वर कें खयबा काल गीत
Maithili Lokgeet Lyrics Var Ke Khayaba Kaal
आजु हमर बड़ भाग रे / मैथिली लोकगीत
आजु हमर बड़ भाग रे पाहुन एला भगवान रे
पाहुन एला भगवान रे थार भरल पकवान रे
सागहि भोजन आधारे मधुमिसरिक संचार रे
मधुमिसरीक संचार रे धृतहि करू परचार रे
हम कते विचारब, गूने बूझल ऊँच-नीच रे
भनहि विद्यापति भान रे, सुपुरूष बसथि सुठाम रे
दुलहा ओते नहि लजाउ / मैथिली लोकगीत
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
हमर कका कुमार, अहाँ काकी दियौन यौ
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
हमर भइया कुमार, अपन बहीनि दियौन यौ
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
हमर मामा कुमार, अपन पीसी दियौन यौ
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
आजु हमर बड़ भाग रे, उत्तम पाहुन आजु आयल रे / मैथिली लोकगीत
आजु हमर बड़ भाग रे, उत्तम पाहुन आजु आयल रे
आसन देल झट झारि, निर्मल चरण पखारि रे
बिच समाद बाट रे, क्यो नहि सुनय पुकार रे
विद्यापति कवि मार रे, सुपुरुषक गुनक विधान रे
गारि गाबथि राजदुलारि / मैथिली लोकगीत
गारि गाबथि राजदुलारि, जेमथु रामजी लला
सोना के आसन रतन सिंहासन
बैसथु अवधकुमार, जेमथु रामजी लला
जेमय बैसला राम चारू भइया
होयत परस्पर गारि, जेमथ रामजी लला
खाजा हलुआ होयत जिलेबी
ताहि पर सऽ पूआ-पकमान, जेमथु रामजी लला
गारि गाबथि राज दुलारि, जेमथु रामजी लला
रूसथि रघुबर मानथि नाही
राखि लीअ नेह हमार, जेमथु रामजी लला
हीरा मोती लाल जवाहर
सम्पति सकल तोहार, जेमथु रामजी लला
गारि गाबथु राजदुलारि, जेमथु रामजी लला
शोर भयो चहुँओर जनकपुर
साजि चलल नर-नारि, जेमथु रामजी लला
गारि गाबथु राजदुलारि, जेमथु रामजी लला
एक बेर अपनहि सऽ मांगि / मैथिली लोकगीत
एक बेर अपनहि सऽ मांगि किछु लीअ हे ललन
मनसँ किए नहि जेमइ छी, से हमहूँ जनै छी
व्यंजन एको टा ने बनल बुझाइ हे ललन
एक बेर अपनहि सँ मांगि किछु खाउ हे ललन
अयोध्या थिक राजधानी से तऽ सभ जानी
मिथिला पटुआक झोर हम की दीअ हे ललन
बनल अनोन सनोन सभटा बुझब अपन
हिय किछु नहि राखब ह ललन
निरधन घर ससुरारि, किये लए करब पुछारि
सारि सरहोजिक स्नेह हियमे राखब हे ललन
एक बेर अपनहि सऽ मांगि किछु लीअ हे ललन
आसन पर बैसू गिरधारी / मैथिली लोकगीत
आसन पर बैसू गिरधारी सुनू विनती हमारी जी
थारी मे भात सांठल अछि बाटी मे दालि राखल
ताहि ऊपर धृत ढ़ारी, सुनू विनती हमारी जी
ओल - परोर बड़ी - बड़ भटबड़
तरह-तरह तरकारी, सुनू विनती हमारी जी
तरल रहू मांगुर झोराओल
छागर मारि कयलनि, ससुर तइयारी जी
कहथि विद्यापति विनती रुचिसँ जेम लालन
भेटली राधा सन प्यारी, विनती हमारी
जीमथु आजु जनक जी के आँगन / मैथिली लोकगीत
जीमथु आजु जनक जी के आँगन दशरथ अवधबिहारी जी
सगर जेमन सुर-नर किन्नर होय मधुर सुर गारी जी
छप्पन भोग छत्तीसो व्यंजन विविध भांति तरकारी जी
सुख सरसत सबरस जेमथु आनन्द चहुदिस भारी जी
कत गुण गाउ सखी समधिन केर अवधक नारि छिनारी जी
कनेक खीर पर राजी होइ छथि कामविवश महतारी जी
गृह सौं आनि पीढ़ी दिअ / मैथिली लोकगीत
गृह सौं आनि पीढ़ी दिअ बैसक यदुपति चरण पखारी जी
चरण पखारि चरनोदक लेलनि लय चलल भानसघर जी
सोनक थार संचार लगाओल बइसक कम्मल कारी जी
सुन्दर सार दहिन भए बैसल, रूचि रूचि भोजन करू जी
स्वर्ण बिअनि लए सरहोजि बैसल, छथि सरहोजि बेवहारी जी
पाकल पान रजतवर्क चढ़ाओल, घृतहि तरल सुपारी जी
पाहुन भोला भंगिया के / मैथिली लोकगीत
पाहुन भोला भंगिया के जुनि केओ पढ़ियनु गारी हे
शिव तन पर सँ सांप ससरि खसि खसत देत जीव मारी हे
ताकि केहन लएला मुनि नारद बूढ़ बरद असवारी हे
भूत पिशाच नगन-गण संगमे केहन बघम्बर धारी हे
कान कुण्डल गले रूद्रमाला भाल चन्द्र छवि न्यारी हे
डामरु धारी सभ भिखारी धथुर भांग अहारी हे
काशी ओ कैलाश बिहारी नाम हुनक त्रिपुरारी हे
पाहुन शिव त्रिभुवनपति जुनि गाउ अनट अचारी हे
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