पालना झूलत सुंदर स्याम चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
पालना झूलत सुंदर स्याम।
रतन तटित कंचन कौ पलना झुलवत हैं व्रज बाम॥
गज मोतिनि के झूमका बांधे मोहे कोटिन काम।
‘चतुर्भुजदास’ प्रभु गिरिधरनलाल के चरन कमल बिसराम॥
आजु महामंगल निधि माई चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
आजु महामंगल निधि माई।
मनमोहन आनंद निधि प्रगटी श्रीराधा सुखदाई॥
सब स्रुतियन की संपति आई ब्रज जुवती मन भाई।
हरषि-हरषि नाचत सब ब्रजजन बांटत विविध बधाई॥
पंच सबद बाजे बाजत धुनि दिसनि-दिसनि हरि छाई।
नंद जसोमति सब सुखराच्यो फूले कुंवर कन्हाई॥
सुर विमान छायो नभ जै-जै कुसुमावलि बरसाई।
‘चतुर्भुजदास’ लाल मन वांछित फल परिपूरनताई॥
धौरी, धूमरी, पियरी, कारी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
धौरी, धूमरी, पियरी, कारी काजर कहि-कहि हेरे।
वाम भुजा मुरली कर लीन्हे दच्छिन कर पीतांबर फेरे॥
सुंदरनागर नटकालिंदी के तट लियें लकुट गैयनि हेरें।
हूंकि-हूंकि इकबार गीधी सवधाई ‘चतुर्भुज प्रभु गिरिधारी—नियरें॥
गोविंद चले चरावन गैया चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
गोविंद चले चरावन गैया।
दीनो हरिषु आजु भलौदिन कह्यौ है जसोदा मैया॥
उबरि नहवाइ बसन भूषन सजि विप्रनि देत बधैया।
करि सिर तिलकु आरती वारती, फुनि-फुनि लेति बलैया॥
‘चतुर्भुजदास’ छाक छीके सजि, सखनि सहित बल भैया।
गिरिधर गवनत देखि अंक भरि मुख चूम्यो ब्रजरैया॥
कहो किनिकीनों दान दही कौ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
कहो किनि कीनों दान दही कौ।
सदा सर्वदा बेचति इहिं ब्रज है मारग नित हीकौ॥
भाजन हीन समेट सिरनि तें लेत छीनि सबही कौ।
बहुर्यों कबहुं भयो न देख्यो नयो न्याउ अबही कौ॥
कमल नैन मुसक्याइ मंद हंसि अंचर पकर्यो जबही कौ।
दास ‘चतुर्भुज’ प्रभुगिरिधर मनु चोरि लियो तब ही कौ॥
होरी खेलत ब्रज नंद-लड़ैतौ लाल चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
होरी खेलत ब्रज नंद-लड़ैतौ लाल।
चोवा चंदन और अरगजा कंठ सोहत मोतिन माल॥
कोउ गुलाल केसरि भरि लीयें कोऊ कंचन-थाल।
इक नाचत, इक मृदंग बजावत, गावत गीत रसाल॥
छिपत फिरत कुंजन महियां हा-हा करत भई बेहाल।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गरें लगाइ लई रीझि दई उर-माल॥
राखी बांधति मात जसोदा चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
राखी बांधति मात जसोदा
बल और श्री गोपाल के।
सावन सुदिपून्यौ को सुभदिन
तिलकु करति बिच भाल के।
विप्र बुलाइ दई बहु दच्छिना
अरु वारति मुक्तामाल कें।
‘चतुर्भुजदास' निरखिमन फूले
गुन गावत गिरिधरलाल कें॥
स्याम सुनु नियरौ आयो मेहु चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
स्याम सुनु नियरौ आयो मेहु।
भीजेगी मेरी सुरंग चूनरी ओट पीत पट देहु॥
दामिनि तें डरपति हौं मोहन निकट आपुने लेहु।
‘दास चतुर्भुज’ गिरिधर सों बाढ्यो है सनेहु॥
रंग नीक री फुही थोरी-थोरी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
रंग नीक री फुही थोरी-थोरी।
हरित भूमि तामें कंसूभी चीर सखी समूह ओढें बनि जोरी-जोरी।
नवल पीतांबर ओढ़ें गिरिधारी लाल नवल घट अरु नौतन गौरी।
पावस रितु सुख ‘चतुर्भुजदास’ स्वामिनी विलसहिं नवल वन की खोरी-खोरी॥
स्याम सुंदर प्रान-पियारे चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
स्याम सुंदर प्रान-पियारे! छिनुजिनि होहु नि न्यारे।
नेकु की ओट मीन ज्यों तलफत इनि नैननि के तारे॥
मृदु मुसकानि, वंक अवलोकन, डगमग चलनि सहज में सुढारे।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर—बानिक पर कोटिक मन्मथ वारे॥
नंद-घर होत बधाई आज चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
नंद-घर होत बधाई आज।
जसोमति जनम-पत्रिका पाई भक्तिनि कौ सुखराज॥
गोपी ग्वाल करत कौतूहल निरखत नंद कुमार।
कनक-थार लियें ब्रज-सुंदरी गावति मंगलचार॥
नंद जु दान दियो बहुविधि सों सरे विप्रनि के काज।
‘चतुर्भुज’ प्रभु कौ मुख निरखत ही वृष्टि करत सुरराज॥
जागौ मंगल रूपनिधान चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
जागौ मंगल रूपनिधान।
हरि-प्रबोध अति ही दिन नीकौ
मंगल रूप उदय भयो मान॥
मंगल नंद, जसोदा रानी
मंगल धरत देव मुनिध्यान।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन लाल कौ
मंगल करत वेद सुति गान॥
उठो हो गोपाल लाल दुहो धौरी गैया चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
उठो हो गोपाल लाल दुहो धौरी गैया।
सद्य दूध मथि पीवहु घैया॥
भोर भयो वन तमचुर बोले।
धर धर घोष द्वार सब खोले॥
तुम्हारे सखा बुलावन आए।
कृष्ण-कृष्ण कहि मंगल गाए॥
गोपी रई मथनियां धोवै।
अपनो-अपनो दह्यौ बिलोवै॥
भूषन बसन पलटि पहिराऊं।
चंदन तिलक ललाट बनाऊ॥
‘चतुर्भुज’ प्रभुलाल गिरिवरधारी।
मुख-छवि पर बलि’ जाइ महतारी॥
फूली द्रुम-बेली भांति भांति चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
फूली द्रुम-बेली भांति भांति। नव वसंत सोभा कहि न जाति॥
देखें रंग रंग हरखें नैन। स्रवननि पोषत पिक मधुप बैन॥
सुख दाइक नासा नव आमोद। रसना मधु स्वादनि बहुविनोद॥
कुसुमनि कुसुमाकर सहाइ। विविध समीर हिरदौ सिराइ॥
‘दासचतुर्भुज’ प्रभु गोपाल। वन विलसत गिरिधरनलाल॥
पिय-सन मुख गवनति गज गामिनि चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
पिय-सन मुख गवनति गज गामिनि।
साजि सिंगार पहिरि पटभूषन नख-सिख अंग-अंग अभिरामिनि॥
यमुना-पुलिन सुखद वृंदावन तैसिये सुभग सरद की जामिनि।
कुंज-कुंज प्रफुलित द्रुम बेली देखत प्रेम मगन भई भामिनि॥
अति उदार रस-रसि रसिक पिय भुज भरि-भरि भेटति वर कामिनि।
‘चतुर्भुजदास' प्रभु गिरिधर ऐसे सोभित मानों नवघन में सौदामिनि॥
मटुकी मेरी मोहनु दीजै चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
मटुकी मेरी मोहनु दीजै।
जो कछु दधि चाखन चाहत हो तौ रंच पात करि लीजै॥
ऊने आइ घन अटके भोर ही तें वन तन नौतन सारी भीजै।
रंगु वहै संग जै है, निपट अबार व्है है,
कहा कहिए घर कौ कोऊ खीजै॥
‘चतुर्भुज’ प्रभु काल्हि आइहों सवारी बार,
कहौं निरधार सांची पतीजै।
गिरिधर लाल भयो प्रगट दान तुम्हारी नाहीं कोऊ ब्रज,
आन आजु अति हठ न कीजे॥
तुम सों क्यों कहौं ब्रजनाथ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
तुम सों क्यों कहौं ब्रजनाथ।
मोहू को अति गिरा गद्गद देखि विरह अनाथ॥
बांधि साहस लिखी पाती धरी मेरे हाथ।
सिथिल भई फिरि फुरी नांही और मुख ते गाथ॥
सुभट वर तुम बिना पिया! तनु दहत मैन अकाथ।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन रति-पति जीति करहु सनाथ॥
गोवर्द्धन पूज्यो गोकुलराइ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
गोवर्द्धन पूज्यो गोकुलराइ।
बल समेत सब सखा चले मिलि खरिक खिलावन गाइ॥
लै-लै नाउं टेरि सब सुरभी नियरी लई बुलाइ।
देत कीक बछरा गहि मोहन पीतांबरहि फिराइ॥
मेलि डाढ बुलाई धूमरि सन्मुख आई धाइ।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन निवारत हंसि करतार बजाइ॥
मान मनावत मानत नांई चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
मान मनावत मानत नांई।
श्याम सुंदर तेरे हित कारन पाती विरह पठाई॥
आवत जात रैनि सब बीती दूख न लागे पांई।
‘चतुर्भुजदास' प्रभु गिरिधरन लाल अब टेरत हैं चलि तहांई॥
सोभित सुभग लपटी पाग चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
सोभित सुभग लपटी पाग।
भीने रसिक प्रिया-अनुराग॥
कुमकुम अलक तिलक सेंदुर छवि, अरुन नयन घूमत निसिजाग।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर नीके लागत आलस-वस सब अंग-विभाग॥
सिखवत-सिखवत बीती अब रतिया चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
सिखवत-सिखवत बीती अब रतिया।
कोटि कही एको न कानकरी हुदै गांठि तेरे, भेदति बतियां॥
बांह छिड़ाई रहति ब्रजसुंदरि! देति ओट अंचर की गतियां।
तजि इह ज्ञानु सयानि आपुनो समुझि सखी! मेरी बहुमतियां॥
‘चतुर्भुजदास' प्रभु के बोलत बिलंबुकरे ऐसी कौन जुवतियां।
रसिक-राइ गिरिधरन छबीले भरिआं कौ सीतल करि द्वतियां॥
आजु छठी छबीले लाल की चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
आजु छठी छबीले लाल की।
उबटि न्हवाइ भूषन बसन दिए सुंदर स्याम तमाल की॥
केसर चंदन आरति वारति मोहन मदन गोपाल की।
‘चतुर्भुज’ प्रभु सुख सिंधु बढावत गिरिगोवर्धन लाल की॥
ब्रज पर नीकी आजुघटा चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
ब्रज पर नीकी आजुघटा।
नान्ही-नान्ही बूंदें सुहावन लागीं चमकत बीजु छूटा॥
गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा।
गावत स्रवन देत चातक पिक प्रकट्यो है मदन भटा॥
सब गुन भेट धरत नंदलालै बैठे ऊंच अटा।
‘चतुर्भुज’ प्रभुगिरिधरनलाल सिर कसुंभी पीत पटा॥
जयति जयति श्रीगोवर्धन-उद्धरन-धीरे चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
जयति जयति श्रीगोवर्धन-उद्धरन-धीरे।
वृष्टि-टूटन करन ब्रज-कुल भै हरन-
देवपति-गर्व, सांवल सरीरे॥
जयति वारिज वदन, रूप-लावनि-सदन
सिर सिखंड, कटि पट जु पीरे।
मुरली कलगान, ब्रज जुबति मन आकरन
संग बहत सुभग जमुना-तीरे॥
जयति रस रास सोविलास वृंदा विपिन
कलिय सुख-पुंज मन मलय समीरे॥
‘चतुर्भुजदास’ गोपाल नट-भेष सोई।
राधिका कंठ सब गुन गंभीरे॥
मेरी आली बंसी बस हौं भई चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
मेरी आली बंसी बस हौं भई।
मधुर चारु धुनि श्रवन प्रवेसित कठिन ठगौरी परी गई॥
तरनि-तनूजा तीर वन-वन रास रसाल-रसाल जुगति ठई।
वैभव निरखि स्याम सुंदर विधि नैनलगी इकटक ढई॥
इह अकाज देह निरधन व्रत ‘चतुर्भुज' प्रभु मोकों दई।
तनमन प्रान ध्यान सब संपति मोहन गिरिधरधर लई॥
झूलौ पालने गोविंद चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
झूलौ पालने गोविंद।
दधि मथों नवनीत काढों तुमकों आनंदकंद॥
कंठ कठुला ललित लटकन भ्रकुटि मन कौ फंद।
निरखि छवि छिनु झुलाऊ गाऊ लीला छंद॥
द्वै दूध की दंतियां सुख की निधि हंसत जवै कंछु मंद।
‘चतुर्भुज’ प्रभु जननी बलि गिरिधरन गोकुलचंद॥
साजें नटवर-भेख गोपाल चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
साजें नटवर-भेख गोपाल।
मधुर बेनु सुसद्ध उघटत तत्तथेई थेईताल॥
तरनि-तनया-तीर मरकत मनि जु स्याम तमाल।
ब्रज की नारि-समूह मंडल बनी कंचन-माल॥
रास रस-गति निरखि उडपति तजी पच्छिम चाल।
‘चतुर्भुज’ प्रभुदेव-गन-मन हय गिरिधरलाल॥
विठ्ठलनाथ अनाथ के तारन चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
विठ्ठलनाथ अनाथ के तारन।
श्रीवल्लभ-गृह प्रगट रूप यह धरयो भक्त हितकारन॥
दीनबंधु कृपासिंधु सहज ही भक्त-भक्ति विस्तारन॥
‘दास चतुर्भुज’ प्रभु के नित मत चलत लाल गिरिधारन॥
श्री विट्ठलनाथ गोकुल-भूप चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
श्री विट्ठलनाथ गोकुल-भूप।
भक्त-हित कलिजुग कृपा करि धरे प्रगट स्वरूप॥
सकल धर्म-धुरंधरन हरि-भक्ति निजु दृढ जूप।
चरन अंबुज सिरसि परसत सोषकर अंधकूप॥
आपु ही सेवा सिखावत, सकल रीति अनूप।
भोग, राग, सिंगार नाना चरचि दीप अरु धूप॥
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन जुग बपु लीला सदा अछूप।
नंद-नंदन बल्लभ-नंदन एकमन द्वै रूप॥
बैठे हरि नवनि कुंज में जाइ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
बैठे हरि नवनि कुंज में जाइ।
चंपौ फूल्यौ, फूल्यौ निवारो, नवगुलाब अरुजाइ॥
फूल्यौ नव रस, फूल्यौ कुंज सब फूले राधा-राइ।
‘चतुर्भुज’ प्रभु कहें सुख नाहीं तीनी भवन ही मांह॥
दीप-दान दै स्याम मनोहर चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
दीप-दान दै स्याम मनोहर सब गाइनि के कान जगावत।
गांग बुलाई धूमरि धौरी ऊंचे लै-लै नाउँ बुलावत॥
होइ सचेत भोर खेलन कों दौरी आवै नेकुं सुनावत।
सनमुख जाइ कूक मारत हैं मुख पट फेरि पछोंडे धावत॥
मुदित गोपाल ग्वाल सुबल लै ताकौ बछरा ताहि मिलावत।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन डाढ सुनि सँस गावत कर ताल बजावत॥
तबतें और न कछु सुहाई चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
तबतें और न कछु सुहाई।
सुंदर स्याम जबहि तैं देखे खरिक दुहावत गांइ॥
आवति हुती चली मारग सखि! हौं अपने सतभाई।
मदन गोपाल देखिके इकटक रही ठगी मुरझाइ॥
बिसरी लोक-लाज गृह-कारज बंधु पिता अरु माइ।
दास चतुर्भुज प्रभु गिरिधर तनु-मनु लियौ चुराइ॥
गोरस बेचत आपु बिकानी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
गोरस बेचत आपु बिकानी।
भवन गोपाल मनोहर मूरति मोही तुम्हारी जानी॥
अंग-अंग प्रति भूलि सहेली! मैं चातुरि कछुवे नहिं जानी।
‘चतुर्भुजदास’ प्रभु गिरिधर मन अटक्यौ तम मत हेत हिरानी॥
बार बार जमुने! गुन-गान कीजै चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
बार बार जमुने! गुन-गान कीजै।
यही रसना भजौ नाम रस अमृत
भागि जाकौ जोई सोइ लीजै॥
भानुतनया-दया अति ही करुनामई
इनकी करि आस अब सदा जीजै।
‘चतुर्भुजदास' कहै सोई पिय-पास रहै।
जोई जमुनाजी के (सु) रस-भीजे॥
भोर तमचुर बोले दीनों जु दरसना चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
भोर तमचुर बोले दीनों जु दरसना॥
आतुर व्है उठि धाए डगत चरन आए।
आलस में नैन वैन अटपटी रसना॥
संध्या जु कहि सिधारे बचन जिय में संभारे।
सकुचि के मंद-मंद प्रगटित दसना॥
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन! सिधारो तहां।
जहां रति-रंग-रस पलटाए वसना॥
हरि चरननि भजि और न ध्यावै चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
हरि चरननि भजि और न ध्यावै।
ताको जस हरि आपुन गावै॥
जौ लगि कनक कामिनी भावै।
तौ लगि कृष्ण उर माहिं न आवै॥
धरम सोई जो भरम गमावै।
साधन सो, हरि सों रति लावै॥
जो हरि भजहि तो होइ महासुख।
नातरु जम-बस ह्वै सत-गुन दुख॥
ठाडी एक बात सुनि धीरी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
ठाडी एक बात सुनि धीरी।
भोर हितें कहा मटुकी लियें डोलति ब्रज-वासिनी अहीरी॥
‘माधो-माधो’ कहि-कहि टेरति बिसरि गयो तोहि नांउ दही री।
ना जानौं कहुं मिले स्यामधन, इह रट लागि रही री॥
मोहन-मूरति मनुहरि लीनों नहिं समुझ कछु काहूकी कही री।
चतुर्भुजदास विरह गिरिधर के सब बन फिरत वही री॥
कर्कश बचन हृदौ छ्वै न कहिजै चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
कर्कश बचन हृदौ छ्वै न कहिजै।
बंध समान सो पातक लहिजै॥
त्रिनु ते तन नीचौ अति कीजै।
होइ अमान मान तिहि दीजै॥
सहन सुभाव बृच्छ कौ-सौ करि।
रसना सदाँ कहत रहियै हरि॥
परत्रिय तौ माता करि जानै।
लोह समान कनक उनमानै॥
तृनहि आदि चोरी नहिं करिये।
आपु समान जीव सब धरिये॥
खेलन कौं धौरी अकुलानी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
खेलन कौं धौरी अकुलानी।
डाढ मेलि आतुर सरसुख व्है स्याम सुंदर की सुनि मृदुबानी॥
बड़रे गोप थकित भए ठाढे यह अबलों देखी न कहानी।
नाचत गांइ भई ब्रज नौतन बरसों-बरस कुसल यह जानी॥
नंद-कुमार निवारि झारि मुख जै जै सब्द कहत कलबानी।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरलाल की सदा रहो ऐसी रजधानी॥
भलें आए भोर गिरिवरधरन चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj as ke Pad
भलें आए भोर गिरिवरधरन।
अरुन नैन जंभात आलस धरत डगमग चरन॥
पाग लटपटी पलटि परे पट अटपटे आमरन।
सिथिल-अंग-अंग देखियतु हे निसा के जागरन॥
नवत्रिया-संग पहर चार्यौं पल न पाए परन।
‘चतुर्भुज’ प्रभु जीति रति-रन कियौ रतिपति सरन॥
चुटिया तेरी बड़ी किधौं मेरी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
चुटिया तेरी बड़ी किधौं मेरी।
अहो सुबल तुम बैठि भैया हो हम दोउ मापें एक बेरी॥
लै तिनका मापत उनकी कछु अपनी करत बडेरी।
लै करकमल दिखावत ग्वालनि ऐसी न काहू केरी॥
मोकों मैया दूध पिवावति तातें होत घनेरी।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर इहि आनंद नाचत दै दै फेरी॥
ब्रज जन अति आधीन दुखारे चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
ब्रज जन अति आधीन दुखारे।
कहियो पथिक संदेस सुरति करि जहं हैं नंद-दुलारे॥
गोप गाइ गोसुत गुपाल सब मलिन देखियतु कारे।
निरभै जानि गोपाल तुमहिं बिनु विरह दवानल जारे॥
तब इह कृपानंद-नंदन की गिरि कर घरिजु उबारे।
ते आकुल व्याकुल जु रैनि दिन क्यों बूझिए तिहारे॥
जे गुन सैल-धरन प्यारे के कहां लगि परत संभारे।
‘चतुर्भुजदास’ प्रभुवे सुमिरत (हीं) नैननि बहत पनारे॥
इंडुरिया तू डारि दै हौ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
इंडुरिया तू डारि दै हौ लंगर ढीठ कन्हाई।
तेरौ कोऊ कहौ करेगौ! हमें घर खीजेगी माई॥
कौन हवाल किये हरि? मेरे भली भांति मेरी दधि खाई।
‘चतुर्भुजदास’ प्रभु गिरिधरन चाहि चित मेरो मन लियो चुराई॥
पौढिये परे गिरिधरन राइ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
पौढिये परे गिरिधरन राइ।
नवलनागारि कुंवरि राधिका सुहथ सेज राखी बनाइ॥
नाना विधि के कुसुम मनोहर सोंधे वर वीरी बनाई।
साजि सिंगार सबै ब्रज-सुंदरि अंग-अंग लावण्य बहुत भाइ॥
अद्भुत रीति देखि मनमोहन आतुर व्है पगु धर्यौ थाइ।
‘चतुर्भुजदास’ प्रभु गोवर्धनधर लै रसिकिनि भेंटी उर लाइ॥
सुंदर सिला खेल की ठौर
चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
सुंदर सिला खेल की ठौर।
मदन गोपाल जहां मध्य नाइक चहुं दिसि सखा मंडली और॥
बांटत छाक गोवर्धन ऊपर बैठत नाना बहु विधि चौर।
हंसि हंसि भोजन करत परस्पर चाखि लै मांग कौर॥
कबहूँ बोलत गांइ सिखर' चढ़ि लै-लै नाम घूमरी घौर।
‘चतुर्भुज’ प्रभुलीला रस रीझत गिरिधरलाल रसिक सिरमौर॥
ठगोरी मेलि गए सैन की चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
ठगोरी मेलि गए सैन की।
वन गवनत ब्रजनाथ जनाई चितवनि चपल नैन की॥
अगबक रहि कछु कहत न आयौ मो सुधि भूलि बैन की।
‘दास चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर मूरति कोटिक मैन की॥
लटकति फिरति दोहनी लैरी चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
लटकति फिरति दोहनी लैरी।
अनोखी गांइ दुहावनहारी, कान्हे पौरी पैठन दैरी॥
वनतें आवत भई न बिरियां बासर स्रमठन वेंकु चितैरी।
तोहिं न दोस नए हित की गति, कठिन हिलग को ऐसो हैरी॥
तुव दृग चंचल अंबुजवदनी! दरसन-हानि न नेंकु सहैरी।
‘चतुर्भुजदास’ लाल गिरिधर कौं ते चित चोर्यो मृदु मुसिकैरी॥
भूल्यो री दधि कौ मथन करिवौ चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
भूल्यो री दधि कौ मथन करिवौ।
देखत रसिक नंद-नंदन कौ डगमगे पगु धरिबौ॥
रहि गई चितै चित्र जैसें इकटक नैन निमेष न परिबौ॥
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन जनायो नाहीं, मो-मन मानिकु हरिबौ॥
सावधान हरि सदन सिधारै चतुर्भुजदास पद Chaturbhuj Das ke Pad
सावधान हरि सदन सिधारै।
करै नहीं अपराध विचारै॥
पनहीं पहिर न सन्मुख जाई।
जल फल आदि न सन्मुख खाई॥
असुचि उछिष्ट न मंदिर पैसे।
आसन बाँधि न सन्मुख वैसे॥
अरु सन्मुख नहि पाँव पसारै।
अनुग्रह करै न काहू मारै॥
होइ न आपु दान कौ मानी।
कहै न नृपति की असत कहानी॥
निंदा अरु अस्तुति तें रहिये।
आन देव की बात न कहिये॥
अग्र न पीठि बाम दिसि भाई।
करै दण्डवत हरि पहँ जाई॥
यथाशक्ति उपहार सु दीजै।
हरि दर्शन तन पीठ न दीजै॥
सकल पुण्य हरि कौ जस गावै।
पाप सबै हरि कों बिसरावै॥
Chaturbhuj parichay चतुर्भुजदास परिचय
जीवन परिचय
ये कुम्भनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। डा ० दीन दयाल गुप्त के अनुसार इनका जन्म वि ० सं ० 1520 और मृत्यु वि ० सं ० 1624 में हुई थी।[2] इनका जन्म जमुनावती गांव में गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था।[3] वार्ता के अनुसार ये स्वभाव से साधु और प्रकृति से सरल थे। इनकी रूचि भक्ति में आरम्भ से ही थी। अतः भक्ति भावना की इस तीव्रता के कारण श्रीनाथ जी के अन्तरंग सखा बनने का सम्मान प्राप्त कर सके।

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