गोपालदास नीरज मुक्तक / Gopal Das Neeraj ke Muktak Shayari

 १.

अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैं

अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने हैं

साकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा है

अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने हैं


२.

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में

तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में

न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शऊर

अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में


३.

काँपती लौ, ये स्याही, ये धुआँ, ये काजल

उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी

कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब

ज़िन्दगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी


४.

अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई

मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई

आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुज़री

था लुटेरों का जहाँ गाँव, वहीं रात हुई


५.

हर सुबह शाम की शरारत है

हर ख़ुशी अश्क़ की तिज़ारत है

मुझसे न पूछो अर्थ तुम यूँ जीवन का

ज़िन्दग़ी मौत की इबारत है


६.

है प्यार से उसकी कोई पहचान नहीं

जाना है किधर उसका कोई ज्ञान नहीं

तुम ढूंढ रहे हो किसे इस बस्ती में

इस दौर का इन्सान है इन्सान नहीं


७.

हंसी जिस ने खोजी वो धन ले के लौटा

ख़ुशी जिस ने खोजी चमन ले के लौटा

मगर प्यार को खोजने जो गया वो

न तन ले के लौटा न मन ले के लौटा


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