मन महरानिन देख भुलानो।
रहो भुलाय मर्म रचना में शबद बिना तन जात न जानो।
जैसे भंवर बाग बन भूलो रित बंसत के अंत उड़ानो।
कनक कामनी के रंग राचो तन माया की लहर समानो।
दिना चार को रंग सुरंगी ऊजर पुर जहं बास बसानो।
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