॥मंगल॥
ब्याह जे हमरो करि दिहो बाबा, तोरा से न होयत निर्वाह हो॥टेक॥
बूढ़ नहिं वयस तरुनि नहिं बालक, ऐसो वर योग हमार हो॥1॥
चंदन लकड़ी मँगाइह बाबा, अक्षय वट के मूल हे,
ऊँच के मड़वा बाँधिह हो बाबा, नेहुरि न कंत हमार हो॥2॥
सतपुर से वर मँगाइह बाबा, कोहवर दसमी दुआर हो,
पाँच सजन मिलि मड़वा बैठिह बाबा, करिह कन्यादान हो॥3॥
सुखसागर से सेन्दुर मँगाइह, पिया से दिएयह मोर माँग हो,
मोट के सेन्दुर दिएयह हो बाबा, झलकत जात ससुरार हो॥4॥
अबकि चूक बकसु मोर साहब, जनम-जनम होइब चेरि हो,
अकरम काटि सकल भरम मेटि गेल, चीन्ह पड़ल जमजाल हो॥5॥
नाम पान जीव के चाखन दिहलिन, शब्द सुरति सहिदान हो,
शब्द घोड़ा चढ़ी ब्याहन आयल, सब सखी मंगल गायल हो॥6॥
सुतली मैं रहली अपना धनी धरमदास भजन / Sutli Main Rahli Apna Dhani Dharamdas Bhajan
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