प्रेमलता के दोहे (रसिक संप्रदाय) Premlata ke Dohe
जयति जयति सर्वेश्वरी, जन रक्षक सुखदानि।
जय समर्थ अह्लादिनी, सक्ति सील गुन खानि॥
सिया अलिनि की को कहै, सुख सुहाग अनुराग।
विधि हरिहर लखि थकि रहे, जानि छोट निज भाग॥
बहुरि त्रिपाद विभूति ये, श्री, भू, लीला, धाम।
अवलोकहु रमनीक अति, अति विस्तरित ललाम॥
हमहम करि दुख सहत अति, विवस मोह मद सार।
भोगहिं निज कृत कर्म फल, फँसि जड़ माया जार॥
नित्यानित्य पसार बहु, नूतन छन-छन माँझ।
उपजत विनसत लखि परै, जिमि जग भोर सु साँझ॥
विश्व विलास निकुंज अब, अवलोकहु यहि ओर।
नाटक होत जथार्थ जहँ, अति विचित्र चितचोर॥
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