रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे / नक़्श लायलपुरी
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएँ कैसे
दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले
कोई कह दे कि वो दीवार गिराएँ कैसे
दर्द में डूबे हुए नग़्मे हज़ारों हैं मगर
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाएँ कैसे
बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते
ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएँ कैसे
कोई झंकार है नग़्मा है सदा है क्या है / नक़्श लायलपुरी
कोई झंकार है नग़्मा है सदा है क्या है
तू किरन है कि कली है कि सबा है क्या है
तेरी आँखों में कई रंग झलकते देखे
सादगी है कि झिझक है कि हया है क्या है
रूह की प्यास बुझा दी है तिरी क़ुर्बत ने
तू कोई झील है झरना है घटा है क्या है
नाम होंटों पे तिरा आए तो राहत सी मिले
तू तसल्ली है दिलासा है दुआ है क्या है
होश में ला के मिरे होश उड़ाने वाले
ये तिरा नाज़ है शोख़ी है अदा है क्या है
दिल ख़तावार-ए-नज़र पारसा तस्वीर-ए-अना
वो बशर है कि फ़रिश्ता है ख़ुदा है क्या है
बन गई नक़्श जो सुर्ख़ी तिरे अफ़्साने की
वो शफ़क़ है कि धनक है कि हिना है क्या है
ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है / नक़्श लायलपुरी
ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है
जो भी मिलता है मिरा दर्द बढ़ा देता है
किसी हमदम का सर-ए-शाम ख़याल आ जाना
नींद जलती हुई आँखों की उड़ा देता है
प्यास इतनी है मेरी रूह की गहराई में
अश्क गिरता है तो दामन को जला देता है
किस ने माज़ी के दरीचों से पुकारा है मुझे
कौन भूली हुई राहों से सदा देता है
वक़्त ही दर्द के काँटों पे सुलाये दिल को
वक़्त ही दर्द का एहसास मिटा देता है
'नक़्श' रोने से तसल्ली कभी हो जाती थी
अब तबस्सुम मिरे होंटों को जला देता है
माना तिरी नज़र में तिरा प्यार हम नहीं / नक़्श लायलपुरी
माना तिरी नज़र में तिरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें कि तेरे तलबगार हम नहीं
सींचा था जिस को ख़ून-ए-तमन्ना से रात-दिन
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हम ने तो अपने नक़्श-ए-क़दम भी मिटा दिए
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
ये भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ
ये भी नहीं के साहब-ए-किरदार हम नहीं
कहते हैं राह-ए-इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम
अब तुझ से दूर मंज़िल-ए-दुश्वार हम नहीं
जानें मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-आरज़ू हमें
हैं संग-ए-मील राह की दीवार हम नहीं
पेश-ए-जबीन-ए-इश्क़ उसी का है नक़्श-ए-पा
उस के सिवा किसी के परस्तार हम नहीं
पलट कर देख लेना जब सदा दिल की सुनाई दे / नक़्श लायलपुरी
पलट कर देख लेना जब सदा दिल की सुनाई दे
मेरी आवाज़ में शायद मिरा चेहरा दिखाई दे
मोहब्बत रौशनी का एक लम्हा है मगर चुप है
किसे शम-ए-तमन्ना दे किसे दाग़-ए-जुदाई दे
चुभें आँखों में भी और रूह में भी दर्द की किर्चें
मिरा दिल इस तरह तोड़ो के आईना बधाई दे
खनक उट्ठें न पलकों पर कहीं जलते हुए आँसू
तुम इतना याद मत आओ के सन्नाटा दुहाई दे
रहेगा बन के बीनाई वो मुरझाई सी आँखों में
जो बूढे बाप के हाथों में मेहनत की कमाई दे
मिरे दामन को वुसअ'त दी है तू ने दश्त-ओ-दरिया की
मैं ख़ुश हूँ देने वाले तू मुझे कतरा के राई दे
किसी को मख़मलीं बिस्तर पे भी मुश्किल से नींद आए
किसी को 'नक़्श' दिल का चैन टूटी चारपाई दे
फ़िल्मों के लिए लिखे गीत
मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा / नक़्श लायलपुरी
मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा,
मेरी आवाज़ को, दर्द के साज़ को,
तू सुने ना सुने !
मुझे देखकर कह रहे हैं सभी
मुहब्बत का हासिल है दीवानगी
प्यार की राह में, फूल भी थे मगर
मैंने काँटे चुने
मैं तो हर मोड़ पर...
जहाँ दिल झुका था वहीं सर झुका
मुझे कोई सजदों से रोकेगा क्या
काश टूटे ना वो, आरज़ू ने मेरी
ख़्वाब हैं जो बुने
मैं तो हर मोड़ पर...
मेरी ज़िन्दगी में वो ही ग़म रहा
तेरा साथ भी तो बहुत कम रहा
दिल ने, साथी मेरे, तेरी चाहत में थे
ख़्वाब क्या क्या बुने
मैं तो हर मोड़ पर...
तेरे गेसुओं का वो साया कहाँ
वो बाहों का तेरी सहारा कहाँ
अब वो आँचल कहाँ, मेरी पलकों से जो
भीगे मोती चुने
मैं तो हर मोड़ पर…
ये मुलाक़ात इक बहाना है / नक़्श लायलपुरी
ये मुलाकात एक बहाना है
प्यार का सिलसिला पुराना है
ये मुलाक़ात एक...
धड़कनें धड़कनों में खो जाएँ
दिल को दिल के क़रीब लाना है
प्यार का सिलसिला पुराना है
ये मुलाक़ात एक...
मैं हूँ अपने सनम की बाहों में
मेरे क़दमों तले ज़माना है
प्यार का सिलसिला पुराना है
ये मुलाक़ात एक...
ख़्वाब तो काँच से भी नाज़ुक हैं
टूटने से इन्हें बचाना है
प्यार का सिलसिला पुराना है
ये मुलाक़ात एक...
मन मेरा प्यार का शिवाला है
आपको देवता बनाना है
प्यार का सिलसिला पुराना है
ये मुलाक़ात एक...
कई सदियों से, कई जनमों से / नक़्श लायलपुरी
कई सदियों से, कई जनमों से
तेरे प्यार को तरसे मेरा मन
आ जा
आ जा के अधूरा है अपना मिलन
कई सदियों से ...
राहों में कहीं, नज़र आया
अपने ही खयालों का साया
कुछ देर मेरा मन, लहराया
फिर डूब गई आशा की किरण
आ जा
आ जा के अधूरा है अपना मिलन
कई सदियों से ...
सपनों से मुझे, न यूँ बहला
पायल के खोए गीत जगा
सुनसान है जीवन की बगिया
सूना है बहारों का आँगन
आ जा के अधूरा है अपना मिलन
कई सदियों से ...
धानी चुनर मोरी हाए रे / नक़्श लायलपुरी
धानी चुनर मोरी हाय रे
जाने कहाँ उड़ी जाए रे
आज मेरे आँचल से क्यों लिपटती जाए
जीवन की बगिया में ये किसने फूल खिलाए
नस नस में डोल के घूँघट पट खोल के
आज खुशी लहराए रे
धानी चुनर मोरी हाय रे ...
झूम रहे हैं सपने दो आँखों में लहराके
मन ही मन मुसकाऊँ मैं नई डगर पिया के
पग पग अनजान है, नज़र हैरान है
बात मगर मन भाए रे
धानी चुनर मोरी हाय रे ...
चंचल मन ये काहे मैं उड़ती उड़ती जाऊँ
ओ नील गगन पर जाके चन्दा को गले लगाऊँ
सुध बुध बिसरा गए ये दिन कैसे आ गए
कोई मुझे समझाए रे
धानी चुनर मोरी हाय रे ...
भरोसा कर लिया जिस पर उसी ने हमको लूटा है / नक़्श लायलपुरी
भरोसा कर लिया जिस पर, उसी ने हमको लूटा है
कहाँ तक नाम गिनवाएँ, सभी ने हमको लूटा है
कभी बढ़कर हमारा रास्ता रोका अन्धेरों ने
कभी मंज़िल दिखाकर रोशनी ने हमको लूटा है
जो लुटते मौत के हाथों तो कोई ग़म नहीं होता
सितम इस बात का है, ज़िन्दगी ने हमको लूटा है
हमारी बेबसी मुस्कुरा कर देखने वालो
तुम्हारे सहर की हर गली ने हमको लूटा है
तुम्हें हो न हो पर मुझे तो यकीं है / नक़्श लायलपुरी
तुम्हें हो न हो, मुझको तो, इतना यक़ीं है
मुझे प्यार तुमसे, नहीं है, नहीं है ….
मगर मैंने ये राज़ अब तक न जाना
कि क्यों प्यारी लगती हैं बातें तुम्हारी
मैं क्यों तुमसे मिलने का ढूँढूँ बहाना
कभी मैंने चाहा तुम्हें छू के देखूँ
कभी मैंने चाहा तुम्हे पास लाना
मगर फिर भी इस बात का तो यकीं है
मुझे प्यार तुमसे नहीं है, नहीं है …..
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं / नक़्श लायलपुरी
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं
सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं
कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं
जानें मुसाफ़िराने रहे - आरज़ू हमें
हैं संगे मील, राह की दीवार हम नहीं
पेशे-जबीने-इश्क़ उसी का है नक़्शे पा
उस के सिवा किसी के परस्तार हम नहीं
आपकी बातें करें या अपना अफ़साना कहें / नक़्श लायलपुरी
आपकी बातें करें या अपना अफ़साना कहें
होश में दोनों नहीं हैं किसको दीवाना कहें
आपकी बाँहों में आकर खिल उठी है ज़िन्दगी
इन बहारों को भला हम किसका नज़राना कहें
राज़-ए-उल्फ़त ज़िन्दगी भर राज़ रहना चाहिए
आँखों ही आँखों में ये ख़ामोश अफ़साना कहें
प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा / नक़्श लायलपुरी
प्यार का दर्द है, मीठा मीठा, प्यारा प्यारा
ये हसीं दर्द ही, दो दिलों का है सहारा
थोड़ा थोड़ा चैन भी है, थोड़ी थोड़ी बेकरारी
और भी हो प्यार जवाँ, आरजू है ये हमारी
ये मिलन हो दोबारा, प्यार का ...
मुझे मिला प्यार तेरा, तुझे मेरी चाह मिली
नए नए सपनों की, हमें नई राह मिली
एक अरमाँ हमारा, प्यार का ...
रोज़ हमें मिलके भी, मिलने की आस रहे
रोज़ मिटे प्यास कोई और कोई प्यास रहे
दिल दीवाना पुकारा, प्यार का .. |
No comments:
Post a Comment