मृत्यु गीत / 1 / भील
पावो फाटियो ने सुरिमल उगिया रे भँवरा।
पावो फाटियो ने सुरिमल उगिया रे भँवरा॥
जीविता क तो नि दी रोटी रे भँवरा।
जीविता क तो नि दी रोटी रे भँवरा॥
मरिया पाछे बेटो लाड़ु उड़ाया रे भँवरा।
मरिया पाछे बेटो लाड़ु उड़ाया रे भँवरा॥
जीविता क तो बेटो कपड़ा नि पेराया रे भँवरा।
जीविता क तो बेटो कपड़ा नि पेराया रे भँवरा।
मर्या पाछे बेटो मसरू ओढ़ाया रे भँवरा।
मर्या पाछे बेटो मसरू ओढ़ाया रे भँवरा॥
जिवता क तो बहु हिचके नि हिचाड्यो रे भँवरा।
जिवता क तो बहु हिचके नि हिचाड्यो रे भँवरा।
मर्या पाछे बहु हिचके हिचाड़े रे भँवरा।
मर्या पाछे बहु हिचके हिचाड़े रे भँवरा॥
जिवता क तो बेटो कुद्यां नि उँघळायो रे भँवरा।
जिवता क तो बेटो कुद्यां नि उँघळायो रे भँवरा॥
मर्या पाछे बेटो खुब ऊँघळावे रे भँवरा।
मर्या पाछे बेटो खुब ऊँघळावे रे भँवरा॥
महिलाएँ जनसामान्य का शिक्षा देती हैं- हे जीव! प्रभात और सूर्योदय होता है।
जीवित रहते माता-पिता को पुत्र ठीक से भोजन नहीं देता है और नुक्ते में लड्डू
जिमाता है। जीवित रहते हुए पुत्र माता-पिता को ठीक से वस्त्र लाकर नहीं पहनाता
है और मरने के बाद मसरू ओढ़ाता है। जब तक सास-ससुर जीवित रहें, तब तक
बहू ने झूले पर नहीं झुलाया और मरने के बाद खूब झुलाती है। (इस क्षेत्र के आदिवासियों
में मरने के बाद झूले पर झुलाया जाता है। कुटुम्ब के लोगों के अलावा दूसरे मातम के
लिए आने वाले भी मृत शरीर को झूला देकर झुलाते हैं।)
जीवित रहते हुए माता-पिता को नहलाया नहीं और मरने के बाद खूब नहलाते हैं। गीत में यह बताया गया है कि माता-पिता की सेवा पुत्र और पुत्रवधू को ठीक से करना
चाहिए। मरने के बाद के कार्य तो चली आ रही परम्परा है।
मृत्यु गीत / 2 / भील
चुइण्यो चुइण्यो महलो गंधये राम।
चुइण्यो चुइण्यो महलो गंधये राम।
बणिया रे श्री राम पोपट
एक दिन रइणें नि पायो, राम को बुलावो आयो।
एक दिन रइणें नि पायो, राम को बुलावो आयो।
लागि गयो द्वारिका री वाट राम, बणियो पोपट श्री राम को।
चुइण्यो-चुइण्यो हिचको बंधायो राम।
चुइण्यो-चुइण्यो हिचको बंधायो राम।
एक दिन हिचणें नि पायो राम।
एक दिन हिचणें नि पायो राम।
आइ गयो राम को बुलावो।
लागि गयो द्वारिका री वाट राम, बणियो रे श्री राम पोपट।
चुइणों चुइणों भोजन रंधाड्यो राम।
चुइणों चुइणों भोजन रंधाड्यो राम।
एक कवळ नि खाणें पायो राम, आइ गयो राम को बुलावो।
लागि गयो द्वारिका री वाट राम, बणियो रे पोपट श्री राम को।
- चुन-चुनकर महल बनाया। महल अच्छा बना। एक दिन भी रहने न पाया, मेरे
राम। मेरे राम तो भगवान राम के पोपट बनकर उड़ गए। मेरे राम ने द्वारिका का
रास्ता पकड़ लिया।
अच्छा झूला बँधाया। मेरे राम ने, पर एक दिन भी झूलने नहीं पाये और राम का
बुलावा आ गया। मेरे भगवान राम के पोपट बनकर उड़ गए। मेरे राम ने द्वारिका
का रास्ता पकड़ लिया।
मेरे राम ने अच्छा भोजन बनवाया, किन्तु एक कौर भी नहीं खा पाये, भगवान राम
का बुलावा आ गया। वे पोपट बनकर उड़ गए और द्वारिका का रास्ता पकड़ लिया।
पत्नी इस प्रकार पति की मृत्यु पर रो-रो कर दुःख प्रगट करती है।
मुत्यु गीत / 3 / भील
खोटो बेटो आज काम को
खोटो बेटो आज काम को, खोटो रूप्यो आज काम को।
एक दिन खोळो बांधि लिजियो राम॥2॥
खोटा रूप्या की ओरावणी करि दिजो राम,
खोटी बहु आज काम की राम, एक दिन भोजन बणाइ देवो,
खोटी बहु आज काम की राम॥2॥
आज को वो भोजन जिमाड़ि देवो राम॥2॥
खोटी बेटी आज काम की, एक दिन मसरू ओढ़ाई दीजो॥
खोटी बेटी आज काम की॥2॥
खोटो जवाँ आज काम को, एक दिन काण मोड़ाइ देवो राम,
खोटो जवाँ आज काम को॥
भजन में कहा गया है कि- माता-पिता के अन्तिम संस्कार के लिए खोटा पुत्र,
खोटा रुपया, खोटी बहू, खोटी बेटी, खोटा जवाँई सभी काम के हैं। खोटा पुत्र
भी अन्तिम संस्कार के लिए आवश्यक है क्योंकि माता-पिता का अन्तिम संस्कार
अगर पुत्र न करे तो उसकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलती है। खोआ रुपया भी
शव पर काम आ सकता है। खोटी बहू भी काम की है। मृतक के लिए भोजन
बनाती है। बेटी भी मसरू शव पर ओढ़ा देती है। जवाँई भी अन्तिम संस्कार के
लिए काम का है, क्योंकि नुक्ते में काण भाँजने के लिए बकरा लाता है। तात्पर्य
यह है कि इनके बिना मृतात्मा को शान्ति नहीं मिलती है।
मृत्यु गीत / 4 / भील
दुख सागर भरिया दुख-सुख मन मा नि लावणा॥
राम सरीका रे राजा हुया, हारे जे घरे सतवन्ती नारी
आया रे रावण सीता लय गया
हाँ रे जिनका बुरा हया हाल, दुख-सुख मन मा नि लावणा।
हाँ रे हरिशचन्द्र सरीका रे राजा की, जे घर तारावन्ती नारी
आपना रे सत का कारणे, हाँ रे नीच घर भरियो पाणी।
दुख-सुख मन मा नि लावणा।
हाँ रे पाण्डव सरीका रे राजा वी।
हाँ रे जिन घर द्रोपती राणी
दुशासन चीर रे खेचिया, हरी पुरायो चीर
दुख-सुख मन मा नि लावणा।
संत कबीर की वीणती अरे सायब सुणलेणा
दास धना की विणती, हाँ रे रघुपति गुण गावणा।
दुख-सुख मन मा नि लावणा।
- किसी की मृत्यु होने पर गीत गाते हैं। संसार रूपी समुद्र दुःखांे से भरा है।
दुःख-सुख मन में नहीं लाना चाहिए। जो जीव पैदा हुआ है उसकी मृत्यु होनी
ही है, उसके लिए दुःख नहीं होना चाहिए। उदाहरण देकर समझाया है कि-
राजा राम जिनके यहाँ सती नारी थी, रावण आया और सीता को हरण कर ले
गया। रावण का कैसा बुरा हाल हुआ? तात्पर्य यह है कि मनुष्य को अच्छे कर्म
करना चाहिए, पाप नहीं करना चाहिए।
सतयुग में हरिश्चन्द्र राजा हुए, उनके यहाँ तारामती रानी थी। अपने सत्य के निर्वाह
में (सपने में ब्राह्मण को राज्य का दान कर दिया था) उन्हें राजपाट छोड़ना पड़ा और
दान के साथ दक्षिणा देने के लिए स्वयं की पत्नी बिक गए और मरघट की रखवाली
की। कितना दुःख झेला, किन्तु हिम्मत नहीं हारी। पुत्र की मृत्यु दुःख को जाना। इसलिए
मरने वाले के प्रति दुःखी नहीं होना चाहिए।
पाण्डव समान द्वापर में राजा हुए, उन पर कितना दुःख पड़ा था, राजपाट हार गए, खुद हारे
और पत्नी द्रोपदी को हार गए। दुःशासन द्रोपदी का चीर खींचने लगा था, उसे नग्न करना
चाहता था, किन्तु भगवान कृष्ण ने चीर को बढ़ाया और उसकी लज्जा रखी। दुःख संसार में
सभी पर पड़ता है उसको मन में नहीं लाना चाहिए।
संत कबीर विनती करते हैं कि सुनो! भगवान का राम नाम लेना चाहिए, जिससे मृतात्मा को
शान्ति प्राप्त होती है। गीत का मुख्य उद्देश्य परिवार वालों का ध्यान दुःख से दूर हटाना है।
मृत्यु गीत / 5 / भील
राम भजो रे, भगवान मारो मन काई म लागी रयो।
राम भजो रे, भगवान मारो मन काई म लागी रयो।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
भगवान मारो मन बेटा-बहु म रमी रयो रे राम।
भगवान मारो मन बेटा-बहु म रमी रयो रे राम।
भगवान मारो मन कई मा लागी रयो।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
भगवान मारो मन खेती-वाड़ी म लगी रयो।
भगवान मारो मन खेती-वाड़ी म लगी रयो।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन छोरी जवाँई म लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारा मन कइ मा लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन नाती-पोती म लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन कइ मा लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन घर-बार म लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
- मानव के अन्तिम क्षणों में जब केवल श्वाँस बाकी रहती है, उस समय की दशा
का इस मृत्यु गीत में वर्णन किया गया है।
राम का भजन करो। हे भगवान! मेरा मन किसमें लगा हुआ है जिससे मेरा जीव अटका
है। मरणासन्न दशा वाले मनुष्य से कहलाया गया है कि मेरा गन अपने पुत्रो और बहुओं
में लगा हुआ है। इस सभी का मोह मेरी आत्मा को रोके हुए है। आगे कहा गया है कि
मेरा मन खेती-बाड़ी के मोह में अटका हुआ है। मेरी खेती-बाड़ी इतनी बड़ी और अच्छी
है। यह संसार मोह माया है इसमें जीव अटका है। लड़की और जवाँई के मोह में मेरा
जीव अटका है। नाती और पोती का मोह भी रोके हुए हैं। घर-बार का मोह भी
रुकावट डालता है।
गीत का मुख्य उद्देश्य यह है कि माया मोह के सांसारिक बंधनों में मनुष्य पड़ा
रहता है। (राम का भजन करना चाहिए जिससे मनुष्य को मुक्ति प्राप्त होती है।)
लोगों को भगवान के भजन की ओर प्रेरित करने के प्रयास में ये उदाहरण दिये हैं।
मृत्यु गीत / 6 / भील
पाप धरम की गाठड़ी रे दयाराम, गाठड़ी काहाँ उतारां रे जी॥
गाठड़ी त ढोल्या नीचे उतारो रे, दयाराम भगवान लेखो मांगेगा॥
भगवान लेखो त तुम पछ लीजो रे, हम त भूखा चली आया॥
ताजा भोजन की थाली परसेली रे राम,
कोई के जिमाड्या होय त जीमो राम
निहिं ते भूख्या चली जाओ राम॥
भगवान लेखो मांगे राम॥
पाप धरम की गाठड़ी रे राम,
गाठड़ी काहाँ उतारां रे राम,
काठड़ी त ढोल्या हेट उतार दो राम,
भगवान लेखो मांगे राम॥
लेखो तो तुम पाछे लेजो, तीसा मरता आया जी॥
कोरा-कोरा मटका भरिया रे राम,
तुमने पिलाया होय तो पीवो जी।
नि तो तीस्या चली जावो राम॥
पाप धरम की गाठड़ी रे दयाराम,
गाठड़ी काहाँ उतारूँ॥
गाठड़ी तो ढोल्या हेट उतारो राम,
भगवान लेखो मांगे जी॥
लेखो तो तुम पाछे लेजोजी।
हम तो उघाड़ा आया जी॥
कोरा-कोरा कपड़ा गाठड़ा बंदिया पड़िया राम,
कोई के पेहराया होय त पेरो राम,
नहीं तो उघाड़ा चल्या जाओ राम॥
भगवान लेखो मांगे जी॥
पाप धरम की गाठड़ी रे दयाराम गाठड़ी काहाँ उतारूँ॥
गाठड़ी तो ढोल्या हेट उतारो राम,
भगवान लेखो मांगे जी॥
लेखो तो तुम पाछे लीजो
हम तो पायं बलता आया राम॥
नवी नवी मोजड़िया गाठड़ा मा बंधी
कोई के पेहराया होय त पेरो जी,
नहीं तो अलवाणा चल्या जाओ राम
भगवान लेखो मांगे जी॥
- मनुष्य इस देह को छोड़कर जब धर्मराज के यहाँ जाता है तो वहाँ क्या कहता
है? क्या उत्तर मिलता है? यह इस गीत में बताया गया है।
मनुष्य इस संसार में खूब धन अर्जित करता है, कोई मेहनत करके कमाता है और
कोई चोरी, भ्रष्टाचार, मिलावट से धन अर्जित करता है। कोई अपनी मेहनत की कमाई
से धर्म कार्य करता है, दान देता है। कोई दुनिया वालों पर प्रभाव डालने के लिए पाप
की कमाई को धार्मिक कार्यों में लगाकर अपने को आदर्श दानी कहलाता है, किन्तु इस
संसार से जब जाता है तो धन-दौलत, पुत्र-बहू आदि सभी यहीं रह जाते हैं, कोई भी
साथ में नहीं ले जा सकता। उसके साथ तो केवल पाप और धर्म की गठरी जाती है।
जिसने अपने परिश्रम की कमाई से जीवन-यापन करते हुए यथाशक्ति धरम किया है,
वही साथ जाता है। पाप की कमाई वाला पाप की गठरी ले जाता है। वहाँ जाकर विनय
करता है कि दयालु पाप-धरम की गठरी साथ में लाया हूँ इसे कहाँ उतारूँ? उसे
उत्तर मिलता है- दयाराम गठरी तो पलंग के नीचे रख दो, भगवान हिसाब माँगेंगे।
तुमने कितना धरम कियिा है औ कितना पाप किया है? मनुष्य वहाँ कहता है कि-
हिसाब तो आप बाद में लेना, मैं दुनिया से भूखा आया हूँ, मुझे भोजन चाहिए। उत्तर
मिलता है कि ताजे भोजन की थाली परोसी हुई है, तुमने अपनी मेहनत की कमाई
से किसी अपंग, अनाथ, गरीब, साधू ब्राह्मण को जिमाया हो तो जीम लो, नहीं तो
भूखे चले जाओ। अरे राम! भगावान तो हिसाब माँगते हैं, तुम्हें पात्रता आती हो तो जीमो।
आगे इसी प्रकार प्रश्न करके कहता है कि- मैं प्यास आया हूँ, मुझे पानी चाहिए। उत्तर
मिलता है कि किसी प्यासे को पानी पिलाया हो तो पी लो नहीं तो प्यासे जाओ। यहाँ
ठंडे पानी के मटके भरे हैं, तुम्हें पात्रता हो तो पी लो।
आगे जीव कहता है- मैं उघाड़ा आया हूँ वस्त्र चाहिए। उत्तर मिलता है कि यहाँ नये-नये
कपड़ों के गाठड़े बँधे हैं। तुमने किसी गरीब, असहाय को वस्त्र दान किया हो तो पहन लो,
नहीं तो उघाड़े चले जाओ। आगे कहता है कि मेरे पैर जलते हैं- मोजड़िया चाहिए। उत्तर
वही मिलता है कि तूने किसी को मोजड़िया पहनाई हो तो पहन लो, नहीं तो वैसे ही चले
जाओ। भगवान तो हिसाब माँगते हैं।
इस मृत्यु गीत का मुख्य उद्देश्य यह है कि दुनिया में अपने परिश्रम की कमाई से जीवन-यापन
करते हुए उसमें से बचे तो यथाशक्ति गरीब, अपंग, ब्राह्मण, साधु को दान देना चाहिए। इस
प्रकार दान की ओर प्रेरित किया गया है।
मृत्यु गीत / 7 / भील
टेक- अरे थारो बहुत दिन म आयो दाव,
म्हारा हंसा समली न चौपट खेल रे।
चौक-1 अरे चोपट मांडि सान मेरे हंसा खेलर्यो
घड़ि चार रे, अरे हंसा खेलर्यो घड़ी चार रे,
समली न चोपट खेलो मेरे हंसा, जो युग मांडिया को दाव
म्हारा हंसा समली न चोपट खेल।
चौक-2 चार खाणी की चोपट, बणी रे हंसा चौरासी
घर को यो दाव रे, अरे हंसा चौरासी घर को यो दाव रे,
अरे जीत तो सुर पुर मरे जासे
नहिं तो फिर चौरासी म जाय, म्हारा हंसा समली न खेल
चौक-3 चौरासी घर की चौरासी सार हंसा ब्रह्मा न फासो यो डालियो रे,
अरे हंसा ब्रह्मा ने यो फासो डालियो रे,
सम्हली ने सार चलो रे मेरे हंसा
यो ताकीर्यो यमराज मेरे हंसा, समली न चोपट खेल रे,
अरे यारो बहुत दिन म दाव आयो रे, समली न चोपट खेल।
छाप- कहे कबीरा सुणो धरमदास ये पंथ हे निरवाणी रे
यहि रे पंथ की करो रे परीक्षा, थारो हांसो गये सतलोक
मेरे हंसा समली न चोपट खेल।
- अरे मानव! चौरासी लाख योनियों के बाद तुझे यह मानव जन्म प्राप्त हुआ है,
यह अवसर तुझे बहुत वर्षों बाद प्राप्त हुआ है। इस पवित्र योनी में बहुत सम्हलकर
चौपड़ खेल, मतलब यह है कि इस काया पर दाग मत लगने दे।
अरे मानव! छान में (बरामदे में) चौपड़ बिछी है, चार घड़ी खेल रहा है। यह संसार
अल्प समय के लिए मिला है, इसमें सम्हलकर खेलो, अगर चूक गए तो अवसर चूक
जाओगे। अर्थात् भक्ति कर अच्छे कार्य करो, इस काया पर कलंक न लगने दो। चार
खानों की चौपड़ खेलने की चौकड़ी बनी है, उसमें चौरासी घर हैं। अरे! जीत गया तो
स्वर्ग में जायेगा और हार गया तो फिर चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा, इससे
तू सम्हलकर चल। चौपड़ में चौरासी घर हैं, चौरासी सार हैं। ब्रह्माजी ने यह पासा डाला
है। सम्हलकर सार चलो यमराज ताक रहा है। मानव बहुत दिन में अवसर तेरे हाथ आया
है। चूक गया तो यमराज ले जायेगा और नरक में डालेगा।
कबीरदासजी कहते हैं- धरमदास सुनो! यह पंच निरवाणी है, इस पंथ की परीक्षा करो, तेरा
हंसा सतलोक में गया, हंसा सम्हलकर खेलो।
मृत्यु गीत / 8 / भील
टेक- आर तुन मनक्या जनम गमायो हंसा, नाम नहिं जाण्यो राम को।
चौक-1 हारे खाई न दिन गमाविया रे हंसा,
सोइ न गमाइ तुन रात रे, आरे हंसा सोइन गमाइ तुन रात रे
हीरा सरीका तुन जलम गमाया,
एको कवड़ी मोल नइ पायो हंसा नहिं जाण्यो राम को।
चौक-2 तन की बणाइ तुन ताकड़ी, हांसा रे हांसा,
मन को बणायो सेर रे, आरे हांसा मनको बणायो तुनसेर रे।
सुरत नुरत दोनो डांडी लगाई, हांन थारा तोलणम कछु फेर
हांसा नाम निजाण्यो राम को।
चौक-3 सकर विखरी रेत म रे हंसा, कसि पाछि आवे हाथ रे।
अरे हंसा कसि पछि आवे हाथ रे।
सरग सुवागणी ऊतरी रे, ऐसी किड़ियां बणकर चुंग।
हंसा नाम नि जाण्यो राम को।
छाप- तिरगुणी घाट संत का मेळा
कसि पत उतरेगा पार रे।
कसि पत उतरेगा पार रे।
गऊ का दान तुम देवो मोरे हंसा।
तेरा धरम उतरारेगा पार,
हंसा नाम नि जाण्यो राम को।
अरे जीव! तूने मानव जन्म खो दिया, राम का नाम नहीं जाना।
अरे मानव! तूने खाकर दिन खो दिए और सोकर रात खो दी। हीरे के समान तूने
जन्म खो दिया। मानव जीवन का मूल्य एक कौड़ी के बराबर न पाया। राम का
नाम न जाना।
इस शरीर को तूने तराजू बनाई और मन का सेर बनाया। सुरत-निरत दोनों डांडी
लगाई और तेरे तौलने में कुछ कपट है, तूने राम का नाम न जाना।
अरे जीव! शक्कर रेत में बिखर गई, वह अब हाथ में नहीं आ सकती, समय चला
गया अब क्या? उस रेत में बिखरी शक्कर को चीटियाँ बनकर चुग अर्थात् और
चौरासी लाख योनियों में भटक। त्रिगुण घाट पर संतो का मेला किस प्रकार पार
उतरेगा? गोदान करो, तेरा धरम पार उतारेगा। तूने राम का नाम न जाना।
मृत्यु गीत / 9 / भील
टेक- क्यों झुरवो न मेरी माई ममता क्यों झुरवो मेरी माई।
चौक-1 जंगल-जंगल की जड़ी बुलाई,
वेद्य करो मेरा भाई, अरे हंसा वैद्य करो मेरा भाई
अरे ये जड़ियां कछु काम नी आई।
ऐसी आदल राम घर आई,
ममता क्यों झुरवो मेरी माई।
चौक-2 पाँच हाथ को रेजो बुलायो, सुन्दर काया ढकाई,
अरे हंसा सुन्दर काया ढकाई,
अरे चार मिली चवरग्या उबीया,
ऐसो छछ म लियो उटाई, ममता क्यों झुरवो मेरी माई
चौक-3 डेल लगुण थारी त्रिया संगाती,
झोपड़ा लगुण तेरि माता, अरे हंसा झोपड़ा लगुण तेरि माता
नंदी लगुण तेरा कुटुम कबीला, ऐसो वहां छोड़िया रे अकेला
ममता क्यों न झुरवो मेरी माई
चौक-4 माता रोवे थारी जलम जोगणी,
बइण वार तिवार, त्रिया रोव तीन घड़ी रे।
ऐसो दूसरो करग घर वास, ममता क्यों न झुरवो।
चौक-5 जंगल-जंगल की लकड़ी बुलाई, त्योको सल रचाई,
अरे हंसा त्योको सल रचाई।
चार मिलि न चवंरग्या ऊब्या
ऐसी उल्टी आग लगाई, ममता क्यों झुरवो मेरी माई।
चौक-6 हाड़ जले जो बन्द की लकड़िया
बाल जले रे हरिया घास, अरे हंसा हरिया घास।
अरे हीरा सरीकी काया जलत है,
ऐसा कोई नी आवेगा पास, ममता क्यों न झुरवो।
छाप- कये कबीरा सुणो भाई साधो यो पंथ है निरवाणी।
- माता की ममता क्यों दुःखी हो रही है। कई जंगलों से जड़ी-बूटियाँ बुलाकर
वैद्यों ने उपचार किया, किन्तु कोई काम नहीं आया। ऐसा राम के पार का बुलावा
आया और हंसा (जीव) चला गया।
पाँच हाथ का कफन बुलाया और सुन्दर शरीर को ढांका। अर्थी के चारों खूँट पर
चार लोग खड़े हुए और शीघ्र उठा लिया। ममता क्यों दुःखी हो।
दरवाजे तक पत्नी साथ गई, झोपड़ों तक माता गई, नदी तक कुटुम्ब गया और वहाँ
क्रियाकर्म कर अकेला छोड़ आये।
तेरी माता पूरे जीवन रोती है और बहन त्यौहार पर रोती है। पत्नी तीन घड़ी रोती है
और दूसरा घर कर लेती है।
जंगल की लकड़ी बुलाई और आग लगा दी।
टेक- क्यों झुरवो न मेरी माई ममता क्यों झुरवो मेरी माई।
चौक-1 जंगल-जंगल की जड़ी बुलाई,
वेद्य करो मेरा भाई, अरे हंसा वैद्य करो मेरा भाई
अरे ये जड़ियां कछु काम नी आई।
ऐसी आदल राम घर आई,
ममता क्यों झुरवो मेरी माई।
चौक-2 पाँच हाथ को रेजो बुलायो, सुन्दर काया ढकाई,
अरे हंसा सुन्दर काया ढकाई,
अरे चार मिली चवरग्या उबीया,
ऐसो छछ म लियो उटाई, ममता क्यों झुरवो मेरी माई
चौक-3 डेल लगुण थारी त्रिया संगाती,
झोपड़ा लगुण तेरि माता, अरे हंसा झोपड़ा लगुण तेरि माता
नंदी लगुण तेरा कुटुम कबीला, ऐसो वहां छोड़िया रे अकेला
ममता क्यों न झुरवो मेरी माई
चौक-4 माता रोवे थारी जलम जोगणी,
बइण वार तिवार, त्रिया रोव तीन घड़ी रे।
ऐसो दूसरो करग घर वास, ममता क्यों न झुरवो।
चौक-5 जंगल-जंगल की लकड़ी बुलाई, त्योको सल रचाई,
अरे हंसा त्योको सल रचाई।
चार मिलि न चवंरग्या ऊब्या
ऐसी उल्टी आग लगाई, ममता क्यों झुरवो मेरी माई।
चौक-6 हाड़ जले जो बन्द की लकड़िया
बाल जले रे हरिया घास, अरे हंसा हरिया घास।
अरे हीरा सरीकी काया जलत है,
ऐसा कोई नी आवेगा पास, ममता क्यों न झुरवो।
छाप- कये कबीरा सुणो भाई साधो यो पंथ है निरवाणी।
- माता की ममता क्यों दुःखी हो रही है। कई जंगलों से जड़ी-बूटियाँ बुलाकर
वैद्यों ने उपचार किया, किन्तु कोई काम नहीं आया। ऐसा राम के पार का बुलावा
आया और हंसा (जीव) चला गया।
पाँच हाथ का कफन बुलाया और सुन्दर शरीर को ढांका। अर्थी के चारों खूँट पर
चार लोग खड़े हुए और शीघ्र उठा लिया। ममता क्यों दुःखी हो।
दरवाजे तक पत्नी साथ गई, झोपड़ों तक माता गई, नदी तक कुटुम्ब गया और वहाँ
क्रियाकर्म कर अकेला छोड़ आये।
तेरी माता पूरे जीवन रोती है और बहन त्यौहार पर रोती है। पत्नी तीन घड़ी रोती है
और दूसरा घर कर लेती है।
जंगल की लकड़ी बुलाई और आग लगा दी।
शरीर लकड़ी के समान और बाल घास के समान, हीरे के समान काया जल रही है, कोई
पास नहीं आता है।
शरीर लकड़ी के समान और बाल घास के समान, हीरे के समान काया जल रही है, कोई
पास नहीं आता है।
मृत्यु गीत / 10 / भील
टेक- दल खोलो कमल का फूल हंसा, सायब रे न मिलावण ना होय रे।
चौक-1 गऊ न का दूध नीबजे रे हंसा, दूध का दही होय रे।
आरे हंसा दूध न का दही होय रे।
मयड़ो रोळो माखण नीबजे रे, ऐसो फिर नहिं दहिड़ो होय
सायब रेन मिलावण होय।
चौक-2 फूल फूलियो गुलाब को हंसा, भँवरो गयो लोभाय रे,
आरे हंसा भँवरो गयो लोभाय रे।
कली-कली भँवरो गुँजी रह्यो हंसा,
एसो फूल गयो कुम्हलाय।
सायब रे न मिलावण ना होय रे।
चौक-3 पाटियां पाड़ी रूड़ा प्रेम की रे हंसा, सोभती बिंदिया सजाई रे।
आरे हंसा रे न मिलावण ना होय रे।
चूंदड़ ओढ़ कोई प्रेम की रे, वकि मुक्ति का होय कल्याण,
सायब रेन मिलावण ना होय रे।
चौक-4 नंदी किनारे घर कर्यो हंसा, नहावत निरमल नीर रे।
आरे हंसा नहावत निरमल नीर रे।
धरमी राजा पार उतरिया, ऐसो पापी गोता खाय
सायब से मिलावण ना होय रे।
छाप- कइये कमाली कबिर सा की लड़की, ऐसा खत अमरापुर पाया।
- हंस कमल दल का फूल खोलो, भगवान से मिलना न हो। गौ से दूध उत्पन्न
होता है, दूध से दही बनता है, छाछ बनाई, मक्खन निकाला, उसके बाद दही नहीं
हो सकता, इसी प्रकार समय खो दिया फिर भगवान से मिलना नहीं हो सकता।
गुलाब का फूल खिला, उस पर भँवरा लुभाया। कली-कली पर भँवरा गुंजार करता
रहा और ऐसा करते फूल मुरझा गया। इस प्रकार ऐसा करते हुए अरे मानव! उस
फूल के समान तेरी जिन्दगी खत्म हो गई। भगवान का भजन न किया, इससे
भगवान का सामीप्य नहीं हुआ। फिर चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।
अरे हंसा (जीव)! महिलाओं को सम्बोधन किया गया है- स्नान किया, सिर के
बालों की पाटियाँ प्रेम से पाड़ी। ललाट पर सुन्दर बिन्दी लगाई, इससे भगवान का
सामीप्य नहीं मिलता है। अरे! भगवान से लगन की चूनरी ओढ यानी भगवान
का भजन भी कर, जिससे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो। आनन्दपूर्वक जीवन के साथ
भजन भी कर।
अरे जीव! नदी के किनारे घर बनाया और खूब निर्मल जन से स्नान किया, किन्तु
धर्म नहीं किया? धम्र करने वाले पार उतर गए अर्थात् इस संसार रूपी नदी से
पार उतर गये। तात्पर्य यह कि मुक्ति पा गये और पापी बीच में ही गोते खाते हैं।
कबीरदासजी की पुत्री कमाली कहती है कि धर्म करने वालों को अमरापुर की प्राप्ति
होती है।
मृत्यु गीत / 11 / भील
टांडो लाद चल्यो बणजारो।
टेक- अरे मन लोभी थारो काई रयण को पतियारो।
चौक-1 गिर पड्यो कोट, बिखर गइ माटी॥
माटी को हुइ गयो गारो, थारो कइ रयण को पतियारो।
मन लोभी थारो कइ रयण को पतियारो।
चौक-2 वाड़ लगायो तुन बहुत रसीलो भाई
जेकि पेरी को रस न्यारो-न्यारो।
थारो रयण को कइ पतियारो।
चौक-3 बुझ गयो दीपक जळ गइ बाती॥
भाई थारा महल म पड़ि गयो अंधियारो।
थारो काइ रयण को पतियारो
मन लोभी, टांडो लाच चल्यो बणझारो,
थारो काइ रयण को पतियारो
चौक-4 लेय कटोरो भिक मांगण निकल्यो॥
भाइ कोइ न नि दियो उधारो,
थारो रयण को काइ पतियारो।
टांडो लाद चल्यो बणझाारो,
थारो रयण को काइ पतियारो।
छाप- कई ये कबीर सुणो भई साधु
ऐसा संत अमरापुर पाया,
थारो रयण को कइ पतियारो।
- बणजारा अपना टांडा बैलों पर लादकर चला। अरे मानव! तू उस बणजारे की
बालद के समान अल्प समय के लिए इस संसार में आया है। बणजारा अपने मार्ग
पर जाते हुए रात्रि में ठहरता है और सबेरा होते ही अपने गंतव्य की ओर टाण्डा
(माल-असबाब) बैलों पर लादकर चल पड़ता है, उसी के समान मानव तू भी दुनिया
में आया है और समय पूरा होने पर चल पड़ेगा। अरे मन! तेरे रहने का क्या भरोसा
है, यानी कब दुनिया से जाना पड़ेगा, क्या भरोसा है?
यह शरीर पंचत्व का बना है, कच्ची मिट्टी के कोट के समान है। जिस प्रकार कच्ची
मिट्टी का किला गिरकर बिखर जाता है और उस माटी का गारा हो जाता है, उसी
प्रकार कब जीव इस घर को छोड़कर चला जायेगा और यह पंचतव्व द्वारा निर्मित देह
मिट्टी (गारा) हो जायेगी। तेरा रहने का क्या भरोसा है? अरे लोभी मन! तेरा रहने का
क्या भरोसा है? तात्पर्य है जो भी भजन, धरम-पुण्य, भले कार्य करके अपने मोक्ष प्राप्ति
का मार्ग प्रशस्त कर।
अरे लोभी मानव! तूने बहुत मीठे रस वाला गन्ने का खेत भरा, उस गन्ने की पेरी (गन्ने
में कुछ-कुछ दूरी पर गठानें होती हैं, उन गठानों के बीच के भाग को पेरी कहते हैं) के
रस की मिठास अलग होती है। जड़ के ऊपरी हिस्से की पेरी का रस ज्यादा मीठा होता
है और ऊपर जैसे-जैसे पेरी आती है क्रमशः उन पेरियों के रस की मिठास कम होती
जाती है।
मनुष्य तू प्रारम्भ से ही भगवान की भक्ति में लग जा और उस भक्ति की मिठास को प्राप्त
कर, उसमें मजा ले। आगे क्या भरोसा है, कब तक दुनिया में रहना होगा?
अरे मानव! दीपक बुझ जाता है और फिर रही-सही बत्ती भी जल जाती है। अरे भाई! दीपक
बुझा और तेरे महल में अंधेरा हुआ। जीव चला गया तो इस शरीर में अंधेरा हुआ और
शरीर की हलचल समाप्त हो जाती है। मानव तन तेरे रहने का क्या भरोसा है?
इसलिए प्रारम्भ से ही चेत जा। कबीरदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य प्रारम्भ से
ही चेत कर भगवान की भक्ति और भले कर्म धरम-पुण्य कर लेते हैं, ऐसे संत
अमरापुर पा लेते हैं।
मृत्यु गीत / 12 / भील
मायारो मोओ जाळ देखन डोलो जियो।
भजियो नहिं भगवान गाफल भूलो जियो।
जिवड़ा रे जोइ ने हाल आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार दोरो तरनों जियो।
जल ऊंडो सेंसार दोनों तरनों रे हो जी॥
थारे बांदण पचरंग पाग, सेली सोहे जियो।
मोतिड़ा तपे ले ललार, लुणिया लड़के जियो।
जिवड़ा से जोइ ने हाल, आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार, आखर मरन्हु जियो।
जल उंडो सेंसार, दोरो तरनू रे हो जी॥
सांवलिया घर नार, मेलां बेटी जियो।
दरपण लेती हाथ मुखड़ो मुखड़ो देखे हो जी।
जिवड़ा रे जोइ ने हाल, आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार नेसे मरणु जियो।
जळ उंडो सेंसार दोरो तरणों रे हो जी॥
आंधळा रे भजले राम, रटले माळा जियो।
सुरता रे भजले राम, रटले माळा जियो।
बोलिया कसन मुरार, बंसी वाळा रे हो जी।
जिवड़ा रे जोइ ने हाल, आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार नेसे मरणु जियो।
जळ उंडो संेसार दोरो तरणू रे हो जी॥
- इस दुनिया में माया मोह का जाल बहुत बड़ा है। अरे मानव! तू इस जाल में
पड़कर मस्त हो रहा है। मेरा लड़का, मेरा घर, मेरा धन, मेरी पत्नी- ये सब माया
ने जाल बिछा रखा है। और मनुष्य इसी में उलझकर उस कर्ता भगवान को भूल
जाता है और उसका भजन नहीं करता है। अरे जीव! तू यह जानकर चल कि आखिर
मरना तो है। यह धन, पुत्र, पौत्र, पत्नी सब यहीं छूट जायेंगे, कोई साथ नहीं आयेगा।
तू अपने मोक्ष के लिए भी कुछ काम कर अर्थात् भगवान का भजन भी कर। तू यह
विचार कर कि यह संसार रूपी समुद्र बहुत गहरा है, इससे पार उतरना बहुत कठिन है।
बस एक मात्र उपाय है तू भगवान को मत भूल। भजन में मानव को शिक्षा दी है कि -
तू बहुत धनवान हो गया और सिर पर पचरंगी पगड़ी शोभायमान हो रही है, गले में स्वर्ण
की कंठी पहने है। पगड़ी के तिल्लों के मोती झूल रहे हैं और खूब शोभा पा रहा है। अरे
लोभी! तू यह जानकर चल कि आखिर मरना है। यह संसार रूपी समुद्र खूब गहरा है,
इससे पार उतरना यानी मोक्ष प्राप्ति कठिन है। भगवान की भक्ति ही तुझे पार उतार
सकती है।
मानव! तेरे घर में सुन्दर स्त्री है, महल में निवास है, हाथ में दर्पण लेकर अपना मुख निहारती
है। तू सुख-भोग में लिप्त है। तूने कभी विचार किया कि अन्त में मरना है। आगे के लिए
क्या किय? मुक्ति हेतु कुछ किया कि नहीं। अरे! उस भगवान का भजन कर, जो तुझे पार
उतारेगा।
अरे मनुष्य! तू इस माया-मोह में अंधा हो रहा है। भगवान का भजन कर ले, उनके नाम की
माला जप ले। कृष्ण मुरारी बंशीवाले ने भी गीता में उपदेश दिया है कि शुद्ध भाव से मुझमें
मन लगा ली तो मुक्ति हो जायेगी। अरे लोभी! सोच ले, मरना तो है ही और मरकर पार
उतरना कठिन है इसलिए माया-मोह के फंदे से निकलकर भगवान का भजन कर ले। नहीं
तो फिर चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।
मृत्यु गीत / 13 / भील
हाड़ मास का बणा रे पींजरा, भीतर भर्या भंगारा
ऊपर रंग सुरंग लगायो, अजब करी करतारा,
जोबन धन पावणा दिन चारा, अने जाता नि लागे वारा,
जोबन धन पावणा दिन चारा॥
पशु चाम के बाजा बने रे, नोबत बने नंगारा।
नर तेरि चाम काम नहिं आवे, नर तेरि चाम काम नहिं आवे
जळ भळ होइ अंगारा, जोबन धन पावणा दिन चारा॥
गरब कर्यो रतनागर सागर, केसा नीर मतवाळा
एसा-एसा वीर गरब माय गळिया, आधा मीठा आधा खारा
जोबन धन पावणा दिन चारा, अने जाता नि लागे वारा,
जोबन धन पावणा दिन चारा।
दस मस्तक वनी वीस भुजा रे, कुटम बहुत परिवारा
एसा-एसा नर गरब माय कलिया, लंका रा सरदारा
जोबन धन पावणा दिन चारा।
यो संसार ओस वाळो पाणी, अने जाता नि लागे वारा।
कहत कबीर सुणों भइ साधू, कहत कबीर सुणो भइ साधू
हर भज उतरोला पारा, जोबन धन पावणा दिन चारा॥
- यह मनुष्य का शरीर एक हड्डी और माँस का पिंजरा है, इसके भीतर भँगार भरा
है। इस शरीर पर ऊपर अच्छज्ञ रंग-रोगन कर सुन्दरता प्रदान की है, यह भगवान
की माया गजब की है। जवानी और धन-दौलत चार दिन की मेहमान है, इसे जाते
देर न लगेगी। मानव तू इस हड्डी और माँस के पिंजरे पर तथा धन-दौलत पर अभिमान
न कर, ये चार दिन के मेहमान हैं।
मानव! तू विचार तो कर। अरे! पशुओं के चमड़े के बाजे, नोबत, नगारे और भट्टी की धम्मन
बनती है, परन्तु तेरा चमड़ा तो जलकर खाक होने वाला है। किसी के भी कुछ काम नहीं
आने वाला है। तू उस परमात्मा का भजन कर, जिससे तू इस संसार रूपी समुद्र से पार
उतर जायेगा।
रत्नाकर समुद्र ने घमण्ड किया था, किस पर घमण्ड किया था अपने निर्मल नीर पर, तो भगवान
ने उसके जल को आधा खारा और आधा मीठा बना दिया। इस जीवन में अभिमान नहीं करना
चाहिए क्योंकि यह थोड़े समय का है, किसे मालूम कब राम के घर का बुलावा आ जाये।
लंका में राजा रावण, वह बहुत मायावी और बलशाली था। उसके दस सिर और बीस भुजा थी
और बहुत बड़ा कुटुम्ब था। रावण ने बहुत अत्याचार, अनाचार किया, कितने ही साधुओं को
मारा। उसके पुत्र मेघनाथ ने इन्द्र को भी जीत लिया था। देवताओं को जीता। रावण ने सीता
का हरण किया, किन्तु अपने बुरे कर्मों के कारण कुटुम्ब सहित मारा गया। जैसा उसका भाई
भगवान का भगत था, वैसा आचरण रावण भी रखता तो आज तक लंका पर उसके वंश का
राज्य रहता। मनुष्य को अभिमान नहीं करना चाहिए। यह जवानी और धन-दौलत चार-दिन
की मेहमान है।
इस दुनिया में मनुष्य ओस का पानी के समान अल्पकाल के लिए आया है। जैसे प्रातःकाल पृथ्वी
और पेड़-पौधों पर ओस का पानी दिखाई देता है और सूर्य की किरणों से अल्पकाल में उड़ जाता
है। अरे मनुष्य! इस हड्डी और माँस के पिंजरे पर घमण्ड नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने
परिश्रम की कमाई से जीवन-यापन करते हुए भगवान का भजन भी करनाा चाहिए जिससे सद्गति
प्राप्त हो। यह जवानी और दौलत चार दिन की मेहमान है।
मृत्यु गीत / 14 / भील
पवाँ फाटियो ने सुरिमल उगिया राम।
पवाँ फाटियो ने सुरिमल उगिया राम॥
सास नणद क कइ क मीराबाई लात नहिं मारना राम।
सास नणद क कइ क मीराबाई लात नहिं मारना राम॥
उनको नाके गदड़ी को अवतार व, मीरा बाई राम।
उनको नाके गदड़ी को अवतार व, मीरा बाई राम॥
गदड़ी तो रूखड़े लुलाइ रा, मीराबाई राम।
गदड़ी तो रूखड़े लुलाइ रा, मीराबाई राम॥
सासू नणद क जूठो भोजन नि देणू राम, मीरा बाई राम।
सासू नणद क जूठो भोजन नि देणू राम, मीरा बाई राम॥
वको नाखसे मांजरी को अवतार राम, मीरा बाई राम।
वको नाखसे मांजरी को अवतार राम, मीरा बाई राम॥
मांजरी ते घेर-घेर दूध दहि उष्टो चाटे राम, मीरा बाई राम।
मांजरी ते घेर-घेर दूध दहि उष्टो चाटे राम, मीरा बाई राम॥
मीरा बाई कहे राम भजो रे राम।
आपणी देराणी-जेठाणी का कारा नहिं करनु रे राम।
वको नाखसे कुतरी नो अवतार व राम।
कुतरी बणिन घरे-घर भुखसे रे राम।
घरवाळा कथि छिपिन नि खाणूं राम।
वको नाखसे वागळी नो अवतार राम।
वागळी ते औंधी झाड़े लटके रे राम।
जिना मुहंडे खाय पलाज मुहंडे हागे रे राम।
मीरा बाई कहे राम भजो रे राम॥
- इस गीत में महिलाओं ने महिलाओं से कहा है कि भगवान राम का भजन करो
उसी में कल्याण है। सवेरा हुआ और सूर्योदय हुआ। राम का भजन करो। अपनी
सास व ननद को लात नहीं मारना, नहीं तो भगवान गधी का अवतार देगा, गधी
बनकर घूरे पर लोटोगी। सास-ननद को जूठा भोजन न खिलाना, नहीं तो भगवान
बिल्ली का अवतार देगा, बिल्ली बनकर घर-घर के दूध-दही के बर्तन व जूठा चाटना
पड़ेगा। अपनी देरानी-जेठानी की बुराई नहीं करना, नहीं तो भगवान कुत्ती का अवतार
देगा और घर-घर भूँकोगी। अपने पति से छिपकर नहीं खाना, नहीं तो भगवान चमगादड़
का अवतार देगा, दिन में नहीं दिखेगा और पेड़ पर औंधी लटकी रहोगी, एक ही मुँह
से खाओगी और उसी से मल त्याग करोगी। मीरबाई का कहना है कि राम का भजन करो।
भील जनजाति के अन्य गीत
भील जन्म गीत लोकगीत Bheel Janjati ke Janmotsav Geet Lyrics (Bhil)
No comments:
Post a Comment