हरिहर प्रसाद के दोहे (रसिक संप्रदाय) Harihar Prasad ke Dohe

 जैति सिया तड़िता बरण, मेघ बरण जय राम।

जै सिय रति मद नाशिनी, जै रति पति जित साम॥


बिहरत गलबाहीं दिये, सिय रघुनन्दन भोर।

चहुँ दिशि ते घेरे फिरत, केकी भँवर चकोर॥


इत कलँगी उत चन्द्रिका, कुंडल तरिवन कान।

सिय सिय बल्लभ मों सदा, बसो हिये बिच आन॥


विधि हरिहर जाकहँ जपत, रहत त्यागि सब काम।

सो रघुबर मन महँ सदा, सिय को सुमिरत नाम॥

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