जीतू बगडवाल / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
जीतू व शोभनू होला, गरीबा का बेटा,
माता त सुमेरा छई, दादी फ्यूँली जौसू।
दादा जी कुंजर छया, भुली शोभनी छई,
जाति को पंवार छयो, जीतू अकलि गँवार,
बगूड़ी जैक भौजी, होंई गैन बगड्वाल!
राज मानशाइन दिने, कमीणा को जामो,
गौ मुंडे को सेरी दिने, गौ मथे को धारो
जीतू रये दादू, मादू उदभातू
राणियों कू रौसिया, रये फूल को हौंसिया।
अणव्याई बेटियों कू, ठाकुरमासो खाये,
बांजा घटू को, वैन, भग्वाड़ी उगाये,
ऊं बांजो भैंस्यों को, पालो लिने परोठो,
जीतू रये भैजी, राजौं को मुसद्दी।
बगुड़ ऐगे भैंजी, उल्या-मुल्या मास,
तब जितेसिंह राजा, धाविड़ी लगौंद-
ओडू़ नेडू़ औंदू, मेरा भुला शोभनू
सोरा-सरीक भुला, सब सेरा सैंक लैन,
कि मलारी को सेरो हमारो-
बाँजो रैगे त, बाँजो मेरा दादू।
तू जायौदू भुला, जोशी का पास,
गाड़ीक लऊ, सुदिन सुवार
सुदिन सुवार लौणा, लुंगला को दिन।
पातुड़ी की भेंट धरे, सेला चौंल पाथी,
धुलेंटी की भेंट धरे, सोवन को टका।
चलोगे शोभनू तब, बरमा का पास,
जाईक माथो नवौन्दो, सेवा लगौंदो
पैलगु पैलगु मेरा बरमा।
चिरंजी जजमान मेरा।
भैंर गाड़ बरमा, धुलेटी पातुड़ी,
धुलेटी पातुड़ी गाड, सुदिन सुवार।
गाडी याले बरमान, धुलेटी पातुड़ी,
देखद देखद बरमा, मुंडली ढगडयोंद,
तेरी राशि नी जूड़दो जजमान
तुमारी बतैन्दी बल, वा वैण शोभनी,
शोभनी क हाथ जूड़े, लुंगला को दिन।
लुंगला को दिन, छै गते अषाढ़।
वावैण मेरी रन्दी, कठैत का गाऊं
चूला कठूड़ तै, बाँका वनगड़।
सोचदू सोचदू तब, घर ऐगे शोभनू
पौंछीगे तब, जीतू का पास-
खरो मानी जदेऊ, मेरा जेठा-पाठा भैजी,
तेरी राशि नी जूड़े दिदा लुंगला को दिन।
हमारी बतैंछ भैजी, वा वैणा शोभनी
शोभनी का हात जूँडे, लुंगला को दिन।
जीतू भिभड़ैकै उठे तब, गए माता के पास,
हे मेरी जिया, हमारी राशि नी जूड़े, लुंगला को दिन!
मैं त जाँदू माता, शोभनी बैदौण।
तू छई जीतू, बावरो बेसुवा,
शोभनी बैदौण जालौ, तेरा भुला शोभनू।
भुला शोभनू होलू माता, बालो अलबूद,
मैं जौलू माता, शोभनी बैदौण।
न्यूतीक बुलौलो, पूजीक पठोलो।
नी जाणू जीतू, त्वैक ह्वैगे असगुन,
तिला बाखरी तेरी, ठक छयू दी।
नि लाणी जिया, त्वैन इनी छुँई,
घर बोड़ी औलो, तिला मारी खोलो।
भैर दे तू मेरो, गंगाजली जामो,
मोडुवा मुन्डयासो दे दूँ, आलमी इजार
घावड्या बाँसुली दे दूँ, नौसुर मुरुली।
न जा मेरा जीतू, कपड़ो तेरो झौली ह्वैन मोसी,
आरस्यो को पाग तेरो, ठनठन टूटे।
त्वैक तई ह्वैगे, जीतू यो असगुन!
माता की अड़ैती जीतू, एक नी माणदू,
लैरेन्द पैरेन्द तब, कांठो मा को-सी सूरीज,
गाड़ को-सी माछो, सर्प को-सी बच्चा,
बाँको वीर छयो, जीतू नामी भड़,
राजौं को माण्यु छयो, रूप् को भर!
जीतू बगडवाल / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
पैठीगे तब जीतू, बैणी का गऊँ,
राणी पटूड्या तब, तैकी गाली देन्दी।
जाँदू होई मेरा स्वामी, औंदू ना होई,
स्याली का खातर तू, पैटी वैणी बैदोण!
विदा लिने जीतून, रस्ता लगे वो,
चल्दू रै वो ऊँची तौं घैड़ियों,
ऊँची घैड़ियों चढ़े जीतू गैरी त पाख्यों,
कलबली कुलै छै वख, देउदार छा स्वाणा,
हँया डाँला छा, फूलून जना ढक्याँ!
पौंछी गये जीतू, रैथल की थाती,
घड़ांदी दोफरी छई, तढांदो घाम,
तड़ांदा घाम मा, जीतू सेल बैठोगे।
तमाखू पीयाले तैन, साध्यान लीयाले,
हौंस्यारी पराण वेो, उलारिया गए।
हाथ गाडयाले वैन, नौसुर मुरली,
नौसुर मुरली धरे, धावड़या बाँसुली।
बावरो छयो जीतू, उलारिया ज्वान,
मुरली को हौंसिया छयो, रूप् को रौंसिया।
घुराये मुरली वैन, डाँडी बीजीन काँठी,
वणा का मिरगून, चरणू छोड़ी दिने,
पंछियोंन छोड़ी दिने, मुख को त गालो।
कु होल चुचों स्यो, धावडया मुरल्या,
तैकी मुरली मा क्या, मोहनी होली।
बिजी गैन बिजी, खैट की आछरी,
जीतू की आँख्यों मा, जनो शीशो चमलाणी।
छमछम घूँघर बजीन, जीतू की आँखी मुंजीन,
क्वी बैणी बैठीन, आँख्यों का स्वर,
क्वी बैणी बैठीन, कन्दूड्यों का घर।
छालो पिने लोई, आलो खाये मास पिंड,
पन्द्र पचीसी जीतू, रैंथल थाती रैगे।
अख्हर जवानी जीतू, भुंचण नी पायो।
तिन नी माणो जीतू, माता की अड़ैती,
फँसी गए कनो, आछन्यों का घेरा।
सुमिरण करदो जीतू बगूड़ी भैंरो,
कख हैवैली मेरी, कुलदेवी भवानी?
आज मैं पर ऐगी, विपदा भारी,
बीच बाटा मा कनी होये, मेरी मोल की मरास।
दैणो ह्वैगे तब, जीतू को बगूड़ी भैरों,
नौ वैणी आछरी तब, छूटी गैन।
तब जीतून ऊँ देन्दु, दिन्या धरम-
आज मैं जाँदू बैणी वैदोण,
छै गते आषाढ़ लंगला को दिन।
तै दिन तुम मेरी, तैं मोल पुंगड़ी आन।
तब मन ह्वैगे उदास, जीतू,
चित्त ह्वैगे चंचल।
तब पौंछी गए जीतू, बैणी का गऊँ
मिली गये वीं बैणी शोभनी।
तब आये वा, स्याली त वरुणा।
सेवा मेरी पौंछे, वीं स्याली वरुणा
सेवा मैं खरी लाँदूँ, भैना बगीड्वाल।
तेरी खातर छोड़े, स्याली बाँकी बगूड़ी,
बांकी बगूड़ी छोड़े, राण्यों की दगूड़ी।
छतीसू कुटुम्ब छोड्यो, बतीसू परिवार
घिटुड़ियोंजसो रत्थ छोड़े, चकौरू जसी टोली।
तेरा बाना छौड़े मैन भैना-
दिन को खाणो, रात की सेणो।
तेरी माया न स्यालीं, जिकूड़ी लपेटीं,
कोरी-कोरी खाँदो, तेरी माया को मुंडारो।
जिकुड़ी कौ त्वै, पिलैक अपणी
परौसणू छौं तेरी, माया की डाली।
अब त मरीक ही, मिटलो स्याली,
त्वै मेंजे को हेत।
यू डाँड्यूँ मा तेरी, फूल फूलला,
झपन्याली होली बुराँस डाली।
रितु बौड़ी औली, दाँई जसो पेरो,
पर तेरी मेरी भेंट स्याली,
कु जाणी हौंदी कि नी होंदी?
बौड़ीक ऐ गए जितू, तैं बाँकी बगूड़ी,
ओडूं नेडूं ऐगे, लुंगला को दिन,
घटू की रिगाई ह्वैगे, सामल की पिसाई।
चौखम्भ्या तिवारी जितू, होये मंगलाचार।
मुड़ायूं गुड़ाखू पैट्यो, घुंघरियालो होका,
पौंछी गए बल्दू की जोड़ी, मलारी का सेरा,
तब जोतेण लैग्या जीतू, का घौला त बुल्ला।
मलारी का सेरा, शुरू होइगे रोपण,
सेरू सैंक ऐगे तैं, मोल पुँगड़ी।
एक फाट उंडो लीगे, जीतू एक फाट फुंडो,
फीकू ह्वै गए ज्यू, जीतू जी को।
तबे, वीं मोल पुंगड़ी छुटे घेंटुडी रथ,
मलेऊ सी भिड़को।
नौ बैणी आछरी ऐन बार वैणी भराड़ी,
क्वी बैणी बैठीन, कन्दूडयों का घर,
क्वी बैणी बैठीन, आंख्यों का स्वर।
छालो पिने लोई आलो खाये मासपिण्ड।
अगुंडो छयो जीतू, पछिडू फरकी,
स्यूँ बल्दू जोड़ी जीतू, डूबी गए,
मलारी का सेरा, जीतू खोई गए।
अल्हर जवानी जीतू, मुंचण नो पाए,
लाखडू सी ताबू होये, पिंडालू-सी भाड़
बत्तीसू कुटुम्ब तेरो, तै मलारी सेरा रैगे,
बावरो नी होन्दू जीतू, नी होन्दू विणास।
मालू राजुला / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
रंगीली वैराट मा, रन्दो छयो रंगीलो दोलाशा
छौ राजा दोलाशाही, रंगीली को राजा!
रंगीली दोलाशाही, ह्वैगे असी को विरबै
बुडयांदी बगत लगी, तीजा जसी जोन।
दोलाशाही राजा की, राणी पंवारी बतैं छै
वीं रांणी को विधाता गर्भ रई गए
एको दूजो मास लैगे, तीजो चौथो मास,
पाँचों सातों मास लैगे, आठों नवों मास,
दसाँ मास राणी, वैदन लगी गए!
बुड्याँदी बगत हे राजा, कनो गरण लैगे।
विधाता की लेख छई, राजा को बेटा ह्वैगे!
गया का बरमा बुलौंद राजा, काशी का पण्डित,
देखा मेरा बरमा, ये को राश-भाग!
तब बरमा, पातुड़ी देखदा;
राजा इनोजरम, यो भौंपति भौंपाल
रंगीली को राजा जरमे, मालूशाही नाम होलो येको!
हे राजा, गया को बरमौन कुछ अलप बतैले,
हे राजा, मालशाही को पंचुला ब्यौ करण!
नितर तुम पर पाप लगण!
सौक्यानी देश मा, सौक्यानी सोनूशाही,
सोनूशाही की नौनी, नौरंगी राजुला
तब गैन गया का बरमा, सौक्यानी देश मा,
सौक्यानी देस मा, माँगल छा गायेणा!
राजा सोनशाही की, जरमी, नौरंगी राजुला
आनन्द बड़ई बजदी, सौक्यानो कोट मा!
तब बोलदा गया का बरमा-
हे राजा सोनूशाही, तेरी नौनी जरमे,
हमारा राजा दोलाशाही को, नौनो होलो मालूशाही,
अपणी नौनी की तू, जबान दी दे।
नौरंग राजुला होलो, दसरंग मालूशाही।
तब सोनूशाहीन, राजुला की जबान
दीयाले वीं, रंगीली वैराट।
पंचुला की नौनी छै, पंजुला को नौनो,
जौ जबान ह्वैगे, माँग जाग।
मँगल पिठाई लगे, ढोल दमौं जज्या।
पर राजुला को छौ, बल नाड़ी वेद,
ससुरा तैं तब वो पिड़ाये
राजा दोलाशाही, स्वर्गवास ह्वैगे।
मन्त्री तन्त्रियोंन, इनो मन्त्र करे-
ई निरभागी ब्वारी का मांगण से
ससुरा मरी गए।
या ब्वारी हमून, कतई नी ल्यौण।
मालूशाही छोटू छ, तै मा नी सुपौणा
कि राजुला की करीं छै जुवान।
हे जी, बरसू बीती गैन तब,
पंचुला की नौनी, राजुला अक रंगीली,
सुघर तरुणी ह्वैगे।
बुराँस को-सी फूल, फूली गए राजुला।
रूप् की छलार आँख्यों मा वीं का,
जवानी भरेणी, पाणी को-सी ताल।
राजुला होली, राजों की बेटी,
देवी को-सी रूप होलो,
सूरज को-सी झल्यारो।
होई गए राजुला, ब्यौवोणा का लैख,
पर हे जी रंगीली का राज की
औणी नी छ जाणी।
पंचुला की नौनी माँगी छई,
तब बिटी करे, नी कैन खबर सार।
राजुला माँगण तब, औंदा दुरु-दुरुन राजा,
राजुला होली भली बाँद, व्यवैक ल्यौण।
राजा सोनूशाही पर, भौत खरी ऐगे,
धरम को बाँध्यूं छौ, शरम की मान्यूँ।
रंगीली राजान हमारो, कनो नाक कटाये,
ई बेटीन कनी दशा कराये।
बड़ा-बड़ा राजा ऐन, टालदो रैन ऊंतैं।
पर जलन्धर देश मा, रन्द छा विधनी विजैपाल,
राजुला की चारजोइ, सूणी तब तौन,
घूमदा-घूमदा आई गैन, सौकानी देश-मा,
सेवा मानी, सेवा मानी, राजा सोनूशाही,
राजुला को डोला हमन, जलन्धर देश पौंछोण।
देन्दी छै ससुरा त, कट दे जुबान।
नितर तेरो सौकानी राजा, बाँजा डाली द्योला।
अपणा नौ का, विघनी छौं हम, विजैपाल छाँ।
डर का मारा सोनू शाहीन, ना किलै बोलणू छौ?
राजुला की जुवान, वैन ऊं दियाले।
आठवाँ ऐत्वार, औली हमारी बरात,
तब विघ्नी विजेपाल, अपणा जलन्धर गैन।
रूवसी राजुला छई, आम जसी फाँक,
कनी तकदीर फूटे, गई जलन्धर देस?
तब बोदी वा राजुला, चल चाची छमुना,
सारा जाँद अपणो देस देखाइयाल,
वण देखाइयाल वासो।
उच्च पर्वत बिटी, सारी दुनिया देखदी
हे चाची, शैरू मा, के कु शैर पियारो?
राजों मा कु राजा पियारो?
मेरी तकदीर फूटे, गये जलन्धर देस।
तेरी तकदीर फूटे, बेटी गई जलन्धर देस,
ओ रंगीली बैराट मा, तेरी जुबान दियेणी छै
रंगीली को राजा छयो, नौरंग मालूशाही,
नौरंगू मालूशाही, दसरँगी राजुला।
ओ कख छ रंगीलो बैराट हे चाची।
ऊँचा पंवाली काँठा देख तै राजुला।
अच्छुत मैं जांदूं छमुना चाची, वै रंगीलीकोट मा,
हात धरे टालखी राजुला न,
वैराट पैटी गए राणी।
हाँ, सु कनो सोनशाही को, छयी इस्टदेव भैरव,
भैरव का कानू मा, खबर पौंछी गए।
विधनी विजैपाल, सोनगढ़ तोड़ी जाला
वो राजुला की, कनी मति हरे।
डेढ़ हात भैरों, जान्द राजुला की ढूँड,
वैराट को राजा, स्यो रंगीली मालूशाही,
मालू शाही का होला, रौल्या ओल्या घट।
तौं घटू मू पौंछीगे, तब रंगाली राजुला,
हे जी भैरव न, तब टाड कैले बाड!
घर त त्वई राजुला, औणू होल
में सोनूशाही को, डेड हात भैरव!
तेरो मड़ो मरयान, कुलदेव भैरव,
किलै रस्ता रोकदी, मैं जाण दे!
छट छोड़े भैरव न, रस्ता राजुला भागी,
रूबसी राजुला पौंछीगे, रंगीला बैराट!
राजुला से भी पैले, पौंछीगे भैरव,
मालूशाही क तैं, निन्दरा जाप ह्वेगे,
बार बरस की वे निन्दरा पड़ोगे!
दस रंग राजुली को, हिया भरी औन्द,
हे मेरा भैरव, कनो करे त्वैन मैकू?
तेरी जोई भैरव, जू राँड होयान।
लपटौन्दी झपटौदी मालूशाही नी बीज,
रूबसी राजुला, तब कागली लेखदो-
मैं पंचुला की कन्या मालूशाही,
माँगणी कबूल कै छई।
विधनी विजैपाल लिजाणा छन मंई,
त्वे बियाणी मंई त,
ऐ जाणू जलन्धर देस मा।
हीरा की गुण्ठी चढ़ाये वैका हात,
रोन्दी-बराँदी राजुला, सौकानी देस मा ऐ गए।
तब डेढ़ हात भैरवन मालूशाही को
जाप खोली याले।
हीरा की गुण्ठी देखे, वैन अपणा हात,
तब राजा को, हिया भरी औंद,
राजुला मेरी राणी, होली मेरो पराणी।
हे राम, वा कतना, दुख सैणी होली,
आँसू छोड़दी होली, पथेणा नेतर।
हे राजा, तब धरे, जोगी को रूप,
कनो छोड़े रंगीलो वैराट,
माता जी छोड़ दी, वैका पथेणा नेतर,
कख गई होली, मालूशाही मेरो लाडो।
तब सूणदी माता, रंगीली बैराट को राजा
गै गुरू गोरख की थली
गुरू जी गोरख तब, वै सणी देन्दा विद्या।
बोदा तब गुरू गोरखनाथ-
जा मेरा चेला, तू मां कर घर,
भोजन करी अऊ।
तब औन्द मालूशाही रंगीली वैराट
माता को शरीर तब भरी ओन्द
कनो दिखेन्दी मेरा मालूशाही की चार।
मेरो मालूशाही भी इनी ही छौ।
हे माता, एक सरूप् का कना कना होण्दान,
हे माता, तू मैं आशिर्वाद दे
आज भोरजन तेरा घर मा होलू।
पकौंदी भोजन तब बुडढ़ी माता,
हे जी माता को शरीर धीरज धरद-
मेरो मालूशाही छयो पंचगास्या ज्वान।
यो पंचग्रासी हालो त मेरो मालू ही छ।
तब बुलाये वींन जोगी भोरजन जिमौणा-
एक गास धरे जोगीन गाई का नौऊ,
मालू राजुला / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
हैको गास छोड़े विरालीक तई।
तीसरो गास छोड़े अगनी का नऊ।
चौथो गास वो अफू भोरजन कर्द।
छोड़ याले तब साई न माता को थाल,
मालूशाही की माता झप अंगवाल मारदे।
तू जोगी नी छई तू छई बेटा मेरो।
किलै छोड़ी बेटा, सात राणी बौराणी?
किलै छोड़ी राजा अपणी रैत मैत?
नि छऊ माई मैं तेरो मालूशाही,
न मेरी राणी छई न मेरो राज।
मालूशाही माता दणमण रोन्दे:
तू बोल न बोल बेटा, तू मेरो मालू छई।
कनो निरमोही होई तु
कै पापीन भरमाई।
कंचन काया छै तेरी उजली आतमा,
केक बेटा त्वैन यो राखो रमाई?
मैं नी छऊँ मेरी माता, तेरो जायो,
मैं छऊं माता गुरू गोरख को चेलो।
तब गाडे जोगीन बोकसाड़ी विद्या,
वैई बगत मा वो अन्तर्ध्यान ह्वैगे
छोड़ तब्री रंगीली वैराट,
चली गए वो जलन्धर देस मा-
जलन्धर देस मा विषल्या का शैर।
वै शैर मा रन्दी छई वा राणी विषल्या,
जै राणी की छई विष की मगरी,
ऊ मगरियों मा विष चारियूं छयो,
जु तें पाणी पेंद छौं, विष खै मरी जांद छयो,
मालशाही जोगी पौंछीगे दोफरी का धाम,
विष की मगरी पाणी पीयाले।
जोगी तई तब विष लगो गए-
ढली गये वो चन्दन-सी गेंडो।
राणी विसल्या तब पाणी भरण ऐगे,
देखे वैन जोगी पड्यूं-
हात हात भर की जटा बेत बेत भर का नंग,
पर मुखड़ी पर वैकी बाला सुरज की उद्यों छौं
वीं स्वाणी सूरत भोली मूरत देखी,
वीं दया ऐगे।
लक लगाये वींन, विष गाडीयाले,
जीतो होई गए मरयूं मालूशाही
तनी जीती रयान सुणली सभाई।
तब बोलदी विषल्या रौतेली-
तुम मेरा नाथ साई, मैं तुम्हारी जोगीणा।
विसल्या मैं जाग जलन्धर देस,
जब घर औलू त्व विवै ल्यौलू।
रंगीली को राजा छऊँ, मैं रंगीली मालूशाही।
तिन मेरा पराण बचाया,
त्वै मैं विषल्या, भुलण्या नी विसरण्या।
हे जी, तब जांदू मालूशाही जलन्धर देस मा,
विघनी विजैपाल छा घट मू,
तब मिली गैन विधनी विजैपाल।
चार गारा मन्त्रीन साई न,
देखा दूं तब तौंका घटा बन्द होई गैन,
तब औंदन जोगी मू कये बिघनी विजैपाल,
हे भायों, केव घट बन्द होइन?
हे भाई, तू छई मातमी जोगी,
हमारा घट बन्ध्या गैन।
तु कुछ तन्त्र जाणनी त
हमारो कारज साधी ले।
अहा, ई किसम को साधू हम नी मिलणो?
तब बोलदो जोगी-हे विघनी विजैपाल,
राजुला न व्यायान, तुमन मारीइ जाण।
जोगी पौंछीगे तब राजुला का पास,
राजुलीन देखे रूपवन्तो साई,
कनू देखेन्द यो मालूशाही की तरौं।
मालूशाही बोल्द-राजुला रौतेली,
तेरा नौं को जोगी छौ, तेरा रूप को भोगी।
भौ कुछ होइ जान, मैन तू बेवैक ल्याणी।
तेरा बाना छोड़ी राजुला रंगीली बैराट,
तेरा बाना छोड़ी राजुला, राण्यों का भौन।
तेरा बाना छोड़ें राजुला, माता की माया,
तेरा बाना धरे जोगी को ध्यान।
आई गैन तबारे विघनी विजैपाल,
राजुला हमारी होली, तू जोगी कखन आयो?
विघनी विजैपाल छा बांका भड़,
ऊँ देखी पड़ कम्पदा छा, डाल्यों का जड़ला।
ऊँन तब जुद्ध शुरू करीयाले।
मालूशाही होलो बोक्सा को चेला,
कनी खोली वैन बगसाड़ी विद्या-
इना भैरव तब पैदा ह्वैन
जौन विघनी विजैपालू का कलेजा
कोरी-कोरी खैन।
एक नी ऊँन छोड़ीन विघनी विजैपाल,
गाबा सी काटीक, निमो मी निचोड़ीन।
तब प्रफूल ह्वैगे राजुला राणी,
तुम होला स्वामी मेरा पूर्वला का सांगाती,
मैं तुमारी छऊँ, तुम मेरा छतर।
तब सिंगार करदी राजुला रंगीली,
आँख्यों गाजल चढौंदी, माथा वेंदी
भली गाड़दी स्यू द पाटी, फूलून सजैक।
तब सजीगे वींको औला सरी डोला,
नौरंग मालूशाही छौ दस रँगी राजुला।
रंगीलो मालूशाही औंद रंगीली वैराट,
रंगीली वैराट मा जै जै होंद!
सूरज कौंल (सूरज कुँवर) / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
एक दिन कुंवर त्वैक, राति का बीखैमा,
नागू का सूरजू बाला, सुपीनो ह्वै गये।
राति हैवै थोड़ा त्वीन, स्वोंणो जम्पे भौत,
पौछिगे सूरजू, जैकी ताता लूहागढ़।
सुपीना मा देखे तिन राणी जोत माला,
देख्याले सूरजू तिन, राणी को बंगला।
जै राणी को होलो आज ठैठाई को रंग,
सुतरी पलंग जैं को नेलू झमकार।
कवासुली सेज जैंको धावणिया घांड,
हिया च सुरीज जैंको पीठी चंदरमा।
कमरी दिखेंद जैंकी कुमाली सी ठांणा,
बिणोटी दिखेंद जैंकी डांडा सी चुडीणा।
सिंदोली दिखेंद जैकि धौली जैसो फाट,
फिलीरी दिखेद जैकि धोबी सी मुंदरी,
नाकुणी दिखेंद जैंकि खडक सी धार,
ओठणी दिखेंद जैकि दालिमा सी फूल,
दांतुणी दिखेंदी जैकि जाई जैसी कली।
बैठायो को रंग तै को कोठायँ टूटद,
सोवन सिन्वाणी जैकी रूपा की पैद्धाणी।
रांड की जोतरा देंदा जलमू की बोली,
तु हवेलू कुंवर सांचू सिंहणी सपूत,
तू ऐल्यो कंवर मेरा ताता लूहा गढ़।
सिंहणी को ह्वैलो ऐलो ये बांका भोटंत,
स्यालणी को ह्वेलो रैल्यो भीमली बजार।
नौ दिन नौ राति बाला गिजनारै गये,
नौ लाख कैतुरी कौल धाम झअल एगे।
धाम झअल येगे बेटा सभा सुन्न रैगे,
चचड़ैकी उठीकौल बवरैकी बीज।
जाग दो ह्वे जांदी हे नाग सुरीज।
जागदो ह्वे गये बाला कांटो को सुरीज।
तेरि जिया नागीण बाला धावड़ी लगौंदा।
किलैकी सुरजू बेटा कछड़ी नी औन्दो,
किलैकी सूरजू आज ठउ नी जिमदो।
नौ दिन ह्वेगैना मैंन सूरजू नि देख्यो,
कागई सूरजू मेरा यकुला येकन्तू।
त्वी बिना कुंवर तेरी भीमली सुन्न ह्वेगी।
तेरी भुली सूरजी त्वे धावड़ी लगौंदा,
त्वीकुणी सूरज कनी उनिन्दा पड़ी च।
घाम झअल यैगे बेटा, सभा सुन्न ह्वेगे।
चचडैकि उठी कौल बवरैकि बीजे।
ऐगये सूरजू कौल नौरंगी तिवारी।
मैं सणी जिया ब्वै आज सुपीनो ह्वेगे,
सुपीन मा देखे मैंन राणी जोतमाला
मैंन जाणा इजा वे ताता लूहागढ़।
रांड की जोतरा देंदा, जलमू की बोली,
सिहणीं को ह्वेली ऐली ताता लूहागढ़।
स्यालणी को ह्वैलो रैलो भिमली बाजार।
क्वी सोरो जांचदो वैकू बांट-बांटी देन्दो।
क्वी बैरी जांचदो मीकू हत्यारा भीड़ देन्दू।
तिरया को जांचणो मीकू मारणो ह्वे गयी।
मोरणो ह्वे जाना जिया जोतरा का बाना।
भौंकुछ ह्वे जाना मैंन जाणा लूहागढ़
कित लेलो जोतरा इजा किन रौलो नाटो,
ह्वेगैना जिया ब्वे मेरा बांही का बचन।
त्वेतई जिया ब्वै बाला, बुझौणी बुझौंद,
नि जाणों कुंवर मेरा बैरा का भकौंणा,
निल्हौणो सूरजू तिन जोतरा को भामों।
नि जाणो सूरजू बाला ताता लूहागढ़।
तू छई कुंवर मेरो इकलो यकन्तो
तु छई कुंवर मेरो कांठा सि सूरज।
तू छई कुंवर मेरो चन्दन सि गेंद,
तू छई कुंवर बाला पालिंगा सि गेंद।
तू ह्वेलू सूरजू मेरा धार्णिया सि ठुंसू।
तेरो बाबू गैछो बेटा घर बौड़ी नि होये,
तेरो दादो गैछो बेटा बौड़ी कि निआयो,
जो गैना भोटन्त बेटा बौड़ी की नि आयो,
तेरो दिदा बरमी रैगे बरमी डुग्यूँ पर।
तेरी तिल्लू बाखारि बेटा छट-पट छ्यूंदा,
मान्याल कुंवर त्वेकु असगुन ह्वेगे।
हून्दी मऊ कु बेटा कांदली नि हून्दी,
सूरज कौंल (सूरज कुँवर) / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
जाँदी मऊ कू बेटा अडयी नि लांदी।
बिराणा देशा को बेटा गारो बैरी होन्दा,
नि जाणो कुंवर मेरा बैरयूंकी भकौणा।
मान जा सूरजू बेटा माता की अड्याई,
दानों कू बोलियूं बाला ओला को सवाद।
तेरो होलो सूरजू बाला भिमलो बजार
कनि होली कुंवर तेरी नौरंगी तिवारी।
तेरि खोली गणेश वाला मुख च झूमदो,
तेरी भुली सुरजी बाला दणमण रोंदा।
कुदेलो दिदाजी भीमली को दैजो,
को ऋतु जणाली, को बसन्त बौडाली।
मिन जांणा सुरजी भुली ताता लूहागढ़,
मी ल्हौलो सुरजी त्वीकू मल्यागिरी सोनो।
मल्यागिरि सोना की त्वीकू सोन चूड़ी गडौलो।
त्वी को लौलो सुरजी भुली भिमली को दैजो।
घर बौडी येजौली द्यीलो सरनामी दैजो।
त्वी ऋतु जणौलो त्वी बसन्त बौडोलो।
आज का भोल भुलो भौं कुछ ह्वेजैन,
मरदू को बचणो भुली चार दिन हुन्द।
त्वीतई जिया ब्वै बाला बुझौणो बुझौंद,
मान्याला सुरजू बेटा दाना की अडज्ञयीं।
त्वी सणी कुंवर बाला नयो ब्यो करुंला,
नयो ब्यो करुंला नाम जोतरा धरुंला।
तेरी तिल्लू बाखरी बेटा छट-पट छयूंदा।
निल्हेणो सूरजू तिना जोतरा को भामो।
मैंन जाणा इजा ब्वै आज भोटन्त का राज,
मौरणो ह वैजाना इजा जोतरा का बाना
नयो ब्यऊ करीली तू सूरत कौक ल्हैली,
घर बौड़ी येजौजू इजा तिलू मारी खौलो,
भैं कुछ ह्वैजैन जाण बालुरी भीटन्त।
त्वी तई इजा ब्वै बाला बुझौंणी बुझौंद,
तू जांदी सूरजू गुरु गोरख का पास,
बागुरी गोरख तेरी रकसा करलो।
जैलागे सूरजू गुरु गोरख की धुनी,
गोरख की धुनी होला नौ नाथ की सिद्धी।
बारा नाम बैरागी सोल नाम संन्यासी।
गोरख का पास बाला अलक लगौंद,
तू बोल सूरजू बाला कै काम को आयो।
मैसणी देदणा गुरु सांबर की विद्या।
बोकासी जाप देणा पंजाबी चुंगटी।
तै दिन गोरख त्वी कू समझौंण लागे,
तेरो माता को छई बेटा तु येको येकन्तू।
मान्याल सूरजू बाला भोटन्त नी जाणों,
सुपीना की बात जन बगड़ का माछा
जो गैना भोटन्त बाला घर बौड़ी नी आया।
तै दिन सूरजू बोदा भौं कुछ ह्वे जैना,
मैंन जाणा गुरजी आज भोटन्त का राज।
जो बैरी जांचदा वैकू हत्यार भीड़ देदों,
जो माता जंचदी गुरु थाल छोड़ि देदों
तिरिया को जांचणौं मीकू मरणों ह्वे गये।
नौ दिन नौ राति रैगे गोरख का पास,
धूनी लगौद चला आसण बिछौंद।
गाड़ याले गोरख तिन हाथ ताल छुरी,
ताल-छुरी गाडू तैकि मूंड्यिाले।
रूपसी कन्दूणियं धनी खुरसानी चीरा,
पैरने सुरीज त्वीकु फटीक मुन्दरा।
सुफेद कपड़यूं भगोया चायांले,
पैराये गुरु त्वींकू भगोया मुड्वासी।
काँधू मां धर्याले तेरा खरवा की झोली,
एक हाथ देये तेरो तेजमली सोटा,
दूजा हाथ देये तेरा नौपुरी को बांस।
धर्याले बगल पर बगमरी आसण।
त्वीसणे दिाले बाला कानू को मंतर।
बोकसाडी जाप देये कांवर की धूल,
साबर की विद्या देये पंजाबी चुंगटी।
त्वीकुणे कुंवर जब बिपदा पड़ली,
मीकुणी सूरज तब याद करी याली।
ऐगये सूरज लौटी नौलाख कैंतुरी,
पकैदे जिया ब्वैं मींक द्वी पाथा कलेउ
चौपथा सामल मीक बाटा को धरियाल,
मिन जाँणा जिया ब्वै आज ताता लूहागढ़।
औडू नेडू ये जादी मेरी तेलिया बाड़णी,
लगैदे बाडणी मेरी जुलफिऊंमा तेल।
औडू नेडू देजादी मेरी हे माला धोबणीं,
लगैदे धोबड़ी मेरा कपड़ौ छुयेड़ों।
कपड़ि सजैदे मेरी तूमी जसो फूल,
मिन जाणा धोबणीं वे बांका भोटन्ता।
पैराले सूरजू तीन झिलमिलों जामो,
ओडू नेडू बुलावा मेरी घोड़ी का बखड्या।
गाड़ीदे बखड्या मेरी सुर्जमुखी घोड़ी,
मल्यो रंग घोड़ी मेरी सजाई देवा।
सूरज कौंल (सूरज कुँवर) / भाग 3 / गढ़वाली लोक-गाथा
सजैदे बखड्या घोड़ी कांसी का घूंघर,
घोड़ी को पैरेदे मेरी नेओरी की माला।
सजयाले सूरजूतिना सरपेंच कलंकी,
पैर्याले कुंवर तिन बखतरो जामो।
काँघि माँ धर्याले तिन चौंसी को गलेप,
धर्माले बगल तिन, पैनी समशीर
सजीगे सूरजू आज कांठ सी सूरज,
ह्वेगये कुंवर झट घोड़ी को सवारी।
मार्याले घोड़ी को तिन निगुरो कुरडा,
तेरी घोड़ी जै लागी बाला वीं काली बदली।
तेरी घोड़ी पहुँची बाला सूरज मंडल,
तेरी घोड़ी पहुँची गे, बाला वे मेघ मंडल।
तेरी घोड़ी यैगये बाला वीं थाली चौरडी।
पौंछिगे सूरजू आज नागणीं का सेरा,
मिलीगे कुंवर त्वीकू हिमा मारछयाल।
त्वीकुणी कुंवर हिमा बुझौंणी बुझौंद,
नागणीं का सेरा बाला चुड़ीणू का घेरा,
मल्यो रंग घोड़ी तेरी धावड़ी लगौंद।
नौ दिन नौ राति रैगे नागिण्यों का घेरा,
बिपदा का मारा जादू गुरु का सुपीना।
रैगउं गुरजी आज चुड़ींण का घेरा,
फूक्याले गुरु न गाड़ी धुनी की बभूत।
चचड़ैकी उठी बालो बबरैकी बीजे,
गाड्याले कुंवर तिन नंगी समशीर,
मार्याले कुंवर तिन रांड कि चुड़ीण।
घोड़ी को सवार पौंछी उचां खैटाखाल,
धार मा बैठीक तिन आसण लगाये।
खैटाखाल रौंदी बाला खैट की अछरी,
बजौण सूरजू बैठी नौसुर बांसुरी:
मुरली की धुन पौछी धार वार पार,
मुरली को सुर पौछी आछरयूं का कान,
नौछमी मुरली बाजी अनमनी भाँति,
डांडि कांठी गूँजी गये मुरली को सुर।
सूणीं सूणीं सुरसौरी बेसुध ह्वेगेना,
को ह बोलू हौंसिया इनो बंसी को बजैया!
अछरी निमानी यैने सूरजू का पास,
राणियूं को रसिया छैंठे फूलू को हौंसिया।
नौदिन नौराति रैग आछिरयूं की फेरा,
आछिरयूं तैं बाला तब बुझोणी बुझौंद,
मैंन जाणा दगड्यों आज बालुरी भौटन्त,
मैंन लाणा दगडूँयों आज जोतरा को डोला।
मौटेन्त औलू रौलो भी तुम्हारा पास,
पौछिगे सूरजू हुणियों का देश,
एक खुट्यू को राज जौकि बोली निबिगींदी।
फेंक्याले सूरजू तिन पजाबी चुंगटी।
पोड़िगे राक्सु जख मां काली को ज्वाप,
तेरी घोड़ी पहुँची में तब बिषैली कांठी,
नौ दिन ह्वैगेन तब त्वीकू विष लागी गेयै।
एक हड़ सूरजू तेरा किरम पड़ी गेना,
तब जांद सूरजू फेर गुरु का सुपीना
रैगउं गुरु जी आज बिषूली कांठ्यूं।
गाड़ी याला गुरु न संजीवनी विद्या,
हैंसदाज्यूँ दाल बालों बबरैकि बीज,
तेरी घोड़ी जैलागी गैरी रुंदरी।
तेरी घोड़ी पौछिगे बाला वे बांका भोटन्त,
जै लाग्या कुंवर बालां ताता लूहागढ़।
चान्दनी का चौक बाला घुड़दौड़ लगौंद,
देख्याले सूरजू तिना भावी को बंगला।
नजरु ये गये त्वीकू राणी जोतमाला,
नजरु यैगये बाँकू घोड़ी को सवार।
जाधऊँ हे छोरी स्वारा पूर्व की मोरी,
को बैख यैहोलो मेरी चान्दनी का चौक।
ओडू येजादी मेरी आज स्वारा छोरी,
ल्ही औदी सूरजू मेरा छतीश अवासू।
बैठिगे कुंवर जैकि सुतरी पलंग,
त्वी सणी जोतरा बाला बोली मरदी।
तब बैठी पलंग पैली पांसा खेली याला,
गाड़ीने जोतरा तीन हार जीत पांसा।
रांड की जोतरा पैली भोजन दीयाला,
नौ दिन ह्वेगेना मिना भोजन नी जीम्यों।
भोजन जिमै की खेल हार जीत पांसा।
बणैन जोतरा तिन बावन बिजन,
निर्पाणी की खीर सौर सदबेली घिऊ।
औ बाला सूरजू झट भोजन जीम्याल,
भोजन जीमिकि गाड़े हार जीत पांसा।
गाड़ीन जोतरा तिन हस्ती दाँत पाँसा,
खेलण बैठीगे बाला पांसड्यों को खेल,
खेलद-खेलद नौ दिन ह्वेई गेना।
खेलद-खेलद हारमान होइगे,
बोलद सूरजू भारी प्यास लगीगे।
जाधऊं तू स्वाणीं छोरी जल लेऊ भोरी,
हरगिज नी पिऊँ पाणी छोरी को लयूं।
अपणा हाथ को पाणी मीं तै पिलै याल,
तब लौंद जोतरा भैर जेकी जल भोरी।
झट उठे सूरजू बैठे जीत की तरफ,
पैले-पैले को दऊं डाले धरती का नऊं,
दूजो दंऊ डाले पंचदेवों का नऊँ।
तीजो दऊं जीते तिन धन दी दरब,
चौथी दऊं जीते तिन भावी को बंगला।
पांच्चीं दऊं जीते तिना राणी जोतमाला,
जै लाग्ये, जोतरा बालो नौरंग तिवारी।
राणी का आवास मा जांदा छतीस भवन,
पैर्याले जोतरा तिन ल्होसेडो घाघरो।
पैर्याले जोतरा तिन मखमखी आंगी,
धर्याले शिर मा तिन पामड़ी दुशालो।
पाये का पोलियां पैर्या शिर शीसफूल,
तेरा नौ कू सूरजू मिना स्वाँग धरियाले।
यैगये जोतरा तब गगन सोड्यूं पर,
पौछिगे जोतरा जैकि चाँदनी का चौक।
तेरा बाना जोतरा छोड़े नौ लाख कैतुरा,
सजी गये जोतरा तेरो औला सारी डोला।
मार्याले घोड़ा कू तिना निगुरों कुरड़ो,
पोछिगे सूरजू यैको नौ लाख कैतुरा।
तेरी घोड़ी पोंछिगे बाला भीमली बजार,
पौछिगे भीमली बाला जोतरा को डोला।
धर्याले जोतरा राणी छतीसू अवास,
नौलाख कैतुरा तैका मांगल गयेला।
बाजली भीमली आज आनन्द बधाई।
नौरंग तिवारी तख हास बरेंद,
बुलायें सूरजू तिन भुली सूरजी,
घर बौड़ीह्वेऊं भुली राजे दैजो ल्हीजा।
दियाले सुरजी त्वीक द्वी बैलों की जोड़ी,
गायूं गोठियार देई बाखुरियों की ताँदी
तू हवेली सूरजू सोंचो सिंहणो को जायो।
जसी / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
रूप आगलि होली वा धर्मावती राणी,
रूप आगलि होली सेली सीतली।
भुका देखीक बा खाणू नी खांदी,
नांगा देखीक बस्तर नी लांदी।
जनी छई राणी बल तनी छयो राजा,
दान्यों मा दानी होलो बल हरिचन्द राजा,
रिंगदी डिंड्याली छै जैकी उड़दी अटाली,
धारु गरुड़े छै जैकी गाडू घटूडे।
ढुंगा जसो धन छयो मेघ जसो मन,
गाडू का ढुंगा पूजीन राजान, धारु का मशाण,
पर राजा का घर बेटा नी जरमे।
तब सुमरदो राजा पंचनाम देव,
जरमी गए नौनी एक वैकी देवतौं का वर न।
बुलौन्द राजा गया का बरमा, काशी का पंडित-
तुम मेरा बरमो, देखा मेरी कन्या को राश भाग?
भली होये नौनी तेरी राजा जसीली, जसी नौ की।
जौन सी टुकड़ी नौनी, फ्यूँली-सी कोंपली।
सेरा का बीच जना साट्यों की बोटली,
तनी कबलांदी डाली-सी वा ह्वै सुघर तरुणी।
वीरुवा भण्डारी होलो भडू मा को भड़,
नौं को ही बीर छयो बड़ा बाबू को बेटा।
लम्बी भुजा छई वैकी चौड़ी छई छाती,
वीरुवा भण्डारी वांको होलो ज्वान।
व्यौं की बात होये ढोल बज्या खुशी का,
नारैण आये लगसमी व्याण,
मादेवन जनी पारवती पाये।
वीरुवा जसी की बांधेणे मलेऊ जसी जोड़ी।
अगासन जोन पाये फूल तै मिले भौंर।
धरती तै स्वाग मिले, मनखी तैं भाग।
तब जसी बीरुवा को ह्वैगे माछी पाणी ज्यू,
एका बिना हैका नी खांदो,
एक बिना हैको नी रन्दो।
द्वि होला वो पर एकी होलो शरील।
धातुओं मा सोनू जनो होन्द जसी-
तनी नारियों मा वा होली नार।
मायान लुपटाणे जिकुड़ी वीं की,
शर्त मा जनी होन्दी माखी!
घर बार भूले बीरुवा भूले संगसार।
तब एक दिन वै सुपिनो ह्वै गये-
सुपिना मा अपणो बुबा देखे वैन-
चचड़ैक बैठे वीरु, भिबड़ेक बैठे।
मैं जान्दू गया जसी राणी,
मैंकू बणाऊं कलेऊ, गाड वस्तर मेरा।
तेरी माया मेरा दगड़ी ईश्वर की-सी छाँया।
मैना दुय्येक मा घर औलो,
आँगड़ी टालखी त्वैक लौंलो
रोन्दी दणमण तब जसी नारी,
तुम होला स्वामी मेरा सिर का छतर,
गला की माला होला, स्वाग की बेन्दी!
छुड़ाये भण्डारीन वीं की अंग्वाल,
तब भण्डारी गया गैगे।
रातू की सेन्दी नी जसी तब, दिनू कू खांदी नी।
लांदी नी वा पैरेन्दी नी च,
वीं क तैं बस सोच एक ही होई च।
मैंलो ह्वैगे घुमैलो रूप वीं को,
फूल नी अलसै वा, घूल जसी ह्वैगे।
सासू छै वीं की पùावती,
व्वारी देखी वीं की आँखी होंदी छई लाल,
ईन करे मेरा नौना पर जाप,
बै का नौ अब बै नी बोदो,
पूत पालीक होई ब्वारी भौंदो।
दांत किटकारी सासू काल-सी भिटगदी।
भ्वाँ तड़गे तमानो नी च ईं को,
अभागी राँड की जाई या,
पाणी तक को स्वारी नी भरोसो जैंको।
- - - - - - - - - -
हलकदी ढलकदी तब एक दिन जसी,
पाणी पंद्यारा पैटे।
लोसेन्दी घाघुरी पैरी वींन, सूवा-पंखी धरे।
हिंवालू मा नन्दा जसी गागर लीक पाणीक गैगे।
पैटीन दीदी भुली चौदिशा बिटा
बीच मा चलदी जसी गैणी जनो।
दगड़ा दगड़याणी घर ऐन वर,
जसी पंद्यारा नहेन्दी च धोयेन्दी खूब कैकी।
तब हेरदे वा छैलुड़ी वा पाणी मांग,
दुई छैल देखीक वा चौदिशा नजर लांदी।
जसी / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
झपन्याली डाली का छैल देखे वींन,
पदमू रौत छौ बैठ्यूँ जख मांज।
नजीक जांदी जसी, सेवा लगौन्दो
मुल-मुल हैसदो पदमू रौत।
मुख मोड़ी जसीन, शरमैंन आंखी,
गोरी गल्वाड़ी वीं की भरेन ज्वानी का ल्वेन।
देखदो रै गए पदमू वीं रूप की जोत,
जसीन हात पकड़ीक वो भ्वां बैठाये।
पदमू सणी जनू सेयां मा होश आये,
काख गाडे वेन वा, धौंपेली मलासे,
वखी मू फुल्याँ वण का फूलून
वा डांडू की आछरी जनी सजाये।
दीदी की छुई लगीन दीदी का नौनों की,
मैत खबर सार सुणाई, सैसर की भी।
तब भेना का खुटो मा सेवा लैक,
घर को पयाणो, तैन कैले।
चौक का छोड़ जब जसी आये,
चट नजर रौल की लैंगे,
ब्वारी की देखे वींन फूलू भरी स्यूंद पाटी,
सासू की जिकुड़ी जनी किरमोलीन काटी।
सुबेरी बिटी तू पद्यारा रै बेगणी,
दुनिया दुखैण्णी तू ब्वारी क्यूं च।
एतरीं बगत तू क्या करदी रई,
बुवा छौं आयों तेरो वख या बई,
भाई छौ आयों या मामा तेरो?
ना बोला सासु जी तु यनी बात,
दिन की न बणावा यनी रात।
विराणा बैख वै-बाबु का सामान।
पदमू रौत होन्द मेरो भेना,
पंद्यारा मिले वो बीच बाट
दिदी की खूश खबर पूछे मैंन।
ना लावा ठणा मैं विष खोलों,
गंगा फाल द्यूलो, अबि मरी जौलों।
सासू बुडड़ी छै बुवारी की बैरी,
वींन ब्वारी को मुख गबदाये-
लबार, पातर छै तू दारी,
बार पार लैक मेरा नौना बमौन्दी।
ढाटी जिकुड़ो तेरी बाघ खालो,
दाग लगेक ज्वानी पर यख आई केक?
देख त्वै आज मैं ज्यूंदा न छोड़ों।
बुडड़ीन तब कटार मारे, खून की धार बगे।
धार की गेंडकी सी रूड़े जसी,
निमो का बग्वान दिने धोली।
- - - - - - - - -
भण्डारी तब सुपिनो ह्वै गए बुरो,
बाटा लग्यूं छौ वो घर पौंछीगे।
इथैं देखद उथैं जसी भैर नी आई।
तब भट्यांद भण्डज्ञरी वीरूवा-
भैर औदू, भैर जसी मेरी राणी।
बाटा को थक्यूं छौं, घाम को सुक्यू,
गंगा जी को सेलो पाणी दी जा।
भैर आये तब जिया वेकी पùावती,
मुख झोसो छौ पड़यूं वींका मोसो
पूछद तब भण्डारी, वैं जसी का च?
आँख्यों मा जिया का रात पड़ी गए।
न ले मेरा वीं पातर को नऊँ,
पदमू रौत आई छौ वीं को भेना,
पाणी पंद्यारा वा पाप करीक आए।
अपणा पापन बेटा, वींन मौत अपणी अफी बुलाए।
हकदक रै गए भण्डारी भारी-
हा, त्वैन मेरी जोड़ी को मलेऊ फँट्याए?
कख जैक पौणा मैन जसी जसी नार?
तब रोन्दू बबरान्दू भण्डारी जांदू निमौं का बग्वान।
वींकी पिंगूली मुखुड़ी देखद, कौडी सरीं दाँतुड़ी।
हा, जसी तू मैं छोड़ी कै का घर गई?
कै देवन हरे तेरी या अल्हर ज्वानी।
फफड़ँद छ वीरूवा लफरांद छ,
कना कना कारणा कर्द।
अंग्बाल मारीक वीं बेहोश ह्वै जाँद।
तब वैका सुपिना मा औन्दन मादेव पारबती।
धीरज धरौन्दन, जतन करौन्दन।
तब वीरूवा गंगाजल को लगोंद छीटो,
सते होली तू दुयो की जाई, एक की जोई,
त उठी जा सैयाँ की चार।
जु त्वैन नी करे हो पाप, मन रै हो साफ,
जु कैक खोटी नी बोली, पराई नी ताकी होली,
त तू खड़ी होई जा जसी मेरी नार,
बिंजी जा बिंजी, हे सेयाँ की चार।
प्रभु की माया देखा-सतियों को सत-
जसी कबलाण लैगे, आँख्योंन टपराण लैगे,
बीरु न वा साँका लैले, हरचीं जनी पैले।
भानु भौंपेलो / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
हिंडवाणी कोट मा रन्दो छयो हंसा हिंडवाण,
वो त होलो अनमातो धनमातो
जैकी बार छन तिवारी, बत्तीस नीमदरी,
मट्टी जसो अन्न होलो, ढुंग्यों जसो धन,
बार छन बेटा जैका, अठार छन नाती।
तब हिण्डवाणी कोट मा पड़े, बार बरस को अकाल,
देखा बड़ा पेड़ा, न लायान भूक,
छोटा न पड्यान दूख।
हिण्डवाणी कोट मा, कनी तराइ मचीगे,
रोन्दा छन, बराँदा भूखन नौना,
देखी-देखीक, जिकुड़ी चिरेन्दी।
बत्तीसू कुटूम तैकू, भूखन चचलाण लैगे,
बड़ो आदमी छयो, हंसा हिण्डवाण,
वैकू शरम ऐगे, अपणा आँसू पीगे।
कै मू अपणी, विपता कया लाण,
कै मू मैंन अब, मांगणक जाण?
विता का दिनू, अपणा भी होंदा पराया।
गाडे़ वैन तब, खोड की लगोठी,
मिठो जैर डाली, दिने बत्तीस कुटुम।
तब बत्तीसों कुटुम, वैको स्वर्गवास ह्वैगे,
अफू भी ढकी गै राजा, तिवारी का अडासा।
वे को बैटा भानू, मामाकोट छयो जायँ
तब लौटी आये, हिण्डवाणी कोट मा,
सूनो चौक देखे वैन, सूनकार तिवारी,
घूमद ऊं बार तिवारियों, बाईस निमदारियों,
तब देखीन वैन, अपणू बत्तीसों कुटम
जागू जागू मू मरियूं।
तब चाखुड़ी सी रीटदो, भानू भौपेलो,
रौंदू छ बराँदू, कपाल फोड़ी-फोड़ी।
कै मा नी सुणाँद, बदनामी की डर,
लोक बोलला, रजा की कुटमदारी, भूखन मरी गए।
शरम को मारो छौ वो, विपता को हारो,
बत्तीस कुटम को वैन, एकू भारो लगाये,
तब लीगे ऊं रवि-छाला मुंग।
चिता बणाई वैन, अपणी जिकुड़ी
सल मा जगदी देखे फूकेन्दी।
तब चिता कों राखो लीक, भानु भौपेलो,
ऐगे हिण्डवाणी कोट माँग!
सूनी तिवारी वै, तब खाण औन्दीन,
तब बोल्द वो, भानू भौंपेलो:
मैंन यख रैक, क्या त करण?
तब उतान्याँ वैन, राजों का कपड़ा,
बणाये मालू की झगली, मालू की टोपली,
छोड़याली तब वैन, हिण्डवाणी कोट।
तब राजपाट छोड़ीक, शैरू शैरू घूमद,
एक शैर छोड़ी राजा, दूसरा शैर जान्द
दूसरा शेर छोड़ी, तीसरा चौथा शेर जान्द।
छठा शेर मा जाँद, कालूनी कोट मा,
कालूनी कोट मा, रन्दो छयो सजू कलूनी।
तब सजु कलूनी मा, भानू जदेऊ लगौद,
रजा तेरी बलया जौलू, मैं छऊँ गरीब छोरा,
गरीब छोरा छऊँ, मैं नौकर धन्याल।
छारा, नौकर धरलू, तिन तनखा क्या लेण?
गरीब छोरा छऊँ, रोटी दियान कपड़ा।
तउ सोचदू सजू, अछू नौकर मिले,
त्वई लैख काम, डाँडू की मरूडी हमारी,
डाँडों की करूड़ी, घास काटण की नौकरी।
तब फेंक्याले वैन, मालू की झूली टोपली,
सजून दिन्या, फट्यां-पुराणा बस्तर।
तब सामल पांजायाले, बतैले डाँडा को बाटो,
वे डाँडा मरूड़ी बैठा, घास काटण।
तब भानु भौपेलो गैगे, वीं डाँडा मरोड़ी,
सजू कलूनी की छई, एक नोनी अमरावती,
नोनी अमरावती, छई सुघर तरुणी।
वींन देखे, छोरा एक औन्द, तब बोदे:
मैंन पैले बोल्याले, छोरा आँगण छूत न करी।
मैं तेरा ब्वई बुवान, नौकर भेजेऊँ,
ई डाँडा मरूड़ी, मैन घास काटण।
तू अबी लोटी जा, धसेर छोरा,
यख मर्द का नौं, माखो नी औन्दी।
वा ज्यों-ज्यों ना करदी, छोरा अगाड़ी औन्दो,
तब अमरावती, भौत गुस्सा ऐगे;
न औ न औ छोरा, मैं आज
चाँदू बेन्दू बेलों मू, तेरी श्किार खेलौण।
वा ज्यों-ज्यों ना करदी, छोरा अगाड़ी औन्दो-
कैको होलो यो, निरभागी छोरा,
कै अभागी माँ की, होली कोख सूनी?
तब चढ़े वीं, सिंहणी को रोष-
खोल्या वींन, चाँदू बेन्दू बेला।
लम्बा-लम्बा सिंग छा ऊँका, बड़ा बड़ा आँखा,
पड़ी गेन वो, वैकी धाद।
दौड़दो छ दौड़दो छोरा, विपता को मारो,
तब एक बिरछ, मारदो अंग्वाल।
इना छया, चाँदू बेन्दू बेला-
वै बिरछ सणी, जड़ उखाड़ कर्ण लैग्या।
तब छोरा तै चढ़ी, छैत्री को जोश,
सची होलू मैं हिंडवाण वंश को जायो,
एक ही मुठीन चाँदू बेन्दू फोत होई जान।
तब एक एक, मुठ्यों मा ही
वैन चाँदू बेन्दू, चित्त करीया लौन।
हकदक रैगे तब, अमरावती रौतेली,
यो छोरा होलू, मालू मा को माल।
तब पूछदी वा, नौं गौं छोरा को,
हे छोरी मैं छऊँ, हिंडवाणी कोट को रौतेलो,
हंसा हिण्डवाड को बेटा, छऊँ मैं भानु भौपेलो।
किस्मत को मारो छऊँ, बिता को हारो,
आज बण्यू छऊँ, तेरो घास काटदारो।
तब बोदे राणी अमरावती-
राजों कू रोतूलू होलू तू, पर मैं
भानु भौंपेलो / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
अपणा कूड़ा भितर, त्वै जगा नी देऊँ, त्वै जगा नी देऊँ।
मैं मर्द को, मुख नी देखदू,
वैको छैल भी, धोरा नी पड़ण देन्दू।
पर फेर वींन, पैरु से सिर तक न्याले,
माल का शेर जना मोछ छा
डवराली डीठ, गजभर की पीठ, कंकर्यालो माथो।
तब अमरावती नौनी, मोहित ह्वै गए-
पकड़ीले छोरा की पाखुड़ी, लीगे सुतरी पलंग
हे छोरा तू कुछ, खेल-बोल भी जाणदी?
तब गाड़े वींन, हस्तिदन्त पाँसो,
खेलण लैग्या दुये, वीं डाँडा मरुड़ी।
तब ऊँकी आँख्यों से, मिलीन आँखी,
दिल से दिल, जुड़ी गैन।
तब एक ह्वै गैन वो, जना धरती अगास,
ऊँका पराणू मा, प्रीत समाये।
कख छयो, घास काटणो,
दिन भर छोरा, अमरावती का सात, मौज मा रन्दो।
फूलू सीं हैंसदा छन दुये,
पंच्छियों-सी बोलदा छन।
मोस-सी नाचदा छन, वो बणू-बणू माँज।
तब और छानी वालौंन, चुगली खाई-
ब्याले छोरा, भूत जनो आये,
आज रजा की नौनी दगड़े, खेल-बोल कर्द।
तौन लिखी घणी कागली, भेजे कालूनी कोट,
हे सजू कलूनी, तिन अपणी नौनी दगड़े
यो नौकर भेजे कि जार?
सज कलूनी तब भौत गुस्सा ऐगे,
नौनी अमरावती माँगी होली,
ग्वाड़छोड़ का रजा, गुरू ज्ञानचन्द की।
तब लेखदो राजा तरवारी सवाल, करड़ा बयान-
हे राजा ज्ञानचन्द, छोटी बेटी बाप भौंदी,
ठुली बेटी आप भौंदी।
मेरी बेटी लिजालू त, तुरन्त ली जाई,
पिछाड़ी तू वीं का, भराँस न रई।
गुरू ज्ञानचन्द, गुस्सा ऐगे भौत-
कैको आई होलो, रूठो ऊठो काल?
जैन हमारी यांद रखणी चाये।
राजान हात्योंन का, हलका पैटाया,
पैटेले रैदल -सैदल।
कना पैटीन, रण का हत्यार,
पैटी गए गुरू ज्ञानचन्द की फौजी बरात।
कालूनी कोट मा, ग्वीराल सी फूलीगे,
शेर मा जगा नी होंदी, जंगलू डेरा पड्याँ,
लेखी कागूली वीं डाँडा मरोड़ी सजू कलूनींन,
हे बेटी अमरा, घर आई जान।
तेरी होली गरै की शान्ती।
स्वामी, आज जौलू, भोल यखी औलू।
तब जाँदी अमरावती, कलूनी कोट मा,
कलूनी कोट मा, ग्वीराल फूल्यूँ छ
पिता जी का शेर मा, क्या तमाशो होल?
पौंछी गए अमरा, पिता का भौन-
पितान वीं का, ब्यौ की बात नो सुणाई।
राजा बेटी की, नहोणी धुवेणी करौन्द
अनमन भाँति का, बस्तर पैरोंद।
घर से भैर वीं जाण नी देन्दो।
भानू भौपेलो डाँडा मरोड़ी भैंसी चुगौन्दू,
होई गए जब श्यामली बगत,
वैन देखे, अमरा नी आई।
प्रेम की डोरीन बँध्यूँ छयो,
रौड़दो-दौड़दो, कालूनी कोट चली आये।
तब खोलीवालो बोद, भितर जाण को हुकम नी च।
माई मरदान को वेला, इथैं देखद उथैं,
देखे वैन राणी अमरावती, पूरब की मोरी!
फेंके दुपटा तब अमरा न, भौंपेलो भीतर गाड़े।
औन्दी तबारी राणी की माता, भोजन लौंदी,
तब देखदी भानु भौंपला, तब बोदी-
हट छोरी, त्वैन कनो छोरा यों मराये,
भैर तेरी बरात आई छ,
यतनों मा येकी सगून नी पूगणो।
तब बोदी राणी अमरावती:
हे जिया, तौं माचदू क बोल, चली जावा।
भानु मेरो कलेजी को भेंडू, जिकुड़ी को साल।
हे छोरी अमरा, त्वैन कनो छोरा मराये?
हे छोरा, अमरा का फरपंचू कतै न पड़,
भैर वीं की बरात आई छ।
हाथ्यों का हलका होला, घोड़ो का मलका।
मैंन मरण जिऊण अमरा मेरी छ:
डाँडा मरुड़ी हमून फेरा फेरयालीन।
हे सासु, तुम छन माता का समान,
न छीना अपणी, नौनी को सुहाग।
हे सासु, इनी बुद्धि बतावा,
जाँ से तुमारी बेटी, बैरी न लिजै सको।
हे बेटा, सते छई तू जु राजू अंगस
तू रागसाड़ी राज से, मांकाली घोड़ो जीती लौलो।
तब मैं अपणी बेटी अमरावती
त्वै दगड़े बेवोलो।
आज मैं वीं, सैसर भेजलो,
भोल वापीस बुलै दिओलो।
हे सासु परसे, तब तेरी बेटी
दोघर्या होई जाली।
जाणक मैं जौलू वख, पर बतौ तू
कथा दिन जाणका छन कथा औण का।
बार बर्स जाण का छन, बार बर्स औण का।
चौबीस बरस मा, अमरा बुधर्या ह्वै जाली।
जु त्वै पर छेतरी हंकार त
चौबीस बरस तक का वचन लीले।
एक धज तोड़ी मैं बामण दिऊलो,
गुरु ज्ञानचन्द का सात अजुड़दो करै द्यूलो।
चौबीस बर्स तक अमरा तेरी बाँद छ।
वचन मांग्याल्या वैन, धरम दियाले,
सजाई वैन अपणी घोड़ी, होई गए सवार
मारी घोड़ी पर वैन, निगर कुलड़ा,
तब उड़ी घोड़ी पवन का समान,
उडी माल बाँज सी पतेलो,
नी समझी वैन, उतारी को बथौं
नी समझी वैन, उकाली को धाम।
मेरो माल सास नी ससदो,
थूक नी घूटदो, ढाँव नी रुकदो।
तब जाँद वो, तीसरा रोज-
भानु भौंपेलो / भाग 3 / गढ़वाली लोक-गाथा
बार बरस को बाटो, तीन रोज मा काटदो।
तख छयो वो माँकाली घोड़ो
रागसी घोड़ौं की पंगत बँधी छई।
मांकाली घोड़ो मरा सगन्ध सूंगद,
हे छोरा, कै राज को छई?
कै बैरीन भरमाए, घर की नारीन सन्ताये।
हे मांकाली घोड़ा, मैं कू मदत दियाल,
मैं पर चढ़ीं छ, गुरु ज्ञानचन्द की सेना,
त्वै द्योलों, सोवन की जीण,
त्वै द्योसों, काँसी का घूँघर।
आज घोड़ा तिन भाई होण।
तेरा बाबू दादान मैं जांती नी सक्यो,
तू कखन मैं जीतण आई?
घोढ़ो निकालद, हात-हात की जीभ,
बैत -बेत का दाँत।
तब गाड़े भानू भौंपेलान, बेतुना की छड़ी,
साधण लै गए माँकाली घोड़ो।
मारी मछुली उलार,
ओ जै लग वीं काली बादुली।
कनो रैगे नौ दिन, नौ राती अगास मा।
एक वेत टूटे, हैको निकाले मालन,
घोड़ा पर पसीना ऐगे, नीला दाग पड़ी गैन।
ये घोड़ा मैं बिना मान्याँ नी छोंड़ौं,
मैं छऊँ हिण्डवाणी वंश को जायो।
तब बोलदू मांकाली घोड़ो-
अफू जौलूँ अस्वार, अब पाये मैंन।
पृथी मा ऐगे तब, घोड़ो मांकाली।
हे घोड़ा तिन, सच्चो भाई होण,
दुश्मनू की फौज मारी देण।
तब राजी ह्वैगे मांकाली घोड़ी,
कालूनी कोट मा जाण कू तैं।
ज्ञानीचन्द की बरात अड़ी छै-
तुम्हारा शैर मा नी जूड़दत,
हम अपणा शैर मा जुड़ौला।
लड़ी-झगड़ीक ऊन तेरां रोज,
लाडी अमरावती, वेदी मा गाडयाले।
आम जसी दाणी छै, दिवा जसी जोत,
पूनो जसी चाँद बाँदू मा की बाँद।
मैन पैले बोल्याले ज्ञानचन्द, मैं न छुई:
मैं राणी छऊँ, भानु भौंपेला की।
छै मैंना की माँगी छै, कना बैन वोदे।
मैंन पैले बोल्याले ज्ञानचन्द, मैं न छुईं,
लम्बी-लम्बी टाँगी तेरी मड़ोई तोड़ला।
बेदी का अग्वाड़ी पिछाड़ी, डाले वींन बरछ्यों को घेर,
कै भी अमरा भितर नी औण देंदी।
तब उड़ी औंद मांकाली घोड़ो भानू लीक,
मारदू भानु भौंपेलो, घोड़ी पर चाबुक
मारयाले वीन माछी-सी उछाट।
तब का जायान क्या होण,
जब ज्ञानचन्द दगड़े, मेरी राणी फेरो फेन्याली।
झटपट-मा छयो घोड़ो सरपठ चलणू
अफू तैं समाली नीं सक्यों-
पड़ी गये वो बरछियों का घेरा मा।
चुभीत बरछी जिकुडी मा,
भानु भौंपेलो स्वर्गवास होये।
वैको छौ हिरक्यालो पराणी,
जिन्दगी ज्यान ह्वै, तरुणैं को विणास।
वैकी मिट्टी दुश्मनू कामणे रैगे,
रोंदी बराँदी तब अमरावती
कनो देव मैं कू तैं रूठे?
तब मलासदी वै सेयों मुखड़ी वीं का माता-
हे बेटा, मेरो कसूर नीं,
विधाता की लेखी मेटो नी सकेंदी!
जाँद तब विधाता चित्रगुप्त पवन रेखा
जख होला पंचनाम देव, पांच पाण्डव,
मामी पार्वती होली जख
तैको पौन विधाता की सभा जाँदो!
हे मेरा विधाता मौत सबू की होंदी,
पर मेरी मिट्टी दुश्मन का सामणे रैगे!
तब भगवान विष्णु दया औंदी,
पाँच पाण्डव पौणा पैट्या,
कुन्दी दुरपती मंगल्वैन पैटी
ऐ गैन देवता कालूनी कोट।
भानु भौंपेला मा ऊँन शरील धन्याले,
तब वो जीतू होइगे,
इनी जीती होयान सुणदी सभाई।
तब माल घोड़ी मांकाला मांकली चढ़ीगे,
पकड़े पट पाखुड़ी वैने अमरावती की,
ऐंच चाड्याले!
घोड़ा मू मंडल वैन वो दल-बदल,
बैरी को मालन, तब एक नी रखे,
मान्या गए सजू कालूनी भी!
तब सासु औन्दी वेका पास-
अपणो भलो करे, मेरो करे बुरो!
अपणी जोड़ी बाँधे, मेरी जोड़ी मारे!
सासू जी बेटा दीक बेटा छऊँ
मन्याँ को क्वी नी, बच्याँ की दुनिया!
तब सजीगे अमरावती को, औलासरी डोला,
राजा की सजी जेबर पालंकी!
बाज्या ढोल दमौंरूं गायेन्दा माँगल,
चार दिन पुरुषू को नाम,
मालू का पवाड़ा रै गैन।
गढ़ू सुम्याल (सुमरियाल) / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
खिमासारी हाट रन्दो, गढ़ू स्यो सुमन्याल,
मालू मा को माल होलो, वो सुमन्याल!
तरवर्यिा माल होलू, गढ़ू त सुमन्याल!
जैका बाबू दादान, तरवार मारे,
वेको बेटा भी, तरवार मारी लालो!
खिमासारी हाट मा, पड़े धुरमी अकाल,
तड़की तड़फी मरीन, लोक उखड़-सा माछा,
जागू-जागू पड़ीन, डाला का-सा गेंडा!
स्वागीण रांड ह्वैन, कोली का मरीन बाला,
ज्वाती नी भुंचा कैन, जिन्दगीनी भोगी!
तड़ी-तपड़ीकरीं, कमाई सब खाई याले,
भूख मरण लैगे, गढ़ू सुमन्याल-
चल मेरी जिया, लीला देई,
आरुणी जंगल जौला, जड़ी-बूटी खौला!
माता लीक तब गढ़ू, माल ऐगे आरुणी जंगल,
जिया लीला देईतब, बोलण लै गए:
कनो कलोबलो वण छ, देखदौं मेरा गढू़,
सुणदौ, दीपीकोट मा रन्दो, तुमारो बड़ा दीपू,
तू लीजा वख, मेरी नौ लाख हँसुली,
अपणा बड़ा मुँगै, भैंसी लीओ मोल!
आरुणी जंगल मा, दूध पर दिन बितौला!
तिन ठीक बोले मेरी जिया,
धरे गढू़ मालन, नौ लाख हँसुली,
जाई लगै ते, दीपीकोट मा!
ओ मेरी जदेऊ मान्यान, तुम मेरा बड़ा जी
खिमासारी हाट मा, पड़ीगे अकाल!
मेरी जियान दिने, या नौ लाख हँसुली,
तुम देवा बड़ा जी, मैं भैंसी दुधाल!
दीपू बडान तब, गढू़ की आदर करे खातर
पकाये मालक, निरपाणी की खीर।
सुतपुल्या घीऊ दिने, पौंडल्या दई,
खिलाये-पिलाये वैन, गढू़ सुमन्याल!
तब दीपून मन्सूबा ठाणो, मन्त्र किराये,
बुलाया तब वैन, वैका सात लड़ीक,
हे मेरा बेटों, ये मारी द्यान,
नितर येई छुटेड़, भैंस क्वी द्यान!
बाटा लैग्या स्ये, दीपू का साती सपूत,
तब बोलदू दीपू, जा मेरा गढ़ू़ माल,
डाँडा मरुढ़ो होली, लैंदी भैंसी!
तब अगाड़ी फुल्डू, बाटा लगे गढ़ू माल,
साती भायों का मन मा, कपट सूझीगे!
गाडीन साती, गंगलोड़ी हात,
पर विधाता की, माया देखा,
तब गढ़ू सुमन्याल की, भुजा नलकदाब,
आँखी फफराँदी, तब वा वैकी!
क्या जी होई होलो, यो सगुन,
तब घूमीक पिछाड़े, देखद गढ़ू सुमन्याल!
भलू करे भायों, तुमून मैं नी मारयों,
तुम साती भाई मेरा, कौजाड़ा मुंगक नी छा!
तब चली गैन, वीं डाँडा मरोड़ी,
दिखाए साती भयोंन भैंसी एक छुटेड़!
या च मेरा दिदा, भैंसी दुधाल,
सात पथा सबेर देंदी या, सात पथा साँज!
उठै गढ़ू मालन, भैंसी कखरियाली धरीले,
रौंड़दों-दौड़दो, आरुणी जंगल ऐगे,
ले मेरी जिया, तेरा जिठाणा को दिन्यूँ भैंसो।
तब कायरी होन्दी, जिया लीला दे,
छोड़ दी पथेणा नेतर।
इना भैंसा मा गै, मेरी नौ लाख हँसुली,
सती होली मैं, आपणी माता की जाई,
सते होला जु, पंचनाम देवता
त ई भैंसी पर, दूद आई जान!
तब आरुणी जंगल वा, जड़ी खलौंदी बूटी,
भैंसी पर दूध, पैदा ह्वैगे!
गढ़ू माल तब, चैन की निन्द सेंद,
भैंसी चरोंद, दूद घुटक पेंद!
आरुणी जंगल होलू, भलो रौंत्यालु,
डाँडी -काँठी जनी, मन मोहदी।
गढ़ू सुमन्याल होलू, उलान्या मुरल्या,
मुरली त होली वैकी, जनी जादून भरी!
तै जंगल मा रन्दी छई, सुरमा एक रौतेली,
रोज मोहन मुरली सुणदी,
मन मा मन्सूबा गणदी-
इनी तैकी मुरली, अफू कनो होलू?
तब वींको चित्त, ह्वैगे चंचल, मन ह्वैगे उदास,
दीदी भुल्यों मा, कना वैन बोदी:
जावा दीदी भुल्यों, तुम घर जावा,
मेरी माँ मु बोल्यान, सुरमा बाघन खैयाले।
जावा मेरी दगड्याण्यों, तुम घर जावा,
मेरी माँ मु बोल्यान, सुरमा भेल पड़गे।
जावा मेरी जोड़ी सौंजड्यों, मैत जावा,
मेरी मां मु बोल्यान, सुरमा गाड बगगे।
बाबरो ह्वैगे पराण, मुरल्या की खोज पैठीगे,
मरणू होई जान, मैन मुरल्याक जाणा।
गढ़ू माल होलू, तानियो मा को तानी,
सुरमा देखीक, मुरली छिणै देन्द।
नौ दिन नौं रात, ह्वैगीन मुरल्या की खोज,
पर रौतेलीन, कखी मुरल्या नी पायो।
दसवाँ रोज देखेणे, गढू स्यो सुमन्याल,
काँठा मा को-सी सुरीज, शेर को-सी बच्चा।
ढकुली ढवौन्दी सुरमा, माथो नवौंदी:
मैं तुमारी राणी छौं प्रभु, तुम मेरा पराणी!
लीगे तब गढू वीं तै, जीया का पास
गढ़ू सुम्याल (सुमरियाल) / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
ले मेरी जिया, मैं राणी आज लायूँ,
आरुणी जंगल, जड़ी खाली बूटी,
घास काटीक लाली, भैंसी मेरी चराली,
तेरी सेवा करली माता, ब्वारी तेरी सुरमा!
तबरी बिटैने तौंकी, होणी-खाणी ह्वैगे-
गढ़ू सुमन्याल, चैन की मुरली बजौन्द!
अन्न का भण्डार ह्वैन, ऊँका धन का कोठारा,
तौंक तई तै, आरुणी जंगल मा ही, सोनों बरखे!
तब सूणीयाले दीपू बडान, तौंकी होणी खाणी,
ऐ दिन वैन, हात धरे लाठी,
रोन्दो-बरांदो तब, आइ गए आरुणी जंगल।
जदेऊ पाँछो मेरा, बड़ा जी जेटा पाठा।
आशीष मेरा बेटा, गढू माल!
नी रये क्वी-कत, बेटा हमारा वंश मा।
बार बरस को मामलो, ऐला तैला सलाण रैगे।
तेरा बाबून तरवार मारे, तू तरवार मारलो,
तू होलू बेटा छेतरी बंगल, हमारू अंगस!
तिन जाणा बेटा, तैला मैला सलाण,
मामलो उगै लौण।
तब जिया लीलादेई, इना बैन बोदी:
जि जााू बेटा, तै सलाण बैरियों का,
नि जाण गढू, काल का डिस्याण।
तौं सलाण्योंन, तेरो बाबू मारे,
तू होलू गढ़ मेरो, एकलो एकून्त!
हे जिया, सचू होलू मैं, ई बाबू को बेटा,
सलाण साथीक लौलू, बैरी बाँधीक!
पैरीने वैन अपणी, ऐड़ी हत्यारी-
सुरमा रौतेली, पथेणा नेतर छोड़ दे:
कना जाला स्वामी, विराणा विदेश,
आरुणी वण मा हम, आनन्द रौला।
आज जाणू छौं सुरमा, भोल औलू बौड़ी,
कायरो नी करणो, तिन ज्यू अपणो!
जाणक जावा स्वामी, एक बात मेरी ली जावा,
एकुला न चल्या बाट, विराणी न बैठ्याँ खाट।
प्रफूल ह्वैक दीपू, गैगे अपणा दीपू कोट।
गढू बैठे अपणी, भँवरपंख घोड़ी,
सलाण मा तब, खबर या पौंछीगे-
जेको बाबू हम लोग न मारे,
वैको बेटा यख पौंछीगे!
तब खोदीयाले तौन, सौ जरीब खाड
बख मा पलंग बिछैगे, पलंग मा चदर।
सलाण का लोक तब, कठा होई गैन,
औ ज्वान ज्वान छोरी, स्यूँद गाडदी
अब आयो हमारो पदान!
तौं लोगून बड़ो, सतभौ दिखाए,
लाई ऐन तब बै, पलंग मा बैठौणा।
याद आये तब गढू, सुरमा की बोलीं-
पलंग मारी वेन, बेत की चोट,
चदर उन्दू लैगे, खाड देखेण गैरी।
भली मैमानी करी, तुमन मेरी भायों,
तुमारो ऐसा न, कबी न भूलूँ।
कनो होये माल, घोड़ी असवार
छौलो-बुक छौलो, ह्वैगे घोड़ी-
कला-सी कच्यैन वैन, गाबा सी काटीन!
साधीयाले तैन, स्यो सलाण,
मामलो उगाई याले!
गज करो, मुण्ड करो, स्यूँदी सुप्पो लगैले।
खिमासारी तब, पैटीगे माल,
घर मू दीप न मदों, मन्सूबा ठाण्याल्या,
गढू़ न मरी जाण, सुरमा मैन अपणा नौनाक ल्यौण।
तब वो सुरमा का मामों, एक खाल रुप्या देन्द,
सुरमा रौतेली, बुलैले मामाकोट।
दीपीकोट बिटी ह्वैन बरात की त्यारी
सुरमा की माम्योंन, देखे सुरमा रूपवन्ती,
तीन जाणी नी, ना पछाणी, सोचे-
या हैकी सौत आई, कखन काल हमारी।
अनजाणा मा तौन, बीं विष खेलैले,
सुरमा अंगुडी छई, पघुण्डी ढलीगे।
दीपून धरयाले तब, वा डोला पर,
पर विधाता की लेख, इनी होंदी-
रस्ता मा गढू़ माल, खाणा छौ पकौणू।
सुरमा रौतेली की, तब आँखी खुलीन,
रोन्दी छ तुड़ादी तब, वा चाखुड़ी सी बराँदी।
मैं छऊँ सुरमा राणी, गढ़ू माल की,
कु छ मैं सणी, डोला पर लिआणू।
डोला से नजर लगे, माल का रस्वाड़ा,
भादों जसो बेला छयो, मगन पड्यूँ,
डेड हात पीठ छई, डेड हात छाती।
होलू त सी होलू मेरो, स्वामी प्यारो।
फेंकदी तब गारा, सुरमा रस्वाड़ा मा,
टपराँदो तब गढ़ू सुमन्याल-
अला कैको आये यो काल,
कैन मेरा रस्वाड़ो पथराये।
डोला से देखे वैन, हात अगाड़ी बढ़द,
उंडो देखे वैन फुंडो, रौड़दो छ दौड़दो।
गढू़ माल, डोला मु जाँदो,
सुरमा रौतेली माथो नवौंदी-
मैं छऊँ स्वामी, विपता की मारी,
किस्मत की हारी, छऊँ तुमारी नारी।
दुश्मनुन जैर खलै, मैं बेहोश होयूँ,
तुमारा बड़ा जीने, या कुदरत कराये।
गढ़ू माल चढ़े, छेतरी को रोष,
तैकी छाती का, बाल बवरैन!
ओंठ बबलैन वैका, भुजा फफड़ैन
आँख्यों मा वैका लोइ सरे,
दीपू बडान, यो क्या त करे?
मारीन तब बैन, दीपू का साती लड़ीक,
दी बड़ा भी दगड़े, स्वर्ग पौंछाए!
तब दीपीकोट मा वैन
कोटू बोणो कर याले!
बैरी को एक नी रखे,
रीझाना को-सी शेष।
तब सुरमा लोक, गूढ़ू सुन्याल,
खिमासारी ऐगे,
माता न बोलो भेंटें,
ब्वारीन सासू का पैर छुयाँ,
खिमासारी कोट मा, बजे आनन्द बढ़
मर्द मरी गैन, बोल रई गैन,
मर्दू का पँवाढ़ा, गाया गैन!
कालू भण्डारी / गढ़वाली लोक-गाथा
होलो कालू भण्डारी मालू मा को माल,
अन्न का कौठारा छा वैका, वसती का भण्डारा।
गाडू घटड़े छई, धारू मरूड़े,
धनमातो छौ, अनमातो,
जोवनमातो छौ कालू स्यो भण्डारी।
कालू भण्डारी छौ जब सोल बरस को,
आदी रात मा तैं सुपिनो होयो,
सुपिना मा देखे बैन स्या ध्यानमाला,
देखे वैन वरफानी काँठो
बरफानी कांठा देखे ध्यानमाला को डेरो।
चाँदी की सेज देखे, सेना का फूल,
आग जसो आँख देखी, दिया जसी जोत।
वाण-सी अरेण्डी देखी, दई-सी तरेण्डो,
नौण-सी गलखी देखी, फूलू-सी कुटखी।
हिया सूरज देख, पीठी मा चन्दरमा।
मुखड़ी को हास देखे, मणियों कू परकाश,
कुमाली-सी ठाणा देखे, सोवन की लटा।
तब चचड़ैक उठै कालू, भिभड़ैक बैठे,
तब जिया बोद: क्या ह्वैलो मेरा त्वई?
आज को सुपिनो जिया, बोलणो नी औन्दो।
ना ले बेटा कालू सुपिना को बामो,
सुपिना मा बेटा, क्या नी देखेन्दो?
कख नी जायेन्दो, क्या नी खायेन्दो?
मैन ज्यूण मरण जिया हिंवाला ह्वैक औण,
तख रन्दी माता, वा बाँद ध्यानमाला।
कालू भण्डारी मोनीन मोयाले,
तब पैटी गए वो तैं नवलीगढ़।
भैर को रूखो छयो कालू भीतर को भूखो।
कथी समझाये जियान वो,
चली आये वो ध्यानमाला का गढ़।
ध्यानमाला औणी छै पाणी का पंद्यारा,
देखी औन्द कालू भण्डारीन वा,
हे मेरा परभू वा बिजली कखन छूटे हैं
सुपिना मा देखी छै जनी, तनी ही छ नौनी या-
आछरी-सी सची, सरप की-सी बची,
अर देखे ध्यानमालान कालू भण्डारी वो,
बांको ज्बान छौ वो, बुराँस को-सी फूल।
तू मेरी जिकुड़ी छै बांकी ध्यानमाला,
त्वै मा मेरो ज्यू छ।
सुपिना मा देखी तू, तब यख आयूँ,
आज तू मैसणी प्रेम की भीख दे।
तब ली गये वै तैं ध्यानमाला अपणा दगड़ा,
कुछ दिन इनी ही रैन वो गुपती रूप मा।
तब बोलदो कालू भण्डारी,
कब तैं रण रौतेली इनू लकी लूकीक।
तब ध्यानमाला का बुवा धरमदेव,
कालू भण्डारी मिलण गैगे।
सूण सूण धरमदेव,
मैं आयौं डाँड्यों टपीक, गाडू बगीक।
मैंन जिऊण मरण राजा,
तेरी नौनी ध्यानमाला ल्याण।
ऐलैन्दो बैलोन्दो तब राजा धरमदेव,
मेरा राजा मा आयाँ होला
हैका राज से पाँच भड़,
साधी लौलो ऊँ तै जु कालू भण्डारी
ब्यौवोलो त्वे ध्यानमाला।
कालू भण्डारी का जोंखा बबरैन,
वैकी छाती का बाल जजरैन।
उठाये तब्री वैन नंगी शमशीर,
चली गये हैका शैर भडू साधण।
इतना मा गंगाड़ी हाट को रूपू,
आये ध्यानमाला मांगण।
ब्यौ को दिन तब निच्छै ह्वै गये-
पकोड़ा पकीन, हल्दी रंगीन,
नवली गढ़ मा कनौ उच्छौ छाये।
कालू भण्डारी लड़दू रैये भडू का सात,
तैका कानू मा खवर नी पौंछी।
पिता की मरजी, अपणी नी छै वीं की,
करांदी छ किराँदो वा नौनी ध्यानमाला।
तब सुमिरण करदे वा कालू भण्डारी,
तेरी मेरी प्रीत दूजा जनम ताई।
किसमत फूटे मेरी विधाता,
जोडी को मलेऊ फंट्याओ।
तब दैखे वैन ध्यानमाला रोणी छै बराणी।
जाणी याले वैन होई गये कुछ खटको,
रौड़दो-दौड़दो आये माला का भौन।
हे मेरी माला, क्या सोची छयो मैन,
अर क्या करी गये दैव?
कालू भण्डारी, हे कालू भण्डारी,
मेरा पराणू को प्याो होलो कालू भण्डारी।
मेरो सब कुछ तू छ, मैं छऊँ तेरी नारी।
देखे वीन कालू भण्डारी, क्वांसी आँख्योंन,
हाथ बुरैया छा वैका, खुटा छा फुक्यां,
काडो-सी होयूं छौ वो सूखीक।
मेरा बाबा येन कतना तरास सहे?
गला लगाये वींन तब कालू भण्डारी,
मरण जिऊण मैंन येक ही जाण।
तब बोलदू कालू भण्डारी:
तेरी माया ध्यानमाला मैंकू स्वर्ग का सामल।
कु जाणी क्या हेन्द विधाता की लेख,
पर मैं औलू व्यौ का दिन,
तू मेरी माला आखरी फेरो ना फेरी।
तब वखन चलीगे वो कालू भण्डारी।
कुछ दिन बाद आये ब्वौ को दिन,
गंगाड़ीहाट मा तब बरात सजे,
ब्यौ का ढोल दमौऊँ धारू गाडू गाजीन।
नवलीगढ़ राज मा भी बजदे बड़ई,
मंगल स्नान होंदू, माला लैरेन्दी पैरेन्दी,
धार मा गँणी सी देखेदी माला।
बोलदी तब वींकी जिया मुल हैंसी,
ध्यानमाला होली राजौं का लैंख।
गंगाड़ोहाट का रूपू गंगसारा की
तब नबलीगढ़ बरात चढ़े।
मँगल पिठाई होये, षट रस भोजन।
तब व्यौ को लगन आये, फेरों की बगत,
छं फेरा फेरीन मालान, सातों नी फेरे-
मैं अपणा गुरू देखण देवा।
तबरेक ऐ गये तख साधू एक,
कालू भण्डारी छ कालू भण्डारी,
पछाणीयाले मुखड़ी वैकी मालान!
वीं की आँख्यों मा तब आस खिलीगे,
प्रफूल ह्वैगे तब वा ध्यानमाला!
मेरा गुरू जी होला तरवारी नाच का गुरू,
मैं देखणू चाँदऊँ जरा नाच आज ऊँको।
तब गुरू-साधु वेदी का धोर ऐगे,
नंगी शमशीर चमकाई वैन,
एक फरकणा फुन्डो मारी, एक मारे उन्डो
पिंडालू सी काटीन वैन, मोदड़ा सी फाड़ीन।
कुछ भागीन, कुछ मान्या गईन,
मान्या गये वो रूपू गंगसारो भी।
तब वख मू ध्यानमाला ही छुटी गये।
लौटी औन्दू तब वीं मू कालू भण्डारी-
ओ मेरी माला आज जनम सुफल होये,
अगास की जोन पाये मैंन फूलू-सी डाली।
तब जुकड़ा लेगे हाथू मा धरीले वा
आज मेरा मन की मुराद पूरी होये।
तबरे लुक्यूँ उठे रूपू को भाई
लूला गंगोला वैको नऊँ छयो
मारी दिने वैन कालू भण्डारी धोखा मा।
रोये बराये तब राणी ध्यानमाला,
भटके जनी ऊखड़ सी माछी।
मैं क तैं पायूँ सोहाग हरचे,
मैंक तैं मांगी भीख खतेण,
कनो मैंक तई दैव रूठे?
रखे दैणी जंगापर वींन कालू को सिर,
बाई जांग पर धरे वो रूपू गैगसारो।
रौंदी बरांदी चढ़े चिता ऐंच,
सती होई गये तब ध्यानमाला!
जगदेव पंवार / गढ़वाली लोक-गाथा
पंच देवों की सभा लगीं छई,
शिव जी ध्यान मा छा, देवी छई पारवती,
सभा का मुकुट तिरलोकी नारैण
तब इना बैन बोलदा:
क्वी दुनिया मा इनो वीर भी होलो
जो शीश काटीक दान देलो?
जैन शीश को दान देण,
वैन गढ़वाल को राज लेण।
बखी बैठी छई चंचु भाट की बेटी कैड़ी कंकाली।
तब बोलदा भगवान, हे कैड़ी कंकाली
दुनिया को तोल लौ दू, पृथ्वी भाऊं।
क्वी दुनिया मा शीश काटीक दान भी देलो।
तू रन्दी कंकाली मृत्यु मण्डल मा।
मैं ल्यूलो भगवान पृथी को भेद,
तब कैड़ी कंकाली मृत्यु मण्डल ओंदी।
वै मलासीगढ़ में रन्द छयो वीं को बाबा चंचु भाट,
कैड़ी कंकाली छै मलासीगढ़ को प्यारी,
मन की मयाली छैणै वा कैड़ी कंकाली,
भूकों तई खलौंदी छई, रोदौं चण्यौन्दी,
भूकों देखीक अन्न नी छै खान्दी
नंगों देखीक वस्त्र नी छै लान्दी।
मालसीगढ़ का लोक वीं तई तब-
आंख्यों मा पूजदा छया।
वखी वै गढ़ मा रन्द छयो एक बोतल भाट,
मति को होणू छयों, पेट को नीनू।
गरीब छयो भौत वो बेताल भाट,
चार नौना छया वैका,
जिकुड़ो का जना चीरा, भाग का जना कांडा।
भूख न रोंदा छा वो, वे सणी झुरोंदा
तब ककाली मू वैन अपणी विपता गाये:
हे कैड़ी कंकाली, तू होली देवी स्वरूप,
मैं छऊँ किस्मत को हारो, विपता को मारो।
मेरा होला ये चार बेटा,
तू ऊं सणी भीक मांगीक पाली दे दूँ।
जिकुड़ी क्वांसी छै कंकाली की
वींन बालीक पालणा स्वीकार करयाल्या।
मैंन जाण होलो दुनिया को भाऊ लेण,
तखी बिटी मांगीक भी लौलू यूं छोरौक।
कंकालीन तब हात धरे कमण्डल,
जोगीण को भेष बणाये, बभूत रमाए।
तब राज राज मा घूमदी कंकाली
घूमदी घूमदी ऐ गए धारा नगरी।
धारा नगरी मा रन्द छरूा जैदेव जगदेव पंवार,
जयदेव जगदेव होला पीठी जौंला भाई,
जयदेव जेठू होलू जगदेव काणसो।
जयदेव बल मा किरपण होलो।
मंगदारों देखीक जो द्वारू लगौंदो।
जगदेव मन को टुलो होलो, दिल को खुलो,
दानियों मा दानी होलो जगदेव पंवार।
कैड़ी कंकाली गै पैले जयदेव का पास,
द्वार पर जैक वींन अलख रमाई,
हे पहरदारू भीतर जैक बोला राजा मू इनो,
द्वार पर एक भिखारीन आई छ।
तब राजा जयदेव इनो कदो बूध,
सभी मुसद्यों तैं अफू जना जामा पैरोंद,
कंकाली तब वै पछाणी नी पौन्दी-
तब बोलदू वो-हे कैडी कंकाली,
हमारू राजा शिकार जायूं छ।
तब हैंसदी हैंसदी कंकाली लौटीक ओन्दी:
जनू सीखी छ तनी तुमूक होयान।
तब सूणीयाले या बात जगदेवन,
शरील उठौगे, लाज न बैठीगे।
न्यूते तब वैन वा कैडी कंकाली,
मैं मुख को मांग्यू त्वै दान द्यौंलो।
इनो दानी छयो जगदेव पँवार
दणक वेको हात नी छौ टिटगदो,
कया देऊं, कया देऊँ मन करदू छऊ।
तब एक एक करी वैन पूछौन अपणी राणी,
बोला, वीं भिखारीणो कया देण, कया देण?
कैना रुप्या बोले, कैन बोले पैसा,
कैन हाथी बोल्या, कैन बोल्या घोड़ा।
वैकी छैः राण्योंन छैः जवाब दिन्या,
सातीं राणी छई चौहान्या राणी,
राजा की छोड़ी छै वा पुंगड़ी जनी गोड़ीं,
पर वैन वा भी पूछी लीने।
तब बोल्दी वैकी वा चौहान्या राणी
तुम मेरा सिर का छतर छयाई,
तुम वोलदाई त स्वामी त मैं
अपणू सिर देणक भी त्यार छऊं।
तब राजान एक एक करीक
सबी राण्यों तई सिर देणक पूछे।
तब बोलदी राणी: हे राजा, तुमू क्या होये।
जिन्दगी से प्यारी कभी भिखारिण क्या होली?
चौहान्या राणीन तबी मर्दाना बस्तर पैरीन,
वीरु को भेष बणाये, सिरंगार सजाए,
हौर राण्यों न समझे खेल तमाशा छ जाणी,
देखदीं कती सजीं ल जनी बुरांस-सी डाली।
मैं पराणू भीख दी सकदूँ राजा।
देखी जगदेव न चौहान्या राणी,
आंख्यों से आंसू छुटीन, जिकुड़ी से सांस,
तू धन्य छै चौहानी, तिन मेरो नाक रखे।
तब पंवार का भुजा बलकण लै गेंन,
तब छेत्री हंकार चढ़ीगे मरद।
औ तू कैडी कंकाली, तू पतरा लीक
तब पंवारन सोनामुठी तेग गाडे
देखण देखण मा ही तलवार
वैकी धौणी से पार होई गए!
कैडी कंकाली न सिर धरे कमण्डल पर
धारा नगरीन स्वर्ग चली गए।
बख वैठ्यां छया पंचनाम देवता,
सभा का मुकुट तिरलोकी नारैण छया।
तब बोलदी कंकाली-ल्य, नारैण।
यो छ जगदेव को सिर।
दुनिया को तोल लायूं मैं पृथी को भाऊ।
तब परसन्न होया तिरलोकी नारैण,
जगदेव होलू प्राणू को निरमोही।
तब पंचनाम देवता धारानगरी ऐन,
सिर पर धड़ लगाए तब देवतौन।
तब कैडी कंकाली चौहान्या राणी मू बोदी:
यो छ सिर जगदेव को, जीता होई जालो।
तब चौहानी राणी ना करदी वीं कू-
दिन्यू दान नी लियेन्दू,
थुक्यूं जूक नी चाटेन्दू।
तब देवतौंन वीं धड़ पर ही हैकू सिर उपजाए।
सेता-पिंगला चौंल मारीन,
जीतों होई गए जगदेव पंवार।
देवतौंन तब वे गढ़वाल को राज दिने।
वचन चले दिल राई, जैसिंह सभाई,
वचन रहा जगदेव पंवार का जिसने
सिर काट कंकाली को दिया।
गढ़वाल देश को राज लिया।
रणू रौत (रावत) / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा
सिरीनगर रन्द छयो, राजा प्रीतमशाई,
कुलावाली कोट मा, रन्दी रौतू औलाद।
हिंवा रौत को छयो भिवाँ रीत,
भिंवा रौत को छयो रण रौत।
रणू रौत होलो मालू मा को माल,
जैको डबराल्या माथो छ, खंखराल्या जोंबा,
घुण्डौं पौंछदी भुजा छन जोधा की,
मुंगर्याली फीली छन, मेरा मरदो।
माल की दूण रांजड़ा ऐन,
तौन कागली सिरीनगर भेज्याले।
रुखा रुखा बोल लेख्या तीखा लेख्या स्वाल।
बोला बोला मेरा कछड़ी का ज्वानू
मेरा राज पर कैन त यो धावा बोले?
मेरा गढ़वाल मा कु इनु माल होलू
जु भैर का मालू तैं जीतीक लालू।
तबरेक उठीक बोलदू छीलू भिमल्या,
ई तरई को माल होलो कुलवाली कोट,
हिंवा रौतन तरवार मारे।
रणू रौत् भी तरवार मारलो।
रणू रौत होलो तरवान्या ज्वान,
जैका मारख्वाल्या छन बेला,
जैका चौसिंग्या खाडू होला, खोल्या होता कुत्ता।
कुलावाली कोट को वो रणू रौत,
मेरो भाणजो मालू साधीक लौलो।
प्रीतमशाई माराज तब कागली लेखद,
हे बुवा रणू रौत तू होलू बांको भड़,
भात खाई तख, हात धोई यख,
जामो पैरो तख तणी बाँधी यख।
कागली पौछीगे रौत का पास।
तब बांचद कागली रौत-
शेर जसा मोछ छया रौत,
तैका मणि का मान धड़कन लै गैन,
तैकों हातू की मुसली बबलाण लै गैन,
कण्डील वंश को कांडो जजरान्द,
निरकुलो पाणी डाली सी हिरांद।
तब धाई लगौन्द रण राणो भिमला,
मैं त जांदू राणी सैणी माल दूण,
मेरा वासता पकौ निरपाणो खीर।
राणी भिमला तब कुमजुल्या ह्वैगे,
नयी नयी माया छै ऊँ की ज्वानी की,
नयों नयों ब्यौं छो?
राणी भिमला डाली सी अलस्यैगे।
छोड़दी पथेणा, नेतर रांग-सा बुन्द
मैं छोड़ीक स्वामी तुम जुद्धक पैट्या,
सुमरदो तब रौत देबी झालीमाली,
ढेबरा लुकदा, बाखरा लुकदा,
मर्द कबी नी रुकदा, शेर कबी नी डरदा,
लुबा जंगी जामा पैरेण लैग्या,
सैणा सिरीनगर ऐ गए रणू,
जैदेऊ माल्यान गर्दनी मालीक।
हे रौत आज को जैदेऊ त्वैक च बुवा।
तू छै मेरा रणू मालू मा को माल,
त्वैन मारणन बेटा त्वै चटा माल।
राजा को आदेसू पैक रौत चलीगे,
माल की दूण कुई माल बोदा-
ये तैं चुखनी चुण्डला, आँगूली मारला
तब छेत्री को हंकार चढ़े रौत,
मारे तैन मछुली-सी उफाट,
छोड़े उडाल तरवार।
तैन मुण्डू का चौंरा लगैन,
तैन खूनन घट्ट रिंगैन मरदो।
तै माई मर्दू का चेलान मरदो,
सी केला सी कच्यैन, गोदड़ा सी फाड़ीन।
बैरी को नी रखे एक, ऋणना को-सी शेष।
-- -- -- -- -- -- --
छीलू भिमल्या छयो रणू को मामा,
तै मामा को एक नौनो होलो झंक्रू।
झंक्रूहोलो मातो उदमातो,
राणियों को रौंसियो होलो वो, फूलू को हौंसिया।
रणू रौत की बौराणी भिमला पर
वैकी लगीं छै आँखी।
रणू तैं जुद्ध मा जायूं सुणीक
वो चली आये भिमला का पास।
सेवा मानी मेरी बौ भिमला।
ज्यू जागी दिऊर लाख बरीस।
धोलीन झंकरुन टलपला आँसू-
हे मेरी बौ, दादू मरीगे माल की दोण
तनी न वोल मेरा द्यूर झँकरु,
उ मालू मा का माल छन,
ऊं सणी कु मारी सकदो?
सची माण मेरी बौ भिमला।
मैं दादू की गति करि आयूं मुगति।
तब राणी भिमला कनी कदी कारणा?
छोड़दे पथेणा नेतर राँग जसा बुन्द
तब झंक्रू बुझौणी बुझौद-बौ,
मामा पुफू का भाई होन्दान, कका बड़ौ का दाई,
जनो माल दिदा छयो तनी मैं भी छऊं।
मैंन आज दादू का पलंका सूतो होण,
मैंन दादू की थाल ठऊँ जिमण।
एक बात बोली द्यूर हैकी ना बोली,
मैं शेरना की सेज स्याल नी सेवाल्दो,
मैं स्वामी की थाल कुत्ता नी जिमौंदू।
माल की दूण रणू रौत सूतो छयो,
झाबीमाली देबी वैका सुपिना चलीगे।
चचलैक उठे रणू झबकैक बैठे-
मेरी कुलावाली कोट कु चोरड़ा आइगे।
लत दिन रात कैक रणू घर पौंछे,
रात चौक मा तब तैको जोड़ो बजीगे।
जोड़ो बजीगे, घोड़ो खंकरैगे:
चोर जार कू नीन्दरा नी होन्दी,
झंक्रू का तरेण्डा टुटी गैन-
खड़ी उठ हे मेरी बौ भिमला।
भेर बजीगे माई को जोड़ो, घोड़ो खंकरैगे।
थरथर कम्पद झंकरू राम राम जम्पद-
अलै जाँदू बलै मेरी बौ भिमला।
मैं छनी आज बचौ।
रणू रौत (रावत) / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
तेरो आज मेरा द्यूर नाश होण,
तिन त बोले दिदा माल दूण मरीगे।
तब राणी उन्डू देखदी फुण्डू,
झंक्रू सेकुली बन्द करील।
रणू धाई लगौन्द राणी राणी-
मेरा वास्ता राणी अमल भन्याल।
मैं छऊँ राणी नौ बेली को भूको,
मैंक बणौ राणी निरपाणी की खीर।
दई दूद जु छयो खैली छौ झंकरुन,
तैन छंछेड़ी पकैले अर बोले-
आवा स्वामी भोरजन होइगे।
रणू रौत देखद छँछेड़ी को थाल,
तैका सिर का बाल खड़ा होइ गैन।
मैं माल की दूण ही केक नी मन्यो?
मैंक तई रांड केक पकाए खट्ठो भोजन?
रणू रौत न खैंचे शमशेर,
आज रांड का टुकड़ा टुकड़ा करदौं।
झंकरु तब कम्पण लैगे थरथर
सेकूली को तालो खकटाणा लैगे।
तब पूछन्द रणू रौत भिमला,
सेकुली पर तिन क्या चीज छ धरे?
सेकुली पर स्वामी बिराली का बच्चा।
भ्वां गाड दौं मेरी राणी, ऊँ दूद भात खलौला।
जनो कदों रणू सेकुली पर मार,
झंक्रू भायीक ओबरा लूकद।
ओबरा रन्दी छई राणी अमरावती-
तब झंक्रू नानी का खुटू मा पड़द,
अलै जांदू बलै नानी मैं सनी बचौ।
राणी अमरावती तब वै लुकौन्दी।
बबराँदो-खलांदो रणू रौत तब,
पौछन्द मां का मास।
बतौ मेरी जिया मेरी जनानी को जार।
यख नी आये कुई मेरा रणू,
त्वैन सुपिनो त नी देखे।
देखदौं कनी छन तेरी होई लाल आंखी,
केक तै तिन या तलवार हात लिने?
घर मू लड़नक होन्दो शेर।
जा मार खोड़ की लगोटी,
अपणी तरवार म्याना पर धर।
जनानी का खातिर तू भाई न मार,
तेरी पीठ सूनी होली।
भाई का खातिर राणी न मार,
तेरी सेज सूनी होली!
जु तू इनु छई वीर, मेरा रणू त सूण,
तुमारा बाबू की माँगणी बोलीं छै,
स्या राणी स्यूंसला।
आज तैंको डोला मेघू कलूणी छ लिजाणू।
सूण्या जिया का बचन,
रणू रौत खड़ो होई गए-
तू इनु क्या बोनी मेरी माँ जी,
मेघू कलूनी मैं ज्यूंदा नी छोड़ौं।
तब झंक्रू भी वैका साथ ह्वेगे
दिवालीखाल सजीं छै बरात।
तख तौंन सब बराती मारी दिनेन।
मेघू कलूणी लुकी गए बोटगा का पेट।
झंक्रून बोले-दिदा, तमाखू खाण बैठ्याल।
भुला, बिराणो पाणी बैरी, राणी बैरी,
विराणो रस्ता बेरी होन्द।
हम यख मू तमाखू नी खांदा,
हम केकी डर छै दिदा,
जु तुमू छ त पीठी मिलैक बैठला, तू उण्डू देख, मैं फुण्डू।
मेघू कलूणी तोंका तौं दोबणू छौं,
तैन लुकीक एक बाण इनु मारे
जु रणू की छाती घुसे
झंक्रू की छाती भैर आये।
पकोड़ा सी दुये छेदेइ गेन,
हरीं आंखी ह्वैन तौंकी पिंगला केस,
दुयौं का पराण उडी गैन।
तब औन्द मेघू स्यूंसला का पास
मारदो लात वीं का डोला पर।
तब स्यूं सला इना बैन बोदी:
मैंन रन्त नी दिने रैबार,
जना अफू आई छया वो, उना अफू मरि गैन।
तुम छन मेरा सिर का भरता
पर अधर्मा न होयान।
यूं दुई मालू की गाति करी देवा मुगति।
लगाये द्वि मालू को एकी बोज,
रवि छाला वैन ऊंकी चिता रंचे
देखदी रै हेरदी पैली स्यूंसला,
फेर छट उछले चिता बढ़ो गये,
द्वि मालू का बीच वा सती होई गये।
उण्डु हेरद फुण्डो मेघू कलूणी, यो मैक तैं क्या होये?
सेयूं सी जागे वो, चेत आयो?
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