होली पूजन / भील फाग गीत
तू आई वो बयण सालिया पाल हंव आई वो बयण भर उल्हाळे॥
तू तो लाई बयण गोटी फटाका, न हंव लाई बयण लाल गुलाल॥
तू तो लाई बयण गुंजिया पापड़, न हंव तो लाई वाकड़ वेलिया॥
तू तो आई बयण गाय का गोयऽ, हंव तो आई बयण खयड़े व बयड़ै॥
तू तो आई वो बयण कार्तिक महने, हंव तो आई बयण फागण महने॥
- होली ओर दीपावली दोनों बहने हैं। होली बहन दीपावली से कहती है कि- बहन! तु सर्दी के दिनों में आयी और मैं गरमी में आयी। तू गोट्या पटाखा लायी और मैं गुलाल लायी। तू गुजिया पापड़ लायी और मैं जलेबी लायी। तू गौ के गोयरे आयी (गौ पूजन) मैं टेकरे-टेकरी पर आयी। तू कार्तिक माह में और मैं फाल्गुन में आयी। दोनों त्यौहारों का समय वे किस प्रकार मनाते हैं, इसका वर्णन किया है।
फगवा माँगन का गीत / भील फाग गीत
तू बोल रे कोरा कागद, बोल रे होळि वाळा॥
नारी बायर की घूगर माळ लीगया होळिा वाळा॥
तू बोल रे केसरिया भइया, बायर को रखवाळो॥
थारी बायर के घूगर माळा, तोकि गया होळि वाळा॥
तू बोल रे कोरा कागद बोल रे हाळि वाळा॥
तू बोल रे रणछोड़ भइया, तू बायर को रखवाळो॥
थारी बायर के घूगर माळा, तोकि गया होळि वाळा॥
होळी से झोळी बांध राति चुनरिया॥
गांग्या रे थारी नार रात चुनरिया॥
गेरिया में रमती मेल, राती चुनरिया॥
कुण-कुण क कयगा बाप, राती चुनरिया॥
मांगिया क कयगा बाप, राती चुनरिया॥
गौरा क कयसे माय, राती चुनरिया॥
गौरा क कयसे माय, राती चुनरिया॥
सुरेश भइया क हाट म देख्यो माथऽ कड़ब् को भारो॥
- तू कोरे कागज बोल! होली खेलने वाले बोल! (जिस व्यक्ति से फगवा माँगते हैं महिलाएँ उसे घेर लेती हैं और फगवे में जो रुपये लेना है उससे कबूल करवाती हैं कि बोल कितने रुपये देगा और गीत गाती जाी हैं। वह रुपये देना कबूल करता है तब उसे छोड़ती हैं।) कितने रुपये देगा? तेरी पत्नी की घूगरमाल होली वाले ले गये।
आगे नाम लेकर कहती हैं कि- केसरिया! तू पत्नी की रखवाली करता है और तेरी पत्नी की घूगरमाला होली खेलेने वाले उठाकर ले गये। आगे दूसरे व्यक्ति को पकड़कर घेरती हैं और गीत में कहती हैं- अरे रणछोड़! तू पत्नी का रखवाला है तेरी पत्नी की घूगरमाला होली वाले उठा ले गये।
माँगिया! तेरी पत्नी लाल चूनरी वाली है। लाल चूनर से होली का झूला बाँध। गेंरिया (होली खेलने वालों में) लाल चूनरी वाली को खेलने भेज। गेंरिया में पेट रह गया, लाल चूनरी वाली का, उसका बालक किस-किस को पिता कहेगा? माँगिया को पिता कहेगा या गौरां को। बेटा लाल चूनरी वाली का।
सुरेश को कड़बी का भारा लेकर देखा (सुरेश भी होली खेलने वालों में है, उसे घेरकर कहा गया है)। भारा नहीं चढ़ा तो रोते हुए देखा।
इस प्रकार होली खेलते हुए फगवा माँगती है। हँसी-मजाक के रूप में ये गीत गाये जाते हैं, कोई बुरा भी नहीं मानता है, खुश होते हैं, क्योंकि बुरा न मानो होली है।
होली गीत / 2 / भील फाग गीत
टेक- मचाई बृज में हरी होरी रचाई।
चौक-1 इत से हो आई सुगर राधिका
उत से कृष्ण कन्हाई।
हिलमिल फाग रचिो फागण को,
तो सोभा बरणि न जाई, लालजी ने होरी मचाई,
बृज में हरि होरि रचाई
चौक-2 राधा सेन दियो सखियन को, झुण्ड झुण्ड उठ आई।
लपट झपट गले श्याम सुन्दर के, तो पर्वत पकड़ बनाई।
लालजी ने होरी रचाई।
बृज में हरि होरी रचाई।
चौक-3 छीन लीनी रे वाकि मोर मुरलिया, सिर चूनर ओढ़ाई।
बिन्दी जो भाल नयन बिच कजरा।
तो नथ बेसर पेराई
कृष्णजी नार बणाई,
बृज में हरि होरी रचाई।
चौक-4 करि गई तेरि मोर मुरलिया, कां रे गई चतुराई,
कां रे गया तेरा नन्द बाबाजी, तो कांहां जसोदा माई
लालजि ने लेवे छोड़ाई
बृज में हरि होरी रचाई।
छाप- धन गोकल धन-धन बृन्दावन धन हो जसोदा माई।
धन मयती नर सहया न स्वामी, तो मांगू ते बेऊ कर जोड़ी
सदा रंग रऊंगा तुमारी,
बृज में हरि होरी रचाई।
चौक-5 तो घणा रे दिवस ना दही दुद खादा, तुम बिन चोर न कोई
लेत कसर सब दिन की चुकाऊँ
हे तुम बिन चोर न कोई ददी मेरो माखन खाई
बृज में हरि होरी रचाई।
छाप- धन गोकल धन-धन बिन्द्राबन, धन हो जसोदा माई,
धन मयता नरसइया नू स्वामी
चौक-6 बाजत ताल मिरदंग झांजर डफ मर्जुग धुन न्यारी।
चवां रे चवां चंदन आरो पिया, तो रंग का उड़त फवारा,
मानो रे जैसे बादल छाई, बृज में हरि होरी रचाई।
- बृज में श्रीकृष्ण ने होली रचाई और धूम मचा दी। इधर से राधिका आई और उधर से कृष्ण आये। दोनों ने मिलकर होली का फाग रचा (फाल्गुन मास का फाग रचा) तो उस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। लालजी (श्रीकृष्ण) ने होली रचाई।
राधा ने सखियों को आँखों से इशारा किया तो होली खेलने के लिए सखियाँ उठकर झुण्ड के झुण्ड में आ गईं। श्रीकृष्ण के गले लिपट गईं और पर्वत के समान कसकर मजबूती से पकड़ा। श्रीकृष्ण ने होली रचाई।
राधिका और सखियों ने मुनकी, मुरली और सिर का मोर मुकुट छीन लिया और उनके सिर पर चूनरी ओढ़ा दी। ललाट पर बिन्दी और नयनों के बीच काजल लगाकर नाक में नथ पहना दी और श्रीकृष्ण को औरत बना दिया। फिर गोपियाँ कृष्ण से पूछती हैं कि कहाँ गया तुम्हारा मोर मुकुट और मुरली? तेरे नंदबाबा और जसोदा माता कहाँ गये? वे आकर आपको छुड़ा लें। गोकुल धन्य है। वृन्दावन धन्य-धन्य है। यशोदा माता धन्य है।
गोकुल और वृन्दावन धन्य हैं। यशोदा माता धन्य है। नरसिंह मेहता के स्वामी श्रीकृष्ण धन्य हैं। मैं दोनों हाथ जोड़कर वर माँगूँ कि आप सदैव साथ रहें। हरि ने ब्रज में होली रचाई।
आपने बहुत दिनों तक दूध-दही चुराकर खाया। आपके अलावा कोई दूसरा चोर नहीं है। आज सब दिन की कसर निकाल लेंगे। मेरा दही और माखन खूब खाया है। गोकुल, वृन्दावन, यशोदा माता और नरसिंह मेहता के स्वामी श्रीकृष्ण धन्य हों।
मृदंग ताल, झाँझ, डफ बज रही है। मर्जुन की धुन का क्या कहना, उसकी धुन निराली ही है। प्रत्येक चौक में चंदन आरोपित किए हैं और फव्वारों से रंग की फुहारें उड़ रही हैं, मानो जैसे बादल छाये हुए हांे। ब्रज में हरि ने होली रचाई है।
होली भजन / भील फाग भजन गीत
टेक- बिराणी जानकी हर लाए बिराणी।
चौक-1 कहत मंदोदरी सुण पिया रावण कोण बुद्धि उपजाई।
उनकी जानकी तुम हर लाए।
वो तपसी दोनों भाई, पिया तुने एक न मानी,
जानकी हर लाए बिराणी।
चौक-2 लिया जात की ओछी रे बुद्धि, उनकी करव बड़ाई,
दूर मण्डल से पकड़ बुलाऊँ, हे राम लखन दोनों भाई
पिया तुने एक न मानी।
जानकी हर लायो बिराणी।
चौक-3 मेघनाथ सरीका पुत्र हमारा, कुम्भकरण सा भाई
लंका हमारी बनी है सोने की।
वो सात समन्दर नव खाई, पिया तुने एक न मानी।
जानकी हर लाए बिराणी।
चौक-4 हनुमान सरीका है सेवक जिनका, लक्ष्मण है छोटा भाई,
जलती आगन में कूद पड़ेंगे, तो कोट गिणें न वो खाई,
पिया तुने एक न मानी।
जानकी हर लाए बिराणी।
छाप- रावण मार राम घर आए, घर-घर होत बधाई।
माता कौशल्या करत आरती, तो राज विभीषण पाई,
पिया तुने एक न मानी,
जानकी हर लाए बिराणी।
- मंदोदरी अपने पति रावण से कह रही है कि- पिया सुनो! आपको किसने ऐसी बुद्धि दी कि पराई सीता का हरण कर ले आए? वे दोनों तपस्वी दो भाई हैं, तूने मेरा कहा एक न माना।
रावण मंदोदरी से कहता है कि- स्त्री जाति की बुद्धि बहुत कम होती है, तू उन तपस्वियों की प्रशंसा कर रही है। मैं दूर कहीं से भी उन्हे पकड़कर बुलाऊँ। मंदोदरी कहती है- वे दोनों तपस्वी राम और लक्ष्मण दोनों भाई हैं, पिया तूने कहा एक न माना।
मंदोदरी कहती है- मेघनाथ के समान हमारा पुत्र है और कुम्भकरण के समान आपका भाई है। हमारी लंका सोने की बनी हुई है। इसके आसपास सात समुद्र और नौ खाइयाँ हैं, जो इसे सुरक्षा प्रदान करते हैं। हे पिया! आपने मेरी एक न मानी, पराई सीता को हर लाये।
हनुमान के समान राम का सेवक है और उनका छोटा भाई लक्ष्मण है। यह दोनों महाबली जलती आग में कूद पड़ेंगे। दोनों महाबलवान हैं, लंका के कोट और खाइयाँ उनके आगे कुछ काम न आयेंगी। हे पिया! आपने एक न माना।
राम ने लंका पर चढ़ाई की, कुटुम्ब और सेना सहित रावण को मारा और राम घर आये। घर-घर बधाई हो रही है, खुशियाँ मनाई जा रही है। माता कौशल्या भगवान राम की आरती कर रही हैं। लंका का राज्य भगवान राम ने विभीषण को दिया। पिया! आपने एक न मानी और पराई जानकी का हरण कर ले आये।
होली गीत / 1 / भील फाग गीत
होळी आज न काल, होळी चली रे लोल॥
होळी को मोटो तिवार, होळी चली रे लोल॥
पड़ी को मोटो तिवार, होळी चली रे लोल॥
पांचम को मोटो तिवार, होळी चली रे लोल॥
सांतव की सीतळा पुजाई, होळी चली रे लोल॥
- होली आज-कल है। होली का त्यौहार समाप्त होने चला है। होली का त्यौहार बड़ा है। पंचमी और सप्तमी को रंग से होली खेलते हैं। पूर्णिमा के दूसरे दिन धुलेन्डी पर होली की धूम मचती है। सप्तमी के दिन शीतला पूजन और छठ के दिन बना हुआ भोजन करते हैं। सप्तमी का दिन होली का अन्तिम दिन होता है।
होली गीत / 4 / भील फाग गीत
टेक- हो साँवरा मती मारो पिचकारी
चौक-1 मति मारो रे मोहे जात में रयणा, में पर घर की हूँ नारी।
हमको रे लजा तुम कोरे ऐसा।
तो मुख से देऊँगी गाली, फजीता होयगा तुम्हारा,
साँवरा मति मारो पिचकारी।
चौक-2 ऐसी रे होस होत हइयाँ में, फिर परणों तुम नारी।
जाय कहूँगी जसोदा माय को,
हजुवन में हुँ कुँवारी ढूढो तो वर माता हमारी,
साँवरा मति मारो पिचकारी।
चौक-3 पर नारी पंलव पकड़ों ऐसी हे चाल तुम्हारी।
माता पिता ना रे व्रत भयो छे
तो राजा कन्स हों भय भारी सुणेगा तो होय विस्तारी।
साँवर मति मारो पिचकारी।
छाप- धन गोकल धन-धन विन्द्रावन धन हों जसोदा माई।
धन मयता नरसइया नु स्वामी।
तो मांगु ते बेड कर जोड़ी सदा संग रहूँगा तुम्हारी।
साँवरा मति मारो पिचकारी।
- हे साँवरे श्रीकृष्ण! मुझ पर पिचकारी से रंग मत छींटो। हे साँवरे! मुझ पर पिचकारी से रंग न डालो। मुझे अपनी जाति में रहना है। मैं पराये घर की स्त्री हूँ। आप ऐसा करेंगे अर्थात् रंग डालेंगे तो हमें लज्जा आयेगी, अगर आप रंग डालेंगे तो मैं अपने मुँ से गाली दूँगी और आपके फजीते हो जायेंगे। हे साँवरे! पिचकारी न मारो।
एक गोपी कहती है कि- अगर आपको इतना शौक है तो तुम ब्याह कर लो। मैं यशोदा माता से जाकर कहूँगी, अभी तक मैं कुँवार हूँ मेरे लिए वर ढूँढ़ो। हे साँवरे! पिचकारी न मारो।
एक नारी कहती है कि आप एक पराई नारी का पल्ला पकड़ना चाहते हैं, ऐसी चाल दिखाई देती है। राजा कंस का भय नहीं लगता, सुनोगे तो होश उड़ जायेंगे। हे साँवरे! पिचकारी न मारो।
गोकुल, वृन्दावन और यशोदा माता धन्य हो। नरसिंह मेहता के स्वामी श्रीकृष्ण धन्य हो। दोनों हाथ जोड़कर वरदान माँगती हूँ कि सदा आपके साथ रहूँ।
होली गीत / 3 / भील फाग गीत
टेक- मुरारी झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-1 राती घांगर रंग सिर पर झपटी वैसिया वरणी साड़ी।
कच्चे पक्के डोर रेसम के हो तोड़े
तो झड़गइ कोर किनारी, देखो रे अनोखा खिलाड़ी,
झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-2 सात सखी मिल गई जमना पे
वहाँ बैठे कृष्ण मुरारी,
घर मेरा दुर घांगर सिर भारी, तो में नाजुग पणियारी
देखो रे अनोखा खिलाड़ी, झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-3 कुएं पे जाऊँ तो रे किच मचत है,
जमना बेहती है गेहरी।
गोकुल जाऊँ तो रंग से भींजूं
तो अण साँवरा से मैं हारी, देखो रे अनोखा खिलाड़ी,
झपटियो मेरो चीर मुरारी।
चौक-4 आगल सुणत मोरि बगल सुणत हैं,
सासू सुणेंगा देगि गाली,
पिउजी सुणेंगा तो पकड़ बुलावे, तो बात भई बड़ि भारी,
देखो रे अनोखा खिलाड़ी, झपटियो मेरो चीर मुरारी।
छाप- बाई पड़ोसण अरज करत है,
विनती कर-कर हारी।
ऐसी सिख काऊ को नहिं देना।
तो चन्द्रसखी बलिहारी,
देखो रे अनोखा खिलाड़ी,
झपटियो मेरो चीर मुरारी।
- गोपी कहती है कि- श्रीकृष्ण ने मेरा चीर छपटकर छीन लिया। लाल मटकी मेरे सिर पर और वैसे ही रंगी की साड़ी थी, उस साड़ी में कच्चे-पक्के रेशम के धागे थे, वे तोड़ दिये। धागे टूटने से साड़ी की कोर (बार्डर) निकलकर अलग हो गई। देखो रे! अनोखे खिलाड़ी को, मेरा चीर झपट लिया।
मैं सखियों के साथ यमुना पर पहुँची, वहाँ श्रीकृष्ण मिल गये। मेरे सिर पर भारी मटकी, मेरा घर दूर है और मैं कोमल (नाजुक) पणिहारी हूँ। मुझे रोको मत, मटकी का वजन लग रहा है। दूर जाना है और मैं नाजुक हूँ, फिर भी कृष्ण न माने और मेरी चीर (साड़ी) छीन ली।
गोपी कहती है कि कुएँ पर जाऊँ तो कीचड़ मचता है अर्थात् कुएँ पर पानी से भिगो देते हैं। यमुना पर जाती हूँ तो यमुना गहरी बहती हैं अर्थात् वहाँ भी मुझे भिगो देते हैं। गोकुल में जाऊँ तो रंग से भीगूँ (मुझे श्रीकृष्ण रंग से सराबोर कर देते हैं)। मैं इस साँवरे श्रीकृष्ण से हार गई। इस अनोखे खिलाड़ी से हार गई। मेरी चीर झपट लिया।
एक गोपी कहती है- मेरे अगल-बगल के (आसपास रहने वाले) और मेरी सास सुनेगी तो मुझे गाली देगी। मेरे पति सुनेंगे तो बड़ी भारी बात हो जायेगी (बखेड़ा हो जायेगा)। मुझे पकड़कर बुलवायेंगे। देखो! इस अनोखे खिलाड़ी को मेरी चीर छीन लिया।
पड़ोस की बाई से कहती है कि मैं विनती कर-कर हार गई कि ऐसी सीख किसी को न देना (पराई स्त्री के चीर को कोई न झपटे), इस अनोखे खिलाड़ी कृष्ण को देखो, मेरी चीर झपट लिया।
फाग गीत / 1 / भील फाग गीत
नणदल ने भोजाई दोइ, भेलो पाणी लावे रे॥
नणदल चाली सासरे, भोजाई रोवे रे, जोड़ी बिखरगी॥
हाँ रे जोड़ी बिखरगी, नणदोई थारी वेल वधजो रे,
जोड़ी बिखरगी॥
- ननद और भाभी दोनों साथ में पानी लाती हैं। ननद ससुराल चली तो दोनों की जोड़ी टूट गई। जोड़ी टूटी, किन्तु भाभी ननदोई को आशीर्वाद देती है कि आपकी वंश वृद्धि हो।
होली गीत / 5 / भील
टेक- मुरारी जाण दो तुम से ना खेलां होरी।
चौक-1 होरी की धूम मचाई हो साँवलिया खेल रहे बल जोरी।
कच्चे पक्के डोर रेसम के हो तोड़े।
तो झड़ गई कोर किनारी, लालजी ने बयाँ मरोड़ी।
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
चौक-2 ददी बेचेन चली है गुवालन सिर पर दही केरी गोली।
घर-घर कहती तुम लेवो रे दहियाँ तो मटकी में आन बसोई,
लालजी ने घांघर ढोली।
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
चौक-3 पांय न बेऊ पायल सोहे, झालर करे झनकोरी।
गोरी-गोरी बईयाँ हरी-हरी चूड़ियाँ।
तो रंगीन रंगिया हाथ लालजी ने मेंदी विकोरी।
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
चौक-4 खेलत गेंद गिरी है जमुना में तुने मेंरि गेंद चुराई।
न हाकत हाथ ढूंढत आंगियाँ में।
एक गइ दूजी पाई, लालजी ने चोरी लगाई,
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
छाप- धन गोकल धन-धन बिन्द्रावन, धन हो जसोदा माई।
धन मयता नरसइया नू स्वामी,
तो मांगु ते बेउ कर जोड़ी, सदा संग रहूँगा तुम्हारी,
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
- हे श्रीकृष्ण! मुझै जाने दो, आपके साथ होली नहीं खेलना है। अरे साँवरे! की धूम मचाई है और जबरन करके (बरबस) मेरे साथ होली खेलना चाहते हो। मेरी साड़ी के कच्चे-पक्के धागे तोड़ दिये और किनारी निकलकर
गिर गई और श्रीकृष्ण ने मेरी बाँह मरोड़ दी। मुझे जाने दो, आपके साथ होली नहीं खेलना है।
ग्वालिन दही की मटकी सिर पर उठाकर दही बेचने चली और घर-घर फिरकर कहती है- दही ले लो। तो श्रीकृष्ण ने मटकी पकड़कर दही ढोल दिया। और होली खेलना चाहते हैं। गोपी कहती है कि- मुझे जाने दो, आपके साथ होली नहीं खेलना है।
दोनों पैरों में पायजेब शोभायान हैं और पायजेब की झालर की झन्कार निकल रही है। गोरी-गोरी कलाइयों में हरी-हरी चूड़ियाँ शोभित हैं। और मेरे हाथों में मेहंदी लगी हुई है। लालजी (श्रीकृष्ण) ने मेरी मेहंदी हाथों पर लगी हुई बिखेर दी। मुझे जाने दो आपके साथ होली नहीं खेलना है।
श्रीकृष्ण गेंद खेल रहे थे। गेंद यमुना में गिर पड़ी और मेरे सिर चोरी लगाते हैं कि तूने मेरी गेंद चुरा ली और अंगिया में हाथ डालकर खोजते हैं। एक गेंद गई दूसरी मिल गई, श्रीकृष्ण ने मुझ पर चोरी डाली। जाने दो आपके साथ होली
नहीं खेलना है।
गोकुल, वुन्दावन और यशोदा माता धन्य हो, नरसिंह मेहता के स्वामी सांवळिया धन्य हो। दोनों हाथ जोड़कर वर माँगती हूँ कि सदा आपके साथ रहूँगी। जाने दो आपके साथ होली नहीं खेलना है।
फाग गीत / 2 / भील फाग गीत
मोगरियां री टोपली बजारां माही चाली रे॥
वाला थारी आंगली झन्नाटे चढ़गी रे,
ढुलगी मोगरियां।
हारे ढुलगी मोगरियां, वालाजी थोड़ी भेजी करजो रे,
ढुलगी मोगरियां।
- प्रेयसी संगरी की टोकरी लेकर बाजार में बेचने के लिए निकली। रास्ते में प्रेमी ने टोकरी को पकड़ा तो टोकरी सिर से गिर गई और संेगरियाँ बिखर गईं। प्रेयसी प्रेमी से कहती है कि संेगरियाँ एकत्रित करने में मेरा सहयोग करो।
एक तो कागदियो लिखने कदली वन में मेलो रे॥
कदली वन रा हातीड़ा विलाड़े लइजो रे, कँवर परणीजे॥
हाँ रे कँवर परणीजे, हाती रा होदे तोरण वांदें रे,
कँवर परणीजे॥
- एक पत्र लिखकर कजली वन में भेजो और कजली वन के हाथी बिलाड़ा (राजस्थान) बुलाओ। उस हाथी पर दीवान साहब बिलाड़ा के कुँवर अपने ब्याह में बैठकर तोरण का स्पर्श करेंगे।
फाग गीत / 3 / भील फाग गीत
ढोल रो धमेड़ो में तो रोटा करती हुणियो रे॥
घुघरिया रो रणको में तो मोलो हुणियो रे, महिनो फागण रो।
हाँ रे महिनो फागण रो, फागण रो महिनो एलो जाये रे,
महिनो फागण रो॥
- फाग की रसिक महिला कहती है कि ढोल की आवाज तो मैंने रोटी बनाते हुए सुनी, किन्तु नाचने वालों के पैरों के घुँघरुओ की आवाज बहुत ही कम सुनाई दी जिससे सुनने में मजा नहीं आया। फाल्गुन का महीना यों ही बीत रहा है अर्थात फाग का आनन्द नहीं आ रहा है। नाचने वालांे के पैरों के घुँघरुओं की आवाज सुनाई नहीं देती है।
फाग गीत / 4 / भील फाग गीत
राम ने लछमण री जोड़ दोई अगियाधारी रे॥
सीताजी रा वेर में लंका ने बाली रे,
रावण मारियो।ं
हाँ रे रावण मारियो, राज तो विभीषण करिया रे,
रावण मारियो॥
- राम-लक्ष्मण दोनों की जोड़ आज्ञाकारी है, सीताजी के बैर में रावण को मारा और राज्य विभीषण ने किया।
फाग गीत / 6 / भील फाग गीत
जसोदा पूछेरे म्हारा कानजी ने देख्या ओ॥
बरसाणा वजार माहे दड़िया रमर्या ओ,
चटियो हाथ में॥
हाँ रे चटियो हात में गोपियाँ गूलाल वारे ओ,
चटियो हाते में॥
- माता यशोदा किसी से पूछ रही है कि- मेरे कृष्ण कन्हैया को देखा है? उत्तर मिलता है कि- कन्हैया बरसाणा के बाजार में गेंद खेल रहा है और डंडा हाथ में है तथा गोपियाँ कन्हैया पर गुलाल की वर्षा कर रही हैं।
फाग गीत / 5 / भील
नेणा में काजलियो छोरी, लालाड़ी में टीकी रे॥
भएलो परदेस बैठो, लिख दो चिठी रे, वेगो आवे रे॥
हाँ रे वेगो आवे रे, फागण रो मीनो एलो जाए रे,
मीनो फागण रो।
- प्रेयसी के नयनों में काजल लगा है और ललाट पर टीकी लगी है। वह कहती है- प्रेमी पदरेश में बैठा है, पत्र लिख दो, जल्दी आये, क्योंकि फाल्गुन मास व्यर्थ ही बीत रहा है।
फाग गीत / 7 / भील
राते तो हाऊजी थारो जायो बारे रेग्यो ओ।
राते तो हाऊजी थारो जायो बारे रेग्यो ओ।
पाड़ोसण री भीत माथे पगल्या मंडिया ओ,
वरजो जाया ने,
हाँ रे वरजो जाया ने, लाड़कियो मोमाळ लाजे ओ,
वरजो जाया ने।
- एक बहू अपनी सास से अपने पति की शिकायत शिष्टता के साथ करती है कि- सासूजी! रात्रि में आपके पुत्र घर में नहीं आए। सुबह मैंने उनके पदचिन्ह पड़ोसन की दीवार पर मढ़े हुए देखे, आप उन्हें रोकिए, क्योंकि प्रतिष्ठित ममसाल भी लज्जा महसूस करेगा, उनकी प्रतिष्ठा भी जायेगी।
फाग गीत / 8 / भील
नाचण तो नाचण चाली ढोल गेरो वाजे रे।
होळी आगे गेरिया झरावर नाचे रे, हालो देखाने।
हाँ रे हालो देखाने हवजी वालो जायो नाचे रे, हालो देखाने।
- एक पत्नी कहती है कि- नाचने वाली नाचने का चली, ढोल अच्छा बज रहा है, देखने को चलो। मेरा पति भी नाच रहा है।
फाग गीत / 9 / भील
झांज री झणकार में तो रोटा करती हुणी रे।
घूघरिया रो रणको में तो मोळो हुणियो रे,
छोरो थाकेलो।
हाँ रे छोरो थाकेलो, मेथी रो हंदाणो होदो रे
छोरो थाकेलो।
- एक महिला रोटियाँ बनाते हुए फाग वालों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती है कि- झाँझ की झँकार तो मुझे अच्छे सुनाई दे रही है, किन्तु नाचने वाले घुँघरुओं की आवाज से प्रतीत होता हे कि वह कमजोर है। उसके लिए मेथी दाने लड्डू बनाओ ताकि उसके पैरों में ताकत आये।
फाग गीत / 10 / भील
एक तो खाती रा बेटा, म्हारो काम करजे रे।
भाएलो परणीजे तोरण हकड़ो घड़े जे रे।
लीला डांडा रो।
हाँ रे लीला डांडा रो मोर ने पपीहा वाळो रे,
लीला डांडा रो।
- एक लड़की सुतार के पुत्र से आग्रह करती है कि- एक काम मेरा करना, मेरा प्रेमी ब्याह करने जा रहा है, उसके लिये हरी लकड़ी का छोटा तोरण घड़ना और उस पर मोर-पपीहे घड़कर लगाना।
फाग गीत / 11 / भील
म्हू तो म्हारा घर में हूती, कांकरिया कुण मारे रे।
घर-घर रा कांकरिया माहे घायल वेगी यो,
परी परणाओ।
हाँ रे परी परणावो, देस ने परदेस वचमें यो,
परी परणाओ।
- एक नवयौवना कहती है कि मैं तो अपने घर में सोई हुई हूँ। कंकड़ कौन मार रहा है? पास के घरों के लड़कों से में घायल हो गई हूँ, मेरा ब्याह देश-परदेश में कहीं भी कर दो।
फाग गीत / 12 / भील
चन्दरमा री चांदणी तारा रो तेज मोळो रे।
बालमणा रो भाएलो परदेस नीकाळियो,
मूंडे मळियो नी।
हाँ रे मूंडे मळियो नी, जातोड़ा री पीठ देखी यो,
मूंडे मळियो नी।
- एक युवती कहती है कि- चन्द्रमा की चाँदनी और तारों का प्रकाश मंद है। मेरे बचपन का प्रेमी बिना मिले परदेश चला गया। मुझसे मिला भी नहीं, जाते हुए उसकी पीठ देखी। इससे वह क्षुब्ध है।
फाग गीत / 13 / भील
बदिंल्या घड़इदो देवर, घर में थारो सारो रे॥
दाम तो परण्या रा लाग्या, नाव थारो रे कि देवर म्हारो रे॥
कि देवर म्हारो रे, हरिया रूमाल वाळो रे, कि देवर म्हारो रे॥
- एक भाभी लाड़ से देवर से कहती है कि- घर में मुझे तेरा सहारा है, मुझे बिन्दी घड़वा दें। ब्याह में पैसे तो मेरे पति के लगे, किन्तु नाम तेरा है। मेरा देवर हरे रूमाल वाला है। (इसका दूसरा अर्थ भी लगाया जा सकता है।)
फाग गीत / 14 / भील
मारा आँगना मा भाँगड़ी नु झाड़
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू।
सासरा मा मारी सासुरी नु दख
पीयरा मा आऊ मारी आई नु लाड़
मारी आई जी नु लाड़।
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू
मारा आँगना मा भाँगड़ी नु झाड़
सासरा मा जाऊँ मारा सुसरा नु दख
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू...।
पीयरा मा आऊँ बाजी नु लाड़
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू.....।
सासरा मा जाऊँ मारी ननदी नु दख
पीयरा मा आऊँ मारी भाभी मोल्या
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू....।
सासरा मा जाई मारा देवर नु दख
पीयरा मा आवी मारा भाइ नु लाड़
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू
मारा आँगना मा भाँगड़ी नु झाड़।
ढोला मारुजी पीवे रे तम्बाकू
- पत्नी कहती है कि उसके आँगन में भाँग का पेड़ है। उसके पति भाँग और तम्बाकू पी-पीकर मस्त रहते हैं। अब मैं क्या करूँ? ससुराल में मेरी सासु दुःख देती है और मायके में माँ लाड़-प्यार! मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?
ससुराल में जाती हूँ तो मेरे ससुर दुुःख देते हैं और मायके में बाप का प्यार! मेरे पति तो भाँग और तम्बाकू में मस्त रहते हैं। ससुराल मैं जाती हूँ तो मुझे ननद की ओर से दुःख है और मायके में भाभी का व्यवहार ठीक नहीं, मैं क्या करूँ? ससुराल में मुझे देवर की ओर से दुःख है और मायके में भाई का प्यार! मैं क्या करूँ? मुझे
कहाँ जाना चाहिए?
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