अतिहि कठिन कुच ऊंचे छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
अतिहि कठिन कुच ऊंचे दोऊ नितंबनि से,
गाढ़े, उर लाइकै, सुमेटी काम हूक।
खेलत में लर टूटी, उर पर पीक परी,
उपमा कौ बरनत भई मति मूक॥
अधरामृत रस ऊपर तें अचबायौ,
अंग-अंग सुख पायौ गयौ दुख दूक।
छीतस्वामी गिरिधारी राज लूटयौ मन्मथ,
वृदांवन-कुजनि में, मैं हू सुनी कूक॥
पिय संग जागी वृषभानु दुलारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
पिय संग जागी वृषभानु दुलारी।
अंग-अंग आलस जंभात अति, कुंज सदन ते भवन सिधारी॥
मारग जात मिली सखी आरैं, तब ही सकुचि तन दसा बिसारी।
छीतस्वामी सौं कहति भामिनी,
तोहि मिले निसि गिरिवर धारी॥
धन्य श्री यमुने निधि दैनहारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
धन्य श्री यमुने निधि दैनहारी।
करत गुनगान, अज्ञात अघ दूरि करि,
जाय मिलवत प्रिय प्राणप्यारी॥
जनि कोउ संदेह करौ, बात चित में धरौ,
पुष्टिपथ अनुसरौ, सुख जु कारी॥
प्रेम के पुंज में, रास-रस कुंज में,
तहां राखत रस-रंग भारी॥
श्री जमुने और प्रानपति, प्रान अरु प्रानसुख
चहूं जीव-जीव पर दया बिचारी॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल,
प्रीति के लैं अब संगधारी॥
सकल भुवन की सुंदरता छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
सकल भुवन की सुंदरता,
वृषभानु गोप कैं आई री।
जाकौ जस गावत सुर मुनिजन,
निगम चतुर्मुख माई री॥
नवल किसोरी, रूप गुन स्यामा,
कमला-सी ललचाई री।
प्रगटे पुरुषोत्तम श्रीराधा,
द्वै विध रूप बनाई री॥
उमगे दान दैन विप्रन कौं,
जसु जो रह्यौ जग छाई री।
छीतस्वामी गिरिधर कौ चेरौ,
जुग-जुग यह रस गाई री॥
मेरी अंखियन के भूषन गिरिधारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मेरी अंखियन के भूषन गिरिधारी।
बलि-बलि जाऊं मुखारविंद की, सुहृद सुहित सुखकारी॥
सहज उदार प्रसन्न कृपानिधि, दरस परस दुखहारी।
अतुल प्रताप तनिक तुलसीदास, मानत सेवा भारी॥
छीतस्वामी नवरंग विसद जसु, गावति गोकुल नारी।
कहा बरनौ गुन-गाथ नाथ कौ, श्री विठ्ठल हृदै बिहारी॥
मात जसोदा राखी बांधति छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मात जसोदा राखी बांधति बल कें अरु श्रीगोपाल कें।
कंचन थार में कुंकुम अच्छित, तिलकु करति नंदलाल कें।
नारिकेल अंबर आभूषन वारति मुकता-माल कें।
‘छीत-स्वामी’ गिरिधर-मुख निरखति बलि-बलि नैन विसाल कें॥
कुंज बिहरत स्याम कुंवरि वृषभानुजा छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
कुंज बिहरत स्याम कुंवरि वृषभानुजा,
प्रेम पुलकित अंग राग-रागी।
तन पुलक, मन पुलक, जोरि उर सौं उरहिं,
रहत लपटाइ दोऊ भाग भागी॥
कुसुम-सैया रचित, विविध सुमननि खचित,
भये आरुढ़ अति प्रेम पागी।
छीतस्वामी चतुर, चतुरवर नागरी,
गिरिधरन चूमि वर कंठ लागी॥
जसोदा अति हरषित गुन गाबै छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
जसोदा अति हरषित गुन गाबै।
मदन गोपाल झूलत हैं पलना, आपुन बैठि झुलाबै॥
सिव बिरंचि जाकौं नहिं पाबत, ताकौ लाड़ लड़ाबै।
भांति-भांति के सुरंग खिलौना, स्याम सुंदर कौ खिलाबै॥
माखन मिश्री औरू मलाई अगुरिनि करिकैं चखाबै।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल रुचिकर, सो करि पाबै॥
लाल संग रास-रंग छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
लाल संग रास-रंग, लेत मान रसिक-रवंनि,
ग्रग्रता ग्रग्रता तत तत तत, थेई थेई गति लीने।
सारेगमपधनी गमपधनी धुनि सुनि ब्रजराज कुंवर गावत री,
अतिगति जति भेद सहित,
ताननि नननननननन आन-आन गति चीने।
उदित मुदित सरद चंद बंद टूटे कंचुकी के,
वैभव भुव निरखि-निरखि, कोटि मदन हीने॥
बिहरत वन रास-विलास, दंपति मन ईषद् हास,
छीतस्वामी गिरिधर रस-बस तब कीने॥
आगैं गांइ पांछे गांई छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
आगैं गांइ पांछे गांई, इत-गाईं उत-गांईं,
गोविंद कौं गांइनि में बसिबोई भावै।
गांइनि के संग धाबै, गांइनि में सचु पाबै,
गांइनि की खुर-रज अंगनि लपटाबै।
गांइनि सौं ब्रज छायौ, बैकुंठ हू बिसरायौ,
गांइनि के हित गिरि कर लै उठाबै।
छीतस्वामी गिरिधारी, विट्ठलेस बपुधारी,
गवारिया कौ भेषु धरै, गांइनि में आबै॥
आपुन पै आपुन ही सेवा करत छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
आपुन पै आपुन ही सेवा करत।
आपुन ही प्रभु, आपुन सेवक, आपुन रूप धरत॥
आपुने धरम करम सब आपुने, आपुनिय विधि अनुसरत
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, भक्तबछल भयहरन॥
मोहन प्रात ही खेलत होरी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मोहन प्रात ही खेलत होरी।
चोबा चंदन अगर कुंकुमा, केसरि अबीर लिये भरि झोरी॥
कंचन की पिचकारी भरि-भरि, छिरकीं सकल किसोरी।
मुख माँडति गारी दै भाँडति, गहि राखति बरजोरी॥
बाजत ताल मृदंग अघोटी, बिच मुरली धुन थोरी।
छीतस्वामी गिरिधर संग क्रीड़ति, इहिविधि मिलि सब गोरी॥
लाड़िले श्री वल्लभ राजकुमार छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
लाड़िले श्री वल्लभ राजकुमार।
बलि बलि जाऊं मुखारबिंद की, सुंदर अति सुकुमार॥
भगवत रस मधि लोचन छाके, करुनासिंधु अपार।
कहि सुबोधिनी निज जन पोषत, अमृत बचन उदगार॥
निज स्वामिनी भाव निधि झलकत, निसिदिन करत बिहार।
सदा करत हैं श्री गिरराज की, सेवा पुष्टि प्रकार॥
इनके चरन सरन जे आए, मिटे सकल झंजार।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, सकल वेद कौ सार॥
झूलत श्री बल्लभराजकुमार छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
झूलत श्री बल्लभराजकुमार।
सुर सबै मिलि देखन आए, आनंद बढयौ अपार॥
हेम हीरा के खंभ जड़ाए, लटकत मुक्ता हार।
आप झुलवत औरे झुलवत, दै दै दाउ उबार॥
गृह-गृह तें सब देखन आईं, गावत मंगलचार।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल, तन-मन करौं बलिहार॥
श्री विट्ठल प्रगटे ब्रजनाथ छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
श्री विट्ठल प्रगटे ब्रजनाथ।
नंद नंदन कलियुग में आए, निज जन किए सनाथ॥
तब असुरनि कौ नास कियौ हरि, अब माया-मत नासै।
तब गोपीजन कौं सुख दीनौ, अब निज भक्तनि पासै॥
तब कै वेद पथ छाड़ि रास मिस, नाना भांति बताये।
अब कै स्त्री सूद्रादिक कौं ब्रह्म-संबंध कराये॥
इहि विविध प्रगट करी ब्रज लीला, श्री वल्लभ राजदुलारे।
छीतस्वामी गिरिधन श्री विट्ठल, इन कौं वेद पुकारे॥
पुलिन पवित्र सुभग जमुना तट छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
पुलिन पवित्र सुभग जमुना तट,
स्यामा-स्याम बिराजत आज।
फूले फूल सेत पित राते,
मधुप जूथ आए मधु काज॥
तैसिय छिटकि रही उजियारी,
झलमलात झांई उडुराज।
छीतस्वामी गिरिधर कौ यह सुख,
निरखि हंसे विट्ठल महाराज॥
आये हो भोर उनींदे स्याम छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
आये हो भोर उनींदे स्याम।
सकल निसा जागे प्यारी संग, हारे हौ तुम रति-संग्राम॥
सिथिलित पाग, भाल पर जावक, हिए बिराजित बिनु गुन माल।
कुमकुम तिलक, अलक पर सेंदुर, सुभग पीक सोभित दोउ गाल।
कंकन पीठ गडयौ, उर नखछत, जानौ घन मांझ द्वैज कौ चंद॥
छीतस्वामी गिरिधरन भले तुम, मोहिं खिजावत हौ नंद नंद॥
पौढ़ी श्री वृषभान किसोरी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
पौढ़ी श्री वृषभान किसोरी नंद नंदन के संग।
कुसुम-सेज अति मृदुल ताही पर, जोरि रही अंग-अंग॥
अधर अमृत रस पीबति-प्याबति, छबि को उठति तरंग।
छीतस्वामी गिरिधरन रसिक वर, प्यारी लई उछंग॥
पिय-प्यारी आवत हैं प्रात छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
पिय-प्यारी आवत हैं प्रात।
अंग-अंग अलसात रगमगे, रति के चिह्न सोहत सब गात॥
मारग जात धरत पग डगमग, अरुन नैन जागे ते रात।
छीतस्वामी गिरिधरन छबीले, राधा उर लपटात॥
राधा स्याम के संग बनी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
राधा स्याम के संग बनी।
मृदुल सुखद पुंज के ऊपर एकत मन सजनी॥
अंग-अंग सौं मिलि कै गाढे, नील कंचन तनी।
छीतस्वामी गिरिधरन के संग सोहै और घनी॥
आगे कृष्ण, पाछें कृष्ण छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
आगे कृष्ण, पाछें कृष्ण, इत कृष्ण, उत कृष्ण,
जित देखौ तित कृष्णमयी री।
मोर-मुकुट धरैं, कुंडल करन भरैं,
मुरली मधुर धुनि, तान नयी री॥
काछिनी काछे लाल, उपरैना पीत पट,
तिहि काल सोभा देखि, थकित भयी री।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल,
निरखत छबि अंग-अंग छयी री॥
पौढ़ी पिय संग वृषभानु कुमारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
पौढ़ी पिय संग वृषभानु कुमारी।
निरखि वदन छवि नंद नंदन के, लागि कंठ सौ प्रान-पियारी॥
चरन-चरन धरि भुजनि जोटि कै, अधर पान मधुकरत सुधा री।
छीतस्वामी नवल लाल गिरिधर पिय, कुंजन-पुंज केलि हितकारी॥
भले तुम आये मेरै प्रात छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
भले तुम आये मेरै प्रात।
रजनी सुख कहुं अनत कियौ पिय, जागे सबरी रात॥
झपि झपि आवत नैन उनींदे, कहा कहौं यह बात।
ज्यौं जलरुह तकि किरन चंद की, अति सभित मुंदि जात॥
कहुं चंदन, कहुं बंदन लाग्यो, देखियतु सांवल गात।
गंगा सरसुति मानौ जमुना, अंगहि मांझ लखात॥
भली करी ब्रत बोल निबाहे, मेरे गृह परभात।
छीतस्वामी गिरिधरन सुनि बातें, वदन मोरि सकुचात॥
गांइनि सौ रति गोकुल सौं रति छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
गांइनि सौ रति गोकुल सौं रति, गोवर्धन सौं प्रीति निवाई।
श्री गोपाल चरन सेवारत, गोप सखा सब अमित अथाई॥
गो-बानी जु वेद की कहियतु, श्री भागवत भलै अवगाही।
छीतस्वामी गिरिधन श्री विट्ठल, गांइनि की खुर-रेनु सराही॥
राधिका स्याम सुंदर कौं प्यारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
राधिका स्याम सुंदर कौं प्यारी।
नख-सिख अंग अनूप बिराजित, कोटि चंद दुति नारी॥
इक छिनु संग न छाड़त मोहन, निरखि-निरखि बलिहारी।
छीतस्वामी गिरिधर बस जाके, सो वृषभानु-दुलारी॥
राधे रूप निधान गुन आगरी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
राधे रूप निधान गुन आगरी, नंद नंदन रसिक संग खेली,
कुंज के सदन अति चतुर वर नागरी,
चतुर नागर सौं करति केली।
नील पट तन लसै, पीत कंचुकी कसै,
सकल अंग भुवन में निरूप रेली॥
परम आनंद सौं लाल गिरिधारी,
हृदै सौ लागि-लागि भुजहि करिमेली।
सहचरी मुदित सब जाय रंध्रनि निरखि,
मानौ अपनौ भाग करत केलि॥
राधा निसि हरि के संग जागी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
राधा निसि हरि के संग जागी।
जमुना पुलिन सघन कुंजनि में, पिय अंग-अंग मिलि कै अनुरागी॥
कुटिल अलक बगरीं जु बदन पर, दोउ कपोल पीकनि सौं पागी।
छीतस्वामी उमगि-उमगि कै, गिरिधर लाल उरनि सौं लागी॥
मेरैं आए भोर प्यारे रैनि कहां गंवाई छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मेरैं आए भोर प्यारे रैनि कहां गंवाई।
कौन तिया संग बस परे मोहन, जानि परी चतुराई॥
गरैं हार बिनु डोर बिराजित, नखछत देत दिखाई।
छीतस्वामी गरिधर बाही पै, जावक पाग रंगाई॥
जब तें भूतल प्रगट भये छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
जब तें भूतल प्रगट भये।
तब तें सुख बरसत सबहिनि पर, अनंद अमित दये॥
श्री वल्लभ-कुल कमल अमित रवि, अनुदिन उदित भये।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल जुग-जुग राज जये॥
मेरी अंखियन देख्यौ गिरिधर भाबै छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मेरी अंखियन देख्यौ गिरिधर भाबै।
कहा कहाँ तोसौं सुनि सजनी, उत ही कौं उठि धाबै॥
मोर मुकुट कानन कुंडल लखि, तन गति सब बिसराबै।
बाजूबंद कंठमनि भूषन, निरखि-निरखि सचु पाबै॥
छीतस्वामी कटि छुद्र घंटिका, नूपुर पदहिं सुहाबै।
इह छबि बसत सदा विट्ठल उर, मो-मन मोद बढ़ाबै॥
बादर झूम-झूमि बरसन लागे छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
बादर झूम-झूमि बरसन लागे।
दामिनी चमकत चौंकि, स्याम घन गरजत सुनि-सुनि जागे॥
गोपी द्वारै ठाढ़ी भींजति, सुख देखन कारन अनुरागे।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल, ओत-प्रोत रस पागे॥
विविध कुसुम भार नमित छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
विविध कुसुम भार नमित अमित द्रुम,
कनक बरन फल फलित
ललित सौरभ वृंदावन माहिं।
मधुप टोल झंकार करत अरू,
स्थल-जल सारस हंस
विविध कुलाहल ताहिं॥
जमुना तीर भीत सुरभीनि की,
आज पासु ब्रज-युवति मंडली
मदन मोहन ठाढ़े कल्पद्रुम की छाहीं।
छीतस्वामी गिरिधरन तिनके मधि,
श्री राधिका के कंठ दियैं बाहीं॥
नंद नंदन संग राधिका नागरी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
नंद नंदन संग राधिका नागरी।
करति रति-केलि अति, कुंज के सदन में,
लाइ हिय सौं हिय रूप की आगरी॥
मिटी मन्मथ पीर, रचित भूषन चीर,
मुदित मन में भई, मानि बड़भाग री।
छीतस्वामी नवल लाल गिरिधरन पिय,
जानि कैं अमित उठी उर सौं लाग री॥
प्रिय नवरंग गोवर्धनधारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
प्रिय नवरंग गोवर्धनधारी।
अभिनव रस सिंगार सरस श्री विठ्ठल प्रभु चितचारी॥
सुखद सरूप, सुखद हित चितवनि वृंदा विपिन बिहारी।
छीतस्वामी सुख सुलभ सुपथ, श्री वल्लभ मत अनुसारी॥
प्रीतम! कहौं जु चले जादू करिकैं छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
प्रीतम! कहौं जु चले जादू करिकैं।
रूप दिखाइ ठगौरी कीन्ही, छांड़ि गए मोहिं छलबलि कैं॥
वृंदावन की कुंज-गलिनि, हौं, देखति फिरी, भजे हंसि-हंसि कैं।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल बस जु परयौ गिरिधर कैं॥
प्रान प्यारे! कुंवर नैकु गाइयै छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
प्रान प्यारे! कुंवर नैकु गाइयै।
आनन कमल अधर सुंदर धरि, मोहन बेनु बजाइयै॥
अमृत हास मुसकनि बलैयां लेउं, नैननि की तपन बुझाइयै।
परम दुसह बिरहानल व्यापत, तन सब जरत जुड़ाइयै॥
उभय कर-कमल हृदै सौ परसिकै, बिरहिनि मरत जिबाइयै।
छीतस्वामी गिरिधर तुमसे पति, पूरन भाग जु पाइयै॥
जय श्री वल्लभ राजकुमार छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
जय श्री वल्लभ राजकुमार।
पर पाखंड कपट खंडनकर, सकल वेद धुरधार॥
परम पुनीत तपोनिधि, पावन तन से भा जितमार।
दुरित दुरेत अचेत प्रेत मति, हरित पतित उद्धार॥
निज मति सुदृढ़ कृत हरिपद, नव विधि भजन प्रकार।
निज मुख कथित कृष्णलीलामृत, सकल जीव निस्तार॥
नही मति नाथ, कहां लौ बरनौ, अगनित गुनगनसार।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, प्रगट कृष्ण अवतार॥
हौं श्री वल्लभ की बलिहारी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
हौं श्री वल्लभ की बलिहारी।
अवननि कौं वचनामृत सीतल, है अंतर दुखहारी॥
नव-निकुंज मंदिर की सोभा नित्य विहार-बिहारी॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल, भवभंजन, भय हारी॥
मोहि भरोसौ श्री गिरिराज कौ छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मोहि भरोसौ श्री गिरिराज कौ।
कहा जु भयौ तन मन धन जोरैं, भक्ति बिना कहा करत कौ॥
ऊंची मेंड़ी कौन काज की, ब्रज बसिवौ भलौ छाज कौ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, वल्लभ कुल सिरताज कौ॥
ब्रज में श्री विट्ठलनाथ बिराजैं छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
ब्रज में श्री विट्ठलनाथ बिराजैं।
जाकौ परम मनोहर श्री मुख, देखत ही अघ भाजैं॥
जाके पद प्रताप ते निरभै, सेवक जन सब गाजैं।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, भक्तनि के हित राजैं॥
गिरिधर लाल के रंग रांची छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
गिरिधर लाल के रंग रांची।
तन सुधि भूलि गई मोकौं अब कहति हो तोसौ सांची॥
मारग जात मिले मोहिं सजनी, मो तन मुरि मुसकाने।
मन हरि लियौ नंद के नंदन, चितवनि मांझ बिकाने॥
जा दिन ते मेरी दृष्टि परे सखि, तब तें रहयौ न जाबै।
ऐसौ है कोऊ हितू हमारौ, छीतस्वामी सौं मिलाबै॥
करत कलेऊ मोहनलाल छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
करत कलेऊ मोहनलाल।
माखन मिसरी दूध मलाई, मेवा परम रसाल॥
दधि-ओदन पकवान मिठाई, खात खवावत ग्वाल।
छीतस्वामी वन गांइ चरावन, चले लटकि पसुपाल॥
आजु मैं देखे नंद नंदन पिय छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
आजु मैं देखे नंद नंदन पिय।
मोर मुकुट मकराकृति कुंडल, निरखि-निरखि हुलस्यौ मेरौ हिय॥
नटवर भेष सुदेस स्याम कौ, देखि, न मोहै ऐसी कौन तिय।
छीतस्वामी गिरिधरन लाल छबि, चित ही विचारत मुदित होत जिय॥
अरी, हौं स्याम रूप लुभानी छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
अरी, हौं स्याम रूप लुभानी।
मारग जात मिले नंद नंदन, तन की दसा भुलानी॥
मोर-मुकुट सीस पर बांकौ, बांकी चितवनि सोहै।
अंग-अंग भूषन बने री सजनी, जो देखै सो मोहै॥
जब मोतन मुरिकैं मुसिकाने, तब हौं छाकि रही॥
छीतस्वामी गिरिधर की चितवनि, जात न कछू कही॥
श्री गोकुल में प्रगट बिराजै
छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
श्री गोकुल में प्रगट बिराजै, श्री विट्ठल पुरुषोत्तम रूप।
दरसत ही गए पाप सबनि के, है ए अखिल लोक के भूप॥
सेवा-रीति बताई विधि सौं, अपने मन की परम अनूप।
छीतस्वामी श्री विट्ठल आगैं, और पथ जैसैं जल कूप॥
श्री वल्लभनंदन की बलि जाऊं
छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
श्री वल्लभनंदन की बलि जाऊं।
जो गोवर्धन बसत निरंतर, गोकुल जिनकौ गाऊं॥
जे द्वारावती जुदुकल नाइक, मथुरा जिनकी ठाऊं।
जे वृंदावन केलि करत हैं, निरखत छवि न अघाऊं॥
बामन रूप छल्यौ बलि राजा, तिनहि चरन चित लाऊं।
छीतस्वामी गिरिधर श्री विट्ठल, कहियत जिन कौ नाऊं॥
जे जे जन बिछुरे प्रभु तें
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जे जे जन बिछुरे प्रभु तें, ते अभयदान करन।
कासी में प्रभु पत्राबलंवन, कीनौ माया मत हरन॥
श्री भागौत पुराण वेद माणि श्री गोवर्धन धरन।
को करि सकै गान गुण इनके, आगम निगम बरनन॥
छीतस्वामी प्रभु पुरुषोत्तम निधि, श्री विट्ठलेस सदन।
धनि धनि श्री वल्लभ जू के नंदन
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धनि धनि श्री वल्लभ जू के नंदन श्री विट्ठल, चरन सदा निज पावन॥
जुग-पद कमल विराजमान अति, महिमा बहुत सदा मुनि गावन॥
सेवा करौं, भजौ मन दृढ़ सोइ, त्रिविध भांति के ताप नसावन।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, बरसत कृपा सबै जिय भावन॥
भई भेंट अचानक आय
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भई भेंट अचानक आय।
हौं अपने गृह तें चली जमुना, बे उततें चले चरावन गाय॥
निरखत रूप ठगौरी लागी, उतकौं डग भरि चल्यौ न जाय।
छीतस्वामी गिरिधरन कृपा करि, मो तन चितये मुरि मुसिकाय॥
हरि मुख अनल
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हरि मुख अनल, सकल सुर मुनि मुख,
तिन तन धरम धारि धुर लीनी।
थिर राख्यौ मख भाग लोक सुर,
निज मरजाद भक्ति भली कीनी॥
तबहीं तैं सगुन उपासन सेवा,
भई पत विमल लोक सुर हीनी॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल,
सब सुखनिधि अपने कौ दीनी॥
आयौ रितुराज साज पंचमी
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आयौ रितुराज साज पंचमी वसंत आज,
बौरे द्रुम अति अनूप, अब रहे फूली।
बेली लिपटी तमाल, सेत पीत कुसुम लाल
उड़वत रंग स्याम भाम, भौंर रहै झूली॥
रजनी सब भईं स्वच्छ, सरिता सब विमल पच्छ,
उडुगन-पति अति अकास, बरसत रस मूली।
जती सती सिद्ध साधु, जित तित तजि भाजे समाज,
विमन जटी तपसी भए, मुनि मन गति भूली॥
जुवति जूथ करत केलि, स्यामा सुख-सिंधु झेलि,
लाज लीक दयी पेलि, परसि पगनि कूली।
बाजत आवज उपंग, बांसुरी मृदंग चंग,
इह सुख छीतस्वामी निरखि इच्छा भयी लूली॥
प्रीतम प्रीति तैं बस कीनौं
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प्रीतम प्रीति तैं बस कीनौं।
उर अंतर ते श्याम मनोहर, नैंकहु जान न दीनौं॥
सहि नहिं सकति बिछुरनौ पल भरि, भलौ नेमु यह लीनौं।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल, भक्ति कृपा रस भीनौं॥
सुंदर घनस्याम लाल
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सुंदर घनस्याम लाल, पंकज लोचन बिसाल,
आंगन ब्रजरानी जू के ठुमुकि-ठुमुकि धावै।
पहुंची कर बनी चारू, कंठ में विचित्र हारू,
लटकन लटकै लिलारू, कहत न बनि आबै।
रूनन झुनन धरत पांव, किंकिनी विचित्र राव,
नुपुर धुनि सुनत स्रवन, आनंद बढ़ाबै॥
छीतस्वामी गिरिवर धर, अंग-अंग मदन मूरति,
ठाढ़ी ब्रज-जुवति जन, मन में सचु पावै॥
मेरौ मनु हरयौं गिरिधर लाल
छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मेरौ मनु हरयौं गिरिधर लाल।
सुनु री सखी कहा कहौं तोसौं, जे कीन्हे हरि हाल॥
हौं अपने गृह मांग संवारति, आइ गए तिहि काल।
पाछैं ते मोहिं गही अचानक, दृढ करिकैं गोपाल॥
हौं संकुची मन ही मन अपुने, कौन परी यह चाल।
जियें हरष मुख कहति री सजनी! छाडौ ने, जसोमति बाल॥
इतनी कहत छांड़ि गए मोहन, छुइनँ मेरे गाल।
छीतस्वामी बिनु भई बाबरी, सुधि नहीं, तन बेहाल॥
आधी आधी अंखियनि चितवति प्यारी जू
छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
आधी आधी अंखियनि चितवति प्यारी जू,
आधौ-आधौ मन भयों जात गिरिधर कौं।
आधे मुख घूंघट अर्ध चंद्रमा
आधे-आधे बचन कहति रंग रस भीने,
आधी घरी हू न छिनु रहत निदर कौं॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल,
याही तैं रतिपति लाग्यौ है झरन कौं॥
मज्जन करत गोपाल चौकी पर
छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
मज्जन करत गोपाल चौकी पर।
अति ही सुगंध फुलेल उबटनौ, विविध भांति सब सौंज, निकट धर॥
केसर चरचि न्हाबइ प्रथम, पुनि अंग उबटनौ, करत सुंदर वर।
ब्रजगोपी सब मंगल गावति, अति प्रमुदित, मन अंग परस कर॥
एकु जु अंगवस्त्र ले आई, पौंछति हैं अंग, अति अनंद भर।
पुनि सिंगार करन कौं बैठे, रतनजटित चौकी आनी धर॥
विविध भांति बसन-भूषन लै, करति सिंगार, रुचि अपनी सुघर।
लै दरपन श्रीमुख दिखरावति, निरखि निरखि, हंसि लेत है मनहर॥
भांति-भांति सामग्री करि-करि, लै आईं, अरपत सब घर-घर।
छीतस्वामी गिरिधरन अरोगैं, अति आनंद, प्रमुदित ता औसर॥
मुकलित बकुल मधुप-कुल कूंजे
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मुकलित बकुल मधुप-कुल कूंजे,
प्रफुलित कमल, गुलाब फूले।
मंगलगान करत कोकिल-कुल,
नव मालती लता लगि झूले॥
आईं जुवति-जूथ रास-मंडल खेलत,
स्याम तरनिजा कू ले।
छीतस्वामी बिहरत वृंदावन,
गिरिधर लाल कल्पतरू मूले॥
गोवर्धन की सिखर चारू पै
छीतस्वामी पद Chhitswami ke Pad
गोवर्धन की सिखर चारू पै,
फूली नवमाधुरी जाई।
मुकुलित फल दल सघन मंजरी,
सुमनस सोभा बहुतै भाई॥
कुसुमित कुंज पुंद द्रोणी द्रुम,
निर्झर झरत अनेकन ठांई।
छीतस्वामी ब्रज जुवति जूथ में,
बिहरत तहां गोकुल के राई॥
छीतस्वामी परिचय
छीतस्वामी वल्लभ संप्रदाय (पुष्टिमार्ग) के आठ कवियों (अष्टछाप कवि) में एक। जिन्होने भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का अपने पदों में वर्णन किया। इनका जन्म १५१५ ई० में हुआ था। मथुरा के चतुर्वेदी ब्राह्मण थे। घर में जजमानी और पंडागिरी होती थी। प्रसिद्ध है कि ये बीरबल के पुरोहित थे। पंडा होने के कारण पहले ये बड़े अक्खड़ और उद्दण्ड थे।
छीतस्वामी श्री गोकुलनाथ जी (प्रसिद्ध पुष्टिमार्ग के आचार्य ज. सं. 1608 वि.) कथित दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता के अनुसार अष्टछाप के भक्त कवियों में सुगायक एवं गुरु गोविंद में तनिक भी अंतर न माननेवाले "श्रीमद्वल्लभाचार्य" (सं. 1535 वि.) के द्वितीय पुत्र गो. श्री विट्ठलनाथ जी (ज.सं.- 1535 वि.) के शिष्य थे। जन्म अनुमानत: सं.- 1572 वि. के आसपास "मथुरा" यत्र सन्निहिओ हरि: (श्रीमद्भागवत : 10.1.28) में माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके माता पिता का नाम बहुत खेज करने के बाद आज तक नहीं जाना जा सका है। "स्वामी" पदवी उनको गो. विट्ठलनाथ जी ने दी, जो आज तक आपके वंशजों के साथ जुड़ती हुई चली आ रही है।
छीतस्वामी का इतवृत्त भक्तमाल जैसे भक्त-गुण-गायक ग्रंथों में नहीं मिलता। श्री गोकुलनाथकृत वार्ता, उसकी "हरिराय जी (सं.- 1647 वि.) कृत टीका- "भावप्रकाश", प्राणनाथ कवि (समय-अज्ञात) कृत "संप्रदाय कल्पद्रुम", एवं श्रीनाथभट्ट (समय-अज्ञात) कृत संस्कृत वार्ता-मणि-माला, आदि ग्रंथों में ही मिलता है।

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