उंकार देव न लिख्या कागज दई भेज्या / निमाड़ी गीत /लोकगीत
उंकार देव न लिख्या कागज दई भेज्या,
तू रे ईरा, बेगा रे घर आव
हम कसां आवां म्हारा उंकार देव,
हमारा माथऽ नारेळ की मान।
नारेल चढ़ावऽ थारो माड़ी जायो,
तू रे ईरा, बेगा रे घर आव।
उच्चो सो पीप्पल कोपळयो हो देवी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
उच्चो सो पीप्पल कोपळयो हो देवी,
वहाँ बठी गाय गोठाण।
चादर पिछोड़ी को गाळयो हो देवी,
रनुबाई भात लई जाय।
अवतज जो धणिएरजी न देखिया,
हो राजा-
एक जो मारी, दूसरी, न हो राजा
तीसरी मऽ जोड़या दुई हाथ।
जो तुम धणियेर सोठी मारसो हो राजा
नहीं म्हारो माय न बाप,
नहीं हमारी माय न मावसी हो राजा,
कुण म्हारो आणो लई जाय।
कलयुग म अमुक भाई मानवी राजा
ऊ तुम्हारो आणो लई जाय।
अमुक भाई दीसे तुमख बाजुट हो राजा
लाड़ीबाई लागसे तुम्हारा पाँय।
ऐसी भक्ति साधू मत किजीये / निमाड़ी गीत /लोकगीत
ऐसी भक्ति साधू मत किजीये,
जग मे होय नी हाँसी
(१) अन्त काल जम मारसे
गल दई देग फाँसी....
..........ऐसी भक्ति......
(२) जो मंजारी ने तप कियो,
खोटा व्रत लिना
घर से दीपक डाल के
आरे मूसाग्रह लिना....
........ऐसी भक्ति......
(३) जो हो लास पिघल चली,
पावक के आगे
ब्रज होय वहा को अंग...
..........ऐसी भक्ति.....
(४) देखत का बग उजला,
मन मयला भाई
आख मिची ऋषी जप करे
मछली घट खाई....
.........ऐसी भक्ति......
(५) ग्रह ने गज को घेरिया,
आरे कुंजरं दुंख पाया
हरी नाम उचारीया
आरे तुरंत ताल छुड़ाया...
........ऐसी भक्ति....
ऐसो करम मत किजो रे सजना / निमाड़ी गीत /लोकगीत
ऐसो करम मत किजो रे सजना
गऊ ब्राम्हण क दिजो रे सजना
(१) रोम-रोम गऊ का देव बस रे,
ब्रम्हा विष्णु महेश
गऊ को रे बछुओ प्रति को हो पाळण
क्यो लायो गला बांधी....
रे सजना ऐसो...
(२)दुध भी खायो गऊ को दही भी जमायो
माखण होम जळायो
गोबर गोमातीर से पवित्र हुया रे
छोड़ो गऊ को फंदो...
सजना ऐसो...
(३) सजन कसाई तुक जग पयचाण,
धरील माँस हमारो
सीर काट तेरे आगे धरले
फिर करना बिस्मलो...
सजना ऐसो...
(४) तोरण तोड़ू थारो मंडप मोडू,
ब्याव की करु धुल धाणी
लगीण बखत थारो दुल्लव मरसे
थारा पर जम पयरा दिसे...
सजना ऐसो...
(५) कबीर दास न गऊवा मंगाई,
जल जमुना पहुचाई
हेड़ डुपट्टो गऊ का आसु हो पोयचा
चारो चरो न पेवो पाणी...
सजना ऐसो...
कब के भये बैरागी कबीर जी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
कब के भये बैरागी कबीर जी,
कब के भये बैरागी
आदि अंत से आएँ गोरख जी,
जब के भये बैरागी
(१) जल्मी नही रे जब का जलम हमारा,
नही कोई जल्मी को जायो
पाव धरण को धरती नही थी
आदी अंत लव लागी...
कबीर जी...
(२) धुन्दाकार था ऐ जग मेरा,
वही गुरु न वही चेला
जब से हमने मुंड मुंडायाँ
आप ही आये अकेला...
कबीर जी...
(३) सतयुग पेरी पाव पवड़ियाँ,
द्वापूर लीयाँ खड़ाऊ
त्रैतायुग म अड़ बंद कसियाँ
कलू म फिरीयाँ नव खंडा…..
कबीर जी...
(४) राम भया जब टोपी सिलाई,
गोरख भया जब टीका
जब से गया हो जलम फेरा
ब्रम्हा मे सुरत लगाई...
कबीर जी...
करन्ड कस्तूरी भरिया छाबा भरिया फूलड़ा जी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
करन्ड कस्तूरी भरिया, छाबा भरिया फूलड़ा जी।
तुम भेजो हो धणियेर रनुबाई, जो हम करसां आरती जी
थारी आरतड़ी ख आदर दीसाँ,
देव दामोदर भेंटसा जी।।
करन्डी कस्तूरी भरिया, छाबा भरिया फूलड़ा जी।।
कबीरो किन भरमायो, अम्माँ महारो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
कबीरो किन भरमायो, अम्माँ महारो
(१) कबीरा की औरत कहती सासु से
ऐसो पुत्र क्यो जायो
खबर हुती मख नीच काम की
ब्याव काहै को करती
कबीरो किन भरमायो, अम्माँ महारो
(२) कबीरा की माता कहती कबीर से
तुन म्हारो दुध लजायो
खबर हुती मख गर्भवाँस की
दुध काहे को पिलाती
कबीरो किन भरमायो, अम्माँ महारो
कहा तक तोहे समझाऊ / निमाड़ी गीत /लोकगीत
कहा तक तोहे समझाऊ,
रे मन म्हारा
(१) हाथी होय तो शाकल मंगाऊ,
पाव म जंजीर डलाऊ
लई हो मऊत थारा सिर पर डालू
दई.दई अकुंश चलाऊ......
रे मन म्हारा...
(२) लोहा होय तो ऐरण मंगाऊ,
उपर धमण धमाऊ
लई रे हथौड़ी जाको पत्र मिलाऊ
जंतर तार चलाऊ...
रे मन म्हारा...
(३) सोना होय तो सुहागी मंगाऊ,
कयड़ा ताव तपाऊ
बंक नाल से फुक दई मारु
पाणी कर पिघळाऊ...
रे मन म्हारा...
(४) घोड़ा होय तो लगाम मंगाऊ,
उपर झीण कसाऊ
चड़ पैगड़ा ऊपर बैठू
आन चाबुक दई न चलाऊ...
रे मन म्हारा...
(५) ग्यानी होय तो ज्ञान बताऊ,
ज्ञान की बात सुणाऊ
कहत कबीरा सुणो भाई साधु
आड़ ज्ञानी से आङू...
रे मन म्हारा...
काया नही रे सुहाणी भजन बिन / निमाड़ी गीत /लोकगीत
काया नही रे सुहाणी भजन बिन
बिना लोण से दाल आलोणी...
भजन बिन.........
(१) गर्भवास म्हारी भक्ति क भूली न
बाहर हूई न भूलाणी
मोह माया म नर लिपट गयो
सोयो तो भूमि बिराणी...
भजन बिन...
(२) हाड़ मास को बणीयो रे पिंजरो
उपर चम लिपटाणी
हाथ पाव मुख मस्तक धरीयाँ
आन उत्तम दीरे निसाणी...
भजन बिन...
(३) भाई बंधु और कुंटूंब कबिला
इनका ही सच्चा जाय
राम नाम की कदर नी जाणी
बैठे जेठ जैठाणी...
भजन बिन...
(४) लख चैरासी भटकी न आयो
याही म भूल भूलाणी
कहे गरु सिंगा सूणो भाई साधू
थारी काल करग धूल धाणी...
भजन बिन...
काहे का कारण सखी हो मेहुलो सो वरस्यो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
काहे का कारण सखी हो, मेहुलो सो वरस्यो,
काहे का कारण दूब लहलहे।
धरती का कारण सखीबाई, मेहुलो सो बरस्यो,
गउआ का कारण दूब लहलहे।
काहे का कारण सखि हे, अम्बो सो मौरियो,
काहे का कारण केरी लूम रही?
सोगीटा का कारण सखिबाई, अम्बो सो मौरियो,
कोयल का भाग कैरी लूम रही।
काहे का कारण सखि हो, बाग सो फूल्यो,
काहे का कारण कलियाँ खिल रहीं।
माली का कारण सखिबाई, बाग सो फूल्यो,
देव का कारण कलियाँ खिल रहीं।
काहे का कारण सखिबाई, चुड़िलो सो पेर्यो,
काहे कारण चूनर गहगहे?
स्वामी का भाग सखिबाई, चुड़िलो सो पेर्यो,
इराजी का कारण चूनर गहगहे।
काहे का कारण सखि हो पुत्र जलमियो,
काहे का कारण दिहे अवतारिया जी?
बहुवर भाग सखि हो, पुत्र जी जलमियो,
साजन का भाग दिहे अवतारिया जी।
कुवां पाणी कसी जाऊँ रे नजर लगी जाय / निमाड़ी गीत /लोकगीत
कुवां पाणी कसी जाऊँ रे, नजर लगी जाय।
नजर लगी जाय, हवा लगी जाय।।
म्हारा साहेबजी का बाग घणा छे,
फुलड़ा तोड़णऽ कसी जाऊँ रे, नजर लगी जाय।
म्हारा साहेबजी का कुवां घणा छे,
पाणी भरणऽ कसी जाऊँ रे, नजर लगी जाय।
नजर लगी जाय, हवा लगी जाय।।
कुण भाई जासे चाकरी कुण भाई जासे गढ़ रे गुजरात? / निमाड़ी गीत /लोकगीत
”कुण भाई जासे चाकरी, कुण भाई जासे गढ़ रे गुजरात?
मोठा भाई जासे चाकरी, छोटा भाई जासे गढ़ रे गुजरात!
कुण भाई की घोड़ी खऽ घूँघरू,
कुण भाई की घोड़ी खऽ जड़यो रे जड़ाव
मोठा भाई की घोड़ी खऽ घूँघरू,
छोटा भाई की घोड़ी खऽ जड़यो रे जड़ाव
कुण भाई लावसे चूनरी, कुण भाई लावसे दक्षिणारो चीर
एक भाई लावसे चूनरी, दूसरो भाई लावसे दक्षिणारो चीर
श्रावण आयो जी।।
कैसे चीर बड़ायो प्रभू ने / निमाड़ी गीत /लोकगीत
कैसे चीर बड़ायो प्रभू ने,
सभी देख बिसमायो
(१) कौरव पांडव मिल आपस में,
जुवा को खेल रचायो
डाल कपट का पासा सकुनी न
पांडव राज हरायो...
प्रभू ने...
(२) द्रुपद सुता को बीच सभा में,
नगन करण को लायो
पकड़ केश वो खईचण लाग्यो
तुम बिन किनको सहारो...
प्रभू ने...
(३) दुःशासन ने पकड़ केश से,
चीर बदन से हटायो
खैचत-खैचत अन्त नी आयो
अम्बर ढेर लगायो...
प्रभू ने...
(४) भीष्म द्रोण दुर्योधन राजा,
मन मे सब सरमाये
पालन करता हरी की शरण में
तिनको कौन दुखाये...
प्रभू ने...
कैसे रुप बड़ायो रे नरसींग / निमाड़ी गीत /लोकगीत
कैसे रुप बड़ायो रे नरसींग
(१) ना कोई तुमरा पिता कहावे,
ना कोई जननी माता
खंब फोड़ प्रगट भये हारी
अजरज तेरी माया...
रे नरसींग...
(२) आधा रुप धरे प्रभू नर का,
आधा रे सिंह सुहाये
हिरणाकुष का शिश पकड़ के
नख से फाड़ गीरायो...
रे नरसींग...
(३) गर्जना सुन के देव लोग से,
बृम्हा दिख सब आये
हाथ जोड़ कर बिनती की नी
शान्त रुप करायो...
रे नरसींग...
(४) अन्तर्यामी की महीमा ना जाणे,
वेद सभी बतलाये
हरी नाम को सत्य समझलो
यह परमाण दिखायो...
रे नरसींग.......
क्यो रोये मोरी माई हो ममता / निमाड़ी गीत /लोकगीत
क्यो रोये मोरी माई हो ममता
क्यो रोये मोरी माई
(१) तो पाँच हाथ को कफन बुलायो,
उपर दियो झपाई
चार वेद चैरासी हो फेरा
उपर लीयो उठाई...
हो ममता...
(२) तो लाख करोड़ी माया हो जोड़ी,
कर-कर कपट कमाई
नही तुन खाई, नही तुन खरची
रई गई धरी की धरी...
हो ममता...
(३) तो भाई बन्धू थारो कुटूम कबीलो,
सबई रोवे रे घर बार
घर की हो तीरीया तीन दिन रोवे
दूसरो कर घर बार...
हो ममता...
(४) तो हाड़ जल जसी बंध की हो लकड़ी,
कैश जल जसो घाँस
सोना सरीकी थारी काया हो जल
कोई नी उब थारा पास...
हो ममता......
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