कृष्ण लौकिक गाथा गीत गढ़वाली लोकगीत Lok Gatha Pandav Gadhwali

 


सिदुवा / गढ़वाली लोक-गाथा


तिन मथुरा मा जनम लीने, विष्णु मेरा करतार,

तिन देवकी का गर्भ लीने, मेरा अवतार।

तुम द्वारिका का धनी होला, मथुरा का ग्वैर

गायों का गोपाल होला, गोप्यों का मोहन।

तुम तै प्यारी होली, मधुवन की कुँज स्ये,

तुम तैं प्यारा होला, जमुना का त छाला।

तब सुपिना मा देखे कृष्ण गगू की रमोली,

रौंत्याली रमोली होलि, तौं ऊँचो डाँडयों मा।

बाँज की वणीई होली, तख होली कुलाई,

अनमन भाँति का फूल, अनमनभाँति की वासिना!

दूरू फैल्याँ सौड़ होला, होलो ऊँचो शतरंज!

देखे भगवानन बाँकी रमोली लागे मन!

तब इनाबैन बोदा साँवल भगीवान्-

हे गंगू रमोला, मैं तेरी रमोली औंदू।

द्वारिका नारैण छौं, मैं तेरो कुलदेव,

जगा दियाल मैं, तेरी रमोली लग्यो मन।

मैं नी माणदू कै सणी, देवता सुण्याल,

गंगू रमोलो छऊँ मैं, मेरा अग्वाड़ी क्वी नी!

समझलू देवता त्वै, नितर रिङ्वा,

जु रागसीण मारी देलो, सेम छ वींको वासो।

मैन हरणाकंस मारे, मैन असुर संहारया,

रागसीण मारणी गंगू, मेरा अग्वाड़ी क्या छ?


कला पूरा छयो कृष्ण, जसीलो देवता

मारी दिन रागसीण, चीरे चारी दिशौं मा।

तब तई सेम मुखम, तेरा बजदा घाँड,

दस घड़ी सजा होन्दी, बीस घड़ी की पूजा।

सिदुवा लिजाँद डौरू-थाली,

कृष्ण लिजाँद शंख।

चलदऊ सिदुवा जौला, पंडौऊ की जैन्ती।

रौड़दा-दौड़दा गैन, तब खैट की खाल।

खैट की खाल गैन, चौपता चौराड़ी।

चौपता चौराड़ी गेन, कोंकू डाली छैलू।

तब कृष्ण भगीवान, कना बैन बोदान:

कंूकू डाली नीस सिदुवा, छम धड्याली लौला।

तब अनमन भाँति की, तौन धड्याली लगाये।

खैट की आछरी तब देव्यो, कना बैन बोदीन,

खैट कीखाल देव्यों, कू होलू धड्याल्या?

चला दीदी भुल्यों, धड्याला भू जौला।

आज की धड्याली सूणी, मन ह्वैगे मोहित,

चित होइगे चंचल।

तब निकलीन भैर, आछरियों की टोली-

अगास की गैणी छै वो, धरती की चाँदना।

रूप की जोत छई, कांठ्यों को उद्यौऊ।

धाड थाला मू जैक, देव्यों रास रचीयाले,

अनमन भाँति को, लगे रास मंडल।

रूप की छलार पड़े, शीशू चमलाणी।

सिदुवा बजौंद डौंरू थाली,

कृष्ण करद अनमन, भाँति को नाच





नागरजा / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा


केको भाग लालो, केन करलो स्नान।

तब बोदा सांवल भगीवान-

तेरा बांजा वैराट मौसा, मैं चलदू बणौल।

यनी फैलाये भगवानन लीला-

गायों का करेन गोठ, भैसू का खरक

नन्दू का यख लगीन दूध का धारा।

दूध का लगीन, नाज का कोठारा।

बालपन मा ही बणी गये कृष्णा-

नन्दू को ग्वैरे, गायों को गोपाल।

गऊ चुगौंदू मोहन, वांसुली बजौंदू।

चला भाई ग्वैर छोरौं, मथुरा वृन्दावन,

बांसुली बजौला, कौथीक करला।

तब बजाई कृष्णा त्वैन मोहन मुरली,

तेरी मुरली सुणीक कामधेनुन चरणो छोड़याले,

सभी ग्वैर छोरा मोहित करयाला।

कुन्दन शैर मंग तेरी मुरली सणी,

रुक्मणी रोज रंदी सुणन लगीं।

कोंपलू-सी फल-रुक्मणि सोना की-सी टुकड़ी।

ताल-सी माछी, सरप की-सी बच्ची।

सुण्याले तैंन मुरली अनबन भांती,

मन होइगे मोहित, चित चंचल।

भौ कुछ होई जाई मैंन मुरल्याक जाण।

एसी एकी बांसुली अफू कनू होलू?

पाणी की-सी बूंद की, नौण-सी गोंदकी,

तै दिन वा रुकमणि लैरेन्दी पैरेन्दी,

चलदी चलदी आइगे अघबाट।


कृष्ण भगवान इना रैन छली,

बीच बाट मां नदी दने उपजाई।

अफू ह्वैगे भगवान धुनार-सी लम्बो।

लुहार-सी कालो, भाड़ को-सी मुछालो।

तबरेकरुकमणि भली बणीक बांद

तख मुंग एक बोलण लैगे-

हे धुनार छोरा तराई दियाल।

तराई क्या लेण छोरा तराई बोल्याल?

तराई क्या बेल्ण मैंन, भौं कुछ दियान।

जनानी की जात, डोंडा मा बैठीगे,

आधी गाड बीच कृष्ण भगवान

डोंडू खडू करयाले, पाणी मा छोड़याले।

हे धुनार छोरा, मैं पल्या छोड़ गाड।

पाल्या छोड़ लिजौलू त्वे, पैले तराई दियाल।

कनु छै तू धुनार, अधबीच तराई तू लेन्दू,

हजारू को धन दिउलू करोडू की माया।

सुण सुण रुकमणी हजारू को धन,

नी मांगदू, न करोड़ की माया।

जरा रुबसी घीचीन राणी मैं भेना बोल्याल।

हि रि रि कैक डोंडू लैगे बगण,

डोंडू बगण लैगे, दिल लैगे डिगण।

तै दिन रुकमणि राणी रोंदी छ तुडादी,

ये काला औधूत तैं मैं भेना नी बोलौं।

एक दिन संसार न मरी जाण,

त्वै क तैं मैं कभी भेना नी बोलौं।

डोंडा का डांड तैन ढीलो करीले,

रुकमणि को शरील पंछी-सी उड़ीगे।


ऐथर देखदी पेथर राणी,

हे भेना ठाकुर मैं पल्या छोड़ गाड।

गर्वियों का गर्व तोड़या त्वैन,

धजियों का तोड़या धज।

तब भगवान न हैको छदम धारे,

बणी गए प्रभु बांको चुरेड़।

हाथ मा धरयालीन चूड़ी अनमन भांति।

चूड़ी पैरयाला तुम स्वामियों की प्यारी,

राजमती चूड़ी होली, भानुमती छेको।

ढलकदी छणकदी रुकमणी औंदी,

बोल रे बोल चुरेड़, चूड़ियों को मोल?

तै दिन भगवान त्वैन वीं को हात पकड़याले,

राजौं की कन्या छई, क्या बैन बोदी:

हजारू को धन दिऊलू, करोडू की माया।

हे चुरेड़े तू मेरो हात छोड़ दे।

पैली मेरी चूड़ियों को मोल दियाल।

सुण्याल रुकमणि, तू मैं कू-

रुबसी घीचीन भेना बोल्याल।

नौनी रुकमणि रोंदी छ तुड़ांदी,

हेरदी छ देखदी राणी तब बोदी-

हे मेरा भेना, मेरो हाथ छोड़याल!

तब ऐगी रुकमणि मथुरा वृन्दावन,

देख कना ऐन गोकुल का ग्वैर।

सुण रुकमणि बोद कृष्ण भगीवान्-

बिना ब्यौ राणी त्वै नो रखदू।

कठा होई जावा मथुरा का ग्वैरू,

ई का साथ मेरो ब्यौ करी देवा।


ग्वैर छोरा क्वी बण्या बामण कुई औजी,

घैंट्या केला कुलैं का स्तंभ,

तै दिन तौंकू ब्यौ होई गये।

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पूतना रागसेण रदी कंस की बैण।

कना बैन बोदू तब दुष्ट कंगस-

कु जालू गोकल मेरा बैरी मान्यालो?

तब पूतना रागसेण बोदे-मैं जौलू गोकल मां!

तू मेरा बैरी मारी औली त पूतना,

त्वै मैं आदा राज द्योलो।

तब पूतना रागसेण तयार होये।

नहेन्दी व धुयेन्दी तब वा,

स्यूंद शृंगार तब सजौण लगदे।

तब धरे पूतनान मोहनी को रूप,

अपनी दूधियों मांज विष चारियाले,

रमकदी छमकदी जांदी पूतना रागसेण,

रौड़दी-दौड़दी गगे गोकुल का राज।

यसोदा का पास जांद मुंडली नवौदे।

तब पूतना रागसेण कना बैन बोदे-

मैन सूणे दीदी तेरो नौनो होये।

उंडो दे दी दीदी अपणा नौना,

तुमारो बालक दीदी, भलो छ प्यारो।

कृष्ण भगवान गोद मा गाडदे।

तब पूतना रागसेण लाड करदे,

हाती खुटी फलोसदी, घीची छ पेंदी।

कृष्ण भगवान जी दीनू का दयाल,

नरु का नारैन भक्तू का राम।





नागरजा / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा


सभा लैगे द्वारिका, सभा लैगे गोविन्द,

सोवन द्वारिका होली, सभा लैगे गोविन्द।

सभा बैठी गैन, तेतीस करोड़ देवता,

सभा बैठी गैन, सोल सोऊ राणी।

इनो रइ भगीवान, गर्वियों का गर्व चलैन,

पाप्यों का मोचद पाप, बिर्बलियों को छै बल।

राण्यों को रौंसिला छई, फूलू कू हौंसिया।

धनि पारबरम, मैं लेन्दू तेरु नऊं,

तेरो नऊं लेन्दू, सांझ सबेर।

तेरो नऊं लीक संकट कटेन्दी, बिप्ता बंटेंदी,

दुख होन्दू दूर, काया होंदी कंचन।

इना रैन भगीवान् राँडू का मालिक,

छोरौं का बाप, अनाथू का नाथ।

नंगा देखी खाणू नी खायो,

भूखा देखी वस्त्र नी लायो।

तिन लिने जन्म देवकी का कोख,

देवकी का कोख कंसकोट राजा मा

वैरियों की भूमि, मामा की मथुरा।

माता तेरी देवकी, पिता वसुदेव।

सुण्याला कंसू तुम देवकी का आठवां गर्भ,

होण कंसू को छै।

एक गर्भ होये तौन नदी सौंप करे,

दूजो गर्भ होये तौन नदी सौंप करे,

तीजों चौथो पांचों सातों गर्भ होये,

तौन नदी सौंप करे।

तब ह्वेन भगवान आठवाँ गर्भ।

तेरी जिया देवकी एको लगे मास,

तेरी जिया देवकी दूजो लगे मास।

कंस कोट राजा मां बुरो ठाण्याले,

कंस कोट लग अब शीशा को मेलाण


सौ मन शीशा की गागर बणैले।

चलीगे देवकी तब निकट जमुना,

ल्यौ वैणी देवकी गागर भरी।

नौ दिन नौ राती गागर नी भरेणी,

भरेण क भरेगी, मैं कनै उठौलू?

कायरी होइगे देवकी राणी,

इन रया भगवान निर्धन्यों का धनी,

गर्वियों का गर्व करदू चूर।

तै दिन भगवान, निरणी को बालो,

सु गर्भ छुई लांदो,

सुन जिया कायरो नी होणू।

तै दिन देवकी राणी गागर उठौंदी।

इनी माया तेरी भगवा-

कनी ह्वैगे गागर बुरांस को-सी फूल।

ल्या भाई कंसू ई गागर उठावा,

सुणीक ंस पिछुंडा ढलीग्या।

दस मास लैगे श्यामल भगवान,

वीं देवकी लैगे बैठण्या वेदन,

पिता वसुदेव तौन बंदीगिरै घरीले।

भदर मास छयो, शुक्ल पक्ष,

रोहणी नक्षत्र छयो बुधबार।

कई पैरादार छा धर्यां, सुण्याला पैरादोरु तुम

जु होलू गर्भ तै करिया हाजिर।

वसुदेव सुणीक इनो कुरोध लांदो,

सुण्याला कंसू तुम-

बैठीक विनत, उठीक अरज।

न लया कंसू तुम कन्या को पातक।

तब भगवान पृथ्वी पैदा नी होंदा,


तेरी जिया छई कली-बेकली।

मैं त मेरी माता पृथ्वी पैदा होन्दू-

तू कायरी ना होई मेरी जिया।

तब कृष्ण द्वारिकानाथ पैदा होई गैन।

देवता सभी खुश होइन, पिता की बेड़ी टूटीन।

चली आयो स्यो देवकी का पास,

क्या होये राणी तेरा गर्भ?

तब भगवान इनो बोदः

सुणा सुणा मेरा मात पितौं मेरी अरज,

मैं कू लीजा पिता जी धौ बै का पास।

नंदू मौसा का त डेरा।

तै वक्त भगवान उठैले पिता न,

रस्ता लगी गैन, आईन अधवार।

निकट जमुना आईन।

तब भगवान का चरण छूण,

जमुना अथाह होई गैगे।

पिता वसुदेव को उत्सा ख्वैगे।

कनु कैक रे बाला मैंन पार ली जाणी?

सुणा मेरा पिता जी कायरो नी होई।

कृष्ण बालो घनश्याम खुटी बढ़ौंद,

चरण चूमीक जमुना जी घटी गैन।

चलदा चलदा तब स्ये पहुँच्या-

नंदू का बांजा बैराट।

जनम का औता था स्ये, कर्म का नाटा।

तै दिन बोदो नन्दू मौसा-

ये बांजा बैराट बाला

क्या खालू तू, क्या त पेलो?





नागरजा / भाग 4 / गढ़वाली लोक-गाथा


सारा गोकुल वासी करद छया

तै इन्द्र की पूजा।

कठा होई गैन तब सब स्ये

कनो बोद तब इन्द्र को बालक-

केकूँ होलू जाज यो हल्ला?

आज गोकुल का लोक,

सुण मेरा बाला करदा इन्द्र की पूजा।

तब बोलदू कृष्ण भगवान-छोड़ा इन्द्र कीपूजा।

आज से करला गोवर्धन पूजा।

लाया गएपूजा को समान,

थालू परात मा मेवा मिष्टान,

षट् रस मीठ रस भोजन,

बार पकवान, बाबन व्यंजन।

घी दूध नैवेद, दीप, धूप, दान,

जौ तिल हवन, पिठैं टीका चंदन।

तब पूछदू कृष्ण भगवान:

इन्द्र क्या कभी तुम दरसन भी देंद? 

तब बोलदा गोकुल का लोक-

नी देन्दू इन्द्र, दर्शन नी देन्दू।

तब तुम इन्द्र की पूजा छोड़ा हमेशाक

करी तब त्वैन लीला इनी कृष्ण

गोबर्धन फूटी, उपजे नारैण,

जौंका गात पीताम्बर,

भुजा मा मणिबन्ध,

सिर मोर मुकुट, हाथ बांसुली।

दर्शन देंदू दीनों कू दयाल,

मगन होई गैन गोकुल का वासी।

तब इन्द्र माराजा इनो वोद:

ब्रज वासियोंन आज मैं पूजा नी लगाए।

जा मेरा मेघो, ब्रज मा जावा, प्रलै मचावा!

तबरी ही गरजीन मेघ घनघोर,

बिजली कड़के, सरग गिड़के,

बज्र तड़ातड़ तड़केन।

कंपी गये नौखंड धरती थर थर

हा हा मचीगे तै गोकुल मा,

हे कृष्ण तिन यो क्या करे?

कृष्ण भगीवान् तब बोलदा बैन-

गोकुल का लोगू कायरो नी होणू।

तब ऊन गोबर्धन आंगुली मा धरयाले!

गोकुल मा नी पड़े पानी को छीटो।

तब सोचदो इन्द्र क्या ह्वै ह्लो आज?

क्या तै गोकुल ह्वैगे कृष्ण अवतार!

तब इन्द्र माराजन साथ लिन्या

तेतीस करोड़ देव, कामधेनु गाई

चलदा चलदा ऐग्या गोकुल मांज।

कृष्ण भगवान गाई चरौंदा छया,

बंसी बजौदा छा, पृथी मोहदा छा।

कुछ ग्वाल आग छा, कुछ छा पीछ,

गौऊन विर्याँ छा, कृष्ण भगीवान।

तभी करी इन्द्रन गौ को स्वरूप,

बार बार तब परिक्रमा करदू।

ज जै कार करदा पंचनाम देव,

इना रैन कृष्ण भगवान,

गर्वियों गर्व चलैन,

छलियों का छल!





नागरजा / भाग 3 / गढ़वाली लोक-गाथा


हे बिष्णु तब दूदी पेण लैगे,

हे देव जी विष तेरा घिचा पर

अमृत त बणीगे।

पूतना हेरदी रै यशोदा को बालीक,

अभी मरदो तभी छ मरदो।

निराशे गए वा जब दूद्यौं दूँद नी रयो!

तब बोलदे-हे दीदी यशोदा,

अपणा बालक तू फुँडो गाडीयाल।

तब विष्णु भगवान वीं की छाती पर चिपटीन

पूतना को सारो खून चूसयाले!

तब पूतना बणैयाले आम जनी गुठली,

बांज  जनो बकल!

बराँदी तैं तरांदी पूतना रागसेण,

भगवान वा मारी तिने।


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छया धेनु का चरैया हे मोहन,

ह्वैल्या द्वारिकानन्दन हे मोहन।

छया वसुदेव का जाया हे मोहन,

ह्वैंल्या देवकी का लाडा हे मोहन।

छई दई को दूपकी, हे मोहन,

ह्वैल्या दूद की बिराली हे मोहन।

त्वैकू बार मास होला हे मोहन,

बोण घोर से प्यारा हे मोहन।

तेरी नौसुन्या मुरुली हे मोहन,

एक भौण मा मिलौंद हे मोहन।

औदू बाँसुली बजौंदू हे मोहन।

यूँ चीडू की बणायों हे मोहन,

तेरी बार बीसी धेनु हे मोहन,

ओडू नेडू औंदन, हे मोहन।

त्वै बिना ग्वैरू की, हे मोहन,

सभा नी शोभदी हे मोहन।

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चला ग्वाल बाल भायों, तुम खेला गेंदुवा,

सोना को गेन्दुवा मेरो, विष्णु पटन मढ़यूँ छ।

सोना को बण्यू छ, चांदी का घुँघर।

हे प्रभु सोवन गेन्दुवा तेरो हाथ नी लियेंदू,

भ्वां नी धरेन्दू!

तब खेलण जाँा सब कुंज वन मा,

कुंज वन मा खिल्या बार भाँति का फूल।

अनमन भाँति की औदे फूल की वासिनी,

भौंरा छन गुँजणा, मारी रूणाणी छन,

कि अनमन भाँति की केसर लेला।

सारा कुंज वन मा खेल गेन्दुवा।

ब्रज की गुजन्यों संग खेल गेन्दुवा!

छट छुटे गेंदुवा जमुना मा गिरिगे।

वीं गैरी जमुना माछीन धूल्याले।

तब विष्णु भगीवान धावड़ी लगौंदा।

ग्वाल बाल सब घर बोड़ी ऐन,

जिया को बालीक जभुनी छाला छुटिगे।

तब जिया जसोमती इना बेन बोदी-

हे प्रभो, मेरो बाला जमुना छाला रैगे।

सबूका बाला घर ऐन, मेरो कृष्ण नी आयो।

जागदी रै गये त्वै स्या राणी सत्यभामा।

काली नाग रंदो तैं गरी जमुना,

हे मेरा कृष्ण नाग डसी जालो।

कृष्ण भगीवान इना रैन बली,

गाडी दिने गेन्दुवा, साधी लिने नाग!

भेंटद भाँटद छन गेन्दुवा कृष्ण भगवान,

अनमन भाँति को खेल लाँद गोविन्द।

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ओडू नेडू ऐगे कातिक मास,

कातिक मास बगवाली ऐन, जोन्याली रात!

बग्बाल्यों का खेल मधुवन मा,

रचला रास राधिकोंका संग।

सात सई गुजरी, आठ सई राणी,

नौ सई आछरी तेरी मोहन!

रूप को रौंसिया छई, फूलू को हौंसिया।

राधिकौंका संग खेल बोल,

करदो रास पोथल्यों को ख्याल!

तब गुजरी बोदीन, मोहन मायादार,

हाथी मिलैक खेल लौला।

तब मोहन नारेणन मोहन रूप धरे,

मोहन रूप धरे गाडे मोहन मुरली!

तब सभी राधिका राम, मोहित होई गैन,

कि चित होइगे चंचल देव्यो,

मन होइगे उदास।

ये मुरल्यान हमारो मन मोहित देव्यो।

तब गुजन्यों का साथ हाथी मिलैक,

नाचदो मोहन कालिया नाच।

जोन्याली रातू मा तब पूरणमासी की

खिलदी जोन छन कई मधुवन मा।

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चल दीदी भुल्यों, ल्यूला असीनान,

कठा होई गैन राम जी की गुजरी।

राम जी की गुजरी खट की आछरी।

चला दीदी भुल्यों जमुना का छाला,

तब तउँ देव्योंन शृंगार सजाये,

दांतुड़ी मंजैन जई जसो फूल,

स्यूंदोली गाडीन देव्योन धौली जसो फाट,

हाथ की पौंछी पैरीन, गला की कंठी,

रमछम बाजेन देव्यों, खुटौं का घूंघर।

रमकदी छमकदी गैन वीं नीली जमुना,

वीं गैरी जमुना देव्यों, जमुनी छाला।

जमुनी का छाला देव्यों, ल्यूला असीनान!

कपड़ी गाड़ीक देव्यों, भुयाँ धरी देवा,

नंगी ह्वैन गुजरी, जल मा गैन।

तबरी ए गैन विष्णु भगवान,

नंगी गुजरी देखेन तौन,

देो कपड़यों को ढेर जमुनी छाला!

लीला पुरुष छा भगवान,

कपड़ी उठैक डाला चढ़ी गैन।

मोहन नारेण गाड़े तब मोहन मुरली,

तीन ताल मुरली आज सुणौंदा।

नंगी गुजरियों सूणे मोहन बांसुली,

चकोर की बच्ची सी तपराण लै गैन।

तब देखे डाला मा तौन नारैण,

हे कनो भाग ह्वैलो! शरम खांदीन।

तब धरे देव्योंन दूद्यों मती हाती

ओ नंगी गुजरी जल मां बैठेन।

हाथ जोड़दाा मोहन, माथो नवौंदा,

हमारा वस्तरदी द्या, रख्याला लाज।

मुलमुल हैंसदा तब मोहन छलिया,

रतन्याली आंख्योंन मोहित ह्वैग्या।

क्यक गुजन्यों, नंगी गै छई जल मा?

आज बटी देव्यों नंगी न नह्यान!

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चन्द्रावली हरण / गढ़वाली लोक-गाथा


द्वारिका मा लै गैन कृष्ण घणी सभा,

कबीर कमाल बैठ्या, नारद मुनि-रिषि।

कछड़ी बैठी गैन कृष्ण का सूरदास

अंतरजामी कृष्ण को अंतरध्यान होइगे!

सुकली कोठड़ियों लगी सुतरी पलंग,

सुतरी पलंग गेलुवा विछोणा।

तख कृष्ण बैठी छई सत्यभामा राणी,

दूध केला, छई राणी रुकमणी।

राणी रुकमणी प्रभो, इना बैन बोलदी-

तुम बतावा बांदो, प्रभु मैं बतौलू बैखू।

द्वारिका नारैण कृष्ण पूछण लै गैन-

बतावा रुकमणी बैखू मा बैख

तुम बतावा बैखू, मैं बतौलू बांदू।

हां बैखू मा बैख होलू सांवलो नारैण!

मैंन बतैन बैख प्रभु, तुम बतावा बाँदू।

बांदू मा की बांद इन्दर की परी।

मैं सी रूपवंती सी न भुंच्यान ज्वानी,

सबू से रूपवंती मेरी बैण चन्द्रावली।

चन्द्रगढ़ मा रंदी बैण चन्द्रावली

तैंका रूपन सूरज धुमैलो,

रूप की बातुली होली बाली चन्द्रावली।

तब समझलू मैं तुम रौलू को रौतूलो,

जब बेवैक लाला मेरी बैणी चन्द्रा।

द्वारिका ठाकुर खरो दीलो आणो।

तब मेरा नारैण कृष्ण पूछा लैगैन-


बतावा रुकमणी तुम खरो मनसूबो,

कनकैक बिवै ल्यौण तेरी बैण चन्द्रा।

तुम बणा भगवान बद्री का फेरवाल,

तब जावा नारैण चन्द्रावली गढ़।

अपणी चाडी को कृष्ण ब्रम तिलक पैरी,

कृष्ण तब बणी गेन फग्वाल।

मातमी फेग्वाल छऊँ, टीका पैन्याला चंदन।

सूणी चन्द्रान बोलण लैगे।

जा दू स्वांरा चेली, टीको लौ परसाद!

तब जांदी स्वांरा चेली फेग्वाल का पास,

तेरा हात चेली, मैं टीकू नी देन्दू!

टीको-परसाद द्यूलो राणी-बौराण्यों,

टीको-परसाद द्यूलो पदों का डोलौ।

स्वांरा चेली जांदी चन्द्रावली का पास,

नी देन्दू फेग्वाल वो टीको चन्दन।

राणी चन्द्रावली तब बोलण लै गैन:

वो फेग्वाल नी छ, वो छ द्वारिका नारैण।

द्वारिका भेना की तेरी जोई राँड ह्वान।

तब मेरा नारैण ऐगे श्रवण द्वारिका!

बतौवा रुकमणी हैकौ मनसूबा,

कनकैक बेवैक ल्यौणे तुमारी वैण चन्द्रावली?

तुम धरा नारैण छोरा को भेष,

चन्द्रावली का सात तुम नौकर होई जावा।

गरीब गता करे कृष्णन, चीरी लत्ता।

तब जांद कृष्ण चन्द्रावली का गढ़।

मैं गरीब छौरा छौं क्वी नौकर धन्याला।


इनू पूछद सुँवार, तू नयो छोरा छई,

तिन तनखा क्या लेण?

हजार बैठण की ल्यूलो, हजार उठण की।

इनू पूँछ सुँवार, तिन काम क्या देण?

पेन्दो बाछलो न पकड़ौं,

रोन्दो बच्चा नी थामौं।

नौकर छोरा नी यो, यो छ द्वारिका को भेना।

द्वारिका भेना, तेरी जोई रांड ह्वान।

तब कृष्ण भगवान निराश ह्वैक,

लुबड्याँदी घौणी, तिरछी मोणी,

श्रवण द्वारिका लौटीक आई।

हे रुकमणी, मेरी कनी फजीती होई!

कुनकै बेवैक लयौण राणी चन्द्रावली?

दया ऐगे तब राणी रुकमणी,

तुम धरा विष्णु रुकमणी को रूप।

तु जावा नारैण त चन्द्रागढ़,

चन्द्रावली मा बोल्यान तुम रोइक-

तेरो भेना चन्द्रा, स्वर्गवासी ह्वैन!

आज भुली चन्द्रावली तेरी दीदी राँड ह्वैगे।

दणमण आँसू धोल्यान तुम,

तोई छोड़ी भली, कुई आसरो नी मेरो।

अपणी चाड़ी को भगवान धरे रुकमणी को रूप,

स्वाग उतारे, वणी गैन रांड!

पहुँचीने भगवान चन्द्रा का भौन।

छोड़दे पथेणा नेतर रांग जसा बुंद,

आज भुली चन्द्रा, मैं रांड होई गयूं।


तेरो भेना कृष्ण स्वर्गवास ह्वै गैन।

सेवा लगौंदी बैणी तैं तब चन्द्रावली,

लीगे गुप्त कोठड्यों सुतरो पलंग।

गेलम बिछौणा, सुकला भौन।

रातुड़ी समै होय संझा की बेला,

होई गये देवतौं की देवा देन्दी बगत।

मेवा मिष्टान भोजन खलौंदी वा,

सेई गैन तब कृष्ण भगवान।

चन्द्रावली वीं रात नींद नी आई,

देखदी रै वा रुकमणी बैणी।

तबरेक वीं को ढक्याण फरके-

ढबरियाली पीठ देखी वीन कंकरियालो माथो,

जजरियालो गात देखे नौन्याली आतमा।

देवी चन्द्रावली का मन सुभा पड़ीगे।

यात होली आतमा बैख को,

देवी चन्द्रावलीन सर्सूं को रूप धरे।

आफू तब कृष्ण भौंर रूप होइगे।

चन्द्रावली न सर्सू को रूप छोड़े,

पोथला को रूप धरे।

अगाड़ी पोथली भागदे, पिछाड़ी द्वारिका नारैण भौंर!

चन्द्रावली पौछीगे नारैण जमुनी छाल,

चन्द्रावली बणी गए पाणी की माछी,

कृष्णन तबारे ही ओद को रूप धरियाले।

हे कृष्ण मच्छी पकड़ी लैगीन छाला।

तब भगवान प्रकट होई गैन,

मोर मुकुट पैरे, गाडे मोहन मुरली।

देवी चन्द्रावली देखदी ही रै गए।

तब जंदेऊ लगौंदी स्या-

अपण भेना कृष्ण।

तब सजे भगवान औंला सरी डोला।

पंचनाम देवता ऐन, देवी पार्वती ऐन,

कुन्ती, द्रोपदी मांगल गांदी!





ब्रह्मकौंल / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा


प्रभो, जौं से गंगा पैदा होई,

सोई चरण सुमिरण करदौं।

जु चरण रैन नन्द का आंगण,

जु चरण रैन जसोदा की गोदी,

सोई चरण सुमिरण करदौं।

प्रभो, एक दां कृष्ण भगवान

द्वारिका मा बैठीक खेलणा छा पासो।

छुयौं पर छुई ऐन, नारद जी न बोले;

हिमाचल कांठा मा जौलाताल

राजकुमारी रंदी तख एक मोतीमाला!

सोना का पासा छन वीं मू,

चाँदी की छन चौकी।

रूप की आछरी छ वा दिवा जसी जोत,

रघुकुँठी घोड़ी साजी वैन,

लाडलो बरमी पौंछे कृष्ण पास।

बोल बोल दिदा, क्या काम होलू मैकू?

तब बोलदा कृष्ण भगवान मन की बात-


त्वै जाणू होलू बरमी हिंवचल काँठा,

सोना का पासा लौणन, चांदी कीचौकी!

जौलाताल रैंदा बल मोतीमाला,

जीतीक लौण भुला मोतीमाला मैकू तई।

तब चलीगे बरमी हिंवचल काँठा,

सत होलू सत विमला रौतेली,

सत पीनी होली मैन सहस्त्रधारी ददी,

मेरी रगुकुँठी घोड़ी गगन चढ़यान।

तब गगन मा चढ़ीगे, अगास उड़ीगे,

रघुकुँठी घोड़ी वा वैकी।

पौछीगे बरमी हिंवचल कांठा!

जौलाताल मू वो नहेण लैगे।

तब जाँदीन चेली पाणी भरण,

तब आई गए सौंली शारदा-

रूप की प्यासी छै वा मोतीमाला की दासी!

सौंली शारदा तब दृष्टि घुमौंदी,

देखीले तन लाडलो बरमी-

साँवली सूरत वैकी, मोहनी मूरत।

रौड़दी-दौडदी गै बल सौंली शारदा,

मोतीमाला का त पास-

अंगूठी गैणुवा जीं का, बाल काली बादुली।

चीणा जसी चम फ्यूँली जसो फूल

नौण सी लुटकी हिंसर सी गुन्दकी,

मोतीमाला होली बांदू मां की बांद,

चांदू मा की चांद होली, कृष्ण त्वई लैख।


रूप का रसिया छया कृष्ण, फूलू का हौंसिया।

सीलो ज्यू भगवान को रसपैस गए,

पूछे ऊन एक एक करी सब ज्वान,

पर वख जाणक कैन हुँगारो नी भरे।

तब रगड़े कृष्णन बदन अपणो,

पैदा होई गए कनी भौंरों की टोली।

भेजीन तब भौंरा हिवंचल काँठा,

ब्रह्मकोट रंदो छयो लाडलो ब्रह्मकौंल।

बथौं सी उड़ीन भौंरा, अगास चढ़ीन,

घूमदा घूमदा गैन ब्रह्मकौंल का भौन।

बठीन वो देणी भुजा मा बरमी की,

जाणीयाले तब वैन बड़ा भाई को रैबार आयो।

तब तैयार होन्दू द्वारिका जाणक,

हे मेरी जिया विमला सहस्त्रधारी,

मैंन जाण द्वारिका, मैं कू आयूं हुकम छ!

नि जाणू बेटा, दखिण द्वारिका,

वीं रतन द्वारिका रंदो कालो नाग।

लाडला बरमीन बल एक नी माणी,

मरण वचण जिया, मैन द्वारिका जाण।

सुण सुण मोती, पीफल चौरी देख,

सौंली सूरत कू कुई चौरी मू बैठ्यूँ छ।

रतन्याली आँखी छन वेकी, पतन्याली फिली।

मोतीमाला तब देखी बरमी को रूप:

जा दू जा दू शारदा वै लाऊ बुलाई।

शारदा तब ऐगी बरमी का पास,

छेद छेदी पूछदी तब वैसे बात।


मैं विमला को जायों छऊँ, जाति को जादव,

मिलण आयूँ मैं भाभी मोतीमाला।

मोतीमाला कन्या छ कुँवारी,

तीन सौ साठ राजा ऐन आज तैं,

कुछ हारी गैन, कुछ मान्या गैन।

बोल बोल बरमी, तेरी वा भाभी होई कनाई?

सौंली शारदा मुलकुल हैंसण लैगे:

केकू आई होलू छोरा, वैरी का वदाण,

वैरी का वदाण आई, काल का डिल्याण।

फ्यूँली को फूल देखी वीं दया ऐगे।

तब बोलदी शारदाः जिया को लाडलो होलू तू,

अगास को गैणो होलू तू, कै दिल को फूल।

राणी मोतीमाला छ पांसा की शौकी,

तिन हारीक बरमी मान्या जाण!

पर जु बचणू चाँदू त मेरी बात सुण्याला,

जै चौकी मा बिठाली, वीं मा न तू बैठी।

तब सौली शारदा ली गए वे मौती का भौन।

सेवा मानी सेवा, भाभी मेरी मोतीमाला।

मोतीमाला न उठीक बैठाये बरमी,

बैठीक जिमाये खटरस भोजन।

खिलैक पिलैक तब वा बोलण लैग-

सुण्याल बरमी जरा पांसुड़ी खेल्याल।

गाडीन वींन चाँदी का चौपड़, सोना की पाँसुड़ी!

अपणी चौकी गाडे वींन, बैठी गए,

बैठैयाले बरमी हैका चौकी पर।

तब लाडलो बरमी पाँसा दऊ देन्द-

पैला दऊ हारिगे बरमी, रघुकुँठी घोड़ी,


तब हारीन बरमीन कानू का कुण्डल,

तब हारीन बरमीन हाथू का मणिबंध।

हाथू का मणिबंध, गात का बस्तर।

तब छूटिगे बरमी, खाली मास-पिंड।

माता की बोलीं तब याद औंदी।

कैं घड़ी माँ पैटी हालू मैं ये हिंवंचल काँठा,

प्रभु ई विपत से मैं आज कू बचालू?

याद आये तबारी शारदा बोलीं,

बोले बरमीनः भाभी मैं तीस लैगे।

जादू मेरी सौंली पाणी लौ-मोतीन बोले

तब मुँडली ढगड्योंद लाडलो बरमी,

तू पिलौ भाभी अपणा हाथ पाणी,

चेली को लायू पाणी मैं नी पेन्दो।

तब जाँदी मोतीमाला पाणी पन्यारी,

लाडला बरमी क पाणी लौंदी बाँज को जड्यों कू।

बरमीन हार चौकी छोड़े, मोती की चौकी बैठे।

मोतीमाला लौटीक देखदी-

मेरी चौकी छोड़ बरमी, पाणी पे तू!

जगा उठा की होण या बैठा की?

मैन तब पेण पाणी, जब पांसू खेल्यान।

बबराँदी छ ककलाँदी मोतीमाला,

मड़ो मन्यान तेरो जैन धोका करे।

खेलण बेठीन दुई फेर पाँसुड़ी-

बरमीन पैला दाऊ जीतले रघुकुण्ठी घोड़ी,

कानू का कुण्डल जीतेन, तब हाथू का मणिबंध।

विजोरिया हँसुली जीती, झंझरियाली बेसर,

सोवन पाँसुड़ी जीतीले, चाँदी की चौकी।





ब्रह्मकौंल / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा


तब भाभी मोतीमाला खोसी गए मोसी,

गात की घाघुरी छोड़े लाज का मारा।

तब सजाये वन रघुकण्ठी घोड़ी,

चल भाभी मोतीमाला श्रवण द्वारिका

मेरो भैजी कृष्ण त्वै जागणू होलो।

बाँठी छई वा भाभी मोतीमाला-

हे लाडला बरमकौंल, मैं वचन बोलदू,

विमला रौतेलो होलो, जादव जायो

जब तू चन्द्रागिरि जालो।

मेरी भुली पत्थरमाला ब्याईक लालो।

तब जैक मैं द्वारिका जौलू,

नितर तू मेरी सात दाँ  टाड छोरी।

बरमकौंल न सूणे त्रिया को आणों

त्रिया को आणो ह्वैगे कपाल का मुँडारो।

माता आणो देन्दी मैं खाणो नी खाँदो,

बाबा आणो देन्दो, मैं काम नी जाँदो।

भाई आणो देन्दो मैं बाँट नी लेन्दो।

त्रिया को आणो ह्वैगे जिकुड़ी को बाण।

तब गैगे बरमी चन्द्रगिरि बीच,

तख रंद छयो गैरी नाग एक।

नागों मां कोण नाग भूपू नाग छायो।

रिंगदी अटाली छई वेकी, उड़दी डंडयाली,

त्रिकूट का घाँड छया लग्याँ काँसी का घूँघर।

भौन की चारी तरफ सात छई बाड़ी,

कनों भीतर जौलू सोचदू लाडलो बरमी।


ज जैकार करदो, सत करदू याद विमला को,

सती होली मेरी माता, साती बाड़ी टपी जौलू।

तब मारे बरमीन रघुकुंठी घोड़ी थाप,

घोड़ी गगन मा चढ़ीगे, साती बाड़ी टपीगे।

पौंछी गए तब बरमी पत्थरमाला का भौन,

देखी तब वींन मोहनी मूरत साँवल सूरत

कंकरियालो माथो देखी वींन ढबरियाली पीठ।

मायादार आंखी देखीन, बुराँस को सी फूल।

नारी पत्थर माला तब मोहित ह्वै गए।

आँसुडी गेरदे वा, साँसुड़ी भरदे-

कै राज कू होली, कै दसावर जालू?

यख केक आयो वैरी का बदाण?

केक पंथ ग भूली, बाटो गै डूली,

कै बैरीन भरमायो, साधून सन्तायो?

तू अभी देख तेरी सौंली सूरत,

मेरो नाग डसी जालो।

लाडलो बरमी तब मुलकुल हैंसदो-

सूण सूण पत्थरमाला, मैं पंथ नी भूल्यों,

वैरीन नी भरमायो, साधून नी सन्तायो।

आणा का ऊपर मेरी ज्वानी को विणास।

ब्याईक ली जाणी मैन तू पत्थरमाला।

जबरेक तेरु नाग नागलोक मां छ जायूं,

तबरेक द्वारिका चली जौला।

मुलकुल हैंसदी रानी पत्थरमाला-

यू ही बल लीक यख आयी?

कायरो नी होणू बरमी, सूण सूण


नारी चोरीक नी लि जाणी।

ठीक बोले त्वेन, अच्छा, हारी जीतीक जौलू।

लाडलो बरमी वींन पलंग बैठाये,

बजी गैन तबारे पलंग का घुंघर!

घांडू का स्वर पौंछीन नागलोक-

भिभड़ैक उठे भूपू नाग-

सूणा सूणा र नागों, मैं घर जांदो,

मेरा गढ़ मा रिपु पैदा ह्वैग।

लौट आये तब नाग चन्द्रागिरि गढ़ मा।

वेका नाक को फुँकार चढ़न लैगे,

भादों को सी रवाड़ो उस्कारा भरण लैगे

थरथर कंपीगे बरमी, कबूतर-सी बच्चा,

छिपी गैगे वो टुप पलंग मा।

हे रानी पत्थरमाला कु छ तेरो छिपायूँ?

बतौ झट कैको आयो स्यो काल?

हे मेा नाग कैन औणा साती बाड़ी टपीक,

तेरी मति कैन हरे?

भौं कुछ बोल तू रानी पत्थरमाला,

यख मनखी की बास छ औणी।

तब नाग आणा देण लैगे-

जु मेरी चन्द्रगिरी मा छिफ्यूं रलू,

वैसणी मां का सुगन्ध छन!

अइऐ बरमी छेतरी को रोष,

छेतरी को रोष दूध-सी उमाल।

नी रै सके छिप्यूँ बरमी, ऐगे भैर,

देखीक नाग मुलकुल हैंसदो-

हाथी सामणे फ्यूँली को फूल,


बोल बोल छोरा, किलै तू आई,

के रांडो को होये यो कुल को विणास

सूण सूण नाग, मैन तू साधण,

साधीक त्वै पत्थरमाला ब्यैक ली जाण।

सुणीक बुरा वचन, नाग गुस्सा ऐगे,

कनो पकड़ीले नागन लाडलो स्यो बरमी।

बोल बोल छोरा तेरो कु छ बचौण वालो?

सूणसूण नाग, मरी जौलू बीती,

पर वैरीक मैं बाबू नी बोलूँ।

दोसरो लपेटो मारी नागन-

बोल बोल कू त्वै बचौण वालो?

सूण सूण नाग, मैं बचौण वालो,

द्वारिका नारैण छ, कृष्ण भगवान।

गाडयाले नागन नागपाँस,

पड़ीगे भ्वां बरमी गेंडगू सी।

आंख्यों सेंवल सरीगे, दांतु मा कौड़ी।

सुपिनो ह्वैगे कृष्ण द्वारिका नारैण।

कमरी कुसाण लैगे, दूदो चचड़ाण

ओखी फफड़ाण लैगीन माता विमला की।

आदेशू लगौंदू मैं गुरु गोरख,

बचैक लावा मेरा बरमी।

तब कृष्णन भौंर भेज्यों वीं रमोली,

तख रंदू छयो सिदुवा रमोलो।

पौछीगे सिदुवा चन्द्रागिरी गढ़ मा,

छिपीगे नाग तिमंजल्या कोणी।

आदेशू लगौन्दू मैं गुरु सतनाथ,

भैर औ नाग आयो तेरो काल।


मात की दुहाई त्वै हे नाग,

गुरु से निगुरु ना होई।

सिदुवा छयो बांको भड़,

एक ही चोट मा तैन नाग,

जती लम्बो तती चौड़ो कर्याले।

तब आयो वो बरमी का पास,

मारे वैन निल्लाट को ताड़ो,

कांउर की जड़ी लिल्लाट थापे।

खड़ो उठीगे तब लाडलो बरमी,

यनी जीता रया सजन पुरुष, पिरेमी भगत।

रानी पत्थरमाला तब स्यूंदोला गाडदी,

धौली जसो फाट।

वेन्दुली रखदी कुमौं जसो घट।

लाडला बरमी की सजीगे रघुकुंठी घोड़ी,

बजीन ढोल दमों ब्यौ का।

चलीगे पत्थरमाला को डोला, बुरांस जनो फूल,

मोतीमाला न भी पूरा कन्या बचन।

मोतीमाला पत्थरमाला द्वी बेणी,

चली ऐन दखिण द्वारिका।

मोतीमाला ब्याहेण कृष्णक तैं,

बरमीन ब्याहे पत्थरमाला।

इना रैन भगवान कला का पूरा,

द्वारिका बीच लोग मंगल गांदा।


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