मन्नू हरिया / अंगिका लोकगाथा
वन्दना
लागी गेलै अजमतिया हो गोसैंया, फिरै धरमोॅ के व्येॅ हो वार
माया रचना रचै बाबा हो, अलख भग हो वान
एन्होॅ माया रचलकै बाबा हो, त्रिलोकी भग हो वान
दोनों कर जोड़ी केॅ बाबा हो, लबी-लबी करियौं पर हो नाम
हम्में निरबुधिया बाबा हो, करौं धरमोॅ के व्येॅ हो वार
सम्मुख दर्शन दियहवोॅ बाबा हो, भगतिया के हो नजर
हम्में भक्ति के भगत हो बाबा, जपभौं रोजे-रोज भगति के
हरि हो नाम
जिनगी में जब तक काया बचतौं बाबा हो
जपभौं हरि-हरि हो नाम
भुललोॅ-चुकलोॅ दाता निरंजन, हमरोेॅ हाजरियो निर हो माय।
दोहा
गुरू ब्रह्मा अनादि का, हृदय में ध्यान लगाय
हाथ में लेखनी पकड़ के चरण शीष नवाय
कियो विचार मन में यह, लिखूँ हरिया डोम का गीत
‘प्रभात’ लिख दियो सुनी केॅ हरिया डोम का गीत
गाथा वाचक जो मुझे जनायो, लिख दियो कागज पे अमृत।
हो, हो यहो गाथा छेकै जोति भगत के समय रोॅ हो भाय
जखनी कि जोति जाय छेलै करै लेॅ भगति हरि हो नाम
जोति आरो हरिया डोम दोनों नें चराबै छेलै
एक्के साथें बरेलवा वन में हो सूअर
दोनों बचपन रोॅ छेलै लंगोटिया संगी हो साथी
वही समय में मिललै दोस्त लंगोटिया हरिया डोमा हो भाय
वहीं पलोॅ में दाता निरंजन आपनोॅ सूअर हरिया डोमा केॅ सौंपे
आरो चललै करै लेॅ भगति हरि हो नाम
हरिया डोमा गछी लेलकै जोति के सूअर हो चराय
मजकि डोमा नें जोति सें करलकै एक्के कौल हो करार
हो, रे भाय जोति, तों जे जाय छैं, भगति करै लेॅ जाय छैं
यै भगति के आधा-आधी फल बाँटै लेॅ पड़तौ
कहेॅ तेॅ लागलै जोति नें हरिया केॅ समुहो झाय
हे रे भाय हरिया, तोरोॅ यहो बात हम्में स्वीकार करी लेलियौ
है बात बोली चललै करै लेॅ भगति हरि हो नाम
जबेॅ जोति भगति तपस्या करी केॅ घुरलै आपनोेॅ घर हो वार
आपनोॅ दोस्तोॅ के वादा निभाबै लेली
धरी लेलकै दोस्तोॅ के घरोॅ के हो डगर
एक्के कोसे चललै दोसरो कोसे तेसरी चौथोॅ हो कोसेॅ
पहुँची गेलै हरिया के हो द्वार
जोति नें पहुँची केॅ दाता निरंजन, आधा-आधी बाँटी
देलकै पंथ हो गोसाँय
तबेॅ दुन्हू दोस्तें अपना-अपनी घरोॅ पर, सेवेॅ लागलै
पंथ आरो हो गोसाँय
पंथ आरो गोसाँय के सेवा सुश्रसा करतेॅ-करतेॅ,
डोमा केॅ हो गेलै धन अपरम हो पार
डोमा केॅ भगति सें रिझलै, पंथ आरो हो गोसाँय
डोमा केॅ जाँचे लेॅ, ऐलै सुरपुर सें एक दिना
पंथ आरो हो गोसाँय
पंथ आरो गोसाँय दाता निरंजन, पहुँची गेलै हरिया डोमा
घरोॅ के हो नगीच
डोमा घरोॅ के नगीच चराबै छेलै एक गैधोरैय नें हो गाय
पंथ आरो गोसाँय दाता निरंजन माया करलकै विस हो तार
पंथे नें ब्राह्मण रूप धरि केॅ पूछलकै धोरैय सें
हरिया डोम के हो घोॅर
गैधोरैय नें हाथोॅ के इशारा सें देलकै डोमा के घर हो बतलाय
आरो पूछेॅ लागलै, हों बाबा तों तेॅ लागै छोॅ कोय महान हो पुरुष
तोहें बाबा कहिनें खोजै छोॅ, हरिया केॅ हो
हौ तेॅ छेकै जाति के हो बाबा डोम
ब्राह्मण नें धौरैय केॅ कहै समु हो झाय
जोॅन दिनमा सें हम्में आपनोॅ गुरू सें, दीक्षा लेलेॅ छियै रे धोरैय
वही दिनमा सें हम्में जाति-पाती के नै करै छियै रे वरण ।
एतना कही-कही केॅ ब्राह्मण चललोॅ गेलै हरिया डोमा के हो द्वार
हौ दिना हो दाता निरंजन, सूप-डलिया बेचै गेलोॅ छेलै
डोम-डोमनियाँ सूजागंज हो बाजार
आरो घरोॅ के जोगबारी में छोड़ी देनें छेलै
आपनोॅ बेटा रणजीत हो कुमार
रणजीत कुमार आपनोॅ संगी-साथी साथें
खेलै छेलै गुल्ली डंडा के हो खेल
ब्राह्मण भेष धरी, पंथेॅ, दाता निरंजन,
पारेॅ लागलै हरिया डोमा केॅ हो हाँक
हाँक सुनी केॅ दाता निरंजन, गुल्ली-डंडा छोड़ी केॅ ऐलै
रणजीत हो कुमार
ब्राह्मण केॅ देखी केॅ दाता निरंजन, दोनोॅ कर जोड़ी केॅ
रणजीत करै पर हो णाम
ब्राह्मण नें मनोॅ सें आशीष दै छै, रणजीत हो कुमार
फिनू रणजीत द्वारी पर सें घुरी आवै छै धरेॅ हो ऐंगन
घरोॅ सें दाता निरंजन रणजीत नें निकालें छै
बट्टू सें पैसा, डाला सें अरबा मोती हो चौर
रणजीत नें द्वारी पर आबी केॅ चौर आरो पैसा दियेॅ लागलै
लीयोॅ-लीयोॅ हो बाबा, भीक्छा हो हमार
भीक्छा देखतै दाता निरंजन, ब्राह्मण नें रणजीत केॅ
कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें बलकबा हम्में नै लेबौ भीक्छा आरो नै छोड़बौ रे द्वार
हम्में रास्ता में एकादशी-द्वादशी बरत करनें छियै आरो
बरत निस्तार करी केॅ तोरा द्वारी पर ऐलोॅ छियौ रे बलकवा
हमरा सात दिन-रात बिती गेलोॅ छौ
बिनू अन्ने-पानी के रे बलकवा
सें तों रे बलकवा हमरा पनियाँ रे पिलाव
कुछु देर सोची केॅ रणजीत कुमारें कहलकै हो भाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो बाबा, सुनोॅ हमरोॅ हो वचन
हे हो बाबा, हम्में छेकां जाति के डोम
सें तों डोमोॅ जाति घरोॅ रोॅ जल केना करभो हो ग्रहण
सुनें-सुनें रे बलकवा, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
जोॅन दिनां से गुरू सें दीक्षा लेलेॅ छियै रो बलकवा
वही दिनमां सें हम्में जाति-पाजी केॅ नै राखै छियै वरण
एतना सुनी केॅ रणजीत नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
हो बाबा तोरानी रोॅ कृपा सें हमरा छै अनेॅ-धनोॅ रोॅ बौछार
हो बाबा तोरा मनोॅ में जे खाय के हुवै, हौ बतलाय देॅ हो बाबा
हमरा घरोॅ में कोय चीजोॅ के कमी नै छै हो बाबा
एतना सुनी केॅ ब्राह्मण नें बलकवा केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे बलकवा, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हमरा दैवैं लिखलेॅ छै रे बलकवा, हरिया हाथोॅ सें भोजन रे सुसार
एतना बातोॅ पर रणजीत नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
आजु के दिनां हो बाबा हमरोॅ माय-बाप गेलोॅ छै
सूप-डलिया बेचै लेॅ सूजागंज हो बाजार
एतना सुनी केॅ ब्राह्मण नें रणजीत केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे बलकवा, सुनें हमरोॅ रे वचन
जल्दी सें तों बोलाबैं रे बलकवा, बाजारोेॅ से आपनोॅ माय रे बाप
एतना वचन सुनी केॅ रणजीत नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
हे हो बाबा हम्में केना केॅ जैबोॅ हो बाजार
हमरा माय-बाबू नें रखलेॅ छै घरोॅ के ही जोगवार
हो बाबा घरोॅ सें जों एक्को सामान चोरी होय जेतै तेॅ
हमरोॅ पीठी के चमड़ा हो उदार
सुनें-सुनें रे बलकबा, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
जों तोरा घरोॅ सें एक्कोॅ सामान चोरी होतौ तेॅ
हम्में तोरा देबौ दोबर हो लगाय
जल्दी सें तों जाबें रे बलकबा आपनोॅ माय बाबू रोॅ रे पास
एतना सुनी केॅ रणजीत नें माय रोॅ देलोॅ बाँसुरी निकाली केॅ
फुँकलेॅ-फुँकलेॅ बाजारोॅ रोॅ डगर धरलकै हो भाय
यै बाँसुरी रोॅ करामत छेलै दाता निरंजन
विपत्ती के धड़ियाँ में आवाज
जों है बाँसुरी कुमार रणजीत नें फूँकै छेलै तेॅ
आवाज पहुँची जाय छेलै माय-बाबू रोॅ पास
बाँसुरी फूँकतै दाता निरंजन, माय दौड़ली चललोॅ हो आबै
जेना कि लेरुआ के डकरतैं गैया खमशली चललोॅ हो आबै
डोमनियाँ नें बाँसुरी के आवाज सुनतै हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
कोन विपतिया पड़लै हो स्वामीनाथ
जे सुनाय पड़ै छै बाँसुरी के आवाज
जल्दी सें समेटोॅ हो स्वामीनाथ, सूपेॅ आरो हो डलिया
जल्दी सें चलोॅ हो स्वामीनाथ महलोॅ केरोॅ हो ओर
हरियाँ कहै डोमनियाँ केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें सतवरती गे, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
रोजे-रोजे के येहे खबरिया, तेॅ सूपवा केना केॅ बिकतौ
जबेॅ सौदा बिकेॅ लागै छौ गे, तेॅ रोजे-रोजे के यहेॅ हो लीला
जेना लागै छौ तोरा जुगा केकरौ आरो बेटा नै रहेॅ
हे हो स्वामीनाथ दोसरा रोॅ बेटा नाच-गान करै छै
हमरोॅ हो बेटा स्वामीनाथ, करै छै भगति हरि हो नाम
आबेॅ तेॅ यही बातोॅ पर उठलै दून्हू जीवोॅ में हो लड़ाय
असरा देखतें-देखतें हो आबी गेलै माय-बाबू लुग रणजीत हो कुमार
डोमनियाँ के नजर पड़तैं दौड़ी केॅ रणजीत केॅ हिरदय हो लगाय
कोन बिपतिया पड़लौ रे बेटा जे तोंआबी गेलें रे बाजार
आहो नहीं मोरा मारलकै माता जी कोय संगी हो साथी
नहीं मोरा मारलकै बाबूजी हितुवन हो समाज
रणजीत नें कहलकै माय-बाबू केॅ समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो मोरा जन्मदाता, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
आपनोॅ दरवाजा पर एलोॅ छौं एक संत मेह हे मान
वहीं संतेॅ खोजै छौं तोरोॅ मुल हे कात
नै तेॅ भीक्छा लै छौं हो बाबूजी, नै छोड़ै छौं हो द्वार
यही संतेॅ कहे छौं, तोरोॅ बाबू केॅ हाथोॅ सें करबौ भोजन हो आधार
एतना सुनतै तीनोॅ प्राणी चललै आपनोॅ हो महल
घर पहुँचतै हो दाता निरंजन, करलकै ब्राह्मण सें मुल हे कात
हरिया नें दोनोॅ कर जोड़ी केॅ ब्राह्मण केॅ करै पर हे णाम
मनोॅ सें आशीषबा दै छै ब्राह्मणनें हरिया डोम केॅ हो भाय
जियें-जियें रे हरिया, तोरोॅ काया अमर भई हो जाय
सुनें-सुनें रे हरिया, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
सुनै में हमरा ऐलोॅ छो रे हरिया
तों आजु दिनां बड़ी धरमतमा होलोॅ छै रे
यही लेॅ हम्में ऐलोॅ छियौ तोरोॅ रे द्वार
सात दिन-रतियाँ पर हम्में अन्न-पानी रोॅ
एकादशी-द्वादशी वरत तोड़नें छियै रे
से तों आय खिना शुद्ध माँस भोजन रे कराव
एतना सुनतैं दाता निरंजन, हरिया आचरजोॅ में पड़ी गेलै रे भाय
एतना वचन सुनतैं हरिया ऐलै महलोॅ में डोमनिया केरोॅ हो पास
तबेॅ दुन्हू जीवेॅ मिली केॅ करै लागलै ब्राह्मण के भोजन के विचार
हरिया केॅ डोमनियाँ नें कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हे हो स्वामीनाथ बिहानी हम्में सुअर चराय खिनी जंगलोॅ में
देखलेॅ छेलियै गाय के खाल उदारलोॅ हो माँस
आभी तांय हो स्वामीनाथ, कोय कौआ-कुत्ता नै खैलेॅ होतै हो
चलोॅ-चलोॅ हो स्वामीनाथ, होकरे सुचा माँस काटी केॅ लानी लैबै
डोमनियाँ के बेहवार देखी दाता निरंजन, ब्राह्मण नें माया करलकै
आपनोॅ बिस हो तार
ब्राह्मण नें हो दाता निरंजन, गौ माता के मरलोॅ देहोॅ पर
देलकै अमृत छिड़ हो काय
अमृत छिड़कतैं दाता निरंजन, गैया उठि केॅ चरेॅ लागलै हो भाय
जबेॅ डोमनियाँ के नजर पड़लै गैया पर,
तेॅ देखै छै गैया केॅ उठि केॅ चरतें हो भाय
है देखी केॅ डोमनियाँ रुकी गेलै हो भाय
डोमनियाँ केॅ रुकतें देखी डोमा पूछेॅ लागलै हो भाय
तबेॅ तेॅ डोमनियाँ के मुँहोॅ के बोली खतम होय गेलै हो भाय
सुनोॅ-सुनोॅ स्वामीनाथ सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
यहेॅ गैया हो स्वामीनाथ देखलेॅ छेलियै हम्में मरलोॅ हो
एतना सुनतैं डोमा नें डोमनियाँ केॅ कहै समु हो झाय
हेगे सतवरती तों हमरा ठगी रहलोॅ छैं गे
चलें-चलें गे सतवरती सैरा दोहा गे घाट
हम्में सूअरी केॅ पानी पिलाय खिनी देखलेॅ छियै
एक ठो गे लहास
होकरे शुद्ध माँस काटी केॅ भोजन गे बनाय
हों-हों दाता निरंजन, दोनों जीव मिली केॅ चललै
सैरा दोहा किनार
जबेॅ दोनों जीव मिली केॅ गेलै सैरा दोहा हो किनार
वही कालोॅ में दाता निरंजन, माया करलकै विस हो तार
माया विसतार करी केॅ दाता निरंजन लहाशोॅ पर अमृत
देलकै छिड़ हो काय
अमृत छिड़कतैं दाता निरंजन, लहासें उठि केॅ जपेॅ लागलै
हरि हो नाम
जबेॅ नदी किनार पहुँचलै तेॅ डोमा पड़ी गेलै
आचरजोॅ में हो भाय
तबेॅ तेॅ डोमनियाँ कहै लागलै डोमा केॅ समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ तों कहिनें रुकी गेलोॅ हो
डोमा कहै लागलै डोमनियाँ केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें गे सतवरती सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हम्में देखलेॅ छेलियै गे सतवरती, है मनुखोॅ केॅ मरलोॅ गे
अखनी देखी रहलोॅ छियै गे, जपी रहलोॅ छै हरि-हरि हो नाम
हेकरोॅ मतलब छै गे सतवरती, है कोय ब्राह्मण नै छेकै
है छेकै कोय पंथेॅ हो गोसाँय
जे कि हमरा जाँचै लेॅ आइलोॅ छै द्वार
आबेॅ दोनोॅ प्राणी निराश होय केॅ लौटी चललै
आपनोॅ हो महल
रास्ता में लौटी केॅ दुन्हू जीवें करेॅ लागलै
मने मन हो विचार
हरिया कहै डोमनियाँ केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें गे सतवरती, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हमरा मारी केॅ गे सतवरती दहीं ब्राह्मण केॅ भोजन हो कराय
तों गे सतवरती आपनोॅ बेटा लैकेॅ गुजर-बसर गे करिहैं
हमरा जुगा गे सतवरती ढेरी मिलतौ गे डोम
एतना सुनी केॅ डोमनियाँ डोमा केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हमरै मारी केॅ हो स्वामीनाथ ब्राह्मण केॅ देहोॅ भोजन हो कराय
आपनें रही केॅ करिहोॅ राजपाट आरो जीवन हो बसर
हमरा जुगा हो स्वामीनाथ अनेको मिलतौ हो डोमनियाँ
ई सब बातचीत करतें-करतें पहुँची गेलै हो महल
माय-बाबू के पहुँचतें बालक रणजीत भी ऐलै ऐंगन
माय-बाबू केॅ झगड़तें देखी बालक रणजीत पूछै हो भाय
कथी लेॅ झगड़ै छोॅ देहोॅ हमरा बत हो लाय
एतना बोल सुनी केॅ हरिया कहै रणजीत केॅ समु हांे झाय
सुनें-सुनें रे दुलरुवा बेटा, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हम्में कहै छियै रे बेटा, हमरा मारी केॅ ब्राह्मण केॅ दहीं
भोजन हो कराय
माय कहै छौ रे बेटा, हमरा मारी केॅ दहोॅ भोजन हो कराय
माय-बापोॅ के बात सुनी केॅ रणजीत नें माय-बापोॅ केॅ
कहै समु हो झाय
सुनोेॅ-सुनोॅ हो मोरा जन्मदाता सुनोॅ परेमोॅ साधु हो भाव
सुनोॅ-सुनोॅ हो पिताश्री, आदमी नें गाछ लगाय छै छाया के लेली
बेटा पैदा करै छै सुखोॅ के लेली
बाबूजी हो, बाबू मरला सें लोग सूअर हो कहाबै
माताजी मरला सें लोग टूअर हो कहाबै
से हो तोरानी मरला सें हमरा भारी दुःख ही होतै
यै लेली हो बाबू, तोरानी हमरा मारी केॅ ब्राह्मण केॅ भोजन
देहोॅ हो कराय
एतना सुनी केॅ हरिया नें कहै समु हो झाय
जबेॅ हमरानी तीनों प्राणी मरै लेॅ छोॅ तैयार
तेॅ चलें ब्राह्मण के हो नगीच
तीनों प्राणी हो दाता निरंजन
हाथ जोड़ी केॅ खड़ा होलै ब्राह्मण के हो नगीच
तीनोॅ प्राणी केॅ खड़ा देखी केॅ ब्राह्मण नें हरिया केॅ
कहै समु हो झाय
कीयेॅ रे हरिया भोजन तैयार होलै की नै रै
कीयेॅ रे हरिया तोरोॅ भोजन कराय के मन नै छौ की रे
एतना सुनी केॅ हरिया नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो ब्राह्मण सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
तोरोॅ जेकरोॅ माँस खाय के इच्छा हुवेॅ, होकरा आज्ञा देॅ हो बाबा
एतना बोल सुनी केॅ ब्राह्मण नें हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
आभी रणजीत बालक छै शुद्ध रे, हेकरा मारी केॅ भोजन रे कराव
आरो सुनी ले रे हरिया, जों रणजीत केॅ मारै खिनी एक्को बूँद
लोर गिरलौ तेॅ हम्में भोजन नै करबौ रे
एतना बोल सुनी रणजीत खुशी सें नाँची उठलै हो भाय
तबेॅ दोनों प्राणी हाथोॅ में हथियार लैकेॅ
रणजीत केॅ काटै लेॅ होय गेहो तैयार
दुन्हू मिली केॅ एक्कैं छबोॅ में देलकै सिर अलग करी हो भाय
फिनू दुन्हू नें मिली केॅ माँस बनाबेॅ लागलै हो भाय
यही बीचोॅ में हरिया मशाला लानै लेॅ गेलै हो बाजार
एतनै में डोमनियाँ मने मन करै हो विचार
अकेल्ले बाबा नें कत्तेॅ खैतै हो माँस
येहेॅ विचार करी केॅ डोमनियाँ नें सिरा राखी लेलकै हो चोराय
कुच्छु देरोॅ रोॅ बाद हरिया मशाला लैकेॅ ऐलै हो ऐंगन
फिनु मशाला बाँटी केॅ माँस चढ़लकै चूल्हा पर हो भाय
डोमनियाँ के बेहवार देखी दाता निरंजन
ब्राह्मण नें माया करलकै हो विसतार
पाँच मन जलावन जरी गेलै, नै सिझलै हो माँस
माँस नै सिझतेॅ देखी केॅ दाता निरंजन
हरिया गेलै ब्राह्मण के हो पास
ब्राह्मण के नगीच जाय केॅ दाता निरंजन
हरिया नें कहै लागलै ब्राह्मण केॅ समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो बाबा, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
पाँच मन जलावन जरी गेलै बाबा
नै सीझै छै हो माँस
एतना बोल सुनी दाता निरंजन ब्राह्मण नें हरिया केॅ
कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
है बात हमें पोथी-पतरा देखी केॅ ही बताबेॅ पारौं
आरो ब्राह्मण नें पोथी-पतरा उलटाबै लागलै हो भाय
पोथी-पतरा देखी केॅ दाता निरंजन हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
तोरोॅ रे जनानी रे हरिया, बेटा रोॅ सिर राखलेॅ छौ चोराय
यहीं रे कारणें सें नै सीझै छौ माँस
मनुखोॅ रोॅ सिरा ही तेॅ शुद्ध माँस होय छै रे हरिया
एतना बोल सुनी केॅ हरिया गेलै आपनोॅ हो ऐंगन
ब्राह्मण के कहलोॅ हरिया नें डोमनियाँ केॅ कहै समु हो झाय
तों गे डोमनियाँ बेटा रोॅ सिरा राखलें छै चोराय
सें तों निकाली केॅ मूसल सें सिरा चूरी केॅ माँस हो बनाव
आरो चूरै खिनी एक्को बूँद आँसू नै गिरौ
तबेॅ सिझतौ सब ठो गे माँस
एतना सुनी केॅ सिरा निकाली केॅ मुसल सें चुरेॅ लागलै हो
फिनू सिरा चूरी केॅ नैका बरतन में चढ़ैलकै चूल्हा पर हो भाय
एतन्हौं पर जबेॅ माँस नै सिझलै तेॅ फिनू गेलै हरिया
ब्राह्मण के हो पास
सुनोॅ-सुनोॅ हो ब्राह्मण सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
सिरबा मूसल में चूरलिहौं, तय्यो नै सीझै छौं हो माँस
सुनें-सुनें रे हरिया, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हे रे हरिया, तों कहै आपनोॅ जनानी केॅ µबायाँ गोड़
चुल्ही में देतौ तबेॅ सिझतौ रे माँस
एतना बोल सुनी केॅ हरिया दौड़लोॅ गेलै हो ऐंगन
ऐंगना में जाय केॅ डोमनियाँ केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें गे सतवरती सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
तोरा बाबा नें कहै छौ, बामा गोड़ चूल्ही में गे लगाय लेॅ
तबेॅ गे सतवरी सिझतौ माँस हो आहार
एतना बोल सुनी केॅ सतवरती कहै छै
हमरोॅ बेटा मरलोॅ, हम्मूँ मरि केॅ काया अमर करी हौ लों
एतना कही केॅ सतवरती नें आपनोॅ गोड़ देलकै
चुल्ही में हो लगाय
गोड़ चूल्ही में देतैं हो दाता निरंजन
माँस सीझी केॅ होय गेलै हो तैयार
माँस सिझतैं दाता निरंजन
हरिया गेलै एक थरिया में परोसी केॅ विजय हो कराय
वही समय में दाता निरंजन, पूछै छै ब्राह्मण नें हो भाय
सुनें-सुनें रे हरिया, कै थरिया में लगैंने छै रे भोजन
हरिया नें कहै छै ब्राह्मण केॅ समु हो झाय
हम्में एक्के थरियाँ में खाली तोरा बास्तें लगैनें
छियौं हो भोजन
एतना सुनी केॅ ब्राह्मण नें कहै छै हरिया केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
तो लगाभैं रे हरिया चार थरिया में
तीन प्राणी तोहें आरो एक हमरोॅ रे लगाव
एतना बोल सुनी हरिया ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो ब्राह्मण, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हम्में तेॅ आपनोॅ बलकबा केॅ मारि केॅ भोजन करलिहौं
हो तैयार
जबेॅ तोरा बेटा नै छै रे तेॅ तोरा हाँ ने करबौ रे भोजन
जेकरा घरोॅ में बेटा नै रहै छै, हौ होय छै जग रोॅ रे पापी
आरो जौंने निरवंशी हाँ भोजन करतै, वहो होतै जग रे पापी
यही पलोॅ में हरिया के अज्ञानोॅ रोॅ पर्दा हटलै रे भाय
आरो कहै लागलैµमोरा बेटा खेलै लेॅ गेलोॅ छै बहार
से तों हो बाबा भोजन करोॅ हो सुसार
यही बातोॅ पर ब्राह्मण नें हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
पहिलें तों रे हरिया, चार थरिया में भोजन हो लगाव
चार थरिया में भोजन लगाय केॅ तों हकारोॅ
दैकेॅ बोलाव आपनोॅ बेटा
तबेॅ हम्में करबौ भोजन रे सुसार
हरियाँ नें द्वारी के डेढ़िया पर सें
हकारोॅ दै लेॅ गेलै हो बहार
यही बीचोॅ में ब्राह्मण आलोपित भई हो जाय
हरिया केॅ हकारोॅ देतैं दाता निरंजन
बलकवा दौड़लोॅ चललोॅ ऐलै
तबेॅ देखै छै ब्राह्मण के कोय पता नै हो ठिकानोॅ
तबेॅ डोमा-डोमनियाँ के ज्ञानोॅ रोॅ पुड़िया
खुललै हो भाय
वही दिनमां सें तनोॅ-मनोॅ आरो धनोॅ सें
करेॅ लागलै भगति हरि हो नाम
हो दाता निरंजन आरो फैललै वही दिनाँ सें
धरमोॅ के पर हो चार
वै दिनां सें डोमा बेसीये गावै भगति हरि हो नाम
आरो डोमनियाँ बजाबै करेॅ हो ताल
यही बीचोॅ में कुमार रणजीत उछली-उछली
गाबै भगति हरि हो नाम
डोम-डोमनियाँ के भगति देखी
होय गेलै सगरो धरमोॅ के पर हो चार।
लचिका रानी / खण्ड 1 / अंगिका लोकगाथा
बंदना
रम्मा पहिलें सुमराैं सरसती मैयो हो ना
रम्मा हमरा पर हुवेॅ सहैयो हो ना
रम्मा सुमरौं गणपति, गणेश, चरणमो हो ना
रामा नीचें सुमरौं शेषनाग देवता हो ना
रम्मा सुमराैं आपनोॅ धरती धरममो हो ना
रम्मा सुमराैं हम्मे सातो बहिन दुर्गा महरनियो हो ना
रम्मा पकड़ी सुमराैं गुरू जी के चरनमो हो ना
रम्मा जौनें देलकै हमरा गियनमो हो ना
रम्मा सब्भै देवता के करौं परनममो हो ना
रम्मा सुनोॅ आबेॅ लचिका के कहनियो हो ना
पहिला खण्ड
रम्मा सुनोॅ कथा लचिका के धरि केॅ धियानमो रे ना
रम्मा बरप्पा छेलै एक नगररियो रे ना
रम्मा वहाँ के राजा बड़ा शक्तिशालियो रे ना
रम्मा इनकर लड़का छेलै प्रीतम सिंहो घब रे ना
रम्मा सब्भै राजा में प्रसिद्धवो रे ना
रम्मा अन्न-धन छेलै पुरजोरिवो रे ना
रम्मा लचिका छेलै प्रीतम के जानमो रे ना
रम्मा देखै में छेलै खुबसुरतियो रे ना
रम्मा लागै गुलाब फुलवो रे ना
रम्मा रूप छेलै अनुपे रे ना
रम्मा आवेॅ सुनोॅ आगू के बतियो रे ना
रम्मा नौरंग सिंह के छेलै नौरंग पोखरबो रे ना
रम्मा राजा के सुनी हुकुममो रे ना
रम्मा आबी केॅ बोलै कुटनी बुढ़ियो रे ना
रम्मा हम्में लानी देभौं लचिका रनियाँ रे ना
रम्मा पान बीड़ा खैलके कुटनी बुढ़िया रे ना
रम्मा बुढ़िया धरलकै रसतवो रे ना
रम्मा जाय पहुँचलै वरप्पा नगरियो रे ना
रम्मा करलकै राजा बड़ी इन्तजामवो रे ना
रम्मा संगोॅ में सब पलटनमो रे ना
रम्मा पहुँची गेलै वरप्पा पोखरियो रे ना
रम्मा बुढ़िया गेलै लचिका के भवनमो रे ना
रम्मा लचिका सें करै छै बतियो रे ना
रम्मा हम्में छेकियौ तोरोॅ मौसियो रे ना
रम्मा बुढ़िया बोलै मीठी बोलियो रे ना
रम्मा लचिका सुनी देलकै जबबो रे ना
रम्मा मैया छेलै हमरोॅ अकेलवो रे ना
रम्मा दोसरोॅ कोनो नहीं बहिनियो रे ना
रम्मा कैसें लागभैं तों हमरोॅ मौसीयो रे ना
रम्मा तबेॅ बोलै कुटनी बुढ़ियो रे ना
रम्मा सुनें बेटी हमरोॅ बतियो रे ना
रम्मा जहिया होलौ तोरोॅ जनममो रे ना
रम्मा वही दिनां होलै हमरोॅ गौउनमो रे ना
रम्मा जहिया सें गेलियै ससुररियो रे ना
रम्मा नाहीं एैलियै नैहरवो रे ना
रम्मा होलौ जबेॅ तोरोॅ विहववो रे ना
रम्मा नै देलकौ तोरो माय नेवतो लियवनमो रे ना
रम्मा तोड़ी देलकौ हमरा सें नतवो रे ना
रम्मा जानभैं कैसें तों हमरोॅ हलवो रे ना
रम्मा कैसें करभैं पहचनमो रे ना
रम्मा पूछले ऐलां तोहरोॅ नगरियो रे ना
रम्मा तोरा सें करैलेॅ मुलकतवो रे ना
रम्मा हम्में तोरोॅ मौसियो रे ना
रम्मा मानी लेहै हमरोॅ तों सत बचनमो रे ना
रम्मा तोरोॅ ससुर के नौ रंग पोखरियो रे ना
रम्मा मनोॅ में लागलोॅ ललसवो रे ना
रम्मा देखै लेॅ ऐलां सुनी केॅ नममो रे ना
रम्मा सुनी लचिका भेलै मगनमो रे ना
रम्मा करेॅ लागलै मौसी के आदर सतकरबो रे ना
रम्मा कुटनी बुढ़ियाँ के मनोॅ मे भेलै खुशियो रे ना
रम्मा एक दिन कहै कुटनी बुढ़ियो रे ना
रम्मा सुनें बेटो लचिका हमरोॅ बतियो रे ना
रम्मा तोहरोॅ छौ नौ रंग पोखरियो रे ना
रम्मा हमरा देखाय दे भरी नजरियो रे ना
रम्मा चली केॅ हमरा संगवो रे ना
रम्मा तबेॅ पूरा होतै हमरोॅ अरमनमो रे ना
रम्मा लचिका कहै मौसी सें बतियो रे ना
रम्मा सुनें हमरोॅ बतियो रे ना
रम्मा हम्मे पूछि आवै छियौ आपनोॅ सासू सें रे ना
रम्मा तबेॅ लैके जैवौ पोखरियो रे ना
रम्मा इ बात बतिया कही के लचिका गेलै सासू के पासबो रे ना
रम्मा हाथ जोड़ी करै बतियो रे ना
रम्मा सुनोॅ माय जी हमरोॅ बतियो रे ना
रम्मा आजु दिना छेकै एतबरबो रे ना
रम्मा सुरूजोॅ केॅ देवै अरगबो रे ना
रम्मा हमरा तों देॅ हुकुममो रे ना
रम्मा हम्में जैबै नाहैलेॅ पोखरियो रे ना
रम्मा लचिका के सुनी बचनमो रे ना
रम्मा सासु कहै पूतौहो सें बचनमो रे ना
रम्मा पोखरिया के पानी बड़ा खरबवो रे ना
रम्मा कादोॅ कीचड़ सें भरलोॅ पोखरबो रे ना
रम्मा कैसंे जैभो पोखिरिया असनानमो रे ना
रम्मा ठंडा लागी पोखरिया के पनियो रे ना
रम्मा ऐगंना में खोदाई देभौं वारह कुपबो रे ना
रम्मा रेशम के लानी देबाैं डोरियो रे ना
रम्मा नहीं देलकै साँसू हुकुममो रे ना
रम्मा तबेॅ भै गेलै रानी लचिका उदसवो रे ना
रम्मा चल्लो गेलै ससुर जी के पसबो रे ना
रम्मा जाय केॅ बोललै हलवो रे ना
रम्मा ससुरें दै देलकै हुकुमो रे ना
रम्मा तबेॅ गेलै स्वामी जी के पासवो रे ना
रम्मा नहीं देलकै स्वामी हुकुममो रे ना
रम्मा माथा पर चढ़लै शैतनमो रे ना
रम्मा नहीं मानलकै केकरो कहनमो रे ना
रम्मा चल्लोेॅ गेलै पोखरिया असननमो रे ना
रम्मा कुटनी के फेरोॅ में पड़लै रानी लचिको रे ना
रम्मा फिरी गेलै लचिका के मतिया रे ना
रम्मा कुटनी बुढ़ियाँ के दागाबजियो रे ना
रम्मा भेद कुछु नहीं जानलकै रानी लचिको रे ना
रम्मा लड़का छोड़ी देलकै घरवो रे ना
रम्मा सुतलोॅ पलंग के उपरबो रे ना
रम्मा लै लेलकै आपनोॅ कपड़वो रे ना
रम्मा चल्लोॅ गेलै कुटनी के संगबो रे ना
रम्मा पोखरिया में करै लेॅ असननमो रे ना
रम्मा आवे सुनो पोखरियाँ के बचनमो रे ना
रम्मा वहाँ बैठलोॅ रहै पापी जयसिंह राजवा रे ना
रम्मा मनोॅ में सौचै बतियो रे ना
रम्मा आजु दिना मिली जैतै रानी लचिको रे ना
रम्मा लचिका एैले पोखर किनरवो रे ना
रम्मा दतवन करेॅ लागलै पोखर किनरवो रे ना
रम्मा कपड़ा गहनमा खोली धरै घटवा भीतरबो रे ना
रम्मा लचिका नहावेॅ लागलै घटवो रे ना
रम्मा कुटनी बुढ़िया देलकै राजा के ईशरवो रे ना
रम्मा राजा जबेॅ देखलकै ईशरवो रे ना
रम्मा साथे लैके सिपहिया लशकरवो रे ना
रम्मा आवी पहुँचलै पोखरियाँ ऊपरवो रे ना
जतना छेलै सेना लश्करवो रे ना
रम्मा घेरी लेलकै आवी केॅ पोखरियो रे ना
रम्मा लचिका जबेॅ देखलकै हलवो रे ना
रम्मा भागि केॅ छिपलै मंदिरवो रे ना
रम्मा जबेॅ सुनलकै नौरंग सिंह खबरवो रे ना
रम्मा लचिका घेरैली पोखरबो रे ना
रम्मा घेरलकै आवी केॅ दुश्मनमो रे ना
रम्मा मथवा धुनै कहै बचनमो रे ना
रम्मा बहुएं नहीं मानलकै कहनमो रे ना
रम्मा पोखरिया पर गेलै करिकेॅ हठबो रे ना
रम्मा पड़ी गेले दुश्मन के हथवो रे ना
रम्मा होय गेलै बड़ी मुश्किलवो रे ना
रम्मा एतना कही केॅ बचनमो रे ना
रम्मा देलकै पलटन के हुकुममो रे ना
रम्मा एैलै दुश्मन पोखरियो रे ना
रम्मा होय जायकेॅ जल्दी तैयरवो रे ना
रम्मा सुनी केॅ जयसिंह के बतियो रे ना
रम्मा पलटन सजलकै आरू हथियो रे ना
रम्मा चल्लै पोखरिया पर पटलनमो रे ना
रम्मा साथो में चललै प्रीतम सिंहबो रे ना
रम्मा पोखरिया पर पहुँचे फौजियो रे ना
रम्मा दोनों दलोॅ के भेलै भिड़नमो रे ना
रम्मा चलेॅ लागलै तीर तलबरवो रे ना
रम्मा हुवै लागलै घमासान लड़ैयो रे ना
रम्मा बहै लागलै लहुवो के धरबो रे ना
रम्मा घोर लड़ैया होलै चार पहरवो रे ना
रम्मा जयसिंह पोखरियो रे ना
रम्मा पलटन के देखी हलवो रे ना
रम्मा प्रीतम सिंह लड़े आबी केॅ अगुओ रे ना
रम्मा करलकै धमासान लड़ैयो रे ना
रम्मा लड़तें-लड़तें तेजलकै परनममो रे ना
रम्मा रहि गेलै नौरंग सिंहवा अकेल्ले रे ना
रम्मा सुनिकेॅ हाल होले बेहलबो रे ना
रम्मा फेनू धीरज धरलकै मनमो रे ना
रम्मा घोड़ा वृजवाहन पर सबरबो रे ना
रम्मा लड़ैलेॅ चललै होयकेॅ तैयरवो रे ना
रम्मा पहुँची गेलै पोखरिया उपरवो रे ना
रम्मा आबी केॅ लड़ेॅ लागलै नौरंग सिंहबो रे ना
रम्मा करिकेॅ लड़ाय धमसनमो रे ना
रम्मा दस बीस के काटै गरदनमो रे ना
रम्मा एतनै में एैललै एक वीरवो रे ना
रम्मा पीछू सें मारि देलकै तेगवो रे ना
रम्मा नौरंग सिंह के कटी गेलै गरदनमो रे ना
रम्मा धरती पर गिरी तेजलकै परनमो रे ना
रम्मा होलै नाश नौरंग सिंह के दलवो रे ना
रम्मा दुश्मन केॅ होलै खुशी हलवो रे ना
रम्मा चारो ओर मचलै जै जै करबो रे ना
रम्मा दुश्मन दल के भीतरवो रे ना
लचिका रानी / खण्ड 2 / अंगिका लोकगाथा
दूसरा खण्ड
रम्मा सुनोॅ आगू के वचनमो रे ना
रम्मा सुनोॅ सब भाई, बहिन धरि धियनमो रे ना
रम्मा लचिका के आगू रोॅ बचनमो रे ना
रम्मा जाय पहुँचलै पापी राजवो रे ना
रम्मा शिव मंदिरवा के नगीचवो रे ना
रम्मा घुसियैलो छेलै जहाँ रानी लचिको रे ना
रम्मा कानै छेलै कपरवा धुनि-धुनि रे ना
रम्मा वहाँ जायके बोले पापी राजवो रे ना
रम्मा चल्लोॅ आवोॅ मंदिर से बहरवो रे ना
रम्मा आपनोॅ तों चाहोॅ कुशलवो रे ना
रम्मा अगर नै ऐभौ बहरवो रे ना
रम्मा काटी देवौ तोरोॅ सिरवो रे ना
रम्मा सुनीकेॅ राजा के बचनमो रे ना
रम्मा बौले सुनीकेॅ लचिका रनियो रे ना
रम्मा सुनोॅ हमरो अरजबो रे ना
रम्मा केना हम्में निकलबै बहरवो रे ना
रम्मा भीजलोॅ हमरोॅ कपड़वो रे ना
रम्मा झलकतै हमरोॅ सभे अंगवो रे ना
रम्मा निकलै में लागै हमरा शरममो रे ना
रम्मा घटवा पर हमरोॅ कपड़वो रे ना
रम्मा लानी केॅ देभौ हमरोॅ अगुओ रे ना
रम्मा तबेॅ पीन्ही केॅ निकलबै बहरवो रे ना
रम्मा सुनि केॅ लचिका के बतियो रे ना
रम्मा लानी केॅ देलकै राजा नुग्गा-साया बुलाऊजवो रे ना
रम्मा सब चीज पीन्हीं निकललै बहरबो रे ना
रम्मा चल्लोॅ गेलै राजा के समनमो मेें रे ना
रम्मा राजा भेलै खुशिया मगनमो रे ना
रम्मा राखलेॅ छेलै उड़न खटोलवो रे ना
रम्मा लचिका केॅ बैठलकै उपरवो रे ना
रम्मा पापी राजा भेलै आनन्दवो रे ना
रम्मा लैकेॅ चली देलकै सथवो रे ना
रम्मा जतना छेलै लश्करियो रे ना
रम्मा सब गेलै राजा के नगरियो रे ना
रम्मा बरपपा के सुनो अब जिकरियो रे ना
रम्मा भारी हल्ला होलै गढ़ के भीतरवो रे ना
रम्मा रूदन पीटन पड़ी गेलै महलियो रे ना
रम्मा प्रीतम सिंह के रोवै महतरियो रे ना
रम्मा छाती पीटी-पीटी कहै बचनियो रे ना
रम्मा नाश होलै कुल-खनदनमो रे ना
रम्मा पूतोहो के करनमो रे ना
रम्मा केतना घर भेलै मोसमतवो रे ना
रम्मा सबके धोएैलै सिर सिन्दुरवो रे ना।
रम्मा छोड़ी केॅ गेलै आपनोॅ ललनमो रे ना
रम्मा गेलै हठ करि पोखिरियो रे ना
रम्मा धन-जन करलकै संहरवो रे ना
रम्मा करनि के पैलकै फलवो रे ना
रम्मा महीना दिनो के रहै ललनमो रे ना
रम्मा आवेॅ सुनोॅ वहाँ के हलवो रे ना
रम्मा लचिका केॅ लै गेलै लक्ष्मीपुर के रजवो रे ना
रम्मा खटोलबा के उपरवो रे ना
रम्मा जबेॅ पहुँचलै गाँव के नजदीकवो रे ना
रम्मा दस कोस रहलै फसिलवो रे ना
रम्मा पड़ी गेलै वहाँ कममो रे ना
रम्मा लागलोॅ रहै वहाँ पचरंग बजरवो रे ना
रम्मा लचिका केॅ लैकेॅ वहाँ रजवो रे ना
रम्मा पहुँचलै जायकेॅ ठिकनमो रे ना
रम्मा उतारलकै वहाँ उड़नखटोलवो रे ना
रम्मा जुटी गेलै पलटनियो रे ना
रम्मा करै लागलै सब लोग दतबनमो रे ना
रम्मा बोलै लचिका तबेॅ बचनियो रे ना
रम्मा सुनि लेॅ राजा हमरोॅ बचनमो रे ना
रम्मा यहाँ तनवाय देहोॅ तम्बुकवो रे ना
रम्मा आपनोॅ मकानमा तांय रे ना
रम्मा हम्मे चलबै तम्बुकबा भीतरबो रे ना
रम्मा यहाँ सें करलेॅ जैबै दनमो रे ना
रम्मा देहोॅ तहूँ मंगाई केॅ समनमो रे ना
रम्मा करवे हम्मे तबेॅ दतनमो रे ना
रम्मा तोहरे हाथो सें पियबै हम्में पनियो रे ना
रम्मा धीरें-धीरें चलबै तोहरोॅ घरबो रे ना
रम्मा दिन भरी में चलबै पाव भर रसतवो रे ना
रम्मा नाहीं मानबै बीचोॅ एक्को बतियो रे ना
रम्मा मारी देभौ तों हमरोॅ जनमो रे ना
रम्मा यहेॅ छौं हमरोॅ कहनामो रे ना
रम्मा तबेॅ होतौं तोहरोॅ इच्छा पूरनमो रे ना
रम्मा सुनी केॅ रानी के बचनमो रे ना
रम्मा राजा कहै मीठी बोलियो रे ना
रम्मा तुरंते होय जैतै सब काममो रे ना
रम्मा राजा कही केॅ एतना बचनमो रे ना
रम्मा बौलेलकै सब नौकरबो रे ना
रम्मा राजा देलकै सबकेॅ हुकुममो रे ना
रम्मा जल्दी सें तनाबै तम्बुकवो रे ना
रम्मा दस कोस यहाँ सें मकनमो रे ना
रम्मा घर तक तानी दै तम्बुकवो रे ना
रम्मा तम्बुकवा तानै सब नौकरवो रे ना
रम्मा राजा कहैलेॅ गेलै खबरवो रे ना
रम्मा सगरो तनाय गेलै तम्बुकवो रे ना
रम्मा दस कोस रसतवा लागै दस बरसवा दिनमो रे ना
रम्मा राजा तबेॅ बोलाबै दीवनमो रे ना
रम्मा जल्दी सें जैभौ तों नगरियो रे ना
रम्मा खंजाची केॅ देहोॅ खबरियो रे ना
रम्मा सुनी केॅ राजा के बचनमो रे ना
रम्मा वहाँ सें चल्लै दीवनमो रे ना
रम्मा गेलै खजांची के पसबो रे ना
रम्मा कहि देलकै राजा के हुकुममो रे ना
रम्मा खजांची देलकै तुरंते समनमो रे ना
रम्मा एैले तबेॅ लैकेॅ दिवनमो रे ना
रम्मा रानी केॅ देलकै सब समनमो रे ना
रम्मा तबेॅ करेॅ लागलै रानी दानमो रे ना
रम्मा दान करतें हुवेॅ चल्लै डगरियो रे ना
रम्मा चली देलकै राजा के दरबरियो रे ना
रम्मा दिन भरि में चलै रती भर जमीनमो रे ना
रम्मा मनमा में करिकेॅ विचरवो रे ना
रम्मा हमरे खातिर कुल होलै नशवो रे ना
रम्मा येहो सोचतें चल्लै मनमो रे ना
लचिका रानी / खण्ड 3 / अंगिका लोकगाथा
तीसरा खण्ड
रम्मा लचिका छोड़ी गेलै जबेॅ पोखरियो रे ना
रम्मा महीना दिन के छेलै लड़कबो रे ना
रम्मा लचिका केॅ हरि केॅ लै गेलै लक्ष्मीपुर के रजबो रे ना
रम्मा हठबा के पैलकै फलवो रे ना
रम्मा बालक पर होलै प्रभु के किरपबो रे ना
रम्मा बची गेलै लैके बदलबो रे ना
रम्मा कुलोॅ में बचलै एक फतींगबो रे ना
रम्मा घरोॅ में लै खातिर नममो रे ना
रम्मा छुटी गेलै जबेॅ अम्माओ रे ना
रम्मा पालन पोषन करै तबेॅ दादियो रे ना
रम्मा बालक बढ़ेॅ लागलै दिने-दिनमो रे ना
रम्मा जैसें बढ़ै छै दूजोॅ के चनमो रे ना
रम्मा दादी घरलकै बालक पर असरबो रे ना
रम्मा नाम घरलकै ऐकरोॅ रणबीरवो रे ना
रम्मा थोड़े रे समय में होलै तैयरवो रे ना
रम्मा पढ़ी-लिखी होलै होसियरवो रे ना
रम्मा एक दिन खेलै लेॅ गेलै गुल्ली डण्टवो रे ना
रम्मा संगोॅ में पाँच-छः लड़कवो रे ना
रम्मा खेले-खेलोेॅ में किरियाबो रे ना
रम्मा हरदम खैते रहेॅ बापोॅ के किरियावो रे ना
रम्मा है सुनी वोलै एक लड़कबो रे ना
रम्मा झूठे तों खाय छैं बाप के किरियावो रे ना
रम्मा कहियै नी मरलोॅ छौ तोरोॅ बापो रे ना
रम्मा वही नौरंग पोखरिया उपरवो रे ना
रम्मा तोरोॅ माय केॅ हरि केॅ लै गेलो छौ रजवो रे ना
रम्मा तहियो नहीं तोरा लजवो रे ना
रम्मा लड़का सिनी के सुनी बचनमो रे ना
रम्मा दौड़लोॅ ऐलोॅ रणवीर घरबो रे ना
रम्मा ददीयाँ सें कहलकै बचनमो रे ना
रम्मा सुनोॅ दादी हमरोॅ अरजवो रे ना
रम्मा सच-सच तों कहोॅ हलवो रे ना
रम्मा कहाँ पर मरलोॅ छै हमरोॅ बपबो रे ना
रम्मा हमरा बतावोॅ सब हलवो रे ना
रम्मा नहीं तों बतैभौ सच बतियो रे ना
रम्मा गर्दन पर मारी कटरियो रे ना
रम्मा तेजी देवौ हम्में परनमो रे ना
रम्मा नहीं तेॅ कहोॅ सच-सच बतवो रे ना
रम्मा रणवीर के सुनी बतियो रे ना
रम्मा कहेेॅ लागलै प्रीतम सिंह के मतवो रे ना
रम्मा कहै में फाटै मोरा छतियो रे ना
रम्मा मुहोॅ सें नहीं निकलै बतियो रे ना
रम्मा सुनोॅ बबुआ सब बतियो रे ना
रम्मा माय तोरोॅ हमरोॅ पुतौहुओ रे ना
रम्मा कैसें कहियौ उनकर दुरगतियो रे ना
रम्मा महिना दिन के छैले तों बलकवो रे ना
रम्मा तोरोॅ माय कहलकौ एक बचनमो रे ना
रम्मा जैवै हम्में पोखरिया असननमो रे ना
रम्मा नहीं मानलकौ कहनमो रे ना
रम्मा पोखरिया पर करि केॅ गेलौ हठबो रे ना
रम्मा वहाँ बैठलोॅ छेलै लक्ष्मीपुर के रजवो रे ना
रम्मा लैकेॅ साथें सेनमो रे ना
रम्मा जाय केॅ घेरी लेलकै पोखरियो रे ना
रम्मा बाबू तोरोॅ सुनलकौ खबरियो रे ना
रम्मा लेलकौ सजाय केॅ पलटनमो रे ना
रम्मा हुवेॅ लागलौ घमासान लड़ैयो रे ना
रम्मा बाप-दादा के गेलौ जनमो रे ना
रम्मा करिकेॅ लै गेलौ माय के हरनमो रे ना
रम्मा लै गेलौ आपनोॅ भवनमो रे ना
रम्मा कहाँ तक बतैय्यो दुरगतियो रे ना
रम्मा कहै में फाटै मोरा छतियो रे ना
रम्मा रणबीर पूछै ददियाँ सें पापी रजवा के ठिकनमो रे ना
रम्मा हमरा बताय दे ऊ रजवा के नाम ठिकनमो रे ना
रम्मा एतना सुनी ददियाँ समझावै रे ना
रम्मा मानी लेॅ बबुआ हमरोॅ कहनमो रे ना
रम्मा बड़ा बलशाली ऊ रजबो रे ना
रम्मा नहीं पारबे होकरा सें कभियो रे ना
रम्मा तबेॅ बोलै कुंवर रणवीरवो रे ना
रम्मा हौ दादी जनम के तिरियवो रे ना
रम्मा घर में बैठलोॅ पीन्ही केॅ चुड़ियो रे ना
रम्मा दादी मर्द के हाँसतौ पगड़ियो रे ना
रम्मा नाहक के लेलियै जनममो रे ना
रम्मा देवै हम्मू डुबाय केॅ खनदानमो रे ना
रम्मा दादी कहेॅ लागलै सब हलवो रे ना
रम्मा लक्ष्मीपुर के ऊ रजवो रे ना
रम्मा होकरोॅ नाम जयसिंह रजवो रे ना
रम्मा दुश्मन के मिललै ठिकनमो रे ना
रम्मा कुंवर भेलै वहाँ से रवनमो रे ना
लचिका रानी / खण्ड 4 / अंगिका लोकगाथा
चौथा खण्ड
रम्मा कुँवर सुमरै धरती मैयो रे ना
रम्मा वीर बाँके रणवीर कुवरवो रे ना
रम्मा दादियाँ के करै परनममो रे ना
रम्मा घोड़ियाँ पर होलै सबरवो रे ना
रम्मा बारप्पा सें करलकै परसथनमो रे ना
रम्मा चली देलकै दुश्मनमा के देशवो रे ना
रम्मा कुँवर बोलै घोड़ी सें बचनमो रे ना
रम्मा चले घोड़ी दुश्मनमा के देशवो रे ना
रम्मा घोड़ी छोड़ै धरती उड़े आकशवो रे ना
रम्मा कुछ ही घंटा में जाय पहुँचलै मुदैई नगरियो रे ना
रम्मा होय छेलै राजा घर आनन्दवो रे ना
रम्मा लचिका सें करै छेलै विधिवत् विहववो रे ना
रम्मा होय छेलै मंगल गीत गानमो रे ना
रम्मा बाजै छेलै दुआरी पर बजवो रे ना
रम्मा राजा छेलै खुशी मगनमो रे ना
रम्मा बड़ी भीड़ छेलै दुवरियो रे ना
रम्मा वही समय पहुचलै कुंवर रणवीरवो रे ना
रम्मा जहाँ करै छेलै लचिका दानमो रे ना
रम्मा वहाँ गेलै कुंवर रणबीरबो रे ना
रम्मा घोड़ी पीठी पर होलै सबरवो रे ना
रम्मा बोलै बात बड़ी कड़वो रे ना
रम्मा हरि के लानल्है हमरो मैयो रे ना
रम्मा करबै हम्में होकरोॅ बेटी से बिहवबो रे ना
रम्मा हम्मू जों होभै असल के जनमलो रे ना
रम्मा हम्मू चूकैय्यै लेबै बापोॅ के बदलो रे ना
रम्मा आजु दिनां देखबै होकरोॅ बलबो रे ना
रम्मा तलवरवा सें काटि होकरोॅ सिरबो रे ना
रम्मा काटि केॅ लटकैय्यै देवै पीपरवा के गछियाँ पर सिरबो रे ना
रम्मा कुंवर के सुनि के बतियो रे ना
रम्मा लचिका रानी सुनी केॅ होलै खुशवो रे ना
रम्मा लचिका के छतियाँ से बहै लागलै दुधबो रे ना
रम्मा पड़लै जायकै कुंवर के मुंहमो रे ना
रम्मा ऐसन देखि के हलवो रे ना
रम्मा तबेॅ कहेॅ लागलै रानी लचिको रे ना
रम्मा सुनोॅ नुनुआ हमरोॅ बतवो रे ना
रम्मा भागी जो तों चुपचपवो रे ना
रम्मा भेद नहीं जानौं पापी रजवो रे ना
रम्मा जबेॅ होय जैताैं राजा के मालूममो रे ना
रम्मा जित्तोॅ नै छोड़ताैं परनममो रे ना
रम्मा माता के सुनी बचनमो रे ना
रम्मा तबेॅ बोलै कुंवर रणवीरवो रे ना
रम्मा सुनोॅ मैया हमरोॅ कहनमो रे ना
रम्मा तोरोॅ चरन पर धरै मथवो रे ना
रम्मा मैया तों दे हमरा आशिशबो रे ना
रम्मा असल के जो होवै लड़कवो रे ना
रम्मा हम्में आपनोॅ बापो के लेवै बदलवो रे ना
रम्मा बिना बदला चुकैलै नै जैबै आपनोॅ देशवो रे ना
रम्मा एतना कहि केॅ बचनमो रे ना
रम्मा मैया केॅ करलकै परनममो रे ना
रम्मा तबेॅ देलकै मैया अशिरबदवो रे ना
रम्मा कुंवर ऐलै सीधा दरबरवो रे ना
रम्मा गरजी केॅ बोलै बचनमो रे ना
रम्मा हरन करि केॅ जे लानल्हे हमरोॅ मैयो रे ना
रम्मा आबी जो तों हमरोॅ सामना रे ना
रम्मा देखबै हम्में होकरोॅ सुरतियो रे ना
रम्मा जों होतै असल के पैदवो रे ना
रम्मा आवी केॅ निकलतै मैदनमो रे ना
रम्मा देलकै कुंवर ललकरवो रे ना
रम्मा देवै होकरोॅ विगाड़ी नकशवो रे ना
रम्मा सुनि केॅ कुंवर के ललकरबो रे ना
रम्मा राजा हौले जरी केॅ अंगरवो रे ना
रम्मा दै देलकै पलटन केॅ हुकुवमो रे ना
रम्मा जल्दी सें होय जो तैयरवो रे ना
रम्मा सुनी केॅ हुकुम पलटनमो रे ना
रम्मा आवी जुटलै सब मैदनमो रे ना
रम्मा टूटी पड़लै कुंवर के उपरवो रे ना
रम्मा तबेॅ कुंवर देलकै ललकरवो रे ना
रम्मा घोड़ी उड़ै आकशवा रे ना
रम्मा दोॅत सें काटी गिरावै पलटनमो रे ना
रम्मा घोड़ी पर चढ़ी केॅ कुंवर रणवीरवो रे ना
रम्मा जैसै काटै खेत किसनमो रे ना
रम्मा वैसे काटै कुंवर सेनमो रे ना
रम्मा खुनमा से पटै धरतियो रे ना
रम्मा खतम होय गेलै सब सैनिकवो रे ना
रम्मा अकेला बचलै एक्के रजवो रे ना
रम्मा होकरोॅ काटलकै गरदन वीर रणवीरवो रे ना
रम्मा बापोॅ के चुकैलकै बदलवो रे ना
रम्मा कुंवर जीतलकै समरवो रे ना
रम्मा तबेॅ गेलै गढ़ के उपरवो रे ना
रम्मा धजवा फरैलकै कुंवर रणबीरवो रे ना
रम्मा तोड़ी देलकै सबके गुमनमो रे ना
रम्मा चल्लो गेलै महल के भीतरवो रे ना
रम्मा जहाँ छेलै रजवा के बेटीयो रे ना
रम्मा रजबा के बेटी लैकेॅ संगबो रे ना
रम्मा हीरामंती जेकरोॅ नाममो रे ना
रम्मा चमकै छैलै होकरोॅ रूपवो रे ना
रम्मा ऐलै आपनोॅ मैया के किनटवो रे ना
रम्मा हाथ जोड़ी करलकै मैया केॅ परनममो रे ना
रम्मा देलकै मैया तबेॅ आर्शीबदबो रे ना
रम्मा कुंवर मन होलै आनन्दवो रे ना
रम्मा मैया के साथोॅ में कुंवरवो रे ना
रम्मा चली देलकै आपनोॅ देशवो रे ना
रम्मा कुंवर आवी गेलै नौरंग पोखरबो रे ना
रम्मा बोलै तबेॅ कुंवर रणवीरवो रे ना
रम्मा सुनी लेॅ राजा के बेटीयो रे ना
रम्मा यै पोखरिया उपर जेतना हड्डियो रे ना
रम्मा चुनी-चुनी करै तों जोअरवो रे ना
रम्मा तोरोॅ बापोॅ के करनमो रे ना
रम्मा कुंवर के सुनी बचनमो रे ना
रम्मा भोकरी-भोकरी कानेॅ लागलै हिरामंती रे ना
रम्मा कथीलेॅ होलोॅ छेलै हमरोॅ जनममो रे ना
रम्मा कौनी जनमोॅ में करलोॅ छेलां पपवो रे ना
रम्मा जे आय हमरा भोगे लेॅ पड़ै रे ना
रम्मा कुंवर कहै आपनोॅ कहनमो रे ना
रम्मा जल्दी सें मानी लेॅ हमरोॅ कहनमो रे ना
रम्मा यही बातोॅ में तोरोेॅ कुशलवो रे ना
रम्मा नहीं तेॅ करवोॅ तोरोॅ दुरगतियाँ रे ना
रम्मा खींची लेवौ देहोॅ के खलवो रे ना
रम्मा कत्तो तों कानभै नै छोड़वौ जानमो रे ना
रम्मा हमरोॅ कहलोॅ मुताबिक करेॅ तों कममो रे ना
रम्मा जैसनोॅ तोरोॅ वापोॅ के मारलियो समानमो रे ना
रम्मा वैसने लै लेवौ तोरोॅ परनममो रे ना
रम्मा हीरामंती कानै धुनी-धुनी कपरवो रे ना
रम्मा लोर पोछी-पोछी भीजाबै अचरबो रे ना
रम्मा कुछु दिन के बादबो रे ना
रम्मा आवी गेलै शिवरतियाँ के दिनमो रे ना
रम्मा शिबरतियाँ के दिनमा हिरामंती सें कुंवर करलकै बिहबबो रे ना
रम्मा बाजै लागलै खुशी के बजबो रे ना
रम्मा मंगल गीत हुवै लागलै अंगनमो रे ना
रम्मा छुटी गेलै कुंवर के सब विपत्तियो रे ना
रम्मा खुशिया से रहै रानी लचिको रे ना
रम्मा पुरी गेलै सब्भै आस अरमनमो रे ना
रम्मा कुंवर रणबीरवा केॅ पिन्हलकै राज मुकुटवो रे ना
रम्मा कुंवर रणबीरवा भेलै वरप्पा के रजवो रे ना
रम्मा वीतेॅ लागलै खुशी से जीवनमो रे ना
रम्मा परजबा में भी होलै खुशियो रे ना
रम्मा खनैलकै वारोॅ कुपवो रे ना
रम्मा हरलो राज धुरी केॅ होलै रे ना
रम्मा जनता के खुशी सें राजा रहै प्रसन्नमो रे ना।
No comments:
Post a Comment