अंगिका बुझौवल / भाग - 1
एक मुट्ठी राय देल छिरयाय
गिनतें-गिनतें ओरो नै पाय।
तारा
काठ फरै कठ गुल्लर फरै
फरै बत्तीसी डार
चिड़िया चुनमुन लटकै छै
मानुष फोड़ी-फोड़ी खाय।
सुपाड़ी
एक चिड़ियाँ ऐसनी
खुट्टा पर बैसनी
पान खाय कुचुर-मुचुर
से चिड़ियाँ कैसनी।
जाताँ
सुइया एन्हों सोझोॅ
माथा पर बोझोॅ।
ताड़-गाछ
सुइया एन्हों सोझोॅ
डाँड़ा पर बोझोॅ।
मकई के पेड़
तनी टा छौड़ी जनम जहरी
तेकरा पिन्हला लाल घंघरी।
मिरचाय
जबेॅ हम छेलाँ काँच कुमारी
तब तक सहलाँ मार
अब हम पहनला लाल घंघरिया
अब नै सहबौ मार।
हड़िया
कारी गाय लरबर
दूध करेॅ छरभर।
मेघ
टिप-टिप टिपनी, कपार काहे चुरती
टाकुर माँगुर रात काहे बूलती।
महुआ
तनी टा भाल मियाँ
बड़का ठो पुछड़ी।
सुईया
तनी टा मुसरी
पहाड़ तर घुसरी।
सुईया
सब्भे गेलोॅ हटिया
धुम्मा रहलोॅ बैठलोॅ।
कोठी
हेबेॅ ऐलोॅ
हेबेॅ गेलोॅ।
नजर
कारी गाय पिछुआडैं ठाड़ी।
टीक
जब हम छेलाँ बारी भोरी
तब हम पीन्हला दोबर साड़ी
जब हम होलाँ जोख जुआन
कपड़ा फाड़ी देखेॅ लोग-लुगान।
भुट्टा
अंगिका बुझौवल / भाग - 2
तोहरा कन गेलाँ
लेॅ केॅ बैठलाँ।
पीढ़ा
तोहरा कन गेलाँ
खोली केॅ बैठलाँ।
जूत्ता
चानी हेनोॅ चकमक, बीच दू फक्का
जे नै जानेॅ, जे नै जानेॅ ओकरोॅ हम्में कक्का।
दाँत
हिन्हौ टट्टी, हुन्हौ टट्टी
बीच में गोला पट्टी।
जीभ
हाथ गोड़ लकड़ी पेट खदाहा
जे नै बूझै ओकरोॅ बाप गदहा।
नाव
फरेॅ नै फूलै, ढकमोरै गाछ।
पान
जड़ नै पत्ता, की छेकोॅ ?
अमरलत्ता
तोहरा घरोॅ में केकरोॅ पेट चीरलोॅ।
गेहूँ
चलै में रीमझीम, बैठै में थक्का
चालीस घोॅर, पैतालीस बच्चा।
रेल
खेत में उपजै, हाट बिकाबै
साधूब्राह्मण सब कोय खाबै
नाम कहैतें लागै हस्सी
आधा गदहा, आधा खस्सी।
खरबूजा
लाल गे ललनी, लाल तोरोॅ जोॅड़
हरिहर पत्ता, लाल तोरोॅ फोॅर।
खमरूआ
राग जानै गाना नै जानै
गाय ब्राह्मण एक्को नै मानै
जों कदाचित जंगल जाय
एक हापकन बाघौ केॅ खाय।
मक्खन
हमरोॅ राजा केॅ अनगिनती गाय
रात चरै दिन बेहरल जाय।
तारा
हिनकी सास आरो हमरी सास दोनों माय घी
तोहें बूझोॅ हम्में जाय छी।
ससुरपुतोहू
साँपोॅ हेनोॅ ससरै, माँड़ रं पसरै
सभै छोड़ी केॅ नाक केॅ पकड़ै।
पोटा
एक गाछ मनमोहन नाम
बारह डार, बारह नाम।
बरस, दिन, तिथि
एक जोगी आवत देखा
रंगरूप सिन्दूर के रेखा
रोज आबै, रोज जाय
जीवजन्तु केकरो नै खाय।
सूरज
अंगिका बुझौवल / भाग - 3
तर खमेरी ऊपर झण्डा
जेकरोॅ पात सहस्सर खण्डा।
ओल
हिन्हौ टट्टी, हुन्हौ टट्टी, बीच में मकइया
फरै में लदबद, खाय में मिठैइया।
पानी के सिंघाड़ा
चलोॅ पाँचो भाय पाण्डव चरका पथलोॅ के पार करी दीहोॅ।
अंगुरीदाँत
एक मुट्ठी नारोॅ
सौंसे घरोॅ छारोॅ।
सिन्दूर
हिन्हौ टट्टी, हुन्हौ टट्टी, बीच में सड़कवा
फरेॅ लागलै काली माय, छोड़ी देलकै बन्दूकवा।
सलाम
चार कबूतर चार रंग
भाड़ी में ढूकेॅ एके रंग।
पान
हेती टा चुकड़ी में तीन बचवा
किरीन के धाव लागल उड़ बचवा।
अंडी
इती टा भालमियाँ
हेत्तेॅ ठो पुछड़ी
सूई
आँखीतर गुजुरगुजुर
गुजुर तर फें फें
फें फें तर फदर फदर
सुनेॅ तेॅ कें कें
आँख, नाक, मुख, कान
एक महल में दू दरवाजा
ऐलै लटकन मारोॅ पटकन
नाक
बाप रे बाप
ऊपर से गिरलै बड़का चाप
घोॅर भागलै दुआर दै केॅ
हम्में कोन दै केॅ भागवै रे बाप
जालमछली
तोॅर टाटी ऊपर टाटी
बीच में नाचेॅ गोली पाठी
जीभ
चार कबूतर चार रंग
भाँड़ी में ढूकेॅ तेॅ एक्के रंग
पान, सुपारी, चूना, कत्था
सूतसूत पर आग बरेॅ
लेकिन सूत एक नै जरेॅ
बिजली का तार
घोटोॅ घोटोॅ डिबिया
लाल लाल बिबिया
मसूर
लाल हाथी उजरोॅ सूँढ़
बूटकी अँकुरी
तोॅर गदगद ऊपर फेन
तेकरोॅ बेटा रतन सेन
भात
अंगिका बुझौवल / भाग - 4
माटी रोॅ घोड़ा माटी रोॅ लगाम
ओकरा पर चढ़ेॅ खुदबुदिया जुआन
भात
करिया जीन लाल घोड़ा
चढ़ेॅ उतरेॅ सिपाही गोरा।
तबा, आग, रोटी
भरलोॅ पोखरी में चान गरगराय।
घी से भरी कड़ाही में पूआ
भरलोॅ पोखरी में टिटही नाँचै।
बालू से भरी खपड़ी में भूजा
टुपटाप करै छैं, कपार कैन्हें फोड़ै छैं
नेङा ऐसन डेङा तोहें रात कैन्हें चलै छैं।
साँप महुआ से ‘’ टुपटाप करते हो, महुआ गिराते हो,
और सर क्यों फोड़ते हो।‘’
महुआ, तुम ऐसे नंगधड़ंग रात को क्यों चलते हो ?
फूलफूल मखचन्नोॅ के फूल
पैन्हें छिमड़ी तबेॅ फूल।
दिया की बत्ती और लौ
एक सङ दू साथी रहै
एक चललै एक सूती रहलै
तैयो ओकरोॅ साथ नै छुटलै।
चक्की के दोनों पल्ले
यहाँ, महाँ, कहाँ, छोॅ गोड़ दू बाँहाँ
पीठी पर जे नाङड़ नाचेॅ से तमासा कहाँ ?
तराजू ६ डोरियाँ, दो पलरे और डंडी पर पूँछ जैसी मूँठ
चलै में लचपच, बैठै में चक्का
हाथ नै गोड़ नै मारै लचक्का।
साँप
पानी में निसदिन रहेॅ
जेकरा हाड़ नै माँस
काम करेॅ तरुआर के
फिनु पानी में बाँस।
जोंक
फूलेॅ नै फरेॅ
सूप भरी झरेॅ।
बोहाड़न
एक गाँव में ऐसनोॅ देखलौं बन्नर दूहेॅ गाय
छाली काटी बीगी दियेॅ, दूध लियेॅ लटकाय।
पासी, ताड़खजूर का पेड़, ताड़ी
एक टा फूल छियत्तर बतिया।
केले की खानी
पानी काँपै, कुइयाँ काँपै
पानी में कटोरा काँपै
चाँद
लाल गाय खोॅर खाय
पानी पीयेॅ मरी जाय।
आग
ऊपर सें गिरलै धामधूम
धुम्मा रे तोहरोॅ माथा सूंघ।
ताड़
हिन्हौ नद्दी, हुन्हौ नद्दी
बीच में हवेली
हवेली करेॅ डगमग
माँग अधेली।
नाव
अंगिका बुझौवल / भाग - 5
बन जरेॅ, बनखंड जरेॅ
खाड़े जोगी तप करेॅ।
दीवाल, भीत
फूलेॅ नै फरै ढकमोरै गाछ।
ढिबरी
हीलेॅ डोरी, कूदेॅ बाथा।
डोरीलोटा
फूल नै पत्ता, सोझे धड़क्का।
पटपटी मोथा जाति का एक पौधा
मीयाँ जी रोॅ दाढ़ी उजरोॅ
मकरा नाँचै सूतोॅ बढ़ेॅ।
ढेरा सें सुथरी की रस्सी बाँटना
जोड़ा साँप लटकलोॅ जाय
सौंसे दुनिया बन्हलोॅ जाय।
रस्सी
छोटकी पाठी पेट में काठी
पाठीकाठी रग्गड़ खाय
सौंसे गाँव दिया जराय।
दियासलाई
उथरोॅ पोखर तातोॅ पानी
ललकी गैया पीयेॅ पानी।
दिया
करिया हाथी हड़हड़ करेॅ
दौड़ेॅ हाथी चकमक बरेॅ।
बादल बिजली
झकमक मोती औन्होॅ थार
कोय नै पावै आरपार।
आकाश और तारे
नेङड़ा घोड़ा हवा खाय
कुदकी केॅ छप्पर चढ़ि जाय।
धुआँ
जल काँपै, तलैया काँपै
पानी में कटोरा काँपै।
जल में चाँद की परछाँही
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