जी हो आज म्हारो पटसाळ सूनो लगऽ / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जी हो आज म्हारो पटसाळ सूनो लगऽ
नहीं आया म्हारा दशरथ बाप,
हरकत पगरण आरंभियो।
जी हो आज म्हारो पाळणो सूनो लगऽ
नहीं आई म्हारी कौशल्या माय,
हरकत पगरण आरम्भियो।
जो हो आज म्हारो मण्डप सूनो लगऽ
नहीं आया म्हारा राम-लछमण बीरा,
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो आज म्हारी आरती सूनी लगऽ
नहीं आई म्हारी सुभद्रा बेण,
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो आज म्हारो देवमन्दिर लहलहे / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जी हो आज म्हारो देवमन्दिर लहलहे,
आया म्हारा गणपत राव,
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो आज म्हारी पटसाळ लहलहे
आया म्हारा दशरथ बाप,
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो आज म्हारो पाळणो लहलहे
आई म्हारी कौशल्या माय,
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो आज म्हारो मण्डप लहलहे
आया म्हारा राम-लछमण बीरा
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो आज म्हारी आरती लहलहे
आई म्हारी सुभद्रा बेण।
हरकत पगरण आरम्भियो।
जी हो ए ही रे दिवलो इन्द्र लुहार नऽ घड़ियो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जी हो ए ही रे दिवलो, इन्द्र लुहार नऽ घड़ियो
जेमऽ पुरव्यो सवा घड़ो तेल, सोन्ना की डांडी दिया हो बळऽ
जी हाँ ए ही रे दिवलो, मजघर मऽ धर्यो,
मजघर बठी म्हारी सदासुहागेण माय,
सोन्ना की डांडी दिया हो बलळऽ
जी हो ए ही रे दिवलो, मनऽ आरती मऽ धर्यो,
आरती धरऽ म्हारी सदासुहागेण बैण,
सोन्ना की डांडी दिया हो बलळऽ
जी हो ए ही रे दिवलो, मनऽ पटसाळ मऽ धर्यो,
पटसाल खेलऽ म्हारा नारा ताना बाळ,
सोन्ना की डांडी दिया हो बलळऽ
जी हो ए ही रे दिवलो, मनऽ सभा मऽ धर्यो,
सभा मऽ बठ्या छे समधी लोग,
सोन्ना की डांडी दिया हो बलळऽ
जी हो पाँच बधावा म्हारा यहाँ आविया / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जी हो पाँच बधावा म्हारा यहाँ आविया,
पाँचई की नवी नवी रीत।
जी हो, नरवरगढ़ को ऊदो चूड़ो नऽ पोचयो सांवळो।
चूड़ीला पर उग्यों सूर्या भान महाराज।
जी हो, पहिलो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा ससुराजी द्वार,
जी हो, ससुराजी रंग सु बधाविया,
सासु नारेळ भरया थाळ महाराज,
जी हो दूसरो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा पिताजी द्वार,
जी हो पिताजी रंग सु बधाविया,
माया मोतियन भरया थाळ महाराज,
जी हो तीसरो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो ते जेठजी द्वार,
जी हो, जेठजी रंग सु बधाविया,
जेठाणी न लियो पगरण सार महाराज,
जी हो, चौथो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा बीराजी द्वार,
जी हो, बीराजी रंग सु बधाविया,
भावज न लियो घूँघट सार,
जी हो, पांचवों बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारी धनकेरी कूख,
जी हो इनी कूख हीरा रत्न नीबज्या,
जे को ते पगरण आरंभियो।
जीवणा है दिन चार जगत में / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जीवणा है दिन चार जगत में
(१) सुबे से हरि नाम सुमरले,
मानुष जनम सुधारो
सत्य धर्म से करो हो कमाई
भोगो सब संसार...
जगत में...
(२) माता पिता और गुरु की रे सेवा,
और जगत उपकार
पशु पक्षी नर सब जीवन में
ईश्वर आन निहारु...
जगत में...
(३) गलत भाव मन से बिसराजो,
सबसे प्रेम बड़ावो
सकल जगत के अंदर देखो
पुरण बृम्ह अपार...
जगत में...
(४) यह संसार सपना की रे माया,
ममता मोहे निहारे
हरि की शरण मे बंधन जोड़े
पावो मोक्ष दुवार...
जगत में...
झाँझ वाजऽ मिरधिंग वाजऽ म्हारो हार हिलोळा लेय / निमाड़ी गीत /लोकगीत
झाँझ वाजऽ मिरधिंग वाजऽ, म्हारो हार हिलोळा लेय।
बेसर वाळई छोरी हो, तू म्हारी गली मत आव।
थारी बेसर छे हळकणई, म्हारा प्रभुजी को खोटो स्वभाव।।
तूसी वाळई छोरी हो, तू म्हारी गली मत आव।
थारी तूसी छे झळकणई, म्हारा प्रभुजी को खोटो स्वभाव।।
जोगी ढ़ुढ़ण हम गया / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जोगी ढ़ुढ़ण हम गया,
कोई न देखयो रे भाई
(१) एक गूरु दुजो बालको,
तीजो मस्त दिवानो
छोटा सा आसण बैठणा
जोगी आया हो नाही....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(२) जोगि की झोली जड़ाव की,
हीरा माणीक भरीया
जो मांगे उसे दई देणा
जोगी जमीन आसमानाँ....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(३) आठ कमल नौ बावड़ी,
जीन बाग लगाई
चम्पा चमेली दवणो मोंगरो
जीनकी परमळ वासँ....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(४) पान छाई जोगी रावठी,
फुल सेज बिछाई
चार दिशा साधु रमी रया
अंग भभुत लगाईँ....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
जोगी ढ़ुढ़ण हम गया / निमाड़ी गीत /लोकगीत
जोगी ढ़ुढ़ण हम गया,
कोई न देखयो रे भाई
(१) एक गूरु दुजो बालको,
तीजो मस्त दिवानो
छोटा सा आसण बैठणा
जोगी आया हो नाही....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(२) जोगि की झोली जड़ाव की,
हीरा माणीक भरीया
जो मांगे उसे दई देणा
जोगी जमीन आसमानाँ....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(३) आठ कमल नौ बावड़ी,
जीन बाग लगाई
चम्पा चमेली दवणो मोंगरो
जीनकी परमळ वासँ....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(४) पान छाई जोगी रावठी,
फुल सेज बिछाई
चार दिशा साधु रमी रया
अंग भभुत लगाईँ....
.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
झाळ झपकऽ बिन्दी चमकऽ बोलऽ अमृत वाणी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
झाळ झपकऽ, बिन्दी चमकऽ बोलऽ अमृत वाणी,
धणियेर आंगणऽ कुआ खणाया, हरिया एतरो पाणी,
जूड़ो छोड़ी न्हावण बठ्या, धणियेर घर की राणी,
धणियेर घर की राणी रनुबाई, बोलऽ अमृत वाणी।
आमुलड़ा री डाल म्हारी माता, सालुड़ो सुखाड़ऽ,
सालुड़ा रा रम्मक झम्मक, नाचऽ ठम्मक ठम्मक,
धणियेर घर की राणी रनुबाई, बोलऽ अमृत वाणी।
डावां हाथ तेल-फुलेल जवणा हाथ आरती जी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
डावां हाथ तेल-फुलेल, जवणा हाथ आरती जी।
धणियेर राजा सोया सुख-सेज, रनुबाई रींझणो जी
डोलतज डोलतऽ आई गई झपकी, हाथ की रींझणो भुई गिर्यो जी।
धणियेर राजा की खुली गई नींद, तड़ातड़ मार्यो ताजणा जी।
रनुबाई खऽ लागी बड़ी रीस, आसन छोड़ी भुई सूता जी।
खुटी मऽ को चीर कोम्हलाय, असा कसा रोष भर्या जी।
बेडुला को नीर झोकळाय, असा कसा रोष भर्या जी।
पालणारो बाळो बिलखाय, असा कसा रोष भर्या जी।
डोलो सजायो रे राई आंगणा / निमाड़ी गीत /लोकगीत
डोलो सजायो रे राई आंगणा,
आरे तिरीया हल्द लगावे
(१) यम न झंडा रोपीया,
आरे रोपीया काया का माय
लुट सके तो लुट ले
लुट लिया हो बाजार...
डोलो...
(२) बम का हो बाजा बजी रया,
आरे बाजी रया रणवास
सखीयन मंगल गावियाँ
हुई रई जय-जय कार...
डोलो...
(३) हाथ म कंडो धरी लियो,
आरे पाछ रड़ परिवार
बिच म रे काया जाई रई
गई स्वर्ग द्वार...
डोलो...
(४) भाई रे बंधू थारा आई गया,
आरे सजी धजी रे बारात
भाई रोव न थारी तिरीया
चला रेवा किनार...
डोलो...
(५) रेवा जी के घाट पे,
आरे सल दियो हो रचाय
आग लगाई न पछा आवियाँ
पाणी अंग लगाय...
डोलो...
ढेल तो परवत भई रे आंगणो भयो परदेश / निमाड़ी गीत /लोकगीत
ढेल तो परवत भई रे, आंगणो भयो परदेश
म्हारा वीरा रे, तीरथऽ करी नऽ वेगा आवऽ।
कचेरी बसन्ता थारा पिता वाटऽ जोवेऽ रे
झुलवा झुलन्ती थारी माता।
म्हारा वीरा रे, तीरथ करी नऽ वेगा आवऽ
गैय्या धुवन्ता थारा भाई वाटऽ जोवऽ रे,
महिया विलन्ती थारी भावज।
म्हारा वीरा रे, तीरथ करी नऽ वेगा आवऽ।
घोड़ीला बसन्ता थारा पुत्र वाटऽ जोवऽ रे,
रसोई करन्ती थारी बहुवर
म्हारा वीरा रे तीरथऽ करी नऽ वेगा आवऽ।
सासर वासेण थारी बईण वाटऽ जोवऽ रे,
फुतल्या खेलन्ती थारी कन्या।
म्हारा वीरा रे, तीरथऽ करी नऽ वेगा आवऽ।
तुम तो जाओ संजा बेण सासरऽ / निमाड़ी गीत /लोकगीत
तुम तो जाओ संजा बेण सासरऽ।
तुम्हारा सासरऽ सी,
हत्थी भी आया, घोड़ा भी आया,
पालकी भी आई, म्याना भी आया,
तुम तो जाओ संजा बेणा सासरऽ
हत्थी सामनऽ उभाड़ो घोड़ा घुड़साल बंधाड़ो,
पालकी छज्जा उतारो, म्याना धाबा रखाड़ो,
हऊँ तो नहीं जाऊँ दादाजी सासरऽ।
तुम तो जागो न हो अमुक भाई घर की नार / निमाड़ी गीत /लोकगीत
तुम तो जागो न हो अमुक भाई घर की नार,
विहाणो हो श्याम-सुहावणो।
तुम तो जागो न हो बहुवर चीर संवारो
विहाणो हो श्याम-सुहावणो।
तुम तो देवो न हो बहुवर बाजुबन्द खील,
विहाणो हो श्याम-सुहावणो।
तुम तो देवों न हो बहुवर कपिला गाय,
विहाणो हो श्याम-सुहावणो।
तुम देवो रजा घर जावां / निमाड़ी गीत /लोकगीत
तुम देवो रजा घर जावां,
राणी रनु बाई हो।।
चूल्हा पर खीचड़ी खद-बदऽ,
राणी रानु बाई हो।।
अंगारऽ सीजऽ दाळ,
राणी रनु बाई हो।।
ससराजी सूता द्वार,
राणी रनु बाई हो।।
सासुजी दीसे गाळ,
राणी रनु बाई हो।।
म्हारा स्वामी सोया सुख सेज,
राणी रनु बाई हो।।
तुम देवो रजा घर जावां,
राणी रनु बाई हो।।
तुम म्हारी नौका धीमी चलो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
तुम म्हारी नौका धीमी चलो,
आरे म्हारा दीन दयाला
(१) जाई न राम थाड़ा रयाँ,
जमना पयली हो पारा
नाव लावो रे तुम नावड़ा
आन बैगा पार उतारो....
तुम म्हारी........
(२) उन्डी लगावजै आवली,
उतरा ठोकर मार
सोना मड़ाऊ थारी आवली
रूपया न को रास....
तुम म्हारी........
(३) निरबल्या मोहे बल नही,
मोहे फेरा घड़ावो राम
म्हारा कुटूंम से हाऊ एकलो
म्हारो घणो परिवार....
तुम म्हारी........
(४) बिना पंख को सोरटो,
आरे पंछी चल्यो रे आकाश
रंग रूप वो को कुछ नही
लग भुख नी प्यास....
तुम म्हारी........
(५) कहत कबीर धर्मराज से,
आरे हाथ ब्रम्हा की झारी
जन्म.जन्म का हो दुखयारी
राखो लाज हमारी....
तुम म्हारी........
थारो काई काई रूप बखाणूँ रनुबाई / निमाड़ी गीत /लोकगीत
थारो काई काई रूप बखाणूँ रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारी अगळई मूंग की सेंगळई रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारो सिर सूरज को तेज रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारी नाक सुआ की रेख रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा डोला निंबू की फाक रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा दाँत दाड़िम का दाणा रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा ओंठ हिंगुळ की रेख रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा हाथ चम्पा का छोड़ रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा पांय केळ का खंब रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारो काई काई रूप बखाणूं रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
दिया-बत्ती हुओ रे मिलाप बय लड़ी सांजुली / निमाड़ी गीत /लोकगीत
दिया-बत्ती हुओ रे मिलाप, बय लड़ी सांजुली।।
गौआ-बछुआ हुओ रे मिलाप, बय लड़ी सांजुली।।
पंछी-बच्चा हुओ रे मिलाप, बय लड़ी सांजुली।।
रात-दिन हुओ रे मिलाप, बय लड़ी सांजुली।।
राजा-रानी हुओ रे मिलाप, बय लड़ी सांजुली।।
दया करो म्हारा नाथ / निमाड़ी गीत /लोकगीत
दया करो म्हारा नाथ
हुँउ रे गरीब जन ऐकलो
(१) बन म वनस्पति फुलियाँ,
आरे फुलिया डालम डाल
वाही म चन्दन ऐकलो
जाकी निरमल वाँस...
हुँउ रे गरीब...
(२) कई लाख तारा ऊगीयाँ
ऊगीयाँ गगन का मायँ,
वहा म्हारो चन्दाँ ऐकलो
जाकी निर्मल जोत...
हुँउ रे गरीब...
(३) अन्न ही चुगता चुंगी रयाँ,
आरे पंछी पंख पसार
वहा म्हारो हंसो ऐकलो
आरे मोती चुग-चुग खाय…
हुँउ रे गरीब...
(४) कहेत कबीर धर्मराज से,
आरे साहेब सुण लिजै
घट का परदा खोल के
आरे आपणो कर लिजे...
हुँउ रे गरीब...
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