चौमासा बारामासा गीत गढ़वाली Chaumasa Barahmasa Gadhwali Lokgeet

 चौमासा लोकगीत गढ़वाली 

आयो आयो चौमासा त्वैक जागी रयो / गढ़वाली गीत 

आयो आयो चौमासा त्वैक जागी रयो।
मैं पापणीं सदा मन भरी रयो।
मेरा स्वामी को मन निठुर होयो।
घर बार छोड़ीक विदेश रयो।
हाई मेरा स्वामी जी मैंने क्या खायो।
तुमरी प्रीति से न्यारी होयो।


सुणा मेरा स्वामी जी सावण आयो / गढ़वाली गीत 

सुणा मेरा स्वामी जी सावण आयो।
रूण-झुणया वर्षा, घनघोर लाया।
दौड़ी दौड़ी कुयेड़ी, डाडू मा आयो।
कुयेड़ी न स्वामी, अंधियारों छायो।


भादों की अँधेरी, झकझोर / गढ़वाली गीत 

भादों की अँधेरी, झकझोर।
ना बास ना बास, पापी मोर।
डुलदो तू क्यों, पापी प्राणी।
स्वामी बिना मैक, बड़ी खडरी।
विश्वासी मन जो, औंद भारी।
भादों की बरसात जग रूझ।
मन की मेरो ना, आग बुझ।
स्वामी बिना झूठी, लाणीं खांणी।
मनु की मनुमा, रई गांणी।


आयो महीनो भादों को / गढ़वाली

आयो महीनो भादों को।
मन समझादूं बौत।
या मिली जादों स्वामी जी
या प्रभु देदो मौत।


बारामासा लोकगीत गढ़वाली गीत 


आयो मैंना चैत को, हे दीखो हे राम।
उठिक फुलारी झुसमुस, लगी गैना निज काम॥
मास आय वैशाख को, सुणली पतिव्रता खास।
ग्यूँ जौ का पूलों मुड़े, कमर पड़ी गये झास॥
आयो मैना जेठ को, भक्का हैगे मौत।
स्वामिका नी होणते, समझि रयूं मैं मौत॥
मास पैलो बसगाल को, आयो अब आषाढ़।
मैं पापिणि झुरि-झुरि, मरो मास रयो न हाड़॥
मास दूसरो गसग्याल को, आयो अब घनघोर।
बादल कुयेड़ि झूकिगे, वर्षा लगि झकझौर॥
भादों मैना आइक, मन समझा यो भौत।
या स्वामी घर आवन, या प्रभु ह्वै जो मौत॥
आयो मास असूज को, बादल गैंन दूर।
साटी झंगोरे सब पक्यो, निम्बू पाक्याचूर॥
आई देवाली कातिकी, चढ़िगे घर घर तैक।
यूंदींनू बिन स्वामि को ज्यू क्या लगलो कैक॥
आय मास मंगसीर को, हे बहिनो हे राम।
पतिदेव की फिक्र मां रयो हाड़ ना चाम॥
पूष मास को ठण्ड बड़ी, धर धर काँपद गात।
कनि होली भग्यांनसीं, छनपति जौं का साथ॥
लाग्यो मैना मांघ को, ठण्ड आबिगे दूर।
पति का घर निहोणसे, ज्यू यो ह्वैगे चूर॥
फागुन मैना आइगे, हरि भरि गैन सार।
सैं पापिण तनि हीरयो यकुला बांदर कि चार॥

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