गढ़वाली की प्रमुख काव्य रचनाएँ Garhwali Lokpriya Kavya Rachna Gadhwali

 

गढ़वाली ठाट / लीलानन्द


”गुन्दरू का नाम बिटे  सिंगाणा की धारी छोड़िक

वे को कुख वे की झगुली इत्यादि सब मेंला छन, गणेशू की सिपर्फ सिंगाणा की

धारी छ पर हौरी चीज सब साफ छन। यां को कारण, गुन्दरू कि मां अल 

गसी, खलचट और लमडेर छ। मित्तर देखादों बोलेंद यख बखरा, रंहदा

होला, मेलो खणेक धुलपट होयू छ, मितर तब की क्वी चीज इर्थे क्वी चीज

उथैं। सांरा मितर तब मार घिचर पिचर होई रये। अपणी अपणी जगा हर

क्वी चीज नी। मांडा-कूंडा ठोकरियूं मां लमडण रंदन, पाणी का भाडज्ञें तक

तलें देखा दों, धूल को क्या गद्दो जम्यू छ। यूं का मितर पाणी पेंण को भी

मन नी चांदो। नाज पाणी की खत फोल, एक माणी पकोण कू तिकालन त

द्वी माणी खतेई जांदन, अर जु कै डूम-डोकला, मिखलोई सणी देणां कू

बोला त हे राम! यां को नौ नी’।“




बुरो संग / हर्ष पुरी


अकुलौ माँ माया करी, कैकीबी नी पार तरी।

बार बिथा सिर थरी, कू रोयेंद।

जख तख मिसे लांद, झूटा-फीटा सऊँ खंद।

दियुं लेयुं तने जांद, अपजस पायेंद।

आगो पाछो देखी जाणी, खरी खाणी चुप्प चाणी।

किलै कद झुटि स्याणी, गांठी पैसा खोयेंद।

मैंत बोदू भली बात, सोच कदु दिन रात।

मुरखू का संग साथ, ज्यान जोख्यूं पायेंद।

आँखु देखि सुणी जाणी, बटोरों मां माया लाणी।

जगत की गालि खाणी, विचारिययुं चाहेंद।

लगणु नी वैकी बाणी, जै की होन दुलि काणी।

पाछ पड़द खैंचा ताणी, ज्यान जोख्यूं पायेंद।





उठा गढ़वालियों / सत्यशरण रतूड़ी


उठा गढ़बालियों, अब त समय यो सेण को नीछ।

तजा यीं मोह-निद्रा कू अजौं तैं जो पड़ीं ही छ।

अलो! अपणा मुलक की यीं छुटावा दीर्घ निद्रा कु,

सिरा का तुम इनी गेहरी खड़ा मां जींन गेर याल्यें।

अहो! तुम मेर त देखा, कभी से लोग जाग्यां छन,

जरा सी आंखत खोला कनो अब धाम चमक्यूं छ।

पुराणा वीर, व ऋषियों का भला वृतान्त कू देखा,

छपाई ऊँ बड़ीं की ही सभी सन्तान तुम भी त।

स्वदेशी गीत कू एक दम् गुंजावा स्वर्ग तैं भायों,

भला डौंरू कसालू की कभी तुम कू कभी नी छ।

बजावा ढोल-सणसिंघा, सजावा थौल कू सारा

दिखावा देश-वीरत्व भरीपूरी सभा बीच।

उठाला देश का देवतौं सणी, बांका भडू कू भी।

पुकारा जोर से भायों घणा मंडाण की बीच।

करा प्यारों। करा कुछ त लगा उद्योग मां भायों,

किलै तुम सुस्त सा बैठ्यां छया ई और क्या नी छ?

करा संकल्प कू सच्चा, भरा अब जोश दिल् मां तुम,

अखाड़ा मां वणा तु सिंह गर्जा देश का बीच।

प्रचारा धर्म विद्या कू, उड़ावा झूट छल सारा

फुरावा सर्व गुण शक्त् यों, करा ज्यांमा बड़ाई छ।

बजावा सत्य कौ डंका सबू का द्वार पर जैक

भगावा दुःख दारिण करा शिक्षा भली जोछ।





चेतावनी / हरिकृष्ण दौर्गादत्ति


अलो भायूं! क्या छ? कख तइं पड़यूं घर मां।

विदेस्यूं न देखा? कनि कनि कन्याले जगत मां।

करा प्यारों अब त, जतन कुछ अप्णा विषय मां।

न खोवा हे चुच्चों, निज दिन अमोला मुफत मां।





देववण को वर्णन / चन्द्रमोहन रतूड़ी


आजकल् छौं मैं बिचारण लग्यूं देवतों का वणूमां।

आकाश् लव्योणक कर खड़ा पर्व्वत का सिरौंमां।।

ठंडी हल्की तलती’ र सफा वायु का और सीतल्।

निर्मल् उज्ज्वल, सरस जल की उत्पती की जगींमां।।

जादा नत्दीक् रहण पर भी तेजवान् सूर्यदेव।

कड़ी दृष्टिन् कविमि यश नी देखदो तापकारी।।

और्नारोंदा, कृपण, टुकड्या, सख्त बुन्दून्यखेद।

वर्षा कर्दो पर बरफ का नर्म, हंस्दासि फूलून।।

ये तोहोंदन् अब फटिक या चांदि का ये पहाड़।

नीला आकाश् निस तब हर्यां देवदारु विशाल।।

पौंदन् शोभा कतिनि, सूर्य-चन्द्र-प्रभा से।

क्या की देव्ता निछन यख यीं रम्यता भोगदारा?

....उड़दो मेरो मन यखन पर, फिनी अपणा गंगाड़,

प्यारा मैक् छन् फिरमि अपणा सारि सेरा व सौड़।।

जोड़दा हात में यखन अपणी मां सि भागीरथी कू।

ई का गोदस्थित हि अपणा जन्म का गोदि गौंक।





रामी / बलदेव प्रसाद शर्मा 'दीन'


‘बाटा गोड़ाई क्या तेरो नौं छ, बोल, बौराणि कख तेरो गौंछ?’

‘बटोही-जोगी! न पूछ मैकू। केकु पुछदि, क्या चैंद दवैकू?

रौतु की बेटि छौ, रामी नौछ। सेटु की ब्वारि छौं, पालि गौछ।

मेरा स्वामी न भी छोड़ी घबर। निर्दयी ह्वे गैने मई पअर।

ज्यूरा का घर नी जगा मैकू। स्वामि विछोह होयूं च जैंकू।

रामी तैं स्वामी को याद ऐगे। हाय-कूटिल छूटण लैगे।

‘चल, बौराणी, छैलू बैठी जौला। आपड़ी खैरी उखीमू लीला।’

‘जा, जोगी, अपड़ा बाठा लागण। मेरा सरील ना लऊ आगअ।

जोगी ह्वेकी भी आंखी नि खूली। छैलू बैठलि त्यरि दीदी-भूली।’

‘बौराणी! गाली नी देणी भोतअ। करव रैंद गौंको सयाणो रौतअ?’

जोगी न गौं मा अलंक लाई। भूखो छौं, भोजन देवा मई।

बूडडी माइ तैं दया ऐगे। खेतु से ब्बारी बुलौण लैगे।

‘घअर और ब्वारी तू। झट कैकअ। घर मू भूखो चअ साधु एकज।’

‘सासु जी, कैकू बुलाये रौलअ। ये जोगी लगीगै आज बौलअ।

ये जोगी कू नि पकांदू रोटी। गालि देने येन खोटी-खोटी।

ये पापी जोगी शरम नीचअ। कैकुतैं आये हमारा बीचअ?“

‘अपड़ी ब्वारी समझऊ भाई। भूखो छौं, मात बणावा जाई।’

रामि रुसाड़ों झुलयोण लैगे। स्वामी की याद भी औण लैगे।

‘मा लू का पात मा धारे मातअ। भी तेरा भात नी लांदु हाय।

रामी का स्वामी की थालि माजअ भात दे, रोटि मै खैलो आज।’

”खांदु छै जोगी तअखाई लेदा। नी खांदो जोगी तअजाई लैदी।

भतेरा जोगी झोलीऊ ल्हीकअ। रोजाना घूमि निपौंदा भीकअ।“

जोगी न आखीर भेद खोले। बूडडी माई से इनो बोले।

”मैं छऊं माता तुम्हारी जायो। आज नौ साल से घअर आयों।“





विरह / लीलानन्द कोटनाला


आयो चैतर मास, सुणा दौं मेरी ले सास

वण-वणूडें सबी मौली गैन, चीटें मौली गैन घास

स्वामी मेरो परदेस गै तो, द्वी तीन होई गैन मास

अज्यूं तई कुछ सुणी नि-मणी, ज्यूं को ह्वेगे उत्पास

जौंका स्वामी घरू छन, तौंको होयुं छ विलास

रंग-विरंगे चादरे ओढ़ी-ओढ़ी, अड़ोस-पड़ौस सुहास।





बुड्या जवाई / योगीन्द्र पुरी


1. 

बुढ्याकू बेटि क्या देणि छ

मुणडमा आपदा लेणि छ,

वर्ष द्वी मांज मरि जाँदो छै

छोरि कू रांड करि जांदो छ।


2.

मुर्खलो खोसि जब रोंदी वा

दुःख का बैन यना बोदि वा,

बाबा जी तुमन क्यों सैंत्यो मैं

फेंकणया होइ कनु व्वेकु मैं।


3.

माजि तिन कोखि क्यों राख्यो मैं

होंद ही केकु नी फेंक्यो मैं,

केकुतैं लाड़ करि पालयो मैं

फेर ये दुःख मां डाल्यों मैं।


4.

त्वेन जो बेटि नी जाण्यों मैं

गोरू या भैंससी जारयों मैं,

पन्द्रसौ लेणिछै त्वैमेरी

यांकुही होइ तू मां मेरी।


5.

धर्मदी कर्म नीजाण्यों जो

जात्यादी रूपभी नीमान्यों जो,

शोचदा वर्ष मैनौकी छौं

साठ का बुढ्या कू दीने छौं।


6.

बेचितैं पुडांड़ि अर कूडी कू

पन्द्रसौ दीनि त्वे पापी कू,

बाबा जी त्वेकू ह्वै सौकारी

मेरारै भाग मा जीलारो।


7.

कीराकी होइ दै जो काले

चाँदिसी चमकदी वो वाले,

हारादी छड़ा छन सी मैकू

दैव यनु ना करी तू कैकू।


8.

माजि तिन थैलि पर दीने डीठ

बेटिकू फेरी जो यनि पीठ,

त्वेकू वा थेली ही रई जान

लोक परलोक ना हो यो यान।


9.

कै घड़ी दिन्या तिन मैंकु बांद

वर्ष का बीच ह्वैग्युं राँड,

त्योंखि भी मैकू तैंनीछ आज

दैव ही रखलो मेरी लाज।


10.

गैणा जो लोगु का पर थारी

तौं की भी बात रै दिन चारी

नाक पर मुर्खलो रये मेरा

स्योभि छै मासमा गये डेरा।


11.

मार अर गालि देंदान सोरा

सैसुरी मैतिनी क्वीभि मेरा,

पूछरो आज नी क्वीभि मैकू

बाबा जी रोण मिन क्या आज त्वेकू।


12.

क्वीभि शुभ काम जब होंदान

मैकू तैं क्वीभिनी बोदान,

सभी मा बैण वख जांदिन

गीत अर मांगल गाँदिन।


13.

कब्बि जो भूलिकी गैगी मैं

राँड निर्लज्ज बस ह्वैगी मैं,

मैकु तैं डैणा सब बोदान

देखि मैं खाण जनु औंदान।


14.

राँड कू बारनी त्यौहार

राँड कू केकुछौ शृंगार,

राँड ह्वै डोमू से भि नीच छ

राँड को जगतमा क्वीभि नीछ।


15.


मुख भी स्वामि को नी देख्यो

सुख संसार को नी देख्यो,

स्वीणा नी देखे सुख की रात

लाण औं खाणकी क्या बात।


16.

बालि ही राँड मैं ह्वैग्यूं जो

जन्म की दुःखिया रैग्यू जो,

दोष यां माँग नी क्वी मेरो

बाबा जी पाप छ यो तेरो।


17.

दुखि ये चित्त की हड्कार

रोणु बी पीटणू फिड्कार,

कल्लो तै बंश को संहार

जागलो तब्बि यो संसार।


18.

थैलि कै काम जो ऐ जाली

भैंसि वा भेल कू ह्वै जाली,

मुकद्मा जोर को लै जालो

थैली ”योगीन्द्र“ वो खैजालो।





पंछी पंचक / आत्मा राम गैरोला


अरे जागा जागा कब बिटि च कागा उड़ि उड़ी

करी...‘काका’ ‘काका’ घर घर जगोणू तुमसणी।

उठो गैने पंछी करण लगि गैने जय जय,

उठा भायों जागा भजन बिच लागा प्रभुजि का।

धुगूती धुगूती धुगति धुगता की अति भली

भली मीछी बोलो मधुर मदमाती मुदमयी।

हरी डांड्यो धुनि पर धुनि जो छ भरणीं

हरी जी की गाथा हिरसि हिरसी स्या च करणीं।

‘कुऊ कूऊ कुऊ कुउ कुउ कुऊ कूउ कुउऊ’

छजो धारू धारू बणु बणु बिटी गूंजण लगीं।

हिलांसू की प्यार जिउ खिंचण बारी रसभरी

सुरीली बोली स्या स्तुति भगवती जी कि करद।

...‘तुही तूही तूही’ सुरम बणु मां सार सिंचिक,

पुराणू शास्त्रू को मरम मय बोली बिमल मां।

प्रभू की ख्याती कोयल च करणीं तार सुर से

”तु तूही में तूही महि सब हि तूही तुहि तुही“

टिटो च्यौलो म्यौली छितरि तितरी ढैंचु मंडकी

रसीली तानू कू भरि भरि हरी जी कु भजद।

उठा प्यारों प्यारी भिनसरि कि लूटा विभक्ता,

छ जो छाई नाना प्रकृति जननी का रहसु से।।





सदेई / तारादत्त गैरोला


जाड़ो तसिगे प्रकृति बिजिगे,

पशु वा पंछी सभी जी गयेन।

जाड़ान जो सुन्न न होई गै तो,

स्यो बौड़ि गे ल्वै रस सार प्राण।

डाली व बोटी वण व वणोंदी,

निर्लज्ज जाड़ान करेति नांगी।

अनेक पैरया ालेन अब रंग की,

बसन्त का स्वागत कत साड़ी।

गाड गधेरा अर पंछी पौन,

छया जो जाड़न सुन्न होया।

कर्ण बसे कोलाहल लगि गैन,

खुशी बसन्त की मनौण लैन।

शरीरो कलेजा पहुँचौंण रायावायु,

स्या घैंत स्वाणी अब लागदे छ।

सुगन्ध फूल दगड़े मिलीक,

अमृत पिलाई पुलकौंद पौन।

सफेद रत्ता, पिंगला व नीला,

भांति व भांति छन फल फूल्या।

समीन्न यून प्रकृति पुरुष सी,

सजाई दीने रति रंग भूमि।

कुलूड़ि भि फूलि अर फ्यू ली फूली,

गयेन फूली वण वो वणोंदी।

गुलाब फूल्यों अर कूजों फूल्यो,

फूली गयेन लगुले व झाड़ी।

आरु, घिंघार अर आम डाले,

निम्बू नारंगी भित फूलि गैन।

चम्पाभि, पाईभि चमेलि फूलि,

बुरांस घारूँ मंग अंचि फूल्यों।

सिलंग फली सब ठौर फूली,

गईन फूटि कलि कोंपलें भी।

क्या घर क्या बोण सभी जगौं मां,

सिलंग की बास सुवास फैली च।

छन रंग नया / ताजा अर रंग नाना,

सुवास नाचा अर गीत नाना।

अनेक नाना विधि का न स्येन,

वि दिखेंद, सूंघेंद, सुणोंद जा ना।

गीतु सुरिला छन पंछी गाणा,

वीं कोकिला की पर प्यारि थक।

सुणोंद चारू दिशि दूरु-दूरु,

दुखौंद ज्यू कू सहदेई कोछ।

पंछी तु गाला छई मास ओरे,

चेड़ो कफू बासलो चैत मास

सिलंग डाली पर फ्यूँलि गाली,

ना पास केकु ज्युकड़ी झुरौंद।

हल्या रयों मां छन मस्त रौंकणा,

पाख्यों घस्यारे छन गीत गाणी।

लगादू भौणे छन गीतू मांगे,

स्वालू जवाब हुह्रौंण लागी।

रैबार रै पार हिलांस प्यारी,

कू-कू करी कूकद लवि कू-कू।

झणन्यालि गैरी-छ गदरियों मां,

स्या म्योलड़ी भी कना गीत गाणी।

भौंरा छया जो सुनसान ब्याले,

स्ये आज फुलू-फुल मांन गुजराण।

यैं फुल की केशरी फुल वै मां,

लिजाण लाग्यां छन स्वार्थि भौंरा


इनी निराली अर भांति भांति,

छ काम होणु प्रकृति पुरुष को।

सृष्टि छ सारी उत्सौव मनोणी,

खुशी मनौणी खिलखील हंसणी।

बसन्त ए मा रज ताल-बात,

आयुँ छ गर्भाषय वीजु मांगे।

जणन कु जन्तु-जननी जनक को,

छ जग-जोड्यूँ जजग मांग गां तां।

सिलंग नीस सहदेई बैठी,

सुणणी छ देखणी बण की बहार।

सैं मैलि डाली मुं सदानि औंदे,

खुदेड़ सैदी खुद बिसरौण।

सैदी कु औदे जब याद मैतै,

दगड् याणियों की भि छ याद औंदा।

वणू वणोंडो कि भि याद औंद,

धारू व गाडू कि भि याद औंदा।

चौंरी माँ बेठी च खुदेड़ सैदी,

बौली सी होई खुद से सदेई।

चड़ी सी रोटी भोर भरि ज्यू स्या रोंदे,

इना इना वैन सुबैन बोदे।

हे ऊँचि डांडयों तू नीसी आवा,

धणी कुलांयों तु छांटि जावा।

मैं ते दगीं छ खुद, मैतुड़ा की,

बाबाजी को देखण देश देवा।

मैतअकि मेरी तु पौन प्यारी,

सुणों त रैबार तु मां को मेरी।

गाडू-गदअन्यों व हिलांस कफ्फू,


मेतअका मेरा तुम गीत गावा।

वारअ ऋतु बौड़लि बार मास,

आली व जाली जनि दाई फेरो।

आई निजाई निरभाग मैं कू,

क्वी मी नि आई ऋतु मेरी दात।

बसन्त मैना ासब का त माई,

मेटेंण आला वहिण्यों कु अपणी।

दीदी-भुली-मिलीक गीत गालो,

गला लगाली खुद विसराली।

मैत्यों कि भेजी कपड़ों की छाल,

पैलीं विसाली कनु से मिजाज।

लड्यालि मेरो कुई माई होंदो,

कलेऊ लौंदो व दुरौंदो पैणा।

लठ्यालि होलो निरमाग मै त,

पीठी नि की होयन माई-वैणा।

करीं पछिंण्डि छऊँ धौलि पार,

गाऊ विदेशी, अर दूर देश।

जवान ह्वै गयूं, लड़कालि भी गयूं,

मेरी करी नी कैन खबर न सार।

मैतअकि देवी छऊँ, झाली-माली,

मेरी सुणियाल विपत्ति भारी।

दियाल मैंकु इक भाई प्यारो,

देखीक जैकु खुद बिसरौं में।

भाई की मुखड़ी जब देखि लेंदो,

होंदो सुफल जीवन यो त मेरो।

मैं कूत नी छ कुछ और इच्छा,

समान भाई नोछ, और नी छ की भी।


देली तु जो यो वर आज मैंकू,

मैं देउलो त्वै सरवाच देवी।

जो भाई होलो तो अठ्वाड़ धूलो,

पंडौङ नचौलो अर जात धू लो।

खोंदू अभी नितर प्राण अपणों,

सहाय ह्वै जा दुर्गा-भवानी।

देवी भवानी जननी जगत की,

प्रसन्न होंदे वर तैंकु देंदे।

होलो सदेउ इक भाई तेरो,

बड़ो प्रतापी मिललो वो त्वैकू।

आकाशवाणी इन वीं न सुणी,

सुपनों छ यो या भरमौंणु की मैं।

या मेरी होली कुल इष्ट देवी,

दन्दौल नाना बिधि कर्दी मनमां।

गई सदेई जब सांझ होये,

सिलंग डालि सणी भेंट देण।

धर्दी छ वा धीरज शांत होंदें,

लगदे छ धन्धें पर स्थान धरका।





रैबार / योगीन्द्र पुरी


पौन तू प्राण मेरी, दासि छौमें भि तेरी।

जैं दिशा भौंर मेरो, तैं दिशा भारी फेरो।

देखि स्वामी को डेरो, बोलि रैबार मेरो।

भौंर तू प्राण मेरो, केशरू को रसिया।

बागों को तू कसिया, फूलु को छू हसिया।

कै विराणी हि जाई, देखिकी तू ना भूल।

भौर अलसीगे तेरो, यो गुलाबी सी फूल।

भौर की आश धरी, फूली गुलाब कली।

भौर विदेशु रम्यों, नी छ या बात भली।

खूब मैदान बड़ा, बाटामां त्वै मिलला।

हौंसिया लोग रंदा, सेठुका गांऊ भला।

सेरो चोसरसी बिछयूं, चौकोण्यों चारि गाउ।

नैर सीं कूल भली, पट्टि चौरास नाऊं।

नौर नोट्याल रहंदा, खूब ज्यूंदीको सेरो।

नैणिकी कूल भली, जा गड्यालू को डेरो।

किलकिलेश्वर छै तखी मैति मादेव मेरो।

‘महन्तयोगीन्द्र’ पूरी राखला ध्यान तेरो।





डूंडो / नाव / चक्रधर बहुगुणा


हिरिरि, हिरिरि बगद गाड

ढलकणू छ डूंडो।

खेलेल्यो क्या धुनार?

डांड पड़यूं खूंडो॥


बौलि गैने यै छलार

नीं दिखंद वार पार।

कथैं दौं छ छांद धार

थाति नी छ खूंटो।


हिरिरि, हिरिरि बगद गाड

ढलकण छ डूंडो।


उरड़ो उठिगे अथाह,

मिटिगे सब धूप छांह,

भूलि गैने सभी थाह

बाड़, भीत, मूंडो।


हिरिरि, हिरिरि बगद गाड

ढलकणू छ डूंडो॥


लोगु की छ कच्चि आस,

तू परेख ले सहास

चलनी नी जुगेती खास

टुट-मणो न टूणो।


हिरिरि, हिरिरि बगद गाड

ढलकणू छ डूंडो॥


बढिगे! बढिगे! नयार

हे धुनार, कख छ पार?

त्वै मू अब क्या छ सर?

कनै रहण ज्यूंदो?


हिरिरि, हिरिरि बगद गाड

ढलकणू छ डूंडो॥


नीलो हँसण अकाश

ऐगे यौ औत पास,

लगीं जोर की छ ढास

रींग पड़े डूंडो


हिरिरि, हिरिरि बगद गाड

ढलकणू छ डूंडो॥



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छैला / चक्रधर बहुगुणा


जिकुड़ि धड़क धड़क कदी।

अपणि नी छ बाणी।।

छैला की याद करी

उलरिगे पराणी।।


पखन जखन सरग गिड़िके

स्यां स्यां के बिजुलि सरके

ढाडु पड़ं तड़-तड़ के


रुण झुण के पाणी।।

छैला की याद करी

उलरिगे पराणी।।


बीच मुलक देश अहो

कनु कै जी ज्यू त सहो।

की जो क्या ब्यूत कहो।


छि मैं छवीं नि लाणी।।

जिकुड़ि धड़क धड़क कदी।

अपणि नी छ बाणी।।


छैला बणि की उदास,

लैंदी दौं गरम स्वास?

बणिगे तन को कबास,


कंदुड़ि छन बयाणी।

छैला की याद करी

उलरिगे पराणी।।


हिर-हिर के बथो औंद

क्वी नी पर खबर लौंद

कनु कै जी शान्त होंद


पापि यो पराणी?

धड़क धड़क जिकुड़ि कदी

अपणि नी छ बाणी।।


झट अब घर जौलो

इनु इनु वीं भेंट ल्यौलो

मन हे, तू क्यां कु लोलो


करदि काचि गाणी?

छैला की याद करी

उलरिगे पराणी।।


घर की तू जोत छई

कुल मां उपोत छई

सुन्दर जनु फुलीं जई


छै तु दिल कि राणी।

जिकुड़ि धड़क धड़क कदी

अपणि नी छ बाणी।।


फ्यूली की कली जनी

क्वां सो स्यो वदन तनी

औंदो हा याद जनी,


तरस दो पराणी।

छैला की याद करी

उलरिगे पराणी।।


डांड्यों बसदी हिलांस

रुकदो दौं किलै स्वांस

खांदी क्या चुचा, फांस?...





मोछंग / चक्रधर बहुगुणा


1.

धारमं बैठिकी पूर्ण निश्चिन्त हैवे

आ, सुणौदौं सुणा आज मोछंग कू।

साज मां साज ली, राग मां बाजली

चित्त की क्वो छिपीं आह भी खोलली।


2.

देश का हर्ष मां, दुख मां, प्रेम मां

ईश की भक्ति मां, ठाठ से बाजली।

ताल मां, तान मां, कान मां गूंजली

ई सुणी, चित मां चाह भी सूजली


3.

एक ही गूंज से गूंजलो विश्व यो

देश मां जाग भी, जोश भी फैललो।

मातृ-भाषा भरीं एक या द्वो कड़ी

भाव शृंगार को रूप भी खोलली॥


4.

धार ये, गाड़ वो, डांडि मैदान से

एक ही भौण मां ये हुँगारा भरी।

ओर से पोर तैं गाजली, गूंजली

आज मोछंग का गीत-संगीत मां॥


5.

वार की पार की, जोड़ि की तोड़ि की

बात द्वी, की गढ़ी ढंग से बोलली।

ह्वै सक्यो तो भला रांग-साहित्य मां

या रँगाली न क्या आपका चित्तकू?


6.

रोपिकी आश को तार आकाश मां

भाव का झूलना मां झुलाली अभी।

मस्त होली अफ्वी, आपकू तैं रिझै

कल्पना-भावना-का नया राग मां?


7.

ई सुणी जागलो आपका ख्याल मां

जाति को प्यार, औ देश सेवा अभी।

जागला आप ही रोंगटा गात मां

चित्त मां ज्ञान की जोत भी भासली॥





हिलाँसी / भगवती चरण शर्मा 'निर्मोही'


आज हिलाँसी बड़ी सबेरी,

कख से तु उड़िकी चलि आई?

बाटु भुलीं या मेरा घर से,

रैबारू बणिकी तैं आई!

औन्दी छै चुप कैकी औन्दी,

किलै सुणाई अपणी बोली?

आज अणमणो छौं दिनभर मैं,

लगीं छ मन पर भारी गोली।


2.


भुलन बैठि छौं जब सब कुछ,

मैं बिसराई खुद तिन बौड़ाये।

बच्चौं की प्यारा सजनू की

तरफ किलै सुरता दौड़ाये?

बोल-बोल प्यारा पहाड़ से

क्या-क्या खबर अरी तू लाई?

एक-एक करिकी तैं सुणऊ

वख की सब बातैं मैं थाई।


3.


अजौं रयों छौ कि सूखिगे

गदनौं को सेल्वाणी पाणी?

डाली-बुटली मौलि गैन क्या

कतनि होइने आमू की दाणी?

दुफरा मा अब बजौन्द की ना

अलगोजा क्वी उलारु पराणी?

ग्वैर गोरु माल्ही जाँदान क्या

तुमड़îों पर लटकैकी पाणी?


4.


हौर सुणो तू मेरा घर पर आई

छै क्या कुछ बिपता सी?

म्यरी सैंजड्îा देखि होली तिन

छाई ह्वली जैं परैं उदासी।

रोज लोगु की नजर बचैकी

ह्वली बगौणी ज्वा द्वी आँसू।

जाणदू छौं म्यरी हिलाँसी

प्राण च वीं को भारी क्वाँसू।


5.


हाल बतैकी झटपट उड़िजा,

बात बतैदे सारा घर की।

निर्दय छन यख पकड़ि लेन्दान,

ये बात होईं या भारी डर की।

उड़ जा तू अपणी डाँड्यूँ मा,

पे गंगा को ठंडो पाणी।

फेर ना ऐ यख ना तू बोली,

होण दे मेरो निठुरो पराणी।


6.


यख को क्या रैबार ल्हि जैली,

कैदी छौं कुछ बोलि नि सकदू।

बन्धन से ज्यादा दुनियाँ मा,

हैको कुछ दुख होइ नि सकदू।

ये बन्धन तोड़णू कू तैं ही,

ये सब दुख सन मैं सहणू छौं।

भूख-प्यास गर्मी-सर्दी को,

कष्ट भूलि की भी रहणू छौं।



7.


पर जरूर तू इथगा बोली,

बड़ो सुखी छौं याद ना कैने।

औलो-औलो ईं आशा पर,

अपणा मन ब्यलमाई रैने।

घबड़ाई की कुछ नी होन्दो,

कटदी जाला यख का ये दिन।

जनु कुछ भी हँसदो रोन्दो।








प्रेमी पथिक / तोताकृष्ण गैरोला


चंदा आधा सरग पर थै सर्कणी बादल्यूँ मा,

काँसी की सी थकुलि रड़नी खत्खली खूल्यूँ मा।

निन्यारे थे निजन बण का नौवत्या गीत गाणी,

शर्दे रातै शरदि लगणी, शीतली पौन पाणी।

बस्ती धोरा कखि मि थइ नी गैर भी जंगली थौ,

डालौं परथौ बथौं लगणू होंद सुँस्याट-सी थौ।

धुधू धू-धू धुरकि पुरको धुर्कणू-सी जनू थौ,

नेडू औणू धमकि धमकी धम्कदो भारि स्यूँ थौ।


हे हे बृन्दा गजब कनि ह्वै बज्र पड़नू सफा धो,,

तेरो निर्णै कुछ भित निह्वै दुख सबसे बड़ो यो।

सच्ची सादी चतुर गहिरो सत्य संकल्प वाली,

हिर्दै सौंपे मइ मु तिन जो ओ कनो कष्ट पाली।


कदों कदों मनहिं मन मा याद बृन्दा कि सारी।

देख्णो साम्णे बिसरि पड़गे स्यू कि भैंभी तवारी।

क्या दौं जाणे डुकरि भागेगे शेर तो फाल काटी,

नन्दू चल्लै फिरभि बणिगे एकदौ संग भाटी।


मन्मा मुखैनी मुख मा मनै नी,

तू पूरि कन्कै मइं बोलु त्वेम्बी,

ताँचै त देवी सब बात मेरी,

मन्मा टटोली तरखि छाणि ल्हे ली।

जो कत्कली की खुद कल्वली-सी,

लग्णी च वा बोलिहि नी सकेंदी।

कथ्णा हि गौंक्रा करु पर्त ज्यू को,

गुंडी त वा खोलिहि नी सकेंदी।


गोरो-सी मुख सुर्ज-कान्त-मणि-सी किर्णून थौ चस्कणू,

जां की झूलन फुलवाडि परथौ पीलो उद्यो दम्कण।

लम्बा लोलक दिप्प था कंदुड़ का मोती जड्या झूलणा

दर्पन सी गलवाड़ियों पर थमा दुद्वी बण्या सूझणा।

थै बाँई नकदोड़ि मा चमकणो फूली सुहाणी कनी,

हीरा की कणि ठोंठ मा यकतरैं तोता कि थामी जनी।

छोटी लाल पिठाई की टुपुकि सी बेंदी थई भालकी,

सोना का जनि जंत्र या सजदि थै टीकी धरीं लालकी।


जाँखे थे मृग बालि बीसि रिगणी पाणी न गैथै मर्ये,

हब्रे सूरज देखणी हबरि वा थै सोचणी प्राण मा,

कीदौ उभ्र गर्जन का च किचदौं ब्रह्माण्ड का ध्यान मा।

दुद्वी चूड़ि बरीक हाथु पर थै सोना कि सादी कनी,

लच्छे रेशम की मृणालु पर छै फूलू पिछाड़ी जनी।

बायाँ हाथ की अंगुली पर छई भिन्ना भई मुंदरी,

खोद्यूँ थौ नउँ हिन्दि मा टकटकी वृन्दावती सुंदरी।

दैणा हाथ न चौंठि मा कलम की मुख्ड़ी छुआई उड़ैं,

बायाँ हाथ न दाबि कागज धर्यू अर्दोन धारी फुडैं।

कूर्ती पैरियूं आसमानि अलगीं छाती तई दीखणी,

देची ही जनि दिव्य मन्दिर बिटे संसार पलींखणी।

पोंछे सूरज धार का पिछनई बृन्दा खड़ी-की-खड़ी,

देख्दी सामणि म्वाँ फंडो नजर तो फुंल्वाड़ि दी परपडी।

को दौं यो, कनु धूर्त बैठिक तई पुछ्याँ ही बिना,

मनमा सोचदि ह्वैक तैं पिरपिरी यो चोर होलो किना।





खुदेड़ बेटी / भजन सिंह 'सिंह'


बोड़ि-बोड़ी ऐगे ब्वै। देख। पूस मैना।

गौंकि बेटो ब्वारि ब्वै। मेतु आइ गैना

मैतुड़ा बूलालि ब्वै। बोइ होलि जौंकी।

मेरि जीकूड़ी म ब्वै। कूयड़ी सि लौंकी।


मूल्वड़ी वासलि ब्वै। डाड्यूं चैत मासज।

भौलि गैने डालि ब्वे। फूलिगे बुरांसज।

माल की धूगति ब्वै। मैत आंदि होली।

डाल्युं मां हिलांस ब्वै। गीत गांदि होली।


ऊलरि मैनो कि ब्वै। ऋतु बोड़ि ऐगे।

हैरि ह्वेने डांडि ब्वै। फूल फूलि गैने।

घूगती घुरलि ब्वै। डाल्यूं-डाल्यूं मांजअ।

मैतुड़ा बुलालि ब्वै। बोह होलि जौंकी।

मेरि जीकूड़ी म ब्वै। कूयड़ी-सि लौंकी॥


लाल बअणी होलि ब्वै। काफुलू कि डाली।

लोग खान्दा होला ब्वै। लूण रालि राली।

गौंकि दीदी-भूलि ब्वै। जंगुल न जाली।

कंडि मोरि-मोरि ब्वै। हींसर बिराली।

‘बाडुलि लागलि ब्वै। आग भभराली’।

बोई बोदि होलि ब्वै। मैत आलि-आली।

याद ओंद मीत ब्वै। अपड़ा भुलौंकी।

मेरि जोकूड़ी म ब्वै। कूयड़ी-सि लौंकी॥


ल्हालि कूरो गाडिब्वै। गौं कि बेटि-ब्वारी।

हैरि-भरीं होलि ब्वै। गेंउ-जो, कि सारी।

यं बार मैनों कि ब्वै। बार ऋतु आली।

जौंकि बोई होलि ब्वै। मैतुडा बुलाली।

मैतु ऐ-गै होलि ब्वै। दीदि-भूलि गौंकी।

मेरि जीकूड़ी म ब्वै। कूयड़ी-सि लौंकी॥


स्वामिजी हमेशा ब्वै। परदेश रैने।

साथ का दगड़या ब्वै। घअर आइ गैने।

ऊंकु प्यारी ह्वेगि ब्वै। विदेशू को वासअ।

बाठा देखी-देखी ब्वै। गैनि दिन-मासअ।

बाडुलि लागलि ब्वै। आग भभराली।

या त घअर आला, ब्वै। या त चिट्ठिं आली।

चिट्ठि भी नी आइ ब्वै। तब बटी तौंकी।

मेरि जीकूड़ी म ब्वै। कूयड़ी-सि लोंकी॥


बाबजी भी मेरा ब्वै। निरमोही रैने।

जौन पाथो भोरि ब्वै। मेरा रूप्या खैने।

गालि देंद सासु ब्वै। मैं-बाबु कि मारी।

बासि खाणू देंद ब्वै। कोलि मारी मारी।

बोद तेरो बाबु ब्वै। जो रूपया नि खांदो।

मेरो लाड़ो-प्यारी ब्वै। विदेशू नि रांदो।

बाबा न बणये ब्वै। इनि गति मेरी।

ज्वानि तअ उड़िगे ब्वै। वाठो हेरी-हेरी।

चिट्ठी भी नी आइ ब्वै। तब बटी तौंकी।

मेरि जीकूड़ी म ब्वै। कूयड़ी-सि लौंकी॥





सिंहनाद / भजनसिंह 'सिंह'


पैलि गढ़देश त्वीकू नमस्कार छ।

तेरि हम पर दया-दृष्टी अपार छ।

तेरि दया म हमकू बड़ी मौज छ।

वीर-पुत्र की तेरी खड़ी फौज छ।

पैलि उन्नीस सौ पन्द्र का लाम मा।

जर्मनी-फ्रांस का घोर संग्राम मा।

सात-सागर तरी देश का का कू।

जाति का और ब्बे बाबु का नाम कू।

ये गया बेधड़क बैठि की जाज मा।

देरि ही नी करे राज का काज मा।

लोग ब्बे-बाबु भी छोड़ि गैने इख।

घर क्वी भागि ही लौटि ऐने इख।

फ्रांस की भूमि जो खून से लाल छ।

उख लिख्यूं खून से नाम गढ़वाल छ।

रैंदि चिंता बड़ौं तैं बड़ा नाम की।

काम की फिर्क रैंदी, न ईनाम की।

‘राठ’ मा गोठ गौं को अमरसिंह छयो।

फ्रांस को लाम मा भर्ति ह्वै की गयो।

ज्यौं करी घर मूँ, लाम पर दौड़िगे।

फ्रांस मां, स्वामि का काम पर दौड़िगे।

नाम लेला सभी माइ का लाल को।

जान देकी रखे नाम गढ़वाल को।

शास्त्र मा कृष्ण जी को लिख्यूँ साफ छ।

धर्म का वास्ता खून भी माफ छ।

न्याय का वास्ता सैरि दुनिया लड़े।

भाइ तें भाइ को खून करनो पड़े।

आतमा अमर छ, बीर नी मरदन।

शोक ऊँ कू किलै खामखाँ करदन।

रणम करन से मिलदो स्वर्ग-धाम छ।

जीत ह्वैगे त होन्दो अमर नाम छ।

भार्या वे कि छै देवकी नाम की।

वा सती छै बड़ी भक्त ही राम की।

स्वामिजी तब बटी लाम पर ही रया।

चिट्ठी भी वो कभो भेजदा ही छया।

जब कभी स्वामि की चिट्ठी आंदी छई।

देवकी वींवीं सब्यूं मू पढ़ांदी छई।

चिट्ठी सुणी खुशी हूँदि दै देवसु।

स्वामि की याद से रुंदि छै देवकी।

सासु-ससुरा कि सेवा म रांदी छई।

कै का मुख पर नजर नी लगांदी छई।

स्वामि का नाम को व्रत लेंदी छई।

भूखा-प्यासौं तई भीख देंदी छई।

जब कभी स्वामि की याद आंदी छई।

रात-दिन रुंदि रुंदि बितांदी छई।

स्वामिजी छन म्यरा फ्रांस की लाम मा

घर छौं भी अफू लोलि आराम मा।

वो न जाणे कया कष्ट सहणा छन?

या कखी भूखा-प्यासा हि रहणा छन।

पेट-मोरी कि या भी नि खांदी छई।

रात दिन स्वामि की सोच रांदी छई।

एक दिन वो छया घर मु जब छया।

हैंसदा-खेलदा ही कना दिन गया।

भूख नी छै हमू प्यास नी छै कभी।

रात दिन प्रेम पूर्वक बितैने सभी।


हाय भगवान वे जर्मनी को मरे।

पापि न या किलै घौं लड़ाई करे।

साथ का लोग घर बौड़ि गैने सभी।

वो न जाणे लिै की नि ऐने अभी।

चिट्ठी भी भौत दिन से नि आई इख।

तब बटी कुछ खबर भी निपाई इख।

ऊँकि चिट्ठी किलैक नि आंदी होली?

काम से सैत फुरसत नि रांदी होली?

घर च जो अफू लोलि आराम मा-

वा क्या जाणो कि क्या बीतदीं लाम मा।

चैत भी बौड़ि बौड़ीक ऐगे इख।

देवकी बाठा देखो कि रेगे इख।

डांडि-कांठी सभी हैरि ह्वैने चुचों।

डालि-बूटी सभी मोलि गैने चुचों।

घुगति भी लाम से लौटि ऐने इख।

फूल कै भाति का फूलि गैने इख।

चन्द्रमा को जबौं लौअि ऐगे कभी।

रौतु को नौनु भी घर ऐगे अभी।

देवि दैव्तौं तई भी मनांदी छई।

रात दिन वा पुछारू पुछांदी छई।

पुछणु कू बाट का बट्बै मू गये।

औंदा जांदौं तई पूछदी वा रये।

रात दिन एक सी बितांदी छई।

हर घड़ी स्वामि की सोच रांदी छई।

पर लिख्यूँ भाग मा जोकि जैका रयो।

फिर वही अंतमा ह्वै कि रहणो छयो।

फ्रांस से मौत को तार छूटी गये।

”देवकी को बल-भाग फूटी गये“।


आदमी सोच दो त बड़ी दूर छ।

हून्द वी जो विधाता कु मंजूर छ।

वैन जो कुछ करे न्याय, सहणो पड़े।

सबकु मजबूर चुपचाप रहणो पड़े।

रोज दुखः सुख इथा? आप सहणा छवाँ।

- - - - -


एक दिन, जब जरा घाम छौ धार मा।

रूम्कै पड़णी छई सैरि संसार मा।

बोण का गोरु जब घअर आणा छया

पंछि अपड़ा बसेरों मु जाणा छया।

गौंकि सब बेटि-ब्बारी मि धाणी बटी।

रमकदी-झमकदी घास-पाणी बटी।

क्वीं थकीं, क्वीं डरीं, क्वीं कणाणी छई।

भारि कै बै करी घअर आणी छई।

घअर मू कैकि सासु खिजेणी छनअ।

जो नि देणो इनी मैकि देणी छनअ।

क्वो करवी दूदिको नोनु रोणू छयो।

यां परै द्वी झणों झगड़ा होणू छयो।

क्वी पंदेरी पंदेरा मु आणी छई।

वाजि लमडेर, जन्दी लगाणी छई।

कुटणु कू ब्वारि-भारी ल्हि जाणी छनअ।

क्वी झणो गौड़ि-भैंसी पिजाणी छनअ।

ज्वान जोरा तमाखू उडाणा छया।

बूड-बुड्डया मि बरड़ांद जाणा छया।

मौज हूणी छई इनि जबारी उखअ

काबुली एक ऐगे तबारी उखअ।


लम्बु भारी बदन एक चोला छयो।

हींग देंदो रुप्ये एक तोला छयो।

कैरणी आंखि, मैलो-कुचैलो बड़ो।

भूत-सी, ऐकि सोंदिष्ट ह्वेगे खड़ो।

आज तक जो क्या सूणि छै जै न भी।

भूत सैंदिष्ट देखी नि छो कैन भी।

देखि तै छोटा छोरा भग्या रात मा।

आज क्या हूणि-जाणी ण, परमात्मा।

नौनु व ेदखि; की एक रोये जबअ।

बूड-बुड्यों को यो हुक्म होये तबअ।

रात रहणू जगा तै नि देलो कईअ।

नौनु सैंल्यूं-पल्यूं जी छले लो कुई।

दूर गौं से अलग एक कूड़ो छयो।

घअर, तैं रात बती आदमी नी रयो।

देवकी एक विधवा विचारी छई।

वा अफी पापि किस्मत कि मारी छई।

स्वामि का नाम को व्रत ल्हेंदी छई।

भूखा-प्यासों तई भीख देंदी छई।

चौक मा काबुली पोंछि ऊंका गये।

पापि बाकारुणा कैकि रोणू रये।

”दीदि! देदे जगा आज की रात ही।

फेर चलि जौलु मी मोल-परभात ही“

भोलि-भालि, कपट-छल नि जणदी छई।

हौरू को दिल भि अपणों-सि गणदी छई।

छै दयावन्ति घ्ज्ञरकी अकेली रई।

खालि छो ओबरो बोड रांदी छई।

ओबरा का किनारा जगा रात मा

पेट भोरी मिले खाणु भी साथ मा।


जबकि संसार समसूत ह्वेगे छई।

कुक भुकणा छया दूर, गौं मा कई।

गाड-गदरों कु स्वीं स्याट होणू छयो।

सालि का मूड़ि की स्याल् रोणू छयो।

सैरि संसार आराम पाणी छई।

नींद पर काबुली तैं नि आणी छई।

खड़-उठी वो, सुरक भैर आणू छयो।

बौड की देलि भू बैठि जाणू छयो।

आंदो-जांदो छयो द्वार भी खेल दो।

देकि धक्का, छयो रोष मा बोल दो।

जो भलो चांदि तब खोलिदे द्वार तू।

खांमखां केकु खांदी म्यरी मार तू?

दूर छौ गों, विचारी अकेली रई।

क्या करो? वेकि सब बात सुणणी छई।

रुन्दि छै भारि, धिडुड़ी सि रिटणी छई।

भांडा-कूंडा लगै द्वार किटणी छई।

काबुली भैर, भीतर छई वा खड़ी।

नी खुल्या द्वार जब देर ह्वेगे बड़ी।

भाग-सेद्वार भी एक कच्चो रये।

फेर भीतर की सांकल भी टूटी गये।

जबकि-कैको बुरो वक्त आंदअइण अ।

खून भी वैकु आपड़ो नि रांदअ इखअ।

अपड़ि छाया जु रहंदी सदा साथ मा।

साथ नी रैंद वा भी चुचों, रात मा।

मिरग पर बाण मरदअ शिकारी जबअ।

खून ही पेड़ अपड़ी बतान्दअ तबअ।

लाल आंखी करी, छौ छुरा हाथ मा।

पौंछिगे काबूली क्रोध का साथ मा।


वीन बोले-अरे, भैर जा, मान तू।

खांमखां खुंदि अपड़ी किलै ज्यान तू?

खूंदु छै उख, जखी खांदु छै गास तू।

कै मुलक को छई चोर-बदमाश तू?

तू सियीं-सिंहणी तैं जगाणू छई

आगि पर हाथ-केकू लगाणू छई।

पर नि मान्यो कतै, वीं डराणू रये।

होरि डडो पकड़णू कु आणू रये।

स्वामि सुमरी, उठी बात की बात पर।

खैंचि खुंकरी सिंराणा बटी हाथ पर।

मूलिगे क्या च वा, नी रई होश मा।

भूखि-सी सिंहणी वा छुटे रोश मा।

क्रोध से वे परैं ब्रज-सी टूटिगे।

हाथ से काबुली को छुरा छूटिगे।

बिजली-सी रात खुकरी चमकणी छई।

आग-सी तन बदन वीं का जगणी छई॥





भूली / भगवती चरण शर्मा 'निर्मोही'


औ भुली तू आज मिलिले, मैं छ जाणू दूर तेरो,

ऐ नि सकदो यख कभी, फिर छोड़ियाले आज डेरो।

ऐ गये मौका इनू यो, एक पल भी टल नि सकदो,

रुकण को भी क्वी बहानो, द्वी घड़ी को चल नि सकदो।


2.


पीठि को फाडो तेरो यो, दूर त्वै से आज ह्वैगे,

मोह-ममता छोड़िकी तैं, जाणकू तैयार ह्वैगे।

भेंटिले कुछ बोलिले, जो कुछ छ मन की बात तेरी,

रै जाली कुछ ही दिनूँ मा, आखिरी या याद मेरी।


3.


हौर छै छन भै त्यरा भुलि, मैं सनैं तू भूलि जाई,

याद कै कै की बणू मा, ना खुदै की गीत गाई।

भै औला त्वै मू सदा ही, रीत भी त्वै सन जणाला,

मैत को बाटो बताला, सब तरह त्वै सन मनाला।


4.


ये भयादूजी कु तैं तू, ल्हे फुलों माला बणैकी,

भेटदे सब भाइयों सन, सैंद्वाणी अपणी बणैकी।

राखड़ी त्योहार आलो, अब आली होली-दीवाली,

औन्दु रै तू मैत अपणा, जाण ना दे बार खाली।


5.


हौर सब मैं भूलि जाला, माँ त नी सकदी भुलाई,

माँ सणै तू भूलि की भी, याद ना मेरी दिलाई।

ह्वै सको धीरज बँधाई, प्राण सन वीं का बुझाई,

बात करदी वक्त रोकी मन, ना तू आँसू बगाई।





मेरी बिचारी / भगवती चरण शर्मा 'निर्मोही'


बालापन से ही मिन गैल्या, सदा दुख का दीन बितैने,

खोटी-खारी लोखू की सुणिने, इथैं-उथैं की ठोकर खैने।

हूँद कंपिकी कटीने रात, रूड़ो डाल्यूँ का छैल बितैने,

वर्षा ऋतु मा दिवरों उनाये, कई एक चिन्ता तब ऐने।


2.


कभी कबड्डी गिलिडंडा ही, खेलि-खेलिकी दीन गँवैने,

पढ़ि-लिखि छौं फिर कविता कैने, ओर-पोर का ध्यान मिटैने।

इना मयाल्दू त्वै ये की भी, द्वी छूवी त्वैमा कभि नि लगैने,

अपणा दुख का दुखड़ा सुणैकी, रोज त्यारा भी आँसू बगैने।


3.


कभी खूब सी आँगड़ी चदरी, धोती मैं त्वै कुनी ल्हायो,

मेरा मोर तिन अरो बिचारी, कभी पेट भरि खाणु नि खायो।

हँसुली-धगुली दूर रई पर, एक सूत भी मिन नि गढ़ायो,

त्यरा नाक को मुरखलु तक भी, पापी पेट की भेंट चढ़ायो।


4.


लाईं-पैरीं देखि बिराणी, कभी त्वै कु तैं डाह नि आयो,

अलाणि चीज ल्हाँ, फलाणि ल्हाँ, बोलकि मेरो ज्यू नि जलायो।

जाणदू छौं मैं कभी एक दिन भी, त्वै सन सुख नि दे पायो,

किन्तु त्वै सनै रत्ती भर भी, पछतावा याँ को नि आयो।


5.


ऐ छौ त्वै सन सुखी करण को, मैं मु जब कुछ समय बिचारी,

हाय विधाता! निष्ठुर त्वै सन, छिनण लग्यूँ छ मैं से प्यारी।

चोट लगैकी भारी मन पर, जाणी छै तू अरी अगाड़ी,

जै ले, कखी जग्वाली मैं सन, औलो मैं भी त्यरा पिछाड़ो।





मलेथा की कूल / देवरानी


धौली का छाला पले किनारो,

ऊँचा माँगै मलेथो को सेरो

एक दिन छयो रुखो मलेथो

एक दिन छयो भूखो मलेथो

कोदो गत्थू को गौं छयो

सटी नी नऊं को होंद छयो


दूर बटि ब्वारी मुंउ मुं गैठी

लादी छै पाणी पीणू कू तैंई


तबी की बात तख रैंद छयो

माधू भण्डारी मासूर छयो

दूर तैं मानता जैकी छयी

राज दरबार मा धाक छयी


एक दिन माघू कोसू चल्यूं

राज दरबार बटी ए थक्यंू


भूख की ज्वाला छै पेट लागी

खाणू को रोटी, भावी मा मांगी

रोटी त छैंचा पर साग नीच

बोली भावी ला चटणी बी नीच

लूण अर मिर्च पीसिका ल्हौ

उनि खै ल्यूं लो द्वि रोठला घौं


बोले माधू ना भावी कू तैंयी

भावी स्या लूण सिपणू कू गैयी


जरा अबेर भावी कू ह्वेगे

माधू कू कोध की ज्वाला लैगे

मिलता समझे भावी जी कखे

त्वे पर जलड़ा जकड़ी का लगिगे


तान मा ताना भावी ला धाया

एक की द्वी तैंला सुणाया


गै छौ वं क्यारी मी मिर्च ल्हांणा

गोबी छन जख आलू लगाणाँ

कूल ल्हैं त्यारो कूल्याँदो क्यूँ

पाणी ल्है त्यारो पणचाये क्यूँ


क्यारी की क्यारो उख प्याज की छै

पुँगड़ी पालिंगा अर मेथी की छै


पाणी का घट्ट जख धुरकदा छन

जौंल मगरा बी धदकदा छन


माधो भण्डारी का नाम लागे

छत्रि छौ वेको अभिमान जागे


माधू ठाकुर उतड़ीण बैठे

भावी कू रोष मा बोली बैठे

तूयी ल्ही औंदी घौं कूल गाड़ी

तुयी ल्ही औंदी घौं गाड बाँधी


मित्र वटि भावी को क्रोध बाढ़े

भैर मुसकैक बोलण बैठे


त्यारा रौंदा जी मिल कूल ल्हाणा

तवै छौंदा जी मिल हौल बाणा


ता बुवा माधू धिकार त्वेकू

ता चुचा माधू, छुछकार त्वेकू


जोंगा मूँडीका विन्दी लगौ तू

स्युंद गाडी का भिंटुली बणौं तू

वीर क्या जैमा बबराट नीच

‘स्यू’ क्या जैमा घुघराट नीच


भावी का ताना तानौ की बात

बज्र सी पोड़ी माघो का माथ


साबली कूटली गैंती फौड़ो

धैरी काँदमा दाथी कुल्हाड़ो

कूल खणणू कू अब जाण बैठे

जोश का बोल बोलणा बैठे


गणपती भूमिया देवी की जै

जन्म भूमि गढ़माता की जै


ब्यूंत कूली को अब दिखणा बैठैो

रौल्यूं रौल्यू माधो जाणा बैठो


साबली बजणी च खणाखण...॥

धमकदा फौड़ो तैको दनादन...॥


गैंती चलदी च जश तीर होवा

कूटी वा जनो शमशीर होवा


चल्दा पैनी कुलाड़ी चटाचट

डालौं तैं काटी धोल्दा खटाखट


छीना चट्टान का चूरा-चूरा

खणी चट्टाणू का बूरा-बूरा

ऐगे भंडारी स्वरंग क्वरदा

दाँती अंखेड़ सी फोड़द-फोड़दा


माधू का एक नौन्याल छयो

शेर को पूत हूँणयाल छयो


जैं जगा डांडा सोरंग कोरी

तख बटी खन्द एक भारी पोड़ी

माधो का नौना का मूंड लैगे

फोड़ि बरमंड का खंड कैगे


असगुनी कूल स्या अपजसी रै

सिरगतो बाल की जैला बलि ल्हे


चित्त माधो को बैंरागी ह्वेगे

ज्ञान की जोत चमकणा लैगे

बीरु तैं शोक नी करणो चेंदो

तैथैं मिरतू मा नी रोण चैंदो


रौऊ को बांध माधू ला खोले

माई गंगा की जै बोले, बोले


पाणी खकलाट गगलाट कैकी

छल्की छल्की का फकप्याट कैकी


माधो की कृती यश गाँदा-गाँदा

आज तैं कूल तख बग्द जांदा





तुम द्यावता / गिरधारी लाल 'कंकाल'


तुम द्यावता मीं दासी,

तुम रोज रोज सोदा होन्दा,

मी होन्दी जान्दी बासी।

तुम राली मां घाँडी

तुम दिप्प हिरेन्दो जै मुखनी

मी काँचे च्ची हाँडी।


तुम स्वाती मीं चोली,

तुम पूर्ण रूप छाँ भंडारा,

मीं रोज तिसाली लोली।


तुम पराण मी काया,

तुम योगी छा उच्च विरागी,

मीं धूल भरा छौं माया।


तुम डाली मीं दाणी, 

तुम जीवन का, नव अंकुरा,

मीं छौं रस वालो पाणी

तुम गौं स्वरूप मीं तैलो

तुम अपराध्यूँ की छिमा छयाँ

मीं बगत बगत को गैलो।





खुलपित / गिरधारी लाल 'कंकाल'


मेरी विचारी तिन जीवन मा

खैरी ही खैरी खैने॥


रात नि खुल्दी घास पाणि कै, तू पुगड़ों मा जान्दी

भूखी-तीसी-थकीं-पितीं, दवफरम घौरउ आन्दी,

रुखा सूखा द्वी गफ्रा खाया, बोणूं फिर चली जान्दी,

घासै-बिठगी, लखड़ा गडोली, ढै ढै मण की लान्दी,


उकलि-उन्दारी कटदी-नपदी

जीवन का दिन गैने॥


जीबन घिसिगे माटे दगड़ी, भाग बिदेसू ही रैगे,

जौंकि कुयेड़ी सैरी मंथा, सौंण बाखदो ऐगे,

ओल पचैन तिन रुड़यूं का, पूसौ देखे फालो,

दिन-द्वफरा भी गैंणा गणन, उज्यलो बेखी कालो,


रैगे लौंकी जिकुड़ि कुयेड़ी,

आंखि भ्वरीं ही रैने॥


कागा बसदा, ब्बल्दी आला, लोलि आग भी भभरान्दी,

रोज ससेंई मौन बुथ्योन्दी, चिट्ठी ही ऊंकी आन्दी,

भुंचे गई तू सोच फिकरमा, जीवन का दिन कम होन्दा,

मोरि नि सकदी, बिग्चि नि सकदी, आख्यूं का खुलदन-च्यूंदा,


सौंजड़या तेरी क्वी परदेसू

क्वी अपड़ा मैतू ऐने॥





गढ़वाल प्यारो / केशव ध्यानी


मेरो हिमवन्त देश गढ़वाल प्यारो

चारी जाली कूल,

हैरी-हैरी डांडी मेरी

रंग बिरंगा फूल। मेरी हिमवन्त.

पिण्डलू का शोभा,

बद्री, केदार नाथ,

छै ऋतु की शोभा। मेरो हिमवन्त.

आरती की थाली,

छोटी-बड़ी रौली मेरी

झुकी-मुकी डाली। मेरो हिमवन्त.

भितरी को सीत,

ग्वेरु की मुरली अर,

घसेयों का गीत। मेरो हिमवन्त.

गीत भरी साज,

डाँड्यों म कुयेड़ जख,

दूध-कोसी गाज।

मेरो हिवन्त देश गढ़वाल प्यारो॥





को जी होलो औंणू? / केशव ध्यानी


‘घुगति-बसूती’ घूरी घुगति डालि म,

उज्यालि मयलि घूरी घुगती डालि म

रीटि-फीरि आई ऋतु,

धड़म बाजी लाठी।

फूलु की फूल्यालि आई,

गिंवड् यूँ की बाटी॥ घुगति बसूती.

डाँडी हैरि डालि मौलि,

रंग-मती बँसूला।

धरती क कंठ आज,

फूलु की हंसुली॥ घुगति बसूती.

पंथ्या धौलू फ्योंलि, आरु

लय्या फूशे बुरांस।

घुंगटंयालि ठुमकदी आई,

झपन्यालों, हिलाँस॥ घुगति बसूती.

पैत्वल्यों पराज-आज,

कंठ की बडुली।

आज को जी होलु औंणू?

डुलदी च लटुली॥ घुगति बसूती.





अंछरयों की राणी / केशव ध्यानी


झूम-झमा झम, खुटों का झाँवर रे,

अंछर्यो की राँणी आई, गीत गान्दरे।

नौ सोर मुरली बाजी, मोछंग की धुन म

फूलू की पंखुड़ी, भौंर का गीतू म।

.......ओजी हो

धम-धमा-धम,

भौंरों की बरात रे

अंछर्यों की राँणी आई, फूल फुलान्दी रे।

बाँज की डाल्यों म आई, बुराँस का फूलू म,

फ्योंलि का फूलू म आई, झमकदा गीतू म।

....ओजी हो


छम-छमा-छम,

खुट्यों का झाँवर ये

अंछर्यों की राँणी आई, गीत गान्द रे।

लंग-लंगी डाल्यों म आई, रुम-झुम पातु म,

छुणक्यलि दाथी म आई, घुगति की घू घू म।

....ओजी हो


सर-सरा-सर, सर,

बथौं का दगड़ रे

अंछर्यों की राणी आई, मुल-मुल हैंसदी रे।

हो....हो.....हो!





दीवा जसी ज्योति / केशव ध्यानी


चन्दी गड़ी बन्दी,

कैकी सुआ ह्वैली इनी, लगुती सी लफन्दी,

दीवा जसी ज्योति।

चदरी, की खाँप

कैकी सुआ ह्वैली इनी, सैलूजसी लाँप,

दीवा जसी ज्योति।


पाणी जसी पथलीं

रुआँ जसी हपली।

डाली जसी सुड़सड़ी,

कंठ की सी बड़ली।


बखर्यों की तान्द,

कैकी सुआ ह्वैली इनी, टपरान्दी चकोर,

दीवा जसी ज्योति।

धुआँ जसी धुपेली,

नौ गज की धमेली।

राजुला जसी राणी,

केला जसी हतेली।


की टकोर,

कैकी सुआ ह्वैली इनी, टपरान्दी चकोर,

दीवा जसी ज्योति।

स्वींणा सी लिख्वार की,

पिरथी की सि मोल।

बालो सूरिज बाँको,

सोना जसी-तोल।


वास की बडुली

मिरग सी आँखी सुआ कुमर्यालि लटूत्ता,

दीवा जसी ज्योति।


नौ सोर मुरली का,

गिताँग जसी गैली।

बुराँस जनी फूल,

फ्योंलि जनी रौतेली।


लगुड़ी लचीली,

कै चाल चलदी सुआ, साज सी सजीली

दीवा जसी ज्योति॥





त्यरि म्यरि च जोड़ी / केशव ध्यानी


त्यरि म्यरि च जोड़ी कैमा न बिंगै दे,

सौंजङ् यौं कि छ्वीं छन तू छ्वीं न लगै दे।

इनी छ्वीं लंगौणू मन बोद भारी,

बिस बणलो अमरित स्वी-सै न करै दे।

कैका दिख्याँ मी पर न मारी तु गारी,

मी जनई पँथेरम् पाणी न खले दे।

धौडाँदि द्वफरी मा बँशुली बजौलो,

तू मोरि बटि भैने कु मुक न पल दे।

कमि आँखि टलपल रर्ग्याट करली,

क्वी पूँछलो आँसू आँख्यौं मा लुकै दे।


त्यरिइ तरौं भलि स्वाणि छन तेरि डाँडी,

ज्यू झुरैकी तौकी शोभा न जगै दे।





जुनख्यालि रात च छोरी / केशव ध्यानी


जुनख्यालि रात च छोरी।

कनै हैंसि तू?

गाड पाणि अफ नि पेंदि

फल नि खाँदा डाला

अन्न तैं भि भूख लगद

तीस मेघ-माला।

हर फूल जो स्वाणो

स्वाणे ही नि होंदो

बात को अन्ताज होंद

निस्तुको नि होंदो।

छूँ लगाई लाख, मगर

छपछपि छू लगद क्वी

औखियों मा दुनिया बसद

दिल भितर बसद क्वी

गाड द्यखण पड़द पैले

स्वाँ कु मरद फाल

भक्क कख मरेंद भौं कै

बाँद पर अँग्वाल।

भूको ब्वद वलि गदनी

अधणो ब्वद पलि गदनी।

अपणा दिलै मी जणदू

त्यरि जिकुड़ो कन च कनी।





छम घुँगरू बाजला / शिवानन्द नौटियाल


छम घुँगरू बाजला,

छम छमाछम घुँगरू बाजला

छ घुंगरू बाजला, मांडा की उकाली मा

भली नथुली साजली तडतडी-सी नाक मा,

तू फूल मा फूल छई, बाँद छई लाखों मा,

मैं मायादार तेरो, सरानी रखलो हाथ मा।





सबु कि बौ, बदेणि बौ / केशव ध्यानी


सबु कि बौं, बदेणि बौ

त्यारो घुँघरू बाज्यो छम।

धणा गौं का बाठा औंदी तु बाँदी

दुहाते माया बाँटदी जाँदी

गजब कदी तू आँख्यौंन खाँदी

इतरि नि छै तू जम-कम।

हातु नि पकड़ंदी, भुयाँ नी धरेंदी

क्वी धड़ि आँख्यौंन फंुडुनी करेंदी

तरसेंद त्वै पर, जै भी दिखेंदी

चालि-सि चंचल चम-चम।


बीच बजार मा मेलो लग्यूँ च

हर कौथगेर त्वे पर मर्यूँ च

खौल कि तेरो खिरचा खत्यूँ च

खिरचा खत्यूँ च छम छम।

  



कख होली मेरी डाँडी व काँठी / उम्मेद सिंह नेगी


कख होली मेरी डाँडी व काँठी, कख कुरेड़ी सौण की,

रूम झुम बरखा छुम छुम छोया, मैं कू सूझीं छ स्येण की।

हालड़ का बीच छानी होली, भैंसी बियाई सौण की,

दूद तपाला, खीर पकाला, गोंदगी खाला नौंण की।

बल्दू की घांडी, घस्यारियों का गीत आग लगौंदा ज्यू की।

कखड़ी व ग्वदड़ी पाकींगे होली, बग्वाल पड़ली छोरू की,

मुंगरी की लुंग अजूँ नी चाखी खुद लगीं च दादी की।

ध्वीड़ मिर्गू कँ चाँत पियारो, मैं कू प्यारो गढ़वाल छ,

डाँड्यों का दर्शन होई जौन, लालसा या ही मन मा छ।

चिट्ठी न पतरी कै पापी की भी, याद नी होली सुपिना मा,

मुखड़ी देखीक टुकड़ी हौंन्दी प्यार नी होलू कैका दिल मा।




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