- कलाम-ए-अकबर पर एक नज़र (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Kalaame Akbar Par Ek Nazar (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandवली और मीर से लेकर अमीर-ओ-दाग़ तक उर्दू ज़बान ने जो रंग बदले हैं वो एशियाई शाइ’र के माहिरीन से मख़्फ़ी नहीं हैं। बेशक तख़य्युलात-ए-शाइ’री में...
- इत्तिहाद (इत्तिफाक) ताकत है (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Ittehad Taqat Hai (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandएक जमाने में हिन्दुस्तान के लोग इस सीमा तक युद्ध प्रिय थे कि बात-बात पर तलवारें चलती और खून की नदियाँ बहती थीं। या अब लोग ऐसे शान्तिप्रिय हो गए हैं ...
- ज़ुलेख़ा (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Zulekha (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandफारसी हुस्न-ओ-इश्क की दुनिया में ज़ुलेख़ा को जो आम शोहरत हासिल है वह बयान की मुहताज नहीं। उसकी जिंदगी हुस्न-ओ-इश्क की एक लाजवाब और दिलकश दास्तान है। एक बादशाह क...
- उपन्यास के विषय (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Upanyas Ke Vishay (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandउपन्यास का क्षेत्र, अपने विषय के लिहाज़ से दूसरी ललित कलाओं से कहीं ज्यादा विस्तृत है। ‘वाल्टर बेसेंट’ ने इस विषय पर इन शब्दों में विचार प्रकट किए ह...
- मजनूँ (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Majnu (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandमजनूँ फारसी और अरबी इश्क की दुनिया का बादशाह है मगर उसकी दास्तान पढ़कर ताज्जुब होता है कि उसे यह जगह कैसे मिल गई। न कोई दिलचस्पी है और न कोई वाकया। बस वह आशिक प...
- भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Bharatendu Babu Harishchandra (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहिन्दी भाषा के कवियों में बाबू हरिश्चन्द्र का स्थान बहुत ऊँचा समझा जाता है। यह ठीक है कि उन्हें तुलसी, सूर, बिहारी या केशव की-सी लोकप्रि...
- अंधा पूँजीवाद (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Andha Punjivad (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandजिधर देखिए, उधर पूँजीपतियों की घुड़दौड़ मची हुई है। किसानों के खेती उजड़ जाए उनकी बला से। कहावत के उस मूर्ख की भाँति जो उसी डाल की जड़ काट रहा था, जिस ...
- उर्दू में फिरऔनियत (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Urdu Mein Firauniyat (Hindi Nibandh) : Munshi Premchand(फिरऔनियत – मिस्र के बादशाह ‘फिरौन’ से, जिसने घमंड के मारे खुदाई का दावा किया था, और जिसे हजरत मूसा के शाप ने समाप्त किया।)मिस्टर नियाज फतेहपुरी ...
- दु:खी जीवन (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Dukhi Jivan (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहिंदू दर्शन दु:खवाद है, बौद्ध दर्शन दु:खवाद है और ईसाई दर्शन भी दु:खवाद है! मनुष्य सुख की खोज में आदिकाल से रहा है और इसी की प्राप्ति उसके जीवन का सदैव मु...
- पैके अब्र (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Paike Abr (Hindi Nibandh) : Munshi Premchand‘मेघदूत’ कालिदास के खंड-काव्यों में एक विशेष स्थान रखता है। कालिदास ने प्रेम के भावों का खूब वर्णन किया है और यह कविता इस खूबी से सजायी गई है कि इसी बुनियाद...
- हिन्दी राष्ट्रभाषा होगी (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Hindi Rashtrabhasha Hogi (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandविधाता के घर में जिस समय वाणी बंट रही थी, उस समय मैं सो रहा था। इसलिए मैं उतनी अच्छी तरह बोल नहीं सकता। बोलना मेरे काबू के बाहर की बात है। हा...
- आबशारे न्याग्रा (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Aabshare Niagara (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandप्रकृति ने जहाँ मानव को बहुत से उपहार प्रदान किए हैं, वहीं उनमें वे रंगबिरंगे पहाड़ भी हैं जिन्हें प्रकृति के उदार हाथों ने फूलों के गुलदस्तों की भाँ...
- नोबल पुरस्कार-प्राप्तकर्ता जॉन गाल्सवर्दी (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
John Galsworthy - Nobel Laureate (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandजॉन गाल्सवर्दी का जन्म ता. 4 अगस्त, सन् 1860 में हुआ था। इनके पिता एक नामी वकील थे और उनकी इच्छा थी कि गाल्सवर्दी भी उनकी तरह नामी वक...
- मजनूँ (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Majnu (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandमजनूँ फारसी और अरबी इश्क की दुनिया का बादशाह है मगर उसकी दास्तान पढ़कर ताज्जुब होता है कि उसे यह जगह कैसे मिल गई। न कोई दिलचस्पी है और न कोई वाकया। बस वह आशिक प...
- स्वदेशी आंदोलन (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Swadeshi Andolan (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहिन्दुस्तान के लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रों और पत्रिकाओं ने इस देशभक्तिपूर्ण आंदोलन का समर्थन किया है और जो पहले थोडा हिचकिचा रहे थे उनका भी अब विश्वास...
- अहदे अकबर में हिन्दुस्तान की हालत (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Ahade Akbar Mein Hindustan Ki Halat (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandअब यह बात पक्की हो गई है कि हिन्दुस्तान के इतिहासकार इतिहास-लेखन की कला से अनभिज्ञ थे। हिन्दू तो हिन्दू प्रायः यूनान से शिक्षा लेक...
- पुराना जमाना : नया जमाना (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Purana Jamana : Naya Jamana (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandपुराने जमाने में सभ्यता का अर्थ आत्मा की सभ्यता और आचार की सभ्यता होता था। वर्तमान युग में सभ्यता का अर्थ है स्वार्थ और आडंबर। उसका नैतिक ...
- ज़ुलेख़ा (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Zulekha (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandफारसी हुस्न-ओ-इश्क की दुनिया में ज़ुलेख़ा को जो आम शोहरत हासिल है वह बयान की मुहताज नहीं। उसकी जिंदगी हुस्न-ओ-इश्क की एक लाजवाब और दिलकश दास्तान है। एक बादशाह क...
- आजादी की लड़ाई (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Aazaadi Ki Ladayi (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandआजादी की लड़ाई शुरू हो गई। महात्मा गाँधी ने छः अप्रैल को समुद्र के तट पर डंडी में गुलामी की बेड़ी पर पहला हथौड़ा चलाया और उसकी झंकार सारे देश में गूँ...
- केशव (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Keshav (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandकाव्य-मर्मज्ञों ने केशव को हिन्दी का तीसरा कवि माना है लेकिन केशव में वह उड़ान नहीं जो बिहारी की अपनी विशेषता है। तुलसी, सूर, बिहारी, भूषण आदि कवियों ने विशेष ...
- कर्बला-2 (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Karbala-2 (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandमित्रवर श्रीयुत रामचन्द्र टंडन ने मेरे ‘कर्बला’ नामी ड्रामा की आलोचना करते हैं, यह शंका प्रकट की है कि वह नाटक में हिन्दू पात्र क्यों लाए गए। उनका कहना है –...
- उर्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तानी (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Urdu, Hindi Aur Hindustani (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandयह बात सभी लोग मानते हैं कि राष्ट्र को दृढ़ और बलवान बनाने के लिए देश में सांस्कृतिक एकता का होना बहुत आवश्यक है। और किसी राष्ट्र की भाषा त...
- फिल्म और साहित्य (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Film Aur Sahitya (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहमने गत मास के ‘लेखक’ में ‘सिनेमा और साहित्य’ शीर्षक से एक छोटा लेख लिखा था, जिसको पढ़कर हमारे मित्र श्री नरोत्तमप्रसाद जी नागर, संपादक ‘रंग भूमि’ ने...
- हँसी (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Hansi (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandएक प्रसिद्ध दार्शनिक का कथन है कि मनुष्य हँसने वाला प्राणी है और यह बिल्कुल ठीक बात है क्योंकि श्रेणियों का विभाजन विशेषताओं पर ही आधारित होता है और हँसी मनुष्य...
- बिहारी (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Bihari (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandसंस्कृत कविता के आचार्यों ने कविता को नौ रसों में बाँटा है। रस का मतलब है, कविता का रंग। सौंदर्य और प्रेम, वीरता, क्रोध, हास्य, भक्ति वगैरह। सूरदास सौंदर्य और ...
- कालिदास की कविता (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Kalidas Ki Kavita (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandयों तो संस्कृत साहित्य की आज तक थाह नहीं मिली। एक सागर है कि जितना डूबो उतना ही गहरा मालूम होता है। मगर तीन कवि बहुत प्रसिद्ध हैं – वाल्मीकि, व्यास ...
- घृणा का स्थान (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Ghrina Ka Sthan (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandजीवन में घृणा का स्थाननिंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह निंदा क...
- उपन्यास रचना (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Upanyas Rachna (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandभारत-निवासियों ने यूरोपियन साहित्य के किसी अंग को इतना ग्रहण नहीं किया, जितना उपन्यास को। यहाँ तक कि उपन्यास अब हमारे साहित्य का एक अविच्छेद्य अंग हो ग...
- मनुष्यता का अकाल (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Manushyata Ka Akaal (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहिन्दू-मुस्लिम एकता के बारे में इस वक्त मुसलमान कौम के बड़े लोगों ने बार-बार की उत्तेजना के बावजूद जो अच्छी रविश अख्तियार की है, और जिस सूझ-बूझ और...
- गुरुकुल में तीन दिन (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Gurukul Mein Teen Din (Hindi Nibandh) : Munshi Premchand1पिछले आषाढ़ में मुझे गुरुकुल कांगड़ी के दर्शनों का अवसर मिला। इच्छा तो बहुत दिनों से थी, मगर यह सोचकर कि उस वेद वेदांगों के केन्द्र में मुझ-जैस...
- साहित्य की प्रगति (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Sahitya Ki Pragati (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandसाहित्य की सैंकड़ों परिभाषाएँ की गई हैं और उनमें से हम अपना मतलब निकालने के लिए एक ही लेंगे। परिभाषा है तो पंडितों की वस्तु, मगर जब घर बनाना है तो ...
- इस्लामी सभ्यता (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Islami Sabhyata (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहिन्दू और मुसलमान दोनों 1000 वर्षों से हिन्दुस्तान में रहते चले आते हैं, लेकिन अभी तक एक दूसरे को समझ नहीं सके । हिन्दू के लिए मुसलमान एक रहस्य है मुस...
- शरर और सरशार (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Sharar Aur Sarshaar (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहकीम बरहम साहब गोरखपुरी ने अगस्त-सितंबर के ‘उर्दू-ए-मुअल्ला’ में अद्भुत योग्यता और बारीकी से शरर और सरशार की तुलना की है जिसमें आपने हजरत शरर को ऐ...
- मानसिक पराधीनता (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Mansik Pradhinta (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहम दैहिक पराधीनता से मुक्त होना तो चाहते हैं; पर मानसिक पराधीनता में अपने-आपको स्वेच्छा से जकड़ते जा रहे हैं। किसी राष्ट्र या जाति का सबसे बहुमूल्य अ...
- उपन्यास (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Upanyas (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandउपन्यास 1उपन्यास की परिभाषा विद्वानों ने कई प्रकार से की है, लेकिन यह कायदा है कि जो चीज़ जितनी ही सरल होती है, उसकी परिभाषा उतनी ही मुश्किल होती है। कविता की...
- बातचीत करने की कला (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Baatcheet Karne Ki Kala (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandबातचीत करना उतना आसान नहीं है, जितना हम समझते हैं। यों मामूली सवाल जवाब तो सभी कर लेते हैं, अपना दु:ख सभी रो लेते हैं, उसी तरह, जैसे सभी थोडा-...
- कलामे सुरूर (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Kalame Suroor (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandमुंशी दुर्गा सहाय सुरूर के देहावसान ने उर्दू की सभा में एक ऐसा स्थान रिक्त कर दिया है जिसका पूरा होना बहुत कठिन दिखाई देता है। प्राचीन शैली के शायरों मे...
- गालियाँ (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Gaaliyaan (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandहमारे देश में गालियाँ केवल गद्य में ही नहीं पद्य में भी दी जाती हैं। हम गालियाँ गाते हैं और वह भी ख़ुशी के मौक़े पर। अगर शोक के अवसर पर गालियाँ गायी जाएँ तो श...
- शांतिनिकेतन में (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Shantiniketan Mein (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandअभी हाल में भाई जैनेन्द्रकुमार, भाई माखनलाल चतुर्वेदी तथा पं. बनारसीदास जी ने शांतिनिकेतन की यात्रा की। निमंत्रण तो हमें मिला था, पर खेद है, हम उसम...
- साहित्य और मनोविज्ञान (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
1/1/1970
Sahitya Aur Manovigyan (Hindi Nibandh) : Munshi Premchandसाहित्य का वर्तमान युग मनोविज्ञान का युग कहा जा सकता है। साहित्य अब केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं है। मनोरंजन के सिवा उसका कुछ और भी उद्देश्य है। ...
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