साओन सखा कुंजवनमे / मैथिली लोकगीत
साओन सखा कुंजवनमे, ग्वालरि दधि बेचु री
करत बाद-विवाद हमसँ, देहु कंस दोहाय री
भादव भरम गमाय ग्वालिनि, घूरि घर तोहे जाहु री
घाट जमुना दान लागे, देहु दान चुकाय री
आसिन राधा हरिसँ विनती, दान कबहुँ ने लाग री
जँ हम जनितहुँ दान लागे, दितहुँ दान चुकाय री
कातिक कंचन मुकुट सोहे, ओ पिताम्बर काछिनी
देखु सुन्दर रूप मोहन, नयन पट तन छाय री
मास अगहन बिहुँसि राधा, ठाढ़ि भय विनती करी
छाड़ि देहु अराड़ि मोहन, जाहु गोकुल भागि री
पूसहि नेह सनेह ग्वालिनि, काहे तोँ जाहु री
सदा लोचन रहत नाहीं, देहु दान चुकाय री
चढ़ल माघ्ज्ञ बसन्त गहि गहि मास ओ चतुराबड़ी
जाय अहिरा बात कहि-कहि सुनह यशुदा माय री
फागुन बंद पसारि ग्वालिनि, उड़त अबीर-गुलाल री
दौड़ि-दौड़ि सखी सभी घेरत, ग्वालिन धूम मचाय री
चैत चिन्ता करह ग्वालिन, कृष्ण राधा साथ री
लेहु दान प्रभु अधिक गोरस, करह यमुना पार री
बैशाख राधा गेलि मधुपुर, हरिसँ कहथि बुझाय री
ज्ञान तोहरा लाज ककरा संकट प्राण गमाय री
जेठ प्रभुजी सँ भेंट भय गेल, ओहि कदम्ब जुरि छाँ री
छीनि लेल प्रभु चीर चोली, ग्वालिनि करत किलोल री
अषाढ़ राधा रास ठानल, कृष्ण राधा साथ री
सुकवि दास इहो पद गाओल, राधा कृष्ण विलाप री
आर गंगा पार जमुना / मैथिली लोकगीत
आर गंगा पार जमुना, बिचे कदम्ब केर गाछ री
ताहि चढ़ि-चढ़ि कागा बाजय, कागक बोल अनमोल री
देबौ रे कागा सिर के पागा, उड़ि जाउ जहाँ कंत री
कागा पांखि दुई हंस लीखब, सोने मढ़ायब दुनू ठोर री
सासु हे दुख कहब ककरा, बेटा अहांक परेदश री
परदेश बालमु धनी अकेली, रिमझिम बरिसतु आजु री
गाइक गोबर चिकनी माटी, रानी निपथु मन्दीर री
ताहि चढ़ि कऽ राजा सूतल, रानी बेनियां डोलाय री
सुख दुख रानी कहय लगली, राजा तरसि कय बोल री
हरी काँच नौरंगी चूड़ी / मैथिली लोकगीत
हरी काँच नौरंगी चूड़ी
फूल भरन के साड़ी री
बिना दान गृही जाहू ने पबिहैं
सुनु वृषभान दुलारी री
ओ दिन मोहन यादो नहीं छऽ
भूखे करह मुनहार री
दिन चारि के सड़ले दहिया
हमहीं घोरि पिऔल री
ओ दिन राधा यादो नहीं छऽ
कुंजवना मसखेल री
अंचरा पेन्हऽ रने-बने फीरऽ
कुंजवन रहऽ अकेल री
ओ दिन मोहन यादो नहीं छऽ
ओढ़न कारी कम्मल री
घरे-घरे मक्खन दही चोरौलऽ
आजु पिताम्बर धारण री
ओ दिन हम-तूँ राधा संगे खेलेलौं
माथे भरलौं पानि री
अंचरा पेन्ह, रने-बने फीरल
आजु गोकुल के रानी री
लाजो ने छऽ मोहन बातो ने नीके
लोक करत उपहास री
जाय कहब हम कंस राय के
बान्हि देथुन छबे मास री
कंश राय के डरो ने डरिय
सूनू गे कंसक सारि री
जाय कहब हम ग्वाल-बाल के
दही-दूध पीता ढ़ारि री
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