अनहद मन म्हारो रमी रयो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
अनहद मन म्हारो रमी रयो,धुन लागी रे प्यारी
(१) उस दरियाव की मछली,
आरे इस नाले में आई
नाले का पानी तोकड़ा
दरिया न समानी...
अनहद...
(२) वस्तु घणी रे बर्तन छोटा,
आरे कहो कैसे समाणी
घर मे धरु तो बर्तन फुटे
बाहेर भरमाणी...
अनहद...
(३) फल मीठा रे तरुवर ऊँचा,
आरे कहो कैसे रे तोड़े
अनभेदी ऊपर चड़े
गीरे धरती के माही...
अनहद...
(४) बृह्मगीर बृह्मरुप है,
आरे बृह्म के हो माही
बृह्म में बृह्म मिल गये
बृह्म में समाये...
अनहद...
अगर चन्दन का बण्या रे किवाड़ / निमाड़ी गीत /लोकगीत
अगर चन्दन का बण्या रे किवाड़,बावन चन्दन की कोठड़ी,
कोठड़ी मऽ बठ्या राणी रनुबाई नार हो,
बाळा कुंवर की मावली।
भोळा हो धणियेर, भोळा तुम्हारो राज,
तो नव दिन पियर हम जावां जी।
तुम देवी मूरख गंवार,
नव दिन पीयर मत जाओ।
तपऽ तपऽ चैत केरो घाम,
कड़ी को बाळो कुम्हलई जासे
तुम्हारा बाला खऽ राखो तुम्हारा पास,
नव दिन पियर हम जावां जी।।
अमर कंट निज धाम है / निमाड़ी गीत /लोकगीत
अमर कंट निज धाम है,नीत नंहावण करणा
(१) वासेण जाल से हो निसरी,
आरे माता करण कुवारी
कल युग म हो देवी आवियां
कलू कर थारी सेवा...
अमर कंट...
(२) बड़े बड़े पर्वत फोड़ के,
आरे धारा बही रे पैयाला
कईयेक ऋषि मुनी तप करे
जल भये रे अपारा...
अमर कंट...
(३) पैली धड़ ॐकार है,
ऐली धड़ रे मंन्धाता
कोट तिरत का हो नावणा
नहावे नर और नारी...
अमर कंट...
(४) मंन्धाता के घाट पे,
आरे पैड़ी लगी रे पचास
आम साम रे वाण्या हाटड़ी
दूईरा पड़ रे बजार...
अमर कंट...
अमुक भाई वालई खऽ राखड़ी भरात / निमाड़ी गीत /लोकगीत
अमुक भाई वालई खऽ राखड़ी भरात,
पिया हमखऽ दे राखड़ी घड़ई देव, असी गरमी से।
उंढालई सेज पिया मोहे न सुहाये,
जुदा जुदा पलंग तुलई देव, असी गरमी से।
चौमासा की सेज पिया मोहे न सुहाये,
पिया हमखऽ ते पियर पहुँचई देव, असी गरमी से।
स्याला की सेज पिया बहुत रसालई,
पिया हमखऽ ते हिया सी लगई लेव, इनी गरमी से।
अन्त नी होय कोई आपणा / निमाड़ी गीत /लोकगीत
अन्त नी होय कोई आपणा,समझी लेवो रे मना भाई
(१) आप निरंजन निरगुणा,
आरे सिरगुणी तट ठाढा
यही रे माया के फंद में
नर आण लुभाणा...
अन्त नी...
(२) कोट कठिन गड़ चैड़ना,
आरे दुर है रे पयाला
घड़ियाल बाजत दो पहेर का
दुर देश को जाणा...
अन्त नी...
(३) इस कल युग का हो रयणाँ,
आरे कोई से भेद नी कहेणा
झिलमील-झिलमील देखणा
मुख में शब्द को जपणा...
अन्त नी...
(४) भवसागर का हो तैरणा,
आरे कैसे पार उतरणा
नाव खड़ी रे केवट नही
अटकी रहयो रे निदाना...
अन्त नी...
(५) माया का भ्रम नही भुलणा,
आरे ठगी जायगा दिवाना
कहेत कबीर धर्मराज से
पहिचाणो ठिकाणाँ...
अन्त नी...
अरे सायबा खेलणऽ गई गनागौर / निमाड़ी गीत /लोकगीत
अरे सायबा खेलणऽ गई गनागौर,अबोलो क्यों लियो जी महाराज।।
अरे सायबा, अबोलो देवर-जेठ,
सायबजी सी ना, रहवा जी महाराज।।
अरे सायबा, पड़ी गेई रेशम गांठ,
टूटऽ रे पण ना छूटऽ जी महाराज।।
अरे सायबा, खाटो दूा अरू दही,
फाट्यो रे मन ना जुड़ जी महाराज।।
अरे सायबा, खेलणऽ गई गनागौर,
अबोलो क्यों लियो जी महाराज।।
आणो आयो रे पारीब्रम्ह को / निमाड़ी गीत /लोकगीत
आणो आयो रे पारीब्रम्ह को,आरे सासरिया को जाणो
(१) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
आपुण पाणी क चाला
उंडो कुवो न मुख साकड़ो
आन रेशम डोर लगावा...
आणो आयो रे...
(२) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
आपुण बाग म चाला
चंपा चमेली दवणो मोगरो
फूल गजरा गुथावा...
आणो आयो रे...
(३) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
आपुण शीश गुथावा
कछु गुथा न कछु गुथणा
मोतीयाँ भांग सवारा...
आणो आयो रे...
(४) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
आपुण चोली सीलावा
कछु सीवी न कछु सीवणा
चोली अंग लगावा...
आणो आयो रे...
(५) कहत कबीर धर्मराज से,
साहेब सुण लेणा
सेन भगत जा की बिनती
राखो चरण आधार....
आणो आयो रे...
आपसे हो म्हारो लखपति बाप / निमाड़ी गीत /लोकगीत
आपसे हो म्हारो लखपति बाप,साड़ी लावसे रेशमी जी।।
हऊं नापूँ तो हात पचास,
तोलूँ तो तोला तीस जी।।
हऊँ धरूँ तो तरसऽ म्हारो जीवड़ो,
पेरूँ तो खिरऽ मोतीड़ा जी।।
आवसे हो म्हारो लखपति बाप,
साड़ी लावसे रेशमी जी।।
आया अयोध्या वाला कुवर दो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
आया अयोध्या वाला कुवर दो(१) राजा जनक तो जग में हो ठाड़ा
शोभा वर्णी न जाई
उठ सभा दल देखण लागी
उग्या भवन का तारा...
कुवर दो...
(२) यो रे धनुष कोई सी हाले न डोले,
लख जोधा आजमाया
रावण सरीका पड्या खिसाणा
भवपती गरब हरायाँ...
कुवर दो...
(३) लक्ष्मण सुणो बंधु रे भाई,
गुरु की नी आज्ञा पाई
डावी भुजा सी धरणी क तोकु
धनुष की कोण बिसात...
कुवर दो...
(४) गुरु की आज्ञा पाई राम न,
चरणो म शीश नमाया
इनी रे भूमी पर है कोई योद्धा
धनुष का टुकड़ा उड़ाया
कुवर दो...
(५) सिता रे ब्याही न राम घर आया,
घर-घर आनंद छाया
माता कौशल्या न आरती सजाई
राम बधाई घर लाया...
कुवर दो...
आयो-आयो चैतडल्या रो मास जी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
आयो-आयो चैतडल्या रो मास जी,जँवारा जतन कर राखज्यो जी। ईसरदासजी पेचडल्या मेँ टाँक सी जी,
जँवारा जतन कर राखज्यो जी। बहू ओ गोराँदे रे चुडले रे माँय जी,
जँवारा जतन कर राखज्यो जी बेटा जी पेचडल्या मेँ टाँक सी जी,
जँवारा जतन कर राखज्यो जी। बहू रे चुडले रे माँय जी,
जँवारा जतन कर राखज्यो जी।
इनी धरती आदो नींपज्यो आदा का चिकणा ते पान जी / निमाड़ी गीत /लोकगीत
इनी धरती आदो नींपज्यो, आदा का चिकणा ते पान जी।इनी कूक दुल्लवजी नींपज्या, माँगऽ माँग छे कन्या को दानजी।
कन्या को दान ते बाबुल बहोत दोयलो,
मूरख सी दियो नी जाय।
लड़की कांय खऽ पाळई रे बाबुल, कांय खऽ पोसी,
कांय खऽ पायो जी काचो दूध।।
माया खऽ पाळई रे बाबुल, माया खऽ पोसी,
माया खऽ पायो काचो दूध जी।
चरवो भी दियो रे बाबूल, गंगाळ भी दीनी,
तो भी नी समझ्या दयालजी।
आव रे चांद भैंसी बान्ध / निमाड़ी गीत /लोकगीत
"आव रे चांद, भैंसी बान्ध।चन्दा बाबा चन्दी दऽ
घीं मऽ रोटी वालई दऽ।
नाना भाई खऽ भावऽ नी,
न झुमका लाड़ी आवऽ नी।"
ऐसी हो प्रीत निभावजो / निमाड़ी गीत /लोकगीत
ऐसी हो प्रीत निभावजो,आरे जग मे होय नी हाँसी
(१) बैठ्या बामण चन्दन घसे,
आरे थाड़ी कुबजा हो दासी
फुल फुल्यो रे गुलाब को
माला गुथो हो खासी...
ऐसी हो प्रीत...
(२) राम नाम संकट भयो,
आरे दिल फिरे हो उदासी
तुम हो देवन का हो देवता
राखो लाज हमारी...
ऐसी हो प्रीत...
(३) जल डुबता बर्तन तिरिया,
आरे तिरिया कंुजर हाथी
पथ राख्यो रे पहेलाद को
लाज द्रोपता राखी...
ऐसी हो प्रीत...
(४) दास दल्लु की हो बिनती,
आरे राखो चरण लगाई
मृत्यू सी हमक छोड़ावजो
मन म चिंता हो लागी...
ऐसी हो प्रीत...
No comments:
Post a Comment