शंकर शिव शम्भु साधु संतन हितकारी ॥
लोचन त्रय अति विशाल सोहे नव चन्द्र भाल ।
रुण्ड मुण्ड व्याल माल जटा गंग धारी ॥
पार्वती पति सुजान प्रमथराज वृषभयान ।
सुर नर मुनि सेव्यमान त्रिविध ताप हारी ॥
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