देशभक्ति कविताओं का कोश - भाग 2 | Deshbhakti Kavita Sangrah 2

 आज जीत की रात- गिरिजाकुमार माथुर/देशभक्ति कविता

आज जीत की रात

पहरुए! सावधान रहना

खुले देश के द्वार

अचल दीपक समान रहना

प्रथम चरण है नये स्वर्ग का

है मंज़िल का छोर

इस जन-मंथन से उठ आई

पहली रत्न-हिलोर

अभी शेष है पूरी होना

जीवन-मुक्ता-डोर

क्यों कि नहीं मिट पाई दुख की

विगत साँवली कोर

ले युग की पतवार

बने अंबुधि समान रहना।

विषम शृंखलाएँ टूटी हैं

खुली समस्त दिशाएँ

आज प्रभंजन बनकर चलतीं

युग-बंदिनी हवाएँ

प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं

यह सिमटी सीमाएँ

आज पुराने सिंहासन की

टूट रही प्रतिमाएँ

उठता है तूफान, इंदु! तुम

दीप्तिमान रहना।

ऊंची हुई मशाल हमारी

आगे कठिन डगर है

शत्रु हट गया, लेकिन उसकी

छायाओं का डर है

शोषण से है मृत समाज

कमज़ोर हमारा घर है

किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी

यह विश्वास अमर है

जन-गंगा में ज्वार,

लहर तुम प्रवहमान रहना

पहरुए! सावधान रहना।।


गिरिजाकुमार माथुर

 


चिर प्रणम्य यह पुण्य अह्न जय गाओ सुरगण,- सुमित्रानंदन पंत/देशभक्ति कविता



१५ अगस्त १९४७

चिर प्रणम्य यह पुण्य अह्न जय गाओ सुरगण,

आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन!

नवभारत, फिर चीर युगों का तिमिर आवरण,

तरुण अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन!

सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,

आज खुले भारत के संग भू के जड़ बंधन!

शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण

मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण!


आम्र मौर जाओ हे, कदली स्तंभ बनाओ,

पावन गंगा जल भर मंगल-कलश सजाओ!

नव अशोक पल्लव के बंदनवार बँधाओ,

जय भारत गाओ, स्वतंत्र जय भारत गाओ!

उन्नत लगता चंद्रकला-स्मित आज हिमाचल,

चिर समाधि से जाग उठे हों शंभु तपोज्ज्वल!

लहर-लहर पर इंद्रधनुष-ध्वज फहरा चंचल

जय-निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल!


धन्य आज का मुक्ति-दिवस, गाओ जन-मंगल,

भारत-लक्ष्मी से शोभित फिर भारत-शतदल!

तुमुल जयध्वनि करो, महात्मा गांधी की जय,

नव भारत के सुज्ञ सारथी वह नि:संशय!

राष्ट्रनायकों का हे पुन: करो अभिवादन,

जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन!

स्वर्ण शस्य बाँधों भू-वेणी में युवती जन,

बनो वज्र प्राचीर राष्ट्र की, वीर युवकगण!


लोह संगठित बने लोक भारत का जीवन,

हों शिक्षित संपन्न क्षुधातुर नग्न भग्न जन!

मुक्ति नहीं पलती दृग-जल से हो अभिसिंचित,

संयम तप के रक्त-स्वेद से होती पोषित!

मुक्ति माँगती कर्म-वचन-मन-प्राण-समर्पण,

वृद्ध राष्ट्र को, वीर युवकगण, दो निज यौवन!

नव स्वतंत्र भारत हो जगहित ज्योति-जागरण,

नवप्रभात में स्वर्ण-स्नात हो भू का प्रांगण!


नव-जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,

आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव-मन में!

रक्त-सिक्त धरणी का हो दु:स्वप्न-समापन,

शांति-प्रीति-सुख का भू स्वर्ण उठे सुर मोहन!

भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की,

विकसित आज हुई सीमाएँ जन-जीवन की!

धन्य आज का स्वर्ण-दिवस, नव लोक जागरण,

नव संस्कृति आलोक करे जन भारत वितरण!


नव जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण,

नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन!


- सुमित्रानंदन पंत

 आज तिरंगा फहराता है-सजीवन मयंक/देशभक्ति कविता

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।

लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।

व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।

हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।


हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।


गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।

जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।

प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।

हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।


लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।


हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।

उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।

हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।

सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।


विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।

हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।


सजीवन मयंक

आग बहुत-सी बाकी है- अभिनव शुक्ला/देशभक्ति कविता

भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।
जो गुज़रा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं,
और लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं,
चक्रवात पर, भूकंपों पर, कभी किसी का ज़ोर नहीं,
और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं।

कल फिर तू क्यों, पेट बाँधकर सोया था, मैं सुनता हूँ,
जब तेरे खेतों की बाली, लहर-लहर इतराती है।

अगर बात करनी है उनको, काश्मीर पर करने दो,
अजय अहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो,
वो समझौता ए लाहौरी, याद नहीं कर पाएँगे,
भूल कारगिल की गद्दारी, नई मित्रता गढ़ने दो,

ऐसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टलता है,
जब मीठी परवेज़ी गोली, गीत सुना बहलाती है।

चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है,
जब रातें जगने लगती हैं, तभी सवेरा सोता है,
जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है,
फसल काटता है कोई, और कोई उसको बोता है।

क्यों तू जीवन जटिल चक्र की, इस उलझन में फँसता है,
जब तेरी गोदी में बिजली कौंध-कौंध मुस्काती है।

- अभिनव शुक्ला

आज़ादी की अर्धशती-डॉ. जगदीश व्योम/देशभक्ति कविता

आज़ादी की अर्द्धशती
मत सोना पहरेदार।
खुले हैं आँगन, देहरी, द्वार।।
बीते वर्ष पचास, आस अब तक न हो सकी पूरी
जन-जन के अंतर्मन की अभिलाषा रही अधूरी
बदल गया माली
लेकिन है ज्यों की त्यों अनुहार।
खुले हैं आँगन, देहरी, द्वार।।

जिस मंज़िल के हित हम सब ने बाँधे थे मंसूबे
भटकी मंज़िल थके बटोही सपने हुए अजूबे
जमती गईं परत पर परतें
परतें अपरंपार।
खुले हैं आँगन, देहरी, द्वार।।

भाषा की जिस कश्ती पर हम समर लाद कर लाए
तट के पास कहीं उस तरणी को ही हम खो आए
अभी समय है शेष
उठा लो हाथों में पतवार।
खुले हैं आँगन, देहरी, द्वार।।

जोश-जोश में होश नहीं खो देना मेरे भाई
पाँव ज़मीं पर रहें अन्यथा होगी जगत हँसाई
खुशी-खुशी में गँवा न देना
जीने का अधिकार।
खुले हैं आँगन, देहरी, द्वार।।

डॉ. जगदीश व्योम

आज़ादी का गीत- हरिवंश राय बच्चन

हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।
चाँदी सोने हीरे मोती से सजती गुड़ियाँ।
इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ
इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं बेड़ी हथकड़ियाँ

परंपरा गत पुरखों की हमने जाग्रत की फिर से
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम किरीट उज्जवल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।

चाँदी सोने हीरे मोती से सजवा छाते
जो अपने सिर धरवाते थे वे अब शरमाते
फूलकली बरसाने वाली टूट गई दुनिया
वज्रों के वाहन अंबर में निर्भय घहराते

इंद्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
छत्र हमारा निर्मित करते साठ कोटि करतल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।

- हरिवंश राय बच्चन

अरुण यह मधुमय देश- जयशंकर प्रसाद/देशभक्ति कविता

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।

बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।

हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।

- जयशंकर प्रसाद

आदमी का गीत- शील/देशभक्ति कविता


देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे

सौ-सौ स्वर्ग उतर आएँगे,
सूरज सोना बरसाएँगे,
दूध-पूत के लिए पहिनकर
जीवन की जयमाल,
रोज़ त्यौहार मनाएँगे,
नया संसार बसाएँगे, नया इंसान बनाएँगे।
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे॥
सुख सपनों के सुर गूँजेंगे,
मानव की मेहनत पूजेंगे
नई चेतना, नए विचारों की
हम लिए मशाल,
समय को राह दिखाएँगे,
नया संसार बसाएँगे, नया इंसान बनाएँगे।
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे॥

एक करेंगे मनुष्यता को,
सींचेंगे ममता-समता को,
नई पौध के लिए, बदल
देंगे तारों की चाल,
नया भूगोल बनाएँगे,
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे।
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे॥

- शील

उठो सोने वालों/देशभक्ति कविता

उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।
वतन के फ़क़ीरों का फेरा हुआ है।।
उठो अब निराशा निशा खो रही है
सुनहली-सी पूरब दिशा हो रही है
उषा की किरण जगमगी हो रही है
विहंगों की ध्वनि नींद तम धो रही है
तुम्हें किसलिए मोह घेरा हुआ है
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।।

उठो बूढ़ों बच्चों वतन दान माँगो
जवानों नई ज़िंदगी ज्ञान माँगो
पड़े किसलिए देश उत्थान माँगो
शहीदों से भारत का अभिमान माँगो
घरों में दिलों में उजाला हुआ है।
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

उठो देवियों वक्त खोने न दो तुम
जगे तो उन्हें फिर से सोने न दो तुम
कोई फूट के बीज बोने न दो तुम
कहीं देश अपमान होने न दो तुम
घडी शुभ महूरत का फेरा हुआ है।
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

हवा क्रांति की आ रही ले उजाली
बदल जाने वाली है शासन प्रणाली
जगो देख लो मस्त फूलों की डाली
सितारे भगे आ रहा अंशुमाली
दरख़्तों पे चिड़ियों का फेरा हुआ है।
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

- वंशीधर शुक्ल

आज क्रांति फिर लाना है-डॉ. विजय तिवारी किसलय/देशभक्ति कविता

आज सभी आज़ाद हो गए, फिर ये कैसी आज़ादी
वक्त और अधिकार मिले, फिर ये कैसी बर्बादी
संविधान में दिए हक़ों से, परिचय हमें करना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...
जहाँ शिवा, राणा, लक्ष्मी ने, देशभक्ति का मार्ग बताया
जहाँ राम, मनु, हरिश्चन्द्र ने, प्रजाभक्ति का सबक सिखाया
वहीं पुनः उनके पथगामी, बनकर हमें दिखना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

गली गली दंगे होते हैं, देशप्रेम का नाम नहीं
नेता बन कुर्सी पर बैठे, पर जनहित का काम नहीं
अब फिर इनके कर्त्तव्यों की, स्मृति हमें दिलाना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

पेट नहीं भरता जनता का, अब झूठी आशाओं से
आज निराशा ही मिलती है, इन लोभी नेताओं से
झूठे आश्वासन वालों से, अब ना धोखा खाना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

दिल बापू का टुकड़े होकर, इनकी चालों से बिखरा
रामराज्य का सुंदर सपना, इनके कारण ना निखरा
इनकी काली करतूतों का, पर्दाफाश कराना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

सत्य-अहिंसा भूल गये हम, सिमट गया नेहरू सा प्यार
बच गए थे जे. पी. के सपने, बिक गए वे भी सरे बज़ार
सुभाष, तिलक, आज़ाद, भगत के, कर्म हमें दोहराना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

आज जिन्हें अपना कहते हैं, वही पराए होते हैं
भूल वायदे ये जनता के, नींद चैन की सोते हैं
उनसे छीन प्रशासन अपना, 'युवाशक्ति' दिखलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

सदियों पहले की आदत, अब तक ना हटे हटाई है
निज के जनतंत्री शासन में, परतंत्री छाप समाई है
अपनी हिम्मत, अपने बल से, स्वयं लक्ष्य को पाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

देशभक्ति की राह भूलकर, नेतागण खुद में तल्लीन
शासन की कुछ सुख सुविधाएँ, बना रहीं इनको पथहीन
ऐसे दिग्भ्रम नेताओं को, सही सबक सिखलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

काले धंधे रिश्वतखोरी, आज बने इनके व्यापार
भूखी सोती ग़रीब जनता,सहकर लाखों अत्याचार
रोज़ी-रोटी दे ग़रीब को, समुचित न्याय दिलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

राष्ट्र एकता के विघटन में, जिस तरह विदेशी सक्रिय हैं
उतने ही देश के रखवाले, पता नहीं क्यों निष्क्रिय हैं
प्रेम-भाईचारे में बाधक, रोड़े सभी हटाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

कहीं राष्ट्रभाषा के झगड़े, कहीं धर्म-द्वेष की आग
पनप रहा सर्वत्र आजकल, क्षेत्रीयता का अनुराग
हीन विचारों से ऊपर उठ, समता-सुमन खिलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

अब हमको संकल्पित होकर, प्रगति शिखर पर चढ़ना है
ऊँच-नीच के छोड़ दायरे, हर पल आगे बढ़ना है
सारी दुनिया में भारत की, नई पहचान बनाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

-डॉ. विजय तिवारी किसलय

ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो - रामप्रसाद बिस्मिल/देशभक्ति कविता


ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कांतिमय हो
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो
तेरी प्रसन्नता ही आनंद का विषय हो

वह भक्ति दे कि 'बिस्मिल' सुख में तुझे न भूले
वह शक्ति दे कि दुख में कायर न यह हृदय हो

- रामप्रसाद बिस्मिल

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