब्द का, सद्गुरु खोल्या आइ।
भिन्न-भिन्न संमुझाय करि, दीया अर्थ बताइ॥

सुन्दर गर्व कहा करै, देह महा दुर्गंध।
ता महिं तूं फूल्यौ फिरै, संमुझि देखि सठ अंध॥

सुन्दर तूं तौ एकरस, तोहि कहौं समुझाइ।
घटै बढै आवै रहै, देह बिनसि करि जाइ॥

छपन कोटि आज्ञा करैं, मेघ पृथी पर आइ।
सुन्दर भेजैं रामजी, तहं-तहं वरषै जाइ॥

सुन्दर मैली देह यह, निर्मल करी न जाइ।
बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥

सुंदर ग़ाफ़िल क्यौं फिरै, साबधान किन होय।
जम जौरा तकि मारि है, घरी पहरि मैं तोय॥

सुन्दर अविनाशी सदा, निराकार निहसंग।
देह बिनश्वर देखिये, होइ पटक मैं भंग॥

सुंदर सद्गुरु शब्द का, ब्यौरि बताया भेद।
सुरझाया भ्रम जाल ते, उरझाया था बेद॥

सुन्दर पक्षी वृक्ष पर, लियौ बसेरा आनि।
राति रहे दिन उठि गये, त्यौं कुटंब सब जानि॥

सुन्दर माया मोह तजि, भजिये आतम राम।
ये संगी दिन चारि कै, सुत दारा धन धाम॥

मेरै मंदिर माल धन, मेरौ सकल कुटुंब।
सुंदर ज्यौं को त्यौं रहै, काल दियौ जब बंब॥

संत मुक्त के पौरिया, तिनसौं करिये प्यार।
कूंची उनकै हाथ है, सुन्दर खोलहिं द्वार॥

दया करहु अब रामजी, आवौ मेरै भौंन।
सुन्दर भागै दुःख सब, बिरह जाइ करि गौंन॥

चमक-दमक सब मिटि गई, जीव गयौ जब आप।
सुंदर खाली कंचुकी, नीकसि भागौ सांप॥

मेरी मेरी करत है, तोकौं सुद्धि न सार।
काल अचानक मारि है, सुंदर लगै न बार॥

सुन्दर अति अज्ञान नर, समुंझत नहीं लगार।
जिनहि लडावै लाड़ तूं, ते ठोकि हैं कपार॥

सुन्दर दोऊ दल जुरै, अरु बाजै सहनाइ।
सूरा कै मुख श्री चढै, काइर दे फिसकाइ॥

सुन्दर लोग कुटंब सब, रहते सदा हजूरि।
प्रान गये लागे कहन, काढौ घर तें दूरि॥

सुंदर प्रभुजी देत हैं, पाहन मैं पहुंचाइ।
तूं अब क्यौं भूखौ रहै, काहे कौं बिललाइ॥

पाथर से भारी भई, कौन चलावै जाहि।
सुंदर सो कतहुं गयौ, लीयें फिरतौ ताहि॥

भजन किये भगवंत बसि, डोली जन की लार।
सुंदर जैसे गाय कौं, बच्छा सौं अति प्यार॥

करै करावै रामजी, सुन्दर सब घट माँहिं।
ज्यौं दर्पन प्रतिबिंब है, लिपै-छिपै कछु नाँहिं॥

ज्यौं कौ त्यौं ही देखिये, सकल देह कौ ठाट।
सुन्दर को जांणै नहीं, जीव गयौ किहिं बाट॥

राम हि भज्यौ कबीरजी, राम भज्यौ रैदास।
सोझा पीपा राम भजि, सुन्दर हृदय प्रकास॥

राम नाम तिहुं लोक मैं, भवसागर की नाव।
सद्गुरु खेवट बांह दे, सुंदर बेगो आव॥

सुन्दर नारी करत ही, पिय सौं अधिक सनेह।
तिनहूं मन मैं भय धर्यौ, मृतक देखि करि देह॥

सुन्दर बंधै देह सौं, तौ यह देह निषिद्धि।
जौ याकी ममता तजै, तौ याही मैं सिद्धि॥

सुन्दर समझि विचार करि, तेरौ इनमैं कौंन।
आपु-आपु कौं जाहिगें, सुत दारा करि गौंन॥

गोरखधंधा लोह मैं, कड़ी लोह ता मांहि।
सुन्दर जाने ब्रह्म मैं, ब्रह्म जगत द्वै नांहि॥

सुन्दर सद्गुरु हैं सही, सुन्दर सिक्षा दीन्ह।
सुन्दर बचन सुनाइ कै, सुन्दर सुन्दर कीन्ह॥

सुन्दर बंध्या देह सौं, कबहु न छूटा भाजि।
और कियौ सनमंध अब, भई कोढ मैं खाजि॥

सुन्दर पांणी सींचतौ, क्यारी कंण कै हेत।
चेतनि माली चलि गयौ, सूकौ काया खेत॥

बेद नृपति की बंदि मैं, आइ परे सब लोइ।
निहगबांन पंडित भये, क्यों करि निकसै कोइ॥

सुन्दर समझि विचार करि, तेरौ इनमैं कौंन।
आपु-आपु कौं जाहिगें, सुत दारा करि गौंन॥

गोरखधंधा लोह मैं, कड़ी लोह ता मांहि।
सुन्दर जाने ब्रह्म मैं, ब्रह्म जगत द्वै नांहि॥

सुन्दर सद्गुरु हैं सही, सुन्दर सिक्षा दीन्ह।
सुन्दर बचन सुनाइ कै, सुन्दर सुन्दर कीन्ह॥

ना कछु हुवा न होइगा, सद्गुरु सब सिरमौर।
सुन्दर देख्या सोधि सब, तोले तुलत न और॥

सुन्दर संमरथ राम की, मो पै कही न जाइ।
पलही मैं जल थल भरै, पल मैं धूरि उड़ाइ॥

सुन्दर सद्गुरु यौं कह्या, सकल सिरोमनि नाम।
ताकौं निस दिन सुमरिये, सुखसागर सुखधाम॥

सुंदर सद्गुरु सारिषा, उपकारी नहि कोइ।
देष तीनों लोक मैं सरि, भरि कछू न होइ॥

पल मैं कछुव न देखिये, सुद्ध रहै आकाश।
सुन्दर समरथ रामजी, उतपति करै रु नाश॥

सुन्दर सूक्षम दृष्टि ह्वै, तब सद्गुरु दरसाइ।
देखै देहस्थूल कौं, यौं शिष गोता खाइ॥

सुन्दर बिरहनि बंदि मैं, बिरहै दीनी आइ।
हाथ हथकरी तौक गलि, क्यौं करि निकस्यौ जाइ॥

हृदये मेरै तूं बसै, रसना तेरा नाम।
रोम-रोम मैं रमि रह्या, सुन्दर सब ही ठाम॥

संतनि कौं कोउ दुःख दे, तब हरि करै सहाइ।
सुन्दर रांभै बाछरा सुनि करि दौरै गाइ॥

बन बन फिरत उदास ह्वै, कंद मूल फल पात।
सुन्दर हरि कै नाम बिन, सबै थोथरी बात॥

सद्गुरु साह गजेन्द्र है, सुन्दर वस्तु अपार।
जोई आवै लेन कौं, ताकौं तुरत तैयार॥

सुन्दर या सतसंग की, महिमा कहिये कौन।
लोहा पारस कौं छुवै, कनक होत है रौन॥

संत समागम कीजिये, तजिये और उपाइ।
सुन्दर बहुते ऊबरे, संत संगति मैं आइ॥

सुन्दर देह मलीन है, प्रकट नरक की खानि।
ऐसी याही भाक सी, तामैं दीनौ आंनि॥

कर्त्तमकर्त्ता अन्यथा, सुन्दर सिरजनहार।
पलक मांहि उतपति करै, पलक मांहि संहार॥

जन सुन्दर निश्चय बिना, क्यौं करि उपजै ज्ञान।
सद्गुरु दोष न दीजिये, शिष्य मूढ मति जान॥

सुंदर दुःख न मानि तूं, तोहि कहूँ उपदेश।
अब तू कछूक सरम गहि, धौले आये केश॥

आज्ञा मांहीं लक्ष्मी, ठाढी है कर जोरि।
सुन्दर प्रभु सनमुख रहै, दृष्टि सकै नहिं चोरि॥

सुन्दर शिष जिज्ञास ह्वै, सनमुख देषै दृष्टि।
सद्गुरु हृदय उमंगि करि, करै अमी की बृष्टि॥

नेति-नेति कहि थकि रहे, सुन्दर चार्यौं वेद।
अगह अकह अविशेष कौं, कोउ न पावै भेद॥

सुन्दर कहा पखारिये, अति मलीन यह देह।
ज्यौं-ज्यौं माटी धोइये, त्यौं-त्यौं उकटै खेह॥

गुरु शिष्य हि उपदेश दे, यह गुरु शिष व्यवहार।
शब्द सुनत संशय मिटै, सुन्दर सद्गुरु सार॥

धन्य-धन्य मोटा धनी, रच्या सकल ब्रह्मांड।
सुन्दर अद्भुत देखिये, सप्त दीप नौ खंड॥

मात पिता बंधव सकल, सुत दारा सौं हेत।
सुन्दर बंध्या मोहि करि, चेतै नहीं अचेत॥

एकानन चतुराननं, पंचानन षटगीस।
दश सहस्त्रानन कहि थके, सुन्दर गुन जगदीस॥

बिरहा बिरहनि सौं कहत, सुन्दर अति अरि भाव।
जब लग तोहि न पिय मिलै, तब लग घालौ घाव॥

उमै बाहु चहु बाहु पुनि, अष्ट बाहु भुज बीस।
सहस्त्र बाहु नहिं लिखि सकै, सुन्दर गुन जगदीस॥

तृष्णा तूं बौरी भई, तोकों लागी बाइ।
सुन्दर रोकी नां रहै, आगै भागी जाइ॥

सुन्दर वचन सु त्रिबिधि है, उत्तम मध्य कनिष्ट।
एक कटुक इक चरपरै, एक वचन अति मिष्ट॥

सूरज के आगै कहा, करै जींगणा जोति।
सुन्दर हीरा लाल घर, ताहि दिखावै पोति॥

सुन्दर जन हरि कौं भजै, हरिजन कौ आधीन।
पुत्र न जीवै मात बिन, माता सुत सौं लीन॥

सुन्दर सद्गुरु ब्रह्ममय, परि शिष कीचम दृष्टि।
सुधी वोर न देखई, देखै दर्पन पुष्टि॥

राम नाम कौं छाडि कै, और भजै ते मूढ।
सुन्दर दुख पावै सदा, जन्म-जन्म वै हूढ॥

सद्गुरु महिमा अगम अति, क्यौं करि कहौं बनाइ।
सुन्दर मुख तैं सरस्वती, कहत-कहत थकि जाइ॥

सुन्दर जाकी सृष्टि यह, ताकै टोटो कौन।
तूं प्रभु के बिस्वास बिन, परै न हांडी लौन॥

सुन्दर सद्गुरु कै मिलें, संसै हूवा छिन्न।
यौं निश्चय करि जानिया, देह आतमा भिन्न॥

राम भजन राम हि मिलै, तामैं फेर न सार।
सुन्दर भजै सनेह सौं, वाकौं मिलत न बार॥

सुंदर तेरे पेट की, तोकौं चिंता कौन।
बिस्व भरन भगवंत है, पकरि बैठि तूं मौन॥

सिध साधिक जोगी जती, नाइ रहे मुनि सीस।
सुन्दर सबही कहत हैं, जै-जै-जै जगदीस॥

सुंदर चिंता मति हैं, पाँवपसरि सोइ।
पेट कियौ है जिनि प्रभु, ताकौ चिंता होइ॥

सुन्दर जो मुख मूंदि कै, बैठि रहै एकंत।
आनि खवावै रामजी, पकरि उघारै दंत॥

जड़ चेतनि संयोग करि, अद्भुत कीयौ ठाट।
सुन्दर संमरथ रामजी, भिन्न-भिन्न करि घाट॥

जन सुन्दर सतसंग मैं, नीचहु होत उतंग।
परै क्षुद्र जल गंग मैं, उंहै होत पुनि गंग॥

जन सुन्दर सतसंग तें, उपजै निर्गुन भक्ति।
प्रीति लगे परब्रह्म सौं, सब तें होइ बिरक्ति॥

जा बानी हरि गुन बिना, सा सुनिये नहिं कान।
सुन्दर जीवन देखिये, कहिये मृतक समान॥

लीन भया बिचरत फिरै, छीन भया गुन देह।
हीन भई सब कल्पना, सुंदर सुमिरन येह॥

कबहूँ पेट पिरातु है, कबहूँ मांथै सूल।
नैंन नाक मुख मैं बिथा, कबहूँ न पावै सुक्ख॥

सुंदर सद्गुरु शशिमयी, सुधा श्रवै मुख द्वार।
पोष देत हैं सवनि कौं, प्रगटे पर उपकार॥

सुन्दर सूता जीव है, जाग्या ब्रह्म स्वरुप।
जागन सोवन तें परै, सद्गुरु कह्या अनूप॥

तृष्णा कै बसि होइ कै, डोलै घर-घर द्वार।
सुन्दर आदर मांन बिन, होत फिरै नर ख्वार॥

सुन्दर अजिगर परि रहै, उद्धम करै न कोइ।
ताकौं प्रभुजी देत है, तूं क्यौं आतुर होइ॥

सुन्दर बिरहनि बहु तपी, मिहरि कछु इक लेहु।
अवधि गई सब बीति कैं, अब तौ दरसन देहु॥

दूध मांहि ज्यौं जल मिलै, रंगनि मैं ज्यौं नीर।
सद्गुरु हंस जुदा करै, सुन्दर पांणी खीर॥

कबहूँ निकसै न्हारवा, कबहूँ निकसै दाद।
सुन्दर ऐसी देह यह, कबहूँ न मिटै बिषाद॥

सुंदर मुख मैं हाड सब, नैन नासिका हाड।
हाथ पांव सब हाड के, क्यौं नहि समुझत रांड॥

अपने अपने कंत सौं, सब मिलि खेलहिं फाग।
सुन्दर बिरहनि देखि करि, उसी बिरह कै नाग॥

जाकी आज्ञा मैं रहै, सुन्दर सप्त समुंद्र।
सबही मांनहिं त्रास कौं, देवन सहित पुरंद्र॥

ज्यौं हरि भावै त्यौं करै, काले घौले रंग।
धौले तें काले करै, सुन्दर आपु अभंग॥

सुन्दर ऊँचे पग किये, मन की अहं न जाइ।
कठिन तपस्या करत है, अधो सीस लटकाइ॥

ज्यौं ठग मूरी खाई कै, मुखहि न बोलै बैन।
टुगर-टुगर देख्या करै, सुन्दर बिरहा ऐंन॥

सुन्दर मुख मैं हाड सब, नैन नासिका हाड।
हाथ पाँव सब हाड के, क्यौं नहिं समुंझत रांड॥

सुन्दर सद्गुरु शब्द तें, सारे सब बिधि काज।
अपना करि निर्वाहिया, बांह गहे की लाज॥

सुन्दर सद्गुरु प्रगट है, जिनि कै ह्रदै प्रकास।
वे अलिप्त हैं देह सौं, ज्यौं अलिप्त आकास॥

सांई तेरी अगम गति, हिकमति की कुरबान।
सब सिरजै न्यारा रहै, सुन्दर यह हैरान॥

वेद मांहि सब भेद हैं, जाने बिरला कोइ।
सुन्दर सो सद्गुरु बिना, निरवारा नहिं होइ॥

प्रीतम मेरा एक तूं, सुन्दर और न कोइ।
गुप्त भया किस कारने, काहि न परगट होइ॥

एक अन्धेरी रैनि है, दूजै सूनौ भौंन।
सुन्दर रटै पपीहरा, बिरहनि जीवै कौंन॥

प्रीति सहित जे हरि भजे, तब हरि होंहि प्रसन्न।
सुन्दर स्वाद न प्रीति बिन, भूप बिना ज्यौं अन्न॥

रिजक बनायौ रामजी, कापै मेट्यौ जाइ।
सुन्दर धीरज धारि तूं, सहजि रहेगौ आइ॥

ज्यौं का त्यौं ही देखिये, सुन्दर सब ब्रह्मांड।
यह कोई जांनै नहीं, कबकी मांडी मंड॥

सुन्दर सद्गुरु तौ मिलै, जो हरि देहि सुहाग।
मनसा बाचा कामना, प्रगटै पूरन भाग॥

सुन्दर देह मलीन अति, बुरी वस्तु को भौन।
हाड मांस को कौथरा, भली वस्तु कहि कौन॥

राम नाम पीयूष तजि, बिष पीवै मति हीन।
सुंदर डोलै भटकत, जन-जन आगे दीन॥

उपजै बिनसै जगत सब, सुख-दुख बहु संताप।
सुन्दर करि न्यारा रहै, ऐसा समरथ आप॥

सुन्दर काची बिरहनी, मुख तैं करै पुकार।
मरि माहैं मठ ह्वै रहै, बोलै नहीं लगार॥

सद्गुरु शब्द सुनाइ करि, दीया ज्ञान बिचार।
सुन्दर सूर प्रकासिया, मेट्या सब अन्धियार॥

सुन्दर संमरथ राम की, महिमा कही न जाइ।
देखहु या अकाश कौं, क्यौं करि राख्यौ छाइ॥

तृष्णा बहै तरंगिनी, तरल तरी नहिं जाइ।
सुन्दर तीक्षण धार मैं, केते दिये बहाइ॥

राम नाम सौं रत भया, हर्षत हरि कै नाम।
गलित भया गोबिंद सौं, सुंदर आठौ याम॥

ऐसै प्रभु की त्रास है, कंपै सबही लोक।
बार-बार करि कहत हैं, सुन्दर तुम कौं धोक॥

नभ मनि चिंता मनि कहैं, हीरा मनि मनि लाल।
सकल सिरोमनि मुकुटमनि, सद्गुरु प्रकट दयाल॥

चलें हवाई दामिनी, बाजै गरज निसांन।
सुन्दर बिरहनि क्यौं जिवै, घर नहिं कंत सुजांन॥

सुन्दर ऐसै रामजी, ताकौं जानत नांहिं।
पहुंचावत है प्रान कौं, आपुहि बैठौ मांहिं॥

जलचर थलचर ब्योमाचर, सबकौं देत अहार।
सुंदर चिंता जिनि करै, निस दिन बारंबार॥

सुन्दर सूर न गांसणा, डाकि पडै रण मांहिं।
घाव सहै मुख सांमही, पीठि फिरावै नांहिं॥

सुन्दर सद्गुरु श्रम बिना, दूरि किया संताप।
शीतलता हृदये भई, ब्रह्म बिराजै आप॥

एक बूंद तें चित्र यह, कैसौ कियौ बनाइ।
सुन्दर सिरजनहार की, रचना कही न जाइ॥

राम नाम जाकै हृदै, जगत खुसी सब होत।
सुन्दर निंदा करत जे, तेई करैं डंडोत॥

राम नाम श्रवनौ सुन्यौ, रसना कियौ उचार।
सुन्दर पीछै सुरति सौं, हृदय प्रगट रंकार॥

पल-पल छीजै देह यह, घटत-घटत घटि जाइ।
सुन्दर तृष्णा ना घटै, दिन-दिन नौतन थाइ॥

सद्गुरु ही ते पाइये, राम मिलन की बाट।
सुन्दर सब कौ कहत है, कोडा बिना न हाट॥

सुन्दर आज्ञा मैं रहै, दशौं दिशा दिग्पाल।
इलै चलै नहिं ठौर तें, बीति गये बहु काल॥

सुन्दर अपरस धोवती, चौकै बैठौ आइ।
देह मलीन सदा रहै, ताही कै संगि खाइ॥

सद्गुरु देखे नाडि कौं, दूरि करै ब्याधि।
सुन्दर ताकौं छोडि दे, जाकै रोग असाधि॥

राम नाम हीरा तजै, कंकर पकरै हाथ।
सुंदर कबहु न कीजिये, उन मूरख कौ साथ॥

सुंदर देह मलीन अति, नखशिख भरे बिकार।
रक्त पीप मल मूत्र पुनि, सदा बहै नव द्वार॥

सूरति तेरी ख़ूब है, को करि सकै बखान।
बानी सुनि-सुनि मोहिया, सुन्दर सकल जिहांन॥

राम भजन परिश्रम बिना, करिये सहज सुभाइ।
सुन्दर कष्ट कलेस तजि, मन की प्रीति लगाइ॥

सुन्दर बिरहनी मरि रही, कहूँ न पइये जीव।
अमृत पान कराइ कै, फेरि जिवावै पीव॥

अग्नि कर्म संयोग तें, देह कड़ाही संग।
तेल लिंग दोऊ तपै, शशि आतमा अभंग॥

सुन्दर सद्गुरु ब्रह्ममय, नारायणमय ध्यान।
ईश्वरमय जगदीशमय, गोबिन्दमय गलतान॥

सुन्दर भजि भगवंत कौं, उधरे संत अनेक।
सही कसौटी सीस पर, तजी न अपनी टेक॥

राम नाम भोजन करै, राम नाम जल पान।
राम नाम सौं मिलि रहै, सुंदर राम समान॥

दौरि-दौरि जड़ देह कौं, आपुहि पकरत आइ।
सुन्दर पेच पर्यौ कठिन, सकं नहीं सुरझाइ॥

सुंदर यह औसर भलौ, भजि लै सिरजनहार।
जैसै ताते लोह कौं, लेत मिलाइ लुहार॥

सुन्दर शिष जिज्ञास है, परि जो बुद्धि न होइ।
तौ सद्गुरु क्यौं पचिमरौ, शब्द ग्रहै नहिं कोइ॥

तलब करै बहु मिलन की, कब मिलसी मुझ आइ।
सुंदर ऐसे ख़्वाब मौं, तलफि-तलफि जिय जाइ॥

सुन्दर ऐसी देह मैं, सुच्चि कहो क्यौं होइ।
झूठेई पाखंड करि, गर्व करै जिनि कोइ॥

सुन्दर सद्गुरु सारिषा, कौऊ नहीं उदार।
ज्ञान खजाना खोलिया, सदा अटूट भंडार॥

बिरहै मारी बान भरि, भई और की और।
बैद बिथा पावै नहीं, सुन्दर लगी सु ठौर॥

सुन्दर अगम अगाध गति, पल मैं बादल होइ।
गरजै चमकै बिज्जली, बरषन लागै तोइ॥

सुन्दर समुझै एक है, अन समझै कौ द्वीत।
उभै रहित सद्गुरु कहै, सो है बचनातीत॥

सुन्दर सद्गुरु ज्ञानमय, चेतनमय चिद्रूप।
निर्गुन नित्यानन्दमय, तन्मय तत्व अनूप॥

बैठत बनमाली कहै, ऊठत अविगति नाथ।
चलतें चिंतामनि जपैं, सुन्दर सुमिरन साथ॥

शेष मसाइक औलिया, सिध साधिक मुख मौन।
वै भी बैठे थाकि करि, सुन्दर बपुरा कौन॥

मारग जोवै बिरहनी, चितवै पिय की वोर।
सुंदर जियरै जक नहीं, कल न परत निस भौर॥

सुन्दर सिरजनहार कौं, क्यौं न गहै विस्वास।
जीव जंत पोखै सकल, कोउ न रहत निरास॥

सुंदर भजि भगवंत कौं, उधरे संत अनेक।
सही कसौटी सीस पर, तजी न अपनी टेक॥

सुन्दर बिरहनि दुखभरी, कहै दुख भरै बैन।
पिय कौ मारग देखतें, अंसुवा आवत नैन॥

सुन्दर कबहूं फुनसली, कबहूं फोरा होइ।
ऐसी याही देह मैं, क्यौं सुख पावै कोइ॥

क्षीण सपष्ट शरीर है, शीत उष्ण तिहिं लार।
सुन्दर जन्म जरा लगै, यह पट देह विकार॥

बहुतक दिन बिछुरें भये, प्रीतम प्रान अधार।
सुंदर बिरहनि दरद सौं, निस दिन करै पुकार॥

सुन्दर साधु सदा कहैं, भक्ति ज्ञान बैराग।
जाकै निश्चय ऊपजै, ताकै पूरन भाग॥

जाकी आज्ञा मैं सदा, धरती अरु आकास।
ज्यौं राखै त्यौं ही रहै, सुन्दर मानहिं त्रास॥

सुन्दर संमरथ राम कौं, करत न लागै बार।
पर्वत सौं राई करै, राई करें पहार॥

देह कृत्य सब करत है, उत्तम मध्य कनिष्ट।
सुंदर साक्षी आतमा, दीसै मांहि प्रविष्ट॥

एक सीस चहुं सीस पुनि, पंच सीस षट सीस।
दश सिर और सहस्त्र सिर, नमत सकल जगदीस॥

करै हरै पालै सदा, सुन्दर संमरथ राम।
सबही तैं न्यारौ रहै, सब मैं जिन कौ धांम॥

आज्ञा मंहिं रहत हैं, सप्त दीप नौ खंड।
सुन्दर प्रभु की त्रास तें, कंपै सब ब्रह्मांड॥

सद्गुरु महिमा कहन कौं, रसना हुई न कोरि।
सुन्दर क्यों करि बरनिये जो बरनिये सु थोरि॥

देह स्वर्ग अरु नरक है, बंद मुक्ति पुनि देह।
सुन्दर न्यारौ आतमा, साक्षी कहियत येह॥

घर-घर मंगल होत है, बाजहिं ताल मृदंग।
सुनि-सुनि बिरहनि पर जरै, सुन्दर नख सिख अंग॥

एक भजन तन सौं करै, एक भजन मन होइ।
सुन्दर तन मन कै परै, भजन अखंडित सोइ॥

सुन्दर देह मलीन है, राख्यौ रूप संवारि।
ऊपर तें कलई करी, भीतरि भरी भंगारि॥

सुन्दर याकै अज्ञता, याही करै बिचार।
याही बूड़े धार मैं, याही उतरै पार॥

सुन्दर बरछी झलहलैं, छूटै बहु दिसि बांण।
सूरा पडै पतंग ज्यौं, जहाँ होइ घंमसांण॥

सुन्दर भजिये राम कौं, तजिये माया मोह।
पारस कै परसे बिना, दिन-दिन छीजै लोह॥

परमातम सौं आतमा, जुदे रहे बहु काल।
सुन्दर मेला करि दिया, सद्गुरु मिले दलाल॥

सुन्दर काढै सोधि करि, सद्गुरु सोनी होइ।
शिष सुवर्ण निर्मल करै, टांका रहै न कोइ॥

सद्गुरु ही तें ज्ञान ह्वै, सद्गुरु ही तें ध्यान।
सुन्दर सद्गुरु तें लगै, योग समाधि निदान॥

सुन्दर पशु पंखी जितै, चून सबनि कौ देत।
उनकै सोदा कौन लहै, कहौ कौंन से खेत॥

सुन्दर सद्गुरु प्रगट है, बोलै अंमृत बैन।
सूरज कौं देखै नही, मूंदि रहै जो नैन॥

सुन्दर सद्गुरु करि कृपा, दीया दीरघ दांन।
हृदै हमारे आइया, निश्चय अद्वय ज्ञांन॥

सुन्दर शिष जिज्ञास ह्वै, शब्द ग्रहै मन लाइ।
तासौं सद्गुरु तुरत ही, ज्ञान कहै संमुझाइ॥

हाकी बाकी रहि गई, नां कछु पिवै न खाइ।
सुन्दर बिरहनि वह सही, चित्र लिखी रहि जाइ॥

सुन्दर सद्गुरु पलक मैं, मुक्त करत नहिं बार।
जीव बुद्धि जाती रहै, प्रगटै ब्रह्म बिचार॥

सुन्दर काला घटै बढै, शशि मंडल कै संग।
देह उपजि बिनशत रहै, आतम सदा अभंग॥

सुन्दर बिरहनि अति दुखी, पीव मिलन की चाह।
निस दिन बैठी अनमनी, नैननि नीर प्रबाह॥

आज्ञा मंहिं तत्व सब, होइ देह कौ संग।
सुन्दर बहुरि जुदे रहैं, आज्ञा करै न भंग॥

सद्गुरु सुद्ध स्वरुप है, शिष देखै गुन देह।
सुन्दर कारय क्यौं सरै, कैसै बधे सनेह॥

सुन्दर समुंझि विचार करि, है प्रभु पूरन हार।
तेरौ रिजक न मेटि है, जानत क्यौं न गवांर॥

काहू कौं न दिखाइये, राम नाम सी वस्त।
सुन्दर बहुत कलाप करि, आई तेरै हस्त॥

नारायण सौं नेह अति, सन्मुख सिरजनहार।
परब्रह्म सौं प्रीतडी, सुंदर सुमिरन सार॥

सुन्दर बिरहनि कै निकट, आई बिरहनि कोइ।
दुखिया ही दुखिया मिली, दहुंवनि दीनौ रोइ॥

सुन्दर सद्गुरु प्रगट है, जिनि कै ब्रह्म बिचार।
मूरख औगुन काढिलै, देखि देह व्यवहार॥

निस दिन रिजक कौं, बादि मरै नर झूरि।
रिजक दे तुझे रामजी, जहाँ-तहाँ भरपूरि॥

सुन्दर सद्गुरु जब मिल्या, पड़दा दिया उठाइ।
ब्रह्म घौंट महि सकल जग, चित्राम दिखाइ॥

सुन्दर बिरहनि बंदि मैं, निस दिन करै पुकार।
पीय रह्यौ कहुं बैसि कै, बंदि छुडावनहार॥

सद्गुरु दादू राम भजि, सदा रहै लै लीन।
सुन्दर याही समझि कैं, राम भजन हित कीन॥

बाणी हरि कौ लिये, सुन्दर वाही उक्त।
तुक अरु छन्द सबै मिलैं, होइ अर्थ संयुक्त॥

सुन्दर सद्गुरु जब मिलै, पेच बतावै आइ।
भिन्न-भिन्न करि अर्थ कौं, आंटी दे सुरझाइ॥

राम सनेही तजि गये, प्रान हमारा लेइ।
सुन्दर बिरहनि बापुरी, किसहिं संदेसा देइ॥

सुन्दर शिष जिज्ञास है, निश्चय आवै नांहि।
तौ सद्गुरु कहिबौ करौ, ज्ञान न उपजै मांहि॥

राम नाम सोवत कहै, जागे हरि-हरि होइ।
सुंदर बोलत ब्रह्म मुख, ब्रह्म सरीखा सोइ॥

सुन्दर करता राम है, भरता और न कोइ।
हरता वहई जानिये, ऐसा संमरथ सोइ॥

पलक मांहि परगट करै, पल मैं धरै उठाइ।
सुन्दर तेरै ख्याल की, क्यौं करि जांनी जाइ॥

आज्ञा मांहि सदा रहैं, सुन्दर बरुन कुबेर।
अष्ट कुली पर्बत सहित, आज्ञा मांहि सुमेर॥

सब कोई रलियां करै, आयौ सरस बसंत।
सुन्दर बिरहनि अनमनी, जाकौ घर नहिं कंत॥

सुन्दर तत्व जुदे-जुदे, राख्या नाम शरीर।
ज्यौं कदली के खंभ मैं, कौन बस्तु कहि बीर॥

अंजन यह माया करी, आपु निरंजन राइ।
सुन्दर उपजत देखिये, बहुर्यौं जाइ बिलाइ॥

सुन्दर प्रभुजी निकट है, पल-पल पोखै प्रान।
ताकौं सठ जानत नहीं, उद्धम ठांनै आंन॥

सुन्दर सिरजनहार कौं, करतें कैसी शंक।
रंकहि लै राजा करै, राजा कौं लै रंक॥

भूख पियास न नींदडी, बिरहनि अति बेहाल।
सुन्दर प्यारे पीव बिन, क्यौं करि निकसै साल॥

तृष्णा डोलै ताकती, स्वर्ग मृत्यु पाताल।
सुन्दर तीनहुं लोक मैं, भरयौ न एकहु गाल॥

राम नाम रटबौ करै, निस दिन सुरति लगाइ।
सुन्दर चालै गांव जिही, तहां पहूंचै जाइ॥

सुन्दर देह मलीन अति, नख शिख भरे बिकार।
रक्त पीप मल मूत्र पुनि, सदा बहै नव द्वार॥

सुन्दर सद्गुरु क्यौं द्रसै, शिष की दृष्टि मलीन।
देखत हैं सब देह कृत, खान पान सौं लीन॥

सुंदर पंजर हाड कौ, चाम लपेट्यौ ताहि।
तामैं बैठ्यौ फूलि कै, मो समान को आहि॥

भजत-भजत ह्वै जात है, जाहि भजै सो रूप।
फेरि भजन की रुचि रहै, सुंदर भजन अनूप॥

देह जरै दुख होत है, ऊपर लागै लौंन।
ताहू तें दु:ख दुष्ट कौ, सुंदर मानै कौंन॥

काहू सौं बांभन कहै, काहू सौं चंडाल।
सुन्दर ऐसौ भ्रम भयौ, यों ही मारौं गाल॥

सुंदर यहु मन स्वान है, भटकै घर-घर द्वार।
कहूंक पावै झूंठि कौं, कहूं पर वहु मार॥

सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, भये रंक अरु राव।
राजा राना छत्रपति, मीर मलिक उमराव॥

सुन्दर यहु मन स्वान है, भटकै घर-घर द्वार।
कहूंक पावै झूंठि कौं, कहूँ परै वह मार॥

पल ही मैं मरि जात है, पल मैं जीवत सोइ।
सुन्दर पारा मूरछित, बहुरि सजीवनि होइ॥

सुन्दर राजा बिपति सौं, घर-घर मांगै भीख।
पाय पयादौ उठि चलै, घोरा भरै न बीष॥

बिभचारिणि नाकी बिना, लाज सरम कछु नांहिं।
कालौ मुख कीयां फिरै, सकल जगत कै मांहिं॥

साधत-साधत दिन गये, करहिं और की और।
सुन्दर एक बिचार बिन, मन नहिं आवै ठौर॥

कोऊ होत रसाइनी, बात बनावै आइ।
सुन्दर घर मैं होइ कछु, सो सब ठगि ले जाइ॥

सुंदर गुरु दीपक किये, घर मैं को तम जाइ।
सद्गुरु सूर प्रकास तें, सबै अंधेरे बिलाइ॥

सुन्दर या नर देह अब, खुल्यौ मुक्ति कौ द्वार।
यौं ही बृथा न खोइये, तोहि कह्यौ कै बार॥

हम जांणयां था आप थे, दूरि परै है कोइ।
सुन्दर जब सद्गुरु मिल्या, सोहं-सोहं होइ॥

सुन्दर दुख सब तोलिये, घालि तराजू मांहिं।
ओ दुःख दुर्जन संग तें, ता सम कोई नांहिं॥

सुन्दर सब कछु मिलत है, समये-समये आइ।
दुर्लभ या संसार मैं, संत समागम थाइ॥

सुन्दर मानुषा देह की, महिमा बरनहिं साथ।
जामैं पइये परम गुरु, अविगति देव अगाध॥

बींछू काटे दुख नहीं, सर्प डसै पुनि आइ।
सुन्दर जो दुख दुष्ट तें, सो दुख कह्यौ न जाइ॥

दुष्ट करै बहु वीनती, होइ रहै निज दास।
सुन्दर दाव परै जबहिं, तबहिं करै घट नास॥

सुन्दर बंदा चुस्त ह्वै, जौ पैठै दिल मांहिं।
तौ पावै उस ठौर ही, बाहिर पावै नांहिं॥

सुंदर तृष्णा कोढनी, कोढी लोभ भ्रतार।
इनकौं कबहुं न भीटिये, कोढ लगै तन ख्वार॥

एक पालड़े सीस धरि, तौलै ताके साथ।
बर चालीसक तौलिये, तब मन आवै हाथ॥

सुन्दर सद्गुरु सूरमय, उदित भये हैं ऐं न।
मनसा वाचा कर्मना, खोलत सब के नेन॥

क्षमावंत धीरज लिये, सत्य दया संतोष।
सुन्दर ऐसै संतजन, निर्भय निर्गत रोष॥

याही देखत नूर कों, याही देपत तेज।
याही देखत जोति कौं, सुन्दर याकौ हेज॥

यौं भ्रम तें बहु दिन भये, बीति गयौ चिरकाल।
सुन्दर लह्यौ न आपुकौं, भूलि पर्यौ भ्रमजाल॥

सुन्दर फेरै सांगि जब, होइ जाइ बिकराल।
सनमुख बाहै ताकि करि, मारौ मीर मुछाल॥

सुन्दर जौ यह हंसि उठै, तौ आगै हंसि देत।
जो यह काहू देत है, तौ वह आगै लेत॥

सुन्दर सुवचन सुनत ही, सीतल ह्वै सब अंग।
कुवचन कानन मैं परै, सुनत होत मन भंग॥

किनहूं अंत न पाइयौ, अब पावै कहि कौन।
सुन्दर आगें होहिंगे, थाकि रहे करि गौन॥

सुंदर मैली देह यह, निर्मल करी न जाइ।
बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥

दुष्ट धिजावै बहुत बिधि, आनि नवावै सीस।
सुन्दर कबहुंक ज़हर दे, मारै बिसवां बीस॥

सुन्दर तृष्णा है छुरी, लोभ खंग की धार।
इन तें आप बचाइये, दोनों मारणहार॥

सदा रहै रत राम सौं, मन मैं कोउ न चाह।
सुन्दर ऐसेै संतजन, सबसौं बेपरवाह॥

सुन्दर कहत बिचारि करि, उलटी बात सुनाइ।
नीचे कौ मूंडी करै, तब ऊंचे कौं पाइ॥

करै बंदगी बहुत करि, आपा आंणै नांहिं।
सुन्दर करी न बंदगी, यौं जांणै दिल मांहिं॥

ब्योम वायु पुनि अग्नि जल, पुथ्वी कीये मेल।
सुंदर इनतैं होइ का, चेतनि खेलै खेल॥

विभचारिणि कहै देखि, तूं मेरै पिय कौ द्वार।
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरै मुख मैं छार॥

सुन्दर हरि कै भजन तें, निर्मल अंतहकर्ण।
सबही कौं अधिकार है, उधरै चारौं वर्ण॥

जिस बंदे का पाक दिल, सो बंदा माकूल।
सुन्दर उसकी बंदगी, सांई करै कबूल॥

जा बांणी मैं पाइये, भक्ति ज्ञान बैराग।
सुन्दर ताकौं आदरै, और सकल कौ त्याग॥

रोटी ऊपर पोइकै, तवा चढायौ आंनि।
विचार मंहि हंडिका, सुन्दर रांधी जांनि॥

धोबी कौं उज्जल कियौ, कपरै बपुरौ धोइ।
दरजी कौं सीयौ सुई, सुन्दर अचिरज होइ॥

काहे कौं परिश्रम करै, जिनि भटकै चहूँ ओर।
घर बैठैं ही आइ है, सुंदर सांझ कि भोर॥

जबहिं कंचुकी साथ है, भिन्न न जानै सर्प।
तैसैं सुन्दर आतमा, देह मिले तें दर्प॥

सारो सूवा कोकिला, बोलत बचन रसाल।
सुन्दर सबकौं कान दे, बृद्ध तरुन अरु बाल॥

सुंदर प्रभुजी सब कह्यौ, तुम आगै दुख रोइ।
पेट बिना हीं पेट करि, दीनी खलक बिगोइ॥

मछली बुगला कौं ग्रस्यौ, देखहु याके भाग।
सुन्दर यह उलटी भई, मूसैं खायौ काग॥

सुंदर औसर कै गयें, फिरि पछितावा होइ।
शीतल लोह मिलै नहीं, कूटौ पीटौ कोइ॥

सब ही दीसै दालदी, देवी देव अनंत।
दारिद्र भंजन एक ही, सुन्दर कमलाकंत॥

रिद्धि सिद्धि लौंडो सदा, आज्ञा मेटै नांहि।
सुन्दर मानै त्रास अति, प्रभु भेजै तहं जाहि॥

मार्यौ सिंह महा बली, मार्यौ ब्याघ्र कराल।
सुन्दर सबही घेरि करि, मारी मृग की डाल॥

सुन्दर पिय कै कारणै, तलफै बारह मास।
निस दिन लै लागी रहै, चातक की सी प्यास॥

जैसे चिल्लीसेख हू, कियौ मनोरथ और।
सुन्दर भूलौ आपु कौ, यौं हूवो घर चौर॥

प्रभु बुलावै बोलिये, ऊठि कहै तब ऊठि।
बैठावै तौ बैठिये, सुन्दर यौं जी चूठि॥

सुन्दर दुर्जन सारिषा, दुखदाई नहिं और।
स्वर्ग मृत्यु पाताल हम, देखे सब ही ठौर॥

घेर्यौ गढ दशहूँ दिशा, बिरहा अग्नि लगाइ।
सुन्दर ऐसै संकट हिं, जौ पिय करै सहाइ॥

सुंदर गुरु जल पौदि कैं, नित उठि सींचै खेत।
सद्गुरु बरषै इन्द्र ज्यौं, पलक मांहि सरसेत॥

साधु सुभट अरु सूरमा, सुन्दर कहे बखानि।
कहन सुनन कौं और सब, यह निश्चय करि जांनि॥

सुन्दर ठग्यौ अनेक बर, सावधान अब होह।
हीरा हरि कौ नाम लै, छाडि बिषै सुख लोह॥

नदी भरहिं नाला भरहिं, भरहिं सकल ही नाड।
सुन्दर प्रभु पेट न भरहिं, कौंन करी यह खाड॥

सुन्दर तेरी मति गई, समुंझत नहीं लगार।
कूकर रथ नीचै चलै, हूं खैंचत हौं भार॥

पतिबरता देखै नहीं, आंन पुरुष की ओर।
सुन्दर वह विभचारिणि, तकत फिरै ज्यौं चोर॥

सुन्दर सब करनी करी, सबै करी करतूति।
पतिब्रत राख्यौ राम सौं, तब आई सब सूती॥

परमातम अरु आतमा, उपज्या यह अविवेक।
सुन्दर भ्रम तें दोइ थे, सद्गुरु कीये एक॥

संतनि कै सो बस्तु हैं, कबहूँ खूटै नांहिं।
सुन्दर तिनकी हाट तें, गाहक ले-ले जांहि॥

सुन्दर पंचामृत भषै, नितप्रति सहज सुझाइ।
ताकै आगै राबरी, काहे कौ ले जाइ॥

रजा राम की सीस पर, आज्ञा मेटै नांहिं।
ज्यौं राखै त्यौं ही रहै, सुन्दर पतिब्रत मांहिं॥

सूक्षम देह स्थूल कौ, मिल्यौ करत संयोग।
सुंदर न्यारौ आतमा, सुख-दुख इनकौ भोग॥

सुन्दर तूं न्यारौ सदा, क्यौं इन्द्रिनि संग जाइ।
ये तो तेरी शक्ति करि, बरतैं नाना भाइ॥

कतहू भूलौ नीच ह्वै, कतहू ऊंची जाति।
सुन्दर या अभिमांन करि, दोनौं ही कै राति॥

सुन्दर काल प्रवीण अति, तूं कछु समुझै नांहिं।
तूं जानैं जीवत रहूं, वहु मारै पल माहिं॥

तबही लौं मन कहत है, जब लग है अज्ञान।
सुन्दर भागै तिमर सब, उदै होइ जब भांन॥

अपनी छाया देखि कै, कूकर जानै आंन।
सुन्दर अति ही जोर करि, भुसि-भुसि मूवौ स्वांन॥

सब सुख हरि कै भजन मैं, कष्ट कलेस न कोइ।
सुंदर देखै कष्ट कौं, जगत खुसी तब होइ॥

सुन्दर पतिब्रत राखि तूं, सुधर जाइ ज्यौं बात।
सुख मैं मेलै कोर जब, तृपति होइ सब गात॥

सुन्दर अंदर पैसि करि, दिल मौं गौता मारि।
तौ दिल ही मौं पाइये, सांई सिरजनहार॥

सांई तूं ही तूं करौं, क्यों ही दरस दिखाव।
सुन्दर बिरहनि यौं कहै, ज्यौं ही त्यौं ही आव॥

राम नाम बिन लैन कौं, और वस्तु कहि कौंन।
सुंदर जप तप दान ब्रत, लागे खारे लौंन॥

सुन्दर आयौ कौंन दिसि, गयौ कौनसी वोर।
या किनहूं जान्यौ नहीं, भयौ जगत मैं सोर॥

दुर्जन संग न कीजिये, सहिये दुःख अनेक।
सुन्दर सब संसार मैं, दुष्ट समान न एक॥

जन सुन्दर सतसंग तें, पावै सब कौ भेद।
वचन अनेक प्रकार के, प्रगट कहे जे बेद॥

एक रसन चहुं रसन पुनि, पंच षष्ट दश आहि।
द्वै सहस्त्र सुनि सेस के, बरनि सकै नहिं ताहि॥

राम नाम जाकै हृदै, ताकै कौंन अनाथ।
अष्ट सिद्धि नव निधि सदा, सुन्दर वाकै साथ॥

सुंदर विष खलि खार तजि, लै केसरि कर्पूर।
जौ तूं हीरा लाल ले, तौ तौसौं नहिं दूर॥

कोई आइ स्तुती करै, कोइ निंदा करि जाइ।
सुन्दर साधु सदा रहै, सबही सौं सम भाइ॥

सुन्दर बाढाली बहें, होइ कडाकडि मार।
सूर बीर सनमुख रहैं, जहां खलक्कैं सार॥

सुन्दर कोऊ साधु की, निंदा करै लगार।
जन्म-जन्म दुख पाइ है, ता महिं फेर न सार॥

बहुरि पृथीपति होन की, इन्द्र ब्रह्म शिव वोक।
कब देहैं करतार ये, सुन्दर तीनौं लोक॥

क्रिया कमै बहु बिधि कहे, बेद वचन विस्तार।
सुन्दर समुझै कौंन बिधि, उरझि रह्यौ संसार॥

नाम बराबर तोलिया, तुलै न कोऊ धर्म।
सुंदर ऐसै नाम का, लहै न मूरख मर्म॥

राज साज सब होत है, मन बंछित हू खाइ।
सुन्दर दुर्लभ संतजन, बड़े भाग तें पाइ॥

प्रभु चलावै तब चलै, सोइ कहै तब सोइ।
पहरावै तब पहरिये, सुन्दर पतिब्रत होइ॥

सुन्दर ज्यौं मुख सौं कहै, त्यौं ही दिल मैं जाप।
सोई बंदा सरषरु, सांई रीझै आप॥

सुन्दर मौंन गहें रहै, तब लग भारी तोल।
मुख बोलैं तें होत है, सब काहू कौ मोल॥

सुन्दर झंपापात ले, करवत धरिये सीस।
वा दुर्जन के संग तें, राखि-राखि जगदीस॥

सुन्दर आये संतजन, मुक्त करन कौं जीव।
सब अज्ञान मिटाइ करि, करत जीव तें सीव॥

सुन्दर वचन कुवचन मैं, राति दिवस को फेर।
सुवचन सदा प्रकासमय, कुवचन सदा अंधेर॥

हर दम हर दम हक्क तूं, लेइ धनी का नांव।
सुन्दर ऐसी बंदगी, पहुंचावै उस ठांव॥

सुन्दर प्रभुजी पेट इनि, जगत कियौ सब भांड।
कोई पंचामृत भखै, कोई पतरा मांड॥

हँसै न बोलै नेकहूं, खाइ न पीवै देह।
सुंदर अंनसन ले रही, जीव गयौ तजि नेह॥

सदा अखंडित एक रस, सोंह-सोंह होइ।
सुन्दर याही भक्ति है, बूझै बिरला कोइ॥

बार-बार नहिं पाइये, सुन्दर मनुषा देह।
राम भजन सेवा सुकृत, यह सोदा करि लेह॥

पावक लोह तपाइये, होइ एकई अंग।
तैसैं सुन्दर आतमा, दीसै काया संग॥

पावक पानी पवन पुनि, सुन्दर आज्ञा मांहिं।
चंद सूर फिरते रहैं, निश दिन आवै जांहिं॥

जब दस बीस पचास सौ, सहस्य लाख पुनि कोरि।
नील पदम संख्या नहीं, सुन्दर त्यौं-त्यौं थोरि॥

जो यह देखै क्रूर ह्वै, तौ वह होत कृतांत।
सुंदर जौ यह साधु ह्वै, तौ आगै है सांत॥

दृष्टि न फेरै नैंकहूं, नैंन लगै गोबिंद।
सुन्दर गति ऐसी भई, मन चकोर ज्यौं चंद॥

चूल्हा भाठी भार महिं, इंधन सब जरि जाइ।
त्यौं सुन्दर प्रभु पेट यह, कबहूँ नहीं अघाइ॥

जोबन मेरा जात है, ज्यौं अंजुरी का नीर।
सुन्दर बिरहनि बापुरी, क्यौं करि बन्धै धीर॥

सुन्दर ऐसौ भ्रम भयौ, छूटौ अपनौ भौंन।
दिशा भूल जानै नहीं, पूरब पच्छिम कौंन॥

अँधा तीनौं लोक कौं, सुंदर देखै नैन।
बहिरा अनहद नाद सुनि, अति गति पावै चैन॥

मन कौ साधन एक है, निस दिन ब्रह्म बिचार।
सुन्दर ब्रह्म बिचारतें, ब्रह्म होत नहिं बार॥

कोऊ तौ मूरख कहै, कोऊ चतुर सुजान।
सुन्दर साधु धरै नहीं, भली बुरी कछु कान॥

घर मैं सब होइ बंकुडा, मारहिं गाल अनेक।
सुन्दर रण मैं ठाहरै, सूर बीर कौ एक॥

अनल पंखि आकाश मैं, उडै बहुत करि जोर।
सुन्दर वा आकास कौ, कहूँ न पायौ छोर॥

सुन्दर बिष हू पीजिये, मरिये खाई अफीम।
दुर्जन संग न कीजिये, गलि मरिये पुनि हीम॥

सुन्दर यह मन चपल अति, ज्यौं पीपर कौ पान।
बार-बार चलिबौ करै, हाथी कौ सौ कान॥

सुन्दर सील सनाह करि, तोष दियौ सिर टोप।
ज्ञान खड़ग पुनि हाथ लै, कीयौ मन परि कोप॥

सांईं दीया है सही, इसका दीया नांहिं।
यह अपना दीया कहै, दीया लखै न मांहिं॥

सुंदर याही देह मैं, हारि जीति कौ खेल।
जीतै सो जगपति मिलै, हारे माया मेल॥

स्वास चलै खासी चलै, चलै पसुलिया बाव।
सुन्दर ऐसी देह मैं, दुखी रंक अरु राव॥

सुन्दर नारी पतिव्रता, तजै न पिय कौ संग।
पीव चलै सहि गामिनी, तुरत करै तन भंग॥

सुन्दर सद्गुरु भक्तिमय, भजनमई भजिराम।
सुखमय रसमय अमृतमय, प्रेम मांहि बिश्राम॥

सुन्दर सूरय कै उदै, कृत्य करै संसार।
ऐसैं चेतनि ब्रह्म सौं, मन इंद्रिय आकार॥

मन ही यह बिस्तरि रह्यौ, मन ही रूप कुरूप।
सुन्दर यह मन जीव है, मन ही ब्रह्म स्वरूप॥

सुन्दर मन कै रिंदगी, होइ जात सैतान।
काम लहरि जागै जबहिं, अपनी गनै न आन॥

पत्र मांहिं झोली धरै, जोगी मांगै भीख।
सोवै गोरख यों कहै, सुन्दर गुरु की सीख॥

जाचिग कौं जाचै कहा, सरै न कोई काम।
सुन्दर जाचै एक कौं, अलख निरंजन राम॥

जा घट की उनहारि है, तैसौ दीसत आहि।
सुन्दर भूलौ आपु ही, सो अब कहिये काहि॥

भजत-भजत ह्वै जात है, जाहि भजै सो रूप।
फेरि भजन की रूचि रहै, सुन्दर भजन अनूप॥

संतनि की सेवा किये, सुन्दर रीझै आप।
जाकौ पुत्र लड़ाइये, अति सुख पावै बाप॥

सुन्दर यह मन अधम है, करै अधम ही कृत्य।
चल्यो अधोगति जात है, ऐसी मन की बृत्य॥

जौ तूं मेरी सीख ले, तौ तूं सीतल होइ।
फिरि मोही सौं मिलि रहै, सुन्दर दुःख न कोइ॥

दिवस कहै तब दिवस है, रैंनि कहै तब रैंन।
सुन्दर आज्ञा मैं रहै, कबहुं न फेरै बैंन॥

सुन्दर या मन सारिषौ, अपराधी नहिं और।
साप सगाई ना गिनै, लखे न ठौर कुठौर॥

सुंदर अबकै आंपणौ, टोटौ नफौ विचारि।
जिनि डहकावै जगत मैं, मेल्ह्यो हाट पसारि॥

जो कोउ विद्या देत है, सो विद्या गुरु होइ।
जीव ब्रह्म भेला करै, सुन्दर सद्गुरु सोइ॥

सुन्दर कछू न कीजिये, क्रिया कर्म भ्रम आन।
करने कौ हरि भक्ति है, समझन कौं है ज्ञान॥

सुन्दर स्वारथ सौं बंधै, बिन स्वारथ को नांहि।
जब स्वारथ पूजै नहीं, आपु कौ जांहिं॥

सद्गुरु ही तें अकलि ह्वै, सद्गुरु ही तें बुद्धि।
सुन्दर सद्गुरु तें संमुझि, सद्गुरु तें सब सुद्धि॥

मारै मंत्र संग्राम करि, पिसुनहु ते घट मांहिं।
सुन्दर कोऊ सूरमा, साधु बराबरि नांहिं॥

साधन करहिं अनेक विधि, देहिं देह कौं दंड।
सुन्दर मन भाग्यौ फिरै, सप्त दीप नौ खंड॥

कोतवाल कौं पकरि के, काठौ राख्यौ जूरि।
राजा भाग्यौ गांव तजि, सुन्दर सुख भरपूरि॥

जब मन देखै जगत कौं, जगत रूप यह जाइ।
सुन्दर देषै ब्रह्म कौं, तब मन ब्रह्म समाइ॥

सुन्दर तूं इन सौं बंध्यौ, ये सब तौसौं फर्क।
याही बात विचार करि, तूं हूं दै अब तर्क॥

सूझत नांहिं न दुष्ट कौं, पाँव तरै की आगि।
औरन के सिर पर कहै, सुन्दर वासौं भागि॥

सुन्दर तुझ ही मांहिं है, जो तेरा महबूब।
उस खूबी कौं जांनि तूं, जिस खूबी तें ख़ूब॥

पट सत सहश्र इकीस है, मनका स्वासो स्वास।
माला फेरै राति दिन, सोहं सुन्दरदास॥

सगुन हमारा मांनिये, मत खोजै कहूँ दूर।
सांई सीने बीच है, सुन्दर सदा हजूर॥

इनि साखी पच्चीस मैं, नारी पुरुष प्रसंग।
सुन्दर पावै चतुर अति, तीन अर्थ तिनी संग॥

कलिजुग मैं सतजुग कियौ, सुन्दर उलटी गंग।
पापी भये सु ऊबरे, धरमी हूये भंग॥

मिष्ट सु तौ करवो लग्यौ, करवो लाग्यौ मीठ।
सुन्दर उलटी बात यह, अपनै नैंननि दीठ॥

सुन्दर यहु मन भांड है, सदा भंडायौ देत।
रूप धरै बहु भांति कै, राते पीरे सेत॥

सुन्दर आज्ञा मैं रहे, काल कर्म जमदूत।
गण गंधर्व निशाचरा, और जहाँ लगि भूत॥

सुन्दर जागे भाग सिर, सद्गुरु भये दयाल।
दूरि किया बिष मंत्र सौं, थकत भया मन ब्याल॥

मद मत्सर अहंकार की, दीन्ही ठौर उठाइ।
सुन्दर ऐसै संतजन, ग्रंथनि कहे सुनाइ॥

सुन्दर और न ध्याइये, एक बिना जगदीस।
सो सिर ऊपर राखिये, मन क्रम बिसबा बीस॥

क्षुधा तृषा गुन प्रान कौं, शोक मोह मन होइ।
सुन्दर साक्षी आतमा, जानै बिरला कोइ॥

राजा सोयौ सेज परि, भयौ स्वप्न मंहिं रंक।
सुन्दर भूलौ आपकौं, आतम देह लगाई पंक॥

बंदा आवै हुकम सौं, हुकम करै तहाँ जाइ।
सुन्दर उजर करै नहीं, रहिये रजा खुदाइ॥

सुन्दर बंदा बंदगी, सदा रहै इकतार।
दिल मैं और न दूसरा, सांई सेती प्यार॥

सुन्दर मन कामी कुटिल, क्रोधी अधिक अपार।
लोभी तृप्त न होत है, मोह लग्यौ सैवार॥

सुन्दर मानुषा देह यह, पायौ रतन अमोल।
कौड़ी सटै न खोइये, मांनि हमारौ बोल॥

मन बसि करने कहत है, मन कै बसि ह्वै जांहिं।
सुन्दर उलटा पेच है, समझि नहीं घट मांहिं॥

किये सिंगार अनेक मैं, नख सिख भूषन साजि।
सुन्दर पिय रीझै नहीं, तौ सब कौंनैं काजि॥

सुन्दर निश्चय आन तूं, तौहि कहूँ करि प्यार।
मनुष जन्म की मौज यह, होइ न बारम्बार॥

सुन्दर सूकै हाड़ कौं, स्वान चचोरै आइ।
अपनौई मुख फोरि कै, लोही चाटै पाइ॥

सुन्दर कबहूँताप ह्वै, कबहूँ ह्वै सिरवाहि।
कबहूँ हृदय जलनि ह्वै, नख शिख लागै भाहि॥

सुन्दर साधन करत है, मन जोतन कै काज।
मन जीतै उन सबनि कौं, करै आपनौ राज॥

नख सिख देह भली, सुन्दर अधिक स्वरूप।
चेतनी हीरा चलि गयौ, भयौ अन्धेरा धूप॥

कोऊ होत अलौनिया, खाहिं अलौनौ नाज।
सुन्दर करहिं प्रपंच बहु, मान बढावण काज॥

देखी अनदेखी कहै, ऐसौ दुष्ट की बात।
मुख ऊपर मीठी कहै, मन मैं घालै घात॥

ऊजर मैं बस्ती भई, बस्ती भई उजारि।
सुन्दर उलटे पेच कौं, पंडित देखि बिचारि॥

सुन्दर तलफै बिरहनि, बिलक तुम्हारे नेह।
नैन श्रवै घन नीर ज्यौं, सूकि गई सब देह॥

हलन चलन सब देह कौ, आतम सत्ता होइ।
सुंदर साक्षी आतमा, कर्म न लागै कोइ॥

ज्यौं कौ त्यौं ही देखिये, सकल देह कौ ठाट।
सुंदर को जांणै नहीं, जीव गयौ किहिं बाट॥

सुन्दर जाकै बाफता, खासा मलमल ढेर।
ताकै आगै चौसई, आनि धरै बहुतेर॥

सांई बंदे कौं कसै, करै बहुत बेहाल।
दिल मैं कछु आंणै नहीं, सुन्दर रहै खुस्याल॥

छब्बीसवौं सु ब्रह्म है, सुन्दर साक्षी भूत।
यौं परमातम आतमा, यथा बाप तें पूत॥

सुन्दर इंद्रिय स्वाद सौं, अति गति बांध्यौ मोह।
मीन न जानै बावरौ, निगलि गयौ सठ लोह॥

सुन्दर बिरहनि यौं कहै, जिनि तरसावौ मोहि।
प्रान हमारै जात हैं, टेरि कहतु हौं तोहि॥

अपना करि बैठाइया, कीया बहुत निहाल।
जौ चाहै सो आइल्यौ, सुन्दर कोठीवाल॥

श्रोत्र त्वचा दृग नासिका, रसना रस कौं लेत।
सुन्दर ये तो तैं भ्रमै, तूं क्यौं बांध्यौ हेत॥

बिरहा दुखदाइ लग्यौ, मारै ऐंठि मरोरि।
सुंदर बिरहनि क्यौं जिवै, सब तन लियौ निचोरि॥

मन ही कौं भ्रम जगत सब, रज्जु मांहिं ज्यौं साप।
सुन्दर रुपौ सीप मैं, मृग तृष्णा मंहिं आप॥

सुन्दर रज बिरज मिले, महा मलिन ये दोइ।
जैसौ जाकौ मूल है, तैसोई फल होइ॥

लौंन पूतरी उदधि मैं, थाह लेन कौं जाइ।
सुन्दर थाह न पाइये, बिचिही गई बिलाइ॥

सूधि माहिं बरतै सदा, और न जानहिं रंच।
सुन्दर ऐसै संतजन, जिनि कै कछु न प्रपंच॥

सुर तरु पारस कामधुक, कहियत नाव जिहाज।
सुन्दर इनते डूबिये, सद्गुरु सारै काज॥

सुन्दर पावक दार के, भीतर रह्यो समाइ।
दीरघ मैं दीरघ लगै, चौरे मैं चौराइ॥

सुन्दर सद्गुरु भिन्न हैं, दीसत घट मैं बास।
घट सौं सदा अलिप्त है, ज्यौं अलिप्त आकास॥

सुंदर यह मन रूप कौ, देखत रहै लुभाइ।
ज्यौं पतंग बसि नैंन में, जोति देखि जरि जाइ॥

अपना बल सब छाडि दे, सेवै तन मन लाइ।
सुन्दर तब पिय रीझि करि, राखै कण्ठ लगाइ॥

पावक जारै नीर कौं, नीर बुझावै आगि।
सुन्दर बैरी परस्पर, सज्जन छुटै भागि॥

जैसैं मदिरा पान करि, होइ रह्या उनमत्त।
सुन्दर ऐसैं आपु कौं, भूल्यौ आतम तत्त॥

घेरैं नैंकु न रहत है, ऐसौ मेरौ पूत।
पकरें हाथ परै नहीं, सुन्दर मनुवा भूत॥

सुन्दर प्रभु की चाकरी, हांसी खेल न जांनि।
पहलै मन कौं हाथ करि, पीछै पतिब्रत ठांनि॥

रचना करी अनेक बिधि, भलौ बनायौ धाम।
सुन्दर मूरति बाहरी, देवल कौंन काम॥

जौ यह उसका ह्वै रहै, तौ वह इसका होय।
सुन्दर बातौं ना मिलै, जब लग आपन खोय॥

सुन्दर श्रवणनि कौ श्रवण, आहि नैंन कौं नैंन।
नासा कौं नासा कहै, अरु बैननि कौ बैंन॥

सुन्दर यह मन भ्रम रहै, सूंघत रहै सुगंध।
कंवल माहिं निकसै नहीं, काल न देखै अंध॥

सीस उतारै हाथि करि, संक न आनै कोइ।
ऐसै मंहगे मोल का, सुन्दर हरि रस होइ॥

सुन्दर सद्गुरु शब्द सौं, दीया तत्व बताइ।
सोवत जाग्या स्वप्र ते, भ्रम सब गया बिलाइ॥

सुन्दर तृष्णा लै गई, जहँ बन बिषम पहार।
सिंह ब्याघ्र मारै तहां, कै मारै बटमार॥

विभचारिणि कहै देखि, तूं मेरै पिय कौ गात।
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरी छाती लात॥

सुन्दर करत उपाइ बहु, मन नहिं आवै हाथ।
कोई पीवै पवन कौं, कोई पीवै काथ॥

काष्ट सु जोरे जुगत करि, कीया रथ आकार।
हलन चलन जातें भया, सो सुन्दर ततसार॥

पंच तत्व कौ देह जड़, सब गुन मिलि चौबीस।
सुन्दर चेतनि आतमा, ताहि मिलै पच्चीस॥

सूक्षम तें सूक्षम परै, सुन्दर आपुहि जांनि।
तो तें सूक्षम नाहिं कौ, याही निश्चय आंनि॥

कूप भरै बापी भरै, पूरि भरै जल ताल।
सुन्दर प्रभु पेट न भरै, कौंन कियौ तुम ख्याल॥

कोउक दूध रु पूत दे, कर पर मेल्हि बिभूति।
सुन्दर ये पाखंड किय, क्यौं ही परै न सूति॥

सिर तैं द्वै अध सिर करै, सिर-सिर चहुं-चहुं पाँव।
ऐसैं सिर चालीस है, मन कहिये क छलाव॥

सुन्दर निपट नजीक है, उठै जहाँ थी स्वास।
उहां हि गोता मारि तूं, सांई तेरै पास॥

सुन्दर सुवचन कै सुनै, उपजै अति आनंद।
कुवचन काननि मैं परै, सुनत होत दुख द्वंद॥

पर धी लै करि घर धरै, पर धन हरि-हरि पाइ।
पर निंदा निस दिन करै, सुन्दर मुक्ति हो जाइ॥

सुंदर तबही बोलिये, समझि हिये मैं पैठि।
कहिये बात बिबेक की, नहिंतर चुप ह्वै बैठि॥

धूलि धूम अरु मेघ करि, दीसै मलिनाकाश।
सुन्दर मलिन शरीर संग, आतम शुद्ध प्रकाश॥

सुन्दर तृष्णा यौं बधैं, जैसैं बाढै आगि।
ज्यौं-ज्यौं नाषै फूस कौं, त्यौं-त्यौं अधिकी जागि॥

रक्त पीत स्वेतांवरी, काथ रंगै पुनि जैन।
सुंदर देखे भेष सब, कहूँ न देख्या चैन॥

रिद्धि सिद्धि की कामना, कबहूँ उपजे नांहिं।
सुन्दर ऐसै संतजन, मुक्ति सदा जग मांहिं॥

सुन्दर यौं ही देखतें, औसर बित्यौ जाइ।
अंजुरी मंहिं नीर ज्यौं, किती बार ठहराइ॥

माया कै गुन जड़ सबै, आतम चेतनि जानि।
सुन्दर सांख्य बिचार करि, भिन्न-भिन्न पहिचानि॥

सुन्दर अपने भाव तें, जनकी करै सहाइ।
बाहिर चढि के बीठलौ, दुष्ट हि मारै आइ॥

सुन्दर बरिषा अति भई, सूकि गई सब साख।
नींव फल्यौ बहु भांति करि, लागै दाड्यौं दाख॥

जन सुन्दर सतसंग तें, उपजै निर्मल बुद्धि।
जांनै सकल बिबेक करि, जीव ब्रह्म की सुद्धि॥

ज्यौं गुंजनि को ढेर करि, मरकट मांनै आगि।
ऐसैं सुन्दर आपही, रह्यौ देह सौं लागि॥

नांव निरंतर लीजिये, अन्तर परै न कोइ।
सुन्दर सुमरन सुरति सौं, अंतर हरि-हरि होई॥

बन मैं एक अहेरिये, दीनी अग्नि लगाइ।
सुन्दर उटै धनुष सर, सावज मारै आइ॥

चोवा चंदन कुमकुमा, उड़त अबीर गुलाल।
सुन्दर बिरहनि कै हृदै, उठत अग्नि की झाल॥

सुन्दर और कछु नहीं, एक बिना भगवंत।
तासौं पतिव्रत राखिये, टेरि कहै सब संत॥

सुंदर महिमा नाम की, क्यौं करि बरनि जाइ।
सेस सहस मुख कहत हैं, सो भी पार न पाइ॥

सांईं दीया है सही, इसका दीया मांहिं सनेह।
दीये दीये होत है, सुन्दर दीया देह॥

सुन्दर यहु मन डूम है, मांगत करै न संक।
दीन भयौ जाचत फिरै, राजा होह कि रंक॥

सुन्दर सुवचन तक्र तें, राखै दूध जमाइ।
कुवचन कांजी परत ही, तुरत फाटि करि जाइ॥

नीति अनीति न देखिये, अति गति मन कै बंक।
सुन्दर गुरु की साधु की, नैंकु न मानै संक॥

बोलत-बोलत चुप भया, देखत मूंदै नैन।
सुन्दर पावै एक को, यहु सद्गुरु की सैन॥

जाकी सत्ता पाइ करि, सब गुन ह्वै चैतन्य।
सुन्दर सोई आतमा, तुम जिनि जानहुं अन्य॥

बंदा आया बंदगी, सुनि सांई का नांव।
सुन्दर खोज न पाइये, ना कहुं ठौर न ठांव॥

सुंदर प्रभुजी पेट कौं, साधै जाइ मसान।
यंत्र मंत्र आराध करि, भरहिं पेट अज्ञान॥

सुन्दर सुख की चाह करि, कर्म करै भू भांति।
कर्मनि कौ फल दुःख है, तूं भुगतै दिन-राति॥

सर्प तजै जब कंचुकी, वा दिसि देषै नांहिं।
सुन्दर संमुझै आतमा, भिन्न रहै तनु मांहिं॥

मित्र सुतौ बैरी भये, बैरी हूये मिंत।
सुन्दर उलटी बात सौं, भागी सबही चिंत॥

पहरि संजोवा नीसरै, सुणि सहनाई तूर।
सुन्दर रण मैं रूपि रहै, तबहिं कहावै सूर॥

रवि रवि कौं ढूंढत फिरै, चंद हि ढूंढै चंद।
सुन्दर हूवो जीव सौ, आपु इहै गोबिंद॥

सुन्दर मन कौं मन कहै, बहुरि बुद्धि कौं बुद्धि।
तोहि आपने रूप की, भूलि गई सब सुद्धि॥

सुन्दर पतिब्रत राम सौं, सदा रहै इकतार।
सुख देवै तौ अति सुखी, दुख तौ सुखी अपार॥

श्रवन नैंन मुख नासिका, ज्यौं के त्यौं सब द्वार।
सुंदर सो नहिं देखिये, अचल चलावणहार॥

कहै चित्त कौं चित्त पुनि, सुन्दर तोहि बखानि।
अहंकार कौं है अहं, जानि सकै तो जानि॥

कीड़ी कूंजर कौं गिलै, स्याल सिंह कौं पाइ।
सुन्दर जल तैं माछली, दौरि अग्नि मैं जाइ॥

सुन्दर न्हावै बहुत ही, बहुत करै आचार।
देह माहिं देखै नहीं, भर्यौ नरक भंडार॥

काल ग्रसत है बावरे, चेतत क्यौं न अजांन।
सुन्दर काया कोट में, होइ रह्या सुलतांन॥

संतनि की सेवा किये, श्रीपति होहि प्रसन्न।
सुन्दर भिन्न न जानिये, हरि अरु हरि के जन्न॥

तन कौ साधन होत है, मन कौ साधन नांहिं।
सुन्दर बाहर सब करैं, मन साधन मन मांहिं॥

सुन्दर सद्गुरु मिहरि करि, निकट बताया राम।
जहाँ-तहाँ भटकत फिरै, काहे कौं बेकाम॥

सुन्दर तेरी और कौं, ताकि रहे जमदूत।
बैरी बैठै बारनैं, तूं सोवै किंहिं सूत॥

अठसठ तीरथ जौ फिरै, कोटि यज्ञ व्रत दान।
सुन्दर दरसन साधु कै, तुलै नहीं कछु आन॥

सुन्दर कबहूँ ह्वै जती, कबहूँ कामी जोइ।
सुमिरन तें संसय मिटै, सुमिरन मैं आनन्द।

सुन्दर सुमिरन कैं किये, भागि जाहिं दुख द्वंद
कोउक आचारी भये, पाक करै मुख मूंदि।

सुन्दर या हुन्नर बिना, खाइ सकै नहिं बूँदि॥
सुन्दर जिन पतिब्रत कियौ, तिनी कीये सब धर्म।

जब हिं करै कछु और कृत, तब ही लागै कर्म॥
सुन्दर सरवर सूकतें, कंवल प्रफुल्लित होइ।

हंस तहाँ क्रीड़ा करै, पंखी रहै न कोइ॥
स्वयं ब्रह्म सद्गुरु सदा, अमी शिष्य बहु संति।

दान दियौ उपदेश जिनि, दूरि कियौ भ्रम हंति॥
पानी फिरै पुकारतौ, उपजी जरनि अपार।

पावक आयौ पूछनै, सुन्दर वाकी सार॥
सुन्दर चेतनि आपु यह, चालत जड़ की चाल।

ज्यौं लकरी के अश्व चढि, कूदत डोलै बाल॥
सुन्दर जड़ कै संग तें, भूलि गयौ निजरूप।

देखहु कैसौ भ्रम भयौ, बूड़ि रह्यौ भव कूप॥
सुन्दर सद्गुरु पलक मैं, दूरि करै अज्ञांन।

मन बच क्रम यज्ञास ह्वै, शब्द सुनै जो कांन॥
सुन्दर प्रभुजी सबनि कौं, पेट भरन की चिंत।

कीरी कन ढूंढत फिरै, मांखी रस लैजंत॥
सुन्दर पावक एकरस, लोहा घटि बढि होइ।

तैसैं सुख दुख देह कौं, आतम कौं नहीं कोई॥
सुन्दर नख सिख पर जरै, छिन-छिन दाझै देह।

बिरह अग्नि तबही बुझै, जब बरषै पिय मेह॥
भजन करत भय भागिया, सुमिरन भागा सोच।

जाप करत जौंरा टल्या, सुंदर सांची लोच॥
सुन्दर जौ हरि मिलन की, तौ करिये सतसंग।

बिना परिश्रम पाइये, अविगति देव अभंग॥
मैं ही अति ग़ाफ़िल हुई, रही सेज पर सोइ।

सुंदर पिय जागै सदा, क्यौं करि मेला होइ॥
झटकि तार कौं तौरी दे, भटकत सांझ रु भोर।

पटकि सीस सुन्दर कहै, फटकि जाइ ज्यौं चोर॥
अंजन कीया नैंन मैं, सबही राखै मोहि।

सुन्दर हुन्नर बहुत हैं, कोइ न जांनै तोहि॥
विभचारिणि कहै देखि, तूं मेरै पिय कै बाल।

सुन्दर पतिबरता कहै, तेरै मांथै ताल॥
सुन्दर कोऊ साधु की, निंदा करै कपूत।

ताकौं ठौर कहूँ नहीं, भ्रमत फिरै ज्यौं भूत॥
नाइक लाद्यौ उलटि करि, बैल बिचारै आइ।

गौन भरी लै बस्तु मैं, सुन्दर हरिपुर जाइ॥
चोट परै घन की जबहिं, पावक भिन्न रहाइ।

सुन्दर दीसै प्रगट हो, लोहा बधता जाइ॥
सुन्दर अपने भाव करि, आप कियौ आरोप।

काहू सौं सन्तुष्ट ह्वै, काहू ऊपर रोष॥
जौ बंदा हाजिर खड़ा, करै धणी का कांम।

सांई कौं भूलै नहीं, सुन्दर आठौं यांम॥
सुन्दर याकै ऊपजै, काम क्रोध अरु मोह।

याही कै ह्वै मित्रता, याही कै ह्वै द्रोह॥
सुन्दर जाकौ जो रच्यौ, सोई पहुंचै आइ।

कीरी कौं कन देत है, हाथी मन भरि पाइ॥
सुन्दर सुच्चि रहै नहीं, या शरीर के संग।

न्हावै धोवै बहुत करि, सुद्ध होइ नहिं अंग॥
सुन्दर मन गजराज ज्यौं, मत्त भयौ सुध नांहिं।

काम अंध जानै नहीं, पर खाड के मांहिं॥
देह रूप मन ह्वै रह्यौ, कियौ देह अभिमान।

सुन्दर समुझै आपकौं, आपु होइ भगवान॥
पीय लुभाना सुनि सखा, काहू सौं परदेस।

सुन्दर बिरहनि यौं कहै, आया नहीं संदेस॥
राम नाम रंकै भज्यौ, भज्यौ त्रिलोचन राम।

नामदेव भजि राम कौं, सुन्दर सारे काम॥
सुन्दर देखि न थरहरै, हहरि न भागै बीर।

गहर बडे घमसांण मैं, कहर धरै को धीर॥
बाहिर भीतरि सारिषौ, ब्यापक ब्रह्म अखंड।

सुन्दर अपने भाव तें, पूरि रह्यौ ब्रह्मंड॥
सिन द्वै शीतल देखिये, बहुरि तप्त में पांव॥

अपने दोष न देखई, परकै औगुन लेत।
जैसे बालक शंक करि, कंपि उठै भय मांनि।

ऐसें सुन्दर भ्रम भयौ, देह आपु कौ जांनि॥
सुन्दर संमरथ राम कौं, कहत दूरि तैं दूरि।

पलक मांहिं प्रगटै सही, हृदये मांहिं हजूरि॥
सुन्दर काहू दुष्ट कौं, भूलि न धीजहु बीर।

नीचै आगि लगाइ करि, ऊपर छिरकै नीर॥
बैठौ आसन मारि करि, पकरि रह्यौ मुख मौन।

सुन्दर सैन बतावतें, सिद्ध भयौ कहि कौन॥
देह धात माहें मिलै, आतम कनक कुरूप।

सुन्दर सांख्य सुनार बिन, होइ न शुद्ध स्वरूप॥
सुन्दर नदी प्रवाह में, चलत देखिये चंद।

तैसैं आतम अचल है चलत कहैं मतिमंद॥
सुन्दर तृष्णा पकरि कैं, करम करावै कोरि।

पूरी होइ न पापिनी, भटकावै चहुं वोरि॥
सुन्दर बिरहनि दूबरी, बिरह देत तन त्रास।

अजा रहै ढिंग सिंह कै, कहौ चढै क्यौं मांस॥
बार लगाई बल्लमा, बिरहनि फिरै उदास।

सुन्दर गई बसंत ऋतु, अब आयौ चोमास॥
बाजीगर बाजी रची, ताकी आदि न अंत।

भिन्न-भिन्न सब देखिये, सुन्दर रूप अनंत॥
सुन्दर देह हलै चलै, जब लगि चेतनि लाल।

चेतनि कियौ प्रयान जब, रूसि रहै ततकाल॥
सुन्दर भूलौ आपकौं, खोई अपनी ठौर।

देह मांहि मिलि देह सौ, भयौ और कौ और॥
नीर क्षीर ज्यौं मिलि रहे, देह आतमा दोइ।

सुन्दर हंस बिचार बिन, भिन्न-भिन्न नहिं होइ॥
जागि करे जो बंदगी, सदा हज़ूरी होइ।

सुंदर कबहूँ न बीछुरै, साहिब सेवग दोइ॥
सुन्दर सुरति समेटि कैं, सुमिरन सौं लै लीन।

मन बच क्रम करि होत है, हरि ताकै आधीन॥
सुंदर दिल की सेज पर, औरत है अरवाह।

इस कौं जाग्या चाहिए, साहिब बे परवाह॥
सुंदर अब तेरी खुसी, बाजी जीति कि हारि।

चौपडि कौ सौ खेल है, मनुषा देह बिचारि॥
ज्ञान तिलक सोहै सदा, भक्ति दई गुरु छाप।

ब्यापक बिष्णु उपासना, सुन्दर अजपा जाप॥
केस लुचाइ न ह्वै जती, कान फराइ न जोग।

सुंदर सिद्धि कहा भई, बादि हंसाये लोग॥
ज्यौं अमली की ऊंघतें, परी भूमि पर पाग।

वह जानै यह और की, सुन्दर यौं भ्रम लाग॥
कबहू पंचामृत भखै, कबहूँ भाजी साग।

सुन्दर संतनि कै नहीं, कोऊ राग बिराग॥
सीत काल जल मैं रहै, करै कामना मूढ।

सुन्दर कष्ट करै इतौ, ज्ञान न समझै गूढ॥
सुन्दर चितवै और कछु, काल सु चितवै और।

तूं कहुं जाने की करै, वहु मारै इहिं ठौर॥
मेघ सहै आंधी सहै, सहै बहुत तन त्रास।

सुन्दर तृष्णा कै लियें, करै आपनौ नास॥
धोवत है संसार सब, गंगा मांहि पाप।

सुन्दर संतनि के चरण, गंगा बंछै आप॥
तत्व कहे इकतीस लौं, मत जू जुवा बपांनि।

सुन्दर जल कौनैं पिया, मृग तृष्णा घर आंनि॥
सुन्दर वाकी सुधि गई, जाकौं लागौ भूत।

काहू सौं बनिया कहै, काहू सौं रजपूत॥
सुन्दर सोई सूरमा, लोट पोट ह्वै जाइ।

वोट कछू राखै नहीं, चोट मुहें मुंहं खाइ॥
बात सुनौ जिनि दुष्ट की, बहुत मिलावै आंनि।

सुन्दर मानै सांच करि, सोई मूरख जानि॥
सुन्दर वचन सु त्रिबिधि है, एक वचन है फूल।

एक वचन है असम से, एक वचन है सूल॥
सुन्दर सब उलटी कही, संमुझै संत सुज्ञांन।

और न जांनै बापुरे, भरे बहुत अज्ञांन॥
अपनौई सब भाव है, जो कछु दीसै और।

सुन्दर समुझै आतमा, तब याही सब ठौर॥
सुन्दर जरिये अग्नि महिं, जल बूडे नहिं हानि।

पर्वत ही तें गिरि परौ, दुर्जन भलौ न जांनि॥
एक एक अनुलोम करि, दीसहिं तत्व स्थूल।

एक एक प्रतिलोम तें, सुन्दर सूक्ष्म मूल॥
मेल्है पाव उठाइ कै, बक ज्यौं मांडै ध्यान।

बैठौ गटकै माछली, सुन्दर कैसौ ज्ञान॥
पतिब्रत मांहिं क्षमा दया, धीरज सत्य बखानि।

सुन्दर पतिब्रत राम सौं, याही निश्चय आंनि॥
ब्रह्मादिक शिव मुनि जनां, थाके सबही संत।

सुन्दर कोउ न कहि सकै, जाकौ आदि न अंत॥
संतनि की निंदा कियें, भलौ होइ नहिं मूलि।

सुन्दर बार लगै नहीं, तुरत परै मुख धूलि॥
कूप उसार्यौ कुंभ मैं, पानी भर्यौ अटूट।

सुन्दर तृषा सबै गई, धापे चार्यौ खूंट॥
आइ बनै गुदरै नहीं, पेलै अपनौ दाव॥

लोक प्रलोक सबै मिलै, देव इंद्र हू होइ।
सुन्दर दुर्लभ संतजन, क्यों कर पावै कोइ॥

सुन्दर वाही वचन है, जा महिं कछू बिबेक।
नातरू झेरा मैं पर्यौ, बोलत मानौ झेक॥

मात पिता सबही मिलै, भइया बंधु प्रसंग।
सुन्दर सुत दारा मिलै, दुर्लभ है सतसंग॥

मूरख पावै अर्थ कौं, पंडित पावै नांहि।
सुन्दर उलटी बात यह, है सद्गुरु कै मांहि॥

जौ पिय कौ व्रत ले रहै, कन्त पियारी सोइ।
अंजन मंजन दूरि करि, सुन्दर सनमुख होइ॥

नाम लिया तिन सब किया, सुंदर जप तप नेम।
तीरथ अटन सनान ब्रत, तुला बैठि दत्त हेम॥

घूघू कउवा रासिभा, ये जब बोलहिं आइ।
सुन्दर तिनकौ बोलिबौ, काहू कौं न सुहाइ॥

सुन्दर तृष्णा करत है, सबकौ बांद गुलाम।
हुकम कहै त्यौं ही चलै, गनै शीत नहिं घांम॥

सुन्दर तोहि कितौ, सीख न मानी एक।
तृष्णा तूं छाडै नहीं, गही आपनी टेक॥

उलटि करै जो बंदगी, हर दम अरु हर रोज।
तौ दिल ही मैं पाइये, सुन्दर उसका खोज॥

जगत बिझूका देखि करि, मन मृग मानै संक।
सुन्दर कियौ बिचार जब, मिथ्या पुरुष करंक॥

पीय-पीय रसना रटै, नैंना तलफै तोहि।
सुन्दर बिरहनि अति दुखी, हाइ-हाइ मिलि मोहि॥

हंस मांहिं है हंस सौ, मोर मांहि है मोर।
सुन्दर जैसौ घट भयौ, तैसोई तिहिं वोर॥

सुन्दर यहु मन जार है, तकै पराई नारि।
अपनी टेक तजै नहीं, भावै गर्दन मारि॥

पतिब्रत ही मैं योग है, पतिव्रत ही मैं जाग।
सुन्दर पतिब्रत राम सौं, वहै त्याग बैराग॥

रंचक काढै मथन करि, बहुरि होइ बलवंत।
सुन्दर सबही काठ कौं, जारि करै भस्मंत॥

सुन्दर मच्छ समुद्र मैं, सौ जोजन बिसतार।
ताहू कौं भूलै नहीं, प्रभु पहुंचावनहार॥

जागी करै जो बंदगी, सदा हजूरी होइ।
सुन्दर कबहुं न बीछुरै, साहिब सेवग दोइ॥

सुन्दर काल महाबली, मारे मोटे मीर।
तूं कौनैं की गनति मैं, चेतत काहि न बीर॥

सुंदर ठगबाजी जगत, यह निश्चय करि जांनि।
पहलै बहुत ठगाइयौ, वहै घणौं करि मांनि॥

सुन्दर सद्गुरु उमगि कै, दीनी मौज अनूप।
जीव दशा तें पलटि करि, कीये ज्ञान स्वरुप॥

सुन्दर यह नहिं यह नहीं, यह तौ है भ्रम कूप।
नाहिं नाहिं करते रहैं, सो है तेरौ रूप॥

सुन्दर वाही बोलिवौ, जा बोलै में ढंग।
नातरु पशु बोलत सदा, कौन स्वाद रस रंग॥

हाथी मंहि देखिये हाथी कौ अभिमान।
सुन्दर चीटी मांहिं रिस, चीटी कै अनुमान॥

सुन्दर यह मन भूत है, निस दिन बकतें जाइ।
चिन्ह करै रोवै हंसै, खातें नहीं अघाइ॥

सिंह मांहिं है सिंह सौ, स्याल मांहिं पुनि स्याल।
जैसी घट उनहार है, सुन्दर तैसौ ख्याल॥

सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, चौरासी लख जंत।
जल थल कै चाहै सकल, जे आकाश बसंत॥

सान्यौ घर मंहि कहै, हूँ अपने घर जाऊँ।
सुन्दर भ्रम ऐसौ भयौ, भूलौ अपनौ ठांऊँ॥

मुख तैं बैंण न उच्चरै, सुन्दर सूर सुजांण।
टूक-टूक जब ह्वै पडै, सबकौ करै बखाण॥

जो यह टेढौ होत है, आगे टेढोै होइ।
सुन्दर परतख देखिये, दर्पन मंहि जोइ॥

बुद्धि भ्रमै मन चित्त पुनि, अहंकार बहु भाइ।
सुन्दर ये तौ तैं भ्रमै तूं, क्यौं इनि संग जाइ॥

एक एक के एक पर, तत्व गनैं तै होइ।
सुन्दर तूं सब कै परै, तौ ऊपरि नहिं कोइ॥

राम भजन जाकै हृदै, ताकै टोटा कौंन।
मूरतिवंती लक्ष्मी, सुन्दर वाकै भौंन॥

मन कौं मारत बैठि करि, मन मारै वै अंध।
सुन्दर धोरे चढ़न की, घोरा बैठौ कंध॥

सुंदर तृष्णा सर्प्पणी, लोभ सर्प कै साथ।
जगत पिटारा मांहिं अब, तूं जिनि घालै हाथ॥

ऐसी तेरी साहिबी, जांनि न सक्कै कोइ।
सुन्दर सब देखै सुनै, काहू लिप्त न होइ॥

सुन्दर हरि जन एक हैं, भिन्न भाव कछु नांहिं।
संतनि महिं हरि बसै, संत बसै हरि मांहिं॥

सुन्दर कछु न सराहिये, एक बिना भगवान।
लच्छन लागै तुरत ही, सबहिं सराहै आंन॥

सुन्दर तूं चेतन्य घन, चिदानंद निज सार।
देह मलीन असुच्चि जड, बिनसत लगै न बार॥

राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।
मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥

बिरह बघूरा लै गयौ, चित्त हि कहूँ उडाइ।
सुंदर आवै ठौर तब, पीय मिलै जब आइ॥

बातैं कोउ न कहि सकै, थकित भये सिध साध।
सुन्दर हू चुप करि रहे, वह तौ अगम अगाध॥

सुन्दर उलटी बात है, समुझै चतुर सुजान।
सूवै काढे पकरि कै, या मिनिकी के प्रान॥

विप्र रसोई करत है, चौकै काढी कार।
लकरी मैं चूल्हा दियौ, सुन्दर लगी न बार॥

सुन्दर काल गिराइ दे, एक पलक मैं आइ।
तूं क्यौं निर्भय ह्वै रह्यौ, देखि चल्यौ जग जाइ॥

सुन्दर दुष्ट स्वभाव है, औगुन देखै आइ।
जैसैं कीरी महल मैं, छिद्र ताकती जाइ॥

सूक्षम देह स्थल कौ, मिल्यौ करत संयोग।
सुन्दर न्यारौ आतमा, सुख दुख इनकौ भोग॥

समद समानौं बूँद मैं, राई मंहि मेर।
सुन्दर यह उलटी भई, सूर्य कियौ अँधेर॥

पंथी मंहि पंथ चलि, आयौ आकसमात।
सुन्दर वाही पंथ गहि, उठि चाल्यौ परभात॥

कै सांई की बंदगी, कै सांई का ध्यांन।
सुन्दर बंदा क्यों छिपै, बंदे सकल जिहांन॥

सुन्दर यह मन यौं फिरै, पांनि कौ सौ घेर।
वायु बघूरा पुनि ध्वजा, यथा चक्र कौ फेर॥

काढि-काढि बाहिर करै, राते पीरे रंग।
सुन्दर चांवर धूरि के, पंख परेवा संग॥

सुन्दर और सराहते, पतिब्रत लागै खोट।
बालु सरायौ रेनुका, बंधी न जल की पोट॥

सुंदर मौंन गहे रहै, जानि सकै नहिं कोइ।
बिना बोलै गुरुवा कहैं, बोलें हरवा होइ॥

चलत-चलत पहुंच्यौ तहाँ, जहाँ आपनौ भौन।
सुन्दर निश्चल ह्वै रह्यौ, फिरि आवै कहि कौन॥

कोउक माया देत है, तेरै भरै भंडार।
सुन्दर आप कलापकरि, निठी-निठी जुरै अहार॥

सुन्दर मन मन सब कहैं, मन जान्यौ नहिं जाइ।
जौ या मन कौं जांणिये, तौ मन मनहिं समाइ॥

जे बिकार हैं देह कै, देहहि के सिर मारि।
सुन्दर याते भिन्न ह्वै, अपनौ रूप बिचारि॥

कल न परत पल एक हूँ, छाडै सास उपास।
सुन्दर जागी ख़्वाब सौं, देखे तौ पिय पास॥

साह रमइया अति बड़ा, खोलै नहीं कपाट।
सुन्दर बांन्यौटा किया, दीन्ही काया हाट॥

विभचारिणि यौं कहतु है, मेरौ पीय सुजांन।
सुन्दर पतिबरता कहै, काटौं तेरै कांन॥

बीछू मैं बीछू भयौ, सर्प मांहि है सांप।
सुन्दर जैसौ घट भयौ, तैसौं हूवौ आप॥

सुन्दर ब्याकुल बिरहनी, दीन भई बिललाइ।
दंत तिणां लीयें कहै रे, पिय आप दिखाइ॥

सुन्दर कीयौ साज सब, समरथ सिरजनहार।
कौंन करी यह रीस तुम, पेट लगायौ लार॥

पतिब्रत ही मैं यम नियम, पतिव्रत ही मैं दान।
सुन्दर पतिब्रत राम सौं, तीरथ सकल सनान॥

अंत वेद के बचन तें, उपजै ज्ञान अनूप।
सुन्दर आंटी सुरझि के, तब ह्वै ब्रह्म स्वरुप॥

सुन्दर कृष्ण प्रगट कहै, मैं धारी यह देह।
संतनि कै पीछे फिरौं, सुद्ध करन कौं येह॥

मरकट मूठ न छाड़ई, बंध्यौ स्वाद सौं जाइ।
सुन्दर गर मैं जेवरी, घर-घर नाच्यौ आइ॥

पावस नृप चढि आइयौ, साजि कटक मम गेह।
सुन्दर बिरहनि थरसली, कंपि उठी सब देह॥

सुन्दर यहु मन चोरटा, नाषै ताला तोरि।
तकै पराये द्रव्य कौं, कब ल्याऊं घर फोरि॥

सुन्दर सूरातन करै, सूरबीर सो जानि।
चोट नगारै सुनत ही, निकसि मँडै मैदानि॥

सुंदर यहु मन काग है, बुरौ भलौ सब खाइ।
समुझायौ समुझै नहीं, दौरि करङ्कहि जाइ॥

सुन्दर वाकी सुधि गई, जाकौं लागी बाइ।
कहै और की औरई, जो भावै सो खाइ॥

दुष्ट बुरी हो करत है, सुन्दर नैंकु न लाज।
काम बिगारै और कौ, अपनैं स्वारथ काज॥

सुन्दर सिरजनहार की, सबही अद्भुत बात।
गर्भ मांहि पोषत रहै, जहां गम्य नहिं मात॥

मिलि करि या जड़ देह सौ, रह्यौ तिसौही होइ।
सुन्दर भूलौ आपु कौं, सुधि बुधि रही न कोइ॥

सुंदर गुरु सु रसाइनी, बहु विधि करय उपाय।
सद्गुरु पारस परसतें, लोह हेम ह्वै जाय॥

सुन्दर जब पतिब्रत गयौ, तब खोई सपतंग।
मांनहुं टीका नील कौ, बिप्र दियौ निज अंग॥

तृष्णा पेट पसारियौ, तृप्ति न क्यौं ही होइ।
सुन्दर कहतैं दिन गये, लाज सरम नहिं कोइ॥

जलचर थलचर ब्योमचर, गनै कहाँ लौ कोइ।
सुन्दर जैसौ घट जहाँ, रह्यौ तिसौही होइ॥

सुन्दर जां प्रवीण अति, ताकै आगै आइ।
मूरख वचन उचारि कैं, वांणी कहै सुनाइ॥

सुंदर जीव दया करै, न्यौता मानै नाहिं।
माया छुवै न हाथ सौं, परकाला ले जाहिं॥

सुंदर सौदा कीजिये, भली वस्तु कछु खाटि।
नाना बिधि काटांगरा, उस बनिया की हाटि॥

घर खोवत है आपनौ, औरनि हूँ कौ जाइ।
सुन्दर बंदा बंदगी, करै दिवस अरु रात।

सो बंदा कहिये सही, और बात की बात॥
काम क्रोध जिनि कै नहीं, लोभ मोह पुनि नांहिं।

सुन्दर ऐसै संतजन, दुर्लभ या जगु मांहिं॥
सुन्दर यौं ही बकि उठै, बोलै नहीं बिचारि।

सबही कौं लागै बुरौ, देत ढीम सौ डारि॥
सुन्दर कबहूँ न धीजिये, सरस दुष्ट की बात।

मुख ऊपर मीठी कहै, मन मैं घालै घात॥
खंदक खास बुखार पुनि, बहुरि भरहिं घर हाट।

सुन्दर प्रभु पेट न भरहिं, भरियहि कोठी माट॥
एक भजन तन सौं करे, एक भजन मन होइ।

सुंदर तन मन कै परै, भजन अखंडित सोइ॥
चेतनी मिश्री देह तृण, तुलत संग देहिं दाम।

सुन्दर दोउ जुदे भये, तन तृण कोणौं काम॥
सुन्दर जिनि प्रभु गर्भ मैं, बहुत करी प्रतिपाल।

सो पुनि अजहूँ करत है, तूं सोधै धनमाल॥
देह मांहि ह्वै देह सौ, कियौ देह अभिमान।

सुन्दर भूलौ आपु कौं, बहुत भयौ अज्ञान॥
शीत उष्ण क्षुधा तृषा, मोकौं लागि आइ।

सुन्दर या भ्रम की नदी, ताही मैं बहि जाइ॥
पतिब्रत ही मैं शील है, पतिब्रत मैं संतोष।

सुन्दर पतिब्रत राम सौं, वह ई कहिये मोष॥
पाप पुन्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाऊँ।

सुन्दर सब कछु मानि ले, ताही तें मन नाऊँ॥
बाक्य पानि अरु पाद पुनि, गुदा उपस्थ हि जांनि।

सुन्दर ये तैं भ्रमैं तूं, क्यौं लीने मांनि॥
अंध बधिर गूंगौ भयौ, मेरौ कौन हवाल।

सुन्दर ऐसौ मांनि करि, बहुत फिरें बेहाल॥
सुन्दर बिरहनि अध जरी, दुःख कहै मुख रोइ।

जरि बरि कै भस्मी भई, धुंवा न निकसै कोइ॥
सुन्दर भूल्या क्यौं फिरै, सांई है तुझ मांहिं।

एक मेक ह्वै मिलि रह्या, दूजा कोई नांहिं॥
ज्यौं बाजीगर करत है, कागद मैं हथफेर।

सुन्दर ऐसैं जानिये, मन मैं धरन सुमेर॥
सुन्दर सुनतें होइ सुख, तबही मुख तें बोल।

आक बाक बकि और की, बृथा न छाती छोल॥
सुन्दर याकै शंक ह्वै, यही है निहसंक।

याही सूधौ ह्वै चलै, याही पकरै बंक॥
सुन्दर परम सुगंध सौं, लपटि रह्यौ निश भोर।

पुंडरीक परमातमा, चंचरीक मन मोर॥
संतनि की निंदा करै, ताकौ बुरौ हवाल।

सुन्दर उहै मलेछ है, वहै बड़ो चंडाल॥
कूकस कूटहिं कन बिना, हाथ चढै कछु नांहिं।

सुन्दर ज्ञान हृदै नहीं, फिरि-फिरि गोते खाहिं॥
सुन्दर तृष्णा कारनै, जाइ समुद्र हि बीच।

फटै जहाज अचानचक, होइ अबंछी मीच॥
सुन्दर सुख कै कारनै, दुःख सहै बहु भाइ।

को खेती को चाकरी, कोइ बणज कौं जाइ॥
बिप्र ह्वै रह्यौ शूद्र सौ, भूलि गयौ ब्रह्मत्व।

सुन्दर ईश्वर आपही, मांनि लियौ जीवत्व॥
सुन्दर या नर देह है, सब देहनि कौ मूल।

भावै यामैं समझि तूं, भावै यामैं भूल॥
जिस बिधि पीव रिझाइये, सो बिध जानी नांहिं।

जोबन जाइ उतावला, सुन्दर यहु दुख मांहिं॥
देहनि कै ज्यौं द्वार मैं, पवन लिपै कहुं नाहिं।

तैसैं सुन्दर आतमा, दीसै काया माहिं॥
पर कौ काम बिगारि दे, अपनौ होउ न होह।

रंक हाथ हीरा छड्यौ, ताकौ मोल न तोल।
घर-घर डोलै बेचतौ, सुंदर याही भोल॥

राम नाम जाकै हृदै, ताहि नवैं सब कोइ।
ज्यौं राजा की त्रास तें, सुन्दर अति डर होइ॥

मुख सेती बंदा कहै, दिल मैं अति गुमराह।
सुन्दर सौ पावै नहीं, सांई की दरगाह॥

राम नाम जाकै हृदै, सुन्दर बंदहि देव।
पहल डिगावै आइ कै, पीछै लगै सेव॥

आपु हि फेरी लेत है, फिरते दीसै आंन।
सुन्दर ऐसै जानि तूं, तेरौ ही अज्ञांन॥

जातें कबहूँ न जानिये, यौं मन नीकसि जाइ।
आवत कछू न देखिये, सुन्दर किसी बलाइ॥

सुन्दर सद्गुरु यों कह्या, शब्द सकल का मूल।
सुरझै एक बिचार तें, उरझै शब्द समूल॥

सुन्दर आसन मारि कै, साधि रहे मुख मौन।
तन कौ राखै पकरि कैं, मन पकरै कहि कौन॥

सुन्दर सद्गुरु आप तें, अति ही भये प्रसन्न।
दूरि किया संदेह सब, जीव ब्रह्म नहिं भिन्न॥

सुन्दर यह मन करत है, बाजीगर कौ ख्याल।
पंख परेवा पलक मैं, मुवो जिवावत ब्याल॥

नख की गिनती कौ गिनै, तन कै रोम अनंत।
ऐसै मन कौं बसि करै, सुन्दर सौ बलिवंत॥

इत उत कहूं न चलि सकै, थकित भया तिहिं ठौर।
सुन्दर जैसैं नाद बसि, मन मृग बिसर्या और॥

ज्यों ठगमूरि खात ही, रहै कछु नहिं बुद्धि।
यौं सुन्दर निजरूप की, भूलि गयौ सब सुद्धि॥

सुन्दर सोभै सूरिवां, मुख परि बरिषै नूर।
फौज फटावै पलक मैं, मार करै चकचूर॥

सुन्दर बातें दुष्ट की, कहिये कहा बखानि।
कहें बिना नहिं जानियें, जितो दुष्ट की बांनि॥

सुन्दर समरथ राम है, जे कछु करै सु होइ।
जो प्रभु कौं कछु कहत है, ता सम बुरा न कोइ॥

सुन्दर यहु मन काग है, बुरौ भलौ सब खाइ।
समुझायौ समुझै नहीं, दौरि करंक हि जाइ॥

सुन्दर सब चक्रित भये, वचन कह्या नहिं जाइ।
टग-टग रहे सु देखते, ठगमूरी सी खाइ॥

सुन्दर सबकौं देत है, चंच संवानी चौंनि।
तेरै तृष्णा अति बढ़ी, भरि-भरि ल्यावत गौनि॥

सुन्दर मन बटमार है, घालै पर की घात।
हाथ परे तजै छोडै नहीं, लूटि खोसि ले जात॥

सुन्दर मूसा फिरत है, बिल तें बाहिर आइ।
काल रह्यौ अहि ताकि करि, कबहुंक लेइ उठाइ॥

कर्मकांड के बचन सुनि, आंटी परी अनेक।
सुन्दर सुनै उपासना, तब कछु होइ बिबेक॥

देह सुरंगी तब लगें, जब लगि प्राण समीप।
जीव जाति जाती रही, सुंदर बिदरंग दीप॥

सुन्दर धीरज धारि तूं, गहि प्रभु कौं बिश्वास।
रिजक बनायौ रामजी, आवै तेरै पास॥

सुन्दर बैठै नाव मैं, कहूँ-कहूँ तें आइ।
पार भये कतहूँ गये, त्यौं कुटंब सब जाइ॥

सुन्दर दिल की सेज पर, औरत है अरवाह।
इस कौं जाग्या चाहिये, साहिब बे परवाह॥

सुन्दर मन गांठी कटौ, डारै गर मैं पासि।
बुरौ करत डरपै नहीं, महापाप की रासि॥

सिंह कूप परि आइ कैं, देखी अपनी छांहिं।
सुन्दर जान्यौ दूसरौ, बूड़ि मुवौ ता मांहिं॥

सुन्दर प्रभुजी पेट की, चिंता दिन अरु राति।
सांझ खाइ करि सोइये, फिरि मांगै परभाति॥

सुन्दर मसकति द्वार सौं, गुरु मथि काढै आगि।
सुन्दर चकमक ठोकतें, तुरत उठै कफ जागि॥

असुर भूत अरू प्रेत पुनि, राक्षस जिनि कौ नांव।
त्यौं सुन्दर प्रभु पेट यह, करै खांव ही खांव॥

हलन चलन सब देह को, आतम सत्ता होइ।
सुन्दर साक्षी आतमा, कर्मन लागै कोइ॥

देह सुरंगी तब लगे, जब लग प्राण समीप।
जीव जाति जाती रही, सुन्दर बिदरंग दीप॥

सुन्दर निस दिन साधु कै, मन मारन की मूठि।
मनकै आगे भागि करि, कबहुं न फेरै पूठि॥

ठग विद्या मन कै घनी, दगाबाज मन होइ।
सुन्दर छल केता करै, जानि सकै नहिं कोइ॥

राम नाम संतनि धर्यौ, राम मिलन के काज।
सुन्दर पल मैं पार ह्वै, बैठै नाम जिहाज॥

पतिबरता छाडै नहीं, सुन्दर पति की सेव।
विभचारिणि औगुन भरी, पूजै देवी देव॥

सुन्दर यहु मन नीच है, करै नीच ही कर्म।
इनि इन्द्रिनि कै बसि पर्यौ, गिनै न धर्म अधर्म॥

सुन्दर अपने भाव तें, मूरत पीयौ दुद्ध।
ठाकुर जान्यौं सत्य करि, नामां कौ उर सुद्ध॥

सुन्दर सब ही सौं मिली, कन्या अषन कुमारि।
बेश्या फिरि पतिब्रत लियौ, भई सुहागनि नारि॥

सुन्दर पंजर हाड कौ, चाम लपेटयौ ताहि।
तामैं बैठयौ फूलि कै, मो समान को आहि॥

योग करै जप तप करै, यज्ञ करै दे दान।
तीरथ व्रत यम नेम तैं, सुन्दर ह्वै अभिमान॥

सुन्दर हरि आराध करि, है देवनि कौ देव।
भूलि न और मनाइये, सबै भीति कै लेव॥

सुन्दर या सतसंग मैं, शब्दन को औगाह।
गोष्टि ज्ञान सदा चलै, जैसै नदी प्रवाह॥

सुन्दर बिगसै बिरहनी, मन मैं भया उछाह।
फूल बिछाऊं सेजरी, आज पधारैं नाह॥

सुन्दर सद्गुरु बैद ज्यौं, पर उपकार करेइ।
जैसौ ही रोगी मिलै, तैसी औषध देइ॥

देह भिन्न हौं भिन्न हौं, जब यह करै बिबेक।
सुन्दर जीव न पाइये, होइ एक कौ एक॥

सुन्दर तन मन आपनौ, आवै प्रभु कै काम।
रण मैं तैं भाजै नहीं, करै न लौन हराम॥

सुन्दर सांची कहत है, जौ मानै तौ मांनि।
यहै अति निंद्य है, यहै रतन की खांनि॥

सुन्दर मनुषा देह यह, तामैं दोइ प्रकार।
यातै बूडै जगत महि, यातैं उतरै पार॥

श्रवन दिये जस सुनन कौं, नैन देखने सन्त।
सुन्दर सोभित नासिका, सोभन कौं दन्त॥

बिद्याधर पंडित गुनि, दाता सूर सुभट्ट।
सुंदर प्रभुजी पेट इनि, सकल किये षटपट्ट॥

सुन्दर यहु मन रासिभौ, दौरि बिषै कौं जात।
गदही कै पीछै फिरै, गदही मारै लात॥

तें नर सुख कीये घने, दुख भोगये अनंत।
अब सुख दुख कौ पिठी दें, सुन्दर भजि भगवंत॥

सुन्दर मनुषा देह मैं, सारे बंधन बाढि।
आयौ हाथ सिला तलै, काढि सकै तौ काढि॥

सुंदर बैठा क्यौं अबै, उठि करि मारग चालि।
कै कछु सुकृत कीजिये, कै भगवंत संभालि॥

सुन्दर काहे खैंचि ले, अपने मांथै बोझ।
करता कौं जानै नहीं, तूं रांमां कौ रोझ॥

काहू सौं अति निकट है, काहू सौं अति दूरि।
सुन्दर अपनौ भाव है, जहाँ तहाँ भरपूरि॥

जाही कौ सुमिरन करै, ह्वै ताही कौ रूप।
सुमिरन कियें ब्रह्म कै, सुन्दर ह्वै चिद्रूप॥

सुन्दर ब्राह्मन आदि कौ, ता महिं फेर न कोइ।
सूद देह सौं मिलि रह्यौ, क्यौं पवित्र अब होइ॥

जाकी आज्ञा मैं रहै, ब्रह्मा विष्णु महेस।
सुन्दर अवनि अनादि की, धारि रहे सिर सेस॥

सुन्या सन्देसा पीव का, मन मैं भया अनंद।
सुन्दर पाया परम सुख, भाजि गया दुख दंद॥

पतिबरता पति कै निकट, सुन्दर सदा हजूरि।
विभचारिणि भटकति फिरै, न्याय परै मुख धूरि॥

ढोलन मेरा भावता, वेगि मिलहु मुझ आइ।
सुन्दर ब्याकुल बिरहनी, तलफि-तलफि जिय जाइ॥

सुंदर भटक्यौ बहुत दिन, अब तूं ठौहर आव।
फेरि न कबहूं आइ है, यह औसर यहु डाव॥

कामी हूवो काम रत, जती हुवो जत साधि।
सुन्दर या अभिमान तें, दोऊ लागी ब्याधि॥

सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, देवी देव अपार।
दोष लगावै और कौं, चाहै एक अहार॥

सुन्दर क्यौं टेढौ चलै, बात कहै किन मोहि।
महा मलीन शरीर यह, लाज न उपजैं तोहि॥

फटिक सिला सौं आय करि, कुंजर तोरै दंत।
आगै देख्यौ और गज, सुन्दर अज्ञ अतिंत॥

इन्द्रिय मन अरु आदि दे, शब्द न जानै तोहि।
सुन्दर तोतें चपल ये, तूं इनितें क्यौं होहि॥

सुन्दर हय हींसै जहाँ, गय गाजै चहूँ फेर।
काइर भागै सटकदे, सूर अडिग ज्यौं मेर॥

सुन्दर रीझै रामजी, जाकै पतिब्रत होइ।
रुलत फिरै ठिक बाहरी, ठौर न पावै कोइ॥

सुन्दर तृष्णा डाइनी, डाकी लोभ प्रचण्ड।
दोऊ काढें आंखि जब, कंपि उठै ब्रह्मण्ड॥

पतिब्रत ही मैं तप भयौ, पतिव्रत हो मैं मौंन।
सुन्दर पतिब्रत राम सौं, और कष्ट कहिं कौंन॥

सुन्दर मानुषा देह की, महिमा कहिये काहि।
जाकौ बंछै देवता, तूं क्यौं खोवै ताहि॥

सुन्दर प्रभु मुख सौं कहै, सोई मीठी बात।
डार कहै तौ डार ही, पात कहै तौ पात॥

सुन्दर सूरातन किये, जगत मांहिं जस होइ।
सीस समर्पै स्याम कौं, संक न आनै कोइ॥

सुन्दर या सतसंग मैं, भेदर भेद न कोइ।
जोई बैठेै नाव मैं, सो पारंगत होइ॥

गज मारै तौ नाहिं दुख, सिंह करै तन भंग।
सुन्दर ऐसौ नांहिं दुःख, जैसौ दुर्जन संग॥

संतनि ही कौ आसरौ, संतनि कौ आधार।
सुन्दर और कछू नहीं, है सतसंगति सार॥

पति की आज्ञा मैं रहै, सा पतिबरता जांनि।
सुन्दर सनमुख है सदा, निस दिन जोरे पांनि॥

जे गुन उपजै देह कौं, सुख दुख बहु संताप।
सुन्दर ऐसौ भ्रम भयौ, ते सब मांनै आप॥

बालापन जोबन गयौ, बृद्ध भये सब कोइ।
सुन्दर जीरन ह्वै गये, तृष्णा नव तन होइ॥

याही देखत सूर सौ, याही देखत चंद।
सुन्दर जैसौ भाव है, तैसौई गोविंद॥

भेष बनावै बहुत बिधि, जटा बधावै सीस।
माला पहिरै तिलक दे, सुंदर तजै न रीस॥

सुन्दर मांथै बोझ लै, यह तौ अति अज्ञान।
इनकौ करता और ही, भय भंजन भगवान॥

जौ प्रभु कौं प्यारौ लगै, सोई प्यारौ मोहि।
सुन्दर ऐसैं समुझि करि, यौं पतिबरता होहि॥

अपणां सारा कछु नहीं, डोरी हरि कै हाथ।
सुन्दर डोलै बांदरा, बाजीगर कै साथ॥

सुन्दर प्रभुजी पेट इनि, जगत कियौ सब दीन।
अन्न बिना तलफत फिरै, जैसै जल बिन मीन॥

आप न बैठा गोपि ह्वै, सुन्दर सब घट माँहि।
करता हरता भोगता, लिखै छिपै कछु नाँहि॥

नकटा लेत सुगंध कौं, यह तौ उलटी रीति।
सुन्दर नाचै पंगुला, गूंगा गावै गीति॥

सुन्दर अपने भाव तें, रूप चतुर्भुज होइ।
याकौं ऐसौई दृसै, वाकै रूप न कोइ॥

बादल हस्ती देखिये, सुन्दर पवन तुरंग।
दादुर मोर पपीहरा, पाइक लीये संग॥

भलौ सयानौ आइ जो, समुझावै बहु भांति।
कुलवंती मानै कह्यौ, सुन्दर उपजै स्वांति॥

सुंदर प्रभुजी पेट यह, रापै कछू न मान।
बन मैं बैठै जाइ कैं, उठि भागै मध्यान॥

सुन्दर नदी प्रवाह मैं, मिल्यौ काठ संजोग।
आपु-आपु कौं ह्वै गये, त्यौं कुटंब सब लोग॥

देह आपकौ जानि करि, ब्राह्मन क्षत्रिय होइ।
बैश्य सूद्र सुन्दर भयौ, अपनी सुधि बुधि खोइ॥

दीया की बतियां कहै, दीया किया न जाइ।
दीया करै सनेह करि, दियें ज्योति दिखाइ॥

जन सुन्दर सतसंग तें, पावै दुर्लभ योग।
आतम परमातम मिले, दूरि होंहि सब रोग॥

बढई कारीगर मिल्यौ, चरखा गढ्यौ बनाइ।
सुन्दर बहू सतेवरी, उलटौ दियौ फिराइ॥

साहिब मेरा रामजी, सुन्दर खिजमातिगार।
पाव पलोटै प्रीति सौं, सदा रहै हुसियार॥

विभचारिणि यौं कहत है, मेरौ पिय अति रौंन।
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरी जिह्वा लौंन॥

उष्ण काल चहूँ और तैं, दीनी अग्नि जराइ।
सुन्दर सिर परि रवि तपै, कौन लगी यह वाइ॥

सुन्दर खैंचि कमान कौं, भरि करि मारै बान।
जाकै लागेै ठौर जिहिं, लेकरि निकसै प्रान॥

कबहुं मिलावै गोटिका, कबहूं बीछुरि जांहिं।
सुन्दर नाचै जगत सब, ऐसी कल तुझ माँहिं॥

सुन्दर सिर को सीस है, प्राननि कौ है प्रान।
कहत जीव कौं जीव सब, शास्तर बेद पुरान॥

कोउ करै पय पान कौं, कौंन सिद्धि कहि बीर।
सुन्दर बालक बाछरा, ये नित पीवहिं खीर॥

धड़ तौ जाकै चारि हैं, द्वै-द्वै सिर है बीस।
ऐसी बड़ी बलाइ मन, सिर करिले चालीस॥

सुन्दर देह परी रही, निकसि गयौ जब प्रान।
सब कोऊ यौं कहत हैं, अब लै जाहु मसान॥

कमल मांहि पांणी भयौ, पाणी मंहि भांन।
भान मांहि ससि मिलि गयौ, सुंदर उलटौ ज्ञांन॥

संतनि ही तें पाइये, राम मिलन कौ घाट।
सहजैं ही खुलि जात है, सुन्दर हृदय कपाट॥

भूलत काहे बावरे, देखि सुरंगी देह।
बंध्यौ फिरै अनादि कौ, सुन्दर याके नेह॥

सुन्दर तृष्णा चूहरी, लोभ चूहरौ जांनि।
इनके भीटें होत है, ऊंचे कुल की हांनि॥

सुन्दर दिल मौं पैसि करि, करै बंदगी ख़ूब।
तौ दिल मौं दीदार है, दूरि नहीं महबूब॥

राम नाम मिश्री पिये, दूरि जाहि सब रोग।
सुंदर औषध कटुक सब, जप तप साधन जोग॥

दीया राखै जतन सौं, दीये होइ प्रकाश।
दीये पवन लगै अहं, दीये होइ बिनाश॥

सुन्दर तृष्णा कै लियें, पराधीन ह्वै जाइ।
दुसह बचन निस दिन सहै, यौं परहाथ बिकाइ॥

सुन्दर समुझावै बहू, सुनि हे मेरी सास।
माइ बाप तजि धी चली, अपने पिय के पास॥

सुन्दर तृष्णा बहु बधी, धर्यौ बड़ो अति देह।
अध ऊरध दशहूं दिशा, कहूं न तेरौ छेह॥

सुन्दर सूरातन बिना, बात कहै मुख कोरि।
सूरा तन तब जाणिये, जाइ देत दल मोरि॥

सुन्दर तूं भटकति फिर्यौ, स्वर्ग मृत्यु पाताल।
अबकै या नर देह मैं, काढि आपनौ साल॥

देह जीव यौं मिली रहै, ज्यौं पांणी अरू लौंन।
बार न लाई बिछुरतें, सुन्दर कीयौ गौंन॥

सुन्दर साधु दयाल हैं, कहैं ज्ञान समुझाइ।
पात्र बिना नहिं ठाहरै, निकसि-निकसि करि जाइ॥

सुन्दर बहुत बलाइ है, पेट पिटारी मांहिं।
फूल्यौ माइ न खाल मैं, निरखत चालै छांहिं॥

आपुहि इन्द्री प्रेरिकं, आपुहि मांनै सुक्ख।
सुन्दर जब संकट परै, आपुहि पावै दुःख॥

सुन्दर अरहट माल पुनि, चरखा बहुरि फिरात।
धूंवा ज्यौं मन उठि चलै, कापै पकर्यौ जात॥

सुन्दर देखै आरसी, टेढी नाखै पाग।
बैठौ आइ करंक पर, अति गति फूल्यौ काग॥

सुन्दर भजन सबै करहु, नारायण निरपेछ।
प्रीति परम गुरु लेत हैं, अंतिज हो कि मलेछ॥

चेतनि तें चेतनि भई, अतिगति शोभित देह।
सुन्दर चेतनि निकसतें, भई खेह की खेह॥

सुन्दर यह मन मीन है, बंधै जिव्हा स्वाद।
कंटक काल न सूझई, करत फिरै उदमाद॥

नीच सु तौ ऊँचो भयौ, ऊँचौ हूवौ नीच।
सुन्दर उलटौ ज्ञान है, इनि साखिन कै बीच॥

पराधीन चाकर रहै, खेती मैं संताप।
टोटौ आवै बणज मैं, सुन्दर हरि आप॥

सुन्दर जो सतसंग मैं, बैठै आइ बराक।
सीतल और सुगंध ह्वै, चन्दन की ढिंग ढाक॥

करै हजूरी बन्दगी, और न कोई काम।
हुकम कहै त्यौं ही चलै, सुन्दर सदा गुलाम॥

राग द्वेष तें रहित हैं, रहित मान अपमान।
सुन्दर ऐसेै संतजन, सिरजे श्री भगवान॥

सुन्दर आइ शरीर मैं, जीव किये उतपात।
निकसि गये या देह की, फेर न बूझी बात॥

सुन्दर कछु संख्या नहीं, बहुतक धरे शरीर।
अबकै तूं भगवंत भजि, विलम करै जिनि बीर॥

बांदर मैं बांदर भयौ, मच्छ मांहि पुनि मच्छ।
सुन्दर गाइनि मैं गऊ, बच्छनि मंहि बच्छ॥

लालन मेरा लाडिला, रूप बहुत तुझ मांहिं।
सुन्दर राखे नैंन मैं, पलक उघारै नांहिं॥

जो आवै सतसंग मैं, ताकौ कारय होइ।
सुन्दर सहजै भ्रम मिटै, संसय रहै न कोई॥

पति कौ बचन लियें रहै, सा पतिब्रता नारि।
सुन्दर भावै पीव कौं, आवै नहीं अवगारि॥

बंदा सांई का भया, सांई बंदे पास।
सुन्दर दोऊ मिलि रहे, ज्यौं फुलहु मैं बास॥

विभचारिणि यौं कहतु है, मेरौ पिय अति पाक।
सुन्दर पतिबरता कहै, काटौं तेरौ नाक॥

तिनका रच्या सरीर यह, महल अनूपम एक।
चौरासी लख जूनु ये, सुन्दर और अनेक॥

हृदये मैं हरि सुमरिये, अन्तरजांमी राइ।
सुन्दर नीके जत्र सौं, अपनौं बित्त छिपाइ॥

सुन्दर यौं अभिमान करि, भूलि गयौ निज रूप।
कबहूं बैठै छांहरी, कबहूं बैठै धूप॥

दुष्ट घाट घरिबौ करै, घट मैं याही होय।
सुन्दर मेरी पासि मैं, आइ परै जे कोय॥

दैव बिछोह करै जबहिं, तब कोई बस नांहिं।
सुन्दर नेह न निरबहै, आपु आपु कौं जांहि॥

रीसि करै अत्यन्त करि, तौ प्रभु प्यारौ लाग।
हंसि करि निकट बुलाइले, सुन्दर माथै भाग॥

सुन्दर जो बिभचारिनी, फरका दीयौ डारि।
लाज सरम वाकै नहीं, डोलै घर-घर बारि॥

संतनि की सेवा किये, हरि की सेवा होइ।
तातें सुन्दर एकही, मति करि जानै दोइ॥

कतहू भूलो मौंनि धरि, कतहू करि बकबाद।
सुन्दर या अभिमान तें, उपज्यौ बहुत बिषाद॥

ज्यौं मनि कोऊ कंठ की, भ्रम तैं पावै नांहिं।
पूछत डोलै और कौं, सुन्दर आपुहि मांहिं॥

मन कौं रापत हटकि करि, सटकि चहूं दिसि जाइ।
सुंदर लटकि रु लालची, गटकि बिषै फल पाइ॥

ब्रह्मादिक इंद्रादि पुनि, सुन्दर बंछहिं देव।
मनसा बाचा कर्मना, करि संतनि की सेव॥

सुन्दर मलिन शरीर यह, ताहू मैं बहु ब्याधि।
कबहूं सुख पावै नहीं, आठौं पहर उपाधि॥

पहराइत घर कौं मुसै, साह न जांने कोइ।
चोर आइ रक्षा करै, सुन्दर तब सुख होइ॥

वचन तहाँ पहुंचै नहीं, तहाँ न ज्ञान न ध्यांन।
कहत-कहत यौं ही कह्यौ, सुन्दर है हैरांन॥

चेतनि ही लीयें फिरै, तन कौं सहज सुभाइ।
सुन्दर चेतनि बाहरी, खेल भैल ह्वै जाइ॥

सुन्दर देह हलै चलै, चेतनि कै संजोग।
चेतनि सत्ता चलि गई, कौंन करै रस भोग॥

भूतनि मंहिं मिल रह्यौ, तातें हूवौ भूत।
सुन्दर भूलौ आपु कौ, उरझ्यौ नौ मन सूत॥

चम्बक सत्ता कर जथा, लोहा नृत्य कराइ।
सुन्दर चम्बक दूरि ह्वै, चंचलता मिटि जाइ॥

राम नाम नारद कह्यौ, सोई ध्रुव के ध्यान।
प्रगट भये प्रह्लाद पुनि, सुंदर भजि भगवांन॥

सुन्दर अपनौ भाव है, जे कछु दीसै आंन।
बुद्धि योग बिभ्रम भयौ, दोऊ ज्ञान अज्ञांन॥

औरत सोई सेज पर, बैठा खसम हज़ूर।
सुंदर जान्यां ख़्वाब मौं, षसस गया कहुं दूर॥

धोवन पीवै बावरे, फांसू बिहरन जांहिं।
सुन्दर या हुन्नर अति, समझ नहीं घट मांहिं॥

देह रच्यौ प्रभु भजन कौं, सुन्दर नख सिख साज।
एक हमारी बात सुनि, पेट दियौ किंहिं काज॥

बनिया मूंघौ ह्वै रह्यौ, टूंगे फेर्यौ हाथ।
सुन्दर ऐसौ भ्रम भयौ, मेरै तौ नहिं माथ॥

पाप पुन्य दोऊ परै, स्वर्ग नरक तें दूरि।
सुन्दर ऐसै संतजन, हरि कैं सदा हजूरि॥

और ठौर सौं काढि मन, करिये तुम कौं भेट।
सुन्दर क्यौं करि छूटिये, पाप लगायौ पेट॥

यंत्र मंत्र बहु विधि करै, झाडा बूंटी देत।
सुन्दर सब पाखंड है, अंति पडै सिर रेत॥

सुखदाई सीतल हृदय, देखत सीतल नैन।
सुन्दर ऐसै संतजन, बोलत अमृत बैन॥

सुन्दर मनुषा देह धरि, भज्यौ नहीं भगवंत।
तौ पशु ज्यौं पूरै उदर, शूकर स्वान अनंत॥

मांस भखै मदिरा पिवै, वह तौ अगम अगाध।
जौ ऐसी करनी करै, सुन्दर सोई साध॥

सुन्दर अति अज्ञान नर, समझत नाहिं न मूरि।
तूं इन सौं लाग्यौ मरै, ये सब भागै दूरि॥

घर बन दोऊ सारिषें, सबतें रहत उदास।
सुन्दर संतनि कै नहीं, जिवन मरन की आस॥

सुन्दर प्रभुजी पेट कौं, बहु बिधि करहिं उपाइ।
कौंन लगाई ब्याधि तुम, पीसत पोवत जाइ॥

अब तुम प्रगटहु रामजी, हृदै हमारै आइ।
सुन्दर सुख सन्तोष ह्वै, आनँद अंग न माइ॥

सुन्दर सांची कहतु है, मति आनै कछु रोस।
जौ तैं खोयो रतन यह, तौ तोही कौं दोस॥

दीयें तें सब देखिये, दीये करौ सनेह।
दीये दसा प्रकासिये, दीया करि किन लेह॥

जन सुन्दर सतसंग तें, उपजै अद्वय ज्ञान।
मुक्ति होय संसय मिटै, पावै पद निर्बान॥

ब्रह्मा शिव के लोक लौं, ह्वै बैकुंठहु वास।
सुन्दर और सबै मिलै, दुर्लभ हरि के दास॥

ब्याघ्र करै ज्यौं लुरखरी, कूकर आगै आइ।
कूकर देखत ही रहै, बाघ पकरि ले जाइ॥

सुन्दर सांख्य बिचार करि, संमुझै अपनौ रूप।
नहिंतर जड़ के संग तें, बूड़त है भव कूप॥

सुन्दर प्रभुजी पेट इनि, जगत कियौ सब ख्वार।
को खेती को चाकरी, कोई बनज ब्यौपार॥

सुन्दर कोऊ साधु की, निंदा करै सु नीच।
चल्यौ अधोगति जाइ है, परै नरक कै बीच॥

विभचारिणि यौं कहतु है, शोभित मेरौ कंत।
सुन्दर पतिबरता कहै, तोडौ तेरै दंत॥

गुरु शिष के पायनि पर्यौ, राजा हूवौ रंक।
पुत्र बांझ के पंगुलं, सुंदर मारी लंक॥

चेतनि कै संयोग तें, होइ देह कौ तोल।
चेतनि न्यारौ ह्वै गयौ, लहै न कौड़ी मोल॥

जहं-जहं भेजै रामजी, तहं-तहं सुन्दर जाइ।
दाणां पांणी देह का, पहली धर्या बनाइ॥

सुन्दर हरि प्यारा लग्या, सोवत जाग्या जन्न।
प्रीति तजी संसार सौं, न्यारा कीया मन्न॥

नीचे तैं नीचे सही, ऊँचे ऊपरि ऊँच।
सुन्दर पीछै तें पछै, आगै कौं न पहूँच॥

सुन्दर निकसै कौन बिधि, होइ रह्या लै लीन।
परमानंद समुद्र मैं, मग्न भया मन मीन॥

सुंदर जीतै सो सही, डाव बिचारै कोइ।
गाफिल होइ सु हारि कै, चालै सरबस खोइ॥

सुन्दर सूवा पींजरै, फेलि करै दिन राति।
मिनकी जानै खांव कब, ताकि रही इहि भांति॥

ज्यौं हीं आवै राम मन, सुन्दर त्यौं ही धारि।
जो ही भावै पीव कौ, सोई भावै नारि॥

सुन्दर चेतनि आतमा, जड़ सौं कियौ सनेह।
देह खेह सौं मिलि रह्यौ, रत्न अमोलक येह॥

सद्गुरु माया मिहरि करि, सुन्दर पाया पूरि।
शब्द सुनाया आपना, भरम उडाया दूरि॥

सुंदर यह मन मीन है, बंधे जिह्वा स्वाद।
कंटक काल न सूझई, करत फिरै उदमाद॥

सुन्दर सद्गुरु भिन्न हैं, दीसत हैं घट मांहि।
ज्यौं दर्पन प्रतिबिंब कौं, लिपै छिपै कछु नांहि॥

दामिनि चमकै चहुं दिसा, बून्द लगत है बांन।
सुन्दर ब्याकुल बिरहनी, रहै क निकसै प्रांन॥

राम भजन तें रामजी, मुदित होत मन मांहि।
सुन्दर जाकै प्रीति अति, ताकौं छाडै नांहि॥

उभै अष्ट दश द्वादशा, अरु कहिये पुनि बीस।
द्वै सहस्त्र लोचन थके, सुन्दर ब्रह्म न दीस॥

ब्रह्मा ऊपर हंस चढि, कियौ गगन दिशि गौन।
गरुड चढ्यौ हरि पीठि पर, सुन्दर मांनै कौंन॥

सुंदर महिमा नाम की, कहत न आवै अंत।
शिव सनकादिक मुनि जनां, थकित भये सब संत॥

सुन्दर नाना जोनि मैं, जन्म-जन्म की भूल।
सुत दारा माता पिता, सगलै याही सूल॥

जा दिन तें मोहि तजि गये, ता दिन तें जक नांहि।
सुन्दर निस दिन बिरह की, हूक उठत उर मांहि॥

सुन्दर धरती धडहडै, गगन लगै उडि धूरि।
सूर बीर धीरज धरै, भागि जाइ भकभूरि॥

सुन्दर दोरै रिजक कौं, सौं तौ मूरख होइ।
यौं जानै नहिं बावरौ, पहुंचावै प्रभु सोइ॥

सुन्दर सद्गुरु सो मिल्या, जो दुर्लभ जग मांहिं।
प्रभु कृपा ते पाइये, नहिंतर पइये नांहिं॥

ज्यौं हरि भावै त्यौं करै, कौंन कहै यह नांहिं।
अग्नि उपावै पलक मैं, सुन्दर पाला मांहिं॥

गोरखधंधा वेद है, वचन कही बहु भांति।
सुन्दर समुझै उरझ्यो जगत, सब वर्णाश्रम की पांति॥

उलवा मारै काग कों, काक सु हनै उलूक।
सुन्दर बैरी परस्पर, सज्जन हंस कहूंक॥

सद्गुरु कही मरंम की, हिरदै बंसी आइ।
रिति सकल संसार की, सुन्दर दई बहाइ॥

सुन्दर बिरहनि कौं बिरह, भूत लग्यौ है आइ।
पीय बिना उतरै नहीं, सब जग पचि-पचि जाइ॥

हाथ पांव हरि कृत्य कौं, जीभ जपान कौं नाम।
सुन्दर ये तुम सौं लगै, पेट दियौ किंहीं काम॥

सुन्दर सूरातन कठिन यह, नहिं हांसी खेल।
कमधज कोई रूपि रहै, जबहिं होत मुख मेल॥

सुन्दर सूरा तन करै, छाडेै तन को मोह।
हबकि थबकि पेलै पिसण, जाइ चखावै लोह॥

सुंदर सबही संत मिलि, सार लियो हरि नाम।
तक्र तजी घृत काढि के, और क्रिया किहिं काम॥

अहं भाव मिटी जात है, तासौं कहिये ज्ञान।
बचन तहां पहुंचै नहीं, सुन्दर सो विज्ञान॥

इंद्री अरु रवि शशि कला, घात मिलावै कोई।
सुन्दर तोलै जुगति सौं, तब मन पूरा होइ॥

सुन्दर माली नीपज्यौ, फल अरु फूल समेत।
हाली के कोठा भरे, सूके बाडी खेत॥

सुन्दर घर ताजी बंधे, तुरकिन की घुरसाल।
ताके आगै आइ के, टटुवा फेरै बाल॥

संतनि कै यह बनिज है, सुन्दर ज्ञान बिचार।
गाहक आवै लेन कौं, ताही के दातार॥

भ्रमर सुतौ उज्जल भयौ, हंस भयौ फिरि स्यांम।
को जानै केते भये, सुन्दर उलटे कांम॥

सुन्दर महल संवारि कै, राख्यौ कांच लगाइ।
दैव योग सुनहां गयौ, एक अनेक दिखाइ॥

द्वंद कछू ब्यापै नहीं, सुख दुख एक समान।
सुन्दर ऐसै संतजन, हृदै प्रगट दृढ ज्ञान॥

एक लेत हैं ठौर ही, सुन्दर बैठि अहार।
दाख छुहारी राइता, भोजन बिबिधि प्रकार॥

सुन्दर अब बिस्वास गहि, सदा रहै प्रभु साथ।
तेरौ कियौ न होत है, सब कछु हरि कै हाथ॥

देह रूपई ह्वै रह्यौ, देह आपकौं मानिं।
ताही तें यह जीव है, सुन्दर कहत बखांनि॥

जौ जागै तौ पिय लहै, सोयें लहिये नांहिं।
सुंदर करिये बंदगी, तौ जाग्या दिल मांहि॥

पतिबरता पति सनमुखी, सुन्दर लहै सुहाग।
विभचारिणि बिमुखी फिरै, ताके बड़े अभाग॥

जोइ ह्वै अति निर्दयी, करै पशुन की घात।
सुन्दर सोई उद्धरै, और बहे सब जात॥

ज्यौं नर बहुत स्वरूप है, भ्रम तें कहै कुरूप।
सुन्दर भूलौ आपुकौं, आतम तत्व अनूप॥

गल मैं पहरी गूदरी, कियौ सिंह कौ भेष।
सुन्दर देखत भय भयौ, बोलत जान्यौ मेष॥

सुमिरन ही मैं शील है, सुमिरन मैं संतोष।
सुमिरन ही तें पाइये, सुन्दर जीवन-मोष॥

सुन्दर जल की बूंद तैं, जिनि यह रच्यौ सरीर।
सोई प्रभु याकौ भरै, तूं जिनि होइ अधीर॥

सुन्दर मनुषा देह मैं, धीरज धरत न मूरि।
हाइ-हाइ करतौ फिरै, नर तेरै सिर धूरि॥

आधे पग हैं तीन सै, और अधिक पुनि बीस।
तिनहूं तें आधे करै, पट सत अरू चालीस॥

सूवा पकरि नली रह्यौ, वह कहुं पकर्यौ नांहि।
ऐस सुन्दर आपु सौं, पर्यौ पींजरा मांहि॥

देह पुष्ट ह्वै दूबरी, लगै देह कौं घाव।
चेतनि मांनै आपकौं, सुन्दर कौंन सुभाव॥

बुद्धि हीन अति बावरौ, देह रूप ह्वै जाइ।
सुन्दर चेतनता गई, जड़ता रही समाइ॥

सुन्दर अपने भाव करि, पूजै देवी देव।
यह मैं पायौ पुत्र धन, बहुत करी तीं सेव॥

संतनि की महिमा कही, श्रीपति श्रीमुख गाइ।
तातें सुन्दर छाडि सब, संत चरन चित लाइ॥

काहू मान्यौ सींग सौ, हृदये उपज्यौ चाव।
सुन्दर तैसौई भयौ, जाकै जैसौ भाव॥

सुन्दर यह मन रंक ह्वै, कबहूँ ह्वै मन राव।
कबहूँ टेढौ ह्वै चलै, कबहूँ सूधे पाँव॥

एक सेर कुंजर हणै, अति गति तामहिं जोर।
सेर गहे चालीस जिनि, मन तें बली न ओर॥

धरै एक धड पालडै, तोलै बरियां चारि।
थोरे में बसि होइ मन, पंडित लेहु बिचारि॥

देह बाल अरु बृद्ध ह्वै, जोबनि ह्वै पुनि देह।
सुन्दर मानैं आ कौं, देखहु अचिरज येह॥

सुन्दर प्रभुजी पेट कौं, दूधाधारी होइ।
पाखंड करहिं अनेक बिधि, खाहिं सकल रस गोइ॥

सुंदर तृष्णा भांडिनी, लोभ बडौ अति भांड।
जैसौ ही रंडुवौ मिल्यौ, तैसी मिलि गई रांड॥

हलन चलन सब देह कौ, चेतनि सत्ता होइ।
चेतनि सत्ता बाहरी, सुन्दर क्रिया न होइ॥

सुन्दर नारी पुरुष की, प्रीति परस्पर जांनि।
तब तैं संग तज्यौ नहीं, जब तैं पकरी पांनि॥

अग्नि मथन करि नीसरी, लकरी सहज सुभाइ।
पानी मथि घृत काढियौ, सो घृत सुन्दर खाइ॥

बंबई, थलहि समुद्र मैं, पानी सकल समात।
त्यौं सुन्दर प्रभु पेट यह, रहै खात ही खात॥

उतपति सांई तैं किया, प्रथम हि वो ऊंकार।
तिसतें तीनौं गुन भये, सुन्दर सब बिस्तार॥

सुन्दर बरिखा अति भई, सूकि गये नदि नार।
मेर बूडि जल मैं रह्यौ, झर लाग्यौ इकसार॥

कांसा पर्यौ पराकिदे, बिजली ऊपर आइ।
घर कौ सब टाबर मुवौ, सुन्दर कही न जाइ॥

सिर जाकै चालीस हैं, असी अरध सिर जाहि।
पाँव एक सौ साठि हैं, क्यौं करि पकरै ताहि॥

सोनै पकरि सुनारक, काढ्यौ ताइ कलंक।
लकरी छील्यौ बाढई, सुन्दर निकसी बंक॥

रजनी मैं दीसै दिवस, दिन मैं दीसै राति।
सुन्दर दीपक जल गयौ, रही बिचारी बाति॥

सुन्दर पर्बत उड़ि गये, रुई रहो थिर होइ।
बाव बज्यौ इंहिं भांति कौ, क्यौं करि मांनै कोइ॥

वृषभ भयौ असवार पुनि, सुन्दर शिव पर आइ।
डाइन ऊपर जरख चढि, भली दई दौराई॥

ल्याली पायौ गाडरै, सुसले पायौ स्वांन।
सुन्दर यह कैसी भई, बधक हि लागौ बांन॥

डेढ हजार रु एक सौ, इतने होहिं अंगुष्ट।
चौसठि सै अंगुली करै, मन तैं कौन संपुष्ट॥

छूट्यौ चाहत जगत सौं, महा अज्ञ मति मंद।
जोई करै उपाइ कछु, सुन्दर सोई फंद॥

जा घर मैं बहु सुख किये, ता घर लागी आगि।
सुन्दर मीठौ ना रुचेै, लौंन लियौ सब त्यागि॥

मेघ सहै सब सीस पर, बरिषा रितु चौमास।
सुन्दर तन कौ कष्ट अति, मन मैं औरै आस॥

पंच सीस करि ये कठे, धरै तराजू आइ।
आठ बार जो तोलिये, तब मन पकर्या जाइ॥

 

Comments