संत तुकाराम रचना पद दोहे / Sant Tukaram ke Pad Rachna Dohe

संत तुकाराम के पद

मैं भूली घर जानी बाट संत तुकाराम sant tukaram ji ke pad



मैं भूली घर जानी बाट
गोरस बेचन आयें हाट॥

कान्हा रे मन मोहन लाल।
सब ही बिसरूँ देखें गोपाल॥

कहाँ पग डारूँ देख आनेरा।
देखें तो सब वोहिन घेरा॥

हूँ तो थकित भैर तुका।
भागा रे सब मन का धोका॥


भलो नंद जी को डिकरो
संत तुकाराम

भलो नंद जी को डिकरो।
लाज राखी लीन हमारो॥

आगल आयो देव जी कान्हा।
मैं घर छोड़ी आयें न्हाना॥

उन सुं कलना न ब्हेतो भला।
खसम अहंकार दादुला॥

तुका प्रभु परबल हरी।
छपी आयें हूँ जगाथी न्यारी॥


अल्ला करे सो होय बाबा संत तुकाराम sant tukaram ji ke pad



अल्ला करे सो होय बाबा, करतार का सिरताज।
गाऊ बछरे तिसे चलाये, यारी बाघोन सात॥

ख़याल मेरा साहेब का बाबा, हुआ करतार।
वहाँ तें आए चढ़े पीठ, आए हुआ अवसार॥

ज़िकिर करो अल्ला की बाबा, सबल्यां अंदर भेस।
कहे तुका जो नर बुझे, सोहि भया दरवेस॥


नज़र करे सोहि जिंके बाबा संत तुकाराम sant tukaram ji ke pad




नज़र करे सोहि जिंके बाबा, दुरथी तमासा देख।
लकड़ी फाँसा ले कर बैठा, आगले ठकण भेख॥

काहे भूल एक देखत, आँखों मारत ढोंग बाज़ार।
दमरी चमरी जो नर भुला। सो त आधो हि लत खाय॥

नहिं बुलावत किसे बाबा, आपहि मत जाय।
कहे तुका उस आस के संग, फिर-फिर गोते खाय॥


हरि बिन रहिया न जाए जिहिरा
संत तुकाराम


हरि बिन रहिया न जाए जिहिरा।
कब की थाड़ी देखें राहा॥

क्या मेरे लाल कवन चुकी भई।
क्या मोहिपासिती बेर लगाई॥

कोई सखी हरि जावे बुलवान।
बारहि डारूँ उस पर ये तन॥

तुका प्रभु कब देख पाऊँ।
पासी आऊँ फेर न जाऊँ॥



सँभाल यारा ऊपर तले संत तुकाराम sant tukaram ji ke pad



सँभाल यारा ऊपर तले दोनों मार की चोट।
नज़र करे सोहि राखे पसवा जावे लूट॥

प्यार ख़ुदाई प्यार ख़ुदाई, प्यार ख़ुदाई।
प्यार ख़ुदाई रे बाबा, ज़िकीर ख़ुदाई॥

उड़े कुड़े ढुंग नचाये, आगल भूलन प्यार।
लड़बड़ खड़बड़ कहे कांकू, चलावत भार॥

कहे तुका सुनो लोका, हम जिन्हों के सात।
मिलावे तो उसे देना, वोही चढ़ावे हात॥



तन भंज्याय ते बुरा संत तुकाराम



तन भंज्याय ते बुरा, ज़िकीर ते करे।
सीर काटे ऊर कुटे, ताहाँ सब डरे॥

ताहाँ एक तूही, ताहाँ एक तूही।
ताहाँ एक तूही रे, बाबा हम तुम नहीं॥

दीदार देखो, भूले नहीं, किस पछाने कोये।
सचा नहीं पकड़ सके, झूठा झूठे रोए॥

किसे कहे मेरा किन्हो, संत लिया मास।
नहीं मेलो मिले जीवना, झूठा किया नास॥

सुनो भाई कैसा तोही, होय तैसा होय।
बाट खाना अल्ला कहना, एक बार तो होय॥

भला लिया भेख मुंडे, अपना नफ़ा देख।
कहे तुका सो ही सखा, हाक अल्ला एक॥

 संत तुकाराम के दोहे Sant tukaram ji ke dohe 



लोभी के चित धन बैठे, कामिनि के चित काम।
माता के चित पूत बैठे, तुका के मन राम॥

तुका बड़ो न मानूं, जिस पास बहुत दाम।
बलिहारी उस मुख की, जिस ते निकसे राम॥

तुका मार्या पेट का, और न जाने कोय।
जपता कछु राम नाम, हरि भगत की सोय॥

तुका कुटुंब छोरे रे लड़के, जीरो सिर मुंडाय।
जब ते इच्छा नहिं मुई, तब तूँ किया काय॥

राम-राम कह रे मन, और सुं नहिं काज।
बहुत उतारे पार आगे, राखि तुका की लाज॥

तुका दास तिनका रे, राम भजन नित आस।
क्या बिचारे पंडित करो रे, हात पसारे आस॥

राम कहे सो मुख भला रे, बिन राम से बीख।
आय न जानू रमते बेरा, जब काल लगावे सीख॥

कहे तुका जग भुला रे, कह्या न मानत कोय।
हात परे जब काल के, मारत फोरत डोय॥

कहे तुका तु सबदा बेचूं, लेवे केतन हार।
मीठा साधु संत जन रे, मूरख के सिर मार॥

चित्त मिले तो सब मिले, नहिं तो फुकट संग।
पानी पत्थर एक ही ठोर, कोर न भीजे अंग॥

फल पाया तो सुख भया, किन्ह सूं न करे विवाद।
बान न देखे मिरगा, चित्त मिलाया नाद॥

तुका और मिठाई क्या करूँ, पाले विकार पिंड।
राम कहावे सो भली रूखी, माखन खीर खांड॥

ब्रीद मेरे साइयां को, तुका चलावे पास।
सुरा सोहि लरे हम से, छोरे तन की आस॥

संतन पन्हैयाँ ले खड़ा, रहूँ ठाकुरद्वार।
चलता पाछे हूँ फिरो, रज उड़त लेउं सिर॥

भीस्त न पावे मालथी, पढ़िया लोक रिझाय।
नीचा जेथे कमतरीन, सोही सो फल खाय॥

तुका प्रीत राम सूं, तैसी मीठी राख।
पतंग जाय दीप पररे, करे तन की ख़ाक॥

राम कहे सो मुख भला रे, खाए खीर खांड।
हरि बिन मुख मों धूल परी, क्या जनी उस रांड॥

कहे तुका भला भया, हुआ संतन का दास।
क्या जानूं केते मरता, न मिटती मन की आस॥

तुका बस्तर बिचारा क्या करे, अतंर भगवान होय।
भीतर मैला कब मिटे रे मन, मरे ऊपर धोय॥

चित सुंचित जब मिले, तब तन थंडा होय।
तुका मिलना जिन्ह सूं, ऐसा बिरला कोय॥

तुका संगत तिन से कहिए, जिन से सुख दुनाए।
दुर्जन तेरा मूं काला, थीतो प्रेम घटाए॥

तुका मिलना तो भला, मन सूं मन मिल जाय।
ऊपर-ऊपर माटी घासनी, उनको को न बराय॥

तुका राम सूं चित बाँध राखूं, तैसा आपनी हात।
धेनु बछरा छोर जावे, प्रेम न छूटे सात॥

तुका राम बहु मीठा रे, भर राखूं शरीर।
तन की करुं नाब री, उतारूँ पैल तीर॥

तुकादास राम का, मन में एकहिं भाव।
तो न पालटू आवे, येही तन जाय॥

तुका सुरा बहुत कहावे, लड़न बिरला कोय।
एक पावे ऊँच पदवी, एक खौसा जोय॥

तुका इच्छा मिटी नहिं तो, काहा करे जटा ख़ाक।
मथीया गोलाडार दिया तो, नहिं मिले फेर न ताक॥

काफर सोही आप न बुझे, आला दुनिया भर।
कहे तुका सुनो रे भाई, हिरदा जिन्ह का कठोर॥

तुका सुरा नहिं शबद का, जहाँ कमाई न होय।
चोट सहे घन की रे, हिरा नीबरे तोय॥

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